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गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

भारतीय सेना के हवलदार हंगपन दादा के बारे में हर भारतीय को पता होना चाहिए

26 मई 2016 को भारत में घुसपैठ की कोशिश कर रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों से निपटने के दौरान शहीद हुए भारतीय सेना के हवलदार हंगपन दादा के बारे में हर भारतीय को पता होना चाहिए

हवलदार हैंपन दादा


अपने साथियों द्वारा दादा के नाम से पुकारे जाते हैं, का जन्म 2 अक्टूबर 1979 को अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले के बोरदुरिया गाँव में हुआ था। हवलदार दादा एक उत्सुक खिलाड़ी थे और कई किलोमीटर तक दौड़ते थे और एक बच्चे के रूप में हर दिन 25-30 पुश-अप भी करते थे। हवलदार दादा सेना 1997 मे सेना की पैराशूट रेजिमेंट की 3 वीं बटालियन में भर्ती हुए। छह साल बाद, वह असम रेजिमेंटल सेंटर के साथ सेवा करने के लिए चले गए और 24 जनवरी 2008 को असम रेजिमेंट की चौथी बटालियन में शामिल हो गए।


कुछ साल बाद 2016 में, हवलदार दादा ने जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद विरोधी अभियानों में लगे 35 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ सेवा करने के लिए स्वेच्छा से काम किया। उन्हें पालतू जानवरों के रूप में सांपों को रखने का शौक था । हवलदार दादा एक सिपाही के रूप में श्रेष्ठ थे और अपने साथियों के साथ-साथ वरिष्ठों द्वारा भी उन्हें पसंद किया जाता था।


नौगाम ऑपरेशन: 26 मई 2016


मई 2016 के दौरान, हवलदार दादा की इकाई, 35 आरआर (राष्ट्रीय राइफल्स) को जम्मू-कश्मीर में नौगाम सेक्टर में तैनात किया गया था। 26 मई 2016 को, उनकी यूनिट को नौगाम सेक्टर में आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में खुफिया सूत्रों से जानकारी मिली थी। आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए रात में तलाशी शुरू करने का निर्णय लिया गया। 26 मई की रात में, हवलदार दादा ने अपने अन्य साथियों के साथ, योजनाबद्ध ऑपरेशन के अनुसार छिपे हुए आतंकवादियों पर हमले का नेतृत्व किया । संदिग्ध क्षेत्र में पहुंचने के बाद, हवलदार दादा ने अपनी टीम के साथ आतंकवादियों की गतिविधि को देखा और उन पर एक अच्छे टीम वर्क के साथ हमला किया। 24 घंटे तक चली इस मुठभेड़ मे दादा ने 2 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया। देखते ही अन्य दो आतंकवादी भाग गए और एक दीवार के पीछे छिप गए। दो आतंकवादि जो दीवार के पीछे छिपे थे, हवलदार दादा ने उनमें से एक पर हमला किया और उनमे से एक को मौत के घाट उतार दिया तब तक चौथे आतंकवादी ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी लकिन अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए दादा ने उसपर हमला किया और उसको भी बुरी तरह घायल कर दिया लकिन ज्यादा घावों की वजह से दादा वीरगति को प्राप्त हो गए।



हवलदार दादा ने इस कार्रवाई से एक बड़े आतंकवादी हमले को असफल किया और अपने साथियों की सुरक्षा सुनिश्चित की। हवलदार दादा को 2016 में स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, “अशोक चक्र” शांति के लिए दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार दिया गया था।

अपनी वीरता के लिए दादा आज भी हम हज़ारों भारतीयो के दिलों में जिंदा है

जय हिन्द. 🇮🇳

जय भारत. 🇮🇳

धन्यवाद. 🖋️

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