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शनिवार, 29 मई 2021

जिसे सम्पूर्ण विश्व ने अपनाया क्या उस भारतीय चिकित्सा पद्धति को भारत मे ही अग्नि परीक्षा देनी होगी

जिसे सम्पूर्ण विश्व ने अपनाया क्या उस भारतीय चिकित्सा पद्धति को भारत मे ही अग्नि परीक्षा देनी होगी_*

औषधि के बारे में यही कहा है कि
 *"मन्त्रे तीर्थे द्विजे देवे, दैवज्ञे #भेषजे गुरौ।*
*यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी.."*

जिसकी जहाँ श्रद्धा है वह वहीं से ठीक होगा।
यह बहस ही निरर्थक थी।
मान लिया कि बाबा बिजनेस मैन है।
तो क्या व्यापारी होना गुनाह है।
व्यापारी और उद्योगपति भी तो हमारे गौरव के विषय है।
दिक्कत ये नहीं है।
दिक्कत कुछ और है।
बाबा एक तो हिन्दू, ऊपर से भगवा, बिल्कुल पालघर की तर्ज पर सॉफ्ट टारगेट, ऊपर से आयुर्वेद का उद्धारक!
ऊपर से चरित्र का पक्का।

"बाबा तेरा बच्चा मेरे पेट में पल रहा है!" दो तीन शूर्पणखाएं ये इल्जाम लेकर भरे दरबार में गई थी लेकिन बाबा वहाँ भी पकड़ में नहीं आया।
जरा सी नुक्स मिले तो रामदेव का आसाराम कर दें।

पर बाबा का रथ अजेय यौद्धा की तरह बढ़ता ही जा रहा है।
बाबा को देख देखकर कसाई, वामी, यीसाई के जितनी मिर्ची लग रही है उसका निकट भविष्य में कोई अंत नहीं।
लिबरल की तो बाबा से इतनी जलती है जितनी चपटी धरती वालों की इजरायल से।

और ऐसे में बाबा ने आजतक पर एक और ट्रिक खेल दी।
बहस पूरी होते होते सबको समझ आ गया 'ये तो उल्टा हो गया!'
यूट्यूब के कमेंटबॉक्स में बाबा से भी ज्यादा गालियां आजतक चैनल और अंजना ओम को मिल रही है।

सारे लिबर्ल्स में मातम व्याप्त है।

एलोपैथी ने बचाया है तो आयुर्वेद ने भी बचाया है।
आयुर्वेद वाला एक डॉक्टर मरा है तो एलोपैथी वाले एक हजार मर गए।

कोरोनिल को who ने मान्यता नहीं दी तो कोवेक्सिन को भी नहीं मिली।
कोरोनिल वाले एलोपैथी खाकर बचे हैं तो एलोपैथी वालों ने भी काढ़ा पिया है, यह तर्क भी दोनों पर लगता है।

लोग अपने आप ठीक हो रहे हैं तो यह भी दोनों पर लागू है।
कई प्रकार की इमरजेंसी में आयुर्वेद फेल है तो कई असाध्य रोगों में एलोपैथी बिल्कुल अंधी।
बाबा के पास एलोपैथी के दशांश संसाधन भी होते तो बाबा इन्हें #रगड़_रगड़कर_धोता।

और जब बाबा ने कहा "हमने तो एलोपैथी की प्रशंसा भी की है, लेकिन तुम आयुर्वेद के योगदान पर चुप क्यों हो?"
डॉ लेले, डॉक्टर कम कन्वर्टेड पादरी ज्यादा लग रहा था।

एक बार बहस इस मोड़ पर पहुंची कि "बाबा सारा कोविड अभियान तुम अपने हाथ में क्यों नहीं लेते?"
बाबा - "मैं लेने के लिए तैयार हूँ!"
एलोपैथी ने कहने को तो कह दिया लेकिन इस कथन एक कथन से लाखों लोगों की सांस हलक में अटक गई।
न जाने कितने ही माफिया केवल इस महामारी के भरोसे अपना खर्चा निकाल रहे हैं। एक बार तो सबको अपनी दुकानें बंद होती दिखीं।
बाबा तो दुस्साहसी है। वह पंगे लेता है तो निबटना भी जानता है। वह तो कोविड अभियान को ले भी लेगा, लेकिन तुम दोगे तब न।

कोरोनिल नहीं बिकी तो बाबा आटा बेच देगा। वह भी न बिका तो गुफा में चला जाएगा लेकिन तुम लोगों का लाखों करोड़ों का इन्वेस्टमेंट दो दिन में तुम्हें आत्महत्या करने पर विवश कर देगा।
इसलिए जेसा चल रहा है, चलने दो। 

घर में प्राणायाम कर काढ़ा पीकर हॉस्पिटल पहुंचो और अजिथरामैसीन के साथ 70 हजार की रेमडीसिविर बेचकर रात को वापस आकर कोरोनिल खाकर सो जाओ।

समस्या कोविड नहीं है।
समस्या एलोपैथी के प्रति श्रद्धा भी नहीं है।

*बीमारी उन जाहिल सेक्युलरों की खोपड़ी में हैं जो भगवा वस्त्र देखते ही कुत्तों के माफिक भड़कते रहते हैं।*

और इस बिमारी का कोई इलाज नहीं।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

वेक्सीन विवाद: सरकार का विश्व शांति के लिए किए कामो पर उठाए जा रहे दुश्मनों द्वारा सवाल

वेक्सीन विवाद: सरकार का विश्व शांति के लिए किए कामो पर उठाए जा रहे दुश्मनों द्वारा सवाल

साभार -विवेक दर्शन पत्रिका

वैक्सीन एक्सपोर्ट की सच्चाई जानेंगे तो सारे जिहादियों और सेकुलरों का सिर शर्म से झुक जाएगा

जिहादी और सेकुलर लगातार एक मुद्दा उठा रहे हैं साथ ही ये पोस्टर लगा रहे हैं कि हमारे बच्चों की वैक्सीन दुनिया में क्यों एक्सपोर्ट कर दी ? कितनी वैक्सीन कहां भेजी गई और क्यों भेजी गई ? इसका पूरा हिसाब किताब इस लेख में है । और साथ ही ये भी बताएंगे कि कैसे भारत के जिहादियों को सऊदी अरब में फ्री वैक्सीन की डोज का मजा मिल रहा है । 

11 मई तक भारत ने कुल 6.6 करोड़ वैक्सीन के डोज विदेशों में निर्यात किए हैं । इसमें से 84 प्रतिशत यानी करीब 5 करोड़ वैक्सीन लाइबेलिटी के तहत बाहर भेजी गई है । लाइबेलिटी मतलब भारतीय कंपनी के द्वारा विदेशी कंपनी या दूसरे देश के साथ हुए समझौते के तहत वैक्सीन को बाहर भेजा गया है । अगर भारत की कंपनी वैक्सीन बाहर भेजने का समझौता स्वीकार नहीं करती तो भारतीय कंपनियों को वैक्सीन बनाने का कच्चा माल ही नहीं मिलता ।

भारत में जो कंपनी वैक्सीन बनाती है वो वैक्सीन बनाने का कच्चा माल विदेशों से इम्पोर्ट करती है । जिन देशों ने भारत की कंपनियो को ये कच्चा माल दिया । उन देशों ने भारत की वैक्सीन निर्माता कंपनियों से करार किया कि हम आपको कच्चा माल तभी देंगे जब आप वैक्सीन बनाने के बाद कुछ प्रतिशत हमको भी बेचेंगे । इस वैक्सीन के लिए भारतीय कंपनियों को पेमेंट भी दी गई है । लगभग 5 करोड़ वैक्सीन ऐसे ही कुछ अनुबंधों के तहत विदेशों में भेजना भारत की कंपनियों की व्यवसायिक जिम्मेदारी थी । इसके अलावा एक करोड़ 7 लाख वैक्सीन मदद के रूप में भारत के पड़ोसी देशों को भेजी गई है । इसकी जरूरत क्यों पड़ी ? आगे बताएंगे । 

आपको ये बात जानकार आश्चर्य होगा कि आज बहुत सारे जिहादी और इस्लाम परस्त सेकुलर भी वैक्सीन एक्सपोर्ट को लेकर भारत सरकार को घेर रहे हैं । लेकिन सच्चाई ये है कि भारत की कंपनियों ने कुल एक्सपोर्ट हुई वैक्सीन का 12.5 प्रतिशत सऊदी अरब को एक्सपोर्ट किया है । सऊदी अरब में 15 लाख 40 हजार भारतीय रहते हैं और ये बताने की जरूरत नहीं है कि इनमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं जिहादी हैं । भारत ने यहां से जो वैक्सीन सऊदी अरब को एक्सपोर्ट की है । वो सारी वैक्सीन सऊदी अरब में रहने वाले इन हिंदुस्तानी जिहादियों को मुफ्त में लगाई जा रही है । आप सोचिए कितने शर्म की बात है कि जिहादियों को वैक्सीन फ्री में ठोंकी जा रही है फिर भी भारत में मोजूद जिहादी हल्ला हंगामा काट रहे हैं क्योंकि मकसद सिर्फ मोदी का विरोध है । 

भारत ने 2 लाख वैक्सीन डोज युनाइटेड नेशन पीस कीपिंग फोर्स को दिया है । भारत के बाहर भी भारत के हजारों जवान संयुक्त राष्ट्र के मिशन के तहत शांति सेना के रूप में नियुक्त हैं । इन हजारों जवानों को भी वैक्सीन लगाने के लिए वैक्सीन एक्सपोर्ट की गई है । अब जिहादी जवाब दें कि क्या वैक्सीन भारत के सैनिकों और जवानो को लगे तो उन्हें कोई दिक्कत है ? 

इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कोवैक्स फैसेलिटी का निर्माण किया है । भारत सरकार को WHO के इस कोवैक्सीन फैसेलिटी को कुल एक्सपोर्ट वैक्सीन का 30 प्रतिशत भेजना पड़ा । ये दुनिया की मदद के लिए किया गया एक समझौता था जिस पर हर देश के साइन हैं । अगर आज मोदी के अलावा कांग्रेस का भी प्रधानमंत्री होता तो भी उसको ये वैक्सीन WHO को भेजना ही पड़ता । 

कमर्शियल लाइसेंसिंग क्या होती है ? इस बात को आप ऑक्सफोर्ड और सीरम की वैक्सीन कोविशील्ड से भी समझ सकते हैं । दरअसल सीरम भारत की कंपनी है जो वैक्सीन बनाती है । लेकिन उसने लाइसेंस और फॉर्मूला ब्रिटेन की कंपनी एक्स्ट्राजेनेका (ऑक्सफोर्ड) का लिया हुआ है । पहले ऑक्सफोर्ड ने भारतीय कंपनी सीरम से बिलकुल साफ कहा था कि हम आपको लाइसेंस तभी देंगे जब आप हर महीने हमें 50 लाख वैक्सीन बनाकर देंगे । तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ब्रिटेन की सरकार से बात करके इस रुकावट को दूर किया और सीरम को लाइसेंस मिला नहीं तो कोवीशील्ड वैक्सीन तो भारत में बन ही नहीं पाती ।

इसके अलावा भारत सरकार ने 7 पड़ोसी देशों को भी वैक्सीन भेजी है । ये सारे पड़ोसी देश लगातार चीन के प्रभाव में आते जा रहे हैं । अगर यहां भारत ने वैक्सीन नहीं भेजी होती तो चीन इन देशों पर और ज्यादा प्रभाव जमा लेता । इसलिए भारत ने बांग्लादेश भूटान श्रीलंका अफगानिस्तान वगैरह को वैक्सीन भेजी है । अब जैसे उदाहरण के लिए समझिए... चीन ने बांग्लादेश को अपनी वैक्सीन ऑफर की लेकिन बांग्लादेश ने मना कर दिया और भारत का हाथ पकड़ा । लेकिन अब जरा विचार कीजिए कि जो चीन पाकिस्तान से हर चीज की कीमत वसूल रहा है उसी चीन को आखिरकार मजबूरी में बांग्लादेश को फ्री वैक्सीन गिफ्ट के तौर पर भी ऑफर करनी पड़ी । सोचिए वैक्सीन के नाम पर इतनी बडी कूटनीति चल रही है । दरअसल भारत को भी ये कूटनीति करनी पड़ती है आप अपनी सीमा पर हर तरफ दुश्मनी मोल नहीं ले सकते हैं । 

कुछ लोग ये अफवाह भी उड़ा रहे हैं कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को वैक्सीन भेज दी है ये बात बिलकुल गलत है । दरअसल सच्चाई ये है कि कोवीशील्ड बनाने वाली ब्रिटेन की कंपनी एक्सट्राजेनेका से पाकिस्तान सरकार का समझौता हुआ है उसी के तहत  वैक्सीन डोज पाकिस्तान भी भेजे गए हैं । लेकिन इसमें भारत सरकार और किसी भी भारतीय कंपनी का कोई रोल नहीं है 

और सबसे बड़ी बात ये है कि वैक्सीन का एक्सपोर्ट फर्स्ट वेव के बाद किया गया था जब हमारे देश में लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार ही नहीं थे और सारे के सारे विपक्षी नेता वैक्सीन की क्वालिटी पर ही सवाल खड़े कर रहे थे । 

 तो आप सभी लोगों से हमारी ये अपील है कि संकट के इस समय में भ्रम मत फैलने दीजिए और भ्रम फैलाने वालों को इस पोस्ट से करारा जवाब दीजिए


मानव बनो भारतीय बनो
हिन्दू बनो राष्ट्रवादी बनो
भारत बनेगा विश्वगुरु

करे दूर बेरोजगारी लगाए खुद का केले का चिप्स का बिजनेस

आपदा से अवसर :करे दूर बेरोजगारी लगाए खुद का केले का चिप्स का बिजनेस ऐसे करे तैयारी
 
केले के चिप्स का मार्केट साइज़ छोटा है, जिसके कारण बड़ी ब्रांडेड कंपनियां केले के चिप्स नहीं बनाती हैं और यही वजह है की केले के चिप्स बनाने के बिज़नेस का ज्यादा अच्छा स्कोप है.

अगर आप भी कोई नया बिज़नेस शुरू करने का प्लान कर रहे हैं तो जरूरी है पहले उसकी पूरी जानकारी. हम आपको एक ऐसे खास बिज़नेस के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं, जिसे शुरू कर आप रोजाना के 4000 रुपये कमा सकते हैं. यानी की महीने के लाख रुपये. ये बिजनेस है केले के चिप्स बनाने का. केले के चिप्स सेहत के लिए अच्छे होते हैं. इसके साथ ही इन चिप्स को लोग व्रत में भी खाते हैं. केले के चिप्स आलू के चिप्स से अधिक प्रचलन में हैं, जिसकी वजह से ये चिप्स अधिक मात्रा में बिकते भी हैं तो चलिए देखते कैसे शुरू कर सकते हैं आप ये बिजनेस...

केले के चिप्स बनानें के लिए चाहिए ये सामान:

केले के चिप्स बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की मशीनरी प्रयोग में लायी जाती है और कच्चे माल के तौर पर मुख्य रूप से कच्चे केले, नमक, खाद्य तेल एवं अन्य मसाले उपयोग में लाये जाते हैं. कुछ प्रमुख मशीनरी एवं उपकरणों की लिस्ट इस प्रकार से है.

>> केलों को धोने का टैंक और केलों को छिलने की मशीन

>> केलों को पतले पतले टुकड़ों में काटने की मशीन

>> टुकड़ों को फ्राई करने की मशीन

>> मसाले इत्यादि मिलाने की मशीन

>> पाउच प्रिंटिंग मशीन

>> प्रयोगशाला उपकरण

कहां से ख़रीदे ये मशीन:

केले के बिज़नेस शुरू करने के लिए आप ये मशीन https://www.indiamart.com/ या https://india.alibaba.com/index.html से खरीद सकते हैं. इस मशीन को रखने के लिए आपको कम से कम 4000 5000 sq. fit की जगह की जरूरत होगी. ये मशीन आपको 28 हजार से लेकर 50 हजार तक में मिल जाएगी.

50 किलो चिप्स बनाने का खर्च:

50 किलो chips बनाने के लिए कम से कम 120 किलो कच्चे केलो की ज़रुरत होगी. 120 किलो कच्चे केले आपको लगभग 2000 रुपए में मिल जाएंगे. इसके साथ ही 5 से 7 लीटर तेल की ज़रुरत होगी. 6 लीटर तेल 120 रुपए के हिसाब से 700 रुपए का होगा. चिप्स फ्रायर मशीन 1 घंटे में 8 से 10लीटर डीजल कंज्यूम करती है. 1 लीटर डीजल 90 रुपए के हिसाब से 10 लीटर का होता है जो कि 900 रुपए का पड़ेगा. नमक और मसाले का ज़्यादा से ज़्यादा 200 रुपये और अन्य खर्च व पैकिंग वगेरह 200

तो 4000 रुपए में 50 किलो चिप्स बनकर तैयार हो जाएगें. मतलब एक किलों के चिप्स का पैकेट पैकिंग कॉस्ट मिलाकर 80 रुपए का पड़ेगा. जिसको आप आसानी से ऑनलाइन या किराना स्टोर पर 100-150 रुपए किलो में बेच सकते है.

1 लाख रुपए का प्रॉफिट कमा सकेंगे

अगर हम 1 किलो पर 20 रुपए का प्रॉफिट भी सोचें तो 200 किलो पर आप दिन के 4000 रुपए आसानी से कमा सकते हैं. यानी की महीने में आप एक लाख रुपए से भी अधिक कमा सकते है.

षष्ठ प्रक्षालयन क्रियाए : शरीर की अंदरूनी शुद्धि की जटिल पर सार्थक क्रियाए

षष्ठ प्रक्षालयन क्रियाए : शरीर की अंदरूनी शुद्धि की जटिल पर सार्थक क्रियाए

शरीर का जितना बाहय (या बाहरी)रूप है, उससे अधिक उसका अंतर स्वरूप है | अंतर स्वरूप समस्याओं का जाल है | शरीर के बाहय रूप की शुद्धि जितनी आवश्यक है उससे भी अधिक उसके अंतर स्वरूप की शुद्धि आवश्यक है | ऋषि, मुनि एवं योग शुद्धि क्रियाओं का प्रतिपादन किया। इनसे भीतरी मलिनता बाहर निकल आती है | साधक खाली पेट, प्रात: काल योगासनों के पूर्व या बाद या अलग रूप से ये षट्कर्म कर सकते हैं |

योग के षट्कर्म था शुद्धि क्रियाएँ 
I. नेति क्रियाएँ (ये पाँच तरीको से की जाती है)
1. जल नेति क्रिया
2. क्षीर- दूध नेति क्रिया
3. स्वमूत्र-गोमूत्र नेति क्रिया
4. तैल तथा घृत नेति क्रिया
5. सूत्र तथा रब्बर नेति क्रिया

II. धौति क्रियाएँ (ये मुख्यत दो प्रकार की है)
1. जल धौति – गज करणी – कुंजल या वमन धौति क्रिया
2. वस्त्र धौति क्रिया

III. वस्ति (एनिमा) क्रिया

IV. नौलि क्रियाएँ (इनके तीन प्रमुख प्रकार है)
1. अग्निसार क्रिया
2. उड़ियान क्रिया
3. नौलि क्रिया

V. कपाल भाति और भस्त्रिका क्रियाएं (ये दो प्रकार सर्वाधिक प्रचलित है)
1. कपाल भाति क्रिया
2. भत्रिका क्रिया

VI. त्राटक क्रिया

सभी क्रियाओं का अपना महत्व है ये क्रियाए मुख्यत शरीर के अंदरूनी अंगों की शुद्धि कर स्वस्थ बनाती है। इन सभी शुद्धि क्रियाओं का असर ऒर प्रभावित अंगों के अनुसार हम इन्हें निम्न प्रकार से समझ सकते है।
योग शुद्धि क्रियाएँ जो कि 6 प्रकार की हैं |
1. जल, क्षीरं, स्वमूत्र, गोमूत्र, तैल, घृत, सूत्र रब्बर नेति क्रियाएं ।
2. जल, वमन, वस्त्र एवं दंड धौति क्रियाएँ |
3. वस्ति (एनिमा) क्रिया और शंख प्रक्षालन |
4. अग्निसार, उड़ियान एवं नौलि क्रियाएँ |
5. कपाल भाति एवं भस्त्रिका क्रियाएँ |
6. त्राटक क्रियाएँ |

नेति क्रियाओं से साधारणतया नाक, गला, धौति क्रियाओं से आमाशय, वस्ती क्रियाओं से मलाशय, नौलि क्रियाओं से उदर, कपाल भाति क्रियाओं से मस्तिष्क एवं त्राटक क्रियाओं से नेत्रों की शुद्धि होती है । *ये सभी छ: क्रियाएँ अत्यंत नाजुक हैं | अत: साधक विशेषज्ञों की सलाह लेकर इनका अभ्यास करें तो ठीक होगा |*

आज हम इस विषय की पहली क्रिया का चिंतन और प्रयोग देखेंगे।

*नेति क्रियाएँ*
नेति क्रियाए शरीर के मुख नासिका जिव्हा, ग्रीवा, कर्ण सहित अनेक अंगों को शुध्द करती है इस क्रिया से मलिनता दूर हो स्वास्थ की प्राप्ति होती है

*नेति क्रिया के लाभ*

नाक, कान, मुँह, कंठ, नेत्र तथा मस्तिष्क से संबंधित बीमारियाँ दूर होंगी | 
कान संबंधी समस्याएं, बहरापन, कानों में पीब-रक्त का निकलना, कानों में विविध ध्वनियों का गूँजना इत्यादि से मुक्ति मिलती है
नाक में अवरोध, नाक में बढ़ता दुर्मास, सूंघने पर गंध का अनुमान न होना, साइनस सहित अनेक नासिका रोग दूर होते है।
नेत्र रोग, ऑखों का लाल होना, ऑखों का पीलापन, कम दृष्टि सहित सभी बीमारियां दूर होती है
मस्तिष्क संबंधी रोग, स्मरण शक्ति का घटना, धारणाशक्ति का घटना, सिर दर्द, आधा सिरदर्द तथा अनिद्रा आदि रोगों की तीव्रता कम होगी। 
कंठ से मस्तिष्क के ऊपर तक जितने अवयव हैं सभी की शुद्धि होगी |

*नेति क्रियाओं के प्रत्येक रूप का वर्णन और विधि निम्न प्रकार है*

 *1. जल नेति क्रिया*
आज प्रदूषण से हवा भर गयी है | ऐसे वातावरण में जल नेति अत्यंत उपयोगी शुद्धि क्रिया है |

1) एक प्रतिशत नमक मिला हलका गरम पानी विशेष टोंटीवाले लोटे में भर कर उसे हाथ में लेना चाहिए | बैठ कर या खड़े होकर सिर को थोड़ा आगे की ओर झुका कर उसे बायीं और थोड़ा घुमाना चाहिए | बायें नासिकारंध्र में टोंटी रख कर पानी को अंदर लेकर, दायें नासिका रंध्र से बाहर निकालना चाहिए | सांस मुंह से लेनी और छोड़नी चाहिए | लोटे । का पानी जब तक समाप्त न हो । जाये तब तक यह क्रिया करनी रंध्र से पानी अंदर ले कर बायें नासिका रंध्र से बाहर निकालना चाहिए |

दोनो ओर से यह क्रिया करने के बाद दोनों कान हाथों के दोनों अगूठों से बंद करते हुए थोड़ा सामने की ओर झुक कर मुँह से हवा जोर से अंदर लेकर नाक से झटके से बाहर निकाल देनी चाहिए | जब तक नाक से सारा पानी निकल न जाये, तब तक ऐसा करना चाहिए | नहीं तो जुकाम हो सकता है | इसके लिए केन्द्रों में विशेष पात्र मिलते हैं | यह शुद्धि क्रिया रोज करते रहें तो बड़ा लाभ होगा |

2) टोंटीवाले लोटे में हलका गरम पानी भर कर उसमें थोड़ा सा नमक डालें । उस पानी को टोंटी के द्वारा नासिका रंध्र से अंदर खींच कर, मुंह से वह पानी बाहर निकाल देना चाहिए । बाद दूसरे नासिकारंध्र से भी पानी टोंटी द्वारा अंदर खींच कर मुँह से बाहर निकालें ।

3) इसके बाद गिलास में पानी भर कर नाक के (नथुनों) सामने रख कर दोनों नासिका रंधों से पानी अंदर खींच कर उसे मुँह से बाहर निकाल देना चाहिए | ये क्रियाएँ कठिन है| अत: सावधानी से ये क्रियाएँ करनी चाहिए।

*जाल नासापान*
नासिका रंध्रों से अंदर खींचे हुए जल को मुँह से पीने की तरह पीना चाहिए। इस क्रिया को नासापान कहते हैं । नासापान करने के पूर्व नाक को जलनेति क्रिया द्वारा साफ करना चाहिए | इसके बाद नाक द्वारा अंदर खींचे जानेवाले जल को मुंह द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए | इसके बाद ही नासापान करना चाहिए |

*2. क्षीर- दूध नेति क्रिया*
1) जल नेति क्रिया की ही तरह पानी मिले । कुनकुने दूध से क्षीर नेति क्रिया भी करनी चाहिए

2) इसके बाद हलका गरम दूध टोंटीवाले लोटे में भर कर, नासिका रंध्र से अंदर खींच कर उसे मुँह से बाहर निकाल देना चाहिए ।

3) दूध में कुछ भी मिलाये बिना गरम कर जलनासापान की तरह करना चाहिए | दूध से मलाई निकाल देनी चाहिए । दूध यदि गाढ़ा हो तो उसमें थोड़ा पानी मिला लें |

*3. स्वमूत्र-गोमूत्र नेति क्रिया*
प्रात: काल विसर्जित स्वमूत्र को टोंटीवाले लोटे में भर कर जल नेति क्रिया की तरह स्वमूत्र नेति क्रिया की जा सकती है | इसी प्रकार ताजा गोमूत्र लोटे में भर कर गोमूत्र नेति क्रिया भी की जा सकती है |

क्षीर, स्वमूत्र और गोमूत्र नेति क्रियाएँ आवश्यकता के अनुसार करनी चाहिए | बाद जल नेति क्रिया करनी चाहिए।

*4. तैल तथा घृत नेति क्रिया*
दुपहर या रात में पीठ के बल लेट कर सिर थोड़ा पीछे झुका कर, हलका गरम तेल या घी की 5 या 6 बूंदे नासिका रंध्र में डाल कर साँस के साथ अंदर लेनी चाहिए | बाद में आराम लें । तिल का तेल, नारियल का तेल या शुद्ध घी का उपयोग करें | डालडा का उपयोग न करें |

*5. सूत्र तथा रब्बर नेति क्रिया*
बीच में गांठ न हो, ऐसे साफ धागे में मोम लगा कर उसे चिकना बनाना चाहिए। उस सूत्र से नेति शुद्धि क्रिया करनी चाहिए। योग के केन्द्रों में यह विशेष धागा मिलेगा |

धागे की जगह चार नंबरवाले केथेडर-रब्बर के धागे का उपयोग भी कर सकते हैं |

एक सूत्र को दायें नथुने में रख कर गले के अंदर तक उसे धीमे से धकेलना चाहिए । तर्जनी और मध्यमा अंगुलियाँ मुँह में डाल कर धीरे से सूत्र के सिरे को उन उंगलियों से पकड़ कर मुँह से बाहर खींचना चाहिए। दोनों छोरों को हाथ से पकड़ कर आगे और पीछे दस बीस बाहर निकाल दें।

इसी प्रकार दूसरे नथुने से भी सूत्र के से बाहर लाकर ऊपर लिखे अनुसार आगे और पीछे आहिस्ते-आहिस्ते सावधानी से खींचते हुए बाहर निकाल लें ।

साधक दोनों नथुनों में दो सूत्रों का डाल कर उन्हें आपस में जोड कर, कुशल मार्गदर्शन में अभ्यास करते हुए ये सूत्र एक नथुने से सीधे दूसरे नथुने से बाहर ला सकते हैं, यह एक कठिन क्रिया है |

सूत्रनेति क्रिया की समाप्ति के बाद नमक से मिला थोड़ा सा हलका गरम पानी मुंह में भर कर थोड़ी देर गट-गट करके उसे बाहर थूक देना चाहिए। आरंभ में थोड़ी सी तकलीफ होगी | इससे घबराना नहीं चाहिए |

जल नेति क्रिया करने के बाद सूत्र नेति क्रिया करनी चाहिए। सूत्रनेति क्रिया के बाद फिर जलनेति क्रिया करनी चाहिए | सूत्र से रगड़ खा कर कभी कभी थोड़ा सा रक्त निकल सकता है | इससे डरना नहीं चाहिए| एक दिन सूत्र नेतिक्रिया को स्थगित कर देना चाहिए | सूत्र नेति क्रिया के करने के एक दिन पूर्व नाक में हलके गरम तेल या घी की तीन चार बूंदे अवश्य डालनी चाहिए। आरंभ में विशेषज्ञ के द्वारा यह क्रिया करा कर, अभ्यास के बाद साधक स्वयं कर सकते हैं।

जलनेति क्रिया हर दिन कर सकते हैं । तेल, घृत एवं सूत्र नेति क्रिया कमसे कम हफ्ते में एक बार करें | ये क्रियाएँ कुछ ही मिनटों में की जा सकती हैं। अत: नियमबद्ध रूप से इन्हें करें तो लाभ होगा |

उपर्युक्त सभी क्रियाओं के बाद जलनेति क्रिया अवश्य करें तथा नाक के अंदर के पानी को भस्त्रिका क्रिया करते हुए बाहर छींक दें |

सूचना :
टॉटीवाला लोटा उपलब्ध न होने पर साधक हथेली मे जल भर कर भी जलनेति क्रिया का लाभ ले सकते है| कुशल प्रशिक्षक ऐसी विधि सिखा सकते है |

*विशेष आग्रह*
उपर्युक्त सभी क्रियाए विशेष योग क्रियाए है। बिना विशेषज्ञ की सहायता के व सलाह के व्यक्तिगत स्तर पर आप नही करे। 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

आयुर्वेद और भारत की पहचान

अंग्रेजी दवा के नाम पर लूट और सेहत से खिलवाड़ क्या आयुर्वेद नहीं है हमारी पहचान

अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों का बेखौफ झूट*

*आयुर्वेद और भारत की पहचान*

जब दुनिया में कोई पैथी नहीं थीं, तब भी भारत में आयुर्वेद था

जब दुनिया में कोई कपड़े  पहनना नहीं जानते थे, तब हमारे यहां खादी के कपड़े व रेशम का उत्पादन था।

जब दुनिया पढ़ना लिखना नहीं जानतीं तब हमारे पास बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटीयां थीं , जो बाद  में विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा बर्बाद की गयी 

जब दुनिया जीडीपी नहीं जानती थी तब हमारे पास महान अर्थशास्त्री हुआ करते थें जिनको आज भी दुनिया मान्यता देती आ रही है 

जब MBBS नहीं थें तब हमारे यहाँ सफलतम सर्जरी हुआ करती थीं, 

सबसे बड़ी बात जब दुनिया में कोई पंथ सम्प्रदाय नहीं था तो सत्य सनातन ही था 

भगवान द्वारा रचित कई ग्रन्थ महाग्रंथ हमारे जीवन का मार्गदर्शन करतें थे,  

*आज के हालत*
"आयुर्वेद को हर कदम पर अग्नि परीक्षा के लिए कहा जाता है। लेकिन एलोपैथी को सौ गलतियाँ माफ।" ये एक फैक्ट है, या सिर्फ मेरे दिमाग का भ्रम... कहना मुश्किल है।
ताज़ा वायरस के मामले में... पहले *हाईड्रॉक्सिक्लोरोक्विन* को अचूक माना... दुनिया में भगदड़ मची उसको लेने की। फिर उसका नाम हटा लिया, कहा कि वो प्रभावी नहीं।
 *सैनिटाइजर* को हर वक़्त जेब में रखने की सलाह के बाद उसके ज़्यादा उपयोग के खतरे भी चुपके से बता दिए गए। 



फिर बारी आई *प्लाज़्मा थैरेपी* की। पूरा माहौल बनाया, रिसर्च रिपोर्ट्स आईं, लोग फिर उसमें जी जान से जुट गए। लेने, अरेंज और मैनेज करने और प्लाज़्मा डोनेट करने में भी। और फिर बहुत सफाई से हाथ झाड़ लिया, ये कहते हुए... कि भाई ये इफेक्टिव नहीं है।

*स्टेरॉयड थैरेपी* तो क्या कमाल थी भाई साहब। कोई और विकल्प ही नहीं था। कई अवतार मार्केट में पैदा हुए। कालाबाज़ारी हो गई, बेचारी जनता ने भाग दौड़ करते हुए, मुंहमांगे पैसे दे कर किसी तरह उनका इंतज़ाम किया। अब कहा गया कि ब्लैक फंगस तो स्टेरॉयड के मनमाने प्रयोग का नतीजा है।

*रेमडेसीवीर इंजेक्शन* तो 'जीवनरक्षक' अलंकार के साथ मार्केट में अवतरित हुआ। इसको ले कर जो मानसिक, शारीरिक और आर्थिक फ्रंट पर युद्ध लड़े जाते उनकी महिमा तो मीडिया में लगभग हर दिन गायी जाती। लेकिन अरबों-खरबों बेचने के बाद अब उसको भी 'अप्रभावी' कह कर चुपचाप साइड में बैठा दिया।

दूसरी तरफ 400 रुपये के मासिक खर्च वाले कोरोनिल, 20 रुपए के काढ़े और 10 रुपए की अमृतधारा को हर दिन कठघरे में जा कर अपने सच्चे और काम की वस्तु होने का प्रमाण देना पड़ता है।

*क्लीनिकल रिसर्च ही अगर आधार है तो फिर इतने यू टर्न क्यों? टेस्ट अगर जनता पर ही करने हैं तो फिर हिमालयन जड़ी बूटी वाला खानदानी शफाखाना क्या बुरा है!*

जनता का फॉर्मूला शायद बहुत सीधा है: "महंगा है, अंग्रेज़ी नाम है... तो असर ज़रूर करेगा। साइड इफ़ेक्ट? वो तो हर चीज़ में होते हैं।" 

आयुर्वेद मे अगर किसी दिन संजीवनी बूटी आई तो उसको भी लोग नकार देंगे। समझे ना...?

इसलिए अपनें मूल को पहचानों और कसकर पकड़ो लौटो अपनें जड़ो की तरफ और हाँ ये कौन लोग थे कहाँ थे ये हमसे ना पूछो खुद सर्च करो सब कुछ उपलब्ध है, इस डिजिटल लाइफ में कब तक दिमागी रूप से पिछड़े रहोगें और रोते रहोगें  आज जब दुनिया बेबस है कोरोना के आगे तो यही हमारा आयर्वेद रास्ता दिखा रहा है , आज हम हीं उस पर प्रश्नचिन्ह लगा रहें हैं, क्या हमें हमारा इतिहास किसी दूसरों से समझना हैं क्या ? जरा सोचो !!!!
                  

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

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