षष्ठ प्रक्षालयन क्रियाए : शरीर की अंदरूनी शुद्धि की जटिल पर सार्थक क्रियाए
शरीर का जितना बाहय (या बाहरी)रूप है, उससे अधिक उसका अंतर स्वरूप है | अंतर स्वरूप समस्याओं का जाल है | शरीर के बाहय रूप की शुद्धि जितनी आवश्यक है उससे भी अधिक उसके अंतर स्वरूप की शुद्धि आवश्यक है | ऋषि, मुनि एवं योग शुद्धि क्रियाओं का प्रतिपादन किया। इनसे भीतरी मलिनता बाहर निकल आती है | साधक खाली पेट, प्रात: काल योगासनों के पूर्व या बाद या अलग रूप से ये षट्कर्म कर सकते हैं |
योग के षट्कर्म था शुद्धि क्रियाएँ
I. नेति क्रियाएँ (ये पाँच तरीको से की जाती है)
1. जल नेति क्रिया
2. क्षीर- दूध नेति क्रिया
3. स्वमूत्र-गोमूत्र नेति क्रिया
4. तैल तथा घृत नेति क्रिया
5. सूत्र तथा रब्बर नेति क्रिया
II. धौति क्रियाएँ (ये मुख्यत दो प्रकार की है)
1. जल धौति – गज करणी – कुंजल या वमन धौति क्रिया
2. वस्त्र धौति क्रिया
III. वस्ति (एनिमा) क्रिया
IV. नौलि क्रियाएँ (इनके तीन प्रमुख प्रकार है)
1. अग्निसार क्रिया
2. उड़ियान क्रिया
3. नौलि क्रिया
V. कपाल भाति और भस्त्रिका क्रियाएं (ये दो प्रकार सर्वाधिक प्रचलित है)
1. कपाल भाति क्रिया
2. भत्रिका क्रिया
VI. त्राटक क्रिया
सभी क्रियाओं का अपना महत्व है ये क्रियाए मुख्यत शरीर के अंदरूनी अंगों की शुद्धि कर स्वस्थ बनाती है। इन सभी शुद्धि क्रियाओं का असर ऒर प्रभावित अंगों के अनुसार हम इन्हें निम्न प्रकार से समझ सकते है।
योग शुद्धि क्रियाएँ जो कि 6 प्रकार की हैं |
1. जल, क्षीरं, स्वमूत्र, गोमूत्र, तैल, घृत, सूत्र रब्बर नेति क्रियाएं ।
2. जल, वमन, वस्त्र एवं दंड धौति क्रियाएँ |
3. वस्ति (एनिमा) क्रिया और शंख प्रक्षालन |
4. अग्निसार, उड़ियान एवं नौलि क्रियाएँ |
5. कपाल भाति एवं भस्त्रिका क्रियाएँ |
6. त्राटक क्रियाएँ |
नेति क्रियाओं से साधारणतया नाक, गला, धौति क्रियाओं से आमाशय, वस्ती क्रियाओं से मलाशय, नौलि क्रियाओं से उदर, कपाल भाति क्रियाओं से मस्तिष्क एवं त्राटक क्रियाओं से नेत्रों की शुद्धि होती है । *ये सभी छ: क्रियाएँ अत्यंत नाजुक हैं | अत: साधक विशेषज्ञों की सलाह लेकर इनका अभ्यास करें तो ठीक होगा |*
आज हम इस विषय की पहली क्रिया का चिंतन और प्रयोग देखेंगे।
*नेति क्रियाएँ*
नेति क्रियाए शरीर के मुख नासिका जिव्हा, ग्रीवा, कर्ण सहित अनेक अंगों को शुध्द करती है इस क्रिया से मलिनता दूर हो स्वास्थ की प्राप्ति होती है
*नेति क्रिया के लाभ*
नाक, कान, मुँह, कंठ, नेत्र तथा मस्तिष्क से संबंधित बीमारियाँ दूर होंगी |
कान संबंधी समस्याएं, बहरापन, कानों में पीब-रक्त का निकलना, कानों में विविध ध्वनियों का गूँजना इत्यादि से मुक्ति मिलती है
नाक में अवरोध, नाक में बढ़ता दुर्मास, सूंघने पर गंध का अनुमान न होना, साइनस सहित अनेक नासिका रोग दूर होते है।
नेत्र रोग, ऑखों का लाल होना, ऑखों का पीलापन, कम दृष्टि सहित सभी बीमारियां दूर होती है
मस्तिष्क संबंधी रोग, स्मरण शक्ति का घटना, धारणाशक्ति का घटना, सिर दर्द, आधा सिरदर्द तथा अनिद्रा आदि रोगों की तीव्रता कम होगी।
कंठ से मस्तिष्क के ऊपर तक जितने अवयव हैं सभी की शुद्धि होगी |
*नेति क्रियाओं के प्रत्येक रूप का वर्णन और विधि निम्न प्रकार है*
*1. जल नेति क्रिया*
आज प्रदूषण से हवा भर गयी है | ऐसे वातावरण में जल नेति अत्यंत उपयोगी शुद्धि क्रिया है |
1) एक प्रतिशत नमक मिला हलका गरम पानी विशेष टोंटीवाले लोटे में भर कर उसे हाथ में लेना चाहिए | बैठ कर या खड़े होकर सिर को थोड़ा आगे की ओर झुका कर उसे बायीं और थोड़ा घुमाना चाहिए | बायें नासिकारंध्र में टोंटी रख कर पानी को अंदर लेकर, दायें नासिका रंध्र से बाहर निकालना चाहिए | सांस मुंह से लेनी और छोड़नी चाहिए | लोटे । का पानी जब तक समाप्त न हो । जाये तब तक यह क्रिया करनी रंध्र से पानी अंदर ले कर बायें नासिका रंध्र से बाहर निकालना चाहिए |
दोनो ओर से यह क्रिया करने के बाद दोनों कान हाथों के दोनों अगूठों से बंद करते हुए थोड़ा सामने की ओर झुक कर मुँह से हवा जोर से अंदर लेकर नाक से झटके से बाहर निकाल देनी चाहिए | जब तक नाक से सारा पानी निकल न जाये, तब तक ऐसा करना चाहिए | नहीं तो जुकाम हो सकता है | इसके लिए केन्द्रों में विशेष पात्र मिलते हैं | यह शुद्धि क्रिया रोज करते रहें तो बड़ा लाभ होगा |
2) टोंटीवाले लोटे में हलका गरम पानी भर कर उसमें थोड़ा सा नमक डालें । उस पानी को टोंटी के द्वारा नासिका रंध्र से अंदर खींच कर, मुंह से वह पानी बाहर निकाल देना चाहिए । बाद दूसरे नासिकारंध्र से भी पानी टोंटी द्वारा अंदर खींच कर मुँह से बाहर निकालें ।
3) इसके बाद गिलास में पानी भर कर नाक के (नथुनों) सामने रख कर दोनों नासिका रंधों से पानी अंदर खींच कर उसे मुँह से बाहर निकाल देना चाहिए | ये क्रियाएँ कठिन है| अत: सावधानी से ये क्रियाएँ करनी चाहिए।
*जाल नासापान*
नासिका रंध्रों से अंदर खींचे हुए जल को मुँह से पीने की तरह पीना चाहिए। इस क्रिया को नासापान कहते हैं । नासापान करने के पूर्व नाक को जलनेति क्रिया द्वारा साफ करना चाहिए | इसके बाद नाक द्वारा अंदर खींचे जानेवाले जल को मुंह द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए | इसके बाद ही नासापान करना चाहिए |
*2. क्षीर- दूध नेति क्रिया*
1) जल नेति क्रिया की ही तरह पानी मिले । कुनकुने दूध से क्षीर नेति क्रिया भी करनी चाहिए
2) इसके बाद हलका गरम दूध टोंटीवाले लोटे में भर कर, नासिका रंध्र से अंदर खींच कर उसे मुँह से बाहर निकाल देना चाहिए ।
3) दूध में कुछ भी मिलाये बिना गरम कर जलनासापान की तरह करना चाहिए | दूध से मलाई निकाल देनी चाहिए । दूध यदि गाढ़ा हो तो उसमें थोड़ा पानी मिला लें |
*3. स्वमूत्र-गोमूत्र नेति क्रिया*
प्रात: काल विसर्जित स्वमूत्र को टोंटीवाले लोटे में भर कर जल नेति क्रिया की तरह स्वमूत्र नेति क्रिया की जा सकती है | इसी प्रकार ताजा गोमूत्र लोटे में भर कर गोमूत्र नेति क्रिया भी की जा सकती है |
क्षीर, स्वमूत्र और गोमूत्र नेति क्रियाएँ आवश्यकता के अनुसार करनी चाहिए | बाद जल नेति क्रिया करनी चाहिए।
*4. तैल तथा घृत नेति क्रिया*
दुपहर या रात में पीठ के बल लेट कर सिर थोड़ा पीछे झुका कर, हलका गरम तेल या घी की 5 या 6 बूंदे नासिका रंध्र में डाल कर साँस के साथ अंदर लेनी चाहिए | बाद में आराम लें । तिल का तेल, नारियल का तेल या शुद्ध घी का उपयोग करें | डालडा का उपयोग न करें |
*5. सूत्र तथा रब्बर नेति क्रिया*
बीच में गांठ न हो, ऐसे साफ धागे में मोम लगा कर उसे चिकना बनाना चाहिए। उस सूत्र से नेति शुद्धि क्रिया करनी चाहिए। योग के केन्द्रों में यह विशेष धागा मिलेगा |
धागे की जगह चार नंबरवाले केथेडर-रब्बर के धागे का उपयोग भी कर सकते हैं |
एक सूत्र को दायें नथुने में रख कर गले के अंदर तक उसे धीमे से धकेलना चाहिए । तर्जनी और मध्यमा अंगुलियाँ मुँह में डाल कर धीरे से सूत्र के सिरे को उन उंगलियों से पकड़ कर मुँह से बाहर खींचना चाहिए। दोनों छोरों को हाथ से पकड़ कर आगे और पीछे दस बीस बाहर निकाल दें।
इसी प्रकार दूसरे नथुने से भी सूत्र के से बाहर लाकर ऊपर लिखे अनुसार आगे और पीछे आहिस्ते-आहिस्ते सावधानी से खींचते हुए बाहर निकाल लें ।
साधक दोनों नथुनों में दो सूत्रों का डाल कर उन्हें आपस में जोड कर, कुशल मार्गदर्शन में अभ्यास करते हुए ये सूत्र एक नथुने से सीधे दूसरे नथुने से बाहर ला सकते हैं, यह एक कठिन क्रिया है |
सूत्रनेति क्रिया की समाप्ति के बाद नमक से मिला थोड़ा सा हलका गरम पानी मुंह में भर कर थोड़ी देर गट-गट करके उसे बाहर थूक देना चाहिए। आरंभ में थोड़ी सी तकलीफ होगी | इससे घबराना नहीं चाहिए |
जल नेति क्रिया करने के बाद सूत्र नेति क्रिया करनी चाहिए। सूत्रनेति क्रिया के बाद फिर जलनेति क्रिया करनी चाहिए | सूत्र से रगड़ खा कर कभी कभी थोड़ा सा रक्त निकल सकता है | इससे डरना नहीं चाहिए| एक दिन सूत्र नेतिक्रिया को स्थगित कर देना चाहिए | सूत्र नेति क्रिया के करने के एक दिन पूर्व नाक में हलके गरम तेल या घी की तीन चार बूंदे अवश्य डालनी चाहिए। आरंभ में विशेषज्ञ के द्वारा यह क्रिया करा कर, अभ्यास के बाद साधक स्वयं कर सकते हैं।
जलनेति क्रिया हर दिन कर सकते हैं । तेल, घृत एवं सूत्र नेति क्रिया कमसे कम हफ्ते में एक बार करें | ये क्रियाएँ कुछ ही मिनटों में की जा सकती हैं। अत: नियमबद्ध रूप से इन्हें करें तो लाभ होगा |
उपर्युक्त सभी क्रियाओं के बाद जलनेति क्रिया अवश्य करें तथा नाक के अंदर के पानी को भस्त्रिका क्रिया करते हुए बाहर छींक दें |
सूचना :
टॉटीवाला लोटा उपलब्ध न होने पर साधक हथेली मे जल भर कर भी जलनेति क्रिया का लाभ ले सकते है| कुशल प्रशिक्षक ऐसी विधि सिखा सकते है |
*विशेष आग्रह*
उपर्युक्त सभी क्रियाए विशेष योग क्रियाए है। बिना विशेषज्ञ की सहायता के व सलाह के व्यक्तिगत स्तर पर आप नही करे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः