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मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

माता शैलपुत्री

माता शैलपुत्री

नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं. पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया. भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है. इस स्वरूप का पूजन आज के दिन किया जाएगा. किसी एकांत स्थान पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं और उस पर कलश स्थापित करें. कलश पर मूर्ति स्थापित करें. कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके युग्म पा‌र्श्व में त्रिशूल बनाएं.

माता शैलपुत्री के पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होता है, जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं.

ध्यान मंत्र
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्.
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा.
पट्टांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्.
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

स्तोत्र मंत्र
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्.
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्.
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

कवच मंत्र
ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी.
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी.
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा.

माँ शैलपुत्री की पूजा शैलपुत्री की ध्यान :

माँ शैलपुत्री की पूजा

शैलपुत्री की ध्यान :

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥

पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

शैलपुत्री की स्तोत्र पाठ:

प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह: विनाशिन।
मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

शैलपुत्री की कवच :

ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।

फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

नवरात्रि के प्रथम दिन पूजा होती है मां शैलपुत्री की।

नवरात्रि के प्रथम दिन पूजा होती है मां शैलपुत्री की। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया।
बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज
हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। इनकी आराधना से हम सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। मां शैलपुत्री का प्रसन्न करने के लिए यह ध्यान मंत्र जपना चाहिए। इसके प्रभाव से माता जल्दी ही प्रसन्न होती हैं और भक्त की सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं।

ध्यान का मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृत शेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

अर्थात्- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुतेॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ माँ दुर्गा आपको शांति, शक्ति, सम्पति, स्वरुप, संयम, सादगी, सफलता, समृध्दि, साधना, और स्वास्थ्य दे"

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