मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज
मोतियाबिंद एक आम समस्या बनता जा रहा है, अब तो युवा भी इस रोग के शिकार
होने लगे हैं। अगर इस रोग का समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी अंधेपन का
शिकार हो जाता है।
कारण : मोतियाबिंद रोग कई कारणों से होता है।
आंखों में लंबे समय तक सूजन बने रहना, जन्मजात सूजन होना, आंख की संरचना
में कोई कमी होना, आंख में चोट लग जाना, चोट लगने पर लंबे समय तक घाव बना
रहना, कनीनिका में जख्म
बन जाना, दूर
की चीजें धूमिल नजर आना या सब्जमोतिया रोग होना, आंख के परदे का किसी
कारणवश अलग हो जाना, कोई गम्भीर दृष्टि दोष होना, लंबे समय तक तेज रोशनी या
तेज गर्मी में कार्य करना, डायबिटीज होना, गठिया होना, धमनी रोग होना,
गुर्दे में जलन का होना, अत्याधिक कुनैन का सेवन, खूनी बवासीर का रक्त
स्राव अचानक बंद हो जाना आदि समस्याएँ मोतियातिबिंद को जन्म दे सकती हैं।
मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज
रक्त मोतियाबिंद में सभी चीजें लाल, हरी, काली, पीली और सफेद नजर आती हैं।
परिम्लामिन मोतियाबिंद में सभी ओर पीला-पीला नजर आता है। ऐसा लगता है जैसे
कि पेड़-पौधों में आग लग गई हो।
सभी प्रकार के मोतियाबिंद में आंखों
के आस-पास की स्थिति भी अलग-अलग होती है। वातज मोतियाबिंद में आंखों की
पुतली लालिमायुक्त, चंचल और कठोर होती है। पित्तज मोतियाबिंद में आंख की
पुतली कांसे के समान पीलापन लिए होती है। कफज मोतियाबिंद में आंख की पुतली
सफेद और चिकनी होती है या शंख की तरह सफेद खूँटों से युक्त व चंचल होती है।
सन्निपात के मोतियाबिंद में आंख की पुतली मूंगे या पद्म पत्र के समान तथा
उक्त सभी के मिश्रित लक्षणों वाली होती है। परिम्लामिन में आंख की पुतली
भद्दे रंग के कांच के समान, पीली व लाल सी, मैली, रूखी और नीलापन लिए होती
है।
मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज
आंखों में लगाने वाली औषधियाँ-
त्रिफला के जल से आंखें धोना::
आयुर्वेद में हरड़ की छाल (छिलका), बहेड़े की छाल और आमले की छाल - इन
तीनों को त्रिफला कहते हैं । यह त्रिदोषनाशक है अर्थात् वात, पित्त, कफ इन
तीनों दोषों के कुपित होने से जो रोग उत्पन्न होते हैं उन सबको दूर करने
वाला है । मस्तिष्क सम्बन्धी तथा उदर रोगों को दूर भगाता है तथा इन्हें
शक्ति प्रदान करता है । सभी ज्ञानेन्द्रियों के लिये लाभदायक तथा शक्तिप्रद
है । विशेषतया चक्षुरोग के लिये तो रामबाण है । कभी-कभी स्वस्थ मनुष्यों
को भी त्रिफला के जल से अपने नेत्र धोते रहना चाहिये । नेत्रों के लिए
अत्यन्त लाभदायक है । कभी-कभी त्रिफला की सब्जी खाना भी हितकर है ।
धोने की विधि - त्रिफला को जौ से समान (यवकुट) कूट लो और रात्रि के समय
किसी मिट्टी, शीशे वा चीनी के पात्र में शुद्ध जल में भिगो दो । दो तोले वा
एक छटांक त्रिफला को आधा सेर वा एक सेर शुद्ध जल में भिगोवो । प्रातःकाल
पानी को ऊपर से नितारकर छान लो । उस जल से नेत्रों को खूब छींटे लगाकर धोवो
। सारे जल का उपयोग एक बार के धोने में ही करो । इससे निरन्तर धोने से
आंखों की उष्णता, रोहे, खुजली, लाली, जाला, मोतियाबिन्द आदि सभी रोगों का
नाश होता है । आंखों की पीड़ा (दुखना) दूर होती है, आंखों की ज्योति बढ़ती
है । शेष बचे हुए फोकट सिर पर रगड़ने से लाभ होता है ।
त्रिफला की टिकिया
(१) त्रिफला को जल के साथ पीसकर टिकिया बनायें और आंखों पर रखकर पट्टी
बांध दें । इससे तीनों दोषों से दुखती हुई आंखें ठीक हो जाती हैं ।
(२)
हरड़ की गिरी (बीज) को जल के साथ निरन्तर आठ दिन तक खरल करो । इसको
नेत्रों में डालते रहने से मोतियाबिन्द रुक जाता है । यह रोग के आरम्भ में
अच्छा लाभ करता है ।
* मोतियाबिंद की शुरुआती अवस्था में भीमसेनी कपूर स्त्री के दूध में घिसकर नित्य लगाने पर यह ठीक हो जाता है।
* हल्के बड़े मोती का चूरा 3 ग्राम और काला सुरमा 12 ग्राम लेकर खूब
घोंटें। जब अच्छी तरह घुट जाए तो एक साफ शीशी में रख लें और रोज सोते वक्त
अंजन की तरह आंखों में लगाएं। इससे मोतियाबिंद अवश्य ही दूर हो जाता है।
* छोटी पीपल, लाहौरी नमक, समुद्री फेन और काली मिर्च सभी 10-10 ग्राम लें।
इसे 200 ग्राम काले सुरमा के साथ 500 मिलीलीटर गुलाब अर्क या सौंफ अर्क
में इस प्रकार घोटें कि सारा अर्क उसमें सोख लें। अब इसे रोजाना आंखों में
लगाएं।
* 10 ग्राम गिलोय का रस, 1 ग्राम शहद, 1 ग्राम सेंधा नमक
सभी को बारीक पीसकर रख लें। इसे रोजाना आंखों में अंजन की तरह प्रयोग करने
से मोतियाबिंद दूर होता है।
* मोतियाबिंद में उक्त में से कोई भी
एक औषधि आंख में लगाने से सभी प्रकार का मोतियाबिंद धीरे-धीरे दूर हो जाता
है। सभी औषधियां परीक्षित हैं।
नेत्र रोगों में कुदरती पदार्थों से
ईलाज करना फ़ायदेमंद रहता है। मोतियाबिंद बढती उम्र के साथ अपना तालमेल
बिठा लेता है। अधिमंथ बहुत ही खतरनाक रोग है जो बहुधा आंख को नष्ट कर देता
है। आंखों की कई बीमारियों में नीचे लिखे सरल उपाय करने हितकारी सिद्ध
होंगे-
१) सौंफ़ नेत्रों के लिये हितकर है। मोतियाबिंद रोकने के
लिये इसका पावडर बनालें। एक बडा चम्मच भर सुबह शाम पानी के साथ लेते रहें।
नजर की कमजोरी वाले भी यह उपाय करें।
२) विटामिन ए नेत्रों के
लिये अत्यंत फ़ायदेमंद होता है। इसे भोजन के माध्यम से ग्रहण करना उत्तम
रहता है। गाजर में भरपूर बेटा केरोटिन पाया जाता है जो विटामिन ए का अच्छा
स्रोत है। गाजर कच्ची खाएं और जिनके दांत न हों वे इसका रस पीयें। २००
मिलि.रस दिन में दो बार लेना हितकर माना गया है। इससे आंखों की रोशनी भी
बढेगी। मोतियाबिंद वालों को गाजर का उपयोग अनुकूल परिणाम देता है।
३) आंखों की जलन,रक्तिमा और सूजन हो जाना नेत्र की अधिक प्रचलित व्याधि
है। धनिया इसमें उपयोगी पाया गया है।सूखे धनिये के बीज १० ग्राम लेकर ३००
मिलि. पानी में उबालें। उतारकर ठंडा करें। फ़िर छानकर इससे आंखें धोएं।
जलन,लाली,नेत्र शौथ में तुरंत असर मेहसूस होता है।
४) आंवला नेत्र
की कई बीमारियों में लाभकारी माना गया है। ताजे आंवले का रस १० मिलि. ईतने
ही शहद में मिलाकर रोज सुबह लेते रहने से आंखों की ज्योति में वृद्धि होती
है। मोतियाबिंद रोकने के तत्व भी इस उपचार में मौजूद हैं।
५)
भारतीय परिवारों में खाटी भाजी की सब्जी का चलन है। खाटी भाजी के पत्ते के
रस की कुछ बूंदें आंख में सुबह शाम डालते रहने से कई नेत्र समस्याएं हल हो
जाती हैं। मोतियाबिंद रोकने का भी यह एक बेहतरीन उपाय है।
६)
अनुसंधान में साबित हुआ है कि कद्दू के फ़ूल का रस दिन में दो बार आंखों
में लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है। कम से कम दस मिनिट आंख में लगा
रहने दें।
७) घरेलू चिकित्सा के जानकार विद्वानों का कहना है कि शहद आंखों में दो बार लगाने से मोतियाबिंद नियंत्रित होता है।
८) लहसुन की २-३ कुली रोज चबाकर खाना आंखों के लिये हितकर है। यह हमारे नेत्रों के लेंस को स्वच्छ करती है।
९) पालक का नियमित उपयोग करना मोतियाबिंद में लाभकारी पाया गया है। इसमें
एंटीआक्सीडेंट तत्व होते हैं। पालक में पाया जाने वाला बेटा केरोटीन
नेत्रों के लिये परम हितकारी सिद्ध होता है। ब्रिटीश मेडीकल रिसर्च में
पालक का मोतियाबिंद नाशक गुण प्रमाणित हो चुका है।
१०) एक और सरल
उपाय बताते हैं- अपनी दोनों हथेलियां आंखों पर ऐसे रखें कि ज्यादा दबाव
मेहसूस न हो। हां, हल्का सा दवाब लगावे। दिन में चार-पांच बार और हर बार
आधा मिनिट के लिये करें। मोतियाबिंद से लडाई का अच्छा तरीका है।
११) किशमिश ,अंजीर और खारक पानी में रात को भिगो दें और सुबह खाएं । मोतियाबिंद की अच्छी घरेलू दवा है।
१२) भोजन के साथ सलाद ज्यादा मात्रा में शामिल करें । सलाद पर थोडा सा
जेतून का तेल भी डालें। इसमें प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के गुण हैं
जो नेत्रों के लिये भी हितकर है।
मोतियाबिंद दो प्रकार का होता है।
1.nuclear cataract.
2.cortical cataract.
उक्त दोनो तरह के मोतियाबिंद बनने से रोकने के लिये विटामिन ए तथा बी
काम्प्प्लेक्स का दीर्घावधि तक उपयोग करने की सलाह दी जाती है। अगर
मोतियाबिंद प्रारंभिक हालत में है तो रोक लगेगी।
खाने वाली औषधियाँ-
आंखों में लगने वाली औषधि के साथ-साथ जड़ी-बूटियों का सेवन भी बेहद
फायदेमन्द साबित होता है। एक योग इस प्रकार है, जो सभी तरह के मोतियाबिंद
में फायदेमन्द है-
* 500 ग्राम सूखे आँवले गुठली रहित, 500 ग्राम
भृंगराज का संपूर्ण पौधा, 100 ग्राम बाल हरीतकी, 200 ग्राम सूखे गोरखमुंडी
पुष्प और 200 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ लेकर सभी औषधियों को खूब बारीक
पीस लें। इस चूर्ण को अच्छे प्रकार के काले पत्थर के खरल में 250 मिलीलीटर
अमरलता के रस और 100 मिलीलीटर मेहंदी के पत्रों के रस में अच्छी तरह मिला
लें। इसके बाद इसमें शुद्ध भल्लातक का कपड़छान चूर्ण 25 ग्राम मिलाकर
कड़ाही में लगातार तब तक खरल करें, जब तक वह सूख न जाए। इसके बाद इसे छानकर
कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें। इसे रोगी की शक्ति व अवस्था के अनुसार
2 से 4 ग्राम की मात्रा में ताजा गोमूत्र से खाली पेट सुबह-शाम सेवन करें।
फायदेमन्द व्यायाम व योगासन-
* औषधियाँ प्रयोग करने के साथ-साथ रोज सुबह नियमित रूप से सूर्योदय से दो
घंटे पहले नित्य क्रियाओं से निपटकर शीर्षासन और आंख का व्यायाम अवश्य
करें।
* आंख के व्यायाम के लिए पालथी मारकर पद्मासन में बैठें।
सबसे पहले आंखों की पुतलियों को एक साथ दाएँ-बाएँ घुमा-घुमाकर देखें फिर
ऊपर-नीचे देखें। इस प्रकार यह अभ्यास कम से कम 10-15 बार अवश्य करें। इसके
बाद सिर को स्थिर रखते हुए दोनों आंखों की पुतलियों को एक गोलाई में पहले
सीधे फिर उल्टे (पहले घड़ी की गति की दिशा में फिर विपरीत दिशा में) चारों
ओर घुमाएँ। इस प्रकार कम से कम 10-15 बार करें। इसके बाद शीर्षासन करें।
कुछ खास हिदायतें
* मोतियाबिंद के रोगी को गेहूँ की ताजी रोटी खानी चाहिए। गाय का दूध बगैर
चीनी का ही पीएँ। गाय के दूध से निकाला हुआ घी भी सेवन करें। आंवले के मौसम
में आंवले के ताजा फलों का भी सेवन अवश्य करें। फलों में अंजीर व गूलर
अवश्यक खाएं।
* सुबह-शाम आंखों में ताजे पानी के छींटे अवश्य
मारें। मोतियाबिंद के रोगी को कम या बहुत तेज रोशनी में नहीं पढ़ना चाहिए
और रोशनी में इस प्रकार न बैठें कि रोशनी सीधी आंखों पर पड़े। पढ़ते-लिखते
समय रोशनी बार्ईं ओर से आने दें।
* वनस्पति घी, बाजार में मिलने
वाले घटिया-मिलावटी तेल, मांस, मछली, अंडा आदि सेवन न करें। मिर्च-मसाला व
खटाई का प्रयोग न करें। कब्ज न रहने दें। अधिक ठंडे व अधिक गर्म मौसम में
बाहर न निकलें