यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 15 जून 2018

तो आज ये दिन ना देखना पड़ता।

विचारणीय

एक बार मेरे कमरे में 5-6 सांप घुस गए। मैं परेशान हो गया, उसकी वजह से मैं कश्मीरी हिंदुओं की तरह अपने ही घर से बेघर होकर बाहर निकल गया। इसी बीच बाकी लोग जमा हो गए। मैंने पुलिस और सेना को बुला लिया।

अब मैं खुश था कि थोड़ी देर में सेना इनको मार देगी
तभी कुछ पशु प्रेमी और मानवतावादी आ गये, बोले की नहीं आप गोली नहीं चला सकते, हम पेटा के तहत केस कर देंगे।

सेना वाले उसको ढेला मारने लगे, सांप भी उधर से मुंह ऊँचा करके जहर फेंकने लगे।
एक दो सांप ने तो एक दो सैनिक को काट भी लिया पर भागे नहीं।

फिर इतने में कुछ पडोसी मुझे ही बोलने लगे,
क्या भाई तुम भी बेचारे सांप पर पड़े हो, रहने दो , क्यों भगा रहे हो ?

उधर प्रशासन ने खबर भिजवा दिया, सांप के मुंह में जहर नहीं होना चाहिए, उसके मुंह में दूध दे दो
तो वो मुंह से जहर की जगह दूध फेंकेगा।

..... मैं हैरान परेशान...

फालतू में बात का बतंगड़ हो चुका था। न्यूज़ भी चलने लगे थे।

एनडीटीवी के रविश ने कह दिया कि सबको जहर नजर आता है सांप नजर नहीं आता, उसकी भी जिंदगी है।

बरखा दत्त चीख़ कर कहने लगी की ये तो भटके हुए संपोले हुए हैं, मकान मालिक इनको बेवजह परेशान कर रहा है,
मकान मालिक को चाहिए की वो इनको अपने घर में सुरक्षित स्थान पर इनको बिल बनाकर रहने दे और इनके खाने पिने का भरपूर ध्यान रखे।

इसी बीच एक सैनिक ने पेलेट गन चला दिया और एक सांप अंधा हो गया,

मुझे आशा जगी, सेना ही कुछ कर सकती है,

तभी भाँड मीडिया ने कहा, पेलेट गन क्यों चलाया, सांप को कष्ट हो रहा है,

अभी कोई कुछ सोचता उससे पहले ही हाइकोर्ट का भी फैसला जाने कहाँ से आ गया कि सांप पर पेलेट गन नहीं चला सकते इस गन से उसकी आँखे और चेहरा ख़राब हो सकता है।

उधर आम आदमी पार्टी ने कह दिया कि वहाँ जनमत संग्रह हो कि उस घर में सांप रहेगा या आदमी।

कुल मिलकर सांप को जीने का हक़ है इस पर सब एकमत हो गए थे।

इतने में जो मेरा पडोसी मेरा घर कब्ज़ा करना चाहता था वो सांप के लिए दूध, छिपकली और मेढक लेकर आ गया, उसको खिलाने लगा,

उसकी मदद बुद्धिजीवियों, मानवातावादियो और पत्रकारों ने कर दी और पडोसी को शाबाशी दी।

मैं निराश होकर अब दूर से सिर्फ देखता था।

काश

मैंने खुद लाठी लेकर शुरू में ही इन सांपो को ठिकाने लगा दिया होता तो आज ये दिन ना देखना पड़ता।

    साभार एक मित्र से

सिर्फ 7 दिन में सफ़ेद दाग (श्वेत कुष्ठ) का सफाया,

सिर्फ 7 दिन में सफ़ेद दाग (श्वेत कुष्ठ) का सफाया,
इस उपाय से 146 रोगियों में से 142 पूर्णतः ठीक हुए, ये महत्त्वपूर्ण पोस्ट शेयर करना ना भूले



सिर्फ 7 दिन में सफ़ेद दाग (श्वेत कुष्ठ) खत्म होगी : दिवान हकीम परमानन्द जी के द्वारा अनभूत प्रयोग

आवश्यक सामग्री :

25 ग्राम देशी कीकर (बबूल) के सूखे पते
25 ग्राम पान की सुपारी (बड़े आकार की)
25 ग्राम काबली हरड का छिलका

बनाने की विधि :

उपरोक्त तीन वस्तुएँ लेकर दवा बनाये। कही से देशी कीकर (काटे वाला पेड़ जिसमे पीले फुल लगते है ) के ताजे पत्ते (डंठल रहित ) लाकर छाया में सुखाले कुछ घंटो में पत्ते सुख जायेगे बबूल के इन सूखे पत्तो को काम में ले पान वाली सुपारी बढिया ले इसका पावडर बना ले कबाली हरड को भी जौ कुट कर ले और इन सभी चीजो को यानि बबूल , सुपारी , काबली हरड का छिलका (बड़ी हरड) सभी को 25-25 ग्राम की अनुपात में ले कुल योग 75 ग्राम और 500 मिली पानी में उबाले पानी जब 125 मिली बचे तब उतर कर ठंडा होने दे और छान कर पी ले ये दवा एक दिन छोड़ कर दुसरे दिन पीनी है अर्थात मान लीजिये आज आप ने दवा ली तो कल नहीं लेनी है और इस काढ़े में 2 चमच खांड या मिश्री मिला ले (10 ग्राम) और ये निहार मुह सुबह –सुबह पी ले और 2 घंटे तक कुछ भी खाना नहीं है दवा के प्रभाव से शरीर शुद्धि हो और उलटी या दस्त आने लगे परन्तु दवा बन्द नहीं करे 14 दीन में सिर्फ 7 दिन लेनी है और फीर दवा बन्द कर दे कुछ महीने में घिरे –घिरे त्वचा काली होने लगेगी हकीम साहब का दावा है की ये साल भर में सिर्फ एक बार ही लेने से रोग निर्मूल (ख़त्म) हो जाता है अगर कुछ रह जाये तो दुसरे साल ये प्रयोग एक बार और कर ले नहीं तो दुबारा इसकी जरूरत नहीं पडती।

पूरक उपचार

एक निम्बू, एक अनार और एक सेब तीनो का अलग – अलग ताजा रस निकालने के बाद अच्छी तरह परस्पर मिलाकर रोजाना सुबह शाम या दिन में किसी भी समय एक बार नियम पूर्वक ले। यह फलो का ताजा रस कम से कम दवा सेवन के प्रयोग आगे 2-3 महीने तक जारी रख सके तो अधिक लाभदायक रहेगा।

औषधियों की प्रयोग विधि :

दवा के सेवन काल के 14 दिनों में मक्खन घी दूध अधिक लेना हितकर है क्योकि दवा खुश्क है।
चौदह दिन दवा लेने के बाद कोई बिशेस परहेज पालन की जरुरत नहीं है श्वेत कुष्ठ के दुसरे इलाजो में कठीन परहेज पालन होती है परन्तु इस ईलाज में नातो सफेद चीजो का परहेज है और ना खटाई आदि का फीर भी आप मछली मांस अंडा नशीले पदार्थ शराब तम्बाकू आदि और अधिक मिर्च मसले तेल खटाई आदि का परहेज पालन कर सके तो अच्छा रहेगा।
दवा सेवन के 14 दिनों में कभी –कभी उलटी या दस्त आदि हो सकता है इससे घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसे शारीरिक शुध्धी के द्वारा आरोग्य प्राप्त होनेका संकेत समझना चाहिए।
रोग दूर होने के संकेत हकीम साहब के अनुसार दवा के सेवन के लगभग 3 महीने बाद सफेद दागो के बीच तील की तरह काले भूरे या गुलाबी धब्धे ( तील की तरह धब्बे ) के रूप में चमड़ी में रंग परिवर्तन दिखाई देगा और साल भर में धीरे –धीरे सफेद दाग या निसान नष्ट हो कर त्वचा पहले जयसी अपने स्वभाविक रंग में आ जाएगी फीर भी यदि कुछ कसर रह जाये तो एक साल बीत जाने के बाद दवा की सात खुराके इसी तरह दुबारा ले सकते है।
दिवान हकीम साहब का दावा है की उतर्युक्त ईलाज से उनके 146 श्वेत कुष्ठ के रोगियों में से 142 रोगी पूर्णत : ठीक अथवा लाभान्वित हुये है कुछ सम्पूर्ण शरीर में सफेद रोगी भी ठीक हुये है निर्लोभी परोपकारी दीवान हकीम परमानन्द जी की अनुमति से बिस्तार से यह अनमोल योग मानव सेवा भावना के साथ जनजन तक पहुचा रहा हु इस आशा और उदात भावना के साथ की पाठक निश्वार्थ भावना से तथा बिना किसी लोभ के जनजन तक जरुर पहुचाये।

स्रोत : स्वदेशी चिकित्सा के चमत्कार लेख दीवान हकीम परमानन्द नई दिल्ली द्वारा अनभूत प्रयोग। अपने नजदीकी कुशल वैद्य या चिकित्सक की सलाह अवश्य ले तथा उनकी देख रेख में कोई कदम उठाएं।

संसार की एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट , एंटी- बैक्टीरियल, एंटी- वायरल , एंटी- फ्लू, एंटी- बायोटिक , एंटी-इफ्लेमेन्ट्री व एंटी - डिजीज है - तुलसी

तुलसी पीएं, निरोग जीएं" 

(पांच तरह के तुलसी का अर्क)
 तुलसी मुख्य रूप से पांच प्रकार के पायी जाती है !
श्याम तुलसी,
राम तुलसी,
श्वेत/विश्नू तुलसी,
वन तुलसी,
और नींबू तुलसी I
इन पांच प्रकार की तुलसी विधि द्वारा अर्क निकाल कर तुलसी का निर्माण किया गया है, यह संसार की एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट , एंटी- बैक्टीरियल, एंटी- वायरल , एंटी- फ्लू, एंटी- बायोटिक , एंटी-इफ्लेमेन्ट्री व एंटी - डिजीज है I

 1)  तुलसी अर्क के एक बून्द एक ग्लास पानी में या दो बून्द एक लीटर पानी में डाल कर पांच मिनट के बाद उस जल को पीना चाहिए। इससे पेयजल विष् और रोगाणुओं से मुक्त होकर स्वास्थवर्धक पेय हो जाता है I
2) तुलसी अर्क २०० से अधिक रोगो में लाभदायक है I जैसे के फ्लू , स्वाइन फ्लू, डेंगू , जुखाम , खासी , प्लेग, मलेरिया , जोड़ो का दर्द, मोटापा, ब्लड प्रेशर , शुगर, एलर्जी , पेट के कीड़ो , हेपेटाइटिस , जलन, मूत्र सम्बन्धी रोग, गठिया , दम, मरोड़, बवासीर , अतिसार, आँख का दर्द , दाद खाज खुजली, सर दर्द, पायरिया नकसीर, फेफड़ो सूजन, अल्सर , वीर्य की कमी, हार्ट ब्लोकेज आदि I
3) तुलसी एक बेहतरीन विष नाशक तथा शरीर हटा के विष (toxins ) को बाहर निकलती है I
4) तुलसी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है I
5) तुलसी शरीर के लाल रक्त सेल्स (Haemoglobin) को बढ़ने में अत्यंत सहायक है I
 6) तुलसी भोजन के बाद एक बूँद सेवन करने से पेट सम्बन्धी बीमारिया बहोत काम लगाती है. 7) तुलसी के 4 - 5 बूँदे पीने से महिलाओ को गर्भावस्था में बार बार होने वाली उलटी के शिकायत ठीक हो जाती है I
 आग के जलने व किसी जहरीले कीड़े के कांटने से  तुलसी को लगाने से विशेष रहत मिलती है I 9) दमा व खाँसी में तुलसी के दो बुँदे थोड़े से अदरक के रास तथा शहद के साथ मिलकर सुबह - दोपहर - शाम सेवन करे I
10) यदि मुँह में से किसी प्रकार की दुर्गन्ध आती हो तो तुलसी के एक बूँद मुँह में डाल ले दुर्गन्ध तुरंत दूर हो जाएगी I
11) दांत का दर्द, दांत में कीड़ा लगना , मसूड़ों में खून आना  तुलसी के 4 - 5 बूँदे पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए I 12) कान का दर्द, कण का बहना, तुलसी हल्का गरम करके एक -एक बूंद कान में टपकाए I 13) नाक में पिनूस रोग हट जाता है, इसके अतिरिक्त फोड़े - फुंसिया भी निकल आती है, दोनों रोगो में बहुत तकलीफ होती है I तुलसी को हल्का सा गरम करके एक - एक बूंद नाक में टपकाएं I 13) गले में दर्द, गले व मुँह में छाले , आवाज़ बैठ जाना :  तुलसी के 4 - 5 बूँदे गरम पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए I 14) सर दर्द, बाल क्हाड्णा, बाल सफ़ेद होना व सिकरी तुलसी की 8 - 10 मि.ली। हर्बल हेयर आयल के साथ मिलाकर सर, माथे तथा कनपटियो पर लगाये I 15)  तुलसी के 8 - 10 बूँदे मिलकर शरीर में मलकर रात्रि में सोये , मच्छर नहीं काटेंगे I
16) कूलर के पानी में  तुलसी के 8 - 10 बूँदे डालने से सारा घर विषाणु और रोगाणु से मुक्त हो जाता है, तथा मक्खी - मच्छर भी घर से भाग जाते है I
17) जूएं व लिखे तुलसी और नीबू का रस समान मात्रा में मिलाकर सर के बालो में अच्छे तरह से लगाये I 3 - 4 घंटे तक लगा रहने दे। और फिर धोये अथवा रात्रि को लगाकर सुबह सर धोए।। जुएं व लिखे मर जाएगी I
 18) त्वचा की समस्या में निम्बू रास के साथ तुलसी के 4 - 5 बूँदे डालकर प्रयोग करे I
 19) तुलसी में सुन्दर और निरोग बनाने की शक्ति है। यह त्वचा का कायाकल्प कर देती है I यह शरीर के खून को साफ करके शरीर को चमकीला बनती है I
 20) तुलसी की दो बूँदे एलो जैल क्रीम में मिलाकर चेहरे पर सुबह व रात को सोते समय लगाने पर त्वचा सुन्दर व कोमल हो जाती है तथा चेहरे से प्रत्येक प्रकार के काले धेरे, छाइयां , कील मुँहासे व झुरिया नष्ट हो जाती है I
21) सफ़ेद दाग : 10 मि.लि. तेल व नारियल के तेल में 20 बूँदें तुलसी डालकर सुबह व रात सोने से पहले अच्छी तरह से मले I 22)  तुलसी के नियमित उपयोग से कोलेस्ट्रोल का स्तर कम होने लगता है, रक्त के थक्के जमने कम हो जाते है, व हार्ट अटैक और कोलैस्ट्रोल की रोकथाम हो जाती है I
 23)  तुलसी को किसी भी अच्छी क्रीम में मिलाकर लगाने से प्रसव के बाद पेट पर बनने वाले लाइने ( स्ट्रेच मार्क्स ) दूर हो जाते है I🍁

2019 General Election

2019 General Election

BJP
Vs
Congress + Left + BSP + SP + TDP + RJD + Shiv Sena + TMC + DMK + AAP + JDU + NDTV + ABP NEWS + Scroll + The Wire + Award Wapsi Gang + JNU + Terrorists + Pakistan + China
✍🚩

जब आप फुर्सत मे हों तब पढ़ लीजियेगा, किंतु पढ़ना धैर्य और शांति से, फिर निष्कर्ष निकलना !

मोदी जी को हिंदू और मुसलमान दोनों हटाना चाहते हैं, किंतु दोनों के बीच अंतर देखिये :

हिन्दू पेट्रोल का दाम देख रहा है और मुसलमान रोहिंग्या मुसलमान को !

हिन्दू जीएसटी से रूठे हैं और कांग्रेस को लाना चाहते हैं और मुसलमान भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाना चाहते हैं, इसलिए कांग्रेस को लाना चाहते हैं ! कारण जो भी हो उद्देश्य सबका एक ही है !

भारत में बहुत से लोग हैं, जो भ्रष्ट नेताओं की बातों में आकर नरेन्द्र मोदी का विरोध करते हैं ! अच्छा है, लोकतंत्र है विरोध करें या समर्थन ये तो आपका अपना हक है, पर मोदी का विरोध करके आप समर्थन किसका कर रहे हैं, ये बडा गंभीर सवाल है, इसलिए निर्णय भी गंभीरता पूर्वक ही होना चाहिये !

क्या मुलायम, लालू, मायावती, सोनिया, राहुल, केजरीवाल, ममता बनर्जी, वामपंथी ये सब नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं या इनका रिकॉर्ड बेहतर है ?

क्या नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्रीकाल की तुलना मे ममता बनर्जी, अखिलेश आदि का कार्यकाल बेहतर नजर आता है ? तुलना करनी है तो गुजरात के किसी छोटे शहर मे जाकर एक नजर मार लीजिये और फिर इन अन्य राज्यों की राजधानी का भ्रमण कीजिये !

राजनीति मे प्रवेश के समय लालू और मुलायम, दोनों के घर की स्थिति ऎसी थी कि इनके पास साइकिल और लालटेन खरीदने तक के पैसे नहीं थे, जाति के नाम पर चलने वाले ये नेता आज अरबपति हैं, रामगोपाल चार्टर्ड प्लेन में घूमता है, तो शिवपाल ऑडी मे, कहां से आया इतना अकूत धन, क्या ये लोग नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं ?

सोनिया जी के बेटा-बेटी और दामाद आज सभी अरबपति है, क्या ये नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं ?

क्या 35 साल बंगाल में राज करने वाले वामपंथी, नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं ?

पांच साल केजरीवाल ने विज्ञापन चलाकर दिल्ली के लोगों को चूना लगाया, WIFI, CCTV, 150 कॉलेज, 500 स्कूल, क्या ये कुकुरमुत्ता नरेंद्र मोदी से बेहतर है ?

जब मायावती राजनीती करने निकली थी और काशीराम की साथी थी, तब उसके घर में दिया जलाने का धन नहीं था, साईकल से प्रचार करती थी, आज उसका सैंडल भी प्लेन से आता है, उसके भाई के पास 497 कंपनियां हैं, क्या ये नरेंद्र मोदी से बेहतर है ?

मोदी का विरोध करने वालों, विरोध करो, पर समर्थन किसका करना है ये तो तय करो कोई बेहतर विकल्प हो तो बताना, थोड़ा देश का भी सोचो, कितना बर्बाद करवाना है, कितना लूटवाना है ? बाहर निकलो जातियो के बंधनों से इसे उबारकर ये लूटेरे हमे ही लूटते हैं !

● मुझे नहीं मालूम कि मैं मोदी को क्यों पसंद करता हूं, लेकिन मेरे पास कांग्रेस, सपा, बसपा, आप को नापसंद करने के बहुत कारण हैं !

● मुझे नहीं मालूम कि अच्छे दिन आयेंगे या नहीं, पर मोदी जी के अतिरिक्त और कोई राजनेता दूर दूर तक दिखाई नहीं देता जो भारत के अच्छे दिनों के लिए तन और मन से प्रयत्न करता हो !

● मुझे ये भी नहीं मालूम कि मोदी जी भारत को हिन्दू राष्ट्र बना पायेंगे या नहीं, लेकिन ये पूरा यकीन हैं कि वो पूरी संजीदगी और गंभीरता से भारत माता को पुनः विश्वगुरु का दर्जा दिलवाने हेतु प्रयासरत हैं !

● मुझे फर्क नहीं पड़ता कि मोदी जी के पास इतिहास की जानकारी है या नही, पर मुझे पक्का यकीन है कि उनके पास भविष्य की पूरी तैयारी है !

मान लो कि यह पोस्ट बनाने वाला मोदी भक्त है और इसे शेयर करने वाला मै भी, लेकिन ऊपर वाले ने बुद्धि तो आपको भी दी है, इसलिये पूरी ईमानदारी से सोचिये, केवल अपने लिये नही बल्कि अपने देश के लिये, यदि आप मेरी बात से सहमत हैं, देशहित में इसे फारवर्ड अवश्य करें !
जयहिंद

भारतवर्ष का गौरवशाली इतिहास जम्बूदीप


क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????


साथ ही क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ..."जम्बूदीप" था..?????

परन्तु क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि हमारे  महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है  और, इसका मतलब क्या होता है .??

दरअसल. हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा ????

क्योंकि एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!

लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है।

आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ।

अथवा दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि जान बूझकर इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी।

परन्तु हमारा "जम्बूदीप नाम " खुद में ही सारी कहानी कह जाता है जिसका अर्थ होता है - समग्र द्वीप .

इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा विभिन्न अवतारों में सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है क्योंकि उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था
साथ ही हमारा वायु पुराण इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है।

वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था।

चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था.....!

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।

उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था।
राजा का अर्थ उस समय धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था।

इस तरह राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही " भारतवर्ष" कहलाया।

ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था।

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है—

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि

हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं  तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी संकल्प करवाते हैं।

हालाँकि हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र मानकर छोड़ देते हैं।

परन्तु यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है।

संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते।

संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है।

इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है जो कि आर्याव्रत कहलाता है।

इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं।

परन्तु अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि जब सच्चाई ऐसी है तो फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है?

इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा ।

परन्तु जब हमारे पास वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें ??

सिर्फ इतना ही नहीं हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है।

फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि एक तरफ तो हम बात एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं!

आप खुद ही सोचें कि यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है ?????

इसीलिए जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है।

हमारे देश के बारे में वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:।।

यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है।

ऐसा इसीलिए होता है कि आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।

और यह सोच सिरे से ही गलत है।

इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है।

परन्तु आश्चर्य जनक रूप से हमने यह नही सोचा कि एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है?

विशेषत: तब जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था।

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में सिर्फ इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया।

इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है।

और ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं इसीलिए अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए।

क्योंकि इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है जैसा कि इसके विषय में माना जाता है बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है।

इसीलिए हिन्दुओं जागो और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो!

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं और, हमें गर्व होना चाहिए कि  हम हिन्दू हैं!

97 % तक आँखों की रौशनी बढाएं

उतार कर फेंक दीजिये आँखों का चश्मा 97 % तक आँखों की रौशनी बढाएं इस आसान से घरेलु उपाय से

हमारी आखे हमारे शरीर का एक अनमोल हिस्सा है | दिन में होने वाली 90% क्रियाओं को हम अपनी आखों के जरिये सेन्स कर पाते है | बढती उम्र के साथ हमारी आखो की रौशनी धीमी होने लग जाती है , जो के एक आम बात है | लेकिन आखो की रौशनी कम होने के कई और कार्ण भी हो सकते है |
अगर आप चश्मे से परेशान है और अपनी आखो की रौशनी दोबारा पाना चाहते है तो आप बिलकुल सही जगह पर है | आज हम आपको बतायेगे कैसे आप पा सकते है आखों की तेज रौशनी और चश्मे तथा लेन्सेस से छुटकारा

सामग्री :-
केसर – 1 छोटी चुटकी
एक गिलास सादा पानी

बस इन दो चीजों के जरिये आप आखों की रौशनी को दुबारा पा सकते है सकते है | आपको सिर्फ केसर की चाये बनानी है | पनी को उबाल लेना है और उस में केसर डाल देना है अगर आप चाहे तो इसमें थोडा सा शहद भी डाल सकते है (मिठास के लिए)
रात को सोने से पहले इक गिलास केसर चाय का सेवन करने से आप जादुई नतीजे पायेगे |

केसर चाय के अन्य फायदे

गठिया
कोलेस्ट्रॉल का स्तर
खून की सफाई
रक्तसंचार

जो अक्सर गर्मी में बहुत पेरशान करती है शरीर को -घमोरियां


जो अक्सर गर्मी में बहुत पेरशान करती है शरीर को , कही कंपनी इसको ठीक करने का दावा भी करती है और इसके लिये करोड़ो रूपये tv ads , पेपर ads , पे खर्च करती है और अरबो रुपये का व्यापार सिर्फ घमोरियां के नाम ले जाती है शायद इस जानकारी से आप के तो बचत हो जायेगी मगर कई कंपनी के नुकसान हो सकता है अगर आप इस मैसेज को हर ग्रुप , मित्र, परिचित तक भेज दे तो यह हो सकता है

◆◆घमौरियों से तुरंत आराम◆◆
गर्मियों में घमोरियां होना एक आम बात है एक तो भयंकर गर्मी और उस पर बहते पसीने में ये घमोरियां, पुरे तन बदन में आग लगा देती हैं। घमोरियां ज़्यादातर गले पेट और पीठ पर अधिक प्रकोप दिखाती हैं। गर्मियों में घमौरियों से बचने के लिए भोजन में तड़का (छोंक) लगते समय प्याज और लहसुन और गर्म मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कच्चा प्याज गर्मी से बचाता है तो छोंक लगा हुआ प्याज गर्मी करता है।
अगर घमोरियां हो गयी हों तो ऐसे में आप तुरंत आराम के लिए निम्नलिखित प्रयोग अपना कर घमौरियों के कष्ट से तुरंत आराम पा सकते हैं।
*बर्फ से घमौरियों का इलाज: घमौरियां होने पर शरीर पर बर्फ मलने से ठंडक मिलती है*
मुलतानी मिट्टी से घमौरियों का इलाज: शरीर पर मुलतानी मिट्टी का लेप करने से घमौरियां कुछ ही दिनों में मिट जाती हैं।
*नारियल से घमौरियों का इलाज: रोजाना सुबह और शाम नहाने के बाद नारियल के तेल में कपूर को मिलाकर पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां दूर हो जाती हैं।*
मेहंदी से घमौरियों का इलाज: शरीर में घमौरियां होने पर मेहंदी का लेप करने से घमौरियां कुछ ही समय में बिल्कुल खत्म हो जाती हैं।नहाते समय पानी में मेहंदी के पत्तों को पीसकर मिला लें। इस पानी से नहाने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं और रोगी को राहत मिलती है।
*नीम से घमौरियों का इलाज: घमौरियां होने पर नीम की छाल को घिसकर चन्दन कीतरह शरीर पर लगाने से घमौरियां कुछ ही समय में ठीक हो जाती हैं। पानी में थोड़ी सी नीम की पत्तियां डालकर उबाल लें। इस पानी से नहाने से घमौरियां दूर हो जाती हैं।*
चंदन से घमौरियों का इलाज: सफेद चंदन को पानी के साथपीसकर शरीर पर लेप करने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं।गुलाब जल में चंदन और कपूर को घिसकर घमौरियों पर लगाने से आराम आता है।
*खसखस से घमौरियों का इलाज:20 ग्राम खसखस को पीसकरपानी में मिलाकर घमौरियों पर लगाने से घमौरियों से राहत मिलती है। इसके अलावा 2 चम्मच खसखस के शर्बत को 1कप पानी में मिलाकर दिन में 2-3 बार पीने से भी घमौरियों में लाभ होता है।*
अनानास से घमौरियों का इलाज: घमौरियां होने पर अनान्नास का गूदा शरीर पर लगाने से रोगी को आराम होता है।
*बड़हल से घमौरियों का इलाज: बड़हल (बरहर) के पेड़ की छालकी फांट से त्वचा को धोने सेघमौरियां और फुन्सियां ठीक होजाती हैं।*
सरसों से घमौरियों का इलाज: पानी में बराबर मात्रा में सरसों का तेल मिलाकर सुबह और शाम मालिश करने से सिर्फ 3 दिनों में ही घमौरियां पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
*नारंगी से घमौरियों का इलाज:नारंगी के छिलकों को सुखाकर उसका पाउडर बना लें। इसपाउडर को गुलाबजल में मिलाकर शरीर पर लेप करने से घमौरियों में लाभ होता है।*
घी से घमौरियों का इलाज : गाय या भैंस के असली घी की पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां मिट जाती हैं और दुबारा कभी होती भी नहीं हैं।
*तुलसी से घमौरियों का इलाज: तुलसी की लकड़ी को पीसकर चन्दन की तरह शरीर पर मलने से घमौरियां समाप्त हो जाती हैं।*
समुद्रफेन से घमौरियों का इलाज: समुद्रफेन के बारीक चूर्ण को गुलाब जल में मिलाकर शरीर पर लगाने से घमौरियों से राहत मिलती है।
*करेला से घमौरियों का इलाज: चौथाई कप करेले के रस में 1चम्मच खाने वाला मीठा सोडा मिलाकर दिन में 2 से 3 बार घमौरियों पर लेप करने से घमौरियां मिट जाती हैं।*
आम से घमौरियों का इलाज: कच्चे आम को धीमी आंच में भूनकर इसके गूदे का शरीर पर लेप करने से घमौरियों में आराम होता है।
*धनिया से घमौरियों का इलाज: बर्फ के पानी में 50 ग्राम धनिये के पानी को भिगो देना चाहिए। लगभग 5 घंटे बाद इस पानी को छानकर घमौरियों वाले स्थान पर लगाने से राहत मिलती है। यदि किसी छोटे तौलिये को इस पानी में भिगोकर घमौरियों पर रखा जाए तो रोगी को बहुत आराम मिलता है। इस प्रक्रिया को 2 दिन तक सुबह-शाम करने सेघमौरियां नष्ट हो जाती हैं। इसकेअतिरिक्त नींबू के रस में धनिया डालकर पीना भी घमौरियों में लाभकारी रहता है। ध्यान रहे कि घमौरियों के कारण शरीर में नमक की मात्रा कम होनेलगती है। इसलिए नमक का सेवन अवश्य ही करना चाहिए। यदि रोटी में नमक और अजवायन को मिला लिया जाएतो भी घमौरियों में बहुत आराम मिलता है।*
लहसुन से घमौरियों का इलाज: लहसुन की कलियों को पीसकर रस उसका रस निकाल लें। यह रस 3 दिन तक शरीर पर मलने से शरीर पर गर्मी से निकलने वाली घमौरियां मिट जाती हैं।
*स्वदेशी पेय से घमौरियों का इलाज। ऐसे में जौं या चने का सत्तू बहुत उपयोगी है। आर्टिफीसियल ड्रिंक्स की बजाये स्वदेशी ड्रिंक्स जैसे सत्तू, आम का पन्ना, निम्बू पानी, मट्ठा, छाछ आदि का सेवन करें।*

क्यों है जरूरी-टर्म इंश्योरेंस

टर्म इंश्योरेंस आखिर क्यों है जरूरी, 
 
इन दिनों टेलिवजन पर एक एड तेजी से पॉपुलर हो रहा है। इस एड में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार यमराज बनकर टर्म इंश्योरेंस के फायदे गिनाते नजर आते हैं। आमतौर पर लोग सामान्य इंश्योरेंस को ही टर्म इंश्योरेंस मानने की गलती कर बैठते हैं, लेकिन इन दोनों में बुनियादी अंतर होता है। हम अपनी इस खबर के माध्यम से आपको विस्तार से जानकारी दे रहे हैं कि आखिर टर्म इंश्योरेंस होता क्या है और इसके फायदे क्या हैं।
सबसे पहले जानिए कि आखिर लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के कितने प्रकार होते हैं..
क्या होती है टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी?
जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि टर्म प्लान इंश्योरेंस पॉलिसी का सबसे विशुद्ध स्वरूप होता है। जीवन बीमा लेने का सबसे सरल तरीका टर्म इंश्योरेंस ही होता है। इसमें बीमा लेने वाला व्यक्ति एक निश्चित समय तक प्रीमियम का भुगतान करता रहता है। यदि निश्चित अवधि के दौरान बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है तो सम एश्योर्ड या एक मुश्त राशि उसके परिवार या नॉमिनी को दे दी जाती है। टर्म प्लान में हर साल मामूली प्रीमियम देने के बाद आपको कुछ विशेष सालों के लिए कवर उपलब्ध करवाया जाता है। आमतौर पर टर्म पॉलिसी 10 साल,15 साल, 20 साल, 25 साल और 30 सालों के लिए ली जाती हैं।
उदाहरण से समझिए:
अगर आपने 15 साल की समय अवधि के लिए 55 लाख रुपए का टर्म इंश्योरेंस खरीदा है। इसके लिए आपको हर साल 4 हजार रुपए का प्रीमियम भुगतान बीमा कंपनी को करना है। वहीं अगर इस पॉलिसी की मैच्योरिटी के दौरान बीमाधारक मृत्यु हो जाती है तो आपके परिवार को यह 55 लाख रुपए की राशि दे दी जाएगी। लेकिन अगर 15 वर्षों तक आप स्वस्थ रहते हैं तो भुगतान किए गए प्रीमियम के बदले में आपको कुछ भी नहीं मिलेगा।
टर्म इंश्योरेंस प्लान के दो बड़े फायदे:
क्यों जरूरी होता है टर्म इंश्योरेंस?
टर्म इंश्योरेंस परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाने के बाद भी परिवार को वित्तीय संकट से सुरक्षित रखता है। घर का मुखिया परिवार में आय का मुख्य स्रोत होता है। उस व्यक्ति की मृत्यु या गंभीर बीमारी से उसके अक्षम हो जाने के बाद अक्सर परिवार में अन्य सदस्यों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर पर्याप्त राशि का टर्म इंश्योरेंस लिया गया है परिवार की आर्थिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है। साथ ही उन्हें नियमित आय का सहारा रहता है। टर्म इंश्योरेंस के अंतर्गत गंभीर बीमारी, अकस्मात मृत्यु, स्थायी बीमारी जैसी चीजें आती हैं। कई कंपनियां परिवार के सदस्यों को टर्म इंश्योरेंस में नियमित आय का भी विकल्प देती हैं।
contact for best term insurance plan
kailash chandra ladha
+91 9352174466

असाध्य रोगों का काल है -ज्वारों का रस

300 से ज्यादा असाध्य रोगों का काल है

●जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर ज्वारों का रस दिया जाता है।●जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है।
●ज्वारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोगी व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा?
🙏🏼तो अगर आप अपने जीवन को निरोगी बनाना चाहते है तो हमारी पोस्ट ओर जानकारी को ध्यान पूर्वक पढ़े और शरीर आपका है तो आज से ही नीचे लिखे प्रयोग को काम में लाये।

🌾कैंसर में गेहूँ के ज्वारे का उपयोग🌾

●गेहूँ के दाने बोने पर जो एक ही पत्ता उगकर ऊपर आता है उसे ज्वारा कहा जाता है। नवरात्रि आदि उत्सवों में यह घर-घर में छोटे-छोटे मिट्टी के पात्रों में मिट्टी डालकर बोया जाता है। ये गेहूँ के ज्वारे का रस, प्रकृति के गर्भ में छिपी औषधियों के अक्षय भंडार में से मानव को प्राप्त एक अनुपम भेंट है।
●शरीर के आरोग्यार्थ यह रस इतना अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है कि विदेशी जीववैज्ञानिकों ने इसे ‘हरा लहू’ (Green Blood) कहकर सम्मानित किया है। डॉ. एन. विगमोर नामक एक विदेशी महिला ने गेहूँ के कोमल ज्वारों के रस से अनेक असाध्य रोगों को मिटाने के सफल प्रयोग किये हैं।
●उपरोक्त ज्वारों के रस द्वारा उपचार से 300 से अधिक रोग मिटाने के आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आये हैं। जीव-वनस्पति शास्त्र में यह प्रयोग बहुत मूल्यवान है।
●गेहूँ के ज्वारों के रस में रोगों के उन्मूलन की एक विचित्र शक्ति विद्यमान है। शरीर के लिए यह एक शक्तिशाली टॉनिक है।
●इसमें प्राकृतिक रूप से कार्बोहाईड्रेट आदि सभी विटामिन, क्षार एवं श्रेष्ठ प्रोटीन उपस्थित हैं। इसके सेवन से असंख्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिली है।
●कैन्सर, मूत्राशय की पथरी, हृदयरोग, लीवर, डायबिटीज, पायरिया एवं दाँत के अन्य रोग, पीलिया, लकवा, दमा, पेट दुखना, पाचन क्रिया की दुर्बलता, अपच, गैस, विटामिन ए, बी आदि के अभावोत्पन्न रोग, जोड़ों में सूजन, गठिया, संधिशोथ, त्वचासंवेदनशीलता (स्किन एलर्जी) सम्बन्धी बारह वर्ष पुराने रोग, आँखों का दौर्बल्य, केशों का श्वेत होकर झड़ जाना, चोट लगे घाव तथा जली त्वचा सम्बन्धी सभी रोग।हजारों रोगियों एवं निरोगियों ने भी अपनी दैनिक खुराकों में बिना किसी प्रकार के हेर-फेर किये गेहूँ के ज्वारों के रस से बहुत थोड़े समय में चमत्कारिक लाभ प्राप्त किये हैं।
●ये अपना अनुभव बताते हैं कि ज्वारों के रस से आँख, दाँत और केशों को बहुत लाभ पहुँचता है। कब्जी मिट जाती है, अत्यधिक कार्यशक्ति आती है और थकान नहीं होती।

🌾गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि :🌾

■आप मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें। उनमें खाद मिली मिट्टी लें। रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें। पहले दिन एक कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें। पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें। सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें।
■इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें। सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें। नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें। इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें। इस प्रक्रिया में भूलकर भी 🤜🏼प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें❌।
■प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है। प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें। मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें।
■सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के ज्वारे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे। ऐसे ज्वारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं। ❌ज्यो-ज्यों ज्वारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे।❌ अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए ✅सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए।✅
■ज्वारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये। इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें।

🌾ज्वारों का रस बनाने की विधि :🌾

◆जब समय अनुकूल हो तभी ज्वारे काटें। काटते ही तुरन्त धो डालें। धोते ही उन्हें कूटें। कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें। इसी प्रकार उसी ज्वारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा।
◆चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है। रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें।
◆किसी 🙏🏼✅🙏🏼सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है। प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है।🙏🏼✅🙏🏼
◆दिन में किसी भी समय ज्वारों का रस पिया जा सकता है। परन्तु रस लेने के आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए।
◆❌आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है। परंतु इससे घबराना न चाहिए।❌
◆शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है। सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे।ज्वारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं।
◆इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी। विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि ज्वारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें।
◆रस निकालने की सुविधा न हो तो ज्वारे चबाकर भी खाये जा सकते हैं। इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे। मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े ज्वारे चबाने से दूर हो जाती है। दिन में दो या तीन बार ज्वारों का रस लीजिये।

🌾सस्ता और सर्वोत्तम ज्वारों का रस 🌾
■ज्वारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है। दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस ज्वारे के रस में है।
■इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है। घर में उगाने पर सदैव सुलभ है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है।गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है।
◆नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी ज्वारे के रस का सेवन कर सकते हैं।
◆ नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है।
◆ज्वारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं। इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति ज्वारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है।
■इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
◆डॉक्टर की सहायता के बिना गेहूँ के ज्वारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो।
◆ज्वारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं। शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं।

बुधवार, 23 मई 2018

गर्मियों में लाभदायक है बेल फल - रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है

बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है। इसके अन्य नाम हैं-शाण्डिल्रू (पीड़ा निवारक), श्री फल, सदाफल इत्यादि। इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी। बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में ४००० फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं।मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।

धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं उन्हे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं परंतु पाँच पत्तों के समूह वाले को अधिक शुभ माना जाता है, अतः पूज्य होता है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। इसके वृक्ष १५-३० फीट ऊँचे कँटीले एवं मौसम में फलों से लदे रहते हैं। इसके पत्ते संयुक्त विपत्रक व गंध युक्त होते हैं तथा स्वाद में तीखे होते हैं। गर्मियों में पत्ते गिर जाते हैं तथा मई में नए पुष्प आ जाते हैं। फल मार्च से मई के बीच आ जाते हैं। बेल के फूल हरी आभा लिए सफेद रंग के होते हैं व इनकी सुगंध भीनी व मनभावनी होती है।

उष्ण कटिबंधीय फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत बिहार, तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता से पाए जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है।

गर्मी एवं पेट के रोगों से मुक्ति प्रदान करने वाला, संस्कृत में 'बिल्व' और हिन्दी में 'बेल' नाम से प्रसिद्ध यह फल महाराष्ट्र और बंगाल में 'बेल', कोंकण में 'लोहगासी', गुजरात में 'बीली', पंजाब में 'वेल' और 'सीफल' संथाल में 'सिंजो', कठियावाड़ में 'थिलकथ' नाम से जाना जाता है। इसके गीले गूदे को 'बिल्वपेशिका' या 'बिल्वकर्कटी' तथा सूखे गूदे 'बेल सोंठ' या 'बेल गिरी' कहा जाता है।

बेल का वृक्ष १५ से ३० फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्रयुक्त होती है। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते गिरने पर मई में पुष्प लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष मार्च-मई तक फल तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और चिकना फलकवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है। 'जंगली बेल' के वृक्ष में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।

बेल के फलों में 'बिल्वीन' नाम या 'मार्मेसोलिन' नामक तत्व एक प्रधान सक्रिय घटक होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में लबाब, पेक्टिन, शर्करा, कषायिन एवं उत्पत तेल पाए जाते हैं। ताज़े पत्तों से प्राप्त पीताभ-हरे रंग का उत्पत तेल स्वाद में तीखा और सुगन्धित होता है। इसका कच्चा फल उद्दीपक-पाचक ग्राही, रक्त स्तंभक- पक्का फल कषाण, मधुर और मृदु रेचक तथा पत्तों का रस घाव ठीक करने, वेदना दूर करने, ज्वर नष्ट करने, जुकाम और श्वास रोग मिटाने तथा मूत्र में शर्करा कम करने वाला होता है। इसकी छाल और जड़ घाव, कफ, ज्वर, गर्भाशय का घाव, नाड़ी अनियमितता, हृदयरोग आदि दूर करने में सहायक होती है।

बिल्वादि चूर्ण, बिल्व तेल, बिल्वादि घृत, बृहद गंगाधर चूर्ण, बिल्व पंचक क्वाथ आदि औषधियों में प्रयुक्त होने वाले बेल के फलों का अधिक सेवन अर्श (बवासीर) के रोगियों के लिए अहितकर होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में बीज दोहरी झिल्ली के बीच होते हैं, जिसमें लेसदार द्रव होता है। इसे झिल्ली और बीजों सहित न निकालने पर मुख में छाले होने की संभावना रहती है। जठराग्नि मन्द हो जाने पर भूख मर जाती है। खाया-पिया हजम नहीं होता। ऐसे में बेल के पके गूदे में, पचास ग्राम पानी में फूली इमली और पचास ग्राम दही में थोड़ा बूरा मिला मिक्सी में घोंट लें। यह पेय स्वादिष्ट, पचने में आसान, भूख बढ़ाने वाला, चुस्ती देने वाला शर्बत है। कुछ दिन नियमित लें।  


कैसे आया बेल वृक्ष

बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत (mandaar mountain) पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।

यह एक रामबाण दवा भी है धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों (mandir/temple) के पास लगाया जाता है। बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी (helpful) होता है। यह शर्बत कुपचन, आंखों की रोशनी (eye sight) में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम (magnesium) जैसे रसायन (chemical) पाए जाते हैं।

बेल पत्र इसी बेल नामक फल की पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग पूजा में किया जाता है।

आयुर्वेद में बेल को अत्यन्त गुणकारी फल माना जाता है।

यह एक ऐसा फल है जिसके पत्ते, जड़ और छाल भी उपयोगी हैं।

खाने या शर्बत बनाने के लिए खेतों-बागों में उगाए बेल तथा दवा बनाने में जंगली बेल का प्रयोग होता है।

इसके कुछ घरेलू इलाज निम्न लिखित हैं किन्तु इनका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित है।

गर्मियों में लाभदायक है बेल फल

गर्मी के मौसम में गर्मी से राहत देने वाले फलों में बेल का फल प्रकृति मां द्वारा दी गई किसी सौगात से कम नहीं है | कहा गया है- 'रोगान बिलत्ति-भिनत्ति इति बिल्व ।' अर्थात् रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है ।बेल सुनहरे पीले रंग का, कठोर छिलके वाला एक लाभदायक फल है। गर्मियों में इसका सेवन विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। शाण्डिल्य, श्रीफल, सदाफल आदि इसी के नाम हैं। इसके गीले गूदे को बिल्व कर्कटी तथा सूखे गूदे को बेलगिरी कहते हैं।स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग जहाँ इस फल के शरबत का सेवन कर गर्मी से राहत पा अपने आप को स्वस्थ्य बनाए रखते है वहीँ भक्तगण इस फल को अपने आराध्य भगवान शिव को अर्पित कर संतुष्ट होते है |
औषधीय प्रयोगों के लिए बेल का गूदा, बेलगिरी पत्ते, जड़ एवं छाल का चूर्ण आदि प्रयोग किया जाता है। चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल का प्रयोग किया जाता है वहीं अधपके फल का प्रयोग मुरब्बा तो पके फल का प्रयोग शरबत बनाकर किया जाता है।

बेल व बिल्व पत्र के नाम से जाने जाना वाला यह स्वास्थ्यवर्धक फल उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।

यह एक रामबाण दवा भी है

वनस्पति में बेल का अत्यधिक महत्व है। यह मूलतः शक्ति का प्रतीक माना गया है। किसी-किसी पेड़ पर पांच से साढ़े सात किलो वजन वाले चिकित्सा विज्ञान में बेल का विशेष महत्व है। आजकल कई व्यक्ति इसकी खेती करने लगे हैं। इसके फल से शरबत, अचार और मुरब्बा आदि बनाए जाते हैं। यह हृदय रोगियों (heart patients) और उदर विकार से ग्रस्त लोगों के लिए रामबाण औषधि (medicine) है।

*ये पेय गर्मियों में जहां आपको राहत देते हैं, वहीं इनका सेवन शरीर के लिए लाभप्रद भी है। बेल में शरीर को ताकतवर रखने के गुणकारी तत्व विद्यमान हैं। इसके सेवन से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि यह रोगों को दूर भगा कर नई स्फूर्ति प्रदान करता है।

अजीर्ण में बेल की पत्तियों के दस ग्राम रस में, एक-एक ग्राम काली मिर्च और सेंधानमक मिलाकर पिलाने से आराम मिल सकता है।

अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से लिया ५-१० ग्राम बिल्व चूर्ण आराम पहुँचाता है। कच्चे बेल की कचरियों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें या पंसारी से साफ़ छाँट ले आएँ। इन्हें बारीक पीस कपड़ाछान करके शीशी में भर लें। यही बिल्व चूर्ण है। छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय दस्तों में भी यह चुटकी भर चटा दें।

आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।

जल जाने पर बिल्व चूर्ण, गरम किए तेल को ठंडा करके पेस्ट बना लें। जले अंग पर लेप करने से फौरन आराम आएगा। चूर्ण न होने पर बेल का पक्का गूदा साफ़ करके भी लेपा जा सकता है।

पाचन तंत्र में खराबी के कारण आंव आने लगती है, जो कुछ ही समय में रोगी को दुर्बल-असक्त बना देती है। ऐसे में बेलगिरी और आम की गुठली की गिरी बराबर मात्रा में कूट-छान लें। आधा ग्राम चूर्ण सुबह चावल की माड के साथ सेवन करें। आधा ग्राम यह चूर्ण पहले दिन दो-दो घंटे बाद चार बार, दूसरे दिन सुबह-दोपहर और तीसरे दिन सिर्फ़ सुबह लें। आंव बन्द हो जाने पर चूर्ण न लें।

कब्ज से पेट-सीने में जलन रहने पर पचास ग्रामा गूदे में, पच्चीस ग्राम पिसी हुई मिश्री और ढ़ाई सौ ग्राम जल मिलाकर शर्बत बना लें। रोज़ पीने से कब्ज़ नष्ट होकर, चेहरे पर ओज आएगा।

छाती में जमे कफ से तेज़ खाँसी उठती है। रोगी रातभर सो नहीं पाता। इसमें सौ ग्राम बेल गूदा आधा किलो पानी में हल्की आँच में पकायें। तीन सौ ग्राम रह जाने पर उतार कर छान लें। एक किलो मिश्री की एक तार चासनी बनाकर इसमें मिलाएँ। एक रती भर केसर और थोड़ी जावित्री डालकर इसे सुगंधित और पुष्टिकर बना लें। गुनगुना घूँट-घूँट कर पिएँ। सर्दियों में इस्तेमाल करने से कफ इकठ्ठा नहीं होगा।

दमा में कफ निकालने के लिए बेल की पत्तियों का काढ़ा दस-दस ग्राम सुबह-शाम शहद मिला कर पिएँ। अथवा पाँच ग्राम रस में पाँच ग्राम सरसों का शुद्ध तेल मिला कर पिलाएँ।

पचास ग्राम सूखे बेल पत्तों का चूर्ण, तीन ग्राम मात्रा में एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम देने अथवा पक्के गूदे में थोड़ी मलाई मिलाकर खाने से मूत्र और वीर्य दोष नष्ट होते हैं।

ल्युकोरिया में बेलगिरी रसौत और नागकेसर समान मात्रा में कूट-पीस कर कपड़े से छान लें पाँच ग्राम चूर्ण, चावल के मांड के साथ दिन में दो या तीन बार दें।

पीलिया में बेल की कोंपलों का पचास ग्राम रस, एक ग्राम पिसी काली मिर्च मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ। शरीर में सूजन भी हो तो पत्र रस तेल की तरह मलिए।

सौ ग्राम पानी में थोड़ा गूदा उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।

रक्त शुद्धि के लिए बेलवृक्ष की पचास ग्राम जड़, बीस ग्राम गोखरू के साथ पीस-छान लें। सुबह एक छोटा चम्मच चूर्ण आधा कप खौलते पानी में घोंलें। मिश्री या शहद मिला कर गरमा-गरम घूँट भरें। कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा।

सिर दर्द में बेल पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। पुराना सर दर्द होने पर ग्यारह पत्तों का रस निकाल कर पी जाएँ। गर्मियों में इसमें थोड़ा पानी मिला ले। कितना ही पुराना सर दर्द ठीक हो जाएगा।

मोच अथवा अन्दरूनी चोट में बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाइए। इसे थोड़ा गर्म पुल्टिस बन पीडित अंग पर बाँध दें। दिन में तीन-चार बार पुल्टिस बदलने पर आराम आ जाएगा।


*गर्मियों में लू लगने पर इस फल का शर्बत पीने से शीघ्र आराम मिलता है तथा तपते शरीर की गर्मी भी दूर होती है।

*पुराने से पुराने आँव रोग से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन अधकच्चे बेलफल का सेवन करें।

*पके बेल में चिपचिपापन होता है इसलिए यह डायरिया रोग में काफी लाभप्रद है। यह फल पाचक होने के साथ-साथ बलवर्द्धक भी है।

*पके फल के सेवन से वात-कफ का शमन होता है।

*आँख में दर्द होने पर बेल के पत्त्तों की लुगदी आँख पर बाँधने से काफी आराम मिलता है।

*कई मर्तबा गर्मियों में आँखें लाल-लाल हो जाती हैं तथा जलने लगती हैं। ऐसी स्थिति में बेल के पत्तों का रस एक-एक बूँद आँख में डालना चाहिए। लाली व जलन शीघ्र दूर हो जाएगी।

*बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इस फल के पत्तों का अर्क निकालकर पिलाना चाहिए।

*बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार रोग में राहत मिलती है।

*इसके पके फल को शहद व मिश्री के साथ चाटने से शरीर के खून का रंग साफ होता है, खून में भी वृद्धि होती है।

*बेल के गूदे को खांड के साथ खाने से संग्रहणी रोग में राहत मिलती है।

*पके बेल का शर्बत पीने से पेट साफ रहता है।

*बेल का मुरब्बा शरीर की शक्ति बढ़ाता है तथा सभी उदर विकारों से छुटकारा भी दिलाता है।

*गर्मियों में गर्भवती स्त्रियों का जी मिचलाने लगे तो बेल और सौंठ का काढ़ा दो चम्मच पिलाना चाहिए।

*पके बेल के गूदे में काली मिर्च, सेंधा नमक मिलाकर खाने से आवाज भी सुरीली होती है।

*छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक चम्मच पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं।

function disabled

Old Post from Sanwariya