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गुरुवार, 22 जुलाई 2021

अमेरिका ने भारत से कहा है कि अंतरिक्ष को कूड़ेदान न बनायें.

एक तस्वीर देखिए।

यह लाल चिन्हित बिंदु, सभी मनुष्यों द्वारा बनाए गए उपग्रहों आदि का एक ३डी चित्र है। अब ज़ाहिर-सी बात है कि इनमें सबसे अधिक योगदान किसका होगा, बेशक रूस और अमेरिका का।

अमेरिका वह दयालु देश है जो खुद तो तरक्की करता है लेकिन वही तरक्की कोई दूसरा देश करे, तो उसे यह श्लोक याद आ जाता है-

“विश्व: शान्ति, अंतरिक्ष: शान्ति, वनस्पतयः शान्ति, सर्वज्ञाम शान्ति।”

इसने खुद यह परीक्षण एक नहीं, दो बार सबको करके दिखाया है, और कई बार छिपा कर कर चुका है। कब? अमेरिका ने पहली बार वर्ष १९५९ में पहला ए-सॅट परीक्षण किया था, और फिर २००७ में जब चीन ने यह परीक्षण किया, उसकी कड़ी निंदा करने के साथ साथ अमेरिका ने फिर से यह परीक्षण किया था, बस चीन को दिखाने के लिए कि अभी भी विश्व की महाशक्ति अमेरिका ही है।


विश्व में आतंकवाद को जन्म दिया किसने? अमेरिका ने।

फिर इसको एशिया की समस्या कहकर नज़रअंदाज़ किया, तब तक, जब तक भस्मासुर बनकर इसी आतंकवाद ने उसकी ही ऊंची इमारत को ध्वस्त कर दिया। तब जाकर उसे पता चला कि आतंकवाद विश्व की समस्या है।

दुनिया में परमाणु अस्त्र का प्रयोग केवल एक ही देश ने किया है, कौन? अमेरिका।

जापान के दो शहरों को सदियों के लिए ध्वंस करने के बाद आज यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो लेकर बैठा है। जबकि हमेशा शान्ति का नारा देने वाला भारत आज भी स्थायी सदस्य नहीं बन पाया।

पॅरिस प्रोटोकॉल से सबसे पहले कौन सा देश निकला? अमेरिका। और फिर वह प्रगतिशील देशों पर प्रदूषण का दोष लादता है, जबकि सबसे अधिक कार्बन यही छोड़ता है दुनिया में।

तो इसमें कोई हैरानी नहीं कि भारत जैसे राष्ट्र जहां अमेरिका को बस्तियों और गरीबी के अलावा कुछ और नहीं दिखता, वहां के वैज्ञानिकों ने सम्पूर्ण स्वदेशी कौशल से एन्टी-सॅटेलाइट मिसाइल बनाई और बिना किसी हिचकिचाहट खुद इसका सफल परीक्षण भी किया। इस पर अमेरिका को कूड़ादान नहीं दिखेगा तो और क्या दिखेगा?


इस बात पर मंगलयान को लेकर एक पुराना वाकया याद आता है। जब भारतीय संस्थान इसरो ने नासा के पास मंगल यात्रा में शामिल होने के लिए प्रस्ताव रखा था तब अमरीकी अख़बार 'न्यूयॉर्क times' ने इसका भद्दा मज़ाक उड़ाया था।

उन्होंने भारतीय वैज्ञानिक संस्थानों को गाय जैसा बेवकूफ करार दिया।

फिर भारत ने दुनिया का सबसे सस्ता मिशन बनाकर मंगलयान भेजा। फिर एक साथ कई सारे सॅटेलाइट भी भेजे, कम खर्च पर, और पूरी दुनिया इस बात पर भारत की वाहवाही करने लगी। सारे देश अपने-अपने सॅटेलाइट भारतीय संस्थान द्वारा सस्ते में भेजने के लिए आगे आए।

और भारतीय अख़बारों ने उसका बढ़िया बदला लिया।

फिर क्या! न्यूयॉर्क टाइम्स ने माफी मांगी। :)

प्रश्न था -

अमेरिका ने भारत से कहा है कि अंतरिक्ष को कूड़ेदान न बनायें .इस विषय पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?

आधार -

Watch 20,000 Satellites Orbit Earth In Real Time — Simply Amazing!

New York Times in cartoon apology

Dear New York Times Do You Still Think ISRO Should Be Kept Outside The 'Elite Club'

इजराइल की सी ब्रेकर मिसाइल क्यों चर्चा में है?

इजरायल ने पांचवी पीढ़ी की सी ब्रेकर मिसाइलको दुनिया के सामने पेश किया है। इस महाविनाशक मिसाइल को इजरायली हथियार निर्माता कंपनी राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स

ने बनाया है। बुधवार को इस मिसाइल का उद्धाटन इजरायली रक्षा मंत्री ने किया। इस मिसाइल को समुद्र या जमीन से फायर किया जा सकता है जो 300 किलोमीटर की रेंज में दुश्मन का खात्मा करने में सक्षम है। इजरायली कंपनी इस मिसाइल को भारत को ऑफर करने के प्लान पर भी काम कर रही है।

सी ब्रेकर मिसाइल

प्रिसिजन गाइडेड मिसाइल है सी ब्रेकर
सी ब्रेकर पांचवी पीढ़ी की लंबी दूरी तक मार करने वाली, ऑटोनोमस प्रिसिजन गाइडेड मिसाइल सिस्टम है। यह मिसाइल किसी भी देश की नौसेना और आर्टिलरी की क्षमता को कई गुना बढ़ा सकती है। इसे जमीन पर स्थित किसी भी सैन्य ठिकाने से या फिर किसी युद्धपोत से फायर किया जा सकता है। कंपनी से जुड़े सूत्रों ने बताया है कि आने वाले दिनों में इस मिसाइल को मेक इन इंडिया के जरिए भारत को ऑफर किया जा सकता है।

भारत में कल्याणी के साथ काम करती है यह कंपनी
इजरायल की यह कंपनी भारत में कल्याणी ग्रुप के साथ ज्वाइंट वेंचर चलाती है। इसे कल्याणी राफेल एडवांस्ड सिस्टम्स (KRAS) के नाम से जाना जाता है। कल्याणी ग्रुप अकेले में भारत फोर्ज के नाम से अपनी डिफेंस और एयरोस्पेस कंपनी को चलाती है। राफेल एडवांस्ड और कल्याणी साथ मिलकर भारतीय सशस्त्र बलों के लिए कई तरह के हथियारों और गाड़ियों पर काम कर रहे हैं।

सी ब्रेकर मिसाइल की विशेषता
सी ब्रेकर मिसाइल इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स, कंप्यूटर विजन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और निर्णय लेने वाले एल्गोरिदम से लैस है। ऐसे में अगर आखिरी समय में भी मिसाइल को अपना लक्ष्य बदलना पड़े तो इसे कोई परेशानी नहीं होगी। यह मिसाइल प्रिसिजन गाइडेड होने के कारण काफी सटीकता से लक्ष्य को भेदने में सक्षम है। इसमें एक उन्नत आईआईआर (इमेजिंग इन्फ्रा-रेड) सीकर लगा हुआ है, जो जमीन या समुद्र में स्थिर या गतिमान लक्ष्य को पिन पॉइंट एक्यूरेसी से हिट कर सकता है।

क्यों खतरनाक है सी ब्रेकर मिसाइल
यह मिसाइल समुद्र और जमीन दोनों ही जगहों पर काफी नीचे उड़ान भरती है। ऐसे में समुद्र या जमीन पर मौजूद दुश्मन के रडार इस मिसाइल के आहट को पहचान नहीं पाते हैं। जब मिसाइल दुश्मनों के बिलकुल नजदीक पहुंच जाती है जो उन्हें रिएक्ट करने का समय भी नहीं देती है। ऐसे में इस मिसाइल से दुश्मन का बचना लगभग नामुमकिन हो जाता है।

Spice 250: बालाकोट में तबाही मचाने वाले बम का छोटा वर्जन, इजरायल ने भारत को किया ऑफर


किसी भी प्लेटफॉर्म से किया जा सकता है लॉन्च
सी ब्रेकर मिसाइल को नौसेना के कई प्लेटफॉर्म से लॉन्च किया जा सकता है। इसमें फॉस्ट अटैक मिसाइल बोट, कोरवेट और फ्रिगेट भी शामिल हैं। समुद्री किनारों की रक्षा के लिए स्पाइडर लॉन्चर्स में इस मिसाइल को फिट किया जा सकता है। यह मिसाइल सभी प्रकार के मौसम में फायर की जा सकती है।

40,000 रुपये के तहत सबसे अच्छा गेमिंग मोबाइल फोन क्या है?

यहां 35000/- रुपए की दर से कुछ लोकप्रिय गेमिंग मोबाइल की सूची दी गई है।

आप उन्हें सीधे ऑनलाइन खरीद सकते हैं या आप अपने स्थानीय स्टोर पर भी जा सकते हैं।

Mi 11X Pro 5GOPPO Reno5 Pro 5GVivo V20 Pro 5GVivo X60 के स्पेसिफिकेशन इस प्रकार हैं

कैमरा

48MP+13MP+13MP रियर कैमरा |

32MP सेल्फी कैमरा।

डिस्प्ले

16.65cm (6.56") AMOLED डिस्प्ले 120 हर्ट्ज़ दर और 2376 x 1080 पिक्सेल रिज़ॉल्यूशन के साथ।

मेमोरी

मेमोरी और सिम: 8GB रैम | 128GB इंटरनल मेमोरी |

सिम

डुअल 5G सिम (5Gनैनो+5Gनैनो) डुअल-स्टैंडबाय (5G)।

ऑपरेटिंग सिस्टम

फनटच ओएस 11.1 (एंड्रॉइड 11 पर आधारित)

प्रोसेसर

क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 870 ऑक्टा कोर प्रोसेसर के साथ ।

बैटरी और चार्जिंग

4300mAh बैटरी (टाइप-सी) के साथ 33W फ्लैश चार्जिंग।

कैमरा

कैमरा: 108MP ट्रिपल रियर कैमरा 8MP अल्ट्रा-वाइड और 5MP सुपर मैक्रो के साथ |

20 एमपी फ्रंट कैमरा।

डिस्प्ले

डिस्प्ले: 120Hz हाई रिफ्रेश रेट FHD+ (1080x2400) AMOLED डॉट डिस्प्ले; 16.9 सेंटीमीटर (6.67

इंच); 2.76 मिमी अल्ट्रा टिनी पंच होल; एचडीआर 10+ समर्थन;

360 हर्ट्ज टच सैंपलिंग, एमईएमसी तकनीक।

मेमोरी

मेमोरी, स्टोरेज और सिम: 8GB LPDDR5 RAM |

128GB UFS 3.1 स्टोरेज।

सिम

दोहरी सिम नेटवर्क बैंड 5G / 4G / 3G / 2G का समर्थन करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम

एमआईयूआई 12, एंड्रॉइड 11

प्रोसेसर

क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 888 5G क्रियो 680 ऑक्टा-कोर के साथ; 5 एनएम प्रक्रिया; 2.84GHz क्लॉक स्पीड

तक; लिक्विडकूल तकनीक।

बैटरी और चार्जिंग

बैटरी: 4520 एमएएच की बड़ी बैटरी के साथ 33W फास्ट चार्जर इन-बॉक्स और टाइप-सी कनेक्टिविटी।

कैमरा

64MP + 8MP + 2MP + 2MP

रियर कैमरा

32MP फ्रंट कैमरा

डिस्प्ले

16.64 सेमी (6.55 इंच) फुल एचडी+ डिस्प्ले 2400x1080 रेजोल्यूशन के साथ।

3डी बॉर्डरलेस सेंस स्क्रीन - एआई हाईलाइट वीडियो (अल्ट्रा नाइट वीडियो + लाइव एचडीआर) - सुपर एमोलेड

डिस्प्ले

मेमोरी

128GB 8GB रैम, 256GB 12GB रैम

यूएफएस 2.1

सिम

डुअल सिम (नैनो-सिम, डुअल स्टैंड-बाय) 5

जी

जीएसएम / सीडीएमए / एचएसपीए / सीडीएमए2000 / एलटीई / 5जी

ऑपरेटिंग सिस्टम

कलर OS 11.1 Android v11.0 ऑपरेटिंग सिस्टम पर आधारित

प्रोसेसर

2.6GHz MediaTek डाइमेंशन 1000+ (MT6889) प्रोसेसर,

ARM G77 MC9 836 MHz के साथ

बैटरी और चार्जिंग

इनोवेटिव 65W SuperVOOC 2.0 फ्लैश चार्जिंग 4350 एमएएच की बैटरी, 5 मिनट की चार्जिंग और 4 घंटे

के वीडियो प्लेबैक के साथ 30 मिनट में पूरी तरह चार्ज हो जाती है।

कैमरा

मोशन ऑटोफोकस के साथ 64MP+8MP+2MP का रियर कैमरा, आई ऑटोफोकस, बॉडी/ऑब्जेक्ट

ऑटोफोकस, सुपर नाइट मोड, सुपर वाइड एंगल नाइट मोड, ट्राइपॉड नाइट मोड, अल्ट्रा स्टेबल

वीडियो, आर्ट पोर्ट्रेट वीडियो, सुपर मैक्रो, बोकेह पोर्ट्रेट, मल्टी-स्टाइल पोर्ट्रेट, एआर स्टिकर्स, 3डी

साउंड ट्रैकिंग |

44MP+8MP सेल्फी

कैमरा।

डिस्प्ले

16.35 सेंटीमीटर (6.44 इंच) FHD+ मल्टी-टच कैपेसिटिव टचस्क्रीन 2400 x 1080 पिक्सल

रिज़ॉल्यूशन के साथ।

मेमोरी

मेमोरी, स्टोरेज और सिम: 8GB रैम | 128GB की इंटरनल मेमोरी बढ़ाई जा सकती है

सिम

डुअल सिम (नैनो+नैनो) डुअल-स्टैंडबाय (5G+4 .)

ऑपरेटिंग सिस्टम

Android 10, Android 11 में अपग्रेड करने योग्य, Funtouch 11

प्रोसेसर

क्वालकॉम SM7250 स्नैपड्रैगन 765G 5G (7 एनएम)

एड्रेनो 620

बैटरी और चार्जिंग

4000 एमएएच लिथियम-आयन बैटरी

फास्ट चार्जिंग 33W।

बाइक में डिस्क ब्रेक अगले पहिए में ही क्यों होता है?


 ऐसी बात नहीं है .डिस्क ब्रेक- अगले और पिछले दोनों पहियों में मिछ्ले 44 सालों से प्रयोग हो रहा है .

हौंडा CB750 मॉडल में 1975 से दोनों पहियों में डिस्क ब्रेक का प्रयोग हो रहा है .

[1]

भारत में भी महंगी बाइक में दोनों पहियों में - डिस्क ब्रेक आम हो गया है - जैसे रॉयल enfield का थंडरबर्ड 500 ( 2.1 लाख ) और सुजुकी gixxer ( 1.3 लाख )

[2]

आम तौर पर मोटर साइकिल में ड्रम ब्रेक का प्रयोग होता है , जिसमें ब्रेक ड्रम - अन्दर बंद रहता है . नीचे चित्र देखें

[3]

ड्रम के भीतर - ब्रेक शू होते हैं जो , फ़ैल कर - ड्रम पर घर्षण पैदा करते हैं

अन्दर अवस्थित होने के कारण - यह जल्दी गर्म हो जाता है और ब्रेक शक्ति में कमी आती है , जिसके निराकारण के लिए - डिस्क ब्रेक की खोज हुई , जो नीचे चित्र में देख सकते हैं बाहर अवस्थित होने के कारण ज्यादा गर्म नहीं होता है ( हवा से ठंडा होता रहता है ) और आकार में ड्रम से बड़ा होता है , सो ज्यादा ब्रेक शक्ति उत्पन्न कर सकता है ; यह ऐसा दिखता है

[4]

सबसे पहला डिस्क ब्रेक 1962 में लम्ब्रेटा स्कूटर TV175 - में प्रयोग हुआ . जिसके केवल अगले पहिये में डिस्क ब्रेक था और पिछले पहिये में - ड्रम ब्रेक .

लेकिन डिस्क ब्रेक के फायदों को देखते हुए 1975 से दोनों पहियों में - डिस्क ब्रेक का प्रयोग होने लगा .

डिस्क ब्रेक में फायदे तो बहुत हैं - पर एक घाटा यह है कि इसमें - ज्यादा ब्रेक शक्ति लगने के कारण - ब्रेक लॉक हो जाता है - यानि - पहिये घूमने बंद हो जाते हैं - और घिसटने लगते हैं - जिससे स्टीयरिंग कंट्रोल ख़त्म हो जाता है . इसके निराकरण हेतु - ABS ( एंटी लॉक ब्रेक सिस्टम ) की खोज हुई और 1988 में प्रसिद्द BMW कंपनी द्वारा BMW K100 LT मोटर साइकिल में इसका प्रयोग हुआ . तबसे मोटर साइकिल में दोनों पहियों में - डिस्क ब्रेक का धडल्ले से प्रयोग हो रहा है ABS के साथ .

डिस्क ब्रेक महंगा होता है - ड्रम ब्रेक के अपेक्षा और ABS का खर्च ऊपर से . इसी कारण भारत में बहुत से मोटर साइकिल निर्माता - केवल अगले पहिये में ही डिस्क ब्रेक लगाते हैं .

इसके अतिरिक्त - 180 -200 किलोमीटर / घंटा की रफ़्तार तक दोनों पहियों में डिस्क ब्रेक की जरुरत नहीं है .

ये तो हुआ खर्च और रफ़्तार के हिसाब से - केवल अगले पहिये में डिस्क ब्रेक लगाने की बात .

अब अगर यह सवाल करें कि - दोनों पहियों में से किसी एक में ही डिस्क ब्रेक लगाना हो तो अगला ही क्यों ?????????

इसका जवाब है - न्यूटन साहब का पहला नियम - जिसके कारण - चलती कार में अचानक ब्रेक लगे तो , आप सामने की ओर झुक जाते हैं और अचानक एक्सलरेट हो तो - पीछे की ओर .

मोटर साइकिल में भी जब ब्रेक मारते हैं तो अगले पहियों पर ज्यादा जोर पड़ता है . जिस कारण ज्यादा ब्रेक शक्ति की जरुरत होती है

इसी नियम का प्रयोग कर - मोटर साइकिल में ऐसे स्टंट दिखाए जाते हैं

स्पीड में चल रही मोटर साइकिल में अचानक ब्रेक मारिये और पिछला पहिया - जमीन से उठ जायेगा - आसमान की तरफ - हवा हवाई

[5]

इसे - रिवर्स व्हीली ( reverse wheelie ) कहते हैं .

तो , केवल अगले पहिये में डिस्क ब्रेक लगाने के तीन कारण उभर के सामने आये

  1. पैसा . डिस्क ब्रेक महंगा होता है ABS के साथ ,
  2. रफ़्तार . 180–200 किलोमीटर / घंटा के नीचे दोनों पहियों में डिस्क ब्रेक की जरुरत नहीं है
  3. जोर - अगले पहिये पर ब्रैकिंग में ज्यादा जोर लगता है

चलते चलते ….

कार में भी रिवर्स व्हीली ( reverse wheelie ) होता है

[6]

और एक मशवरा :

बिना ABS के डिस्क ब्रेक वाली मोटर साइकिल या कार कभी भी नहीं खरीदें . कभी भी नहीं .

कॉपीराइट : लेखक

मूल सवाल

फुटनोट

[2] https://auto.ndtv.com/compare-bikes/royal-enfield-thunderbird-500-1179-vs-suzuki-gixxer-sf-1194[3] Motorcycle History: Brakes[4] Motorcycle History: Brakes[5] Google Image Result for https://live.staticflickr.com/2381/2180930746_efcafd5f5b.jpg[6] Google Image Result for https://speedsociety.com/wp-content/uploads/2016/03/crazy-car-tricks-reverse-wheelie.jpg

भारतीय रेलवे के पास इतना इंटरनेट कहाँ से आता है कि वह फ्री में बाँटता है?


भारतीय रेलवे सभी रेलवे स्टेशन पर मुफ्त इंटरनेट कैसे देता है ? इसे जानने से पहले यह जानते है कि रेलवे कैसे सफ़र करने वालों को फ्री में इंटरनेट की सुविधा देता है ?

इंटरनेट कैसे काम करता है ?

आप अपने मोबाइल में इंटरनेट कैसे इस्तेमाल करते है ? आपका जवाब होगा टावर के माध्यम से या फिर सेटलाइट के माध्यम से लेकिन आप अपने अनुसार तो सही है लेकिन आपका जवाब बिलकुल गलत है और आप उस तथ्य को नहीं जानते है कि आखिर यह इंटरनेट कहाँ से आता है ?

आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया का 99 प्रतिशत इंटरनेट केबल ऑप्टिकल फाइबर वायर के माध्यम से चलती है और दुनिया के सभी देशों को उसी वायर के माध्यम से जोड़ दिया गया है जिसे सबमरीन केबल कहा जाता है और इस वायर को समुद्र के रास्ते सभी देशों को जोड़ा गया है।

इन सबमरीन केबल को बिछाने का काम बड़ी बड़ी कंपनियों द्वारा किया जाता है, जिसे टायर वन कंपनी कहा जाता है और यह वायर सभी देशों के समुद्र तट इलाको के महत्वपूर्ण शहरों तक लाया गया है ।

इसके बाद उन्ही समुद्र तटीय इलाको के महत्वपूर्ण शहरों से भारत के विभिन्न शहरों तक यह वायर बिछाया गया है। जिसे बीएसएनएल , जिओ , एयरटेल इत्यादि ने बिछाया है। और इसे टायर टू कंपनी कहा जाता है और भारत के इन्हीं संचार कंपनियों ने अपना वायर बिछा कर सबमरीन केबल से जोड़ दिया है।

भारतीय रेलवे मुफ्त इंटरनेट सेवा कैसे देती है ?

अब आते है अपने टॉपिक के महत्वपूर्ण बिंदु पर कि भारतीय रेलवे मुफ्त इंटरनेट सेवा कैसे देती है और इसका एक उदाहरण देता हूँ मान लीजिये आपके पास दो कंप्यूटर है और दोनों कंप्यूटर से फाइल या फिल्म का आदान प्रदान करना हो तो कैसे करेंगे ? ब्लूटूथ या wifi से आपको घंटो लग जायेंगे लेकिन दोनों कंप्यूटर को वायर या केबल के माध्यम से जोड़ दिया जाये तो आप कुछ ही मिनटों में फाइल ट्रान्सफर कर सकेंगे ।

आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि दुनिया के किसी भी सर्वर का डाटा फ्री में भेजा या लाया जाता है । इसका मतलब है कि इंटरनेट को कोई भी पैसा नहीं लगता है । यह पूरी तरह से फ्री होता है ।

तो आपके मन में सवाल आएगा कि इंटरनेट फ्री है तो हमसे पैसे क्यों लिया जाता है तो इसका जवाब है कि टायर वन कंपनी जिसने अपना पैसा लगा कर सबमरीन केबल को समुद्र में बिछाया है और वह पैसा टायर टू कंपनी बीएसएनएल , जिओ , एयरटेल इत्यादि हमसे लेकर और कुछ प्रतिशत रख कर दे दिया जाता है।

अब कुछ कुछ बातें आपको समझ में आ गयी होंगी आपको बता दूँ कि भारतीय रेलवे अपने शुरुआत के दिनों में इंटरनेट के लिए बीएसएनएल पर आश्रित था बाद में भारतीय रेलवे ने अपनी पहुँच को बढ़ने के लिए सितम्बर 2000 में रेलटेल नामक एक सरकारी PSU कंपनी की शुरुआत की ।

जिसके द्वारा पुरे भारत में हाई स्पीड ऑप्टिकल फाइबर वायर बिछाया गया वर्तमान में यह हाई स्पीड ऑप्टिकल फाइबर वायर लगभग 45 हज़ार किलोमीटर तक फैला हुआ है । और लगभग 5 हजार रेलवे स्टेशन से जुड़ा हुआ है जिससे फ्री में इन रेलवे स्टेशन को हाई स्पीड इन्टरनेट से जोड़ दिया गया है। फिर कुछ समय बाद रेलवे ने यह निर्णय लिया कि यह सुविधा आम लोगो को भी दिया जाये क्योंकि भारतीय रेलवे के पास खुद का हाई स्पीड ऑप्टिकल फाइबर बिछा हुआ था तो पैसे केवल टायर वन कंपनी को ही देने थे तो इसके लिए रेलवे ने Google से एक समझौता किया और गूगल ने अपनी उच्च तकनीक लगाकर एक सुरक्षित wifi हॉटस्पॉट बनाया जिसका रेंज सिर्फ रेलवे स्टेशन तक रखा गया।

अब आपको समझ में आ गया होगा कि भारतीय रेलवे के पास इतना सारा इंटरनेट कहाँ से आता है कि वह फ्री में बाँटता है।

[1]

फुटनोट

 

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