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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

#हनुमद्ध्यानम्

#हनुमद्ध्यानम्




 नमस्ते देवदेवेश नमस्ते राक्षसान्तक ।
नमस्ते वानराधीश नमस्ते वायुनन्दन ॥ १॥
नमस्त्रिमूर्तिवपुषे वेदवेद्याय ते नमः ।
रेवानदी विहाराय सहस्रभुजधारिणे ॥ २॥
सहस्रवनितालोल कपिरूपाय ते नमः ।
दशाननवधार्थाय पञ्चाननधराय च ॥ ३॥
सुवर्चलाकलत्राय तस्मै हनुमते नमः ।
कर्कटीवधवेलायां षडाननधराय च ॥ ४॥
सर्वलोकहितार्थाय वायुपुत्राय ते नमः ।
रामाङ्कमुद्राधराय ब्रह्मलोकनिवासिने ॥ ५॥
विंशद्भुजसमेताय तस्मै रुद्रात्मने नमः ।
सर्वस्वतन्त्रदेवाय नानायुधधराय च ॥ ६॥
दिव्यमङ्गलरूपाय हनूमद्ब्रह्मणे नमः ।
दुर्दण्डिबन्धमोक्षाय कालनेमिहराय च ॥ ७॥
मैरावणविनाशाय वज्रदेहाय ते नमः ।
सर्वलोकप्रपूर्णाय भक्तानां हृन्निवासिने ॥ ८॥
आर्तानां रक्षणार्थाय वेदवेद्याय ते नमः ।
सर्वमन्त्रस्वरूपाय सृष्टिस्थित्यन्तहेतवे ॥ ९॥
नानावर्णधरायास्तु पापनाशय ते नमः ।
गङ्गातीरे विप्रमुख कपिलानुग्रहेच्छया ॥ १०॥
चतुर्भुजावताराय भविष्यद्ब्रह्मणे नमः ।
कौपीनकटिसूत्राय दिव्ययज्ञोपवीतिने ॥ ११॥

पीताम्बरधरायास्तु कालरूपाय ते नमः ।
यज्ञकर्त्रे यज्ञभोक्त्रे नानाविद्याविहारिणे ॥ १२॥
त्रिमूर्तितेजोवपुषे दिव्यरूपाय ते नमः ।
कदलीफलहस्ताय हेमरम्भाविहारिणे ॥ १३॥
भक्तध्यानावसन्ताय सर्वभूतात्मने नमः ।
वल्लरीधार्ययुक्ताय सहस्राश्वरथाय च ॥ १४॥
गुण्डक्रियागीतगानचतुराय नमो नमः ।
पञ्चाशद्वर्णरूपाय सूक्ष्मरूपाय विष्णवे ॥ १५॥
नरवानरवेषाय बहुरूपाय ते नमः ।
लङ्किणीवशवेलायामष्टादशभुजात्मने ॥ १६॥
ध्वजदत्तप्रपन्नाय अग्निगर्भाय ते नमः ।
उष्ट्रारोहविराराय पार्वतीनन्दनाय च ॥ १७॥
वज्रप्रहारचिह्नाय तस्मै सर्वात्मने नमः ।
पम्पातीरविहाराय केसरीनन्दनाय च ।
तप्तकाञ्चनवर्णाय वीररूपाय ते नमः ॥ १८॥

शक्तिं पाशं च कुन्तं परशुमपि हलं तोमरं खेटकं च
शङ्खं चक्रं त्रिशूलं मुसलमपि गदां पट्टसं मुद्गरं च ।
गाण्डीवं चारुपद्मं द्विनवभुजवरे खड्गमप्याददानं
वन्देऽहं वायुसूनुं सुररिपुमथनं भक्तरक्षाधुरीणम् ॥ १९॥
इति श्रीहनुमद्ध्यानं समाप्तम् ।

11 जनवरी 1966 लाल बहादुर शास्त्री बलिदान दिवस

 11 जनवरी 1966 लाल बहादुर शास्त्री बलिदान दिवस



लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द, सोवियत संघ रूस)

भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।

भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया ।

 उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।

जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया।

 उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।

 ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया।

11 जनवरी 1915 बलिदान-दिवस देशभक्त सरदार सेवासिंह



 ( हिंदू संवाद पौष शुक्ल पक्ष नवमी तिथि ११/०१ इतिहास स्मृति )

11 जनवरी 1915 बलिदान-दिवस देशभक्त सरदार सेवासिंह

भारत की आजादी के लिए भारत में हर ओर लोग प्रयत्न कर ही रहे थे; पर अनेक वीर ऐसे थे, जो विदेशों में आजादी की अलख जगा रहे थे। वे भारत के क्रान्तिकारियों को अस्त्र-शस्त्र भेजते थे। ऐसे ही एक क्रान्तिवीर थे सरदार सेवासिंह, जो कनाडा में रहकर यह काम कर रहे थे।

सेवासिंह थे तो मूलतः पंजाब के, पर वे अपने अनेक मित्र एवं सम्बन्धियों की तरह काम की खोज में कनाडा चले गये थे। उनके दिल में देश को स्वतन्त्र कराने की आग जल रही थी। प्रवासी सिक्खों को अंग्रेज अधिकारी अच्छी निगाह से नहीं देखते थे।

मिस्टर हॉप्सिन नामक एक अधिकारी ने एक देशद्रोही बेलासिंह को अपने साथ मिलाकर दो सगे भाइयों भागासिंह और वतनसिंह की गुरुद्वारे में हत्या करा दी। इससे सेवासिंह की आँखों में खून उतर आया। उसने सोचा यदि हॉप्सिन को सजा नहीं दी गयी, तो वह इसी तरह अन्य भारतीयों की भी हत्याएँ कराता रहेगा।

सेवासिंह ने सोचा कि हॉप्सिन को दोस्ती के जाल में फँसाकर मारा जाये। इसलिए उसने हॉप्सिन से अच्छे सम्बन्ध बना लिये। हॉप्सिन ने सेवासिंह को लालच दिया कि यदि वह बलवन्तसिंह को मार दे, तो उसे अच्छी नौकरी दिला दी जायेगी। सेवासिंह इसके लिए तैयार हो गया। हॉप्सिन ने उसे इसके लिए एक पिस्तौल और सैकड़ों कारतूस दिये। सेवासिंह ने उसे वचन दिया कि शिकार कर उसे पिस्तौल वापस दे देगा।

अब सेवासिंह ने अपना पैसा खर्च कर सैकड़ों अन्य कारतूस भी खरीदे और निशानेबाजी का खूब अभ्यास किया। जब उनका हाथ सध गया, तो वह हॉप्सिन की कोठी पर जा पहुँचा। उनके वहाँ आने पर कोई रोक नहीं थी। चौकीदार उन्हें पहचानता ही था। सेवासिंह के हाथ में पिस्तौल थी।

यह देखकर हॉप्सिन ने ओट में होकर उसका हाथ पकड़ लिया। सेवासिंह एक बार तो हतप्रभ रह गया; पर फिर संभल कर बोला, ‘‘ये पिस्तौल आप रख लें। इसके कारण लोग मुझे अंग्रेजों का मुखबिर समझने लगे हैं।’’ इस पर हॉप्सिन ने क्षमा माँगते हुए उसे फिर से पिस्तौल सौंप दी।

अगले दिन न्यायालय में वतनसिंह हत्याकांड में गवाह के रूप में सेवासिंह की पेशी थी। हॉप्सिन भी वहाँ मौजूद था। जज ने सेवासिंह से पूछा, जब वतनसिंह की हत्या हुई, तो क्या तुम वहीं थे। सेवासिंह ने हाँ कहा। जज ने फिर पूछा, हत्या कैसे हुई ? सेवासिंह ने देखा कि हॉप्सिन उसके बिल्कुल पास ही है। उसने जेब से भरी हुई पिस्तौल निकाली और हॉप्सिन पर खाली करते हुए बोला - इस तरह। हॉप्सिन का वहीं प्राणान्त हो गया।

न्यायालय में खलबली मच गयी। सेवासिंह ने पिस्तौल हॉप्सिन के ऊपर फेंकी और कहा, ‘‘ले सँभाल अपनी पिस्तौल। अपने वचन के अनुसार मैं शिकार कर इसे लौटा रहा हूँ।’’ सेवासिंह को पकड़ लिया गया। उन्होंने भागने या बचने का कोई प्रयास नहीं किया; क्योंकि वह तो बलिदानी बाना पहन चुके थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हॉप्सिन को जानबूझ कर मारा है। यह दो देशभक्तों की हत्या का बदला है। जो गालियाँ भारतीयों को दी जाती है, उनकी कीमत मैंने वसूल ली है। जय हिन्द।’’

उस दिन के बाद पूरे कनाडा में भारतीयों को गाली देेने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। 11 जनवरी, 1915 को इस वीर को बैंकूवर की जेल में फाँसी दे दी गयी।

हमें कौन सा उत्तर प्रदेश पसंद है.

 इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता, पर अपने कॉन्सेप्ट क्लीयर होने चाहिए.
2017 में UP वासी होते हुवे केवल यह इच्छा थी कि थोड़ा लॉ ऑर्डर हो जाए, गुंडागर्दी कम हो जाए, शांति रहे. दंगे बंद हों, टोपी वालों का आतंक और अपीजमेंट समाप्त हो जाए, और चूँकि हिंदू वादी थे तो यह भी आकाँक्षा थी कि राम मंदिर बन जाए.
2022 पाँच वर्ष बाद जब देखता हूँ तो लगता ही नहीं कि यह वही UP है. दंगे छोड़िए कोशिश करने वालों की भी रूह काँपती है. गुंडागर्दी कम छोड़िए करने वालों के घर बुल डोजर चल जाते हैं. राम मंदिर तो कब का फ़ाइनल हो गया, काशी का भव्य कारिडोर बन गया, विंध्य्वासिनी माता समेत ढेरों मंदिरों का जीर्णोद्धार हो रहा है और अब मथुरा की बारी है. क़ायदे से 2017 की अपेक्षाएँ देखते हुवे इतना मात्र 10/10 वाला है.
पर बोनस में इधर योगी बाबा हैं. बिजली व्यवस्था इतनी चौकस हुई कि धीमे धीमे जेनरेटर उद्योग समापन की कगार पर है. प्रदेश में पहले जितने अच्छे बस अड्डे होते थे उससे ज़्यादा हवाई अड्डे बना दिए. इक्स्प्रेस वे / रोड नेट्वर्क का जाल बिछ गया. बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र जो कभी बदनाम थे अकाल ग्रस्त थे, वहाँ डिफ़ेंस कारिडोर बन रहा है. कोविड वैक्सीन में रेकर्ड क़ायम किए गए. कोई भी क्षेत्र हो सबमें उत्तर प्रदेश ने प्रगति में नए नए झंडे गाड़े. पाँच वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश गाँवों में यदि जाना होता था रात को तो मैं गनर के साथ ही जाता था. आज अपनी रिवॉल्वर भी लाकर में रखी है ध्यान ही नहीं पिछली बार कब निकाली थी. पहले जहां उत्तर प्रदेश की पहचान केवल ताज थी, आज दसियों ऐतिहासिक स्थल हैं.
व्यक्तिगत कुंठा में कोई कुछ भी कहे मुझे यह कहने में एक प्रतिशत डाउट नहीं कि बीते पाँच वर्षों में उत्तर प्रदेश ने जो अचीव किया वह अकल्पनीय था सोंच भी नहीं सकते थे 2017 में.
सरकार ने जो करना था किया, अब यह हमारे ऊपर है कि हमें कौन सा उत्तर प्रदेश पसंद है. वह वाला जहां सरकार के ख़िलाफ़ पोस्ट करने वालों तक को ज़िंदा जला देते थे या वह वाला उत्तर प्रदेश जहां ऐसा करने वालों की जगह या तो जेल है या भगवान का घर.
निर्णय आपका

36 प्रकार की सबसिडी किसानों को मिल रही है!

 36 प्रकार की सबसिडी किसानों को मिल रही है!

6000 बार – बार खाते में में आ रहे हैं,माता पिता पैन्शन ले रहे हैं,आये गये साल कर्जे माफ करा लेते हैं !

फिर कहते हैं मोदी तेरी कब्र खुदेगी। किसी रिक्शा वाले की,किसी ऑटो वाले की,किसी नाई की,किसी दर्जी की,किसी लुहार की,किसी साइकिल पन्चर लगाने वाले की,किसी रेहड़ी वाले की,ऐसे न जाने कितने छोटे रोजगारों की कोई सबसिडी आई है आज तक?
किसी का कर्जा माफ हुआ है आज तक? क्या ये लोग इस देश के वासी नही हैं?
कल को ये भी आन्दोलन करके कहेंगे देश के पालनहार हम ही हैं।

रही बात MSP की 😀😀 कल हलवाई कहेंगे सरकार हमारे समोसे की एम एस पी 50 रुपये निश्चित करो।चाहे उसमें सड़े हुए आलु भरें।हमारे सब बिकने चाहियें।नहीं बिके तो सरकार खरीदे,चाहे सूअरों को खिलाये।हमें समोसे की कीमत मिलनी चाहिए ।

परसों बिरयानी वाले कहेंगे एक प्लेट बिरयानी 90 रुपये एम एस पी रखो चाहे सब बिकनी चाहिये।

जो नहीं बिके उसे खट्टर और दुष्यंत खरीदें और पैसे सीधे हमारे खाते में जमा हों।

यह सब तमाशा नहीं तो क्या हो रहा हैं ! दिल्ली में जो त्राहि त्राहि हो रही है,ना दूध पहुंच रहा है,ना सब्जी पहुंच रही है,ना कर्मचारी समय पर पहुंच पा रहे हैं उनकी यह दशा बनाने का क्या अधिकार है इन तथाकथित किसानों का? आज इन कथित किसानों की मांग की तीनों कानूनों के वापस लेने तक हम आंदोलन खत्म नहीं करेंगे अब कानून वापस ले लिए गए है तो अब जब तक हमारी अन्य मांगे न मानी जाएगी तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा । इनका ये आंदोलन किसी किसान के हित को लेकर ना पहले था ना आने वाले दिनों में दिखेगा इनका एक मात्र स्पष्ट इरादा है राष्ट्रवादी सरकार को गिराना घेरना जिनसे इन्हे मिल रहे राजनैतिक दलों की मंशा पूर्ण हो और विदेशो से देश को अस्थिर कर विदेशी फंड हासिल कर देश में अराजक माहोल बनाना है जिससे भारत की बढ़ती साख को गिराया जा सके और इनके इस आंदोलन में वर्तमान विपक्ष कांग्रेस वामी और आपिए जैसे छुटपुट दल पूर्ण सहयोग कर रहे है जो देश के लिए घातक सिद्ध होगी !

डॉ. सुनील जोगी की सबसे लोक प्रिय कविता I माँ तेरी बहुत याद आती है

 संक्षिप्त परिचय
नाम : डॉ. सुनील जोगी
जन्म : १ जनवरी १९७१ को कानपुर में।
शिक्षा : एम. ए., पी-एच. डी. हिंदी में।



कार्यक्षेत्र :
विभिन्न विधाओं में ४० पुस्तकें तथा गीत, ग़ज़ल व भजन के २५ कैसेट प्रकाशित। देश विदेश के अनेक मंचों व चैनलों से काव्य पाठ। फ़िल्मों के लिए गीत लेखन। पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन। अनेक धारावाहिकों के शीर्षक गीत व स्क्रिप्ट लेखन। लोक सभा के अपर निजी सचिव के रूप में संसद भवन में कार्य। इंडिया मीडिया एंड इंटरटेनमेंट एकेडमी के निदेशक तथा अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति, भारत के राष्ट्रीय महासचिव।

मातृ दिवस के सुअवसर पर उनकी एक बेहद ही भावपूर्ण रचना आप सबके नज़र है. आशा है आपको पसंद आएगी.. 

Dr. Sunil Jogi की सबसे लोक प्रिय कविता 

जब आँख खुली तो अम्‍मा की गोदी का एक सहारा था
उसका नन्‍हा-सा आँचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था
उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों-सा खिलता था
उसके स्‍तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था
हाथों से बालों को नोचा, पैरों से खूब प्रहार किया
फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्‍यार किया
मैं उसका राजा बेटा था वो आँख का तारा कहती थी
मैं बनूँ बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी
उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को भी निज अन्‍तर में सदा सहेजा था
मेरे सारे प्रश्‍नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के काँटे चुन वो ख़ुद ग़ुलाब बन जाती थी
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्‍यार का ले आया
जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया
शादी की, पति से बाप बना, अपने रिश्‍तों में झूल गया
अब करवाचौथ मनाता हूँ माँ की ममता को भूल गया
हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी
हम भूल गए वो ख़ुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी
हमको सूखा बिस्‍तर देकर ख़ुद गीले में सो जाती थी
हम भूल गए उसने ही होठों को भाषा सिखलाई थी
मेरी नींदों के लिए रात भर उसने लोरी गाई थी
हम भूल गए हर ग़लती पर उसने डाँटा-समझाया था
बच जाऊँ बुरी नज़र से काला टीका सदा लगाया था
हम बड़े हुए तो ममता वाले सारे बन्‍धन तोड़ आए
बंगले में कुत्ते पाल लिए माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आए
उसके सपनों का महल गिरा कर कंकर-कंकर बीन लिए
ख़ुदग़र्ज़ी में उसके सुहाग के आभूषण तक छीन लिए
हम माँ को घर के बँटवारे की अभिलाषा तक ले आए
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा तक ले आए
माँ की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है
गर माँ अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है
घर को पूरा जीवन देकर बेचारी माँ क्‍या पाती है
रूखा-सूखा खा लेती है, पानी पीकर सो जाती है
जो माँ जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखों पुण्‍य भले कर लें इंसान नहीं बन सकते हैं
माँ जिसको भी जल दे दे वो पौधा संदल बन जाता है
माँ के चरणों को छूकर पानी गंगाजल बन जाता है
माँ के आँचल ने युगों-युगों से भगवानों को पाला है
माँ के चरणों में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है
हिमगिरि जैसी ऊँचाई है, सागर जैसी गहराई है
दुनिया में जितनी ख़ुशबू है माँ के आँचल से आई है
माँ कबिरा की साखी जैसी, माँ तुलसी की चौपाई है
मीराबाई की पदावली ख़ुसरो की अमर रुबाई है
माँ आंगन की तुलसी जैसी पावन बरगद की छाया है
माँ वेद ऋचाओं की गरिमा, माँ महाकाव्‍य की काया है
माँ मानसरोवर ममता का, माँ गोमुख की ऊँचाई है
माँ परिवारों का संगम है, माँ रिश्‍तों की गहराई है
माँ हरी दूब है धरती की, माँ केसर वाली क्‍यारी है
माँ की उपमा केवल माँ है, माँ हर घर की फुलवारी है
सातों सुर नर्तन करते जब कोई माँ लोरी गाती है
माँ जिस रोटी को छू लेती है वो प्रसाद बन जाती है
माँ हँसती है तो धरती का ज़र्रा-ज़र्रा मुस्‍काता है
देखो तो दूर क्षितिज अंबर धरती को शीश झुकाता है
माना मेरे घर की दीवारों में चन्‍दा-सी मूरत है
पर मेरे मन के मंदिर में बस केवल माँ की मूरत है
माँ सरस्‍वती, लक्ष्‍मी, दुर्गा, अनुसूया, मरियम, सीता है
माँ पावनता में रामचरितमानस् है भगवद्गीता है
अम्‍मा तेरी हर बात मुझे वरदान से बढ़कर लगती है
हे माँ तेरी सूरत मुझको भगवान से बढ़कर लगती है
सारे तीरथ के पुण्‍य जहाँ, मैं उन चरणों में लेटा हूँ
जिनके कोई सन्‍तान नहीं, मैं उन माँओं का बेटा हूँ
हर घर में माँ की पूजा हो ऐसा संकल्‍प उठाता हूँ
मैं दुनिया की हर माँ के चरणों में ये शीश झुकाता हूँ

सोमवार, 3 जनवरी 2022

भारत में बैठे विदेशी एजेंट और उनके टट्टू अभी हाल ही में R माधवन की जनेऊ वाली फ़ोटो देखकर माधवन को यूँही ट्रोल नहीं कर रहे थे

#नम्बी_नारायणन देश के एक ऐसे इंटेलीजेंट साइंटिस्ट रहें...,

जिन्होंने ISRO को NASA के समकक्ष ला खड़ा किया था
मूल रूप से तमिलनाडु के लेकिन जन्म से केरल के नम्बी नारायणन क्रायोजेनिक तकनीक पर काम कर रहे थे..., क्रायोजेनिक तकनीक कम तापमान में सैटेलाइट इंजन के काम करने से संबंधित तकनीक थी,
जिसके अभाव के चलते भारत स्पेस में सैटेलाइट भेजने में दिक्कतें फेस कर रहा था।

भारत पहले इस तकनीक के लिए कभी रूस तो कभी अमेरिका तो कभी फ्रांस के आगे झोली फैला रहा था लेकिन अमेरिका जो उस समय पाकिस्तान का मित्र और भारत का कथित तौर पर शत्रु था
उसनें साफ मना कर दिया, रूस उस समय इतना शक्तिशाली नहीं रह गया था क्योंकि विघटन हो चुका था तो अमेरिका की धमकी के आगे फ्रांस और उसनें भी भारत को यह तकनीक देने से मना कर दिया...।

लेकिन नम्बी नारायणन भी अपनी ज़िद के पक्के थे, उन्होंने अमेरिका को आंखें दिखाते हुए यह निश्चय किया। कि अब इस तकनीक को भारत अपने बल पर विकसित करेगा और वे अपनी टीम के साथ जुट गए...,

जब यह काम अपने पीक पर था और तकनीक लगभग विकसित होने वाली थी....तभी अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी CIA ने भारत में बैठे अपने भाड़े के टट्टुओं की सहायता से नम्बी नारायणन को देशद्रोह के फ़र्ज़ी आरोप में फंसवा दिया और जेल भेज दिया।

जी हाँ केरल पुलिस ने दो M महिलाओं को गिरफ़्तार किया जिन पर पाकिस्तान की जासूस होने का आरोप था और उन्होंने अपने साथ नम्बी नारायणन को भी लपेटे में ले लिया ये कहते हुए कि नम्बी नारायणन ने क्रायोजेनिक तकनीक के ड्रॉइंग्स हमें दिए और हमनें वे ड्रॉइंग्स पाकिस्तान पहुँचा दिए...,

नम्बी नारायणन लाख कहते रहे मैं निर्दोष हूँ..,
मैंने ऐसा कुछ नहीं किया लेकिन न तो केरल पुलिस न केरल की कम्युनिस्ट सरकारें और ना भारत सरकार किसी ने उनकी एक न सुनी...सुनते कैसे..?
उन्हें फाँसने के लिए ही तो ये षड्यंत्र रचा गया था,

केस में फँसते ही ISRO के उनके साथियों और समाज के एक वर्ग ने भी उनका बहिष्कार कर दिया,
ऑटो वाले उनके परिवार को ऑटो में नहीं बिठाते थे, मंदिर का पुजारी उनके परिवार वालों को प्रसाद नहीं देता ऐसी विकट स्थिति आई कि नम्बी एक बार आत्महत्या करने तक का मन बना चुके थे, लेकिन उनके परिवार के आग्रह पर उन्होंने केस लड़ना ज़ारी रखा ताकि माथे पर लगा गद्दार और देशद्रोही का कलंक मिटा सकें।

और यह हुआ भी, सेशन कोर्ट, हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बारी बारी न केवल निर्दोष पाया बल्कि बाइज़्ज़त बरी भी किया।

लेकिन 1994 से लेकर सितंबर 2018 जब वे एक बार पुनः निर्दोष और निष्कलंक साबित हुए इन 25 सालों में भारत और नम्बी नारायणन ने क्या कुछ खोया उसकी पीड़ा केवल और केवल नम्बी ही समझ सकते हैं,
जिस पर ना तो देश के किसी इंटेलेक्चुअल ने चिंता जताई, ना किसी मीडिया में डिबेट हुआ ना कथित बुद्धिजीवियों ने दो शब्द कहे..,

क्योंकि वो कोई पहलू खान या अख़लाक़ थोड़े थे,
वे देश के महान वैज्ञानिक थे और भारत को ऐसी तकनीक देने वाले थे जिससे भारत अमेरिका को टक्कर देने जा रहा था, ख़ैर भारत इस दौरान न केवल स्पेस तकनीक में विकसित राष्ट्रों से पिछड़ गया बल्कि उसे भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा।

एक और मज़ेदार बात बताता हूँ कि भारत में बैठे विदेशी एजेंट और उनके टट्टू अभी हाल ही में R माधवन की जनेऊ वाली फ़ोटो देखकर माधवन को यूँही ट्रोल नहीं कर रहे थे..., दरअसल वे माधवन की आड़ में नम्बी को टारगेट कर रहे थे जिनकी जीवनी पर माधवन बहुत जल्द फ़िल्म लेकर आ रहे हैं...,

ज्ञात हो कि नम्बी नारायणन ने अपनी आत्मकथा में इस पूरे घटना क्रम और पीड़ा को विस्तार से बताया है।

रविवार, 2 जनवरी 2022

आधारकार्ड से वोटर कार्ड को जोड़ के मोदी जी ने विपक्ष को नोटबन्दी से भी गहरी चोट लगेगी

*आधार कार्ड*
   🇮🇳🇮🇳🇮🇳

हमारा आधार कार्ड मोबाइल नंबर से जुड़ा हुआ है
हमारा आधार कार्ड बैंक एकाउंट से जुड़ा हुआ है

हमारा आधार कार्ड रेलवे के टिकट बुक करने वाली IRCTC की वेबसाइट पर पहचान पत्र के रूप में जुड़ा हुआ है 
हमारा आधार कार्ड हवाई टिकट से जुड़ा हुआ है

हमारा आधार कार्ड राशन कार्ड से जुड़ा हुआ है
हमारा आधार कार्ड जीवन बीमा LIC मेडिकल कार्ड से जुड़ा हुआ है

हमारा आधार कार्ड टीकाकरण सर्टिफिकेट से जुड़ा हुआ है
हमारा आधार कार्ड PAN कार्ड से जुड़ा हुआ है

रसोई गैस सिलिंडर से जुड़ा हुआ है
बिजली पानी के कनेक्शन से.. उसके बिल से जुड़ा हुआ है

हमारा आधार कार्ड बाइक मोटर साइकिल स्कूटर कार या जिस गाड़ी ऑटो ट्रक बस के हम मालिक हैं
उससे जुड़ा हुआ है..
उसके फाइनेंस के कागजों से जुड़ा हुआ है

हमारा आधार कार्ड हमारी गाड़ी की RC 
हमारे ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़ा हुआ है 

और तो और..
हमारा आधार कार्ड फेसबुक ट्विट्टर मैट्रिमोनियल साइट्स के वेरिफाइड प्रोफाइल और एकाउंट तक से जुड़ा हुआ है

हमारा आधार कार्ड बच्चों के स्कूल में.. उनकी क्लास की मैडम के रजिस्टर तक में चढ़ा हुआ है
😀😀😀😀

*इतनी सारी चीजों से जुड़े होने पर भी किसी की निजता का हनन नहीं होता*
*प्राइवेसी को खतरा नहीं होता*

विपक्ष को भी इतनी सारी चीजों से आधार कार्ड जुड़ा हो तो कोई दिक्कत नहीं है

*बस आधार कार्ड अगर वोटर आई कार्ड से जुड़ जाय तो इनको यह निजता पर खतरा दिखाई देता है*

वाह क्या कहने..
कितना बड़ा ढोंग है यह
सोचिए जरा..!!

*सच तो यह है कि खान्ग्रेस सहित इसके काले धन से पैदा की हुई पार्टियां हर राज्य में किराए के वोटर पैदा किये पड़ी हैं*

आज गोवा में चुनाव हो तो बंगाल से लाखों फर्जी वोटर उधर ठेल दिए जाते हैं
बिल्कुल आधार कार्ड ..वोटर कार्ड के साथ ..सौ प्रतिशत सही कागजों के साथ

*दिल्ली में चुनाव होता है..*
*दूसरे राज्यों से ..अगल बगल युप्पी से हरियाणा से.. दिल्ली की हर विधानसभा में 2000 वोटर आधार कार्ड और वोटर आइडेंटिटी कार्ड सहित भेज दिए जाते हैं*

आज हर विधानसभा चुनाव में ये भाड़े के वोटर ही जीत हार तय कर रहे हैं
जहाँ हार जीत हजार पंद्रह सौ वोट से तय हो रही है

*विपक्ष क्यों बिलबिला रहा है*
*अब आप समझ गए होंगे*

ये मोदी जी ने भी ना..
चौंका दिया बिल्कुल..

*आधारकार्ड से वोटर कार्ड को जोड़ के मोदी जी ने विपक्ष को..*
*नोटबन्दी से भी गहरी चोट लगेगी.....!*

#ModiMatters 🤔

आखिर RSS की स्थापना क्यों हुई.?

RSS संस्था क्यों बनी* 
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आखिर RSS की स्थापना क्यों हुई.? इस प्रश्न का उत्तर पूरा पढ़िए.. 

संसद में मोदी जी ने हामिद मियां पर तंज कसते हुए कहा था कि आपके परिवार के लोगों ने खिलाफत आंदोलन में भाग लिया था, जिस पर हामिद मियां खींसे निपोरते रह गए !

*तो क्या था यह खिलाफत आंदोलन?* जिसे सुनते ही हामिद मियां और कांग्रेस असहज हो उठी? जानने के लिए पूरी पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़ें।

खिलाफत जानने से पहले आइए पहले जरा खलीफा को जान लें।

खलीफा एक अरबी शब्द है, जिसे अंग्रेज़ी में Caliph (खलीफ) या अरबी भाषा मे Khalifah (खलीफा) कहा जाता है।

*तो कौन होता है खलीफा?*

खलीफा मुसलमानों का वह धार्मिक शासक (सुल्तान) होता है जिसे मुसलमान मुहम्मद साहब का वारिस या successor मानते हैं।

खलीफा का काम होता है युद्ध कर के पूरे विश्व पर इस्लाम का निज़ाम कायम करना (जो कश्मीर में बुरहान वानी करना चाहता था)।

यानी इस्लाम की ऐसी हुकूमत कायम करना जिसमे इस्लामिक यानी शरीया कानून चले और जिसमे इस्लाम के अलावा किसी और धर्म की इजाज़त नही होती है।

जितने हिस्से या राज्य पर खलीफा राज करता है उसे Caliphate यानी अरबी भाषा में Khilafa (खिलाफा) कहते हैं।

*खलीफा* यानी इस्लामिक सुल्तान और *खिलाफा* यानी इस्लामिक राज्य ।

1919-22 के दौरान Turkey यानी तुर्की में *ओटोमन वंश* के आखिरी सुन्नी खलीफा *अब्दुल हमीद-2* का खिलाफा यानी शासन चल रहा था जो कि जल्दी ही धराशाई होने वाला था। 

इस आखिरी इस्लामिक खिलाफा (शासन) को बचाने के लिए अब्दुल हमीद-2 ने *जिहाद का आवाहन* किया ताकि विश्व के मुसलमान एक हो कर इस आखिरी खिलाफा यानी इस्लामिक शासन को बचाने आगे आएं।

पूरे विश्व मे इसकी कोई प्रतिक्रिया नही हुई सिवाए भारत के। भारत के अलावा एशिया का कोई भी दूसरा देश इस मुहिम का हिस्सा नही बना। 

लेकिन भारत के कुछ मुट्ठी भर मुसलमान इस मुहिम से जुड़ गए और हजारों किलोमीटर दूर , सात समंदर पार *तुर्की के खिलाफा यानी इस्लामिक शासन* को बचाने और अंग्रेज़ों पर दबाव बनाने निकल पड़े, जबकि इस समय भारत खुद गुलाम था और अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था।

लेकिन अंतः 1922 में तुर्की से सुलतान के इस्लामिक शासन को उखाड़ फेंका गया और वहाँ सेक्युलर लोकतंत्र राज्य की स्थापना हुई और कट्टर मुसलमानों का पूरे विश्व पर राज करने का सपना टूट गया, इसी सपने को संजोए आजकल ISIS काम कर रहा है ।

भारत के चंद मुसलमानों ने अंग्रेज़ी हुकूमत पर दबाव बनाने के लिए बाकायदा एक आंदोलन खड़ा किया , जिसका नाम था खिलाफा आंदोलन (Caliphate movement)

अब क्योंकि अंग्रेज़ी में लिखे जाने पर इसका हिन्दी उच्चारण खलिफत होता है (अरबी में caliphate को khilafa=खिलाफा लिखते है, 

तो *कांग्रेस ने बड़ी ही चतुराई से इसका नाम खिलाफत आंदोलन रख दिया* ताकि देश की जनता को मूर्ख बनाया जा सके और लोगों को लगे कि यह खिलाफत आंदोलन अंग्रेज़ो के खिलाफ है।

जबकि इसका असल मकसद *purely religious* यानी पूर्णतः धार्मिक था, इसका भारत की आज़ादी या उसके आंदोलन से कोई लेना देना नही था।

 *कुछ समझ मे आया?*

कैसे शब्दों की बाज़ीगरी से जनता को मूर्ख बनाया जा रहा था।

कैसे खलिफत को खिलाफत बताया जा रहा था, (ठीक वैसे ही जैसे Feroze Khan Ghandi (घांदी) को Feroze Gandhi (फ़िरोज़ गांधी) बना दिया गया) ।

उस समय भारत मे इतने पढ़े लिखे लोग और नेता नही थे कि गांधी-नेहरू की इस चाल को समझ सकें।

लेकिन इन सब के बीच कांग्रेस में एक पढ़ा लिखा व्यक्तित्व उपस्थित था, जिनका नाम था *डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार* था ! 

इन्होंने  इस आंदोलन का जम कर विरोध किया , क्योंकि खिलाफा सिर्फ तुर्की तक सीमित नही रहना था, इसका उद्देश्य तो पूरे विश्व पर इस्लाम की हुकूमत कायम करना था जिसमे गज़वा-ए-हिन्द यानी भारत भी शामिल था !

डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस के गांधी और नेहरू को बहुत समझने की कोशिश की , लेकिन वे नही माने, *अंतः डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस के इस खिलाफत आंदोलन का विरोध किया* और कांग्रेस छोड़ दी !

तो अब समझ मे आया मित्रों की कांग्रेसी जो कहते हैं कि RSS ने आज़ादी के आंदोलन का विरोध किया था, तो वो असल मे किस आंदोलन का विरोध था? आप डॉ हेगड़ेवार के स्थान पर होते तो क्या करते? 

क्या आप भारत को गज़वा-ए-हिन्द यानी इस्लामिक देश बनते देखते? या फिर डॉ साहब की भांति इसका विरोध करते?

*1919 में खिलाफत आंदोलन* शुरू हुआ था और 1920 में डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस छोड़ दी और सभी को इस आंदोलन के बारे में जागरूक किया कि इस आंदोलन का भारत की स्वतंत्रता से कोई लेना देना नही है और यह *एक इस्लामिक आंदोलन है !*

जिसका परिणाम यह हुआ कि यह आंदोलन बुरी तरह फ्लॉप हुआ ! और 1922 में अंतिम इस्लामिक हुकूमत धराशाई हो गयी !

मुस्लिम नेता इस से बौखला गए और मन ही मन *हिन्दुओ और संघ  को अपना शत्रु मानने लगे* और इसका बदला उन्होंने 1922-23 में केरल के मालाबार में हिन्दुओ पर हमला कर के लिया ! 

और असहाय अनभिज्ञ *हिन्दुओ को बेरहमी से काटा गया*, हिन्दू लड़कियों की इज़्ज़त लूटी गई, जबकि इस आंदोलन का भारत या उसके पड़ोसी देशों तक से कोई लेना देना नही था ।

*1923 के दंगों में गांधी ने* हिन्दुओ को ही दोषी ठहराते हुए हिन्दुओ को कायर और बुजदिल कहा था, गांधी ने कहा हिन्दू अपनी कायरता के लिए मुसलमानों को दोषी ठहरा रहे हैं। 

अगर हिन्दू अपने जान माल की सुरक्षा नही कर सकता, तो इसमें मुसलमानों का क्या दोष? 

*हिन्दुओ की औरतों की इज़्ज़त लूटी जाती है* तो इसमें हिन्दू दोषी है, कहां थे उसके रिश्तेदार जब उस लड़की की इज़्ज़त लूटी जा रही थी? 

कुलमिला कर गांधी ने सारा दोष दंगा प्रभावित हिन्दुओ पर मढ़ दिया और कहा कि उन्हें हिन्दू होने पर शर्म आती है, जब हिन्दू कायर होगा तो मुसलमान उस पर अत्याचार करेगा ही ।

डॉ हेगड़ेवार को अब समझ आ चुका था कि सत्ता के भूखे भेड़िये, भारत की जनता की बलि देने से नही चूकेंगे।

इसलिए उन्होंने हिन्दुओ की रक्षा और उनको एकजुट करने के उद्देश्य से तत्काल *एक नया संगठन* बनाने का काम प्रारंभ कर दिया और अंततः 1925 में संघ *(RSS)*  की स्थापना हुई ! 

आज अगर हम होली और दीवाली मानते हैं, आज अगर हम हिन्दू हैं , तो केवल उसी खिलाफत आंदोलन के विरोध और *संघ की स्थापना की कारण*, अन्यथा तो जाने कब का *गज़वा-ए-हिन्द* बन चुका होता ।

13 साल के बच्चे का यौन उत्पीड़न करने के दोषी पादरी को विशेष को उम्रकैद

*🚩इस खबर पर मीडिया ने न डिबेट की और न ही ब्रेकिंग न्यूज चलाई, छुपाने के पैसे मिले क्या?*

*02 जनवरी 2022*
azaadbharat.org

*🚩इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो अथवा प्रिंट मीडिया उसपर कई बुद्धिजीवी लोगों ने आरोप लगाया है कि कोई पेड खबर चलाने के जितने पैसे लेते हैं उससे ज्यादा पैसे कोई खास खबर छुपाने के पैसे भी लेते हैं।*

*🚩अक्सर देखा गया है कि जभी किसी साधु-संत पर षड्यंत्र के तहत कोई झूठा आरोप भी लगता है तो मीडिया महीनों तक प्राइम टाइम में ब्रेकिंग न्यूज़ व डिबेट चलाती है, उदाहरण के लिए- शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वतीजी और संत आशारामजी बापू; उनके खिलाफ कई महीनों तक झूठी खबरें दिखाई, अन्य और भी साधु/संतों के प्रति ऐसे ही खबर चलाते हैं लेकिन किसी पादरी अथवा मौलवी पर अपराध सिद्ध भी हो जाये तो भी कोई खबर नहीं दिखाई जाती है। इससे साफ होता है कि मीडिया झूठी खबरें चलाने व कई वास्तविक खबरें छुपाने के भी पैसे लेती होगी।*

*🚩इस खबर पर मीडिया मौन रही...*
*👉मुंबई के उपनगरीय क्षेत्र दादर में 2015 में 13 साल के बच्चे का यौन उत्पीड़न करने के दोषी पादरी को विशेष अदालत ने बुधवार को उम्रकैद की सजा सुनाई।*

*👉विशेष न्यायाधीश सीमा जाधव ने आरोपी पादरी जॉनसन लॉरेंस को यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) कानून के संबंधित प्रावधानों के तहत दोषी पाया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, अगस्त से नवंबर 2015 के बीच पादरी ने दो बार नाबालिग बच्चे का यौन उत्पीड़न किया।*

*👉पुलिस को दिए गए बयान में किशोर ने बताया कि वह 27 नवंबर, 2015 को अपने भाई के साथ दादर के शिवाजी नगर इलाके में स्थित चर्च गया था। प्रार्थना के बाद आरोपी ने एक बक्सा रखने के लिए पीड़ित को अंदर बुलाया और दरवाजा बंद करके उसका यौन उत्पीड़न किया।*

*👉बच्चे ने आरोप लगाया कि पादरी ने कुछ महीने पहले भी उसके साथ ऐसा ही किया था। पीड़ित बच्चे ने मजिस्ट्रेट के समक्ष भी यही बयान दिया। विशेष लोक अभियोजक वीणा शेलार ने बताया कि इस मुकदमे में कम से कम नौ लोगों की गवाही हुई।*
https://twitter.com/ANI/status/1476456374385078274?t=v5rGAtMX_ZvUPJ3lihZeaA&s=19

*🚩सेक्युलर, बुद्धिजीवी और मीडिया के अधिकांश हिस्से हिन्दू धर्म के पवित्र मंदिरों, आश्रमों व साधु-संतों पर षड्यंत्र के तहत कोई आरोप भी लगा दे तो खूब बदनाम करते हैं, परंतु दुनियाभर में पादरी बच्चों का शोषण करते हैं फिर भी इन ईसाई पादरियों के दुष्कर्मों पर चुप रहते हैं। क्या उन्हें वेटिकन सिटी से भारी फंडिंग मिलती है?*

*🚩भारत में साधु-संत देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं। उनको साजिश के तहत झूठे केस में जेल भेजा जाता है और मीडिया द्वारा पेड न्यूज एवं डिबेट दिखाकर तथा "आश्रम" जैसी फिल्में बनाकर उनको बदनाम किया जाता है। वहीं दूसरी ओर कई मौलवी व ईसाई पादरी मासूम बच्चे-बच्चियों और ननों के साथ रेप करते हैं, उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं फिर भी बिकाऊ मीडिया और प्रकाश झा जैसे बिकाऊ निर्देशक इसको देखकर आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं क्योंकि इनको पवित्र हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने के पैसे मिलते है और हिंदू सहिष्णु हैं तो इन षड्यंत्रों को सहन कर लेते हैं।*

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