यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 9 अक्टूबर 2022

शरद पूर्णिमा की रात - नाभि दर्शना अप्सरा साधना

 

नाभि दर्शना अप्सरा साधना बेहद आसान है. इसलिए इसे करने के लिए अधिकतर लोग लालायित रहते हैं. आपने कई ऐसी नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र सिद्धि के बारे सुना होगा जो आसानी से सिद्ध हो जाती है और साधक की हर इच्छा को पूरा करती है.

मुख्य रूप से इस तरह की साधना का उदेश्य समृद्धि और यश पाना होता है.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि काफी आसान भी होती है और लम्बे समय तक चलने वाली साधना भी ये आप पर निर्भर है की आप कौनसी साधना करना चाहते है. अप्सरा सिद्धि के बाद कभी भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देती है. ये आपको अपने होने का अहसास करवाती है.

आप नाभि दर्शना अप्सरा की साधना के पूर्ण होने के बाद अप्सरा का अहसास अपने आसपास कर सकते है क्यों की ये जहाँ भी होती है वहां का माहौल सुगंधमय हो जाता है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के दौरान सबसे बड़ी मुश्किल होती है नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र की स्थापना की अगर नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र आपके पास ना हो तो आप अष्टदल पद्म के ऊपर चावल की ढेरी बनाकर उसके ऊपर सुपारी रखकर उस शक्ति का आवाहन कर सकते हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र

नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र में 21 माला का विधान है. एक दिवसीय साधना होने की वजह से ये साधना जितनी आसान लगती है उससे कही ज्यादा खतरनाक इसके दुष्प्रभाव है. अप्सरा साधना के बाद साधक को जो अलौकिक रहस्यों की समझ होती है वो उसके Third eye activation की वजह से होती है.

पारलौकिक जगत के रहस्य को देखने के बाद साधक मानसिक संतुलन रख पाता है या नहीं ये उसके मस्तिष्क की स्थिरता पर निर्भर करता है. अगर आप इस तरह की साधना कर रहे है तो सावधान रहे क्यों की आसान दिखने वाली साधनाओ के अपने खतरे होते है.

एक शब्द में कहे तो ये एक दिवसीय साधना है और जो साधक ये साधना कर लेता है उसे सुख, यौवन की प्राप्ति हो जाती है. जब कोई साधक शुरुआती स्तर पर होता है और उसे अप्सरा सिद्धि हो जाती है तो वो अपना जीवन खुशियों से भर सकता है.

अप्सरा साधना सिद्धि बेहद आसान है लेकिन, ये साधक के स्थिर चित पर निर्भर करती है की उसे अप्सरा की प्राप्ति होती है या नहीं.

ऐसा माना जाता है की अप्सरा साधना करने के बाद साधक का जीवन वासना से परे हो जाता है और वो भोग से ऊपर उठकर साधना में आगे बढ़ना शुरू कर देता है. यहाँ शेयर किया गया नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र एक दिवसीय साधना का भाग है.

अगर आप अप्सरा साधना विधि विधान के साथ पूरा करना चाहते है तो इस साधना से शरूआत करे. आपको अलौकिक रहस्यों के अनुभव भी होंगे और साधना मार्ग में आगे बढ़ने का मौका भी मिलेगा.

कौन हैं अप्सरा?

अप्सराओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह निश्चित तथ्य है कि समुद्र-मंथन में पहले रम्भा अप्सरा की उत्पत्ति हुई, और उसके पश्चात् अमृत घट और तत्काल पश्चात् भगवती लक्ष्मी प्रकट हुईं, इसलिए अप्सराओं का महत्व अन्य रत्नों की अपेक्षा अत्यधिक है.

रूप, रस और जल तत्व प्रधान होने के कारण ही इनका नाम अप्सरा पड़ा और इनके गुण देवताओं के गुणों के समान ही पूर्ण रूप से प्रभावशाली हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना को पूरा करने वाले साधक में अलौकिक रहस्यों को समझने की समझ जाती है.

 

ये भी कहा जाता है कि इन्द्र ने 108 ॠचाओं की रचना करके इन अप्सराओं को प्रकट किया. रम्भा के अलावा जिन अन्य अप्सराओं का वेदों और पुराणों में जिक्र आता है, उनके नाम हैं उर्वशी, मेनका, और तिलोत्तमा. नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की उत्पति भी इसी समय हुई थी.

साधना-पथ में साधक अपने मन पर नियंत्रण चाहता है जिससे कि वह अपने अंतर्मन में उतर कर मनन कर सके, पर मन में तो कामनाएं बसती हैं और वे मूलतः प्रेम-जनित होती हैं. अब हृदय अर्थात् उर में जो बस जाती है, उसे उर्वशी कहते हैं और उर्वशी तो हम सबके मन में है.

उर्वशी-जनित भाव के कारण ही तो प्रेम की तरंगें मन में उठती हैं और प्रीत में किसी प्रकार की बंदिश नहीं होती.

शरद पूर्णिमा की रात जब आसमान से चांदनी की शीतल किरणें भी प्रेम में संतप्त युगलों को दग्ध कर देती हैं, उस रात्रि में नाभि दर्शना अप्सरा साधकों के आह्वान पर सुरपुर से धरती पर आती है.

ब्रह्म साधना से भी आवश्यक और उसे करने से पूर्व अप्सरा साधना साधक को करनी चाहिए.

नाभि दर्शना अप्सरा की साधना

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र को सिद्ध करने के पीछे कई रहस्य है. सौन्दर्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति, वय में षोडशी और कोमलता से लबालब कमनीय शरीर जो अपने यौवन से इतराया और प्रेम से सिंचित है. प्रतिपल भीनी खुशबू में नहाया तन नाभि-दर्शना के आने की सूचना देता है.

इस अप्सरा की काली और लम्बी आंखें, लहराते हुए झरने की तरह केश और चन्द्रमा की तरह मुस्कुराता हुआ चेहरा, कमल नाल की तरह लम्बी बांहें और सुन्दरता से लिपटा हुआ पूरा शरीर एक अजीब सी मादकता बिखेर देता है.

इन्हें इन्द्र का वरदान प्राप्त है कि जो इसके सम्पर्क में आता है, वह पुरुष पूर्ण रूप से रोगों से मुक्त होकर चिर यौवनमय बन जाता है, उनके शरीर का कायाकल्प हो जाता है, और पौरुष की दृष्टि से वह अत्यन्त प्रभावशाली बन जाता है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना विधान

इस साधना को आप शरद पूर्णिमा, रमा एकादशी, रूप चतुर्दशी अथवा किसी भी शुक्रवार को सम्पन्न करें.

यह रात्रिकालीन साधना है, इस साधना को रात्रि में 10 बजे के पश्चात् सम्पन्न करना चाहिये.

नाभिअप्सरा साधना साधक अपने घर में या किसी भी अन्य स्थान पर एकांत में सम्पन्न कर सकता है.

इस साधना में बैठने से पूर्व साधक स्नान कर सुन्दर, सुसज्जित वस्त्र पहनें एवं अपने वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र का छिड़काव करें.

साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठें.

इस साधना में सुगन्धित पुष्पों का प्रयोग करना चाहिये. साधक साधना से पहले ही दो सुगन्धित पुष्पों की माला की व्यवस्था कर लें.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की शुरुआत में सर्वप्रथम अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरुचित्र स्थापित कर, पंचोपचार गुरु पूजन सम्पन्न करें. गुरुदेव से साधना में सफलता का आशीर्वाद प्राप्त कर, मूल साधना सम्पन्न करें

बाजोट पर एक ताम्र पात्र में अद्वितीयनाभि दर्शना महायंत्रको स्थापित करें. केशर से यंत्र पर तिलक कर यंत्र का सुगन्धित पुष्पों, इत्र, कुंकुम इत्यादि से पूजन करें. यंत्र के सामने सुगन्धित अगरबत्ती एवं शुद्ध घृत का दीपक लगावें.

इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक नाम, अमुक पिता का पुत्र, अमुक गौत्र का साधक नाभि दर्शना अप्सरा को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह सुख आनन्द एवं ऐश्वर्य प्रदान करे.

इसके बादनाभि दर्शना अप्सरा मालासे नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप सम्पन्न करें, इसमें 21 माला नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न हो जाना चाहिए.

ऐं श्रीं नाभिदर्शना अप्सरा प्रत्यक्षं श्रीं ऐं फट्॥

अगर बीच में घुंघरूओं की आवाज आवे या किसी का स्पर्श हो, तो साधक विचलित हों और अपना ध्यान हटावें, अपितु 21 माला मंत्र जप एकाग्रचित्त होकर सम्पन्न करें, इस साधना में जितनी ही ज्यादा एकाग्रता होगी, उतनी ही ज्यादा सफलता मिलेगी.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के 21 माला मंत्र जप पूरी एकाग्रता के साथ सम्पन्न करने के पश्चात् अप्सरा माला को साधक स्वयं के गले में डाल दें. तथा सुगन्धित पुष्पों की एक माला को यंत्र पर चढ़ा दे तथा दूसरी माला भी स्वयं के गले में डाल दें.

साधना में सिद्धि के संकेत

मंत्र जप की पूर्णता पर साधक को यह आभास या प्रत्य होने लगता है कि अप्सरा घुटने से घुटना सटाकर बैठी है. जब साधक को यह आभास या प्रत्य हो जाएं तो साधक नाभि दर्शना अप्सरा से वचन ले लें कि मैं जब भी अप्सरा माला से एक मंत्र जप करूं, तब तुम्हें मेरे सामने उपस्थित होना है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के दौरान मैं जो चाहूं वह मुझे प्राप्त होना चाहिए, पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा का उल्लंघन हो.

तब नाभि दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर अपना हाथ रखकर वचन देती है, कि मैं जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी. तब इस साधना को पूर्ण समझें, और साधक अप्सरा के जाने के बाद अपने साधना स्थल से उठ खड़ा हो.

साधक को चाहिए कि वह इस घटना को केवल अपने गुरु के अलावा और किसी के सामने स्पष्ट करें, क्योंकि साधना ग्रन्थों में ऐसा ही स्पष्ट उल्लेख आया है.

साधना सम्पन्न होने पर नाभि दर्शना अप्सरा महायंत्र को अपने घर में किसी गोपनीय स्थान पर रख दें, जो गले में अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख दें, जिससे कि कोई दूसरा उसका उपयोग कर सके.

apsara sadhna ke nuksan

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र में सफलता के बाद जब भी नाभिदर्शना अप्सरा को बुलाने की इच्छा हो, तब इस महायंत्र के सामने अप्सरा माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला जप कर लें. अभ्यास होने के बाद तो यंत्र या माला की आवश्यकता भी नहीं होती, केवल मात्र सौ बार मंत्र उच्चारण करने पर ही प्रत्य प्रकट हो जाती हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना मंत्र को स्त्रियां भी सिद्ध कर सकती हैं, नाभि दर्शना अप्सरा के रूप में उन्हें अभिन्न सखी प्राप्त हो जाती है, और उस सखी के साहचर्य से साधिका के शरीर का भी कायाकल्प हो जाता है, और ऐसी साधिका अत्यन्त सुन्दर, यौवनमय और सम्मोहक बन जाती हैं.

वास्तव में ही यह साधना बालक या वृद्ध किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति या स्त्री सम्पन्न कर सकते हैं, और यदि विश्वास एवं श्रद्धा के साथ इस साधना को सम्पन्न करें, तो अवश्य ही पूर्ण सफलता मिलती है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान अंतिम शब्द

अगर आप अप्सरा साधना में रूचि रखते है तो आपको सबसे आसान और एक दिवसीय नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के विधान को जरुर पूरा करना चाहिए. कलयुग में जहाँ सात्विक साधना को सिद्ध करना बेहद मुश्किल है वही अप्सरा और यक्षिणी साधना को सिद्ध करना बेहद आसान है.

ये दोनों ही शक्तियां पृथ्वी के वायुमंडल में सबसे करीब है. अगर आप नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि को फॉलो करे तो आपको अप्सरा सिद्धि हो सकती है. ध्यान रहे की गुरु के बगैर ये साधना कर रहे है तो अपने विवेक और चित को स्थिर रखे.

कई बार हम जोश जोश में साधना की शुरुआत तो कर लेते है लेकिन, आगे बढ़ने पर जैसे ही हमें अलौकिक रहस्यों के दर्शन होने लगते है हम अपना विवेक खो देते है. ऐसे में ये साधना खतरनाक हो सकती है.

 

लुप्त होती कला और परंपरा* *संझा तू थारे घर जा .. थारी बई मारेगा

*लुप्त होती कला और परंपरा*     *संझा तू थारे घर जा ..  थारी बई मारेगा ...  कुटेगा ....डेरी में ड़चोकेगा* और वास्तव में *संझा* अपने घर चली गई।

क्यो ना आज *संझा* के एक एक गीत हो जाए और अपने *बचपन* की यादें ताजा की जाए 
😊😊 *संझा* को देखकर अपना *बचपन याद* आ जाता है। कल से *श्राद्ध पक्ष* की शुरुआत हो रहा हैं...*श्राद्ध* के यह *सोलह दिन मालवांचल* की *बालिकाओं* के लिए बड़े मस्ती भरे होते है... दुर्भाग्य बस इतना है कि हम *अच्छी शिक्षा* के नाम पर अपनी *परम्पराओ* को खोते जा रहे है..

*संझा गीत बाल कविताएं हैं*  इनके अर्थ और भाव के बजाय *अटपटे ध्वनि प्रधान* शब्द और *गाने वालों* की मस्ती भरी सपाट शैली आकर्षित करती है । 
कुछ गीतों को बरसों-बरस से दोहराने से शब्द घिस कर नये रूप पा गए - कहीं अर्थहीन हैं या अन्य अर्थ देते हैं किन्तु बच्चों को इस सबसे क्या ?               
उनका *उत्सव* तो *गोबर* से बनाएं भित्ति चित्रों की *रचनात्मकता , गीतों की अल्हड़ - अलबेली ध्वनियों* से है ।

*तालियों और कन्या-कंठों से संध्या* समय नये *कलरव* से भर जाता है । बच्चे हर घर जा जा कर इन गीतों को दोहराते हैं और *संझा माता* का *प्रसाद हर घर , हर दिन नया* ..बड़े गोपनीय ढंग से प्रसाद पर कपड़ा ढक कर लायेगी बिटिया और पूछेगी - ताड़ो ? 
मतलब, बताओ इसमें क्या है ? 
सब *हिला - डुला कर देखेंगे सूंघेंगे*, यदि फिर भी न बता पाये तो *लाइफ लाइन - कौन सी परी ? मीठी परी, चरकी परी, खट्टी परी ????*
*बड़ा हो हुल्लड़ श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन चलता है । शाम ढलते ही गोबर लाओ, दीवार लीपो, कोट -कंगूरे, पालकी, पलना, सीढ़ी, चांद-सूरज, फूल-पत्ते, घोड़ा बारात, गनपति* .. जाने कितने तरह के *चित्र रोज हर घर* की बाहरी *दीवार* पर बनते हैं । इन चित्रों को *गुलबास , कनेर , गुड़हल के फूलों* से सजाती हैं *बालिकाएं* । कभी *रंगीन चमकीले , कागजों* से भी । किसकी *संझा* सुन्दर हो ,यह होड़ भी है । हर घर के *आंगन* में अनौपचारिक उत्सव के मजे लेते बच्चे .. *संझा* का असली *सौंदर्य* है ।
आओ हम सब मिलकर फिर से अपनी इस *लुप्त होती परम्परा को पुनः प्रारंभ* करें ।

भाद्रपद शुक्ल पंचमी/ ऋषि पंचमी

*ऋषि पंचमी*
===========
*भाद्रपद शुक्ल पंचमी/ ऋषि पंचमी*
=========================
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी पर्व बड़ी श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है तथा पौराणिक कथा अनुसार..... 
सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत  पतिव्रता थी। 

एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था। 

इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए। 
 
जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी। पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी। 

बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया। 

रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया। 

तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया। 

अपने योगबल से सुचित्र ने इन बातों को सुन लिया और जान लिया कि पूर्व जन्म में ये मेरे माता-पिता थे, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो। 

भाद्रपद महीने की शुक्ल पञ्चमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नी सहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पञ्चमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।

शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

जीवन में शीघ्रता से सफलता अर्जित करने वाले एवम जीवन में विलंबता से सफलता पाने वाले लोगों में मुख्यतः क्या अंतर होता है ?

 

चित्र में दो व्यक्ति दिखाए गए हैं

  1. एक बंदूक से बहुत बार गोली मारता है और
  2. दूसरा व्यक्ति एक ही बार निशाना लगाकर अपना काम पूरा करता है

यही अंतर है

  1. जीवन में शीघ्रता से सफलता अर्जित करने वाले एवम
  2. जीवन में विलंबता से सफलता पाने वाले लोगों में

अपनी योग्यता बढ़ाते रहें और भाग्य का सहारा लेते रहें यही सफलता की गारंटी है।

इस उत्तर का मूल स्रोत है शीघ्र सफलता अर्जित करने का नियम कर्म और भाग्य का रास्ता है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस ।

प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।


 प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।




सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।

सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?

महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।

विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।

भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।

श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,

उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।

यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।

राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।

उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे

तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।

वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।

प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।

नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।

उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।

फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।

केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का  रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।

फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।

अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।

अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।

मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।

यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।

मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।

1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।

अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।

इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान,  ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।

योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत  हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।

इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं। कॉपी पेस्ट 

मोदी के बाद अब वही आएगा जो मोदी से भी बड़ा मोदी होगा।

 "हिजड़ों ने भाषण दिए लिंग-बोध पर,
वेश्याओं ने कविता पढ़ी आत्म-शोध पर"।
महिलाओं का दैहिक शोषण करने वाले नेता ने भाषण दिया नारी अस्मिता पर।
भ्रष्ट अधिकारियों ने शुचिता और पारदर्शिता पर उद्बोधन दिया विश्वविद्यालय मैं कभी ना पढ़ाने वाले प्रोफेसर कर्म योग पर व्याख्यान दे रहे हैं।
     असल मे दोष इनका नहीं है।
इस देश की प्रजा प्रधानमंत्री को मंदिर में पूजा करते देखने की आदी नहीं है।

इस देश ने एडविना माउंटबेटन की कमर में हाथ डाल कर नाचते प्रधानमंत्री को देखा है।

इस देश ने
मजारों पर चादर चढ़ाते प्रधानमंत्री को देखा है।
यह जनता प्रधानमंत्री को
पार्टी अध्यक्ष के सामने नतमस्तक होते देखती आयी है। मंदिर में भगवान के समक्ष नतमस्तक प्रधानमंत्री को लोग कैसे सहन करें ?
     
बिहार के एक बिना अखबार के पत्रकार मंदिर से निकल कर सूर्य को प्रणाम करते प्रधानमंत्री का उपहास उड़ा रहे हैं।

एक महान लेखक जिनका सबसे बड़ा प्रशंसक भी उनकी चार किताबों का नाम नहीं जानता,
प्रधानमंत्री के भगवा चादर की आलोचना कर रहे हैं।

एक कवियित्री जो अपनी कविता से अधिक मंच पर चढ़ने के पूर्व सवा घण्टे तक मेकप करने के लिए जानी जाती हैं, प्रधानमंत्री के पहाड़ी परिधान की आलोचना कर रही हैं।

भारत के इतिहास में आलोचना कभी इतनी निर्लज्ज नहीं रही, ना ही बुद्धिजीविता इतनी लज्जाहीन हुई कि
गांधीवाद के स्वघोषित योद्धा भी
बंगाल की हिंसा के लिए ममता बनर्जी का समर्थन करें।

क्या कोई व्यक्ति इतना हताश हो सकता है कि किसी की पूजा की आलोचना करे ?
क्या इस देश का प्रधानमंत्री अपनी आस्था के अनुसार ईश्वर की आराधना भी नहीं कर सकता ?
क्या बनाना चाहते हैं देश को आप ?
सेक्युलरिज्म की यही परिभाषा गढ़ी है आपने ?

एक हिन्दू नेता का टोपी पहनना उतना ही बड़ा ढोंग है, जितना किसी ईसाई का तिलक लगाना।
लेकिन जो लोग इस ढोंग को भी बर्दाश्त कर लेते हैं, उनसे भी
प्रधानमंत्री की शिव आराधना बर्दाश्त नहीं हो रही।

संविधान की प्रस्तावना में वर्णित
"धर्म, आस्था और विश्वास की स्वतंत्रता" का
यही मूल्य है आपकी दृष्टि में ?
      
व्यक्ति विरोध में अंधे हो चुके मूर्खों की यह टुकड़ी चाह कर भी नहीं समझ पा रही कि
मोदी एक व्यक्ति भर हैं,
आज नहीं तो कल हार जाएगा
कल कोई और था,
कल कोई और आएगा।
देश न इंदिरा पर रुका था,
न मोदी पर रुकेगा।
       
समय को इस बूढ़े से जो करवाना था वह करा चुका।
मोदी ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी है।
मोदी ने ईसाई पति की पत्नी से
महाकाल मंदिर में रुद्राभिषेक करवाया है.
मोदी ने मिश्रित DNA वाले इसाई को हिन्दू बाना धारण करने के लिए मजबूर कर दिया है।
मोदी ने ब्राम्हणिक वैदिक के विरोध मे राजनीतिक यात्रा शुरू करनेवाले से शिवार्चन करवाया है। मोदी ने रामभक्तों पर गोली चलवाने वाले के पुत्र से राममंदिर का चक्कर लगवाया है।
हिन्दुओं में हिन्दुत्व की चेतना जगानेवाले

मोदी के बाद
अब वही आएगा
जो मोदी से भी बड़ा मोदी होगा।
       
"मोदी नाम केवलम" का
जाप करने वाले मूर्ख जन्मान्ध विरोधियों, अब मोदी आये न आये, तुम्हारे दिन कभी नहीं आएंगें।

अब ऐसी कोई सरकार नहीं आएगी जो घर बैठा कर मलीदा खिलाये!
.
💐💐 भारत बदल चुका है। 💐💐

🚩सनातन की चेतना जाग चुकी है। 💫
🚩🚩🚩🚩🚩
 कृपया अपने पांच मित्रों से शेयर अवश्य करें धन्यवाद।जय सनातन। जय श्री कृष्ण।

function disabled

Old Post from Sanwariya