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रविवार, 12 मार्च 2023

क्या आप मच्छरदानी लगाकर सोते हैं?

 

हमारे घर में बहुत सारे मच्छर हैं।

लेकिन ये साधारण मच्छर नहीं हैं। स्मार्ट, प्रशिक्षित मच्छर। विश्वास नहीं हो रहा? यह देखो

यह मेरा हाथ है मैं मच्छरदानी के अंदर सो रहा हूं। सोते समय किसी तरह मेरा हाथ मच्छरदानी पर लग गया। और मच्छरदानी के बाहर घंटों इंतजार करने के बाद मच्छर इकट्ठे होकर खाने लगे हैं।

तुम समझते हो, अगर तुम मच्छरदानी में घुस गए, तो तुम इन दिनों नहीं बचोगे। घर भी मच्छरों से मुक्त होना चाहिए।

ऐसे में कहीं मच्छर तो ​​नहीं लटका देते? 😐😐

नोट: मैंने तस्वीर नहीं ली। तस्वीर लेने वाले के मुताबिक और भी कई मच्छर थे जो तस्वीर लेते वक्त उड़ गए।

धन्यवाद

😊🥰😊

ध्यान से स्वस्थ रहें

गुरुवार, 9 मार्च 2023

शब्दों की ताकत


शब्दों की ताकत

एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला। अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला, “अरे छोटू, कहाँ जा रहे हो तुम ?” “मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ !” चीता रोमांचित होते हुए बोला। “हा-हा-हा-, लकड़बग्घा हंसा” अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने के दिन हैं, तुम इतने छोटे हो, तुम्हें शिकार करने का कोई अनुभव भी नहीं है, तुम क्या शिकार करोगे !! लकड़बग्घे की बात सुनकर चीता उदास हो गया।

दिन भर शिकार के लिए वो बेमन इधर-उधर घूमता रहा, कुछ एक प्रयास भी किये पर सफलता नहीं मिली और उसे भूखे पेट ही घर लौटना पड़ा

अगली सुबह वो एक बार फिर शिकार के लिए निकला। कुछ दूर जाने पर उसे एक बूढ़े बन्दर ने देखा और पुछा, “कहाँ जा रहे हो बेटा ?” “बंदर मामा, मैं शिकार पर जा रहा हूँ।” चीता बोला। “बहुत अच्छे” बन्दर बोला, तुम्हारी ताकत और गति के कारण तुम एक बेहद कुशल शिकारी बन सकते हो।

जाओ तुम्हें जल्द ही सफलता मिलेगी। यह सुन चीता उत्साह से भर गया और कुछ ही समय में उसने एक छोटे हिरन का शिकार कर लिया

मित्रों, हमारी ज़िन्दगी में “शब्द” बहुत मायने रखते हैं। दोनों ही दिन चीता तो वही था, उसमें वही फूर्ति और वही ताकत थी पर जिस दिन उसे डिस्करेज किया गया वो असफल हो गया और जिस दिन एनकरेज किया गया वो सफल हो गया।

शिक्षा:-
इस छोटी सी कहानी से हम तीन ज़रूरी बातें सीख सकते हैं :-

पहली, हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने “शब्दों” से किसी को Encourage करें, Discourage नहीं। Of Course, इसका ये मतलब नहीं कि हम उसे उसकी कमियों से अवगत न करायें, या बस झूठ में ही एन्करजे करें।

दूसरी, हम ऐसे लोगों से बचें जो हमेशा निगेटिव सोचते और बोलते हों, और उनका साथ करें जिनका Outlook Positive हो।


तीसरी और सबसे अहम बात, हम खुद से क्या बात करते हैं, Self-Talk में हम कौन से शब्दों का प्रयोग करते हैं इसका सबसे ज्यादा ध्यान रखें, क्योंकि ये “शब्द” बहुत ताकतवर होते हैं, क्योंकि ये “शब्द” ही हमारे विचार बन जाते हैं, और ये विचार ही हमारी ज़िन्दगी की हकीकत बन कर सामने आते हैं, इसलिए दोस्तों, Words की Power को पहचानिये, जहाँ तक हो सके पॉजिटिव वर्ड्स का प्रयोग करिये, इस बात को समझिए कि ये आपकी ज़िन्दगी बदल सकते हैं।

जय श्रीराम

इन बातों का रखेंगे ध्यान तो जूते भी चमका सकते हैं आपका भाग्य

इन बातों का रखेंगे ध्यान तो जूते भी चमका सकते हैं आपका भाग्य
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व्यक्ति के पहनावें में उसके कपड़ों के साथ जूते भी बहुत मुख्य होते हैं । कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की हैसियत का अंदाजा लगाना हो तो सबसे पहले उसके जूते देखने चाहिए। चाहे आप किसी से मिलने जाएं, किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में जाएं या फिर नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाएं, जूते व्यक्ति की सभी कार्यों और संघर्ष में सदैव उसके साथ होते हैं। जूते सामने वाले व्यक्ति की नजर में आपकी छवि बनाते हैं, इसलिए जूतों का अच्छा और साफ-सुथरा होना बहुत भी बहुत आवश्यक होता है लेकिन क्या आपको पता है कि ज्योतिष और वास्तु के अनुसार जूतों का संबंध आपके भाग्य से भी होता है। यदि कुछ बातों का ध्यान न रखा जाए तो जूते आपका भाग्य बिगाड़ भी सकते हैं और यदि जूतों से संबंधित कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो जूते आपका भाग्य चमका भी सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, कुंडली में आठवें भाव का संबंध पैरों से होता है और जूते पैर में पहने जाते हैं। इसका अर्थ ये हुआ कि जूते आपकी कुंडली में आंठवे भाव को प्रभावित करते हैं इसलिए जूते पहनते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए। यदि किसी शुभ कार्य से जा रहे हैं या फिर कहीं इंटरव्यू देने जा रहे हैं तो कभी भी गंदे या फिर फटे जूते पहनकर नहीं जाना चाहिए। इससे आपकी छवि तो खराब होती ही है साथ ही सफल होने की संभावना भी कम हो जाती है।

व्यक्ति को कभी भी चोरी के जूते या फिर दूसरों के लिए हुए जूते नहीं पहने चाहिए। खासतौर पर कहीं पर भी ऐसे जूते पहनकर नहीं जाना चाहिए। माना जाता है कि इससे आपके धन और सेहत दोनों की हानि होती है।

किसी भी व्यक्ति को कभी भी उपहार में जूते नहीं देने चाहिए और न ही किसी से उपहार में जूते लेने चाहिए। इससे आपका शनि खराब हो सकता है। इससे कार्य क्षेत्र में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

जिन लोगों की कुंडली में शनि और राहु प्रभावी होते हैं, उनके लिए जूतों का व्यापार करना बहुत फायदेमंद रहता है। यह व्यक्ति की किस्मत चमका सकता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि प्रभावी हो उन्हें काले, नीले और भूरे रंग के जूते पहनने चाहिए।



मंगलवार, 7 मार्च 2023

राव हेमा जी गहलोत ( मंडोर रा प्रधान व जागीरदार ) सैनिक क्षत्रिय योद्धा ( जोधपुर में राव जी की गेर के जनक )

राव हेमा जी गहलोत ( मंडोर रा प्रधान व जागीरदार ) सैनिक क्षत्रिय योद्धा ( जोधपुर में राव जी की गेर के जनक ) 
राव हेमा गहलोत का जन्म कुचेरा में राव पदम जी गहलोत के यहां हुआ। राव पदम जी के पूर्वजों में  राव ईसरदास जो राव काजल जी, जिन्होंने चित्तौड़ छोड़ कुचेरा बसाया, के वंशज थे। काजल जी सिसोदिया वंश के राजपूत जो बप्पा रावल (ई. 712) के वंशज थे। अतः राव ईसरदास बप्पा रावल वंश के सिसोदिया राजपूत हुए। हेमा गहलोत के माता का नाम गंवरी पुत्री प्रेमसी सोलंकी व पत्नी का नाम पार्वती पुत्री रामौजी देवड़ा था।

एक दिन माता गंवरी अपने खेत में कृषि कार्य कर रही थी उसी समय कुचेरा के ठाकुर राणा जयसिंह अपने आदमियों के साथ शिकार खेलने हेतु निकले हुए थे। राणाजी के आदमियों द्वारा गोपण (विशेष प्रकार का चमड़े से बना लम्बा रस्सीनुमा जिसमें रबड़ में कंकर को फंसाकर फेंका जाता है) से खरगोश पर गोली चलायी परन्तु घायल खरगोश दौड़ता हुआ राव हेमा गहलोत के माता गंवरी जो अपने खेत में कृषि कार्य कर रही थी, उनकी गोद में चला गया। गंवरी ने उसे अपनी गोद में छुपा लिया। राणा जयसिंह और उनके आदमियों ने खरगोश की मांग की परन्तु गंवरी ने देने से मना कर दिया, कहा मेरी गोद में आए घायल जीव की मैं हत्या नहीं होने दूंगी, न ही मैं आपको दूंगी, यह मेरी शरण में आया हुआ है, इसलिए इसे बचाना मेरा धर्म है। आप कोई दूसरा शिकार कर लें, परन्तु राणा जयसिंह और उनके आदमियों ने अपनी बेज्जती समझते हुए उन्होंने जबरदस्ती छीनने की कोशिश की परन्तु क्षत्राणी गंवारी ने विरोध किया। दोनों में आपसी झड़प  के कारण लड़ाई बढ़ने लगी। ठाकुर के आदमियों द्वारा माता के साथ झगड़े को देख राव हेमा गहलोत का खून खोल उठा व आपस में तलवारें खींच गई लड़ाई इतनी बढ़ गई थी, कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था। इस लड़ाई में कई लोग घायल हुए। राणा जयसिंह जी भी सिसोदिया वंश के राणा थे, राव हेमा गहलोत भी इसी वंश के थे। राव हेमा गहलोत के पूर्वजों ने करीब 200 वर्ष पूर्व अपना कर्म छोड़ा था क्षत्रिय धर्म नहीं। शरण में आये घायल खरगोश की रक्षा की व साहसी राव हेमा गहलोत अपनी आन-बान-शान की रक्षा व माता के साथ हुए अभद्र व्यवहार के कारण साहस और वीरता के साथ ठाकुर जयसिंह के साथ लड़ाई लड़ी। उनकी साहस और वीरता की चर्चा चारों तरफ फैल गयी कि एक साहसी वीर ने अपनी माता के अभद्रता का बदला लिया। जब इस वीरता का पता बालेसर के ईंदा परिहार राजपूत राजाओं को चला तो उन्होंने अपने पास बुलाकर राव हेमा गहलोत को मण्डोर का प्रधान बना दिया। प्रधान बनाने के मुख्य कारण उनकी वीरता पराक्रम व साहस तो था ही इसके अलावा ईंदा परिहारों द्वारा अपनी खोई हुई ताकत को बढ़ाना भी था, क्योंकि मण्डोर पर दिल्ली के बादशाह जलालुदीन फिरोज खिलजी ने वि.सं. 1349 में परिहार राजा रोपड़ा को पराजित कर मण्डोर अपने अधीन कर लिया था।

प्रधान नियुक्ति के बाद अपने काका राव खेखो, राव जाजो, राव नरसिंह, राव मोहण, राव तीथों, पुत्र राव थीरपाल व अन्य परिवार के सदस्यों को दलबल सहित अपनी कुलदेवी बाण माता व इष्ट देव काला गोरा भैरूजी की मूर्ति को छाबड़ी में डाल बैल गाड़ी में रख कुचेरा से रवाना हुए। मण्डोर में वि. सं. 1446 चैत्र कृष्ण एकम (12 मार्च 1389, सोमवार) को मूर्ति थापित कर चांदणी की नवमी की पूजा की।

सोमवार, 6 मार्च 2023

काली हल्‍दी के टोटके खाली नहीं जाते होली विशेष

काली हल्‍दी के टोटके खाली नहीं जाते

इस धरती पर प्रकृति ने जो कुछ भी उत्पन्न किया है, वह बेवजह नहीं है। बहुत सी वस्तुएं है, जिनके बारे में अज्ञान हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी ही दुर्लभ वस्तुओं में से एक काली हल्दी के बारे में बतायेंगे जिसे आप-अपने जीवन में उपयोग करके अनेक प्रकार की समस्याओं से निजात पाकर सुखद एंव समृद्धिदायक जीवन व्यतीत कर सकेंगे। खास बात यह है कि काली हल्‍दी से जुड़े टोटके जल्‍दी खाली नहीं जाते हैं।
हल्दी को मसाले के रूप में भारत में बहुत प्राचीन समय से उपयोग में लाया जा रहा है। पीली हल्दी को बहुत शुद्ध माना जाता है इसलिए इसका उपयोग पूजा में भी किया जाता है।। हल्दी की अनेक प्रजातियां हैं लेकिन पीली हल्दी के अलावा काली हल्दी से पूजा की जाती है तंत्र की दुनियां में काली हल्दी का प्रयोग विभिन्न तरह के टोटको में किया जाता है। काली हल्दी को धन व बुद्धि का कारक माना जाता है। काली हल्दी का सेवन तो नहीं किया जाता लेकिन इसे तंत्र के हिसाब से बहुत पूज्यनीय और उपयोगी माना जाती है। अनेक तरह के बुरे प्रभाव को कम करने का काम करती है। नीचे लिखे इसके कुछ उपायों को अपनाकर आप भी जिन्दगी से कई तरह के दुष्प्रभावों को मिटा सकते हैं।

काली हल्दी बड़े काम की है। वैसे तो काली हल्दी का मिल पाना थोड़ा मुश्किल है, किन्तु फिर भी यह पन्सारी की दुकानों में मिल जाती है। यह हल्दी काफी उपयोगी और लाभकारक है।

काली हल्दी से भी होता है वशीकरण
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- काली हल्दी के 7 से 9 दाने बनायें। उन्हे धागे में पिरोकर धुप, गूगल और लोबान से शोधन करने के बाद पहन लें। जो भी व्यक्ति इस तरह की माला पहनता है वह ग्रहों के दुष्प्रभावों से व टोने- टोटके व नजर के प्रभाव से सुरक्षित रहता है।

- गुरुपुष्य-योग में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर धुप देने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर एक दो सिक्को के साथ उसे बक्से में रख दें। इसके प्रभाव से धन की वृद्धि होने लगती है।

- काली हल्दी का चुर्ण दूध में डालकर चेहरे और शरीर पर लेप करने से त्वचा में निखार आ जाता है।

- यदि आप किसी भी नए कार्य के लिए जा रहे है तो काली हल्दी का टीका लगाकर जाएं। यह टीका वशीकरण का कार्य करता है। काली हल्दी को तंत्र के अनुसार वशीकरण के लिए जबरदस्त माना जाता है। यदि आप भी चाहते हैं कि आप किसी को वश में कर पाएं तो काली हल्दी का तिलक एक सरल तंत्रोक्त उपाय है।
1- यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरन्तर अस्वस्थ्य रहता है, तो प्रथम गुरूवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चीने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के उपर से 7 बार उतार कर गाय को खिला दें। यह उपाय लगातार 3 गुरूवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा।

2- यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को नजर लग गयी है, तो काले कपड़े में हल्दी को बांधकर 7 बार उपर से उतार कर बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें।


3- किसी की जन्मपत्रिका में गुरू और शनि पीडि़त है, तो वह जातक यह उपाय करें- शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।

4- यदि किसी के पास धन आता तो बहुत किन्तु टिकता नहीं है, उन्हे यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रूकने लगेगा।

5- यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।

6- यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मॅहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।

7- दीपावली के दिन पीले वस्त्रों में काली हल्दी के साथ एक चांदी का सिक्का रखकर धन रखने के स्थान पर रख देने से वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

8- यदि कोई व्यक्ति मिर्गी या पागलपन से पीडि़त हो तो किसी अच्छे मूहूर्त में काली हल्दी को कटोरी में रखकर लोबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें। तत्पश्चात एक टुकड़ें में छेद कर धागे की मद्द से उसके गले में पहना दें और नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण ताजे पानी से सेंवन कराते रहें। अवश्य लाभ मिलेगा।

होली पर विशेष उपाय

🙏🏻 *फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इस बार ये पर्व 6 और 7 मार्च अलग अलग स्थानो पर अलग अलग मनाएंगे         

      🌹 होली पर विशेष उपाय 🌹    

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,इस दिन किए गए उपाय बहुत ही जल्दी शुभ फल प्रदान करते हैं। आज हम आपको होली पर किए जाने वाले ऐसे ही अचूक उपायों के बारे में बता रहे हैं,जो इस प्रकार हैं-*

🙏🏻 *1.होली की रात सरसों के तेल का चौमुखी दीपक घर के मुख्य द्वार पर लगाएं व उसकी पूजा करें। इसके बाद भगवान से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से हर प्रकार की बाधा का निवारण होता है।*

🙏🏻 *2.यदि व्यापार या नौकरी में उन्नति न हो रही हो,तो 21 गोमती चक्र लेकर होलिका दहन की रात में शिवलिंग पर चढ़ा दें। इससे बिजनेस में फायदा होने लगेगा।*

🙏🏻 *3.होली पर किसी गरीब को भोजन अवश्य कराएं। इससे आपकी मनोकामना पूरी होगी।*

🙏🏻 *4. यदि राहु के कारण परेशानी है तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें। उसी में थोड़ा सा गुड़ डालें और इस गोले को जलती हुई होलिका में डाल दें। इससे राहु का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाएगा।*

🙏🏻 *5. धन हानि से बचने के लिए होली के दिन घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़कें और उस पर दोमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय धन हानि से बचाव की कामना करें। जब दीपक बुझ जाए तो उसे होली की अग्नि में डाल दें। यह क्रिया श्रद्धापूर्वक करें, धन हानि नहीं होगी।*

🙏🏻 *6. घर की सुख-समृद्धि के लिए परिवार के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए। साथ ही होली की 11 परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए।*

🙏🏻 *7. अगर किसी ने आप पर कोई टोटका किया है तो होली की रात जहां होलिका दहन हो, उस जगह एक गड्ढा खोदकर उसमें 11 अभिमंत्रित कौड़ियां दबा दें। अगले दिन कौड़ियों को निकालकर अपने घर की मिट्टी के साथ नीले कपड़े में बांधकर बहते जल में प्रवाहित कर दें। जो भी तंत्र क्रिया आप पर किसी ने की होगी वह नष्ट हो जाएगी

www.sanwariyaa.blogspot.com

गुरुवार, 2 मार्च 2023

वसंत ऋतु*होली के 1 महीने पहले से 1 महीने बाद तक वसंत ऋतु रहती है। रात में ठंड रहती है लेकिन दिन गर्म होने लगता है।

.         *Health Tips :
                       *वसंत ऋतु*

होली के 1 महीने पहले से 1 महीने बाद तक वसंत ऋतु रहती है। रात में ठंड रहती है लेकिन दिन गर्म होने लगता है।
*रक्षण काल* : शीत ऋतु में शरीर का पोषण मुख्य होता है लेकिन इस ऋतु में पोषण की जगह पोषित शरीर का रक्षण मुख्य है। सर्दी में शरीर में पित्त (गर्मी) बढ़ाना आवश्यक था। अब इस बढ़ी हुई गर्मी को शांत करना आवश्यक है। वरना बढ़ी गर्मी शरीर की धातुओं को पिघलाकर कफ के रूप में निकालने लगती है। इससे फेफड़ों से संबंधित विकार, जैसे; जुकाम-खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस; पेट की अग्नि मंद होने से भोजन न पचना, अजीर्ण, एसिडिटी, जी मचलाना, खट्टी डकारें और शरीर में भारीपन, आलस्य, चर्म रोग, ज्वर (fever) आदि व्याधियाँ जन्म लेने लगती हैं।

                        *उपाय*
*मूल मंत्र* – शीत ऋतु का आहार विहार त्यागें।

1. *आहार* – गर्म की जगह ठंडी प्रकृति का आहार लें :–
*पानी* – तांबे की जगह मिट्टी की मटकी का पानी। भोजन में चांदी के पात्र काम लें।
*अन्न* – गेहूँ, मक्का की जगह जौ और ज्वारी। नया गेहूँ बिल्कुल न खायें। बाजरे की गर्म रोटी की जगह ठंडी रोटी
*दाल* – उड़द, मसूर, तुवर की जगह मूंग, मोठ,
*सब्जी* – बैंगन, पत्ता गोभी, फूल गोभी, मेथी, पालक, मूली, गाजर, मटर, शकरकंद(रतालू), चुकंदर(beet root), शिमला मिर्च की जगह लौकी (दूधी), सफेद पेठा, कद्दू, तुरई, टमाटर, ककड़ी
*फल* – *आम बिल्कुल न खायें,* तरबूज (कलिंगड़), खरबूजा की जगह अंगूर, संतरा, अनार, 
*दूध* – मावे की मिठाई न खायें, *ठंडाई* पीयें (फ्रिज की नहीं), दही की जगह छाछ लें
*पेय*(drinks) – चाय-कॉफी की जगह सौंफ, धनिये, जीरे, इलाइची, मिश्री का काढ़ा पीयें, *सुबह* प्राकृतिक शर्बत पीयें, जैसे; नारियल पानी, नीरा (ताड़ का रस), नींबू शर्बत, कोकम शर्बत, हल्का मीठा गुलाब, केवड़ा, खसखस, सौंफ शर्बत
*मसाला* – गर्म मसाले की जगह सामान्य मसाला, सौंठ की जगह अदरक, लाल मिर्च की जगह हरी मिर्च, काली मिर्च, हरा धनिया, कढ़ी पत्ता (मीठा नीम)
*ड्राई फ्रूट्स* – बादाम, अखरोट, खजूर, केसर सूखे खाने की जगह भिगाकर, काजू , पिश्ता की जगह मुनक्का, किशमिश, मिन्जी (बीज)
*नींबू* का सेवन खूब करें; गुड़ की जगह मिश्री, देशी शक्करें; तेल की जगह देशी गाय का घी
*औषधि* – *भांग* (औषधि रूप में, नशा होने जितनी मात्रा में नहीं), नवरात्रि में *नीम की कोंपले* (नये पत्ते), रातभर मेथी भिगाकर सुबह उसका पानी पीयें।

मांस, अंडे, अल्कोहल जैसे अत्यंत गर्म पदार्थ का बिल्कुल त्याग करें। अन्यथा हार्ट, लिवर, किडनी के बर्बाद होने का योग कई गुना बढ़ जाता है।
 
2. *व्यायाम* – पसीना बहने तक

3. *वमन* – प्रतिदिन सुबह पेट भर हल्का गर्म पानी पीकर 4-5 मिनिट बाद उल्टी कर दें। इसके बाद 10 मिनिट के लिए शवासन करें। 1 घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं है।

4. *नींद* – नींद कम करें। सूर्योदय के पहले उठें। दिन में 20-25 मिनिट से अधिक न सोयें। आलस्य आता हो तो शारीरिक श्रम करें।

5. *स्नान* – प्रतिदिन सूर्योदय के पहले ठंडे जल से। संभव न हो तो गुनगुने जल से।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

अब किस-किस को महंगाई ज्यादा लगी ??????

: 10 वर्ष पूर्व 4 लाख रुपये में लिया घर आज 40 लाख में बेचना है, परन्तु 10 वर्ष पूर्व 400 रुपये में मिलने वाला गैस सिलैंडर आज भी 400 रुपये में ही चाहिये.
     मानसिकता बदलो,सरकार नहीं.....
   
: 😎😎😎😎😎😎😎😎😎😎

जिनका मानना है, अब बहुत महंगाई हो गई है तो उनसे ही पूँछता है भारत कि जैसे 2004 में किसी चीज के रेट थे, उसके बाद 2014 तक इतने गुना बढ़े तो अब 2024 में इतने गुना बढ़कर कितने होने चाहिए ?????

काँग्रेस आई 2004 में पेट्रोल 35 था,
गई 2014 में 73 था मतलब 35×2=70 से भी ज्यादा
तो 
2024 में 73×2=146
मतलब 150 होना चाहिए,
लेकिन अब कितना है ??????

2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी,
तब आटा 8 रूपए किलो था !
2014 में मनमोहन सिंह की सरकार गई,
तब आटा 24 रूपए किलो था !
मतलब 8×3=24
तो 
2024 में 24×3=72, 
मतलब 72 होना चाहिए,
लेकिन अब कितना है ??????

2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी,
तब चीनी 13 रूपए किलो थी !
2014 में मनमोहन सिंह की सरकार गई,
तब चीनी 38 रूपए किलो थी !
मतलब 13×3=39
तो 
2024 में 39×3=117 मतलब 117 होना चाहिए,
लेकिन अब कितना है ??????

2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी,
तब सरसों तेल 35 रूपए लीटर था !
2014 में मनमोहन सिंह की सरकार गई,
तब सरसों तेल 100 रूपए लीटर था !
मतलब 35×3=105
तो,
2024 मे 100×3=300, मतलब 300 होना चाहिए,
लेकिन अब कितना है ??????

2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी,
तब चाँदी 7,000 रूपए किलो थी !
2014 में मनमोहन सिंह की सरकार गई,
तब चाँदी 70,000 रूपए किलो थी !
मतलब 7,000×10=70,000,
तो 
2024 मे 70,000×10=7,00,000
मतलब 7,00,000 होना चाहिए,
लेकिन अब कितना है ??????

2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी,
तब सोना 6,000 रूपए 10 ग्राम था !
2014 में मनमोहन सिंह की सरकार गई,
तब सोना 42,000 रूपए 10 ग्राम था !
मतलब 6,000×7=42,000
तो 
2024 में 42,000×7=2,94,000 मतलब 2,94,000 होना चाहिए,
लेकिन अब कितना है ??????

2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी,
तब जो मकान 10 लाख रूपए का था !
2014 में मनमोहन सिंह की सरकार गई,
तब वो मकान 1 करोड़ रूपए का था !
मतलब 10×10=1 करोड़
तो 
2024 में 1×10=10 करोड़
मतलब 10 करोड़ होना चाहिए,
लेकिन अब कितना है ??????

मनमोहन सिंह सरकार के 10 सालों में
प्रॉपर्टी की कीमतें 10 से 20 गुणा तक बढ़ी.....!!

जिसे मोदीजी के कार्यकाल में मंहगाई लगती हो खुली आँखों से काँग्रेस शासनकाल की तुलना करे।
वह तो भारत देश की खुशकिस्मती थी कि 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बन गये अन्यथा इतनी बड़ी जनसंख्या के साथ आज विश्व भर की मंदी के दौर में श्रीलंका, बांग्लादेश व पाकिस्तान से बुरी स्थिति में भारत खड़ा होता!!

अब किस-किस को महंगाई ज्यादा लगी ?????? 
🙏

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

“कंज्यूमर बिहेवियर” यानी उपभोक्ता व्यवहार पढ़ाते हैं तो उन्हें ये “डिडरो इफ़ेक्ट” भी पढ़ाया जाता है।

एक बार की बात है, जब एक गरीब लेखक था। अब आप कहेंगे लेखक में गरीब का विशेषण जोड़ने की क्या जरूरत है?



लेखक था तो गरीब ही होगा, ये तो मानी हुई बात है! तो ऐसा है कि हम किसी (अपने जैसे) गरीब हिन्दी लेखक की बात नहीं कर रहे। ये कहानी जिस लेखक की है, वो फ़्रांसिसी था। उन्हें दर्शन शास्त्र के अलावा इनसाइक्लोपीडिया जैसी चीज़ें लिखने के लिए भी जाना जाता है। खैर वापस किस्से पर आते हैं। तो किम्वदंती में बताया जाता है कि ये जो गरीब लेखक थे, इनकी बेटी की शादी तय हुई। समस्या ये थी कि लेखक तो गरीब थे और इनके पास शादी का खर्च उठाने के लिए कोई पैसे-वैसे नहीं थे!

किसी तरह लेखक महोदय की गरीबी की ये खबर रानी साहिबा तक जा पहुंची। रानी साहिबा पुस्तक प्रेमी थीं, और उन्होंने 1000 फ़्रांसिसी मुद्राओं में लेखक से किताबें खरीद लीं। ये किस्सा डेनिस डिडरो (Denis Diderot) का है जो 1713-1784 के दौर के फ़्रांसिसी विद्वान और दार्शनिक थे। अब के हिसाब से देखें तो उन्हें लाखों की रकम मिल गयी थी। लेखक महोदय की बिटिया की शादी तो अच्छे तरीके से हुई ही, थोड़ा ठीक दिखने के लिए गरीब लेखक ने एक ड्रेसिंग गाउन भी खरीद लिया। अब उनका ध्यान गया कि उनके नए ड्रेसिंग गाउन की तुलना में आस पास की चीज़ें तो बड़ी पुरानी और बेकार लग रही हैं!
लेखक महोदय ने अपनी पुरानी कुर्सी फेंककर नयी ले ली। अपनी पुरानी मेज़ को भी बदल दिया। उस दौर में घर में आदमकद आइना होना बड़ी बात होती थी, उन्होंने एक आइना भी लगवा लिया। इसी तरह एक के बाद एक चीज़ें आती गयीं और लेखक फिर से गरीबी में जा पहुंचे! "एटॉमिक हैबिट्स" के लेखक ये किस्सा रोचक अंदाज में सुनाते हैं। अपनी इस हालत पर डिडरो ने एक लेख लिखा “रेग्रेट्स ऑन पार्टिंग विथ माय ओल्ड ड्रेसिंग गाउन” (Regrets on Parting with My Old Dressing Gown)। इस लेख में डिडरो बताते हैं कि कैसे पहले तो अपने पुराने ड्रेसिंग गाउन के वो खुद मालिक थे, मगर नया ड्रेसिंग गाउन उनका ही मालिक बन बैठा। 


एमबीए कर रहे छात्रों को जब “कंज्यूमर बिहेवियर” यानी उपभोक्ता व्यवहार पढ़ाते हैं तो उन्हें ये “डिडरो इफ़ेक्ट” भी पढ़ाया जाता है। एक चीज़ खरीदने पर दूसरी खरीदने की इच्छा, फिर उस दूसरी से तीसरी - ये उपभोक्ताओं में आसानी से नजर आने वाला व्यवहार है। घर में पहले सोफ़ा आएगा, फिर लगेगा कि सोफे के साथ ड्राइंग रूम का टेबल ठीक नहीं लग रहा, तो बेहतर टेबल आएगा। फिर लगने लगेगा कि बड़ा सा डब्बे वाला टीवी तो इनके साथ मैच ही नहीं कर रहा, तो एलईडी टीवी भी खरीद लिया जाएगा। इस तरह खरीदारी बढ़ती रहेगी, इच्छाएँ ख़त्म ही नहीं होंगी। इस तरीके को जूलिएट स्चोर ने 1992 में आई अपनी किताब “द ओवरस्पेंट अमेरिकन: व्हाई वी वांट व्हाट वी डोंट नीड” में “डिडरो इफ़ेक्ट” नाम से बुलाना शुरू कर दिया था।

अब आते हैं भगवद्गीता पर जो हमने धोखे से प्रबंधन (मैनेजमेंट) और विपणन (मार्केटिंग) की कहानी सुनाने के बहाने से आपको सुना डाला है। ये जो एक कारण से दूसरा और दूसरे से तीसरे का उपजना है, वो भगवद्गीता पढ़ने वालों के लिए बिलकुल नया नहीं होता। उन्होंने दूसरे अध्याय के बासठवें और तिरसठवें श्लोक में कारणमाला अलंकार देखा होता है –

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63

वैसे तो इन श्लोकों में कहा गया है कि विषयों का चिन्तन करने पर उसमें आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से इच्छा और इच्छा (पूरे न होने) से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है। यहाँ आपको “डिडरो इफ़ेक्ट” का एक ड्रेसिंग गाउन से शुरू होकर फिर से गरीबी तक पहुँच जाने के क्रम जैसी ही कारणों की पूरी माला दिख जाएगी। इन दोनों श्लोकों को एक साथ पढ़ने पर ही पूरा अर्थ समझ में आता है, इसलिए इन श्लोकों में युग्म नाम का अन्वय है।

जहाँ तक “डिडरो इफ़ेक्ट” वाले उपभोक्ता की हरकत का प्रश्न है, उसके बारे में भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि जैसे आग में घी डालने पर आग संतुष्ट नहीं हो जाती, और भड़कती ही जाती है, वैसे ही कामनाएँ (और वासना) भी भोग मिल जाने पर संतुष्ट नहीं होतीं, और बढ़ती हैं। इसके लिए तीसरे अध्याय में कहा है –

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।3.39

स्वामी रामसुखदास के अनुसार इसका अर्थ है - और कुन्तीनन्दन! इस अग्नि के समान कभी तृप्त न होने वाले और विवेकियों के नित्य वैरी इस काम के द्वारा मनुष्य का विवेक ढका हुआ है। मनुष्य का विवेक उसे ये बता सकता है कि भोग के पूरे हो जाने पर और की इच्छा न जागे, ऐसा नहीं होगा। शराब के शौक़ीन लोगों को एक पेग के बाद दूसरे और दूसरे से तीसरे पर पहुँचने में इसका अनुभव होगा। सिगरेट जैसी चीज़ें छोड़ने के प्रयास में जब दो-चार दिन बाद, चलो आज एक पी लेते हैं, इतने भर से फिर से पुरानी जैसी ही आदत शुरू हो जाती है, उसमें कई युवाओं ने भी इसका अनुभव कर रखा है।

बाकी “डिडरो इफ़ेक्ट” के जरिये जो ये तीसरे अध्याय का उनचालीसवाँ श्लोक बताया है, उसे कई बार अकेले नहीं सैंतीसवें-अड़तीसवें श्लोक के साथ पढ़कर समझा जाता है। यानी अन्वय की दृष्टि से तीन श्लोक एक साथ पढ़ने के कारण यहाँ विशेषक अन्वय भी लागू हो सकता है। हमने जो सिर्फ एक बताया है, वो नर्सरी स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा।
✍🏻आनन्द कुमार

आत्मसंयम : सनातन बोध – ६७

योगवासिष्ठ एक अद्भुत सनातन ग्रंथ है, साथ ही दर्शन तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी यह ग्रंथ अद्वितीय है। सुख-दुःख, मानसिक अवस्था, मोह, जीवन-मृत्यु, संसार, पुरुषार्थ, ज्ञान, खगोल, आदर्श जीवन इत्यादि जीवन से जुड़े अनेक कठिन प्रश्नों का कोई भी तत्त्व इस ग्रंथ से परे नहीं है। आश्चर्य नहीं कि पश्चिम में भारतीय दर्शन के प्रसिद्ध ग्रंथों में भी योगवासिष्ठ का प्रमुख स्थान है। मानसिक अवसाद तथा मनोरोग से व्यक्ति को निकाल कर जिजीविषा से पूर्ण करने में सम्भवतः इस ग्रंथ से उत्कृष्ट ग्रंथ नहीं। असंख्य विषयों पर इस प्रकार का गम्भीर तार्किक चिंतन एवसूक्ष्म विश्लेषण संसार के अन्य किसी ग्रंथ में दुर्लभ है। परमसत्ता का अनेक दृष्टांतों के माध्यम से जिस प्रकार इस ग्रंथ में वर्णन है, वह भी अद्वितीय है। योगवासिष्ठ में तर्क आधारित दर्शन के अनेक सिद्धांत हैं जो शब्दश: कालान्तर में प्रसिद्ध हुए पश्चिमी दर्शन के सिद्धांतों से मिलते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान के भी अनेकानेक सिद्धांत इस ग्रंथ में उपस्थित हैं। मनोविज्ञान का चेतना-विज्ञान, आत्म-विज्ञान तथा लोक व्यवहार के रूप में अध्ययन के लिए यह एक अप्रतिम ग्रंथ है।

अन्तःकरण, मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार, हृदय इत्यादि के विभिन्न आयामों का इस ग्रंथ में सूक्ष्म विश्लेषण है जो अंततः मनोविज्ञान ही है। यदि अचेतन का विज्ञान समझना हो तो अन्यत्र  इससे गम्भीर चिंतन मिलना सम्भव ही नहीं। योगवासिष्ठ में कहा गया है – मनो हि भावनामात्र, भावना स्पन्द धार्मिणो अर्थात मन तो भावनामात्र है, सारे कार्य तो भावना से सम्पादित होते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान तथा मानव व्यवहार में जो लोकप्रिय तथा प्रसिद्ध अचेतन व्यवहार (irrational behavior)का अध्ययन है, यह उसकी सहस्रो वर्ष पूर्व की परिभाषा ही तो है।

इस ग्रंथ के विभिन्न मनोवैज्ञानिक आयामों का अवलोकन असंभव प्रतीत होता है। इस लेखांश में मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण के मात्र एक पद्य भाग (सर्ग त्रयोदश इत्यादि) का अवलोकन आधुनिक मनोविज्ञान के संदर्भ में करते हैं। इस सर्ग में ज्ञानोपदेश के अधिकारी के लक्षणों तथा उपायों की चर्चा है।
एकस्मिन्नेव वै तेषामभ्यस्ते विमलोदये । चत्वारोऽपि किलाभ्यस्ता भवन्ति सुधियां वर ॥
एकोऽप्येकोऽपि सर्वेषामेषां प्रसवभूरिह । सर्वसंसिद्धये तस्मात्यत्नेनैकं समाश्रयेत् ॥
सत्समागमसंतोषविचाराः सुविचारितम् । प्रवर्तन्ते शमस्वच्छे वाहनानीव सागरे ॥
विचारसंतोषशमसत्समागमशालिनि । प्रवर्तन्ते श्रियो जन्तौ कल्पवृक्षाश्रिते यथा ॥
विचारशमसत्सङ्गसंतोषवति मानवे । प्रवर्तन्ते प्रपूर्णेन्दौ सौन्दर्याद्या गुणा इव ॥
सत्सङ्गसंतोषशमविचारवति सन्मतौ । प्रवर्तन्ते मन्त्रिवरे राजनीव जयश्रियः ॥
तस्मादेकतमं नित्यमेतेषां रघुनन्दन । पौरुषेण मनो जित्वा यत्नेनाभ्याहरेद्गुणम् ॥
परं पौरुषमाश्रित्य जित्वा चित्तमतङ्गजम् । यावदेको गुणो नान्तस्तावन्नास्त्युत्तमा गतिः ॥

संक्षेप में इन पदों में चार गुणों का वर्णन तथा उनकी प्रशंसा है – विचार, आत्मसंयम, संतोष तथा सत्संग (the spirit of enquiry, self-control, contentment, company of wise men)। इन गुणों को मोक्ष के द्वारपाल की भी संज्ञा दी गयी है। आनंद प्राप्ति जिससे मन प्रशांत, निर्मल, विश्रांत, भ्रम तथा चेष्टारहित और विषयों की अभिलाषा रहित हो जाता है; उसका पूर्वाधार हैं ये चार गुण।

इस लेखांश में चर्चा मात्र आत्मसंयम की। वेंकटेश्वरानंद अपने प्रसिद्ध योगवासिष्ठ अनुवाद में इसका सरल अनुवाद प्रस्तुत करते हैं :
All that is good and auspicious flows from self-control. All evil is dispelled by self-control. No gain, no pleasure in this world or in heaven is comparable to the delight of self-control. The delight one experiences in the presence of the self-controlled is incomparable. Everyone spontaneously trusts him. None (not even demons and goblins) hates him. Self-control, O Rama, is the best remedy for all physical and mental ills. When there is self-control, even the food you eat tastes better, else it tastes bitter. He who wears the armor of self-control is not harmed by sorrow. He who even while hearing, touching, seeing, smelling and tasting what is regarded as pleasant and unpleasant, is neither elated nor depressed—he is self-controlled. He who looks upon all beings with equal vision, having brought under control the sensations of pleasure and pain, is self-controlled. He who, though living amongst all is unaffected by them, neither feels elated nor hates, even as one is during sleep, he is self-controlled.

पश्चिमी मनोवैज्ञानिकों ने आत्मसंयम का विगत कुछ वर्षों में गहन अध्ययन किया है। मनोविज्ञान की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाएँ इन अध्ययनों से भरी पड़ी हैं। इस विषय का मुख्य अध्ययन भी नवीन ही है। सम्भवतः वर्ष १९८१ में कार्वर तथा शाइअर का अध्ययन इस विषय का पहला प्रमुख अध्ययन है, जिसमें उन्होंने आत्मसंयम से होने वाले लाभों का अध्ययन किया। वर्ष २०१५ में साइंटिफक अमेरिकन में प्रकाशित लेख Conquer Yourself, Conquer the World में एक दशक के अध्ययनों के संदर्भ में यह बताया गया कि जीवन संघर्षों को पार करने में आत्मसंयम से सहायता मिलती है तथा आत्मसंयम एक प्रकार से भौतिक ऊर्जा के समरूप है। इसमें अनेक अध्ययनों के संदर्भ से यह भी बताया गया कि आत्मसंयम व्यसनों से छुटकारे तथा स्वास्थ्य सम्बंधित उत्कृष्ट अभ्यासों को बढ़ावा देने में सहयोगी है।

वैज्ञानिकों ने विगत कुछ वर्षों में आत्मसंयम को जीवन की सफलता के अनेक आयामों से जोड़ा है। सामाजिक सम्पन्नता तथा बुद्धिमत्ता के समान ही आत्मसंयम का प्रभाव भी जीवन पर पड़ता है। वर्ष १९८९ में कोलम्बिया विश्विद्यालय के मनोवैज्ञानिक मिशेल तथा सहयोगियों ने यह  सिद्ध किया कि आत्मसंयम प्रदर्शित करने वाले बच्चों की किशोरावस्था की संज्ञानात्मक उत्कृष्टता (उत्कृष्ट शैक्षणिक उपलब्धि इत्यादि) तथा सामाजिक गुणवत्ता का अनुमान लगाया जा सकता है।

वर्ष २०११ में प्रकाशित एक अन्य शोधपत्र में ड्‍यूक विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि आत्मसंयम से किशोरावस्था ही नहीं वरन वयस्क जीवन के भी अनेक कारकों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों ने १९७२ तथा १९७३ में जन्में १००० बच्चों का अगले तीस वर्षों तक अवलोकन किया। यह पाया गया कि सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति तथा बुद्धिमत्ता के परे आत्मसंयम का जीवन पर अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अधिक आत्मसंयम वाले बच्चों के वयस्क जीवन में स्वास्थ्य, धन तथा अन्य जीवन स्तरों को उत्कृष्ट पाया गया। इसके विपरीत अल्प आत्मसंयम वाले बच्चे बड़े होकर स्वास्थ्य, व्यसन, वित्त, सम्बन्ध तथा अपराधवृत्ति जैसे सभी मानकों पर नकारात्मक निकले। यही नहीं, शोध में यह भी पाया गया कि व्यक्ति प्रयास से स्वयं के आत्मसंयम में वृद्धि कर सकता है। इस विषय में मजूर तथा लोग (Mazur and Logue) के मनोवैज्ञानिक अध्ययन प्रसिद्ध हैं, जिन्हें पढ़ते हुए लगता है कि सफल जीवन के लिए व्यक्ति के नियंत्रण में आत्मसंयम से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई साधन नहीं है।

साइंटिफ़िक अमेरिकन में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार आत्मसंयम मात्र एक नीतिनिर्धारित गुण न होकर एक मनोवैज्ञानिक विशिष्टता है जो जीवन के अनेक आयामों में सहायक होता है – Self-control is not just a puritanical virtue. It is a key psychological trait that breeds success at work and play—and in overcoming life’s hardships. The ability to regulate our impulses and desires is indispensable to success in living and working with others. People with good control over their thought processes, emotions and behaviors not only flourish in school and in their jobs but are also healthier, wealthier and more popular. And they have better intimate relationships (as their partners confirm) and are more trusted by others. What is more, they are less likely to go astray by getting arrested, becoming addicted to drugs or experiencing unplanned pregnancies. They even live longer. (Scientific American Volume 312, Issue 4)

अमेरिकन साइकोलोजिकल एसोसीएसन ने वर्ष २०१२ में उस समय तक हुए शोधों के आधार पर एक विस्तृत शैक्षणिक तथा मार्गदर्शक रिपोर्ट बनायी – What You Need to Know about Willpower: The Psychological Science of Self-Control.

Willpower: Rediscovering the Greatest Human Strength नामक पुस्तक के सह-लेखक प्रो. रोय बाउमायस्टर कहते हैं – Psychology has identified two main traits that seem to produce an immensely broad range of benefits: intelligence and self-control. Despite many decades of trying, psychology has not found much one can do to produce lasting increases in intelligence. But self-control can be strengthened. Therefore, self-control is a rare and powerful opportunity for psychology to make a palpable and highly beneficial difference in the lives of ordinary people.

पिछले कुछ वर्षों में इस सदंर्भ में अनेक महत्त्वपूर्ण अध्ययन हुए हैं जो आत्मसंयम को सफल जीवन के लिए एक निर्विवाद मनोवैज्ञानिक विशिष्टता के रूप में स्थापित करते हैं। यथा वर्ष २००५-०६ में दकवरथ और सेलिग्मन का अध्ययन जिसमें पाया गया कि आठवीं कक्षा के छात्रों की सफलता का अनुमान IQ से अधिक उनके आत्म अनुशासन के अंक से किया जा सकता है। वर्ष २००२ से २००८ में विल्ज़ इत्यादि ने विभिन्न अध्ययनों में पाया कि किशोरों में आत्मसंयम होने से व्यसन नहीं होता। इस विषय पर पिछले दो दशकों में इतने अध्ययन हुए हैं कि सबका संदर्भ देना भी सम्भव नहीं।

इन अध्ययनों का सारांश यही है कि जिस व्यक्ति के पास लोभों से बचने का आत्मसंयम हो, दीर्घकाल में उसका जीवन अत्यंत सफल होता है। यहाँ रोचक यह भी है कि आधुनिक पश्चिमी मनोविज्ञान में आत्मसंयम की परिभाषा भौतिक प्रलोभनों से बचने के आत्मसंयम तक ही सीमित है, जो सनातन आत्मसंयम की परिभाषा की विशेषावस्था मात्र है।

बुजुर्गों का यही आशीर्वाद मुश्किल समय में उनके लिए ढाल का काम करता है।


*💥 रिश्तों का महत्व💥*

घर की नई नवेली इकलौती बहू एक प्राइवेट बैंक में बड़े ओहदे पर थी। उसकी सास तकरीबन एक साल पहले ही गुज़र चुकी थी। घर में बुज़ुर्ग ससुर औऱ उसके पति के अलावा कोई न था। पति का अपना कारोबार था।

पिछले कुछ दिनों से बहू के साथ एक विचित्र बात होती। बहू जब जल्दी जल्दी घर का काम निपटा कर ऑफिस के लिए निकलती ठीक उसी वक़्त ससुर उसे आवाज़ देते और कहते बहू, मेरा चश्मा साफ कर मुझें देती जा। लगातार ऑफिस के लिए निकलते समय बहू के साथ यही होता। काम के दबाव औऱ देर होने के कारण क़भी कभी बहू मन ही मन झल्ला जाती लेकिन फ़िर भी अपने ससुर को कुछ बोल नहीं पाती।

जब बहू अपने ससुर के इस आदत से पूरी तरह ऊब गई तो उसने पूरे माजरे को अपने पति के साथ साझा किया। पति को भी अपने पिता के इस व्यवहार पर बड़ा ताज्जुब हुआ लेकिन उसने अपने पिता से कुछ नहीं कहा। पति ने अपनी पत्नी को सलाह दी कि तुम सुबह उठते के साथ ही पिताजी का चश्मा साफ करके उनके कमरे में रख दिया करो, फिर ये झमेला समाप्त हो जाएगा।

अगले दिन बहू ने ऐसा ही किया औऱ अपने ससुर के चश्मे को सुबह ही अच्छी तरह साफ करके उनके कमरे में रख आई। लेकिन फ़िर भी उस दिन वही घटना पुनः हुई औऱ ऑफिस के लिए निकलने से ठीक पहले ससुर ने अपनी बहू को बुलाकर उसे चश्मा साफ़ करने के लिए कहा। बहू गुस्से में लाल हो गई लेकिन उसके पास कोई चारा नहीं था। बहू के लाख उपायों के बावजूद ससुर ने उसे सुबह ऑफिस जाते समय आवाज़ देना नहीं छोड़ा।

धीरे-धीरे समय बीतता गया औऱ ऐसे ही कुछ वर्ष निकल गए। अब बहू पहले से कुछ बदल चुकी थी। धीरे-धीरे उसने अपने ससुर की बातों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया और फ़िर ऐसा भी वक़्त चला आया जब बहू अपने ससुर को बिलकुल अनसुना करने लगी। ससुर के कुछ बोलने पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती औऱ बिलकुल ख़ामोशी से अपने काम में मस्त रहती। गुज़रते वक़्त के साथ ही एक दिन बेचारे बुज़ुर्ग ससुर भी गुज़र गए।

समय का पहिया कहाँ रुकने वाला था, वो घूमता रहा घूमता रहा। छुट्टी का एक दिन था। अचानक बहू के मन में घर की साफ़ सफाई का ख़याल आया। वो अपने घर की सफ़ाई में जुट गई। तभी सफाई के दौरान मृत ससुर की डायरी उसके हाथ लग गई। बहू ने जब अपने ससुर की डायरी को पलटना शुरू किया तो उसके एक पन्ने पर लिखा था- "दिनांक 24-08-09... आज के इस भागदौड़ औऱ बेहद तनाव व संघर्ष भरी ज़िंदगी में, घर से निकलते समय, बच्चे अक्सर बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं जबकि बुजुर्गों का यही आशीर्वाद मुश्किल समय में उनके लिए ढाल का काम करता है। बस इसीलिए, जब तुम चश्मा साफ कर मुझे देने के लिए झुकती थी तो मैं मन ही मन, अपना हाथ तुम्हारे सिर पर रख देता था क्योंकि मरने से पहले तुम्हारी सास ने मुझें कहा था कि बहू को अपनी बेटी की तरह प्यार से रखना औऱ उसे ये कभी भी मत महसूस होने देना कि वो अपने ससुराल में है औऱ हम उसके माँ बाप नहीं हैं। उसकी छोटी मोटी गलतियों को उसकी नादानी समझकर माफ़ कर देना। वैसे मेरा आशीष सदा तुम्हारे साथ है बेटा!! 

डायरी पढ़कर बहू फूट-फूटकर रोने लगी। आज उसके ससुर को गुजरे ठीक 2 साल से ज़्यादा समय बीत चुके हैं लेकिन फ़िर भी वो रोज़ घर से बाहर निकलते समय अपने ससुर का चश्मा साफ़ कर, उनके टेबल पर रख दिया करती है, उनके अनदेखे हाथ से मिले आशीष की लालसा में।

जीवन में हम रिश्तों का महत्व महसूस नहीं करते हैं, चाहे वो किसी से भी हो, कैसे भी हो और जब तक महसूस करते हैं तब तक वह हमसे बहुत दूर जा चुके होते हैं। इसलिए, रिश्तों के महत्व को समझें और उनको सहेज कर रखें।

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