जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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सोमवार, 11 दिसंबर 2023
हेल्थ आईडी कार्ड, आयुष्मान कार्ड के तहत फ्री इलाज की सुविधा, घर बैठे यूं बनवाए अपना कार्ड ये रहा पूरा प्रोसेस_* #आयुष्मान भारत
शनिवार, 9 दिसंबर 2023
जब नागों की माता पहुंची हनुमान जी की बल-बुद्धि की परीक्षा लेने!!!!
उत्पन्ना एकादशी आज
गुरुवार, 7 दिसंबर 2023
पुण्य का फल देखना चाहता हूं…
मंगलवार, 5 दिसंबर 2023
आज है काल भैरव अष्टमी शिवजी के भैरव रूप की पूजा का है दिन
शनिवार, 2 दिसंबर 2023
74 वर्षों से लगा हुआ कलंक सिर्फ 30 मिनट में हटाया*भारत पिछले 74 साल से एक जहरीले कीड़े से पीड़ित था, जिसका नाम है *संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह* UNMO *United Nations Military Observer*
बुधवार, 29 नवंबर 2023
ऐसी तसवीरें साझा कर सकते हैं जो हमें हँसने पर मजबूर कर दे
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सिर्फ भोपाल ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं हैं जो हमारे राजनैतिक भ्रस्टाचार और नाकामियों की गवाही बनी हैं.
सिर्फ भोपाल ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं हैं जो हमारे राजनैतिक भ्रस्टाचार और नाकामियों की गवाही बनी हैं. दिसंबर 2, 1984 की वो काली और गन्दी रात, जो शायद सिर्फ भोपालवासी ही नहीं हम पूरे देशवासी कभी नहीं भुला पाएंगे. यूनियन कार्बाइड की कीटनाशक बनाने वाली संयंत्र से अचानक मिथाइल इसोसयनिट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव शुरू हुआ और देखते देखते आधिकारिक तौर पर 15000 ज़िन्दगियों को लील गया और 5 लाख लोगों को घायल कर गया, जिन्होंने भारी कष्ट झेले. सबसे तकलीफदेह बात तो ये है की आज भी यानी लगभग 35 सालों के बाद भी ये साबित नहीं हो पाया की एंडरसन को अमेरिका भागने में कौन-कौन दोषी थे. हाय रे कानून!!!!
(एंडरसन की तस्वीर पर थूकती एक पीड़ित महिला) image source : News: India News, Latest Bollywood News, Sports News, Business & Political News, National & International News | Times of India
3 दिसंबर 1984 की शाम हनुमानगंज, भोपाल पुलिस थाने में केस दर्ज हुआ। यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एंडरसन, जो की एक अमेरिकी थे, को खबर गयी कि उनके भोपाल स्थित फैक्ट्री में कुछ दुर्घटना हुई है. चूँकि मीडिया आज के इतना अग्रेसिव और तादाद में नहीं था, इस वजह से वो सिर्फ जायजा लेने हिंदुस्तान आया था. 7 दिसंबर की सुबह 9.30 बजे इंडियन एयरलाइंस के विमान से भोपाल पहुंचा। एयरपोर्ट पर तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और डीएम मोती सिंह ने उसे रिसीव किया।
सुबह करीब 11 बजे बजे भोपाल के एसपी और डीएम, वारेन एंडरसन को एक सफेद एंबेसडर कार में यूनियन कार्बाइड के रेस्ट हाउस ले गए और वहीं उसे हिरासत में लिए जाने की जानकारी दी गई। इसी बीच एक गलती हो गयी. रेस्ट हाउस में रखे लैंडलाइन फ़ोन का कनेक्शन कट नहीं किया गया और ना ही एंडरसन पर निगरानी रखी गयी. उसने लगभग 20 मिनट किसी से फ़ोन पर बात की. फ़ोन पर अमेरिकियों से बात करते देख उस समय के जिला पदाधिकारी मोती सिंह जी ने उसे पुनः हिरासत में लिया. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उसके थोड़ी ही देर बाद कुछ अजीब हुआ.
उस समय के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी किसी रैली को सम्बोधित कर रहे थे और बीच रैली में ही उनको फ़ोन रिसीव करने के लिए अपना भाषण बंद करना पड़ा. दुसरे तरफ से उन्हें एक आदेश आया, जिसमे उन्हें वारेन एंडरसन को तत्काल छोड़ने को कहा गया.
दोपहर 3.30 बजे उस समय के पुलिस आरक्षी यानी एस पी स्वराज पूरी ने एंडरसन को बताया की आपके अमेरिका जाने का बंदोबस्त कर दिया गया है. 25,000 रुपए का बॉन्ड और कुछ जरूरी कागजों पर साइन करने के बाद एस पी पूरी उनके साथ भोपाल एयरपोर्ट तक आकर उसे फ्लाइट में बिठा दिया. दिल्ली के इंदिरा गाँधी एयरपोर्ट पर आने के बाद एयरपोर्ट के अंदर ही अंदर केंद्र सरकार की मदद से व्यवस्थित अमेरिका जाने वाले विमान में उसे बिठा दिया गया.
उस समय के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी ने अपने आत्मकथा में उस घटना का जिक्र करते हुए उस समय के विदेश सचिव आर डी प्रधान का जिक्र किया था, की फ़ोन पर निर्देश देने वाले व्यक्ति वही थे जिन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री पी वी नरसिम्हा राव जी के आदेश पर अर्जुन सिंह जी को एंडरसन को तत्काल रिहा करवाने को बोला था. गौरतलब है की उस वक़्त राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे.
उसके बाद एंडरसन कभी भारत नहीं आया. हालांकि उसने वादा किया था की कोर्ट का सम्मान करेगा और हरेक ट्रायल पर वो भारत आएगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. जस्टिस कोचर कमीशन का गठन हुआ उसमे उसे जिस हवाई जहाज़ के द्वारा दिल्ली ले जाय गया था, उसके चालक कप्तान हाफ़िज़ अली और उपचालक कप्तान ग्रोवर ने ये जानकारी दी की उनको ये कतई जानकारी नहीं थी की उस विमान में बैठा हुआ शख्श वारेन एंडरसन है, क्योंकि वो एक रेगुलर फ्लाइट थी.
यात्रा लॉग बुक, जिसे एक महत्त्वपूर्ण सबूत माना जा सकता था, उसे भी नष्ट कर दिया गया. कप्तान हाफ़िज़ अली ने कबूला की उन्होंने सिर्फ एस पी पूरी को एंडरसन को फ्लाइट में बिठाते हुए देखा और इंदिरा गाँधी एयरपोर्ट पर एंडरसन को रिसीव करने वाले कोई अनजान व्यक्ति था, जिसे वो नहीं पहचानते थे.
कई कमिटियां बनी और कई गवाहियां हुई. 2011 में अर्जुन सिंह और 2014 में वारेन एंडरसन, दोनों ही ऊपर चले गए, लेकिन एक अबूझ, रहस्यमयी पहेली हम भारतवासियों के लिए छोड़ गए, की आखिर वो कौन सा दबाव था, जिसने लाखों लोगों के गुनाहगार को भारत से भगाने में मदद की थी. हमें एक दूषित राजनैतिक इक्षाशक्ति को कोसने के अलावे कुछ नहीं मिला.
पहली तस्वीर वारेन एंडरसन की है, वारेन एंडरसन उसी यूनियन कार्बायड कम्पनी का मालिक था जिसकी कम्पनी में आज से 35 साल पहले आज के ही दिन मीथेन गैस के रिसने से हज़ारों जाने चली गयीं थी और लाखों लोगों पर उसका असर पड़ा था। लेकिन वारेन एंडरसन को पकड़ने के बावजूद रिहा कर दिया गया, और रिहा ही नहीं किया गया बल्कि उसके अमेरिका जाने का इंतज़ाम भी करवाया गया। और ये सब किया गया था उस आदमी के लिए जिसकी तस्वीर एंडरसन के बाजु में लगी हुई है।
उसका नाम था आदिल शहरयार...
कौन था आदिल शहरयार और क्या थी वारेन एंडरसन को छोड़े जाने के पीछे की कहानी...आइए जानते हैं...
3 दिसम्बर 1984, भोपाल के Union Carbide के कारख़ाने से मिथेन गैस रिसती है और 15000 से ज़्यादा लोग मर जाते हैं लाखों लोग विकलांग हो जाते हैं..
Union Carbide के मालिक वॉरन एंडरसन को भोपाल में गिरफ़्तार कर लिया जाता है। यूनियन कॉर्बायड अमेरिका की एक MNC है, जिसके मालिक को गिरफ़्तार करते ही अमेरिका का भारतीय दूतावास भारत पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर देता है।
राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बने अभी 1 महीना और 3 दिन ही हुए हैं, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह हैं।
थोड़ा पीछे चलते हैं, नेहरु और बाद में इंदिरा गांधी के बहुत ज़्यादा क़रीबी रहे मुहम्मद यूनुस का बेटा अमेरिका की एक जेल में बंद है, आरोप आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का है और जिसमें सज़ा उन्हें उम्र क़ैद की मिली हुई है, जिसके लिए उन्हें जीवन पर्यन्त जेल में ही रहना पड़ेगा।
वापस 6 दिसम्बर 84 पर आते हैं, गैस कांड में मरने वालों की संख्या बढ़ रही है, जनता का ग़ुस्सा भी बढ़ रहा है, और साथ ही बढ़ रहा है अमेरिका का भारत सरकार पर वॉरन एंडरसन को छोड़ने का प्रेशर।
इस बीच अमेरिका से एक डील होती है, वॉरन एंडरसन को रिहा करने के बदले प्रधानमंत्री राजीव गांधी के “भाई जैसे” बचपन के मित्र आदिल शहर्यार को रिहा करने की।
7 दिसम्बर 84, भोपाल के SP स्वराज पूरी के पास एक फ़ोन आता है कि “ऊपर से” निर्देश हैं, एंडरसन को रिहा किया जाए, SP और कलेक्टर ख़ुद सरकारी गाड़ी से एंडरसन को जेल से हवाई अड्डे छोड़ने जाते हैं, कार ख़ुद SP चला रहे हैं और कलेक्टर एंडरसन के बाजु में पीछे की सीट पर बैठे हैं। हवाई अड्डे पर एंडरसन को दिल्ली छोड़ने के लिए एक स्पेशल विमान खड़ा है जहाँ उन्हें विदा करने के लिए अर्जुन सिंह भी आते हैं, भोपाल से दिल्ली पहुँचते ही वहाँ एक स्पेशल चार्टर्ड खड़ा है जो एंडरसन को अमेरिका ले जाता है।
और कुछ ही महीनों बाद राजीव गांधी के अमेरिका दौरे के पहले ही दिन अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन राजीव गांधी जी के “भाई जैसे” बचपन के मित्र की सज़ा माफ़ कर उन्हें रिहा कर देते हैं। अमेरिका के पूरे ज्ञात इतिहास में आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ है कि राष्ट्रपति ने फ़ेडरल कोर्ट के फ़ैसले को पलट दिया हो।
अब कुछ लोग इस बात को पढ़कर कोंग्रेस और राजीव गांधी जी को भला बुरा कहने लगेंगे, जबकि ये कहानी दोस्त की दूसरे दोस्त से किसी भी क़ीमत पर दोस्ती निभाने की है, जनता का क्या, जनता तो मरती ही रहती है...
दुर्वासा ऋषि बहुत क्रोधी स्वभाव के थे लेकिन फिर वह इतने सिद्ध पुरुष कैसे थे?
"ऋषि दुर्वासा का नाम सुनते ही मन में श्राप का भय पैदा हो जाता है की कंही हमको कोई श्राप न दे दे उनका खौफ्फ़ तो देवो में भी रहता है तो हम तो साधारण इंसान है. जाने "
"दुर्वासा"
नाम तो सुना ही होगा? इसका अर्थ है जिसके साथ न रहा जा सके, वैसे भी
क्रोधी व्यक्ति से लोग दूर ही रहते है लेकिन दुर्वासा ऋषि के तो हजारो
शिष्य थे जो साथ ही रहते थे. कब जन्मे कैसे पले बढ़े और अब कहा है दुर्वासा
ऋषि ये तो आपको बिलकुल भी पता नहीं होगा.
सबसे पहले जाने दुर्वासा के
जन्म और नामकरण की कथा, ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार एक बार शिव और पारवती
में तीखी बहस हुई. गुस्से में आई पारवती ने शिव जी से कह दिया की आप का ये
क्रोधी स्वाभाव आपको साथ न रहने लायक बनाता है, तब शिव ने अपने क्रोध को
अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया के गर्भ में स्थापित कर दिया.
इसी के चलते
अत्रि और अनुसूया के पुत्र दुर्वासा का नामकरण भी पारवती के साथ न रहने
लायक कहने के चलते दुर्वासा ही रखा गया. इसके पहले अनुसूया के त्रिदेवो को
बालक बनाकर पुत्र रूप में मांगने की कथा तो आपने सुन ही रखी होगी अब जाने
आगे की कहानी.
image sources : pinterest
दुर्वासा ऋषि की शिक्षा पिता के सानिध्य में ही हुई थी लेकिन जल्द ही वो तपस्पि स्वाभाव के होने के चलते माता पिता को छोड़ वन में विचरने लगे थे. तब उनके पास एक ऋषि अपनी बेटी के साथ दुर्वासा के पास आये और उनसे अपनी बेटी का पाणिग्रहण करवा दिया. ऋषि ने दुर्वासा से अपनी बेटी के सब गुण कहे पर साथ में बताया उसका एक अवगुण जो सबपे भारी था.
ऋषि की लड़की का नाम था कंडली और उसमे एक ही अवगुण था की वो कलहकारिणी थी, दुर्वासा के उग्र स्वाभाव को जान ऋषि ने दुर्वासा से उसके सभी अपराध माफ़ करने की अपील की. ऐसे में दुर्वासा ने कहा की मैं अपनी पत्नी के 100 अपराध क्षमा करूँगा उसके बाद नहीं.
दोनों की शादी हो गई और ब्रह्मचारी दुर्वासा गृहस्थी में पड़ गए, लेकिन अपने स्वाभाव के चलते कंदली बात बात पर पति से कलह करती और अपने वरदान के चलते दुर्वासा को क्रोध सहना पड़ा.
image sources : kraftindia
जिन दुर्वासा के क्रोध से सृष्टि के जिव कांपते थे वो ही तब अपनी पत्नी के क्रोध से कांपते थे, कांपते इसलिए थे की उन्होंने वरदान दे दिया था और वो कुछ नहीं कर सकते थे. आलम ये था की दुर्वासा ने 100 से ज्यादा गलतिया (पत्नी की) माफ़ की लेकिन एक दिन उनका पारा असहनीय हो गया और उन्होंने तब अपनी ही पत्नी कंदली को भस्म कर दिया.
तभी उनके ससुर आ पहुंचे और दुर्वासा की ये करनी देख उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया और कहा की तुमसे सहन नहीं हुई तो उसका त्याग कर देना चाहिए था इसे मारा क्यों. इसी गलती के चलते दुर्वासा को अमरीश जी से बेइज्जत होना पड़ा था, अन्यथा रुद्रावतार का सुदर्शन क्या कर सकता था.
उस घटना के दिन से ही कंदली की राख कंदली जाती बन गई और आज भी वो जाती मौजूद है....... इसके आलावा श्री कृष्ण की वो बहिन (यशोदा की बेटी) जिसे कंस ने मारना चाहा था बाद में वासुदेव देवकी ने पाला और दुर्वासा से ही उनका तब विवाह हुआ था. उसका नाम था एकविंशा है न अद्भुद कथा...
image sources : dandvats
कर्ण से प्रेरित दुर्योधन ने योजनाबद्ध तरीके से दुर्वासा ऋषि और उनके हजारो शिष्यों को वनवासी पांडवो के पास तब भेजा जब वो भोजन कर चुके थे. हालाँकि पांडवो के पास अक्षय पात्र था लेकिन जब तक द्रौपदी न खाली तब तक ही उसमे भोजन रहता था और द्रौपदी तब खा चुकी थी.
ऐसे में दुर्वासा पहुँच गए और स्नान के लिए नदी किनारे गए तो द्रौपदी ने श्री कृष्ण को याद किया, श्री कृष्ण उस समय भोजन की थाली पर बैठे थे और थाली छोड़ कर अपनी परम भक्त की मदद को पहुँच गए. श्री कृष्ण ने तब अक्षय पात्र में बचे तिनके को खाकर अपनी और समस्त संसार की भूख शांत कर दी जिसमे दुर्वासा जी भी शामिल थे.
लेकिन दुर्वासा जान गए थे श्री कृष्ण की ये करनी, तब दुर्वासा जी ने श्री कृष्ण से कहा की शास्त्रों का लेख है की परोसी हुई थाली नहीं छोड़नी चाहिए और किसी का झूठा नहीं खाना चाहिए. आपने ऐसा किया है इसलिए आप को मेरा श्राप है की भोजन के लिए लड़ते हुए ही आपका वंश नाश हो जायेगा और ऐसा ही हुआ था.
लेकिन श्री कृष्ण सशरीर ही गोलोक गए थे हालाँकि कई जगह उन्हें देह त्याग की भी बात लिखी गई है, इसलिए परोसी हुई थाली न छोड़े और किसी का जूठा भी न खाये.
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