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मंगलवार, 23 जुलाई 2024

श्रावण मास माहात्म्य"अध्याय -02


                       "श्रावण मास माहात्म्य"
                               अध्याय -02

          इस अध्याय में पढ़िये:- (श्रावण मास में विहित कार्य)

          ईश्वर बोले–'हे महाभाग ! आपने उचित बात कही है। हे ब्रह्मपुत्र ! आप विनम्र, गुणी, श्रद्धालु तथा भक्तिसम्पन्न श्रोता हैं। हे अनघ ! आपने श्रावण मास के विषय में विनम्रता पूर्वक जो पूछा है, उसे तथा जो नहीं भी पूछा है–वह सब अत्यन्त हर्ष तथा प्रेम के साथ मैं आपको बताऊँगा।
          द्वेष ना करने वाला सबका प्रिय होता है और आप उसी प्रकार के विनम्र हैं क्योंकि मैंने आपके अभिमानी पिता ब्रह्मा का पाँचवाँ मस्तक काट दिया था तो भी आप उस द्वेष भाव का त्याग कर मेरी शरण को प्राप्त हुए हैं। अतः हे तात ! मैं आपको सब कुछ बताऊँगा, आप एकाग्रचित्त होकर सुनिए।
          हे योगिन ! मनुष्य को चाहिए कि श्रावण मास में नियम पूर्वक नक्तव्रत करे और पूरे महीने भर प्रतिदिन रुद्राभिषेक करे। अपनी प्रत्येक प्रिय वस्तु का इस मास में त्याग कर देना चाहिए। 
          पुष्पों, फलों, दांतों, तुलसी की मंजरी तथा तुलसी दलों और बिल्वपत्रों से शिव जी की लक्ष पूजा करनी चाहिए, एक करोड़ शिवलिंग बनाना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। महीने भर धारण-पारण व्रत अथवा उपवास करना चाहिए। इस मास में मेरे लिए अत्यन्त प्रीतिकर पंचामृताभिषेक करना चाहिए।
          इस मास में जो-जो शुभ कर्म किया जाता है वह अनन्त फल देने वाला होता है। हे मुने ! इस माह में भूमि पर सोयें, ब्रह्मचारी रहें और सत्य वचन बोले। इस मास को बिना व्रत के कभी व्यतीत नहीं करना चाहिए। फलाहार अथवा हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिए। पत्ते पर भोजन करना चाहिए। व्रत करने वाले को चाहिए कि इस मास में शाक का पूर्ण रूप से परित्याग कर दे। हे मुनिश्रेष्ठ ! इस मास में भक्तियुक्त होकर मनुष्य को किसी ना किसी व्रत को अवश्य करना चाहिए।
          सदाचारपरायण, भूमि पर शयन करने वाला, प्रातः स्नान करने वाला और जितेन्द्रिय होकर मनुष्य को एकाग्र किए गए मन से प्रतिदिन मेरी पूजा करनी चाहिए।  इस मास में किया गया पुरश्चरण निश्चित रूप से मन्त्रों की सिद्धि करने वाला होता है। इस मास में शिव के षडाक्षर मन्त्र का जप अथवा गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिए और शिवजी की प्रदक्षिणा, नमस्कार तथा वेदपारायण करना चाहिए।
          पुरुषसूक्त का पाठ अधिक फल देने वाला होता है। इस मास में किया गया ग्रह यज्ञ, कोटि होम, लक्ष होम तथा अयुत होम शीघ्र ही फलीभूत होता है और अभीष्ट फल प्रदान करता है। जो मनुष्य इस मास में एक भी दिन व्रतहीन व्यतीत करता है, वह महाप्रलय पर्यन्त घोर नरक में वास करता है। यह मास मुझे जितना प्रिय है, उतना कोई अन्य मास प्रिय नहीं है। यह मास सकाम व्यक्ति को अभीष्ट फल देने वाला तथा निष्काम व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करने वाला है।
          हे सत्तम ! इस मास के जो व्रत तथा धर्म हैं, उन्हें मुझ से सुनिए। रविवार को सूर्यव्रत तथा सोमवार को मेरी पूजा व नक्त भोजन करना चाहिए। श्रावण मास के पहले सोमवार से आरम्भ कर के साढ़े तीन महीने का “रोटक” नामक व्रत किया जाता है। यह व्रत सभी वांछित फल प्रदान करने वाला है।
          मंगलवार को मंगल गौरी का व्रत, बुधवार व बृहस्पतिवार के दिन इन दोनों वारों का व्रत, शुक्रवार को जीवंतिका व्रत और शनिवार को हनुमान तथा नृसिंह का व्रत करना बताया गया है।
          हे मुने ! अब तिथियों में किये जाने वाले व्रतों का श्रवण करें। श्रावण के शुक्ल पक्ष की द्वित्तीया तिथि को औदुम्बर नामक व्रत होता है। श्रावण के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गौरी व्रत होता है। इसी प्रकार शुक्ल की चतुर्थी तिथि को दूर्वागणपति नामक व्रत किया जाता है। हे मुने ! उसी चतुर्थी का दूसरा नाम विनायकी चतुर्थी भी है। शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि नागों के पूजन के लिए प्रशस्त होती है।
          हे मुनिश्रेष्ठ ! इस पंचमी को ‘रौरवकल्पादि’ नाम से जानिए। षष्ठी तिथि को सुपौदन व्रत और सप्तमी तिथि को शीतला व्रत होता है। अष्टमी अथवा चतुर्दशी तिथि को देवी का पवित्रारोपण व्रत होता है। इस माह के शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की दोनों नवमी तिथियों को नक्तव्रत करना बताया गया है।
          शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ‘आशा’ नामक व्रत होता है। इस मास में दोनों पक्षों में दोनों एकादशी तिथियों को इस व्रत की कुछ और विशेषता मानी गई है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को श्रीविष्णु का पवित्रारोपण व्रत बताया गया है। इस द्वादशी तिथि में भगवान् श्रीधर की पूजा कर के मनुष्य परम गति प्राप्त करता है।
          उत्सर्जन, उपाकर्म, सभादीप, सभा में उपाकर्म, इसके बाद रक्षाबन्धन, पुनः श्रवणाकर्म, सर्पबलि और हयग्रीव का अवतार–ये सात कर्म पूर्णमासी तिथि को करने हेतु बताए गए हैं। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को ‘संकष्टचतुर्थी’ व्रत कहा गया है और श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि के दिन ‘मानवकल्पादि’ नामक व्रत को जानना चाहिए। हे द्विजोत्तम ! कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का पूर्णावतार हुआ, इस दिन उनका अवतार हुआ, अतः महान उत्सव के साथ इस दिन व्रत करना चाहिए। हे मुनिश्रेष्ठ ! इस अष्टमी को मन्वादि तिथि जानना चाहिए।
          श्रावण मास की अमावस्या तिथि को पिठोराव्रत कहा जाता है। इस तिथि में कुशों का ग्रहण और वृषभों का पूजन किया जाता है। इस मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर सब तिथियों के पृथक-पृथक देवता हैं।
          प्रतिपदा तिथि के देवता अग्नि, द्वितीया तिथि के देवता ब्रह्मा, तृतीया तिथि की गौरी और चतुर्थी के देवता गणपति हैं। पंचमी के देवता नाग हैं और षष्ठी तिथि के देवता कार्तिकेय हैं। सप्तमी के देवता सूर्य और अष्टमी के देवता शिव हैं।
          नवमी की देवी दुर्गा, दशमी के देवता यम और एकादशी तिथि के देवता विश्वेदेव कहे गए हैं। द्वादशी के विष्णु तथा त्रयोदशी के देवता कामदेव हैं। चतुर्दशी के देवता शिव, पूर्णिमा के देवता चन्द्रमा और अमावस्या के देवता पितर हैं। ये सब तिथियों के देवता कहे गए हैं। जिस देवता की जो तिथि हो उस देवता की उसी तिथि में पूजा करनी चाहिए। प्रायः इसी मास में ‘अगस्त्य’ का उदय होता है। हे मुने ! मैं उस काल को बता रहा हूँ, आप एकाग्रचित्त होकर सुनिए।
          सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश करने के दिन से जब बारह अंश चालीस घडी व्यतीत हो जाती है तब अगस्त्य का उदय होता है। उसके सात दिन पूर्व से अगस्त्य को अर्ध्य प्रदान करना चाहिए। बारहों मासों में सूर्य पृथक-पृथक नामों से जाने जाते हैं। उनमें से श्रावण मास में सूर्य ‘गभस्ति’ नाम वाला होकर तपता है। इस मास में मनुष्यों को भक्ति सम्पन्न होकर सूर्य की पूजा करनी चाहिए।  हे सत्तम ! चार मासों में जो वस्तुएं वर्जित हैं, उन्हें सुनिए। श्रावण मास में शाक तथा भाद्रपद में दही का त्याग कर देना चाहिए। इसी प्रकार आश्विन में दूध तथा कार्तिक में दाल का परित्याग कर देना चाहिए।
          यदि इन मासों में इन वस्तुओं का त्याग नहीं कर सके तो केवल श्रावण मास में ही उक्त वस्तुओं का त्याग करने से मानव उसी फल को प्राप्त कर लेता है।
          हे मानद  ! यह बात मैंने आपसे संक्षेप में कही है, हे मुनिश्रेष्ठ! इस मास के व्रतों और धर्मों के विस्तार को सैकड़ों वर्षों में भी कोई नहीं कह सकता। मेरी अथवा विष्णु की प्रसन्नता के लिए सम्पूर्ण रूप से व्रत करना चाहिए। परमार्थ की दृष्टि से हम दोनों में भेद नहीं है। जो लोग भेद करते हैं, वे नरकगामी होते हैं। अतः हे सनत्कुमार ! आप श्रावण मास में धर्म का आचरण कीजिए।
          ॥इस प्रकार ईश्वरसनत्कुमार संवाद के अंतर्गत “श्रावणव्रतोंद्देशकथन”  नामक दुसरा अध्याय पूर्ण हुआ॥२॥
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                           "ॐ नमःशिवाय"

श्रावण मास का आध्यात्मिक महत्त्व

श्रावण मास का आध्यात्मिक महत्त्व

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श्रावण अथवा सावन हिंदु पंचांग के अनुसार वर्ष का पाँचवा महीना ईस्वी कलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। इस वर्ष श्रावण मास 22 जुलाई से 19 अगस्त तक रहेगा। इसे वर्षा ऋतु का महीना या 'पावस ऋतु' भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें 'हरियाली तीज', 'रक्षाबन्धन', 'नागपंचमी' आदि प्रमुख हैं। 'श्रावण पूर्णिमा' को दक्षिण भारत में 'नारियली पूर्णिमा' व 'अवनी अवित्तम', मध्य भारत में 'कजरी पूनम', उत्तर भारत में 'रक्षाबंधन' और गुजरात में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है। 'श्रावण' यानी सावन माह में भगवान शिव की अराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियाँ तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियाँ भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं।

महादेव को प्रिय सावन
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सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- "जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।

भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। 'शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।

शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।

शिव की पूजा
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सावन मास में भगवान शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों संग करनी चाहिए। इस माह में भगवान शिव के 'रुद्राभिषेक' का विशेष महत्त्व है। इसलिए इस मास में प्रत्येक दिन 'रुद्राभिषेक' किया जा सकता है, जबकि अन्य माह में शिववास का मुहूर्त देखना पड़ता है। भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं। अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रूप में चढा़या जाता है।

शिवलिंग पर बेलपत्र तथा शमीपत्र चढा़ने का वर्णन पुराणों में भी किया गया है। बेलपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढा़या जाता है। कहा जाता है कि 'आक' का एक फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से सोने के दान के बराबर फल मिलता है। हज़ार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों को चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्व पत्र से दान का पुण्य मिल जाता है। हज़ार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी होते हैं। हज़ार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हज़ार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हज़ार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हज़ार शमी के पत्तों के बराकर एक नीलकमल, हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हज़ार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।

बेलपत्र
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भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका उन्हें 'बेलपत्र' अर्पित करना है। बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्त्व है। इस कथा के अनुसार- "भील नाम का एक डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था, वह बेल का पेड़ था। रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। जो पत्ते वह डाकू तोडकर नीचे फेंख रहा था, वह अनजाने में शिवलिंग पर ही गिर रहे थे। लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा। उस दिन से बिल्व-पत्र का महत्ता और बढ़ गया।

सावन सोमवार का महत्त्व
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श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिव के निमित्त व्रत किए जाते हैं। इस मास में शिव जी की पूजा का विशेष विधान हैं। कुछ भक्त तो पूरे मास ही भगवान शिव की पूजा-आराधना और व्रत करते हैं। अधिकांश व्यक्ति केवल श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवार का ही व्रत करते हैं। श्रावण मास के सोमवारों में शिव के व्रतों, पूजा और शिव जी की आरती का विशेष महत्त्व है। शिव के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किये जाते हैं। व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान कर 'शिव पंचाक्षर मन्त्र' का जप करते हुए पूजन करना चाहिए।

सावन के महीने में सोमवार महत्वपूर्ण होता है। सोमवार का अंक 2 होता है, जो चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। चन्द्रमा मन का संकेतक है और वह भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है। 'चंद्रमा मनसो जात:' यानी 'चंद्रमा मन का मालिक है' और उसके नियंत्रण और नियमण में उसका अहम योगदान है। यानी भगवान शंकर मस्तक पर चंद्रमा को नियंत्रित कर उक्त साधक या भक्त के मन को एकाग्रचित कर उसे अविद्या रूपी माया के मोहपाश से मुक्त कर देते हैं। भगवान शंकर की कृपा से भक्त त्रिगुणातीत भाव को प्राप्त करता है और यही उसके जन्म-मरण से मुक्ति का मुख्य आधार सिद्ध होता है।

काँवर
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ऐसी मान्यता है कि भारत की पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किए जाने से शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। 'काँवर' संस्कृत भाषा के शब्द 'कांवांरथी' से बना है। यह एक प्रकार की बहंगी है, जो बाँस की फट्टी से बनाई जाती है। 'काँवर' तब बनती है, जब फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप की खुशबू, मुख में 'बोल बम' का नारा, मन में 'बाबा एक सहारा।' माना जाता है कि पहला 'काँवरिया' रावण था। श्रीराम ने भी भगवान शिव को कांवर चढ़ाई थी।

हरियाली तीज
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सावन का महीना प्रेम और उत्साह का महीना माना जाता है। इस महीने में नई-नवेली दुल्हन अपने मायके जाकर झूला झूलती हैं और सखियों से अपने पिया और उनके प्रेम की बातें करती है। प्रेम के धागे को मजबूत करने के लिए इस महीने में कई त्योहार मनाये जाते हैं। इन्हीं में से एक त्योहार है- 'हरियाली तीज'। यह त्योहार हर साल श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस त्योहार के विषय में मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी।

इससे प्रसन्न होकर शिव ने 'हरियाली तीज' के दिन ही पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस त्योहार के विषय में यह मान्यता भी है कि इससे सुहाग की उम्र लंबी होती है।
कुंवारी कन्याओं को इस व्रत से मनचाहा जीवन साथी मिलता है। हरियाली तीज में हरी चूड़ियां, हरा वस्त्र और मेंहदी का विशेष महत्व है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती हैं। इसकी शीतल तासीर प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है। माना जाता है कि मेंहदी बुरी भावना को नियंत्रित करती है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की मदद करता है। सावन में पड़ने वाली फुहारों से प्रकृति में हरियाली छा जाती है। सुहागन स्त्रियां प्रकृति की इसी हरियाली को अपने ऊपर समेट लेती हैं। इस मौके पर नई-नवेली दुल्हन को सास उपहार भेजकर आशीर्वाद देती है। कुल मिलाकर इस त्योहार का आशय यह है कि सावन की फुहारों की तरह सुहागनें प्रेम की फुहारों से अपने परिवार को खुशहाली प्रदान करेंगी और वंश को आगे बढ़ाएँगी।

वर्षा का मौसम
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सावन के महीने में सबसे अधिक बारिश होती है, जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्रमा और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है, जो ऊष्मा देता है, जबकि चंद्रमा ठंडा है, जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिस होती है, जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोलेनाथ को ठंडक व सुकून मिलता है। इसलिए शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।

सावन और साधना
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सावन और साधना के बीच चंचल और अति चलायमान मन की एकाग्रता एक अहम कड़ी है, जिसके बिना परम तत्व की प्राप्ति असंभव है। साधक की साधना जब शुरू होती है, तब मन एक विकराल बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। उसे नियंत्रित करना सहज नहीं होता। लिहाजा मन को ही साधने में साधक को लंबा और धैर्य का सफर तय करना होता है। इसलिए कहा गया है कि मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है। अर्थात मन से ही मुक्ति है और मन ही बंधन का कारण है। भगवान शंकर ने मस्तक में ही चंद्रमा को दृढ़ कर रखा है, इसीलिए साधक की साधना बिना किसी बाधा के पूर्ण होती है।
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रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद

रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद
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पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही ! ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है ।

अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसेयाग्यों से भी प्राप्त नही होता !

स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है । लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है ! 

(1) रूपक या षडड पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ खा गया है ।

शिव कल्प शुक्त --- 1. प्रथम हृदय रूपी अंग है 

पुरुष शुक्त --- 2. द्वितीय सर रूपी अंग है ।

अप्रतिरथ सूक्त --- 3. कवचरूप चतुर्थ अंग है ।

मैत्सुक्त --- 4. नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।

शतरुद्रिय --- 5. अस्तरूप षष्ठ अंग कहा गया है।

इस प्रकार - सम्पूर्ण रुद्रश्त्ध्ययि के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है।

(2) रुद्री या एकादिशिनि - रुद्राध्याय की गयी ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।

(3) लघुरुद्र- एकादिशिनी रुद्री की ग्यारह अव्रितियों के पाठ के लघुरुद्रा पाठ खा गया है।

यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है । तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होती है।

(4) महारुद्र -- लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है । 

(5) अतिरुद्र - महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पथ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है ये👉
(1)अनुष्ठात्मक 
(2) अभिषेकात्मक 
(3) हवनात्मक , 

तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो की अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है। 

रुद्राभिषेक प्रयुक्त होने वाले प्रशस्त द्रव्य व उनका फल 
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1. जल से रुद्राभिषेक 👉 वृष्टि होती है।

2. कुशोदक जल से 👉 समस्त प्रकार की व्याधि की शांति होती है।

3. दही से अभिषेक 👉 पशु प्राप्ति होती है।

4. इक्षु (गन्ने) का रस 👉 लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए।

5. मधु (शहद) 👉  धन प्राप्ति के लिए यक्ष्मारोग (तपेदिक)।

6. घृत से👉 अभिषेक व तीर्थ जल से भी मोक्ष प्राप्ति के लिए।

7. दूध से अभिषेक 👉 प्रमेह रोग के विनाश के लिए एवं पुत्र प्राप्त होता है ।

8. जल की की धारा👉 भगवान शिव को अति प्रिय है अत: ज्वर के कोपो को शांत करने के लिए जल धरा से अभिषेक करना चाहिए।

9. सरसों के तेल 👉 से अभिषेक करने से शत्रु का विनाश होता है। यह अभिषेक विवाद मकदमे सम्पति विवाद न्यालय में विवाद को दूर करते है।

10.शक्कर मिले जल 👉 से पुत्र की प्राप्ति होती है ।

11. इतर मिले जल से 👉 अभिषेक करने से शरीर की बीमारी नष्ट होती है ।

12. दूध से मिले काले तिल 👉 से अभिषेक करने से भगवन शिव का आधार इष्णन करने से सारे रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है ।

13. समस्त प्रकार के प्रकृतिक रसो से अभिषेक हो सकता है ।

सार 👉 उप्प्युक्त द्रव्यों से महालिंग का अभिषेक पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तो की तदन्तर कामनाओं का पूर्ति करते है ।

अत: भक्तो को यजुर्वेद विधान से रुद्रो का अभिषेक करना चाहिए ।

विशेष बात 👉 रुद्राध्याय के केवल पाठ अथवा जप से ही सभी कम्नावो की पूर्ति होती है 

रूद्र का पाठ या अभिषेक करने या कराने वाला महापातक रूपी पंजर से मुक्त होकर सम्यक ज्ञान प्राप्त होता है और अंत विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करता है ।
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श्रावण सोमवार विशेष - श्रावण सोमवार का महत्त्व


श्रावण सोमवार का महत्त्व
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श्रावण का सम्पूर्ण मास मनुष्यों में ही नही अपितु पशु पक्षियों में भी एक नव चेतना का संचार करता है जब प्रकृति अपने पुरे यौवन पर होती है और रिमझिम फुहारे साधारण व्यक्ति को भी कवि हृदय बना देती है। सावन में मौसम का परिवर्तन होने लगता है।प्रकृति हरियाली और फूलो से धरती का श्रुंगार देती है परन्तु धार्मिक परिदृश्य से सावन मास भगवान शिव को ही समर्पित रहता है।

मान्यता है कि शिव आराधना से इस मास में विशेष फल प्राप्त होता है। इस महीने में हमारे सभी ज्योतिर्लिंगों की विशेष पूजा  ,अर्चना और अनुष्ठान की बड़ी प्राचीन एवं पौराणिक परम्परा रही है। रुद्राभिषेक के साथ साथ महामृत्युंजय का पाठ तथा काल सर्प दोष निवारण की विशेष पूजा का महत्वपूर्ण समय रहता है।यह वह मास है जब कहा जाता है जो मांगोगे वही मिलेगा।भोलेनाथ सबका भला करते है।

श्रावण महीने में हर सोमवार को शिवजी का व्रत या उपवास रखा जाता है।श्रावण मास में पुरे माह भी व्रत रखा जाता है। इस महीने में प्रत्येक दिन स्कन्ध पुराण के एक अध्याय को अवश्य पढना चाहिए। यह महीना मनोकामनाओ का इच्छित फल प्रदान करने वाला माना जाता है। पुरे महीने शिव परिवार की विशेष पूजा की जाती है।

सावन के सोमवार 2024 मे
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इस वर्ष में 22 जुलाई को श्रावण मास की शुरुवात होगी और 22 जुलाई के दिन ही श्रावण मास का प्रथम सोमवार पड़ेगा। इसके बाद से 29 जुलाई को दूसरा सोमवार , 5 अगस्त को तीसरा सोमवार , 12 अगस्त को चौथा सोमवार पड़ेगा, 19 अगस्त को पांचवा सोमवार, 
और अगस्त राखी का त्योहार होगा। ये सब उत्तरी भारत के पंचागों के अनुसार मान्य है 

इस मास के सोमवार के उपवास रखे जाते है। कुछ श्रद्धालु 16 सोमवार का व्रत रखते है। श्रावण मास में मंगलवार के व्रत को मंगला गौरी व्रत कहा जाता है। जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा है उन्हें सावन में मंगला गौरी का व्रत रखना लाभदायक रहता है।सावन की महीने में सावन शिवरात्रि और हरियाली अमावस का भी अपना अलग अलग महत्व है।

श्रावण की विशेषता
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सावन के सोमवार  पर रखे गये व्रतो की महिमा अपरम्पार है।जब सती ने अपने पिता दक्ष के निवास पर शरीर त्याग दिया था उससे पूर्व महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। पार्वती ने सावन के महीने में ही निराहार रहकर कठोर तप किया था और भगवान शंकर को पा लिया था। इसलिए यह मास विशेष हो गया और सारा वातावरण शिवमय हो गया।

इस अवधि में विवाह योग्य लडकियाँ इच्छित वर पाने के लिए सावन के सोमवारों पर व्रत रखती है इसमें भगवान शंकर के अलावा शिव परिवार अर्थात माता पार्वती , कार्तिकेय , नन्दी और गणेश जी की भी पूजा की जाती है। सोमवार को उपवास रखना श्रेष्ट माना जाता है परन्तु जो नही रख सकते है वे सूर्यास्त के बाद एक समय भोजन ग्रहण कर सकते है।

श्रावण मास में शिव उपासना विधि
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श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होने से मास का नाम श्रावण हुआ और वैसे तो प्रतिदिन ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।

लेकिन श्रावण मास में भगवान शिव के कैलाश में आगमन के कारण व श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय होने से की गई समस्त आराधना शीघ्र फलदाई होती है।
पद्म पुराण के पाताल खंड के अष्टम अध्याय में ज्योतिर्लिंगों के बारे में कहा गया है कि जो मनुष्य इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करता है, उनकी समस्त कामनाओं की इच्छा पूर्ति होती है। स्वर्ग और मोक्ष का वैभव जिनकी कृपा से प्राप्त होता है।

शिव के त्रिशूल की एक नोक पर काशी विश्वनाथ की नगरी का भार है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि प्रलय आने पर भी काशी को किसी प्रकार की क्षति नहीं होगी।

भारत में शिव संबंधी अनेक पर्व तथा उत्सव मनाए जाते हैं। उनमें श्रावण मास भी अपना विशेष महत्व रखता है। संपूर्ण महीने में चार सोमवार, एक प्रदोष तथा एक शिवरात्रि, ये योग एकसाथ श्रावण महीने में मिलते हैं। इसलिए श्रावण का महीना अधिक फल देने वाला होता है। इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामूठ च़ढ़ाई जाती है। 

वह क्रमशः इस प्रकार है :👇
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प्रथम सोमवार को👉 कच्चे चावल एक मुट्ठी।
दूसरे सोमवार को👉 सफेद तिल्ली एक मुट्ठी।
तीसरे सोमवार को👉  ख़ड़े मूँग एक मुट्ठी।
चौथे सोमवार को👉  जौ एक मुट्ठी और 

यदि पाँचवाँ सोमवार आए तो एक मुट्ठी सत्तू च़ढ़ाया जाता है।

महिलाएँ श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना एवं व्रत अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं। सभी व्रतों में सोलह सोमवार का व्रत श्रेष्ठ है। इस व्रत को वैशाख, श्रावण, कार्तिक और माघ मास में किसी भी सोमवार को प्रारंभ किया जा सकता है। इस व्रत की समाप्ति सत्रहवें सोमवार को सोलह दम्पति (जो़ड़ों) को भोजन एवं किसी वस्तु का दान देकर उद्यापन किया जाता है।

शिव की पूजा में बिल्वपत्र अधिक महत्व रखता है। शिव द्वारा विषपान करने के कारण शिव के मस्तक पर जल की धारा से जलाभिषेक शिव भक्तों द्वारा किया जाता है। शिव भोलेनाथ ने गंगा को शिरोशार्य किया है।
श्रावण मासमें आशुतोष भगवान्‌ शंकरकी पूजाका विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हें सोमवार को शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये और व्रत रखना चाहिये। सोमवार भगवान्‌ शंकरका प्रिय दिन है, अत: सोमवारको शिवाराधन करना चाहिये।

श्रावण में पार्थिव शिवपूजा का विशेष महत्व है। अत: प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार तथा प्रदोष को शिवपूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये।

सोमवार के व्रत के दिन प्रातःकाल ही स्नान ध्यान के उपरांत मंदिर देवालय या घर पर श्री गणेश जी की पूजा के साथ शिव-पार्वती और नंदी की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल , दूध , दही , शहद , घी , चीनी , जने‌ऊ , चंदन , रोली , बेल पत्र , भांग , धतूरा , धूप , दीप और दक्षिणा के साथ ही नंदी के लि‌ए चारा या आटे की पिन्नी बनाकर भगवान पशुपतिनाथ का पूजन किया जाता है। रात्रिकाल में घी और कपूर सहित गुगल, धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को यही प्रक्रिया अपना‌ई जाती है। इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ करानेका भी विधान है।

अमोघ फलदाई है सोमवार व्रत
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शास्त्रों और पुराणों में श्रावण सोमवार व्रत को अमोघ फलदाई कहा गया है। विवाहित महिलाओं को श्रावण सोमवार का व्रत करने से परिवार में खुशियां, समृद्घि और सम्मान प्राप्त होता है, जबकि पुरूषों को इस व्रत से कार्य-व्यवसाय में उन्नति, शैक्षणिक गतिविधियों में सफलता और आर्थिक रूप से मजबूती मिलती है। अविवाहित लड़कियां यदि श्रावण के प्रत्येक सोमवार को शिव परिवार का विधि-विधान से पूजन करती हैं तो उन्हें अच्छा घर और वर मिलता है।

श्रावण सोमवार व्रत कथा
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श्राव ण सोमवार की  कथा के अनुसार अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सबकुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। 

दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। 

पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था। 

उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- 'हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।' 

भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- 'हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।' 

इसके बावजूद पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- 'नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।' 

पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- 'तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र सोलह वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।' 

उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के सोलह वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई। 

भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया। 

व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा। 

जब अमर बारह वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहां भी अमर और दीपचंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे। 

लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दें। इससे उसकी बदनामी होगी। 

वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा। 

वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और दीपचंद से बात की। दीपचंद ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। 

अमर जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- 'राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है।' 

जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया। अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। 

जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही अमर के प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे। 

मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वतीजी ने भगवान से कहा- 'प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।' 

भगवान शिव ने पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वतीजी से बोले- 'पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे सोलह वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।' 

पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- 'हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है।' पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा। 

शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां अमर का विवाह हुआ था। उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा। 

राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया। 

रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। 

व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। 

व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- 'हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।' व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। 

सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
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शिव मुट्ठी श्रावण मास

🙏शिव मुट्ठी श्रावण मास 

🙏 प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी,
 
 
2. दूसरे सोमवार को सफेद तिल् एक मुट्ठी,
 
 
3. तीसरे सोमवार को खड़े मूँग एक मुट्ठी,
 
 
4. चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी और

5. यदि पांच सोमवार हो तो पांचवें सोमवार को एक मुठ्ठी सतुआ चढ़ाएं।

 🚩राशि अनुसार चढ़ाएं ये चीजें

मेष राशि के जातक सावन सोमवार के दिन शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं। लाल फूल अर्पित कर घी का दीपक जलाएं।

वृषभ राशि के लोग दूध मिश्रित जल से शिवलिंग का अभिषेक करें। साथ ही भगवान शिव को सफेद फूल और चंदन का लेप लगा सकते हैं।

सिंह राशि के लोग सावन सोमवार पर घी का दीपक जलाएं। साथ ही शिवलिंग पर गेंदे के फूल और अगरबत्ती भी अर्पित करें।

मिथुन राशि के जातकों को सावन सोमवार के दिन शिवलिंग पर दही मिश्रित जल चढ़ाना चाहिए।

कर्क राशि के लोग सावन सोमवार पर चंदन और इत्र अर्पित करें। साथ ही भगवान शिव को दूध और चावल भी अर्पित कर सकते हैं

 कन्या राशि के जातक सावन सोमवार पर काले तिल और जल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें।

तुला राशि के लोग सावन सोमवार पर जल में सफेद चंदन मिलाकर शिव जी को अर्पित करें। साथ ही सुगंधित फूल भी चढ़ाएं।

वृश्चिक राशि के जातक सावन सोमवार के दिन जल और बेलपत्र अर्पित करें। इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र जप करें।

धनु राशि के लोग सावन सोमवार पर शिव जी को अबीर या गुलाल अर्पित करें। इसके साथ ही शिव जी के मंदिर जाकर शिवलिंग की पूजा करें।

मकर राशि वालों को शिव जी को भांग और धतूरा चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही आप "ओम नमः शिवाय" मंत्र का जाप कर सकते हैं।

कुंभ राशि के जातकों को भगवान शिव को नीले रंग के फूल अर्पित करने चाहिए। इसके साथ ही आप "ओम नमः शिवाय" मंत्र का जप करें।

मीन राशि के लोग गन्ने के रस और केसर से शिवलिंग का अभिषेक करें और"ओम नमः शिवाय" मंत्र का जप करें।

 
*12 राशि के शिव पूजन मंत्र*
 
मेष- ॐ ममलेश्वराय नम:।
 
वृषभ- ॐ नागेश्वराय नम:।
 
मिथुन- ॐ भूतेश्वराय नम:।
 
कर्क- ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ। 
 
सिंह- ॐ नम: शिवाय।
 
कन्या- शिव चालीसा पाठ।
 
तुला- रुद्राष्टक का पाठ।
 
वृश्चिक- ॐ अंगारेश्वराय नम:।
 
धनु- ॐ रामेश्वराय नम:।

 
मकर- ॐ महाकालेश्वराय नम:।  
 
कुंभ- ॐ शिवाय नम:।
 
मीन- ॐ भौमेश्वराय नम:।

🌹जय श्री कृष्णा 🌹


सोमवार, 22 जुलाई 2024

अजोला एक विस्मयकारी अद्भुत पौधा - 5 दिन में हो जाता है दोगुना

अजोला एक विस्मयकारी अद्भुत पौधा
आज हम आपको एक ऐसी हर्बल खाद के बारे में बता हैं जिसके इस्तेमाल से उपज तो डबल होती ही है साथ में इनकम भी दोगुनी होती है. इस हर्बल खाद की मदद से पशुओं के लिए उत्तम चारा उगाया जा सकता है. जिसके खाने से पशुओं की कई समस्या दूर हो जाती है इसके साथ ही दूध का उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है. इस हर्बल खाद के एक नहीं अनेक फायदे हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. इस हर्बल खाद का नाम है अजोला. खेती में अजोला के प्रयोग से कई लाभ मिलते हैं. फसल में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है. खेतों में कम समय में जैविक पदार्थ का कम समय में अधिक उत्पादन होता है. अजोला फसलों में जिंक, मैगनीज, लोहा, फॉस्फोरस, पोटाश की मात्रा को बढ़ाता है.

                 अजोला  तेजी से बढ़ने वाली एक प्रकार की जलीय फर्न है, जो  पानी की सतह पर तैरती रहती है। धान की फसल में नील हरित काई की तरह अजोला को भी हरी खाद के रूप में उगाया जाता है और कई बार यह खेत में प्राकर्तिक रूप से भी उग जाता है। इस हरी खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और उत्पादन में भी आशातीत बढ़ोत्तरी होती है।   एजोला की सतह पर नील हरित शैवाल सहजैविक के  रूप में विध्यमान होता है। इस नील हरित शैवाल को  एनाबिना एजोली के  नाम से जाना जाता है जो  कि वातावरण से Nitrogen के  स्थायीकरण के  लिए उत्तरदायी रहता है। एजोला शैवाल की वृद्धि के  लिए आवश्यक कार्बन स्त्रोत  एवं वातावरण प्रदाय करता है । इस प्रकार यह अद्वितीय पारस्परिक सहजैविक संबंध अजोला को  एक अदभुद पौधे के  रूप में विकसित करता है, जिसमें कि उच्च मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध होता है।  प्राकृतिक रूप से यह उष्ण व गर्म उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। देखने में यह शैवाल से मिलती जुलती है और  आमतौर पर उथले पानी में अथवा धान के  खेत में पाई जाती है।

एजोला (Azolla) एक तैरती हुई फर्न है जो शैवाल से मिलती-जुलती है। सामान्यतः एजोला धान के खेत या उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है।[1]

अजोला एक जैव उर्वरक है। एक तरफ जहाँ इसे धान की उपज बढ़ती है वहीं ये कुक्कुट, मछली और पशुओं के चारे के काम आता है। कुछ देशों में तो लोग इसे चटनी व पकोड़े भी बनाते हैं। इससे बायोडीजल तैयार किया जाता है। यहां तक कि लोग इसे अपने घर के ड्रॉइंग रूम को सजाने के लिए भी लगाते हैं। अजोला पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। पशुओं को खिलाने से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है ।

एजोला पानी में पनपने वाला छोटे बारीक पौधों के जाति का होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में फर्न कहा जाता है। एजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना (Anabaena,) नामक नील हरित काई के जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय Nitrogen का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल को nitrogen की पूर्ति करता है। एजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में ५ दिनों में ही दो-गुना हो जाता है। यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो ३०० टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है यानी ४० कि०ग्रा० nitrogen प्रति हेक्टेयर प्राप्त। एजोला में ३.५ प्रतिशत nitrogen तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की ऊर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।

धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है। २ से ४ इंच पानी से भरे खेत में १० टन ताजा एजोला को रोपाई के पूर्व डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर ३० से ४० कि०ग्रा० सुपर फास्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। इसकी वृद्धि के लिये ३० से ३५ डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है।

एजोला के उपयोग से धान की फसल में ५ से १५ प्रतिशत उत्पादन वृद्धि संभावित रहती है।

इस फर्न का रंग गहरा लाल या कत्थई होता है। धान के खेतों में यह अक्सर दिखाई देती है। छोटे-छोटे पोखर या तालाबों में जहां पानी एकत्रित होता है वहां पानी की सतह पर यह दिखाई देती है।

भारत में एजोला की सात आठ किस्में पाई जाती है जिनमें से junwer29 सर्वोत्तम है

उपयोग

जैविक खाद

अजोला का प्रयोग मुख्यतः धान की खेती में किया जाता है जिसमें सभी किस्मों का प्रयोग हम कर सकते हैं अगर Junwer29 का प्रयोग करते हैं तो अधिक लाभ मिलता है धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद हम इसे खेतों में डाल सकते हैं एक बार डालने के बाद आसानी से पूरे खेत में यह फैल जाता है खेती में एजोला को हरी खाद के रूप में रामबाण माना गया है अजोला को खाद के रूप में प्रयोग करने से भूमि में कार्बनिक गुणों में बढ़ोतरी व फसल में नाइट्रोजन की पूर्ति करना मुख्य कार्य है

पशु आहार

पशुओं को अजोला चारा खिलाने के लाभ


अजोला सस्ता, सुपाच्य, पौष्टिक, पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से पशुओं के दूध में वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं की अपेक्षा अधिक पाई जाती हैं। यह पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी है। पशुओं के पेशाब में खून आने की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है जो अजोला खिलाने से दूर हो जाती है। अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा है। अजोला में प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है। इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यन्त कम होती है, अतः इसकी संरचना इसे अत्यन्त पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है।[2] दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से पाया गया है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि होती है
पशुओं के चारे के लिए ऐसे बनाएं अजोला
सीमेंट के टैंक में 40 किलोग्राम खेत की साफ छनी भुरभुरी मिट्टी डालें. 20 लीटर पानी में दो दिन पुराना गोबर चार से पांच किग्रा लेकर घोल बनाएं. इसे अजोला के बेड पर डाल दें. टैंक में सात से दस सेमी पानी भर कर एक से डेढ़ किलोग्राम ‘मदर एजोला’ कल्चर डाल दें. अजोला धीरे-धीरे बढ़ता है. 12 दिन बाद एक किलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्लास्टिक की छन्नी से निकालें. इसे साफ कर पशुओं को खिलाएं.

अजोला के गुणधर्म

अजोला जल की सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाला फर्न है। यह छोटे-छोटे समूह में हरित गुक्ष्छ की तरह तैरता है। भारत में मुख्य रूप से "अजोला पिन्नाटा" नामक अजोला की जाति पाई जाती है जो काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली जाति है।

  • अजोला जल मे तीव्र गति से बढ़ती है।
  • अजोला प्रोटीन, आवश्यक अमीनो अम्ल, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा कैरोटीन), एवं कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, लोहा, कॉपर एवं मैग्नीशियम से भरपूर है। शुष्क वजन के आधार पर इसमें 20-30 प्रति‍शत प्रोटीन, 20-30 प्रति‍शत वसा, 50-70 प्रति‍शत खनिज लवण, 10-13 प्रति‍शत रेशा, बायो-एक्टिव पदार्थ एवं बायो पॉलीमर पाये जाते हैं।
  • इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन एवं उपरोक्त तत्व होने के कारण पशु इसे आसानी से पचा लेते हैं।
  • अजोला की उत्पादन लागत काफी कम होती है।
  • यह औसतन 15 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर प्रति सप्ताह की दर से उपज देती है।
  • सामान्य अवस्था मे यह फर्न तीन दिन में दोगुनी हो जाती है।
  • यह पशुओं के लिए प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिक) का कार्य करती है।
  • यह पशुओं के लिए आदर्श आहार के साथ साथ भूमि उर्वरा शक्ति बढाने के लिए हरी खाद के रूप में भी उपयुक्त है।

    एजोला बनाने की विधि

    पानी के पोखर या लोहे के ट्रे में एजोला कल्चर बनाया जा सकता है। पानी की पोखर या लोहे के ट्रे में ५ से ७ से.मी. पानी भर देवें। उसमें १०० से ४०० ग्राम कल्चर प्रतिवर्ग मीटर की दर से पानी में मिला देवें। सही स्थिति रहने पर एजोला कल्चर बहुत तेज गति से बढ़ता है और २.३ दिन में ही दुगना हो जाता है। एजोला कल्चर डालने के बाद दूसरे दिन से ही एक ट्रे या पोखर में एजोला की मोटी तह जमना शुरू हो जाती है जो Nitrogen स्थिरीकरण का कार्य करती है

    इस तरह कर सकते हैं उत्पादन

    अजोला उगाने के लिए किसान छोटे आकार का तालाब या क्यारी बना कर भी इसे उगा सकते हैं. और भी बड़े स्तर पर उत्पादन करना हो तो सीमेंट का टैंक बनाकर या पॉलीथीन से ढका हुआ गड्ढा बनाकर पानी में इसका उत्पादन किया जा सकता है. यहां तक कि चिकनी मिट्टी या सीमेंट के गमले में भी इसे उगाया जा सकता है.

    इस तापमान पर होता है उत्पादन
    पानी के पोखरे या लोहे के ट्रे में अजोला कल्चर बनाया जा सकता है. कल्चर डालने के बाद दूसरे दिन से ही एक ट्रे या पोखरे में अजोला की मोटी तह जमना शुरू हो जाती है जो नत्रजन स्थिरीकरण का कार्य करती है. धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है. इसकी वृद्धि के लिये 30 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है.

    अजोला उत्पादन में ध्यान देने योग्य बातें

    1.    अजोला की तेज बढ़वार और  उत्पादन के  लिए इसे प्रतिदिन उपयोग हेतु (लगभग 200 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से) बाहर निकाला जाना आवश्यक हैं।
    2.    अजोला तेैयार करने के  लिए अधिकतम 30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त माना जाता है। अतः इसे तैयार करने वाला स्थान छायादार होना चाहिए।
    3.    समय-समय पर गड्ढे में गोबर एवं सिंगल सुपर फॉस्फेट  डालते रहें जिससे अजोला फर्न तीव्रगति से विकसित  होता रहे।
    4.    प्रति माह एक बार अजोला तैयार करने वाले गड्ढे या टंकी की लगभग 5 किलो  मिट्टी को  ताजा मिट्टी से बदलेें जिससे नत्रजन की अधिकता या अन्य खनिजो  की कमी होने से बचाया जा सके ।
    5.    एजोला तैयार करने की टंकी के पानी के  पीएच मान का समय-समय पर परीक्षण करते रहें। इसका पीएच मान 5.5-7.0 के  मध्य होना उत्तम रहता है।
    6.    प्रति 10 दिनों के अन्तराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे से 25-30 प्रतिशत पानी ताजे पानी से बदल देना चाहिए जिससे नाइट्रोजन की अधिकता से बचाया जा सके ।
    7.    प्रति 6 माह के  अंतराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे को  पूरी तरह खाली कर साफ कर नये सिरे से मिट्टी,गोबर, पानी एवं अजोला कल्चर डालना चाहिए।

    5 दिन में हो जाता है दोगुना
    एजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में 5 दिनों में ही दो-गुना हो जाता है. यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो 300 टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है, यानी 40 किलोग्राम Nitrogen प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकता है. अजोला में 3.5 प्रतिशत Nitrogen तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं





ध्यान" में अगर इतनी शक्ति होती तो महर्षि दयानंद जी न मारे जाते, स्वामी श्रद्धानंद जी गोली ना खाते और पं. लेखराम जी छुरा न खाते।

*"ध्यान" में अगर इतनी शक्ति होती तो महर्षि दयानंद जी न मारे जाते, स्वामी श्रद्धानंद जी गोली ना खाते और पं. लेखराम जी छुरा न खाते।*

*आचार्य रजनीश जी* से उनके एक अनुयायी ने प्रश्न किया।
प्रश्न - *कृपया बतायें जेहादियों द्वारा जब मकान और संपत्ति जलाई जा रही हों , हत्याएं की जा रही हों,तब हमें क्या करना चाहिए बशीर? हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का प्रचार करना चाहिए या सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाना चाहिए , कृपया मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - *तुम्हारा प्रश्न ही तुम्हारी मूर्खता को बता रहा है,भारत के इतिहास से तुमने कुछ सीखा हो ऐसा मुझे मालूम नहीं पड़ता। महमूद गजनबी ने जब सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया, तो सोमनाथ उस समय का भारत का सबसे बड़ा और धनी मंदिर था।  उस मंदिर में पूजा करने वाले 1200 हिन्दू पुजारियों का ख़याल था कि हम तो रातदिन "ध्यान" ,भक्ति ,पूजापाठ, में लगे रहते हैं।  इसलिए भगवान हमारी रक्षा करेगा। उन्होंने रक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं किया, उल्टे जो क्षत्रिय अपनी रक्षा कर सकते थे, उन्हें भी मना कर दिया।*
*परिणाम क्या हुआ? महमूद गजनी ने उन हज़ारों निहत्थे हिन्दू पुरोहितो की निर्मम हत्या की, मूर्तियों ओर मंदिर को तोड़ा ओर अकूत धन संपत्ति, हीरे ,जवाहरात, सोना -चाँदी लूट कर ले गया।*
उन पंडितो का *ध्यान* भक्ति पूजा पाठ उनकी रक्षा न कर सका।

*आज सैकड़ों साल बाद भी वही मूर्खता  जारी है*, तुमने अपने महापुरूषों के जीवन से भी कुछ सीखा हो ऐसा मालूम नही पड़ता है। 

यदि "ध्यान" में इतनी शक्ति होती कि वो दुष्टों का ह्रदय परिवर्तन कर सके तो *रामचंद्र जी को हमेशा अपने साथ धनुष बाण रखने की जरूरत क्यों होती। ध्यान की शक्ति से ही वो राक्षस और रावण का हदय परिवर्तन कर देते उन्हें सुर-असुर भाई -भाई समझा देते और झगड़ा ख़त्म हो जाता लेकिन राम भी किसी को समझा न पाए और राम रावण युद्ध का फैसला भी अस्र शस्त्र से ही हुआ।*

ध्यान में यदि इतनी शक्ति होती कि वो दुसरो के मन को परिवतिर्त कर सके। तो *पूर्णावतार श्रीकृष्ण को कंस ओर जरासंघ का वध करने की जरूरत क्यों पड़ती*! ध्यान से ही उन्हें बदल देते।

ध्यान में यदि दूसरे के मन को बदलने की शक्ति होती तो *महभारत का युद्ध ही नहीं होता, कृष्ण अपनी ध्यान की शक्ति से दुर्योधन को बदल देते ओर युद्ध टल जाता। लेकिन उल्टे कृष्ण ने अर्जुन को जो कि ध्यान में जाना चाहता था रोका और उसे युद्ध में लगाया।*

*महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध है जिसमें करोड़ों लोगों का नरसंहार हुआ*, पिछले 1200 सालों में भारत मे कितने महर्षि संत हुए ,गोरखनाथ से लेकर रैदास ओर कबीर तक; गुरुनानक से लेकर गुरु गोविंदसिंह तक; इन सबकी *ध्यान* की शक्ति भी मुस्लिम आक्रान्ताओं और अंग्रेज़ों को न रोक सकी इस दौरान करोड़ों हिन्दुओं का नरसंहार हुआ और ज़बरदस्ती तलवार की नोक पर उनका धर्म परिवर्त्तन करवाया गया। 

मार मार कर उन्हें मुसलमान बनाया गया। 
उन संतों की शिक्षा आक्रान्ताओं को बदल न सकी। गुरुनानक ने तो अपना धर्म दर्शन ही इस प्रकार दिया कि मुस्लमान उसे आसानी से समझ सकें, आत्मसात कर सकें । *लेकिन उसी गुरु परंपरा में गुरुगोविंद सिह को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए, मुसलमानों के खिलाफ़ तलवार उठानी पड़ी। निहत्थे सिक्खों को शस्त्र उठाने पड़े।*

*इससे स्पष्ट हो जाता है कि ध्यान से स्वयं की ही चेतना का रूपांतरण हो सकता है,* 
*लेकिन पदार्थ (भौतिक शरीर ) की रक्षा हमें ख़ुद करनी होगी उसके लिए विज्ञान और टेक्नॉलॉजी का सहारा लेना होगा।*

*देश की 70% से अधिक समस्याओं का समाधान*

*भगवान श्रीकृष्ण ने 5 गाँव मांगे थे!*
*हम देशहित में 5 कानून मांग रहे हैं!!*

*समान शिक्षा*
*समान नागरिक संहिता*
*धर्मातंरण नियंत्रण*
*घुसपैठ नियंत्रण*
*जनसंख्या नियंत्रण*

ये पांच कानून नही आऐ तो पूरी दुनिया और भारत के नौ राज्यों की तरह सनातन पूरी तरह मिट जाऐगा।

*भारत बचाओं आंदोलन*

*अपने देश और अपनी बहन बेटियो को बचाने के लिए एक आदोंलन लड़ना होगा।*

*मुझे पत्ता है आप इसे आगे अवश्य भेजेगें। इसे पढकर छोड नही देंगे ।*

आप स्वयं समझदार है इस  Messege को आगे भेजना चाहिए या डिलीट करना चाहिए। 
🌹🌷जय श्रीराम 🌷🌹

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