जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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मंगलवार, 24 जुलाई 2012
तुमको क्या फरक पड़ेगा, फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
मत बहाना सस्ते आंसू, FACEBOOK की दीवालों पर..
फिर भड़केगी ज्वाला शायद, मुर्दों की मशालों पर..!!!
वतन की वेदी पे जिसने, बेटा अपना खोया है..
तुमको क्या फरक पड़ेगा, फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
60 बरस की काठी लेकर, फिर आज मातम मनाता..
जलती चिता संग बैठा, मैं बुझता आफताफ हूँ..
मत पूछो गांव मेरा, क्या नाम है मेरा..
शहीद-ए-हिंद फौजी का, मैं वो बूढा-बाप हू..
CCD में ही तुम बैठो यारों, तुमने कब-कुछ खोया है..
गप्पों में क्या पता पड़ेगा, क्यूँ आज तिरंगा रोया है..!!!
गोली खायी थी सीने में, जिस माटी के लाल ने..
देखो कैसे सो रहा वो, मोक्ष के अंतिम चौपाल में..
माँ घर पे विलख रही है, बच्चे झूठ संग सो जायेंगे..
बीवी"बेवा"बन गयी अब, हर वादे मुर्दा हो जायेंगे..
Macdonlds में तुम बर्गर खाते, तुमने कब कुछ खोया है..
शहीद हुआ वो लाल था मेरा, फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
कल तलक ये अंगारे भी, राख में ढल जायेंगे..
माटी से आये थे फिर माटी में मिल जायेंगे..
जिस जिस्म की जान, फकत वतन से होती है..
तपती वेदी संग दुखियारी, वो राख अभी से रोती है..
XXX पे तुम कसक मिटाते..तुमने कब क्या खोया है..
नंगे-जिस्मो में क्या पता पड़ेगा, क्यूँ आज तिरंगा रोया है..!!!
मत देना सोने के तमगे और उम्मीदों के गलियारे..
जब वो जिगर का टुकड़ा चला गया..करके बे-सहारे..
मत देना कोई ईनाम, उसकी शहादत के ईमान का..
वीर बेटा था जो मरा, क्या गया हिन्दुस्तान का..
Incentive की बातों में, तुमने कब कुछ खोया है..
तुमको क्या फरक पड़ेगा, फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
....फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
....फिर आज तिरंगा रोया है..!!!
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है
सोमवार, 23 जुलाई 2012
लाल किताब : दोषों को शांत करने के अचूक टोटके - पंडित राजीव कौशिक
लाल किताब : दोषों को शांत करने के अचूक टोटके - पंडित राजीव कौशिक
लालकिताब है ज्योतिष निराली, जो सोई किस्मत जगा देती है
फरमान पक्का दे के आखिरी, दो लफ्जों से ज़हमत हटा देती है
‘लाल किताब’ ज्योतिर्विद्या की एक स्वतन्त्र और मौलिक सिद्धान्तों पर आधारित एक अनोखी पुस्तक है। इसकी अपनी कुछ निजी विशेषताएँ हैं, जो अन्य सैद्धान्तिक अथवा प्रायोगिक फलित ज्योतिष-ग्रन्थों से हटकर हैं। ज्योतिष के इस महाग्रन्थ को पंडित रूपचंद जोशी द्वारा वर्ष १९३९ से १९५२ के दौरान पांच भागों में लिखी गई थी। उन्होंने लाल किताब में हस्त रेखाओं, सामुद्रिक शास्त्र, मकान की हालत और जन्मकुंडली के ग्रहों को मिला कर भविष्य कथन और ग्रहों के दोष निवारण के लिए उपाय बताये हैं। यह पुस्तक मूलतः उर्दू में लिखी गयी थी।
हाथ रेखा को समुद्र गिनते, नजूमे फलक का काम हो
इल्म क्याफा ज्योतिष मिलते, लालकिताब का नाम हो
कुछ लोग लाल किताब को टोनो और टोटको की किताब समझते हैं, तो कुछ लोग इस को तंत्र की किताब मानते हैं। सच्चाई ऐसी नहीं है, लाल किताब से हम किसी का भी कोई नुक्सान नहीं बल्कि केवल भलाई ही कर सकते है। इसमें धर्माचरण और सदाचरण पर जोर दिया है। लाल किताब में बहुत जगह सदाचार, कानून का पालन करना, विधवा सेवा, नेत्रहीन की सेवा और कन्या सेवा के लिए कहा गया है। वास्तव में लालकिताब जीना सीखने की किताब है।
लाल किताब के द्वारा पिछले जन्म और अगले जन्म का हाल बखूबी बताया जा सकता है । किसी भी जातक के जन्म की तिथि या समय के अभाव में उस व्यक्ति के चेहरे, हाथो की रेखा और शरीर के अंगो जैसे कान,होंठ, आंखे इत्यादि देख कर भी बहुत कुछ बताया जा सकता है ।
लाल किताब में पूर्व जन्म में किये गए पाप कर्मो को धोने के भी उपाय बताये गए हैं। उदहारण के तौर पर यदि जन्मकुंडली के दूसरे या सातवें घर में यदि शुक्र के शत्रु ग्रह ( राहू , सूर्य , चंद्रमा) बैठे हैं, तो उस जातक को वैवाहिक जीवन में असंतुष्टि हो सकती है, जिसका एक कारण ये भी हो सकता है कि उस व्यक्ति ने पूर्व जन्म में किसी गर्भवती स्त्री या गाय को स्वार्थवश सताया होगा। उपाय के तौर पर लालकिताब बताती है कि उस व्यक्ति को १०० स्वस्थ गायो को एक ही दिन में हरा चारा खिलाना चाहिए और किसी भी स्त्री या गाय को सताना नहीं चाहिए।
लाल किताब में वास्तु ज्ञान का भी वर्णन किया गया है। यहाँ तक कि मकान की हालत देख कर उसमें रहने वालो के बारे में बताया जा सकता है ।लालकिताब के अनुसार पांच कोण वाला मकान नहीं बनाना चाहिए। इस तरह का भवन उसमें रहने वाले निवासियों के लिए हानिकारक ही होता है ।
लाल किताब की सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को उपायों का सहारा लेने का संदेश देना है। ये उपाय इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है जैसे, काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि । इन उपायों के सहारे जातक कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि) में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय इन उपायों के सहारे कम खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है। लेकिन, लालकिताब में कहीं भी ऐसा दावा नहीं किया गया है की ज्योतिष द्वारा या किसी भी उपाय द्वारा हम मृत्यु को जीत सकते है बल्कि इसके उपायों द्वारा हम बुरे ग्रहों के प्रभाव को कम कर सकते हैं। लालकिताब में साफ़ साफ़ लिखा है -
बिमारी का तो बगैर दवा इलाज है, मौत का कोई इलाज नहीं
ज्योतिष दुनियावी हिसाब किताब है , कोई दावा-ऐ -खुदाई नहीं है
यहां लाल किताब के कुछ उपाय हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपनी भलाई के लिए कर सकता है -
अपने भोजन में से कुछ हिस्सा गाय, कुत्ते और कौवे को देना, विधवाओं की सेवा करना और उनका आशीर्वाद लेना, पक्षियों को दाना ड़ालना, सूर्य की अराधना करना, बिजली के मीटर में गड़बड़ न करना और बिल पूरा भरना
फरमान पक्का दे के आखिरी, दो लफ्जों से ज़हमत हटा देती है
‘लाल किताब’ ज्योतिर्विद्या की एक स्वतन्त्र और मौलिक सिद्धान्तों पर आधारित एक अनोखी पुस्तक है। इसकी अपनी कुछ निजी विशेषताएँ हैं, जो अन्य सैद्धान्तिक अथवा प्रायोगिक फलित ज्योतिष-ग्रन्थों से हटकर हैं। ज्योतिष के इस महाग्रन्थ को पंडित रूपचंद जोशी द्वारा वर्ष १९३९ से १९५२ के दौरान पांच भागों में लिखी गई थी। उन्होंने लाल किताब में हस्त रेखाओं, सामुद्रिक शास्त्र, मकान की हालत और जन्मकुंडली के ग्रहों को मिला कर भविष्य कथन और ग्रहों के दोष निवारण के लिए उपाय बताये हैं। यह पुस्तक मूलतः उर्दू में लिखी गयी थी।
हाथ रेखा को समुद्र गिनते, नजूमे फलक का काम हो
इल्म क्याफा ज्योतिष मिलते, लालकिताब का नाम हो
कुछ लोग लाल किताब को टोनो और टोटको की किताब समझते हैं, तो कुछ लोग इस को तंत्र की किताब मानते हैं। सच्चाई ऐसी नहीं है, लाल किताब से हम किसी का भी कोई नुक्सान नहीं बल्कि केवल भलाई ही कर सकते है। इसमें धर्माचरण और सदाचरण पर जोर दिया है। लाल किताब में बहुत जगह सदाचार, कानून का पालन करना, विधवा सेवा, नेत्रहीन की सेवा और कन्या सेवा के लिए कहा गया है। वास्तव में लालकिताब जीना सीखने की किताब है।
लाल किताब के द्वारा पिछले जन्म और अगले जन्म का हाल बखूबी बताया जा सकता है । किसी भी जातक के जन्म की तिथि या समय के अभाव में उस व्यक्ति के चेहरे, हाथो की रेखा और शरीर के अंगो जैसे कान,होंठ, आंखे इत्यादि देख कर भी बहुत कुछ बताया जा सकता है ।
लाल किताब में पूर्व जन्म में किये गए पाप कर्मो को धोने के भी उपाय बताये गए हैं। उदहारण के तौर पर यदि जन्मकुंडली के दूसरे या सातवें घर में यदि शुक्र के शत्रु ग्रह ( राहू , सूर्य , चंद्रमा) बैठे हैं, तो उस जातक को वैवाहिक जीवन में असंतुष्टि हो सकती है, जिसका एक कारण ये भी हो सकता है कि उस व्यक्ति ने पूर्व जन्म में किसी गर्भवती स्त्री या गाय को स्वार्थवश सताया होगा। उपाय के तौर पर लालकिताब बताती है कि उस व्यक्ति को १०० स्वस्थ गायो को एक ही दिन में हरा चारा खिलाना चाहिए और किसी भी स्त्री या गाय को सताना नहीं चाहिए।
लाल किताब में वास्तु ज्ञान का भी वर्णन किया गया है। यहाँ तक कि मकान की हालत देख कर उसमें रहने वालो के बारे में बताया जा सकता है ।लालकिताब के अनुसार पांच कोण वाला मकान नहीं बनाना चाहिए। इस तरह का भवन उसमें रहने वाले निवासियों के लिए हानिकारक ही होता है ।
लाल किताब की सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को उपायों का सहारा लेने का संदेश देना है। ये उपाय इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है जैसे, काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि । इन उपायों के सहारे जातक कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि) में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय इन उपायों के सहारे कम खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है। लेकिन, लालकिताब में कहीं भी ऐसा दावा नहीं किया गया है की ज्योतिष द्वारा या किसी भी उपाय द्वारा हम मृत्यु को जीत सकते है बल्कि इसके उपायों द्वारा हम बुरे ग्रहों के प्रभाव को कम कर सकते हैं। लालकिताब में साफ़ साफ़ लिखा है -
बिमारी का तो बगैर दवा इलाज है, मौत का कोई इलाज नहीं
ज्योतिष दुनियावी हिसाब किताब है , कोई दावा-ऐ -खुदाई नहीं है
यहां लाल किताब के कुछ उपाय हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपनी भलाई के लिए कर सकता है -
अपने भोजन में से कुछ हिस्सा गाय, कुत्ते और कौवे को देना, विधवाओं की सेवा करना और उनका आशीर्वाद लेना, पक्षियों को दाना ड़ालना, सूर्य की अराधना करना, बिजली के मीटर में गड़बड़ न करना और बिल पूरा भरना
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है
नागपंचमी की कथा
नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है । हिन्दू पंचांग के अनुसार
सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रुप में मनाया जाता है ।
इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध पिलाया जाता
है। नागपंचमी के ही दिन अनेकों गांव व कस्बों में कुस्ती का आयोजन होता है
जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। गाय, बैल आदि पशुओं को इस दिन नदी,
तालाब में ले जाकर नहलाया जाता है।
जनमानस में नागपंचमी पर्व की विविध जनश्रुतियां और कथाएँ प्रचलित है। नागपंचमी के संबंध में ऐसी ही दो बहुप्रचलित कथाएँ हम यहाँ उपलब्ध करवा रहे हैं।
नागपंचमी कथा (1)
किसी राज्य में एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल जोतते समय हल से नाग के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का संकल्प किया। रात्रि को अंधकार में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया।
अगले दिन प्रातः किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से नागिन फिर चली तो किसान कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। हाथ जोड़ क्षमा माँगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुनः जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से आज तक नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
नागपंचमी कथा- (2)
एक राजा के सात पुत्र थे, उन सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान भी हो चुकी थी। सबसे छोटे पुत्र के अब तक के कोई संतान नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियां बाँझ कहकर बहुत ताने देती थीं।
एक तो संतान न होने का दुःख और उस पर सास, ननद, जिठानी आदि के ताने उसको और भी दुःखित करने लगे। इससे व्याकुल होकर वह बेचारी रोने लगती। उसका पति समझाता कि 'संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है, फिर तू क्यों दुःखी होती है?' वह कहती- सुनते हो, सब लोग बाँझ- बाँझ कहकर मेरी नाक में दम किए हैं।
पति बोला- दुनिया बकती है, बकने दे मैं तो कुछ नहीं कहता। तू मेरी ओर ध्यान दे और दुःख को छोड़कर प्रसन्न रह। पति की बात सुनकर उसे कुछ सांत्वना मिलती, परंतु फिर जब कोई ताने देता तो रोने लगती थी।
इस प्रकार एक दिन नाग पंचमी आ गई। चौथ की रात को उसे स्वप्न में पाँच नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और पति को जगाकर स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है?
पाँच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो पाँचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई।
जनमानस में नागपंचमी पर्व की विविध जनश्रुतियां और कथाएँ प्रचलित है। नागपंचमी के संबंध में ऐसी ही दो बहुप्रचलित कथाएँ हम यहाँ उपलब्ध करवा रहे हैं।
नागपंचमी कथा (1)
किसी राज्य में एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल जोतते समय हल से नाग के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का संकल्प किया। रात्रि को अंधकार में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया।
अगले दिन प्रातः किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से नागिन फिर चली तो किसान कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। हाथ जोड़ क्षमा माँगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुनः जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से आज तक नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
नागपंचमी कथा- (2)
एक राजा के सात पुत्र थे, उन सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान भी हो चुकी थी। सबसे छोटे पुत्र के अब तक के कोई संतान नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियां बाँझ कहकर बहुत ताने देती थीं।
एक तो संतान न होने का दुःख और उस पर सास, ननद, जिठानी आदि के ताने उसको और भी दुःखित करने लगे। इससे व्याकुल होकर वह बेचारी रोने लगती। उसका पति समझाता कि 'संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है, फिर तू क्यों दुःखी होती है?' वह कहती- सुनते हो, सब लोग बाँझ- बाँझ कहकर मेरी नाक में दम किए हैं।
पति बोला- दुनिया बकती है, बकने दे मैं तो कुछ नहीं कहता। तू मेरी ओर ध्यान दे और दुःख को छोड़कर प्रसन्न रह। पति की बात सुनकर उसे कुछ सांत्वना मिलती, परंतु फिर जब कोई ताने देता तो रोने लगती थी।
इस प्रकार एक दिन नाग पंचमी आ गई। चौथ की रात को उसे स्वप्न में पाँच नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और पति को जगाकर स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है?
पाँच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो पाँचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई।
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है
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