यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

एक बचपन का जमाना होता था

एक बचपन का जमाना होता था
वक्त बिताने का अपना एक बहाना होता था,
जब खेल -खेल मे घर बनाना होता था,
गुडडे - गुडियो से घर सजाना होता था,
बिन एहसास के पुतलो को खाना खिलाना होता था,
इन पलो मे खुशियो का चुराना होता था,
पढाई कर बहार खेलने जाना होता था,
मम्मी को इसके लिये मनाना होता था,
पापा की डाट से पहले घर मे घुस जाना होता था
दीदी- भैया से लडाई पर रो जाना होता था,
रो कर मम्मी के बांहो मे सो जाना होता था
मोसम बदलने का अपना एक नजराना होता था,
बारिश मे अपनी नांव बनाकर दुर तक पहुंचाना होता था,
कभी नांव को पानी मे से उठाकर ले आना होता था,
अपनी दुर नांव पंहुच जाने पर जीत का जश्न मनाना होता था,
अपनी मस्ती अपना एक तराना होता था,
खेल कुद कर रात को थककर सो जाना होता था,
डरावने सपने आने पर मम्मी से लिपट जाना होता था,
जब सुबह उठ स्कूल जाना होता था,
दादा -दादी से पेसे कमाना होता था
उस एक रुपये का अपना एक फंसाना होता था,
छोटी-छोटी खुशियो मे जिंदगी को पाना होता था,
सच बचपन का अपना ही एक तराना होता था………
 
 
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

function disabled

Old Post from Sanwariya