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सोमवार, 20 अगस्त 2012

अहमदाबाद (कर्णवती उर्फ राजनगर) की प्रमुख मस्जिद पुरातन भद्रकाली मंदिर था |

इस्लामी आक्रान्ताओ की जिहादी कुकृत्यो का खुलासा
By by virat hindu

अहमदाबाद, जमा मस्जिद और एक हवेली से जुडी महत्वपूर्ण घटना और इस्लामी आक्रान्ताओ की जिहादी कुकृत्यो का खुलासा : -
जामा-मस्जिद नाम से पुकारी जाने वाली, अहमदाबाद (कर्णवती उर्फ राजनगर) की प्रमुख मस्जिद पुरातन भद्रकाली मंदिर था | वही नगर की आराध्या देवी का स्थान था | द्वारमंडल से लेकर अंदर पूजास्थल तक हिन्दू-कलात्मकता की दिग्दर्शक विषम संगतराशी है | मुख्य प्राथना-स्थल में पास-पास स्थित लगभग १०० से ऊपर खम्बे है जो केवल हिन्दू-देवियों के मंदिरों में होते है | वास्तविक, असली, मूलरूप में मस्जिदों के प्रार्थना-कक्ष मे एक भी खम्बा नही होता क्योंकि सामूहिक नमाज़ के लिए खुला प्रांगण चाहिए |पूजागृह के गवाछों में गड़े हुए प्रस्तर-पुष्प-चिन्ह है, जो नित्याभ्यास लूटे हुए और परिवर्तित स्मारको के सम्बन्ध में मुस्लिमो की ओर से हुआ ही करता था | इस विशाल मंदिर का बड़ा भाग अब कब्रिस्तान के रूप में उपयोग में लाया गया है |संगतराशी से पुष्प, जंजीर, घंटिया और गवाछों जैसे अनेक हिन्दू लछण स्पष्ट दिखाई देते है | देवालय की दो आयताकार चोटियों में से एक को बिलकुल उड़ा दिया गया है, जैसा की उन्मत्त मुस्लिम विजेताओं द्वारा नगर में प्रथम बार प्रविष्ट होने के अवसर पर ही हो सकता था | अहमदशाह के द्वारा भीषण तबाही के पश्चात जो भगदड़ मची उसमे उजड़े, और देखभाल से वंचित मंदिरों के आलंकारिक प्रस्तर-खंड अभी भी अहमदाबाद के आम रास्तो पर आधे गड़े पड़े है | हिन्दू कलाकृति वाले बड़े-बड़े पत्थर, जो भवनों से गिरा दिए गए थे, अब भी धूल से आच्छादित और उसी में समाये पड़े है | एक ऐसा ही फलक तथाकथित जाम-मस्जिद के सामने महात्मा गाँधी मार्ग पर स्तिथ जन-सौचागर में इस्तेमाल किया गया है |इस तथाकथित जामा मस्जिद के सम्बन्ध में एक बड़ी महत्वपूर्ण घटना १९६४-६५ में घटी |

मैंने (पुरुषोत्तम नाग ओ़क) अपने लेखो में यह सिद्ध किया था की जामा-मस्जिद कहलाने वाली अहमदाबाद की यह ईमारत प्राचीन नगरदेवता एवं राजदेवता भद्रकाली का मंदिर था |

मेरे इस प्रकार के लेख ई० सन १९६४ के आसपास कुछ मासिको में प्रकाशित होने के कुछ समय पश्चात् अहमदाबाद के K. C. Bros. (कान्तिचंद्र ब्रदर्स) नाम की एक दुकान पुरानी होने के कारण उसके स्वामी ने उसे गिरवाकर इसी स्थान पर एक ऊँची हवेली खड़ी करवा दी | तथाकथित जामा मस्जिद के निकट ही यह हवेली इस तथाकथित मस्जिद से ऊँची हो गई | हिन्दुओं से एक नया विवाद आरम्भ कर देने का एक अच्छा अवसर मुसलमानों को मिल गया | भारत के सारे मुसलमान हिन्दुओं के पुत्र-पौत्र है | इस्लामी आक्रमण के काल में जो-जो हिन्दू पकडे जाते थे वे सब छल बल से या कपट से मुसलमान बना दिए जाते | भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश के सारे मुसलमान इस प्रकार हिंदिओं की संताने है | तथापि बलात् मुसलमान बनाने के पश्चात सदियों से उन्हें यह रटाया जा रहा था की हिन्दू काफ़िर है, उनसे कोई मुसलमान सम्बंधित नहीं है और पग-पग पर वे नए-नए बहाने ढूँढते हुए हिन्दुओं से वैमनस्य, लड़ाई-झगडा करते ताकि भविष्य में किसी दिन सारा हिंदुस्तान-इस्लामस्थान या इस्लामाबाद बन जाये |

इस योजना के अंतर्गत अहमदाबाद के तथाकथित जामा मस्जिद के विश्वस्तो (Trustees) ने K. C. Bros. पर न्यायालय में दावा दाखिल किया की उन्हें उनकी नई हवेली गिरवाने का आदेश दिया जाये | बड़े चिंतित होकर K. C. Bros. इस संकट से हवेली बचने का उपाय हितचिंतकों से पूछने लगे | किसी ने उन्हें बताया कि पुरुषोत्तम नाग ओ़क नाम के कोई इतिहासज्ञ है जिनके कथानुसर अहमदाबाद की जामा-मस्जिद प्राचीनकाल में भद्रकाली का मंदिर था | तब उन्होंने मेरा पता ढूँढकर मुझे पत्र द्वारा अपनी कठिन समस्या से अवगत कराया

| मेरे सुझाव पर K. C. Bros. ने अपने वकील के द्वारा प्रतिवादी का उत्तर न्यायालय में प्रस्तुत किया, उसमे कहा गया था की जिस ईमारत को मुसलमान मस्जिद कह रहे है वह एक अपहृत हिन्दू मंदिर होने के कारण मुसलमानों का उस भवन पर कोई अधिकार ही नहीं प्राप्त होता, अतएव K. C. Bros. कि हवेली गिराने का प्रश्न ही नहीं उठता | यह उत्तर मुसलमानों को पहुचते ही मुसलमानों ने तुरंत अपना दावा वापस ले लिया | उन्हें डर यह पड़ी कि यदि यह दावा चल पड़ा तो K. C. Bros. की हवेली गिरना तो दूर ही रहा मस्जिद कहलाने वाली ईमारत ही हाथो से निकल जायेगी |जो लोग ऐसा पूछते है कि यदि ताजमहल, लालकिला आदि इमारतें हिन्दुओं कि सिद्ध हो जाती है तो उससे लाभ ही क्या है ? उन्हें ऊपर लिखे K. C. Bros. के उदाहरण से यह जान जाना चाहिए कि सत्य का शोध कभी व्यर्थ नहीं जाता | ऐसी खोज से विविध अज्ञात प्रकार के लाभ हो सकते है | उनमे से एक ब्यौरा ऊपर दिया गया है

|श्रोत : भारतीय इतिहास कि भयंकर भूलें ...लेखक ...श्री पुरुषोत्तम नाग ओ़क |

प्रश्न : क्या हमें अपने पुरातन स्थलों को वापस लेने के लिए कुछ करना चाहिए ?कृपया अपने विचार सांझा करें :

रविवार, 19 अगस्त 2012

काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता।


यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स  में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई सुराग मिल सके। पर्स में कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी।
फिर उस टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा -"यह किसका पर्स है?"
एक बूढ़ा यात्री बोला -"यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे दे दें।"
टी.टी.ई. ने कहा -"तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है। केवल तभी मैं यह  पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं।"उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन मुस्कान के साथ उत्तर दिया -"इसमें भगवान श्रीकृष्ण  की फोटो है।"टी.टी.ई. ने कहा -"यह कोई ठोस सबूत नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण  की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है? पर्स में तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है?"
बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला -"मैं तुम्हें  बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं
स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूप में कुछ पैसे मिलते थे। मैंने पर्स में अपने माता-पिता की फोटो रखी हुयी थी।  जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मैं अपनी कद-काठी पर मोहित था। मैंने पर्स में से माता-पिता की फोटो हटाकर  अपनी फोटो लगा ली। मैं अपने सुंदर चेहरे और काले घने बालों को देखकर खुश हुआ करता था। कुछ साल बाद  मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे बहुत प्रेम करता था। मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर  उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे को निहारा करता।  जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ, तब मेरे जीवन  का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम पर  जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे पर्स में मेरे बच्चे की फोटो आ गयी थी।"  बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ बोलना जारी रखा -"कई वर्ष पहले मेरे माता- पिता का स्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष
मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी। मेरा इकलौता पुत्र अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पास मेरी देखभाल का वक्त  नहीं है। जिसे मैंने अपने जिगर के टुकड़े की तरह पाला था,  वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है। अब मैंने भगवान कृष्ण की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है  कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता। जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने ईश्वर के साथ किया होता तो आज मैं  इतना अकेला नहीं होता।"
टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला -"क्या तुम्हारे  पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के लिए चाहिए।

शनिवार, 18 अगस्त 2012

मल मास कैसे हुआ पुरषोत्तम मास:-

आज {18 अगस्त } से पुरुषोत्तम मास आरम्भ हो रहा है , इसकी महिमा :-

पुरुषोत्तम मास जिसे आम भाषा मे मल मास भी कहते है,हमारी पौराणिक व धार्मिक मान्यताओ के अनुसार इस माह मे कोई भी शुभ कार्य वर्जित है। शुभ कार्यो की पौराणिक मान्यताओ के अनुसार वर्जना का आम जन यह मतलब निकालता है कि यह माह अच्छा नही है,जब्कि ऐसा है नही क्यो कि इस माह मे शुभ कार्यो की बजाए धार्मिक कार्यो की आज्ञा शास्त्रो द्वारा दी गई है,जप
,तप दान, धर्म,त्तेर्थ यात्रा व अन्य कार्यो का इस माह मे अनंत गुणा फल प्राप्त होता है, हम अपना इहलोक व परलोक सुधार सके इसी कारण से शुभ कार्यो पर विराम लगा हमे धार्मिक कार्यो की ओर उन्मुख होने का निर्देश दिया गया है।

मल मास कैसे हुआ पुरषोत्तम मास:- मलमास का नाम पुरषोत्तम मास कैसे पड़ा| इसकी एक रोचक कथा है| कथा के अनुसार प्रत्येक राशि,नक्षत्र,करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है,परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है| इसलिए देव कार्य,शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है| इससे दुखी होकर स्वयं मलमास बहुत नाराज व उदास रहता था, और नैराश्य भाव में एक दिन भटकते-भटकते भगवान श्रीविष्णुहरी के विष्णुलोक पहुँच गया| देव योग से मलमास को वहां भगवान श्रीविष्णु मिल गये| वह उनके चरणों में दंडवत हो आर्त स्वर मे उनसे विनय करने लगा कि –“हे कृपा निधान, सभी के पालनहार मैं मलमास हुं, इस सृष्टि में आपने हर क्षण, पल, मुहूर्त, नक्षत्र मास व वर्ष सभी अपने-अपने स्वामियों का आधिपत्य प्रदान किया है, और वे सभी उनसे प्राप्त अधिकारों से सभी स्वच्छंद व अभय रहते है| एक मैं ही ऐसा दुर्भाग्यशाली हूँ जिसका ना कोई स्वामी नही है और ना ही कोई सहारा जिसके कारण इस सृष्टी मे सभी ने मेरा अनादर किया और वे समस्त मेरी अवधि में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य संपन्न नही करते| आप दयानिधान है| में शरणावत हूँ, हे पुरषोत्तम! अब एक आप ही का सहारा है,आप मुझे मुक्ति दीजिये|”

भगवान विष्णु ने उसकी (मल मास ) प्रार्थना सुनकर कहा ‘ हे! वत्स, मेरे इस लोक में जो आ गया है वो तो अजर अमर व शोक-विहिन हो जाता है,जगत की कोई भी परेशानी हो वह यहां आने पर समूल नष्ट हो जाती है, वह सदैव ही आनंदमग्न व भक्ति-भाव में डूबा रहता है:
“अहमेते यथा लोक प्रथितः पुरुषोत्तमः, तथायमती लोकेषु प्रथित पुरुषोत्तमः|”

मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं हे मलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ और वेद शास्त्रों में विख्यात जो मेरा नाम पुरुषोत्तम है वह मैं तुझे प्रदान कर रहा हूं, आज से तुम मेरे इसी पुरुषोत्तम-मास नाम से विख्यात हो जाओगे| मै स्वयं इस का स्वामी हुं|” उसी समय से अधिक मास( मलमास) पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात हो गया|
आईए इसके ज्योतिषीय व ग्रहो प्र्मुख रूप से सूर्य व च्नद्रमा पर आधरित वर्षो के हिसाब से आकलन करे, सूर्य की एक वर्ष मे बारह सक्रांति होती है| इनके आधार पर चांद्र कैलेण्डर में एक वर्ष में चैत्रादिक बारह महीने होते है| प्रत्येक तीसरे साल में अधिक मास होता है| जनभापा में इसे ही मलमास, मलिमाच्चा या पुरुषोत्तम मास कहते है|
“यस्मिन चान्द्रे न संक्रांतिः सो अधिमासो निगह्यते,
तत्र मंगल कार्यनी नैव कुर्यात कदाचन|
यस्मिन मासे द्वि सक्रांति क्षयः मासः स कथ्यते,
तस्मिन् शुभानि कार्यणी यत्नतः परिवर्जयेत|”|

अर्थात जिस चांद्र मास में सूर्य की संक्रांति नही होती, वह अधिक मास होता है| इसी प्रकार जिस मास में दो सूर्य संक्रांति होती है, वह क्षय मास कहलाता है| क्षय मास व अधिक मास होने का कारण सौर व चांद्र वर्ष के समय में असाम्यता है| इस असाम्यता के कारण उत्पन्न विसंगतियों के समायोजन के लिए ही अधिक मास व क्षय मास की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है| सौर वर्ष 365 .2422 दिन का होता है तथा चांद्र वर्ष 354 .3270 दिन का होता है, इस तरह से दोनों वर्षो में 10 .87 दिन का अंतर आ जाता है| इसके समायोजन के लिए अधिक मास और क्षय मास का प्रावधान चांद्र केलेंडर में किया गया है| वरिष्ट सिधांत में लेख है प्रत्येक 32 माह 16 दिन व् 4 घटी के बाद अधिक मास आता है तथा प्रत्येक 141 वर्ष, उसके पश्चात 19 वर्ष, बाद क्षय मास होता है| कोई भी चांद्र वर्ष 11 मास का नही होता| क्यूंकि जिस वर्ष में क्षय मास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य होता है|
शास्त्रों में कहा गया है की अधिक मास में व्रत,ध्यान, पूजा, दान व् हवन करने से लोगो के सारे पाप धुल जाते है| अधिक मास के व्रत के प्रभाव से राजा नहुष ने इन्द्रासन प्राप्त किया था ऐसा प्रसिद है| देवी भगवत पुराण में लिखा है की मलमास के दौरान किये गये सभी कर्मो का कोटि गुण फल मिलता है| इस माह के दौरान मनुष्य को अपने पाप कर्मो का प्रायश्चित करना उत्तम रहता है|

क्षयमास: अधिक मास तो हर तीन वर्ष पश्चात आता है परन्तु क्षयमास 141 वर्ष एवं 19 वर्षो के अंतराल पर आता है, जिस वर्ष क्षयमास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य आता है| रोचक जानकारी यहाँ की ईस्वी सन 1982-83 मे [शक सवंत् 1904, विक्रम सवंत् 2039 ] एक क्षयमास एवं दो अधिक मास थे| इस प्रकार क्षय मास होने के बावजूद चान्द्र वर्ष 13 माह का था व आश्विन व फाल्गुन मास दो अधिक मास थे व चान्द्र वर्ष 354 दिन की बजाए 384 दिन [ 26 मार्च 1982 से 13 अप्रेल 1983 का था

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