आज {18 अगस्त } से पुरुषोत्तम मास आरम्भ हो रहा है , इसकी महिमा :-
पुरुषोत्तम मास जिसे आम भाषा मे मल मास भी कहते है,हमारी पौराणिक व धार्मिक मान्यताओ के अनुसार इस माह मे कोई भी शुभ कार्य वर्जित है। शुभ कार्यो की पौराणिक मान्यताओ के अनुसार वर्जना का आम जन यह मतलब निकालता है कि यह माह अच्छा नही है,जब्कि ऐसा है नही क्यो कि इस माह मे शुभ कार्यो की बजाए धार्मिक कार्यो की आज्ञा शास्त्रो द्वारा दी गई है,जप
,तप दान, धर्म,त्तेर्थ यात्रा व अन्य कार्यो का इस माह मे अनंत गुणा फल
प्राप्त होता है, हम अपना इहलोक व परलोक सुधार सके इसी कारण से शुभ कार्यो
पर विराम लगा हमे धार्मिक कार्यो की ओर उन्मुख होने का निर्देश दिया गया
है।
मल मास कैसे हुआ पुरषोत्तम मास:- मलमास का नाम पुरषोत्तम मास कैसे पड़ा| इसकी एक रोचक कथा है| कथा के अनुसार प्रत्येक राशि,नक्षत्र,करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है,परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है| इसलिए देव कार्य,शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है| इससे दुखी होकर स्वयं मलमास बहुत नाराज व उदास रहता था, और नैराश्य भाव में एक दिन भटकते-भटकते भगवान श्रीविष्णुहरी के विष्णुलोक पहुँच गया| देव योग से मलमास को वहां भगवान श्रीविष्णु मिल गये| वह उनके चरणों में दंडवत हो आर्त स्वर मे उनसे विनय करने लगा कि –“हे कृपा निधान, सभी के पालनहार मैं मलमास हुं, इस सृष्टि में आपने हर क्षण, पल, मुहूर्त, नक्षत्र मास व वर्ष सभी अपने-अपने स्वामियों का आधिपत्य प्रदान किया है, और वे सभी उनसे प्राप्त अधिकारों से सभी स्वच्छंद व अभय रहते है| एक मैं ही ऐसा दुर्भाग्यशाली हूँ जिसका ना कोई स्वामी नही है और ना ही कोई सहारा जिसके कारण इस सृष्टी मे सभी ने मेरा अनादर किया और वे समस्त मेरी अवधि में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य संपन्न नही करते| आप दयानिधान है| में शरणावत हूँ, हे पुरषोत्तम! अब एक आप ही का सहारा है,आप मुझे मुक्ति दीजिये|”
भगवान विष्णु ने उसकी (मल मास ) प्रार्थना सुनकर कहा ‘ हे! वत्स, मेरे इस लोक में जो आ गया है वो तो अजर अमर व शोक-विहिन हो जाता है,जगत की कोई भी परेशानी हो वह यहां आने पर समूल नष्ट हो जाती है, वह सदैव ही आनंदमग्न व भक्ति-भाव में डूबा रहता है:
“अहमेते यथा लोक प्रथितः पुरुषोत्तमः, तथायमती लोकेषु प्रथित पुरुषोत्तमः|”
मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं हे मलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ और वेद शास्त्रों में विख्यात जो मेरा नाम पुरुषोत्तम है वह मैं तुझे प्रदान कर रहा हूं, आज से तुम मेरे इसी पुरुषोत्तम-मास नाम से विख्यात हो जाओगे| मै स्वयं इस का स्वामी हुं|” उसी समय से अधिक मास( मलमास) पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात हो गया|
आईए इसके ज्योतिषीय व ग्रहो प्र्मुख रूप से सूर्य व च्नद्रमा पर आधरित वर्षो के हिसाब से आकलन करे, सूर्य की एक वर्ष मे बारह सक्रांति होती है| इनके आधार पर चांद्र कैलेण्डर में एक वर्ष में चैत्रादिक बारह महीने होते है| प्रत्येक तीसरे साल में अधिक मास होता है| जनभापा में इसे ही मलमास, मलिमाच्चा या पुरुषोत्तम मास कहते है|
“यस्मिन चान्द्रे न संक्रांतिः सो अधिमासो निगह्यते,
तत्र मंगल कार्यनी नैव कुर्यात कदाचन|
यस्मिन मासे द्वि सक्रांति क्षयः मासः स कथ्यते,
तस्मिन् शुभानि कार्यणी यत्नतः परिवर्जयेत|”|
अर्थात जिस चांद्र मास में सूर्य की संक्रांति नही होती, वह अधिक मास होता है| इसी प्रकार जिस मास में दो सूर्य संक्रांति होती है, वह क्षय मास कहलाता है| क्षय मास व अधिक मास होने का कारण सौर व चांद्र वर्ष के समय में असाम्यता है| इस असाम्यता के कारण उत्पन्न विसंगतियों के समायोजन के लिए ही अधिक मास व क्षय मास की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है| सौर वर्ष 365 .2422 दिन का होता है तथा चांद्र वर्ष 354 .3270 दिन का होता है, इस तरह से दोनों वर्षो में 10 .87 दिन का अंतर आ जाता है| इसके समायोजन के लिए अधिक मास और क्षय मास का प्रावधान चांद्र केलेंडर में किया गया है| वरिष्ट सिधांत में लेख है प्रत्येक 32 माह 16 दिन व् 4 घटी के बाद अधिक मास आता है तथा प्रत्येक 141 वर्ष, उसके पश्चात 19 वर्ष, बाद क्षय मास होता है| कोई भी चांद्र वर्ष 11 मास का नही होता| क्यूंकि जिस वर्ष में क्षय मास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य होता है|
शास्त्रों में कहा गया है की अधिक मास में व्रत,ध्यान, पूजा, दान व् हवन करने से लोगो के सारे पाप धुल जाते है| अधिक मास के व्रत के प्रभाव से राजा नहुष ने इन्द्रासन प्राप्त किया था ऐसा प्रसिद है| देवी भगवत पुराण में लिखा है की मलमास के दौरान किये गये सभी कर्मो का कोटि गुण फल मिलता है| इस माह के दौरान मनुष्य को अपने पाप कर्मो का प्रायश्चित करना उत्तम रहता है|
क्षयमास: अधिक मास तो हर तीन वर्ष पश्चात आता है परन्तु क्षयमास 141 वर्ष एवं 19 वर्षो के अंतराल पर आता है, जिस वर्ष क्षयमास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य आता है| रोचक जानकारी यहाँ की ईस्वी सन 1982-83 मे [शक सवंत् 1904, विक्रम सवंत् 2039 ] एक क्षयमास एवं दो अधिक मास थे| इस प्रकार क्षय मास होने के बावजूद चान्द्र वर्ष 13 माह का था व आश्विन व फाल्गुन मास दो अधिक मास थे व चान्द्र वर्ष 354 दिन की बजाए 384 दिन [ 26 मार्च 1982 से 13 अप्रेल 1983 का था
मल मास कैसे हुआ पुरषोत्तम मास:- मलमास का नाम पुरषोत्तम मास कैसे पड़ा| इसकी एक रोचक कथा है| कथा के अनुसार प्रत्येक राशि,नक्षत्र,करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है,परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है| इसलिए देव कार्य,शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है| इससे दुखी होकर स्वयं मलमास बहुत नाराज व उदास रहता था, और नैराश्य भाव में एक दिन भटकते-भटकते भगवान श्रीविष्णुहरी के विष्णुलोक पहुँच गया| देव योग से मलमास को वहां भगवान श्रीविष्णु मिल गये| वह उनके चरणों में दंडवत हो आर्त स्वर मे उनसे विनय करने लगा कि –“हे कृपा निधान, सभी के पालनहार मैं मलमास हुं, इस सृष्टि में आपने हर क्षण, पल, मुहूर्त, नक्षत्र मास व वर्ष सभी अपने-अपने स्वामियों का आधिपत्य प्रदान किया है, और वे सभी उनसे प्राप्त अधिकारों से सभी स्वच्छंद व अभय रहते है| एक मैं ही ऐसा दुर्भाग्यशाली हूँ जिसका ना कोई स्वामी नही है और ना ही कोई सहारा जिसके कारण इस सृष्टी मे सभी ने मेरा अनादर किया और वे समस्त मेरी अवधि में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य संपन्न नही करते| आप दयानिधान है| में शरणावत हूँ, हे पुरषोत्तम! अब एक आप ही का सहारा है,आप मुझे मुक्ति दीजिये|”
भगवान विष्णु ने उसकी (मल मास ) प्रार्थना सुनकर कहा ‘ हे! वत्स, मेरे इस लोक में जो आ गया है वो तो अजर अमर व शोक-विहिन हो जाता है,जगत की कोई भी परेशानी हो वह यहां आने पर समूल नष्ट हो जाती है, वह सदैव ही आनंदमग्न व भक्ति-भाव में डूबा रहता है:
“अहमेते यथा लोक प्रथितः पुरुषोत्तमः, तथायमती लोकेषु प्रथित पुरुषोत्तमः|”
मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं हे मलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ और वेद शास्त्रों में विख्यात जो मेरा नाम पुरुषोत्तम है वह मैं तुझे प्रदान कर रहा हूं, आज से तुम मेरे इसी पुरुषोत्तम-मास नाम से विख्यात हो जाओगे| मै स्वयं इस का स्वामी हुं|” उसी समय से अधिक मास( मलमास) पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात हो गया|
आईए इसके ज्योतिषीय व ग्रहो प्र्मुख रूप से सूर्य व च्नद्रमा पर आधरित वर्षो के हिसाब से आकलन करे, सूर्य की एक वर्ष मे बारह सक्रांति होती है| इनके आधार पर चांद्र कैलेण्डर में एक वर्ष में चैत्रादिक बारह महीने होते है| प्रत्येक तीसरे साल में अधिक मास होता है| जनभापा में इसे ही मलमास, मलिमाच्चा या पुरुषोत्तम मास कहते है|
“यस्मिन चान्द्रे न संक्रांतिः सो अधिमासो निगह्यते,
तत्र मंगल कार्यनी नैव कुर्यात कदाचन|
यस्मिन मासे द्वि सक्रांति क्षयः मासः स कथ्यते,
तस्मिन् शुभानि कार्यणी यत्नतः परिवर्जयेत|”|
अर्थात जिस चांद्र मास में सूर्य की संक्रांति नही होती, वह अधिक मास होता है| इसी प्रकार जिस मास में दो सूर्य संक्रांति होती है, वह क्षय मास कहलाता है| क्षय मास व अधिक मास होने का कारण सौर व चांद्र वर्ष के समय में असाम्यता है| इस असाम्यता के कारण उत्पन्न विसंगतियों के समायोजन के लिए ही अधिक मास व क्षय मास की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है| सौर वर्ष 365 .2422 दिन का होता है तथा चांद्र वर्ष 354 .3270 दिन का होता है, इस तरह से दोनों वर्षो में 10 .87 दिन का अंतर आ जाता है| इसके समायोजन के लिए अधिक मास और क्षय मास का प्रावधान चांद्र केलेंडर में किया गया है| वरिष्ट सिधांत में लेख है प्रत्येक 32 माह 16 दिन व् 4 घटी के बाद अधिक मास आता है तथा प्रत्येक 141 वर्ष, उसके पश्चात 19 वर्ष, बाद क्षय मास होता है| कोई भी चांद्र वर्ष 11 मास का नही होता| क्यूंकि जिस वर्ष में क्षय मास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य होता है|
शास्त्रों में कहा गया है की अधिक मास में व्रत,ध्यान, पूजा, दान व् हवन करने से लोगो के सारे पाप धुल जाते है| अधिक मास के व्रत के प्रभाव से राजा नहुष ने इन्द्रासन प्राप्त किया था ऐसा प्रसिद है| देवी भगवत पुराण में लिखा है की मलमास के दौरान किये गये सभी कर्मो का कोटि गुण फल मिलता है| इस माह के दौरान मनुष्य को अपने पाप कर्मो का प्रायश्चित करना उत्तम रहता है|
क्षयमास: अधिक मास तो हर तीन वर्ष पश्चात आता है परन्तु क्षयमास 141 वर्ष एवं 19 वर्षो के अंतराल पर आता है, जिस वर्ष क्षयमास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य आता है| रोचक जानकारी यहाँ की ईस्वी सन 1982-83 मे [शक सवंत् 1904, विक्रम सवंत् 2039 ] एक क्षयमास एवं दो अधिक मास थे| इस प्रकार क्षय मास होने के बावजूद चान्द्र वर्ष 13 माह का था व आश्विन व फाल्गुन मास दो अधिक मास थे व चान्द्र वर्ष 354 दिन की बजाए 384 दिन [ 26 मार्च 1982 से 13 अप्रेल 1983 का था
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