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शनिवार, 18 अगस्त 2012

आज 18.08.2012 से शुरू हो रहा है पुरुषोत्तम मास..........



पुरुषोत्तम मास जिसे आम भाषा मे मल मास भी कहते है, हमारी पौराणिक व धार्मिक मान्यताओ के अनुसार इस माह मे कोई भी शुभ कार्य वर्जित है। शुभ कार्यो की पौराणिक मान्यताओ के अनुसार वर्जना का
आम जन यह मतलब निकालता है कि यह माह अच्छा नही है, जबकि ऐसा है नही, क्यो कि इस माह मे शुभ कार्यो की बजाए धार्मिक कार्यो की आज्ञा शास्त्रो द्वारा दी गई है, जप, तप, दान, धर्म, त्तेर्थ यात्रा व अन्य कार्यो का इस माह मे अनंत गुणा फल प्राप्त होता है, हम अपना इहलोक व परलोक सुधार सके, इसी कारण से शुभ कार्यो पर विराम लगा हमे धार्मिक कार्यो की ओर उन्मुख होने का निर्देश दिया गया है।

मल मास कैसे हुआ पुरषोत्तम मास :-

मलमास का नाम पुरषोत्तम मास कैसे पड़ा, इसकी एक रोचक कथा है| कथा के अनुसार प्रत्येक राशि, नक्षत्र, करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है, परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है| इसलिए देव कार्य, शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है| इससे दुखी होकर स्वयं मलमास बहुत नाराज व उदास रहता था और नैराश्य भाव में एक दिन भटकते-भटकते भगवान श्री विष्णुहरी के विष्णुलोक पहुँच गया| देव योग से मलमास को वहां भगवान श्रीविष्णु मिल गये| वह उनके चरणों में दंडवत हो आर्त स्वर मे उनसे विनय करने लगा कि – “हे कृपा निधान, सभी के पालनहार मैं मलमास हुं, इस सृष्टि में आपने हर क्षण, पल, मुहूर्त, नक्षत्र, मास व वर्ष सभी को अपने-अपने स्वामियों का आधिपत्य प्रदान किया है और वे सभी उनसे प्राप्त अधिकारों से सभी स्वच्छंद व अभय रहते है| एक मैं ही ऐसा दुर्भाग्यशाली हूँ जिसका ना कोई स्वामी है और ना ही कोई सहारा जिसके कारण इस सृष्टी मे सभी ने मेरा अनादर किया और वे समस्त मेरी अवधि में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य संपन्न नही करते| आप दयानिधान है| मैं शरणावत हूँ, हे पुरषोत्तम ! अब एक आप ही का सहारा है, आप मुझे मुक्ति दीजिये|”

भगवान विष्णु ने उसकी (मल मास ) प्रार्थना सुनकर कहा ‘हे ! वत्स, मेरे इस लोक में जो आ गया है वो तो अजर अमर व शोक-विहिन हो जाता है, जगत की कोई भी परेशानी हो वह यहां आने पर समूल नष्ट हो जाती है, वह सदैव ही आनंदमग्न व भक्ति-भाव में डूबा रहता है l

“अहमेते यथा लोक प्रथितः पुरुषोत्तमः, तथायमती लोकेषु प्रथित पुरुषोत्तमः”

मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं हे मलमास, में तुम्हे सौंप रहा हूँ और वेद शास्त्रों में विख्यात जो मेरा नाम पुरुषोत्तम है वह मैं तुझे प्रदान कर रहा हूं, आज से तुम मेरे इसी पुरुषोत्तम-मास नाम से विख्यात हो जाओगे| मै स्वयं इस का स्वामी हुं| उसी समय से अधिक मास (मलमास) पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात हो गया|

आईए इसके ज्योतिषीय ग्रहो व प्रमुख रूप से सूर्य व चन्द्रमा पर आधरित वर्षो के हिसाब से आकलन करे, सूर्य की एक वर्ष मे बारह सक्रांति होती है| इनके आधार पर चन्द्र कैलेण्डर में एक वर्ष में चैत्रादिक बारह महीने होते है| प्रत्येक तीसरे साल में अधिक मास होता है| जनभाषा में इसे ही मलमास, मलिमाच्चा या पुरुषोत्तम मास कहते है|

“यस्मिन चान्द्रे न संक्रांतिः सो अधिमासो निगह्यते,
तत्र मंगल कार्यनी नैव कुर्यात कदाचन|
यस्मिन मासे द्वि सक्रांति क्षयः मासः स कथ्यते,
तस्मिन् शुभानि कार्यणी यत्नतः परिवर्जयेत|”|

अर्थात जिस चांद्र मास में सूर्य की संक्रांति नही होती, वह अधिक मास होता है| इसी प्रकार जिस मास में दो सूर्य संक्रांति होती है, वह क्षय मास कहलाता है| क्षय मास व अधिक मास होने का कारण सौर व चांद्र वर्ष के समय में असाम्यता है| इस असाम्यता के कारण उत्पन्न विसंगतियों के समायोजन के लिए ही अधिक मास व क्षय मास की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है| सौर वर्ष 365.2422 दिन का होता है तथा चांद्र वर्ष 354.3270 दिन का होता है, इस तरह से दोनों वर्षो में 10.87 दिन का अंतर आ जाता है| इसके समायोजन के लिए अधिक मास और क्षय मास का प्रावधान चांद्र केलेंडर में किया गया है|

वरिष्टसिद्धांत में लेख है, प्रत्येक 32 माह 16 दिन व 4 घटी के बाद अधिक मास आता है तथा प्रत्येक 141 वर्ष, उसके पश्चात 19 वर्ष, बाद क्षय मास होता है| कोई भी चांद्र वर्ष 11 मास का नही होता, क्यूंकि जिस वर्ष में क्षय मास होता है उस वर्ष अधिक मास भी अवश्य होता है|

रोचक जानकारी : यहाँ की ईस्वी सन 1982-83 मे [शक सवंत् 1904, विक्रम सवंत् 2039] एक क्षयमास एवं दो अधिक मास थे| इस प्रकार क्षय मास होने के बावजूद चान्द्र वर्ष 13 माह का था व आश्विन व फाल्गुन मास दो अधिक मास थे व चान्द्र वर्ष 354 दिन की बजाए 384 दिन [26 मार्च 1982 से 13 अप्रेल 1983 का था।

इस माह में व्रत, दान, पूजा, हवन, ध्यान करने से पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं और किए गए पुण्यों का फल कई गुणा प्राप्त होता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण की भी विशेष महत्ता है। पुरुषोत्तम मास में तीर्थ स्थलों पर स्नान का भी महत्त्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि अधिक मास में व्रत, ध्यान, पूजा, दान व हवन करने से लोगो के सारे पाप धुल जाते है| अधिक मास के व्रत के प्रभाव से राजा नहुष ने इन्द्रासन प्राप्त किया था ऐसा प्रसिद है| देवी भगवत पुराण में लिखा है कि मलमास के दौरान किये गये सभी कर्मो का कोटि गुण फल मिलता है| इस माह के दौरान मनुष्य को अपने पाप कर्मो का प्रायश्चित करना उत्तम रहता है|

पुरुषोत्तम मास के नियम.... (हनुमान प्रसाद पोद्दार, गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ३५२)

'पुरुषोत्तम' नाम है भगवान् का, इसलिए हमें इसका अर्थ यों लगाना चाहिए की पापों को छोडकर भगवान पुरुषोत्तम में प्रेम करें और वो ऐसा करें की इस एक महीने का प्रेम अनंत काल के लिए चिरस्थायी हो जाए| भगवान में प्रेम करना ही तो जीवन का परम-पुरुषार्थ है, इसी के लिए तो हमें दुर्लभ मनुष्य जीवन और सदसद्विवेक प्राप्त हुआ है| हमारे ऋषियों ने पर्वों और शुभ दिनों की रचना कर उस विवेक को निरंतर जागृत रखने के लिए सुलभ साधन बना दिया है, इस पर भी यदि हम ना चेतें तो हमारी बड़ी भूल है| इस पुरुषोत्तम मास में परमात्मा का प्रेम प्राप्त करने के लिए यदि सब ही नर-नारी निम्नलिखित नियमों को महीनेभर तक सावधानी के साथ पालें तो उन्हें बहुत कुछ लाभ होने की संभावना है|

1. प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें |
2. गीताजी के पुरुषोत्तम-योग नामक 15 वे अध्याय का प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक पाठ करें| श्रीमद भागवत का पाठ करें, सुनें| संस्कृत के श्लोक ना पढ़ सकें तो अर्थों का ही पाठ कर लें|
3. स्त्री-पुरुष दोनों एक मत से महीने भर तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, जमीन पर सोवें|
4. प्रतिदिन घंटे भर किसी भी नियत समय पर मौन रहकर अपनी-अपनी रूचि और विश्वास के अनुसार भगवान् का भजन करें|
5. जान-बूझकर झूठ ना बोलें, किसी की निंदा ना करें|
6. भोजन और वस्त्रों में जहां तक बन सके, पूरी शुद्धि और सादगी बरतें| पत्ते पर भोजन करें, भोजन में हविष्यान्न ही खाएं|
7. माता, पिता, गुरु, स्वामी आदि बड़ों के चरणों में प्रतिदिन प्रणाम करें| भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की पूजा करें|

पुरुषोत्तम मास में दान देने का और त्याग करने का बड़ा महत्त्व माना गया है, इसलिए जहां तक बन सके, जिसके पास जो चीज़ हो वही योग्य पात्र के प्रति दान देकर परमात्मा की सेवा करनी चाहिए| जो भाई-बहन ऊपर लिखे सातों नियम पाल सकें तो पालने की चेष्ठा करेंl जितने नियम कम-से-कम पालन कर सकें उतने अवश्य ही पालें| अपनी कमजोरी देखकर निराश ना हों, दया के सागर और परम करुनामय भगवान का आश्रय लेने से असंभव भी संभव हो जाता है |

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