आज के सन्दर्भ में शिव पार्वती का विवाह एक सजग उदाहरण व् मिसाल है
माँ भगवती की जिद्द के मैं तो जटाधारी शिव से ही ब्याह रचाऊँगी और उनके पिता प्रजापति दक्ष की हर नकामयाब कोशिश इस विवाह को रोकने की ......आज भी हर प्रेमी जोड़े ( जो शिद्दत से प्यार करते हैं और एक दूजे से शादी करना चाहते है ) के लिए पूर्ण रूपेण उत्साह और प्रेरणा का आधार बिंदु है ....
शिवरात्रि का पर्व है आया
संग उत्सव माहोल ले आया
रंग अनोखा मंदिर में छाया
नर नारी बालक ने मिलकर
शिव्-पार्वती का ब्याह रचाया || जय माँ गौरा जय भोले नाथ ||
ले बेल-पत्र , धतुरा और भांग
पहुच रहे सब जन तेरे द्वार
मनाने को पावन ये त्यौहार
तुझ वैरागी ने जब तज वैराग
बसाया घर संसार माँ गौरा के साथ || जय माँ गौरा जय भोले नाथ ||
अजब बारात, हैरान घरात
राख लपेट, ओढ़ मृग छाल,
गले में पहन नागो का हार
पहुचे शिव माँ गौरा के द्वार
देव गन्धर्व कर रहे पुष्प फुहार || जय माँ गौरा जय भोले नाथ ||
नयनाभिराम छवि अति प्यारी
शिव पार्वती की जोड़ी न्यारी
हर लड़का लड़की मनाये मन में
ब्याह रचाने को मिले साथी मनोहार
ऐसा तुम्हारा अर्धनारीश्वर अवतार || जय माँ गौरा जय भोले नाथ ||
लो शिवरात्रि का पर्व है आया
संग उत्सव माहोल ले आया
रंग अनोखा मंदिर में छाया
नर नारी बालक ने मिलकर
शिव्-पार्वती का ब्याह रचाया || जय माँ गौरा जय भोले नाथ ||
महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ।
महाशिवरात्री भगवान शंकर और भगवती पार्वती का महामिलन का महोत्सव है। यह
हमें कल्याणकारी कार्य करने की ओर शिवत्व का बोध कराता है। फाल्गुन मास के
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व आता है। शैव और
वैष्णव, दोनों ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते है। वैष्ण्व इस तिथि को शिव
चतुर्दशी कहते है। भगवान शिव को वेदों में रुद्र कहा गया है, क्...योंकि
दुख को नष्ट कर देते है। इस प्रकार शिव और रुद्र एक परमेश्वर के ही
पर्यायवाची शब्द हैं। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि चंद्र-दर्शन की आखिरी
तिथि है, क्योंकि इसके बाद अमावस्या की रात्रि में चंद्र लुप्त हो जाता है।
अमावस्या को कालरात्रि भी कहा जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन
कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शंकर और भगवती पार्वती का विवाह हुआ था। शिव और
शक्ति के पावन परिणय की तिथि होने के कारण इसे महाशिवरात्री का नाम दिया
गया। इस दिन लोग व्रत रखकर शिव-पार्वतीाâा विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते है।
काशी में महाशिवरात्रि के दिन निकलने वाली शिव-बारात तो विश्वविख्यात है,
जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते है। बाबा विश्वनाथ की नगरी
काशी में हर घर शिवरात्रि की उमंग में रंग जाता है।इस तिथि के
मध्यरात्रिकालीन महानिशीथकाल में महेश्वर के निराकार ब्रह्म-स्वरूप प्रतीक
शिवलिंग का आविर्भाव होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध
हो गई। शिवपुराण के अनुसार, शिव के दो रूप है- सगुण और निर्गुण। सगुण-रूप
मूर्ति में साकार होता है, जबकि शिवलिंग निर्गुण-निराकार ब्रह्म है।
महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है। इस दिन शिव
मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे
के पुष्प, चावल आदि डालकर शिविंलग पर चढ़ाया जाता है. अगर पास में शिवालय न
हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिविंलग बनाकर उसे पूजने का विधान है। इस
दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली
जाती है। रात में पूजन कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल,
खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
स्कंदपुराण
महाशिवरात्रि को व्रतों में सर्वोपरि कहता है। इस व्रत के तीन प्रमुख अंग
है- उपवास, शिवार्चन और रात्रि-जागरण। उपवास से तन शुद्ध होता है, अर्चना
से मन पवित्र होता है तथा रात्रि-जागरण से आत्म-साक्षात्कार होता है। यही
महाशिवरात्रि के व्रत का उद्देश्य है।
सही अर्थो में शिवचतुर्दशी
का लक्ष्य है पांच ज्ञानेंद्रियों, पांच कर्मेद्रियों तथ मन, अहंकार, और
बुद्धि-इन चतुर्दश १४, का समुचित नियंत्रण। यही सच्ची शिव-पूजा है। वस्तुतः
इसी से शिवत्व का बोध होता है। यही अनुभूति ही इस पर्व को सार्थक बनाती है
और यह पर्व समस्त प्राणियों के लिए कल्याणकारी बन जाता है ।
कहा
जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिव हर मंदिर में लिंग रूप में
प्रत्यक्ष होते है l भक्तों का मानना है कि उस दिन शिव पूजा एवं लिंगाभेशक
करने पर शिव प्रसन्न होंगे l उस दिन उपवास रहकर रात भर जागारण कर पूजा एवं
भजन करते है l कहा जाता है कि उस दिन स्वामी को बिल्वपत्र और अभिषेक
समर्पित करने से पुनर्जन्म नहीं रहेगा और और मुक्त प्राप्त होगी l इस पर्व
दिन पर शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप परिवर्तित होगा l कश्मीर में शिवरात्री
उत्सव १५ दिनों तक मनाया जाता है l
शिवरात्री का व्रत फाल्गुन
कृष्णा त्रयोदशी का होता है l कुछ लोग चतुर्दशी को भी इस व्रत को करते है l
ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आदि में इसी दिन भगवान् शंकर का ब्रह्मा से
रुद्रा के रूप में ,रात्री के मध्य में अवतरण हुआ था l प्रलय की बेला में
इसी दिन प्रदोष के समय भगवान् शिव ताण्डव करते हुये ब्रह्माण्ड को तीसरे
नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते है l इसी लिए इसे महा शिवरात्री अथवा
कालरात्री कहा गया है l
भगवान शिव अपने कर्मों से तो अद्भुत हैं
ही; अपने स्वरूप से भी रहस्यमय हैं। भक्त से प्रसन्न हो जाएं तो अपना धाम
उसे दे दें और यदि गुस्सा हो जाएं तो उससे उसका धाम छीन लें। शिव अनोखेपन
और विचित्रताओं का भंडार हैं। शिव की तीसरी आंख भी ऐसी ही है। धर्म
शास्त्रों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव की तीन आंखें हैं।
दरअसल शिव की तीसरी आंख प्रतीकात्मक नेत्र है। आंखों का काम
होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में पढऩे वाली मुसीबतों से सावधान करना।
जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं; जिन्हें हम अपनी दोनों आंखों से
भी नहीं देख पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के
रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है।
यह विवेक अत:प्रेरणा के
रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरुरत है उसे जगाने की। भगवान शिव का
तीसरा नेत्र आज्ञाचक्र का स्थान है। यह आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत
है।
| शिव |
1 व्युत्पत्ति और अर्थ:
- शिव शब्द वश्
शब्द से तैयार हुआ है। वश् का मतलब है प्रकाश देना, अर्थात जो प्रकाश देते
है वह शिव। शिव यह स्वयंसिद्ध, स्वयंप्रकाशी है। वे स्वयं प्रकाशित रहकर
विश्व को प्रकाशित करते है।
2 कुछ अन्य नाम...
- शंकर --
"शं करोति इति शंकर:।" 'शं' अर्थात कल्याण और 'करोति' अर्थात कार्य करनेवाला। जो कल्याण करते है वह शंकर।
- महाकालेश्वर --
अखिल ब्रह्माण्ड के अधिष्ठाता देव (क्षेत्रपाल देव)। वह कालपुरुष अर्थात महाकाल (महान् काल) है; अर्थात उन्हें महाकालेश्वर कहते है।
- महादेव --
'विश्वसर्जन' के एवं 'व्यवहार के विचार' के मुलत: तीन विचार होते है -
परिपूर्ण पावित्र्य, परिपूर्ण ज्ञान और परिपूर्ण साधना। यह तीन जिनके अन्दर
साथ में है, ऐसे देव एवं देवोके देव, अर्थात महादेव।
- भालचंद्र --
भाल के ऊपर अर्थात कपाल के ऊपर, जिन्होंने चन्द्र को धारण किया हुआ है वह
भालचंद्र। शिव पुत्र गणपति जी का भी भालचंद्र, यह एक नाम है।
- कर्पूरगौर --
शिव का रंग कर्पूर जैसा (कपूर जैसा) सफ़ेद है; वस्तुत: उन्हें कर्पूरगौर ऐसा भी कहा जाता है।
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार ।
यह दस अवतार इस प्रकार है जो मानव को सभी इच्छित फल प्रदान करने वाले हैं-
1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल नाम से
विख्यात हैं। भगवान शिव का महाकाल स्वरुप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष
प्रदान करने वाला परम कल्याणी हैं। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी
जाती हैं।
2. तार- शिव के दस प्रमुख
अवतारों में दूसरा अवतार तार नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का तार स्वरुप
अपने भक्तों को भुक्ति-मुक्ति दोनों फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की
शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।
3. बाल भुवनेश- शिव के दस प्रमुख
अवतारों में तीसरा अवतार बाल भुवनेश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बाल
भुवनेश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाला हैं।
इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना जाता हैं।
4.षोडश
श्रीविद्येश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में चौथा अवतार षोडश श्रीविद्येश
नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का षोडश श्रीविद्येश स्वरुप अपने भक्तों को
सुख, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी
श्रीविद्या माना जाता हैं।
5. भैरव- शिव के दस प्रमुख अवतारों में
पांचवा अवतार भैरव नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का भैरव स्वरुप अपने
भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति भैरवी
गिरिजा मानी जाती हैं।
6. छिन्नमस्तक- शिव के दस प्रमुख अवतारों में
छठा अवतार छिन्नमस्तक नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का छिन्नमस्तक स्वरुप
अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति देवी
छिन्नमस्ता मानी जाती हैं।
7. धूमवान- शिव के दस प्रमुख अवतारों में
सातवां अवतार धूमवान नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का धूमवान स्वरुप अपने
भक्तों की सभी प्रकार से श्रेष्ठ फल देने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को
देवी धूमावती माना जाता हैं।
8. बगलामुख- शिव के दस प्रमुख अवतारों में
आठवां अवतार बगलामुख नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बगलामुख स्वरुप
अपने भक्तों को परम आनंद प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी
बगलामुखी माना जाता हैं।
9. मातंग- शिव के दस प्रमुख अवतारों में नौवां
अवतार मातंग के नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का मातंग स्वरुप अपने
भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को
देवी मातंगी माना जाता हैं।
10. कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में
दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का कमल स्वरुप अपने भक्तों
को भुक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला
माना जाता हैं।
विद्वानो के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार
व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की
रक्षा करने वाले हैं।
जय श्री महाकाल शम्भो !!