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रविवार, 16 मार्च 2014
शनिवार, 15 मार्च 2014
प्राकृतिक रंगों से खेले होली - प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ
प्राकृतिक रंगों से खेले होली
प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ
केसरिया रंगः पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें। यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है। इसमें औषधिय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है।
सूखा हरा रंगः मेंहदी या हिना का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें। आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है।
सूखा पीला रंगः हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छाया में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।
गीला पीला रंगः एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी भिगोकर रखें, सुबह उबालें।
लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है। दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर
उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें।
पीला गुलाल : (१) ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें | (२) अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें |
पीला रंग : (१) २ चम्मच हल्दी चूर्ण २ लीटर पानी में उबालें | (२) अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें |
जामुनी रंग : चुकंदर उबालकर पीस के पानी में मिला लें |
काला रंग : आँवला चूर्ण लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें |
लाल रंग : (१) आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चुना मिलाकर १० लीटर पानी में डाल दे | (२) २ चम्मच लाल चंदन चूर्ण १ लीटर पानी में उबाले |
लाल गुलाल : सूखे लाल गुडहल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें |
हरा रंग : (१) पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी भिगोकर उपयोग करें | (२) गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें |
हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें |
भूरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें |
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प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ
केसरिया रंगः पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें। यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है। इसमें औषधिय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है।
सूखा हरा रंगः मेंहदी या हिना का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें। आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है।
सूखा पीला रंगः हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छाया में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।
गीला पीला रंगः एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी भिगोकर रखें, सुबह उबालें।
लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है। दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर
उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें।
पीला गुलाल : (१) ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें | (२) अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें |
पीला रंग : (१) २ चम्मच हल्दी चूर्ण २ लीटर पानी में उबालें | (२) अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें |
जामुनी रंग : चुकंदर उबालकर पीस के पानी में मिला लें |
काला रंग : आँवला चूर्ण लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें |
लाल रंग : (१) आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चुना मिलाकर १० लीटर पानी में डाल दे | (२) २ चम्मच लाल चंदन चूर्ण १ लीटर पानी में उबाले |
लाल गुलाल : सूखे लाल गुडहल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें |
हरा रंग : (१) पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी भिगोकर उपयोग करें | (२) गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें |
हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें |
भूरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें |
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शुक्रवार, 14 मार्च 2014
इस जन्म के सुख दुःख का संबंध पूर्वजन्म से
ऐसे जानें पूर्वजन्म में आप क्या थे, क्यों मिला यह जीवन========== इस जन्म के सुख दुःख का संबंध पूर्वजन्म से
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पुनर्जन्म : पिछले जन्म में आप क्या थे?
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पिछले जन्म में आप क्या थे? क्या वाकई आप जानना चाहते हैं? क्या आप पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हैं? पिछला या पुनर्जन्म होता है या नहीं? यह सवाल प्रत्येक व्यक्ति के मन में होगा। हो सकता है कि कुछ लोग मानकर ही बैठ गए हैं कि हां होता है और कुछ लोग यह मानते हैं कि नहीं होता है।
दोनों ही तरह के लोग यह कभी जानने का प्रयास नहीं करेंगे कि पुनर्जन्म होता है या नहीं, क्योंकि धर्म ने आपको रेडीमेड उत्तर दे दिए हैं। बचपन से ही मुसलमान को बता दिया जाना है कि पुनर्जन्म नहीं होता है और हिन्दू को बता दिया जाता है कि होता है। अब बस खोज बंद। धर्म ने सब खोज लिया, तुम नाहक ही क्यों परेशान होते हो?
जीवन में जब कभी भी परेशानी आती है तो एक बार मन में यह सवाल जरुर उठता है कि आखिर पिछले जन्म में ऐसा कौन सा पाप किया है कि इसकी सजा मिल रही है।
अगर आप ऐसा सोचते हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। क्योंकि इस जन्म के सुख दुःख का संबंध पूर्वजन्म से भी होता है। यह बात परामनोविज्ञान और ज्योतिषशास्त्र दोनों कहता है।
तीन धर्म है - यहूदी, ईसाईयत, इस्लाम जो पुनर्जन्म के सिद्धांत को नहीं मानते। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिंदू, जैन और बौद्ध यह तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है। अरब में किसी बच्चे को अपने पिछले जन्म की याद नहीं आती, लेकिन भारत में ऐसे ढेरों किस्से हैं कि फलां-फलां बच्चे को पिछले जन्म का याद आ गया। ऐसा क्यों?
विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है। वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है।
हिंदू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा गीता में कहा गया है।
हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। यह जिस क्रम में लिखे गए हैं उसी क्रम में इनकी प्राथमिकता है। आकाश अनुमानित तत्व है अर्थात् जिसको आप प्रूव नहीं कर सकते कि यह 'आकाश' है। आकाश किसे कहते हैं? आज तक किसी ने आकाश नहीं देखा, उसी तरह जिस तरह की वायु नहीं देखी, लेकिन वायु महसूस होती है इसलिए अनुमानित तत्व नहीं है। आकाश को अनुमानित तत्व कहना गलत है।
खैर। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बाद में कुछ है जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा।
लेकिन इसके बाद भी बहुत कुछ बचता है। एक छठवें तत्व की हम बात करें- हमने कई बार सुना होगा- मन और मस्तिष्क। निश्चित ही मस्तिष्क को मन नहीं कहते तब फिर मन क्या है? क्या वह भी शरीर के नष्ट होने पर नष्ट हो जाता है? शरीर तो भौतिक जगत का हिस्सा है, लेकिन मन अभौतिक है। यह मन ही आत्मा के साथ आकाशरूप में विद्यमान रहता है।
एक सातवां तत्व भी होता है जो बच जाता है, उसे कहते हैं- बुद्धि। बुद्धि हमारा बोध है। हमने जो भी देखा और भोगा वह बोध ही आकाशरूप में विद्यमान रहता है। इसके बाद एक और अंतिम तत्व होता है जिसे कहते हैं- अहंकार। यह घमंड वाला अहंकार।
स्वयं के होने के बोध को ही अंतिम अहंकार कहते हैं। अहंकार से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। गीता में आठ तत्वों की चर्चा की गई है। उक्त आठ तत्वों को विस्तार से जानना है तो वेदों का अंतिम भाग उपनिषद पढ़े, जिसे वेदांत भी कहा जाता है। लगभग 1008 उपनिषद हैं।
योग ने मन, बुद्धि और अहंकार को नाम दिया 'चित्त'। यह चित्त ही चेतना (आत्मा) का मास्टर चिप है। यह मास्टर पेन ड्राइव है, जिसमें लाखों जन्म का डाटा इकट्ठा होता रहता है। आप इसे कुछ भी अच्छा-सा नाम दे सकते हैं।
चित्त की वृत्तियों का निरोध तो किया जा सकता है, किंतु चित्त को समाप्त करना मुश्किल है और जो इसे समाप्त कर देता है उसे मोक्ष मिल जाता है।
क्या आप अपना पिछला जन्म जानना चाहते हैं? ऐसे जानें पूर्वजन्म को
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हमारा संपूर्ण जीवन स्मृति-विस्मृति के चक्र में फंसा रहता है। उम्र के साथ स्मृति का घटना शुरू होता है, जोकि एक प्राकृति प्रक्रिया है, अगले जन्म की तैयारी के लिए। यदि मोह-माया या राग-द्वेष ज्यादा है तो समझों स्मृतियां भी मजबूत हो सकती है। व्यक्ति स्मृति मुक्त होता है तभी प्रकृति उसे दूसरा गर्भ उपलब्ध कराती है। लेकिन पिछले जन्म की सभी स्मृतियां बीज रूप में कारण शरीर के चित्त में संग्रहित रहती है। विस्मृति या भूलना इसलिए जरूरी होता है कि यह जीवन के अनेक क्लेशों से मुक्त का उपाय है।
योग में अष्टसिद्धि के अलावा अन्य 40 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से ही एक है पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग। इस योग की साधना करने से व्यक्ति को अपने अगले पिछले सारे जन्मों का ज्ञान होने लगता है। यह साधना कठिन जरूर है, लेकिन योगाभ्यासी के लिए सरल है।
कैसे जाने पूर्व जन्म को : योग कहता है कि सर्व प्रथम चित्त को स्थिर करना आवश्यक है तभी इस चित्त में बीज रूप में संग्रहित पिछले जन्मों का ज्ञान हो सकेगा। चित्त में स्थित संस्कारों पर संयम करने से ही पूर्वन्म का ज्ञान होता है। चित्त को स्थिर करने के लिए सतत ध्यान क्रिया करना जरूरी है।
जाति स्मरण का प्रयोग : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं तब आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।
दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाए। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मोमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है।
क्यों जरूरी ध्यान : ध्यान के अभ्यास में जो पहली क्रिया सम्पन्न होती है वह भूलने की, कचरा स्मृतियों को खाली करने की होती है। जब तक मस्तिष्क कचरा ज्ञान, तर्क और स्मृतियों से खाली नहीं होगा, नीचे दबी हुई मूल प्रज्ञा जाग्रत नहीं होगी। इस प्रज्ञा के जाग्रत होने पर ही जाति स्मरण ज्ञान (पूर्व जन्मों का) होता है। तभी पूर्व जन्मों की स्मृतियां उभरती हैं।
सावधानी : सुबह और शाम का 15 से 40 मिनट का विपश्यना ध्यान करना जरूरी है। मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार हो तो जाति स्मरण का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह प्रयोग किसी योग शिक्षक या गुरु से अच्छे से सिखकर ही करना चाहिए। सिद्धियों के अनुभव किसी आम जन के समक्ष बखान नहीं करना चाहिए। योग की किसी भी प्रकार की साधना के दौरान आहार संयम जरूरी रहता है।
ज्योतिषशास्त्र कहता है कि व्यक्ति चाहे तो स्वयं भी अपने पूर्वजन्म के बारे में जान सकता है लेकिन इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
पूर्वजन्म और भाग्य का सहयोग
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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर आपकी कुण्डली में गुरु लग्न यानी पहले घर में बैठा है तो यह समझना चाहिए कि पूर्वजन्म में आप किसी विद्वान परिवार में जन्मे थे।
जन्मपत्री में गुरु पांचवे, सातवें या नवम घर में बैठा है तो यह संकेत है कि आप पूर्व जन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील रहे होंगे।
इसके प्रभाव से इस जन्म में भी आप पढ़ने लिखने में होशियार होंगे। समय-समय पर आपको भाग्य का सहयोग मिलेगा। धर्म में आपकी रुचि रहेगी।
पूर्वजन्म में अस्वभाविक मृत्यु हुई होगी
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जिनकी जन्म कुण्डली में राहु पहले या सातवें घर में बैठा होता है उनके विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि इनकी अस्वभाविक मृत्यु हुई होगी।
ऐसा व्यक्ति वर्तमान जीवन में चालाक होता है। इनका मन कई बार उलझनों में घिरा रहता है। वैवाहिक जीवन में आपसी तालमेल की कमी रहती है।
ऐसे व्यक्ति पूर्व जन्म में व्यापारी होते हैं
जिन व्यक्तियों का जन्म कर्क लग्न में हुआ है। यानी कुण्डली में पहले घर में कर्क राशि है और चन्द्रमा इस राशि में बैठा है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति पूर्वजन्म में व्यापारी रहा होगा।
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वर्तमान जन्म में ऐसा व्यक्ति चंचल स्वभाव का होता है। छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव के साथ यह जीवन में सफल होते हैं।
लग्न स्थान में बुध की उपस्थिति से भी यह संकेत मिलता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यापारी के परिवार में जन्मा होगा। ऐसे व्यक्ति वर्तमान जीवन में भी व्यवसाय एवं गणित में होशियार होता है।
इनके क्रोध से लोग परेशान रहे होंगे
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जिनकी जन्मपत्री में मंगल छठे, सातवें या दसवें स्थान में होता है वह पूर्वजन्म में बहुत ही क्रोधी व्यक्ति रहे होंगे। इन्होंने अपने क्रोध के कारण कई लोगों को कष्ट पहुंचाया होगा।
इस जन्म में ऐसे व्यक्तियों को रक्तचाप की शिकायत हो सकती है। वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। चोट और दुर्घटना के कारण कष्ट होता है।
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पुनर्जन्म : पिछले जन्म में आप क्या थे?
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पिछले जन्म में आप क्या थे? क्या वाकई आप जानना चाहते हैं? क्या आप पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हैं? पिछला या पुनर्जन्म होता है या नहीं? यह सवाल प्रत्येक व्यक्ति के मन में होगा। हो सकता है कि कुछ लोग मानकर ही बैठ गए हैं कि हां होता है और कुछ लोग यह मानते हैं कि नहीं होता है।
दोनों ही तरह के लोग यह कभी जानने का प्रयास नहीं करेंगे कि पुनर्जन्म होता है या नहीं, क्योंकि धर्म ने आपको रेडीमेड उत्तर दे दिए हैं। बचपन से ही मुसलमान को बता दिया जाना है कि पुनर्जन्म नहीं होता है और हिन्दू को बता दिया जाता है कि होता है। अब बस खोज बंद। धर्म ने सब खोज लिया, तुम नाहक ही क्यों परेशान होते हो?
जीवन में जब कभी भी परेशानी आती है तो एक बार मन में यह सवाल जरुर उठता है कि आखिर पिछले जन्म में ऐसा कौन सा पाप किया है कि इसकी सजा मिल रही है।
अगर आप ऐसा सोचते हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। क्योंकि इस जन्म के सुख दुःख का संबंध पूर्वजन्म से भी होता है। यह बात परामनोविज्ञान और ज्योतिषशास्त्र दोनों कहता है।
तीन धर्म है - यहूदी, ईसाईयत, इस्लाम जो पुनर्जन्म के सिद्धांत को नहीं मानते। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिंदू, जैन और बौद्ध यह तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है। अरब में किसी बच्चे को अपने पिछले जन्म की याद नहीं आती, लेकिन भारत में ऐसे ढेरों किस्से हैं कि फलां-फलां बच्चे को पिछले जन्म का याद आ गया। ऐसा क्यों?
विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है। वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है।
हिंदू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा गीता में कहा गया है।
हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। यह जिस क्रम में लिखे गए हैं उसी क्रम में इनकी प्राथमिकता है। आकाश अनुमानित तत्व है अर्थात् जिसको आप प्रूव नहीं कर सकते कि यह 'आकाश' है। आकाश किसे कहते हैं? आज तक किसी ने आकाश नहीं देखा, उसी तरह जिस तरह की वायु नहीं देखी, लेकिन वायु महसूस होती है इसलिए अनुमानित तत्व नहीं है। आकाश को अनुमानित तत्व कहना गलत है।
खैर। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बाद में कुछ है जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा।
लेकिन इसके बाद भी बहुत कुछ बचता है। एक छठवें तत्व की हम बात करें- हमने कई बार सुना होगा- मन और मस्तिष्क। निश्चित ही मस्तिष्क को मन नहीं कहते तब फिर मन क्या है? क्या वह भी शरीर के नष्ट होने पर नष्ट हो जाता है? शरीर तो भौतिक जगत का हिस्सा है, लेकिन मन अभौतिक है। यह मन ही आत्मा के साथ आकाशरूप में विद्यमान रहता है।
एक सातवां तत्व भी होता है जो बच जाता है, उसे कहते हैं- बुद्धि। बुद्धि हमारा बोध है। हमने जो भी देखा और भोगा वह बोध ही आकाशरूप में विद्यमान रहता है। इसके बाद एक और अंतिम तत्व होता है जिसे कहते हैं- अहंकार। यह घमंड वाला अहंकार।
स्वयं के होने के बोध को ही अंतिम अहंकार कहते हैं। अहंकार से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। गीता में आठ तत्वों की चर्चा की गई है। उक्त आठ तत्वों को विस्तार से जानना है तो वेदों का अंतिम भाग उपनिषद पढ़े, जिसे वेदांत भी कहा जाता है। लगभग 1008 उपनिषद हैं।
योग ने मन, बुद्धि और अहंकार को नाम दिया 'चित्त'। यह चित्त ही चेतना (आत्मा) का मास्टर चिप है। यह मास्टर पेन ड्राइव है, जिसमें लाखों जन्म का डाटा इकट्ठा होता रहता है। आप इसे कुछ भी अच्छा-सा नाम दे सकते हैं।
चित्त की वृत्तियों का निरोध तो किया जा सकता है, किंतु चित्त को समाप्त करना मुश्किल है और जो इसे समाप्त कर देता है उसे मोक्ष मिल जाता है।
क्या आप अपना पिछला जन्म जानना चाहते हैं? ऐसे जानें पूर्वजन्म को
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हमारा संपूर्ण जीवन स्मृति-विस्मृति के चक्र में फंसा रहता है। उम्र के साथ स्मृति का घटना शुरू होता है, जोकि एक प्राकृति प्रक्रिया है, अगले जन्म की तैयारी के लिए। यदि मोह-माया या राग-द्वेष ज्यादा है तो समझों स्मृतियां भी मजबूत हो सकती है। व्यक्ति स्मृति मुक्त होता है तभी प्रकृति उसे दूसरा गर्भ उपलब्ध कराती है। लेकिन पिछले जन्म की सभी स्मृतियां बीज रूप में कारण शरीर के चित्त में संग्रहित रहती है। विस्मृति या भूलना इसलिए जरूरी होता है कि यह जीवन के अनेक क्लेशों से मुक्त का उपाय है।
योग में अष्टसिद्धि के अलावा अन्य 40 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से ही एक है पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग। इस योग की साधना करने से व्यक्ति को अपने अगले पिछले सारे जन्मों का ज्ञान होने लगता है। यह साधना कठिन जरूर है, लेकिन योगाभ्यासी के लिए सरल है।
कैसे जाने पूर्व जन्म को : योग कहता है कि सर्व प्रथम चित्त को स्थिर करना आवश्यक है तभी इस चित्त में बीज रूप में संग्रहित पिछले जन्मों का ज्ञान हो सकेगा। चित्त में स्थित संस्कारों पर संयम करने से ही पूर्वन्म का ज्ञान होता है। चित्त को स्थिर करने के लिए सतत ध्यान क्रिया करना जरूरी है।
जाति स्मरण का प्रयोग : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं तब आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।
दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाए। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मोमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है।
क्यों जरूरी ध्यान : ध्यान के अभ्यास में जो पहली क्रिया सम्पन्न होती है वह भूलने की, कचरा स्मृतियों को खाली करने की होती है। जब तक मस्तिष्क कचरा ज्ञान, तर्क और स्मृतियों से खाली नहीं होगा, नीचे दबी हुई मूल प्रज्ञा जाग्रत नहीं होगी। इस प्रज्ञा के जाग्रत होने पर ही जाति स्मरण ज्ञान (पूर्व जन्मों का) होता है। तभी पूर्व जन्मों की स्मृतियां उभरती हैं।
सावधानी : सुबह और शाम का 15 से 40 मिनट का विपश्यना ध्यान करना जरूरी है। मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार हो तो जाति स्मरण का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह प्रयोग किसी योग शिक्षक या गुरु से अच्छे से सिखकर ही करना चाहिए। सिद्धियों के अनुभव किसी आम जन के समक्ष बखान नहीं करना चाहिए। योग की किसी भी प्रकार की साधना के दौरान आहार संयम जरूरी रहता है।
ज्योतिषशास्त्र कहता है कि व्यक्ति चाहे तो स्वयं भी अपने पूर्वजन्म के बारे में जान सकता है लेकिन इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
पूर्वजन्म और भाग्य का सहयोग
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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर आपकी कुण्डली में गुरु लग्न यानी पहले घर में बैठा है तो यह समझना चाहिए कि पूर्वजन्म में आप किसी विद्वान परिवार में जन्मे थे।
जन्मपत्री में गुरु पांचवे, सातवें या नवम घर में बैठा है तो यह संकेत है कि आप पूर्व जन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील रहे होंगे।
इसके प्रभाव से इस जन्म में भी आप पढ़ने लिखने में होशियार होंगे। समय-समय पर आपको भाग्य का सहयोग मिलेगा। धर्म में आपकी रुचि रहेगी।
पूर्वजन्म में अस्वभाविक मृत्यु हुई होगी
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जिनकी जन्म कुण्डली में राहु पहले या सातवें घर में बैठा होता है उनके विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि इनकी अस्वभाविक मृत्यु हुई होगी।
ऐसा व्यक्ति वर्तमान जीवन में चालाक होता है। इनका मन कई बार उलझनों में घिरा रहता है। वैवाहिक जीवन में आपसी तालमेल की कमी रहती है।
ऐसे व्यक्ति पूर्व जन्म में व्यापारी होते हैं
जिन व्यक्तियों का जन्म कर्क लग्न में हुआ है। यानी कुण्डली में पहले घर में कर्क राशि है और चन्द्रमा इस राशि में बैठा है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति पूर्वजन्म में व्यापारी रहा होगा।
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वर्तमान जन्म में ऐसा व्यक्ति चंचल स्वभाव का होता है। छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव के साथ यह जीवन में सफल होते हैं।
लग्न स्थान में बुध की उपस्थिति से भी यह संकेत मिलता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यापारी के परिवार में जन्मा होगा। ऐसे व्यक्ति वर्तमान जीवन में भी व्यवसाय एवं गणित में होशियार होता है।
इनके क्रोध से लोग परेशान रहे होंगे
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जिनकी जन्मपत्री में मंगल छठे, सातवें या दसवें स्थान में होता है वह पूर्वजन्म में बहुत ही क्रोधी व्यक्ति रहे होंगे। इन्होंने अपने क्रोध के कारण कई लोगों को कष्ट पहुंचाया होगा।
इस जन्म में ऐसे व्यक्तियों को रक्तचाप की शिकायत हो सकती है। वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। चोट और दुर्घटना के कारण कष्ट होता है।
बांस की इन खूबियों को जानकर हैरान रह जाएंगे आप
बांस की इन खूबियों को जानकर हैरान रह जाएंगे आप
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अगर आपके लाख प्रयास के बावजूद आपको नौकरी और व्यवसाय में अच्छी सफलता नहीं मिल रही है तो आपको अपने घर में बांस का पौधा लगाना चाहिए। अगर आप सोच रहे हैं कि बांस के पौधे में आखिर ऐसी क्या खूबी है, जो आपको सफलता दिला सकती है तो हम आपको इसकी खूबी बताते हैं।
बांस संसार का एक मात्र ऐसा पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेजी से उन्नति करता है। अपने इसी गुण के कारण इसे उन्नति का प्रतीक और समृद्धि देने वाला पौधा माना जाता है। फेंगशुई में बांस के पौधे को दिव्य पौधा कहा जाता है।
भारतीय वास्तु विज्ञान में भी बांस को शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि बांस का पौधा जहां होता है वहां बुरी आत्माएं नहीं आती हैं। शादी, जनेऊ, मुण्डन में बांस की पूजा एवं बांस से मण्डप बनाने के पीछे भी यही कारण है।
बचपन में भगवान श्री कृष्ण हमेशा अपने पास बांस की बांसुरी रखते थे। इसका कारण भी संभवतः यही था कि उन पर हमेशा आसुरी शक्तियों का भय बना रहता था। आसुरी शक्तियों को कमज़ोर करने एवं उन पर विजय पाने में बांसुरी द्वारा उत्पन्न सकारात्मक उर्जा से उन्हें मदद मिलती थी।
वास्तु एवं फेंगशुई के अनुसार घर में अगर किसी प्रकार का वास्तु दोष है तो घर के मुख्य द्वार पर बांस की दो बांसुरी लटका देनी चाहिए। इसके हिलने से जो उर्जा उत्पन्न होती है वह वास्तु दोष एवं नकारात्मक उर्जा से घर को मुक्त बनाती है।
बेडरूम में बेड के ऊपर बीम का होना वास्तु के अनुसार बहुत ही अशुभ होता है। इससे मानसिक तनाव एवं दांपत्य जीवन में दूरियां बढ़ती है। इस दोष को दूर करने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि दो बांसुरी लेकर उसे बीम के दोनों तरफ लाल फीते से बांध दें। इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बांसुरी की मुंह बेड की ओर रहे।
बांस की बांसुरी या पौधा ड्राईंग रूप में लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। मन में आशा का संचार होता है और मनोबल बढ़ता है। बांस के इन्हीं दिव्य गुणों के कारण बांस को जलाना शुभ नहीं माना जाता है।
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अगर आपके लाख प्रयास के बावजूद आपको नौकरी और व्यवसाय में अच्छी सफलता नहीं मिल रही है तो आपको अपने घर में बांस का पौधा लगाना चाहिए। अगर आप सोच रहे हैं कि बांस के पौधे में आखिर ऐसी क्या खूबी है, जो आपको सफलता दिला सकती है तो हम आपको इसकी खूबी बताते हैं।
बांस संसार का एक मात्र ऐसा पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेजी से उन्नति करता है। अपने इसी गुण के कारण इसे उन्नति का प्रतीक और समृद्धि देने वाला पौधा माना जाता है। फेंगशुई में बांस के पौधे को दिव्य पौधा कहा जाता है।
भारतीय वास्तु विज्ञान में भी बांस को शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि बांस का पौधा जहां होता है वहां बुरी आत्माएं नहीं आती हैं। शादी, जनेऊ, मुण्डन में बांस की पूजा एवं बांस से मण्डप बनाने के पीछे भी यही कारण है।
बचपन में भगवान श्री कृष्ण हमेशा अपने पास बांस की बांसुरी रखते थे। इसका कारण भी संभवतः यही था कि उन पर हमेशा आसुरी शक्तियों का भय बना रहता था। आसुरी शक्तियों को कमज़ोर करने एवं उन पर विजय पाने में बांसुरी द्वारा उत्पन्न सकारात्मक उर्जा से उन्हें मदद मिलती थी।
वास्तु एवं फेंगशुई के अनुसार घर में अगर किसी प्रकार का वास्तु दोष है तो घर के मुख्य द्वार पर बांस की दो बांसुरी लटका देनी चाहिए। इसके हिलने से जो उर्जा उत्पन्न होती है वह वास्तु दोष एवं नकारात्मक उर्जा से घर को मुक्त बनाती है।
बेडरूम में बेड के ऊपर बीम का होना वास्तु के अनुसार बहुत ही अशुभ होता है। इससे मानसिक तनाव एवं दांपत्य जीवन में दूरियां बढ़ती है। इस दोष को दूर करने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि दो बांसुरी लेकर उसे बीम के दोनों तरफ लाल फीते से बांध दें। इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बांसुरी की मुंह बेड की ओर रहे।
बांस की बांसुरी या पौधा ड्राईंग रूप में लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। मन में आशा का संचार होता है और मनोबल बढ़ता है। बांस के इन्हीं दिव्य गुणों के कारण बांस को जलाना शुभ नहीं माना जाता है।
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