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रविवार, 19 जुलाई 2015

बरसात में जामुन खाने से होता है इन सारी बीमारियों का इलाज

बरसात में जामुन खाने से होता है इन सारी बीमारियों का इलाज ------
सामान्यत: बरसात के मौसम में आने वाला फल जामुन सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। जामुन अम्लीय प्रवृति वाला होता है यही कारण है कि जामुन को नमक के साथ खाया जाता है। जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज पाया जाता है।जामुन में आयरन, विटामिन और फाइबर भी पाया जाता है इसमें खनिजों की मात्रा अधिक होती है।इसके बीज में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम पाया जाता है।
जामुन के इन्हीं गुणों के कारण हम आपको बताने जा रहे हैं जामुन से जुड़े कुछ खास नुस्खे जो रोगों में रामबाण की तरह काम करते हैं।
गले के रोगों में जामुन
गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।

खून बवासीर
इसके ताजे, नरम पत्तों को गाय के पाव-भर दूध में पीसकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून बवासीर में लाभ होता है।

रक्त की कमी, यौन, स्मरण शक्ति एवं शारीरिक दुर्बलता
जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

उल्टी-दस्त या हैजा
जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर उसमें ढाई किलोग्राम मिश्री मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।

मधुमेह
जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है। जामुन की गुठली के चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ सुबह लेने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।

पेचिश
जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में दिन में दो-तीन बार लेने पर पेचिश में आराम मिलता है। पथरी हो जाने पर इसके चूर्ण का उपयोग चिकित्सकीय निर्देशन में दही के साथ करें।

दांतों, मसूढ़ों से खून
दांतों, मसूढ़ों से खून आता हो, पानी लगता हो, मसूढ़े फूलते हों तो इसके पत्तों की राख को दांतों पर मलने से मसूढ़े मजबूत होते हैं, दांत चमकीले बन जाते हैं।गला बैठ गया हो, आवाज बेसुरी हो गयी हो, गले में छाले हो गये हों तो इसके पत्ते पानी में उबाल कर उसे थोड़ा ठंडा कर उससे गरारे करें।

रक्तप्रदर
रक्तप्रदर की समस्या होने पर जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाएं और दिन में दो से तीन बार एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लें।

गठिया
गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

बवासीर - कारण और निवारण

बवासीर - कारण और निवारण
रोग की उत्पत्ति
अपान वायु के दुर्बल हो जाने से अनेक रोगों का जन्म होता है। बवासीर उनमें स एक है। वह मुख्य रूप से दो तरह की होती है। 1 खूनी तथा 2 बादी मस्से वाली। मलद्वार के आन्तरिक भाग में रक्तनलिकाओं और ज्ञान तन्तुओं का एक जाल-सा बिछा हुआ है जिनके द्वारा शरीर के इस भाग का नियन्त्र होता है और इसे पोषण मिलता है। रहन-सहन और खान-पान के गलत ढ़ग को अपनाने से बड़ी आंत में मल इकट्ठा होने लगता हैं। इससे गुदा की नसों में रक्त-संचार व प्राण प्रवाह ठीक प्रकार से नहीं होता और वे फूल जाती है। उनमें जलन और भीषण खाज होने लगती है और वे सूज जाती है। वहां की मांसपेशियां भी कमजोर पड़ जाती है। इसी अवस्था को बवासीर की संज्ञा दी जाती है। किंतु ज्यों-ज्यों कब्ज की वृद्धि होती है या वह रेचक दवाइयों का अधिक से अधिक प्रयोग करता है। ऐसा करने से बड़ी आंत और मलद्वार की श्लेष्मा क्षीण होती जाती है और आस-पास की उत्त्ोजित और फूली हुर्इ नसें और भी कमजोर पड़ जाती है। जब भी रागी मलत्याग के लिए जोर लगता है, यह भाग बाहर निकल आता है और इसे कठिनार्इ के साथ ही अंदर को धकेला जा सकता है। इन नसों फट जाने पर इनसे रक्त बहने लगता है, जिसे खूनी बवासीर कहते है।
खूनी बवासरी के लक्षण
1 गुदा-ग्रीवा की शिराओं का कोर्इ गुच्छा रक्त से भर जाना या सख्त हो जाना। 2 गुदा मार्ग में जनल, दर्द तथा खाज का होना। 3 शौच के समय दबाव पड़ने से रक्त का आना। 4 कभी मल से साथ लगकर खून आता है तो कभी बूंद-बूंद टपकता है। 5 गुदा के स्थान पर बोझ सा महसूस होता है। 6 रक्त एवं पीले रंग का पानी गुदा मार्ग से मस्सों के द्वारा निकलता रहता है। 7 गुदा की रक्त-वहिनियों एवं स्नायुओं में रक्त एवं प्राण की गति रूक जाने से गुदा द्वारा पर छोटे-बड़े दाने उभर आते है, जिन्हें मस्से कहते है।
बवासीर के कारण
1 आहार सम्बंधी गलतियां
कब्ज से स्थायी रूप धारण करने से ही बवासीर का रोग होता है। यही इसका जन्मदाता है।
आजकल खाद्य पदाथों को आकर्षक बनाने के लिए उनको साफ करने के बहाने उनके विटामिन और खनिज तत्वों का नष्ट कर दिया जाता है। ऐसे आहार स्वास्थ्य की दृष्टि से विषरूप हैं। इन्हीं के सेवन से नि:सन्देह कब्ज पैदा होती है। खान-पान से सम्बन्धित गलतियां निम्नलिखित हो सकती हैं-
1 बिना भूख के आहार करना, 2 बहुत अधिक मात्रा में भोजन करना, 3 बार-बार भोजन करना, 4 लाल मिर्च, मसालेदार व तली-भुनी गरिष्ठ वस्तुओं का सेवन करना, 5 प्रोटीन-प्रधान तथा चिकनार्इ -युक्त आहारों का अधिक मात्रा में सेवन करना तथा साग-सब्जियों और फलों का बहुत थोड़ी मात्रा में प्रयोग करना, 6 बेमेल खाद्य पदाथों का एक साथ सेवन करना, 7 जल्दी-जल्दी बिना चबाए भोजन करना, 8 अशान्त मन से भोजन करना तथा मांस, मदिरा, चाय, काफी आदि का निरंतर प्रयोग करना इत्यादि।
पौरूष ग्रंथि का बढ़ना, आंत तथा आमाशय आदि की विकृति के कारण से भी बवासीर का रोग होता है।
3 दवाइयों का प्रयोग:
दवाइयों के प्रयोग से पाचन-क्रिया में किसी भी प्रकार का सुधार नहीं हो ता बल्कि पाचक अंगों का स्वास्थ्य और भी अधिक बिगड़ जाता है। सभी दवाइयां कब्ज्ा को प्रोत्साहन देती हैं। उत्त्ोजक दवाइयां और मादक तत्वों से पाचन-क्रिया का नाश होता है। इनसे पाकस्थली की स्वाभाविक क्रिया मंद पड़ जाती है। अम्लनाशक कही जाने वाली दवादयां भी वास्तव में अम्लता को दूर नहीं करती बल्कि रोग को और भी जटिल रूप देती हैं।
उपचार
प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली के मूल सिद्धांतों को भली-भांति समझ लेने पर ही इन पर पूर्ण रूप से चला जा सकता है।
1 आहार-बवासीर के रोगी को पथ्याहारों को ही प्रयोग करना चाहिए। ऐसे आहार हैं-कच्ची साग-सब्जियां, जिनका प्रयोग यथासम्भव सलाद के रूप में ही करना चाहिए। फल भी पथ्याहार की श्रेणी में ही आते हैं। इन्हें आहार के रूप में दिन में दो बार सेवन करना चाहिए अथवा उनके रसों का थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सेवन करन चाहिए। कच्ची साग-सब्जियां पालक और सलाद के हरे पत्त्ो का प्रयोग पानी में अच्छीे तरह धोने के पश्चात् सलाद के रूप में करें। कच्चा पपीता, तुरर्इ, शलजम, लौकी, जिमिकंद की सब्जी ठीक ढंग से पका कर खाएं। भूख न होने पर भोजन नहीं करना चाहिए। सप्ताह में एक बार उपवास करना भी उचित है। उपवास के दौरान, सब्जी का सूप या फलों का रस अथवा नारियल पानी का सेवन करें।
2 शुद्धि क्रिया- यौगिक एनिमा का प्रयोग बड़ा लाभकारी है। शुरू-2 में नियमित रूप से प्रतिदिन पाव-डेढ़ पाव ताजे पानी का एनिमा लें। बाद में भी आवश्यकतानुसार इसका प्रयोग करना चाहिए।
कटि स्नान- रोगी प्रतिदिन नियमित रूप से ठण्डे जल के टब में लगभग 10 मिनट बैठें। इससे ज्ञान-तंतु एवं पेट के अन्य अवयव प्रभाव में आने से मलद्वार की नसों में रक्त का संचार उचित रूप में होगा। कभी-2 खून बहने के कारण नसों में घाव हो जाते है और बड़ा कष्ट अनुभव होता है। ऐसी अवस्था में रात्रि के समय सोने से पूर्व एक मोटे वस्त्र को पानी में भिगोकर और निचोड़कर गुदा पर लगाकर सो जाएं। इससे इसकी पीड़ा घट जाएगी।
3 खुली हवा- प्रात:काल ताजी हवा में हरी घास पर नंगे पांव घूमें और गहरी सांस लें। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन कुछ समय के लिए वायु स्नान करें।धूप स्नान-प्रतिदिन कुछ समय के लिए धूप-स्नान अवश्य करें।
4 योगासन- जानुशिरासन, पश्चिमोंत्तानासन, वज्रसान, सुप्त वजा्रसन, शशांकासन, हलासन, मत्स्यासन तथा शवासन का अभ्यास इस रोग को दूर करने में सहायक है।
5 प्राणायाम-गहरे-लम्बे श्वास, अग्निसार, भा्रमरी व नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करें।
6 अश्विनी मुद्रा- दिन भर में जब भी इच्छा हो गुदा का बार-2 संकुचित व प्रसारित करते रहें।
7 मूल बंध- बाह्म कुंभक में मूलबंध लगाएं।
8 गणेश क्रिया- तर्जनी उंगली में सरसों का तेल लगाकर शौच के बाद मूलाधार गुदा के अंदर गहरार्इ में मालिश उंगली को गोलार्इ में घूमा-घूमाकर करें। यह बहुत आवश्यक है। नाखून से जख्म होने का भय रहता है अत: सावधानी पूर्वक करें।
अन्य सहायक क्रियाएं
अभ्यास 1- सीधे खड़े हो जायें। पैरों में कंधों जितना फासला कर लें। और मजबूती से दोनों कूल्हों पर रख लें। धड को पीछे की ओर जितना झुका सकें झुकाएं। इसी अवस्था में कुछ सैकिंड रहें। फिर साीधे खड़े हो जाएं। छह से आठ बार ऐसा करें।
अभ्यास 2- सीधे खड़े हो जाएं। पैरों में कंधों से अधिक फासला करें। दोनों बांहों को कंधों के स्तर तक दाएं-बाएं उंचा उठाएं। हथेलियां भूमि की दिशा में रहें। धड़ को टागों के मोड़े बिना कटि से दायीं ओर झुकाएं। दाएं हाथ को सीधा रखें और उससे पृथ्वी को यथा संभव छुने का प्रयत्न करें टांगे सीधी रहनी चाहिए। फिर सीधे खड़े हो जाएं। इसी प्रकार धड़ का बायीं ओर झुकाएं। यह अभ्यास छह से आठ बार करे।
अभ्यास 3-पैर की अंगुलियों के सहारे उन पर खड़े हो जाएं पेट को अंदर की ओर खीचें। इसी अवस्था में कुछ सैकिंड तक खड़े रहें। फिर दोनों पैरो का पृथ्वी पर रख लें। इस प्रकार दो-चार बार करें।
उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति को यदि बवासीर भी हो तो उसे खूनी बवासरी होने की संभावना बनी रहती है और ऐसी अवस्था में रक्त का बहाव भी अधिक हो जाता है।
नोट- रोगी को यह सलाह दी जाती है कि वह भारतीय योग संस्थान के किसी ऐसे केंद्र पर जाकर नियमित साधना करे जो उस के घर के नजदीक हो।

कमर और पेट का ये बढ़ता साइज कई बीमारियों का कारण बन सकता है....!

कमर और पेट का ये बढ़ता साइज कई बीमारियों का कारण बन सकता है....!
* आपका लगातार वजन बढ़ रहा है तो सावधान हो जाइए।
* आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे छोटे-छोटे नुस्खे, जिन्हें अपनाकर आप बिना ज्यादा मेहनत किए वजन को नियंत्रित कर सकते हैं:--
* पुदीने की ताजी हरी पत्तियों की चटनी बनाकर चपाती के साथ खाएं। पुदीने वाली चाय पीने से भी वजन नियंत्रण में रहता है।
* आधा चम्मच सौंफ को एक कप खौलते पानी में डाल दें। 10 मिनट तक इसे ढककर रखें। ठंडा होने पर इस पानी को पिएं। ऐसा तीन माह तक लगातार करने से वजन कम होने लगता है।
* पपीता नियमित रूप से खाएं। यह हर सीजन में मिल जाता है। लंबे समय तक पपीता के सेवन से कमर की अतिरिक्त चर्बी कम होती है।
* दही का खाने से शरीर की फालतू चर्बी घट जाती है। छाछ का भी सेवन दिन में दो-तीन बार करें।
* छोटी पीपल का बारीक चूर्ण पीसकर उसे कपड़े से छान लें। यह चूर्ण तीन ग्राम रोजाना सुबह के समय छाछ के साथ लेने से बाहर निकला हुआ पेट अंदर हो जाता है।
* ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली वस्तुओं से परहेज करें। शक्कर, आलू और चावल में अधिक कार्बोहाइड्रेट होता है। ये चर्बी बढ़ाते हैं।
* केवल गेहूं के आटे की रोटी की बजाय गेहूं, सोयाबीन और चने के मिश्रित आटे की रोटी ज्यादा फायदेमंद है।
* सब्जियों और फलों में कैलोरी कम होती है, इसलिए इनका सेवन अधिक मात्रा में करें। केला और चीकू न खाएं। इनसे मोटापा बढ़ता है।
* आंवले व हल्दी को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छाछ के साथ लेंं। कमर‬ एकदम पतली हो जाएगी।
* मोटापा कम नहीं हो रहा हो तो खाने में कटी हुई हरी मिर्च या काली मिर्च को शामिल करके बढ़ते वजन पर काबू पाया जा सकता है। एक रिसर्च में पाया गया कि वजन कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका मिर्च खाना है। मिर्च में पाए जाने वाले तत्व कैप्साइसिन से भूख कम होती है। इससे ऊर्जा की खपत भी बढ़ जाती है, जिससे वजन कंट्रोल में रहता है।
* लटजीरा या चिरचिटा के बीजों को एकत्र कर लें। किसी मिट्टी के बर्तन में हल्की आंच पर भूनकर पीस लें। एक-एक चम्मच दिन में दो बार फांकी लें, बहुत फायदा होगा।
* दो बड़े चम्मच मूली के रस में शहद मिलाकर बराबर मात्रा में पानी के साथ पिएं। ऐसा करने से 1 माह के बाद मोटापा‬ कम होने लगेगा।
* मालती की जड़ को पीसकर शहद मिलाकर खाएं और छाछ पिएं। प्रसव के बाद होने वाले मोटापे में यह रामबाण की तरह काम करता हैै।
* खाने के साथ टमाटर और प्याज का सलाद काली मिर्च व नमक डालकर खाएं। इनसे शरीर को विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन के, आयरन, पोटैशियम, लाइकोपीन और ल्यूटिन मिलेेगा। इन्हें खाने के बाद खाने से पेट जल्दी भर जाएगा और वजन नियंत्रित हो जाएगा।
* रोज सुबह-सुबह एक गिलास ठंडे पानी में दो चम्मच शहद मिलाकर पिएं। इस घोल को पीने से शरीर से वसा की मात्रा कम होती है।
* गुग्गुल गोंद को दिन मे दो बार पानी में घोलकर या हल्का गुनगुना कर सेवन करने से वजन‬ कम करने में मदद मिलती है।
* हरड़ और बहेड़ा का चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण 50 ग्राम परवल के जूस (1 गिलास) के साथ मिलाकर रोज लें, वजन तेजी से कम होने लगेगा।
* करेले की सब्जी खाने से भी वजन कम करने में मदद मिलती है। सहजन के नियमित सेवन से भी वजन नियंत्रित रहता है।
* सौंठ, दालचीनी की छाल और काली मिर्च (3 -3 ग्राम) पीसकर चूर्ण बना लें। सुबह खाली पेट और रात सोने से पहले पानी से इस चूर्ण को लें, मोटापा कम होने लगेगा।

देशी गाय के घी से होने वाले लाभ ...

देशी गाय के घी से होने वाले लाभ ...


1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।

2.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।

3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।

4.(20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।

5.गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।

6.नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाताहै।

7.गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है।

8.गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।

9.गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।

10.हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है।

11.हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।

12.गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।

13.गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है

14.गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।

15.अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।

16.हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।

17.गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।

18.जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।

19.देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।

20.घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है.

21.फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।

22.गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।

23.सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।

24.दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है।

25.सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।

26.यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है ।यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।

27.एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।

28.गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।
 
29.गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है।

30.अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।

वंदे गौ मातरम् ।।

कपूर के तेल के बेमिसाल फायदे

कपूर के तेल के बेमिसाल फायदे
(Amazing Health benefits of Camphor oil )


● कपूर का प्रयोग हर घर में पूजा-पाठ के लिये किया जाता है। कपूर या फिर कपूर का तेल बालों तथा त्‍वचा के रोगों के लिये काफी अच्‍छा माना जाता है। यह जले कटे निशान को भी ठीक करता है। आयुर्वेदा में भी कपूर के तेल का प्रयोग काफी ज्‍यादा किया जाता है। कपूर घर में आसानी से पाया जाता है इसलिये आप इसे आराम से प्रयोग कर सकती हैं। पुरानी जोड़ों और दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए कपूर उपयोगी औषधि है।

● कपूर का तेल बनाने की विधि :-
कपूर का तेल बनाना बहुत आसान है। वैसे तो यह बाजार में कैंफर ऑयल के नाम से ब‌िकता ही है, लेक‌िन आप घर पर ही इसे तैयार करना चाहते हैं तो नारियल तेल में कपूर के टुकड़े डालकर एक एयर टाइट डिब्बे में बंद कर दें।

》 आइये जानते हैं कपूर का बहुमूल्‍य प्रयोग और उसके फायदों के बारे में -

1) मुंहासे रोके :-
एक्‍ने, पिंपल और फिर उनके दाग, काफी आम सी समस्‍या है। कपूर का तेल चेहरे पर लगाने से मुंहासों में कमी आती है तथा उनके दाग भी धीरे धीरे कम होने लगते हैं। इसके अलावा कपूर हर तरह के त्‍वचा रोग को ठीक करने में भी मदद करता है।

2) घाव और जलन के निशान मिटाए :-
अगर हाथा आग से जल गया है या फिर उस पर खरोच आदि आ गई है तो भी कपूर सहायक है। थोड़ा सा कपूर थोड़े से पानी में मिला कर प्रभावित स्‍थान पर लगा लें। ऐसा कुछ दिनों के लिये करें और देखें कि दाग कैसे गायब हो जाता है।

3) फटी एड़ियों के लिये :-
कपूर फटी एडियों की दरार को मुलायम बना कर उन्‍हें भर देता है। गरम पानी में थोड़ा सा कपूर डाल कर, उसमें पैर भिगोने के बाद स्‍क्रब करें और ऐसा ही कुछ दिनों तक करें। इसके बाद एडियों पर अच्‍छी क्रीम लगा लें।

4) स्‍किन रैश और लालिमा दूर करे :-
अगर आपकी त्‍वचा पर हर दिन लाल रंग के चकत्‍ते दिखाई देते हैं, तो उसे ठीक करने के लिये कपूर को थोड़े से पानी में मिला कर पेस्‍ट बनाएं और प्रभावित स्‍थान पर लगाएं। ऐसा कई दिनों तक करें। धीरे धीरे आपको रिजल्‍ट दिखने लगेगा।

5) बालों के लिये :-
कपूर बालों के लिये भी अच्‍छा माना जाता है। कपूर के तेल को सुगन्‍धित तेल के साथ मिक्‍स कर के सिर पर लगाने से बाल दुबारा उग आते हैं और तवान भी कम हो जाता है। यह बालों को जड़ से मजबूत बनाता है। आप चाहें तो तेल में अंडा या दही मिला कर सिर में लगा सकती हैं, फिर एक घंटे के बाद बालों को धो सकती हैं।

6) बालों को झड़ने से रोके :-
कपूर के तेल से नियमित रूप से सिर की मसाज करने से बालों का झड़ना रूक जाता है।

शुक्रवार, 19 जून 2015

सूर्यनमस्कार योग - विधि और लाभ

भारतवर्ष में सूर्य को ज्ञान और उर्जा का प्रतिक माना जाता हैं। सूर्य को दैनंदिन स्वरूप से पूजने का क्रम अविरत चला आ रहा हैं। सूर्य भगवान से ज्ञान और उर्जा प्राप्ति के लिए योग में ' सूर्यनमस्कार ' किया जाता हैं। सूर्यनमस्कार अपने आप में एक सम्पूर्ण साधना है जो आसन, प्राणायाम, मंत्र और ध्यान तंत्र से परिपूर्ण हैं। सूर्यनमस्कार एक सरल और संपूर्ण व्यायाम हैं जिसकी बहुउपयोगिता तथा बहुआयामिता हमारे जीवन को तेजोमय, निरोगी तथा गतिशील बनाती हैं।
सूर्यनमस्कार संबंधी अधिक जानकारी निचे दी गयी हैं :


सूर्यनमस्कार कैसे करते हैं ?

सूर्यनमस्कार में कुल 12 आसन किये जाते हैं। इसमें की जानेवाली 12 शारीरिक स्तिथियों का संबंध 12 राशियों से होने के दावा भी किया जाता हैं। सूर्यनमस्कार करने का सबसे शुभ समय सूर्योदय का होता हैं। अगर संभव हो तो इसे सूर्य की तरफ मुख कर स्वच्छ हवादार स्थान करने से ज्यादा लाभ होता हैं। सूर्यास्त के समय भी यह किया जा सकता हैं। समय न मिलने पर, इसे दिन में किसी भी समय किया जा सकता है पर आपका पेट खाली होना आवश्यक हैं।

सूर्यनमस्कार करने का क्रम इस प्रकार हैं :
  1. प्रणामासन : दोनों पैरो पर सीधे खड़े हो जाए और पैरो को एक दुसरे से मिलाकर रखे। आँखों को बंद कर दोनों हाथो के तलवे को एक दुसरे से वक्षपर (सिनेपर) मध्य में मिला दे। नमस्कार की मुद्रा धारण करे। इस आसन से एकाग्रता बढ़ती हैं और मानसिक शांति का लाभ होता हैं। 
  2. हस्तउतानासन : अब दोनों हाथों को कुंहनियो (elbow) को सिधाकर सिर के ऊपर उठा ले। दोनों हाथों को अपने कंधो की चौड़ाई की दुरी पर रखे। अब हाथ, सिर तथा शरीर को क्षमता अनुसार पीछे की और मोड़े। इस आसन से पाचन प्रणाली प्रभावित होती हैं। हाथ, कंधे तथा मेरुदंड को शक्ति मिलती हैं। अतिरिक्त वजन कम कर मोटापा को दूर करने में लाभप्रद हैं। 
  3. पादहस्तासन : अब धीरे-धीरे सामने की ओर झुकना हैं। दोनों हाथो को पैरो के बाजू मे रख कर भूमि को स्पर्श करे। माथे को घुटने से लगाने का प्रयास करे। ध्यान रहे की आपका घुटना सीधा रहना चाहिए। यह पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी कम करता हैं, कब्ज को दूर करता हैं, मेरुदंड लचीला बनाता है और पाचन प्रणाली मजबूत करता हैं। 
  4. अश्वसंचालनासन : अब निचे की ओर झुककर हथेलियों को दोनों पैर की बाजू मे रखे। बाए पैर के तलवे को स्थिर रखकर दाहिने पैर को पीछे की ओर अपने क्षमतानुसार अधिकतम तान दे। बाए पैर के घुटने को मोड़ दे। शरीर का संतुलन समान बनाये रखे। सिर को अपने क्षमतानुसार पीछे और ऊपर की ओर मोड़े तथा पीठ की कमान (curve) बनाए। आसमान / छत की और देखे। इस आसन से पैरो के स्नायु मजबूत होते हैं। तंत्रिका प्रणाली (Nervous System) संतुलित होती हैं। 
  5. पर्वतासन : अब बाए पैर को पीछे कर दाहिने पैर से मिला दें। नितंब (Hips) को ऊपर की और उठा दे। सिर को सामने झुकाकर दोनों हाथों के बिच रखे। हाथो को कुंहनियो से और पैर को घुटनों से सीधा कर पर्वत के समान आकर बनाए। एडियो को भूमि से लगाने का प्रयास करे। यह आसन हाथ-पैर के स्नायु तथा मेरुदंड को मजबूती प्रदान करता हैं। 
  6. अष्टांग नमस्कार : अब धीरे-धीरे निचे की ओर झुके और दोनों पैर की अंगुलिया, दोनों घुटने, दोनों हथेलिया, छाती तथा ठुड्डी यह आठ अंगो से भूमि को स्पर्श करे। इस आसन से हाथ-पैर तथा वक्षप्रदेश के स्नायु को मजबूती मिलती हैं।  
  7. भुजंगासन : अब नितंब को धीर से निचे की ओर ले आए। हाथों को कुंहनियो से सीधा करे तथा सिर और पीठ को पीछे की ओर तानकर कमान जैसा करे। आकाश की ओर देखे। इस आसन में शरीर का आकर सर्प के समान होता है इसलिए इसे भुजंगासन कहते हैं। इस आसन से मेरुदंड लचीला होता हैं। प्रजनन संस्था और पाचन प्रणाली को फायदा होता हैं। 
  8. पर्वतासन : अब फिर से सिर और पीठ को सीधा कर पर्वतासन (point 5) क्रिया को दोहराना है। 
  9. अश्वसंचालानासन : अब बाए पैर को दोनों हाथो के बिच रखकर अश्वसंचालनासन (point 4) करना हैं। 
  10. पादहस्तासन : अब दोनों हाथो को पैर के बाजु में रखकर पादहस्तासन (point 3) करना हैं। 
  11. हस्तउत्तानासन : अब दोनों हाथो, सिर और शरीर को पीछे की ओर मोडकर हस्तउत्तानासन (point 2) को दोहराना हैं। 
  12. प्रणामासन : दोनों हाथो के तलवो को वक्ष पर रखकर प्रणामासन (point 1) करना हैं। 
इस तरह सूर्यनमस्कार का अर्ध चक्र पूर्ण होता हैं। पूर्ण चक्र के अभ्यास में आसन क्र 4 तथा 9 में दाहिने पैर की जगह बाए पैर को पीछे ले जाना है और दाहिने पैर को जगह पर स्थिर रखना हैं। हम सपने क्षमतानुसार सूर्यनमस्कार का अभ्यास कर सकते हैं।


सूर्यनमस्कार के क्या लाभ हैं ?

सूर्यनमस्कार एक सरल और बहुउपयोगी योगासन हैं। सूर्यनमस्कार से होनेवाले विविध लाभ की जानकारी निचे दी गयी हैं :
  • सिर्फ एक सूर्यनमस्कार करने से ही 12 आसन करने का लाभ मिलता हैं। 
  • सुबह सूर्योदय के समय खाली पेट सूर्यनमस्कार करने से हड्डियों को सूर्य की किरणों से Vitamin D भी मिलता है जिससे हड्डिया मजबूत बनती हैं। 
  • शरीर शिथिलीकरण, अंतर्गत मालिश तथा जोड़ और स्नायु को सुगठित करने के लिए सूर्यनमस्कार उत्तम योग हैं। 
  • सूर्यनमस्कार करने से शरीर को उर्जा देनेवाली पिंगला नाडी सुप्रवाहित होती हैं। 
  • सूर्यनमस्कार करने से आँखों की रोशनी ठीक रहती हैं। 
  • संपूर्ण शरीर लचीला बनता हैं। 
  • वजन कम करने में सहायक हैं। 
  • बालो का झड़ना और सफ़ेद होना कम होता हैं। 
  • शरीर की सभी प्रणालिया जैसे की - पाचन, श्वसन, प्रजनन, तंत्रिका और अन्तःस्त्रावी ग्रंथि को संतुलित किया जाता हैं। 
  • मस्तिष्क को प्राणयुक्त रक्त का प्रवाह प्रदान करता हैं। 
  • प्रसूति के 40 दिन बाद पेट को कम करने के लिए सूर्यनमस्कार उपयोगी हैं।
  • मानसिक शांति और धैर्य प्रदान करता हैं। 

सूर्यनमस्कार में क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?

सूर्यनमस्कार में निम्लिखित सावधानी बरतनी चाहिए :
  • बुखार, जोड़ो में सुजन होने पर सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिए। 
  • अनियंत्रित उच्च रक्तचाप, हर्निया, गंभीर ह्रदय रोग, चक्कर आना तथा मेरुदंड के गंभीर रोगी को सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिए। 
  • मासिक धर्म के समय तथा गर्भावस्था के 4 महीने के बाद सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिए। 
आज कई नामी हस्तिया भी खुद को फिट रखने हेतु सूर्यनमस्कार का नियमित अभ्यास करते हैं। सूर्यनमस्कार से सभी अंगो को लाभ मिलता है इसलिए इसे 'सर्वांग व्यायाम' भी कहते हैं। शारीरिक और मानसिक लाभ के लिए इसका अभ्यास नियमित करना चाहिए।

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