करीब 5 साल पहले की बात है
मैं दिल्ली से नासिक ट्रेन में सफर कर रहा था.
सेकंड ए.सी. स्लीपर में मेरी टिकट बुक थी और मेरी सीट साइड की लोअर बर्थ थी.
मेरे सामने वाली सीट पर एक अधेड़ लेकिन सीधे-साधे मारवाड़ी दंपत्ति बैठे थे जिसमें पति की उम्र करीब 50 वर्ष की थी…
पत्नी के हाथों में सोने के मोटे कंगन और गले में सोने का एक अच्छा खासा भारी हार पहना हुआ था
सामने की तरफ दो नौजवान लड़के अपनी सीट पर बैठे हुए थे .
बाई तरफ बैठे दंपत्ति के पति के फोन पर कान फोड़ने वाले वॉल्यूम में एक रिंगटोन बजी…
तारीफ तेरी… निकली है दिल से… आई है लब पे बनके कव्वाली…
शिर्डी वाले …
साईं बाबा …
आया है तेरे दर पर सवाली.
पतिदेव महाशय फोन पर बात करने में मशगूल हो गए…
थोड़ी देर में देखा तो ऊपर से नीचे सफेद कपड़े पहने और सर पर सफेद रुमाल बाँधे हुए एक व्यक्ति वहाँ आया और उस दंपत्ति के सामने बैठे उन दो नौजवानों से पूछा
क्या वे दोनों भी नासिक जा रहे हैं
हाँ कहने पर वह व्यक्ति उनसे सीट बदलने के लिए आग्रह करने लगा.
चूंकि सीट ज्यादा दूर नहीं थी इसलिए उन दोनों युवक सीट बदलने पर राज़ी हो गए.
कुछ ही मिनटों मेरे सामने वाली सीट पर उन दो युवकों की जगह वह सफेद रुमाल सर पर बांधे व्यक्ति और हरे रंग की बॉर्डर लगी सफेद साड़ी मेंएक स्त्री जो कि देखने में उसकी पत्नी लग रही थी ,
सामने की सीट पर विराजमान हो गए…
सीट पर बैठते ही उस सफेदरुमाल वाले व्यक्ति ने सामने बैठे दंपत्ति को उष्मा भरा अभिवादन किया…
जय साईं नाथ !!!
सामने बैठे महाशय ने भी दंपत्ति ने भी भरपूर उत्साह से जवाब दिया…
जय साईं नाथ !!!
कहाँ , शिर्डी ??? उस सफेदपोश व्यक्ति ने उत्सुकता से मुस्कुराते हुए पूछा
जी हाँ …
फिर तो हाथ मिलाओ भाई साहब आप तो हमारे गुरु भाई निकले …
बस फिर क्या था… देखते ही देखते दोनों दंपत्ति में बड़े प्यार से बातचीत चालू हो गई और 2 घंटे में तो ऐसी मित्रता हो गई कि मानो न जाने कितने वर्षों पुराने मित्र हैं.
उस सफेदपोश व्यक्ति ने उस भोले भाले दंपत्ति को सब्ज बाग दिखाने शुरू किए.
उस व्यक्ति ने उन्हें बातों ही बातों में बताया कि वह नासिक में रहता है और शिर्डी के साईं बाबा के मंदिर में उसकी कितनी "चलती" है
उस व्यक्ति ने नासिक से शिरडी तक अपनी कार में दोनों को छोड़ने का और शिर्डी के वीआईपी दर्शन मुफ्त में करवाने का प्रस्ताव भी दिया.
भोले भाले दंपत्ति खुशी से फूले नहीं समाए
जैसे ही सामने वाले महाशय के फोन में रिंग बजती…
शिरडी वाले… साईं बाबा…
आया है तेरे दर पर सवाली
सफेदपोश महाशय अपनी सीट पर बैठे बैठे हाथ उठाकर नाचने लगते…
उसके बाद तोउस सफेदपोश व्यक्ति ने साईं बाबा की भक्ति के कारण उसके जीवन में हुए चमत्कारों के किस्सों की झड़ी लगा दी…
मुझे उस व्यक्ति की बातों में चालाकी और धूर्तता साफ़ नज़र आ रही थी
मेरे दिमाग में शंका का कीड़ा कुलबुलाने लगा…
मैं इस मौके की तलाश में था किस भोले भाले दंपत्ति में से एक व्यक्ति उठकर टॉयलेट जाए तो उसको चेतावनी दे दूँ…
करीब 1 घंटे बाद वह मारवाड़ी महाशय उठे और टॉयलेट की तरफ चले…
मैं चुपके से उठ कर उनके पीछे पीछे चल दिया…
लेकिन यह क्या ???
वह सफेद रुमाल बांधे व्यक्ति मेरे पीछे पीछे आ गया , उसने यह सुनिश्चित किया कि मैं किसी भी प्रकार से उस व्यक्ति से बात ना कर लूं…
मजे की बात यह थी कि वह सफेदपोश महाशय स्वयं टॉयलेट नहीं गए और मारवाड़ी महाशय का साथ नहीं छोड़ा..
मेरी शंका अब विश्वास में बदल चुकी थी.
अब मैं उन दोनों के बीच में हो रही बातचीत और क्रियाकलाप को किसी जासूस की निगाह से देख रहा था.
उस सफेदपोश की चतुर निगाह ने भी मेरे चेहरे के हाव-भाव को पढ़ने में कोई गलती नहीं की.
अचानक उसकी बातचीत में संतुलन और सजगता दिखाई देने लगी.
मैंने इतने में कागज की एक छोटी सी पर्ची बनाई और उन मारवाड़ी महाशय के पास वाली खिड़की में झांकने के बहाने उनके हाथ में सरका दी.
उस पर्ची में सिर्फ इतना लिखा था
"इस आदमी से बच कर रहना…"
उस पर्ची को देखते ही मारवाड़ी महाशय के जिस्म में बिजली दौड़ गई…उनके चेहरे पर तनाव आ गया.
उन्होंने अपनी सीट पर कड़क पालथी़ मार ली और रीढ़ के हड्डी सीधी करके दोनों हाथ बांधकर बैठ गए और उस सफेदपोश व्यक्ति की तरफ यूं देखा कि मानो कह रहे हों…
अब तू मुझसे कोई बात करके देख !!!
कब से लगातार बतियाते उन दोनों जोड़ों के बीच में अचानक बातचीत बंद हो गई .और व्यवहार में ठंडा पन आ गया
रात को मारवाड़ी महाशय की पत्नी ने अपना टिफिन खोला लेकिन उस सफेदपोश कपल को औपचारिकता के तौर पर भी कुछ खाने के लिए नहीं पूछा.
रात को सोने से पहले उस सफेदपोश जोड़े ने अपना अंतिम अस्त्र चलाया और 4 सीटों के केबिन में लगे पर्दे को बंद करने लगे.
मैं घबराया.
अचानक उन मारवाड़ी महाशय को सद्बुद्धि आई और उन्होंने केबिन का पर्दा बंद करने से मना कर दिया…
"परदा बंद मत करना भाई जी मुझे रात को बहुत घबराहट होती है"
अचानक रात को 12:00 बजे मेरी आँख खुली…
मैंने देखा, मारवाड़ी महाशय अभी भी पद्मासन की मुद्रा में बैठे थे, उनकी पत्नी उनकी गोद में सर रखकर सो रही थीं.
लेकिन उनके सामने वाली सीट पर बैठा कपल अपनी जगह से गायब था.
मैंने कंबल अपना हाथ बाहर निकाल कर घुमाते हुए अपनी आंखों के इशारे से पूछा.
कहां गए ???
पिछले स्टेशन पर उतर गए…
सुबह उठते ही मारवाड़ी महाशय ने मुझसे कहा…
भाई जी , मन्ने तो समझ कोन्नी आरियो कि आप रो धन्यवाद कियाँ कराँ ???
भाई जी बस एक काम करो …
"आपरे फोन की रिंग टोन बदली कर दो…"
मजे की बात यह है कि उन महाशय को अभी तक समझ में नहीं आया के सारे प्रकरण का फोन की रिंगटोन से क्या संबंध है ?
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धार्मिक आस्था एक व्यक्तिगत विषय है ,
इसे डायल टोन या रिंगटोन मैं बजाते हुए सार्वजनिक शौचालयों से लेकर दूसरी सार्वजनिक जगहों पर आम प्रजा पर थोपना न सिर्फ अनुचित है बल्कि आपके लिए नुकसानदेह और शर्मिंदगी का सबब भी हो सकता है.
सिर्फ धार्मिक ही नहीं फिल्मी गीतों पर आधारित रिंगटोन भी आपके व्यक्तित्व के बारे में कुछ न कुछ कह जाती हैं.
आप की डायल टोन या रिंगटोन आपका "परिचय" है.
अपना परिचय किसी को मुफ्त में क्यों देना ???