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रविवार, 9 अक्टूबर 2022

लुप्त होती कला और परंपरा* *संझा तू थारे घर जा .. थारी बई मारेगा

*लुप्त होती कला और परंपरा*     *संझा तू थारे घर जा ..  थारी बई मारेगा ...  कुटेगा ....डेरी में ड़चोकेगा* और वास्तव में *संझा* अपने घर चली गई।

क्यो ना आज *संझा* के एक एक गीत हो जाए और अपने *बचपन* की यादें ताजा की जाए 
😊😊 *संझा* को देखकर अपना *बचपन याद* आ जाता है। कल से *श्राद्ध पक्ष* की शुरुआत हो रहा हैं...*श्राद्ध* के यह *सोलह दिन मालवांचल* की *बालिकाओं* के लिए बड़े मस्ती भरे होते है... दुर्भाग्य बस इतना है कि हम *अच्छी शिक्षा* के नाम पर अपनी *परम्पराओ* को खोते जा रहे है..

*संझा गीत बाल कविताएं हैं*  इनके अर्थ और भाव के बजाय *अटपटे ध्वनि प्रधान* शब्द और *गाने वालों* की मस्ती भरी सपाट शैली आकर्षित करती है । 
कुछ गीतों को बरसों-बरस से दोहराने से शब्द घिस कर नये रूप पा गए - कहीं अर्थहीन हैं या अन्य अर्थ देते हैं किन्तु बच्चों को इस सबसे क्या ?               
उनका *उत्सव* तो *गोबर* से बनाएं भित्ति चित्रों की *रचनात्मकता , गीतों की अल्हड़ - अलबेली ध्वनियों* से है ।

*तालियों और कन्या-कंठों से संध्या* समय नये *कलरव* से भर जाता है । बच्चे हर घर जा जा कर इन गीतों को दोहराते हैं और *संझा माता* का *प्रसाद हर घर , हर दिन नया* ..बड़े गोपनीय ढंग से प्रसाद पर कपड़ा ढक कर लायेगी बिटिया और पूछेगी - ताड़ो ? 
मतलब, बताओ इसमें क्या है ? 
सब *हिला - डुला कर देखेंगे सूंघेंगे*, यदि फिर भी न बता पाये तो *लाइफ लाइन - कौन सी परी ? मीठी परी, चरकी परी, खट्टी परी ????*
*बड़ा हो हुल्लड़ श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन चलता है । शाम ढलते ही गोबर लाओ, दीवार लीपो, कोट -कंगूरे, पालकी, पलना, सीढ़ी, चांद-सूरज, फूल-पत्ते, घोड़ा बारात, गनपति* .. जाने कितने तरह के *चित्र रोज हर घर* की बाहरी *दीवार* पर बनते हैं । इन चित्रों को *गुलबास , कनेर , गुड़हल के फूलों* से सजाती हैं *बालिकाएं* । कभी *रंगीन चमकीले , कागजों* से भी । किसकी *संझा* सुन्दर हो ,यह होड़ भी है । हर घर के *आंगन* में अनौपचारिक उत्सव के मजे लेते बच्चे .. *संझा* का असली *सौंदर्य* है ।
आओ हम सब मिलकर फिर से अपनी इस *लुप्त होती परम्परा को पुनः प्रारंभ* करें ।

भाद्रपद शुक्ल पंचमी/ ऋषि पंचमी

*ऋषि पंचमी*
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*भाद्रपद शुक्ल पंचमी/ ऋषि पंचमी*
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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी पर्व बड़ी श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है तथा पौराणिक कथा अनुसार..... 
सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत  पतिव्रता थी। 

एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था। 

इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए। 
 
जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी। पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी। 

बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया। 

रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया। 

तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया। 

अपने योगबल से सुचित्र ने इन बातों को सुन लिया और जान लिया कि पूर्व जन्म में ये मेरे माता-पिता थे, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो। 

भाद्रपद महीने की शुक्ल पञ्चमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नी सहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पञ्चमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।

शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

जीवन में शीघ्रता से सफलता अर्जित करने वाले एवम जीवन में विलंबता से सफलता पाने वाले लोगों में मुख्यतः क्या अंतर होता है ?

 

चित्र में दो व्यक्ति दिखाए गए हैं

  1. एक बंदूक से बहुत बार गोली मारता है और
  2. दूसरा व्यक्ति एक ही बार निशाना लगाकर अपना काम पूरा करता है

यही अंतर है

  1. जीवन में शीघ्रता से सफलता अर्जित करने वाले एवम
  2. जीवन में विलंबता से सफलता पाने वाले लोगों में

अपनी योग्यता बढ़ाते रहें और भाग्य का सहारा लेते रहें यही सफलता की गारंटी है।

इस उत्तर का मूल स्रोत है शीघ्र सफलता अर्जित करने का नियम कर्म और भाग्य का रास्ता है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस ।

प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।


 प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।




सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।

सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?

महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।

विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।

भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।

श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,

उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।

यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।

राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।

उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे

तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।

वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।

प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।

नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।

उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।

फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।

केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का  रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।

फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।

अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।

अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।

मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।

यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।

मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।

1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।

अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।

इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान,  ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।

योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत  हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।

इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं। कॉपी पेस्ट 

मोदी के बाद अब वही आएगा जो मोदी से भी बड़ा मोदी होगा।

 "हिजड़ों ने भाषण दिए लिंग-बोध पर,
वेश्याओं ने कविता पढ़ी आत्म-शोध पर"।
महिलाओं का दैहिक शोषण करने वाले नेता ने भाषण दिया नारी अस्मिता पर।
भ्रष्ट अधिकारियों ने शुचिता और पारदर्शिता पर उद्बोधन दिया विश्वविद्यालय मैं कभी ना पढ़ाने वाले प्रोफेसर कर्म योग पर व्याख्यान दे रहे हैं।
     असल मे दोष इनका नहीं है।
इस देश की प्रजा प्रधानमंत्री को मंदिर में पूजा करते देखने की आदी नहीं है।

इस देश ने एडविना माउंटबेटन की कमर में हाथ डाल कर नाचते प्रधानमंत्री को देखा है।

इस देश ने
मजारों पर चादर चढ़ाते प्रधानमंत्री को देखा है।
यह जनता प्रधानमंत्री को
पार्टी अध्यक्ष के सामने नतमस्तक होते देखती आयी है। मंदिर में भगवान के समक्ष नतमस्तक प्रधानमंत्री को लोग कैसे सहन करें ?
     
बिहार के एक बिना अखबार के पत्रकार मंदिर से निकल कर सूर्य को प्रणाम करते प्रधानमंत्री का उपहास उड़ा रहे हैं।

एक महान लेखक जिनका सबसे बड़ा प्रशंसक भी उनकी चार किताबों का नाम नहीं जानता,
प्रधानमंत्री के भगवा चादर की आलोचना कर रहे हैं।

एक कवियित्री जो अपनी कविता से अधिक मंच पर चढ़ने के पूर्व सवा घण्टे तक मेकप करने के लिए जानी जाती हैं, प्रधानमंत्री के पहाड़ी परिधान की आलोचना कर रही हैं।

भारत के इतिहास में आलोचना कभी इतनी निर्लज्ज नहीं रही, ना ही बुद्धिजीविता इतनी लज्जाहीन हुई कि
गांधीवाद के स्वघोषित योद्धा भी
बंगाल की हिंसा के लिए ममता बनर्जी का समर्थन करें।

क्या कोई व्यक्ति इतना हताश हो सकता है कि किसी की पूजा की आलोचना करे ?
क्या इस देश का प्रधानमंत्री अपनी आस्था के अनुसार ईश्वर की आराधना भी नहीं कर सकता ?
क्या बनाना चाहते हैं देश को आप ?
सेक्युलरिज्म की यही परिभाषा गढ़ी है आपने ?

एक हिन्दू नेता का टोपी पहनना उतना ही बड़ा ढोंग है, जितना किसी ईसाई का तिलक लगाना।
लेकिन जो लोग इस ढोंग को भी बर्दाश्त कर लेते हैं, उनसे भी
प्रधानमंत्री की शिव आराधना बर्दाश्त नहीं हो रही।

संविधान की प्रस्तावना में वर्णित
"धर्म, आस्था और विश्वास की स्वतंत्रता" का
यही मूल्य है आपकी दृष्टि में ?
      
व्यक्ति विरोध में अंधे हो चुके मूर्खों की यह टुकड़ी चाह कर भी नहीं समझ पा रही कि
मोदी एक व्यक्ति भर हैं,
आज नहीं तो कल हार जाएगा
कल कोई और था,
कल कोई और आएगा।
देश न इंदिरा पर रुका था,
न मोदी पर रुकेगा।
       
समय को इस बूढ़े से जो करवाना था वह करा चुका।
मोदी ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी है।
मोदी ने ईसाई पति की पत्नी से
महाकाल मंदिर में रुद्राभिषेक करवाया है.
मोदी ने मिश्रित DNA वाले इसाई को हिन्दू बाना धारण करने के लिए मजबूर कर दिया है।
मोदी ने ब्राम्हणिक वैदिक के विरोध मे राजनीतिक यात्रा शुरू करनेवाले से शिवार्चन करवाया है। मोदी ने रामभक्तों पर गोली चलवाने वाले के पुत्र से राममंदिर का चक्कर लगवाया है।
हिन्दुओं में हिन्दुत्व की चेतना जगानेवाले

मोदी के बाद
अब वही आएगा
जो मोदी से भी बड़ा मोदी होगा।
       
"मोदी नाम केवलम" का
जाप करने वाले मूर्ख जन्मान्ध विरोधियों, अब मोदी आये न आये, तुम्हारे दिन कभी नहीं आएंगें।

अब ऐसी कोई सरकार नहीं आएगी जो घर बैठा कर मलीदा खिलाये!
.
💐💐 भारत बदल चुका है। 💐💐

🚩सनातन की चेतना जाग चुकी है। 💫
🚩🚩🚩🚩🚩
 कृपया अपने पांच मित्रों से शेयर अवश्य करें धन्यवाद।जय सनातन। जय श्री कृष्ण।

सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

नवरात्रि में कन्या पूजन में ध्यान रखे कि कन्याओ

*कन्या पूजन की हार्दिक बधाई🌹🙏🌹*

♻ *कन्या पूजन से सभी तरह के वास्तु दोष, विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश होता है।*

⚱ *नवरात्रि में कन्या पूजन में ध्यान रखे कि कन्याओ की उम्र दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो ।*

⚱ *शास्त्रों के अनुसार दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहा गया है । कुमारी के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है ।*

⚱ *तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति माना गया है । त्रिमूर्ति के पूजन से धन लाभ होता है ।*

⚱ *चार वर्ष की कन्या को कल्याणी कहते है । कल्याणी के पूजन से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है ।*
 
⚱ *पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा गया है । माँ के रोहणी स्वरूप की पूजा करने से जातक के घर परिवार से सभी रोग दूर होते है।*

⚱ *छः वर्ष की कन्या को काली कहते है । माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि, यश और सभी क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है ।*

⚱ *सात वर्ष की कन्या को चंडिका कहते है । माँ चण्डिका के इस स्वरूप की पूजा करने से धन, सुख और सभी तरह की ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है ।*

⚱ *आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी कहते है । शाम्भवी की पूजा करने से युद्ध, न्यायलय में विजय और यश की प्राप्ति होती है ।*

⚱ *नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा का स्वरूप मानते है । माँ के इस स्वरूप की अर्चना करने से समस्त विघ्न बाधाएं दूर होती है, शत्रुओं का नाश होता है और कठिन से कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त होती है ।*

⚱ *दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा स्वरूपा माना गया हैं। माँ के इस स्वरूप की आराधना करने से सभी मनवाँछित फलों की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते है ।*

⚱ *इसीलिए नवरात्र के इन नौ दिनों तक प्रतिदिन इन देवी स्वरुप कन्याओं को अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य से भेंट देना अति शुभ माना जाता है। इन दिनों इन नन्ही देवियों को फूल, श्रंगार सामग्री, मीठे फल (जैसे केले, सेब, नारियल आदि), मिठाई, खीर , हलवा, कपड़े, रुमाल, रिबन, खिलौने, मेहंदी आदि उपहार में देकर मां दुर्गा की अवश्य ही कृपा प्राप्त की जा सकती है ।*

⚱ *इन उपरोक्त रीतियों के अनुसार माता की पूजा अर्चना करने से देवी मां प्रसन्न होकर हमें सुख, सौभाग्य, यश, कीर्ति, धन और अतुल वैभव का वरदान देती है।*

  *जय माता दी* 🙏🚩🌸


अक्टूबर माह मे ग्रह राशि परिवर्तन विशेष और बारह राशियों का समय

  *🙏श्री गणेशाय नम:🙏*
 *अक्टूबर माह मे ग्रह राशि परिवर्तन विशेष और बारा राशियों का समय:-* 

अक्टूबर का महीना लग चुका है और ग्रहों के राशि परिवर्तन का दौर भी शुरू होने वाला है अक्टूबर 2022 से 5 ग्रहों शुक्र, शनि, मंगल, सूर्य और बुध का राशि परिवर्तन होने जा रहा है, जिसका असर 12 राशियों पर अलग अलग प्रभाव पड़ेगा मंगल राशि परिवर्तन का विशेष महत्व है मंगल ग्रह का मेष व वृश्चिक राशि पर आधिपत्य है यह मकर राशि में उच्च का माना गया है वर्तमान में मंगल ग्रह वृषभ राशि में विराजमान है.

शास्त्र अनुसार, 1 अक्टूबर को शुक्र के कन्या राशि में अस्त होने के बाद 2 अक्टूबर को बुध कन्या राशि में मार्गी हों गये वही मंगल 16 अक्टूबर को मिथुन राशि में प्रवेश करने के बाद से 13 नवंबर तक यही रहेंगे इसके बाद सूर्य तुला राशि में 17 अक्टूबर को गोचर करेंगे और इस राशि में सूर्य 16 नवंबर तक रहेंगे शुक्र 18 अक्टूबर को तुला राशि में प्रवेश करने के बाद 11 नवंबर तक विराजमान रहेंगे बुध तुला राशि में गोचर कर 13 नवंबर तक मौजूद रहेंगे

शनिदेव धनतेरस के दिन मार्गी होंगे, इससे कई राशियों को फायदा पहुंचेगा, वही मंगल 30 अक्टूबर को वक्री हो रहे हैं, जिससे कई ग्रहों पर इसका असर पड़ेगा.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बुध के मार्गी होने से वृषभ और तुला राशि वालों के करियर और व्यापार में तरक्की होगी,व्यापार बढ़ने से आय भी बढ़ेगी मिथुन राशि में मंगल गोचर से मेष और मीन राशि की आय में वृद्धि होगी और धन लाभ के साथ नौकरी में तरक्की के योग बनेंगे

मंगल ग्रह का मेष व वृश्चिक राशि पर आधिपत्य है यह मकर राशि में उच्च का माना गया है वर्तमान में मंगल ग्रह वृषभ राशि में विराजमान है और 16 अक्टूबर को मंगल  वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे इससे मिथुन राशि वालों को इस अवधि में नौकरी में तरक्की, व्यापार में गति और धन लाभ हो सकता है 

वही कर्क राशि वालों के लिए मंगल राशि परिवर्तन अच्छे दिन ला सकता है इस अवधि में नौकरी में नए प्रस्ताव, अधिकारियों से सहयोग और निवेश करने का उत्तम समय रहेगा सूर्य के राशि परिवर्तन से सिंह और मकर राशि के जातकों को अच्छा लाभ होगा और व्यापार में मुनाफा बढ़ेगा शुक्र के तुला राशि में गोचर से मेष और कर्क राशि वालों के लिए शुभ है, धन लाभ के योग के साथ आमदनी में बढ़ोत्तरी होगी वही 23 अक्टूबर को शनि ग्रह की चाल में परिवर्तन होगा शनि वर्तमान में मकर राशि में वक्री अवस्था में हैं

23 अक्टूबर को शनि मार्गी होने से मेष राशि के दशम भाव में होगा इसका लाभ व्यापारी, नौकरी पेशा को मिलेगा नौकरी के नए अवसरों खुलने के बाद मान-सम्मान बढ़ेगा और धन लाभ के योग बनेंगे कर्क राशि के सातवें भाव में शनि मार्गी होंगे और खुशहाली आएगी.

 *अक्टूबर में ग्रहों का गोचर* 
मंगल का मिथुन राशि में गोचर: 16 अक्टूबर, 2022
सूर्य का तुला राशि में प्रवेश: 17 अक्टूबर 2022, कन्या राशि से
शुक्र का तुला राशि में प्रवेश: 18 अक्टूबर 2022
बुध का तुला राशि में प्रवेश: 26 अक्टूबर 2022
बृहस्पति मेष राशि में विराजमान: 28 अक्टूबर, 2022
शनि ग्रह का मकर राशि में प्रवेश: 23 अक्टूबर, 2022

अक्टूबर महीने में ग्रह नक्षत्रों की चाल का असर कुछ राशियों के लिए शुभ तो कुछ के लिए अशुभ कहा जा सकता है. वक्त से पहले अगर आपको आने वाले भविष्य के बारे में संकेत अच्छे या बुरे बता हो तो आप सतर्क रह सकते है. 

आपको बतातें हैं कि मेष से लेकर मीन तक कौन सी राशियां इन महीने शुभ है और कौन सी अशुभ.
 
मेष राशि
महीने की शुरुआत में संयत रहें. व्यर्थ के क्रोध-वाद विवाद से बचें. मानसिक शांति बनाए रखने का प्रयास करें. 17 अक्तूबर से कारोबारी कार्यों में भागदौड़ बढ़ेगी. 18 अक्तूबर से जीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा. 27 अक्टूबर से कारोबार में सुधार होगा. किसी मित्र का सहयोग भी मिल सकता है. कारोबार के लिए यात्रा बढ़ सकती है. रहन सहन अव्यवस्थित हो सकता है.

वृषभ राशि
महीने की शुरुआत में धैर्यशीलता में कमी हो सकती है. आत्मसंयत रहें. 17 अक्तूबर से बातचीत में संतुलित रहें.  18 अक्तूबर से स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें. खर्चों में वृद्धि होगी. माता के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें. दिनचर्या अव्यवस्थित रहेगी. 24 अक्तूबर से जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा. कार्यक्षेत्र में सुधार होगा. 26 अक्तूबर से कारोबार में कठिनाइयां आ सकती हैं.

मिथुन राशि
आत्मविश्वास तो बहुत होगा लेकिन मन में नकारात्मक विचारों का प्रभाव भी हो सकता है. 16 अक्तूबर तक स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें. 17 अक्तूबर से मन अशांत रहेगा. धैर्यशीलता में कमी रहेगी. परिवार में शांति बनाए रखने का प्रयास करें. शैक्षिक कार्यों में कठिनाइयां आ सकती हैं. कला या संगीत के प्रति रुझान बढ़ सकता है. 27 अक्तूबर से कारोबार में वृद्धि होगी.

कर्क राशि
महीने की शुरुआत में मन अशांत रहेगा. आत्मविश्वास में कमी रहेगी. स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें. 17 अक्तूबर से शैक्षिक कार्यों में कठिनाइयां आ सकती हैं. संतान-पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें. चिकित्सीय खर्च बढ़ सकते हैं. रहन सहन कष्टमय हो सकता है. 18 अक्तूबर से माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा. वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है. कारोबार में भी सुधार होगा.

सिंह राशि
आत्मविश्वास में कमी रहेगी. मन अशांत रहेगा. क्रोध से बचें.  बातचीत में संतुलित रहें. 17 अक्तूबर के बाद किसी संपत्ति से आय के साधन बन सकते हें. परंतु स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें. मित्रों से सद्भाव भी बनाकर रखें. 18 अक्तूबर से कारोबार पर भी ध्यान दें. कठिनाइयां आ सकती हैं. कारोबार में पिता का साथ भी मिल सकता है. 24 अक्तूबर के बाद यात्रा बढ़ सकती है.

कन्या राशि
आत्मविश्वास तो बहुत रहेगा लेकिन मन में नकारात्मक विचारों का प्रभाव भी हो सकता है. आत्मसंयत रहें. 17 अक्तूबर तक अपनी भावनाओं को वश में रखें. परिवार में शांति बनाए रखने का प्रयास करें. 19 अक्तूबर के बाद कुटुंब परिवार की किसी बुजुर्ग महिला से धन की प्राप्ति हो सकती है. 24 अक्तूबर के बाद कार्यक्षेत्र में बदलाव हो सकता है.

तुला राशि
महीने की शुरुआत अशांत मन के साथ. मन में निराशा-असंतोष हो सकता है. 12 अक्तूबर के बाद जीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा. कारोबार में वृद्धि के लिए भागदौड़ बढ़ सकती है. संपत्ति में वृद्धि के योग भी बन रहे हैं. संपत्ति के रखरखाव पर खर्च भी बढ़ सकते हैं. 18 अक्तूबर से मन परेशान हो सकता है. 24 अक्तूबर से स्वास्थ्य में सुधार होगा. मन शांत रहेगा.

वृश्चिक राशि
आशा निराशा के भाव मन में हो सकते हैं. नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं. परंतु 16 अक्तूबर से आत्मविश्वास में कमी आ सकती है. नौकरी में कार्यक्षेत्र में वृद्धि हो सकती है. परिश्रम अधिक रहेगा. 18 अक्तूबर से खर्चों में वृद्धि हो सकती है. पिता की सेहत का ध्यान रखें. वाहन के रखरखाव पर भी खर्च बढ़ सकते हैं. कारोबार में कठिनाई आ सकती हैं. सचेत रहें.पं.संजय शास्त्री

धनु राशि
आत्मविश्वास तो बहुत रहेगा. परंतु मास के प्रारंभ में  मन परेशान भी हो सकता है. मन में नकारात्मक विचारों से बचें. परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं. 16 अक्तूबर से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है. 18 अक्तूबर से कारोबार में कठिनाइयां आ सकती हैं. 19 अक्तूबर के बाद उपहार में वस्त्रों की प्राप्ति हो सकती है.

मकर राशि
आत्मविश्वास भरपूर. मन में नकारात्मकता का प्रभाव भी हो सकता है. 16 अक्तूबर तक आत्मसंयत रहें. 17 अक्तूबर से स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें. 18 अक्तूबर से माता के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखें. पिता का साथ भी मिल सकता है. वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है. 24 अक्तूबर के बाद किसी मित्र से कारोबार का प्रस्ताव मिल सकता है. कारोबार में वृद्धि भी होगी.

कुंभ राशि
आत्मविश्वास में कमी रहेगी. मन में नकारात्मक विचारों का प्रभाव भी हो सकता है.  17 अक्तूबर से मन अशांत हो सकता है.  क्रोध से बचें। 18 अक्तूबर से कारोबार में व्यर्थ की भागदौड़ बढ़ सकती है। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं. वाहन की प्राप्ति भी हो सकती है.जीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा. 24 अक्तूबर के बाद कारोबार में भी सुधार होगा.

मीन राशि
आत्मविश्वास तो बहुत रहेगा. परंतु मन परेशान हो सकता है. धैर्यशीलता में कमी हो सकती है. परिवार का साथ मिलेगा. 17 अक्तूबर के बाद नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते है, लेकिन अफसरों से सद्भाव बनाकर रखें. 19 अक्तूबर से स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें. कार्यक्षेत्र में बदलाव हो सकता है. वाहन सुख में कमी आएगी. विदेश यात्रा का फायदा होगा.

सोमवार, 26 सितंबर 2022

सेक्युलरिज़्म’ भारत के संविधान में सदैव जुड़ा रहना चाहिए_**_सेक्युलरिज्म 'ढाल' है!_

*_‘सेक्युलरिज़्म’ भारत के संविधान में सदैव जुड़ा रहना चाहिए_*

*_सेक्युलरिज्म 'ढाल' है!_*

*_Saturday, September 24, 2022_*

*_“भारत एक सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है” यह शब्द सुनने पर यदि कोई सबसे अधिक आक्रोशित होता है तो वो है भारत का हिंदू समुदाय। हिंदू समाज का एक वर्ग ऐसा है जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से केवल इसलिए नाराज रहता हैं क्योंकि पीएम मोदी ने देश को हिंदू राष्ट्र नहीं घोषित किया। उन्हें लगता हैं कि पंत प्रधान नरेंद्र मोदी अपने मूल्यों, अपने वादों से पीछे हट चुके हैं और भाजपा अब अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि भूलकर धर्म निरपेक्षता की बात करने लगी है। वहीं यदि हम अपने लेख की पहली पंक्ति को थोड़ा-सा बदल दें, तो निश्चित ही दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाएगी और वे मोदी को भगवान की तरह मानने लगेंगे। अगर हम कहें- ‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष हिंदू राष्ट्र है’ तो सभी चीजें ठीक हो सकती हैं। सत्य कहें तो आज के वक्त में देश की नरेंद्र मोदी सरकार इसी एजेंडे पर काम कर रही थी, लेकिन आखिर यह सेक्युलरिज्म और हिंदू राष्ट्र का संबंध क्या है‌? चलिए आपको इसको समझाते हैं।_*

*_संविधान में जुड़ा सेक्युलर शब्द_*

*_वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “सोशलिस्ट और सेक्युलर” शब्द जुड़वाए थे, जिस पर दक्षिणपंथियों को सबसे अधिक आपत्ति हुई थी। उनका कहना था कि इसकी आड़ में कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण करती हैं। परंतु हकीकत तो यह है कि इन शब्द के जुड़ने से पूर्व भी  कांग्रेस मुस्लिमों को लुभाने के प्रयास करती ही आ रही थी। यदि 1976 से पहले मुस्लिम तुष्टीकरण न होता तो राम मंदिर का मामला पहले ही कांग्रेस द्वारा निपटा लिया गया होता। किंतु सच यह है कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भी हमेशा राजनीति करने की ही कोशिश की। वहीं बाद में मुस्लिमों को लुभाने के लिए “सेक्युलर” शब्द का झुनझुना मुस्लिम समुदाय को पकड़ा दिया गया।_*

*_वहीं कांग्रेस ने तो सेक्लुअर शब्द को भारतीय संविधान से जोड़ दिया था। ऐसे में देश की जनता भाजपा से उम्मीद लगाए बैठी थी कि जब भी कभी उसकी सरकार सत्ता में आएगी, तो अवश्य ही सेक्युलरिज्म शब्द को भारतीय संविधान से हटा देगी, लेकिन ऐसा अब तक होता नहीं दिखा। सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 90 के दशक में बनी और 5 साल तक सत्ता में भी रही, परंतु इस दौरान इसको लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए। भाजपा ने गठबंधन की सरकारों का हवाला दिया। अहम यह है कि जो अटल बिहारी वाजपेयी जी सत्ता में आने से पहले ‘हिन्दू तन मन हिंदू जीवन’ नाम की कविता गाते थे उन्होंने भी इस सेक्युलर शब्द को अपना लिया।_*

*_पर्दे के पीछे का खेल कुछ और है_*

*_अटल जी की सरकार के बाद भाजपा केंद्रीय सत्ता से फिर दस वर्षों तक दूर रही। हालांकि इसके बाद साल 2013 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार के दौरान घोर दक्षिणपंथी और वामपंथी एक ही सोच लिए हुए थे। दक्षिणपंथी खुश थे कि भारत हिंदू राष्ट्र बनने वाला है और यहां मुस्लिमों का रहना मुश्किल होगा। हालांकि साल 2014 के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करते रहे और वैश्विक स्तर पर एक बड़े राजनेता के तौर पर उभरे। पीएम मोदी ने दूसरे कार्यकाल के बाद तो अपने नारे में ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास’ शब्द भी जोड़ दिया था। तब से नरेंद्र मोदी के समर्थक उनसे भी चिढ़े बैठे हैं।_*

*_गौरतलब है कि प्रधानमंत्री भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैश्विक स्तर पर जहां पश्चिमी देश वामपंथी सोच वाले हैं तो ऐसे में उनके बीच स्वीकृति पाने के लिए यह आवश्यक है कि भारत कट्टरता के रास्ते पर न आगे बढ़े। इसीलिए पीएम हमेशा सबको साथ लेकर चलने और सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं। सबको दिखाने के लिए भले कुछ भी हो, परंतु पर्दे के पीछे की कहानी तो यही है कि भाजपा सरकार अपने अधिकतम निर्णय वही लेती है, जो देश के बहुसंख्यकों यानी हिंदुओं के पक्ष में हो।_*

*_अनुच्छेद-370 जो सबसे संवेदनशील मुद्दा था उसे खत्म करते हुए गृहमंत्री ने संसद में संबोधन दिया था। राम मंदिर का निर्णय भले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया था, लेकिन सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने कोर्ट से मांग अवश्य की थी‌। देखा जाए तो यह दोनों ही निर्णय देश के बहुसंख्यक यानी हिंदू समुदाय के हित में थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही सामने आकर उन्होंने सर्वधर्म समभाव की बात की हो, लेकिन पर्दे के पीछे से मजबूत हिंदू समुदाय हुआ।_*

*_CAA जैसा विवादित कानून गृह मंत्री अमित शाह ने पारित कराया और पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने के मुद्दे पर हिंदुओं को मजबूती मिली। इतना ही नहीं गृहमंत्री सीएए विरोध के दौरान आक्रामक रहे। इस दौरान भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले न हों लेकिन हिंदू समुदाय के उत्थान को वे समर्थन देते रहे। प्रधानमंत्री के पद की गरिमा रखते हुए हिंदुत्ववादी बात नहीं करते हैं लेकिन देखा जाए तो उनकी सरकार का एक-एक काम हिंदू हितकारी हैं।_*

*_सेक्युलरिज्म भारत के लिए लाभदायक है_*

*_गृहमंत्री अमित शाह से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्वा सरमा जैसे नेता लगातार हिंदुओं के हितों में फैसले ले रहे हैं। वहीं पीएम मोदी इन सभी के कार्यों को अपने सेक्युलरिज्म वाले सर्वधर्म समभाव और सबका साथ सबका विकास के नारों में ढक ले रहे हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए, तो वैश्विक स्तर पर भारत को प्रबल बनाने और सभी पश्चिमी देशों की स्वीकृति पाने के लिए सेक्युलरिज्म शब्द भारत के लिए लाभदायक है।_*

*_सटीक शब्दों में कहें तो सेक्युलरिज्म शब्द एक मुखौटा है जो कि भारत के संविधान में लिखा हुआ अच्छा लगता है। प्रधानमंत्री का पद इस शब्द पालन करता दिखता है और वैश्विक पश्चिमी ताकतें देखना भी ऐसा ही चाहती हैं। वहीं इस मुखौटे के पीछे वो सारे काम होते हैं जिनके पीछे हिंदुओं और बहुसंख्यक समुदाय का हित छिपा होता है। इस दौरान सेक्युलरिज्म को तो केवल एक ढाल की तरह उपयोग किया जा रहा है।_*

*_सरल शब्दों में कहें तो इंदिरा गांधी द्वारा दिया गया सेक्युलरिज्म शब्द भारत के हिंदू राष्ट्र बनने की परिकल्पना करने वालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि इस सेक्युलर शब्द की आड़ में ही धीरे-धीरे भारत अपने मूल मकसद यानी हिंदुत्व को अपना चुका है और इसके पीछे पूरा खेल देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है।_*

#26_सितम्बर#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। #रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

#26_सितम्बर

#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। 
#रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर और उसके पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम प्रसिद्ध है; पर वह मंदिर बनवाने वाली रानी रासमणि को लोग कम ही जानते हैं। रानी का जन्म बंगाल के 24 परगना जिले में गंगा के तट पर बसे ग्राम कोना में हुआ था। उनके पिता श्री हरेकृष्ण दास एक साधारण किसान थे। परिवार का खर्च चलाने के लिए वे खेती के साथ ही जमींदार के पास कुछ काम भी करते थे। उसकी चर्चा से रासमणि को भी प्रशासनिक कामों की जानकारी होने लगी। रात में उनके पिता लोगों को रामायण, भागवत आदि सुनाते थे। इससे रासमणि को भी निर्धनों के सेवा में आनंद मिलने लगा।।    

रासमणि जब बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया। ऐसे में उनका पालन उनकी बुआ ने किया। तत्कालीन प्रथा के अनुसार 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बंगाल के बड़े जमींदार प्रीतम बाबू के पुत्र रामचंद्र दास से हो गया। ऐसे घर में आकर भी रासमणि को अहंकार नहीं हुआ। 1823 की भयानक बाढ़ के समय उन्होंने कई अन्नक्षेत्र खोले तथा आश्रय स्थल बनवाये। इससे उन्हें खूब ख्याति मिली और लोग उन्हें ‘रानी’ कहने लगे।

विवाह के कुछ वर्ष बाद उनके पति का निधन हो गया। तब तक वे चार बेटियों की मां बन चुकी थीं; पर उनके कोई पुत्र नहीं था। अब सारी सम्पत्ति की देखभाल का जिम्मा उन पर ही आ गया। उन्होंने अपने दामाद मथुरानाथ के साथ मिलकर सब काम संभाला। सुव्यवस्था के कारण उनकी आय काफी बढ़ गयी। सभी पर्वों पर रानी गरीबों की खुले हाथ से सहायता करती थीं। उन्होंने जनता की सुविधा के लिए गंगा के तट पर कई घाट और सड़कें तथा जगन्नाथ भगवान के लिए सवा लाख रु. खर्च कर चांदी का रथ भी बनवाया। 

रानी का ब्रिटिश साम्राज्य से कई बार टकराव हुआ। एक बार अंग्रेजों ने दुर्गा पूजा उत्सव के ढोल-नगाड़ों के लिए उन पर मुकदमा कर दिया। इसमें रानी को जुर्माना देना पड़ा; पर फिर रानी ने वह पूरा रास्ता ही खरीद लिया और वहां अंग्रेजों का आवागमन बंद करा दिया। इससे शासन ने रानी से समझौता कर उनका जुर्माना वापस किया। एक बार शासन ने मछली पकड़ने पर कर लगा दिया। रानी ने मछुआरों का कष्ट जानकर वह सारा तट खरीद लिया। इससे अंग्रेजों के बड़े जहाजों को वहां से निकलने में परेशानी होने लगी। इस बार भी शासन को झुककर मछुआरों से सब प्रतिबंध हटाने पड़े।

एक बार रानी को स्वप्न में काली माता ने भवतारिणी के रूप में दर्शन दिये। इस पर रानी ने हुगली नदी के पास उनका भव्य मंदिर बनवाया। कहते हैं कि मूर्ति आने के बाद एक बक्से में रखी थी। तब तक मंदिर अधूरा था। एक बार रानी को स्वप्न में मां काली ने कहा कि बक्से में मेरा दम घुट रहा है। मुझे जल्दी बाहर निकालो। रानी ने सुबह देखा, तो प्रतिमा पसीने से लथपथ थी। इस पर रानी ने मंदिर निर्माण का काम तेज कर दिया और अंततः 31 मई, 1855 को मंदिर में मां काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी।

इस मंदिर में मुख्य पुजारी रामकुमार चटर्जी थे। वृद्ध होने पर उन्होंने अपने छोटे भाई गदाधर को वहां बुला लिया। यही गदाधर रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। परमहंस जी सिद्ध पुरुष थे। एक बार उन्होंने पूजा करती हुई रानी को यह कहकर चांटा मार दिया कि मां के सामने बैठकर अपनी जमींदारी का हिसाब मत करो। रानी अपनी गलती समझकर चुप रहीं। 

रानी ने अपनी सम्पत्ति का प्रबंध ऐसे किया, जिससे उनके द्वारा संचालित मंदिर तथा अन्य सेवा कार्यों में भविष्य में भी कोई व्यवधान न पड़े। अंत समय निकट आने पर उन्होंने अपने कर्मचारियों से गंगा घाट पर प्रकाश करने को कहा। इस जगमग प्रकाश के बीच 19 फरवरी, 1861 को देश, धर्म और समाजसेवी रानी रासमणि का निधन हो गया। दक्षिणेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी प्रतिमा उनके कार्यों की सदा याद दिलाती रहती है।

#26_सितम्बर#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। #रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

#26_सितम्बर

#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। 
#रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर और उसके पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम प्रसिद्ध है; पर वह मंदिर बनवाने वाली रानी रासमणि को लोग कम ही जानते हैं। रानी का जन्म बंगाल के 24 परगना जिले में गंगा के तट पर बसे ग्राम कोना में हुआ था। उनके पिता श्री हरेकृष्ण दास एक साधारण किसान थे। परिवार का खर्च चलाने के लिए वे खेती के साथ ही जमींदार के पास कुछ काम भी करते थे। उसकी चर्चा से रासमणि को भी प्रशासनिक कामों की जानकारी होने लगी। रात में उनके पिता लोगों को रामायण, भागवत आदि सुनाते थे। इससे रासमणि को भी निर्धनों के सेवा में आनंद मिलने लगा।।    

रासमणि जब बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया। ऐसे में उनका पालन उनकी बुआ ने किया। तत्कालीन प्रथा के अनुसार 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बंगाल के बड़े जमींदार प्रीतम बाबू के पुत्र रामचंद्र दास से हो गया। ऐसे घर में आकर भी रासमणि को अहंकार नहीं हुआ। 1823 की भयानक बाढ़ के समय उन्होंने कई अन्नक्षेत्र खोले तथा आश्रय स्थल बनवाये। इससे उन्हें खूब ख्याति मिली और लोग उन्हें ‘रानी’ कहने लगे।

विवाह के कुछ वर्ष बाद उनके पति का निधन हो गया। तब तक वे चार बेटियों की मां बन चुकी थीं; पर उनके कोई पुत्र नहीं था। अब सारी सम्पत्ति की देखभाल का जिम्मा उन पर ही आ गया। उन्होंने अपने दामाद मथुरानाथ के साथ मिलकर सब काम संभाला। सुव्यवस्था के कारण उनकी आय काफी बढ़ गयी। सभी पर्वों पर रानी गरीबों की खुले हाथ से सहायता करती थीं। उन्होंने जनता की सुविधा के लिए गंगा के तट पर कई घाट और सड़कें तथा जगन्नाथ भगवान के लिए सवा लाख रु. खर्च कर चांदी का रथ भी बनवाया। 

रानी का ब्रिटिश साम्राज्य से कई बार टकराव हुआ। एक बार अंग्रेजों ने दुर्गा पूजा उत्सव के ढोल-नगाड़ों के लिए उन पर मुकदमा कर दिया। इसमें रानी को जुर्माना देना पड़ा; पर फिर रानी ने वह पूरा रास्ता ही खरीद लिया और वहां अंग्रेजों का आवागमन बंद करा दिया। इससे शासन ने रानी से समझौता कर उनका जुर्माना वापस किया। एक बार शासन ने मछली पकड़ने पर कर लगा दिया। रानी ने मछुआरों का कष्ट जानकर वह सारा तट खरीद लिया। इससे अंग्रेजों के बड़े जहाजों को वहां से निकलने में परेशानी होने लगी। इस बार भी शासन को झुककर मछुआरों से सब प्रतिबंध हटाने पड़े।

एक बार रानी को स्वप्न में काली माता ने भवतारिणी के रूप में दर्शन दिये। इस पर रानी ने हुगली नदी के पास उनका भव्य मंदिर बनवाया। कहते हैं कि मूर्ति आने के बाद एक बक्से में रखी थी। तब तक मंदिर अधूरा था। एक बार रानी को स्वप्न में मां काली ने कहा कि बक्से में मेरा दम घुट रहा है। मुझे जल्दी बाहर निकालो। रानी ने सुबह देखा, तो प्रतिमा पसीने से लथपथ थी। इस पर रानी ने मंदिर निर्माण का काम तेज कर दिया और अंततः 31 मई, 1855 को मंदिर में मां काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी।

इस मंदिर में मुख्य पुजारी रामकुमार चटर्जी थे। वृद्ध होने पर उन्होंने अपने छोटे भाई गदाधर को वहां बुला लिया। यही गदाधर रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। परमहंस जी सिद्ध पुरुष थे। एक बार उन्होंने पूजा करती हुई रानी को यह कहकर चांटा मार दिया कि मां के सामने बैठकर अपनी जमींदारी का हिसाब मत करो। रानी अपनी गलती समझकर चुप रहीं। 

रानी ने अपनी सम्पत्ति का प्रबंध ऐसे किया, जिससे उनके द्वारा संचालित मंदिर तथा अन्य सेवा कार्यों में भविष्य में भी कोई व्यवधान न पड़े। अंत समय निकट आने पर उन्होंने अपने कर्मचारियों से गंगा घाट पर प्रकाश करने को कहा। इस जगमग प्रकाश के बीच 19 फरवरी, 1861 को देश, धर्म और समाजसेवी रानी रासमणि का निधन हो गया। दक्षिणेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी प्रतिमा उनके कार्यों की सदा याद दिलाती रहती है।

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