यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 14 अगस्त 2023

क्यों कैसे डूबी द्वारका क्यों कब और कैसे डूबी द्वारिका

क्यों कैसे डूबी द्वारका 

क्यों कब और कैसे डूबी द्वारिका?
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। समस्त यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है। एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।

महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

महाभारत युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह-तरह के अपशकुन होने लगे। एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए। वहां यादव कुल के कुछ नवयुवकों ने उनके साथ परिहास (मजाक) करने का सोचा। वे श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा?

ऋषियों ने जब देखा कि ये युवक हमारा अपमान कर रहे हैं तो क्रोधित होकर उन्होंने श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे क्रूर और क्रोधी लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे। उस मूसल के प्रभाव से केवल श्रीकृष्ण व बलराम ही बच पाएंगे। श्रीकृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ये बात अवश्य सत्य होगी।

मुनियों के श्राप के प्रभाव से दूसरे दिन ही सांब ने मूसल उत्पन्न किया। जब यह बात राजा उग्रसेन को पता चली तो उन्होंने उस मूसल को चुरा कर समुद्र में डलवा दिया। इसके बाद राजा उग्रसेन व श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करवा दी कि आज से कोई भी वृष्णि व अंधकवंशी अपने घर में मदिरा तैयार नहीं करेगा। जो भी व्यक्ति छिपकर मदिरा तैयार करेगा, उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। घोषणा सुनकर द्वारकावासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया।

इसके बाद द्वारका में भयंकर अपशकुन होने लगे। प्रतिदिन आंधी चलने लगी। चूहे इतने बढ़ गए कि मार्गों पर मनुष्यों से ज्यादा दिखाई देने लगे। वे रात में सोए हुए मनुष्यों के बाल और नाखून कुतरकर खा जाया करते थे। सारस उल्लुओं की और बकरे गीदड़ों की आवाज निकालने लगे। गायों के पेट से गधे, कुत्तियों से बिलाव और नेवलियों के गर्भ से चूहे पैदा होने लगे। उस समय यदुवंशियों को पाप करते शर्म नहीं आती थी।

जब श्रीकृष्ण ने नगर में होते इन अपशकुनों को देखा तो उन्होंने सोचा कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है। इन अपशकुनों को देखकर तथा पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर श्रीकृष्ण काल की अवस्था पर विचार करने लगे। उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थयात्रा करने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभास तीर्थ आकर निवास करने लगे।

प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब अंधक व वृष्णि वंशी आपस में बात कर रहे थे। तभी सात्यकि ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास और अनादर कर दिया। कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया। यह देख अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेर लिया और हमला कर दिया। सात्यकि को अकेला देख श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़े। सात्यकि और प्रद्युम्न अकेले ही अंधकवंशियों से भिड़ गए। परंतु संख्या में अधिक होने के कारण वे अंधकवंशियों को पराजित नहीं कर पाए और अंत में उनके हाथों मारे गए।

अपने पुत्र और सात्यकि की मृत्यु से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गई। उस मूसल से श्रीकृष्ण सभी का वध करने लगे। जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह भयंकर मूसल में बदल जाती (ऐसा ऋषियों के श्राप के कारण हुआ था)। उन मूसलों के एक ही प्रहार से प्राण निकल जाते थे। उस समय काल के प्रभाव से अंधक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के वीर मूसलों से एक-दूसरे का वध करने लगे। यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे।

श्रीकृष्ण के देखते ही देखते सांब, चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गद की मृत्यु हो गई। फिर तो श्रीकृष्ण और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने शेष बचे सभी वीरों का संहार कर डाला। अंत में केवल दारुक (श्रीकृष्ण के सारथी) ही शेष बचे थे। श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि तुम तुरंत हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बता कर द्वारका ले आओ। दारुक ने ऐसा ही किया। इसके बाद श्रीकृष्ण बलराम को उसी स्थान पर रहने का कहकर द्वारका लौट आए।

द्वारका आकर श्रीकृष्ण ने पूरी घटना अपने पिता वसुदेवजी को बता दी। यदुवंशियों के संहार की बात जान कर उन्हें भी बहुत दुख हुआ। श्रीकृष्ण ने वसुदेवजी से कहा कि आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करें। इस समय बलरामजी वन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, मैं उनसे मिलने जा रहा हूं। जब श्रीकृष्ण ने नगर में स्त्रियों का विलाप सुना तो उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि शीघ्र ही अर्जुन द्वारका आने वाले हैं। वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे। ये कहकर श्रीकृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े।

वन में जाकर श्रीकृष्ण ने देखा कि बलरामजी समाधि में लीन हैं। देखते ही देखते उनके मुख से सफेद रंग का बहुत बड़ा सांप निकला और समुद्र की ओर चला गया। उस सांप के हजारों मस्तक थे। समुद्र ने स्वयं प्रकट होकर भगवान शेषनाग का स्वागत किया। बलरामजी द्वारा देह त्यागने के बाद श्रीकृष्ण उस सूने वन में विचार करते हुए घूमने लगे। घूमते-घूमते वे एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे। देह त्यागने की इच्छा से श्रीकृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोग (समाधि) की अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए।

जिस समय भगवान श्रीकृष्ण समाधि में लीन थे, उसी समय जरा नाम का एक शिकारी हिरणों का शिकार करने के उद्देश्य से वहां आ गया। उसने हिरण समझ कर दूर से ही श्रीकृष्ण पर बाण चला दिया। बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकडऩे के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। तब श्रीकृष्ण को उसे आश्वासन दिया और अपने परमधाम चले गए। अंतरिक्ष में पहुंचने पर इंद्र, अश्विनीकुमार, रुद्र, आदित्य, वसु, मुनि आदि सभी ने भगवान का स्वागत किया।

इधर दारुक ने हस्तिनापुर जाकर यदुवंशियों के संहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी। यह सुनकर पांडवों को बहुत शोक हुआ। अर्जुन तुरंत ही अपने मामा वसुदेव से मिलने के लिए द्वारका चल दिए। अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर उन्हें बहुत शोक हुआ। श्रीकृष्ण की रानियां उन्हें देखकर रोने लगी। उन्हें रोता देखकर अर्जुन भी रोने लगे और श्रीकृष्ण को याद करने लगे। इसके बाद अर्जुन वसुदेवजी से मिले। अर्जुन को देखकर वसुदेवजी बिलख-बिलख रोने लगे। वसुदेवजी ने अर्जुन को श्रीकृष्ण का संदेश सुनाते हुए कहा कि द्वारका शीघ्र ही समुद्र में डूबने वाली है अत: तुम सभी नगरवासियों को अपने साथ ले जाओ।

वसुदेवजी की बात सुनकर अर्जुन ने दारुक से सभी मंत्रियों को बुलाने के लिए कहा। मंत्रियों के आते ही अर्जुन ने कहा कि मैं सभी नगरवासियों को यहां से इंद्रप्रस्थ ले जाऊंगा, क्योंकि शीघ्र ही इस नगर को समुद्र डूबा देगा। अर्जुन ने मंत्रियों से कहा कि आज से सातवे दिन सभी लोग इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करेंगे इसलिए आप शीघ्र ही इसके लिए तैयारियां शुरू कर दें। सभी मंत्री तुरंत अर्जुन की आज्ञा के पालन में जुट गए। अर्जुन ने वह रात श्रीकृष्ण के महल में ही बिताई।

अगली सुबह श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी ने प्राण त्याग दिए। अर्जुन ने विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया। वसुदेवजी की पत्नी देवकी, भद्रा, रोहिणी व मदिरा भी चिता पर बैठकर सती हो गईं। इसके बाद अर्जुन ने प्रभास तीर्थ में मारे गए समस्त यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया। सातवे दिन अर्जुन श्रीकृष्ण के परिजनों तथा सभी नगरवासियों को साथ लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए। उन सभी के जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। ये दृश्य देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ।
       *महाकाल भक्त मंडली*

रविवार, 13 अगस्त 2023

उजीना: द हिन्दू स्टेट अंडर इज़रायली 🇮🇱 डॉक्ट्रिन... 🚩

🔴 उजीना: द हिन्दू स्टेट अंडर इज़रायली 🇮🇱 डॉक्ट्रिन... 🚩
आज किसी अज्ञात लेखक द्वारा प्रेषित की गई एक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। पता करने पर पाया कि जानकारी काफ़ी हद तक सही थी। इसलिए सोचा कि उसे अद्यतित करके आप सभी तक पहुंचाएं तो यह पोस्ट प्रेषित की। 

आपने भारत मे पल रहे अनेक मिनी पाकिस्तानों के नाम तो बहुत सुने होंगे लेकिन आपको शायद ही पता हो कि भारत में एक मिनी इज़रायल भी है। आज आपको इस मिनी इज़रायल के बारे में अवश्य जानना चाहिए और इससे सीख लेनी चाहिए।

मेवात, हरियाणा को मिनी पाकिस्तान कहा जाता है और इसकी तारीफ़ आप सबने सुनी भी होगी। लेकिन इसी मेवात क्षेत्र में एक गाँव है जिसका नाम है उजीना। इसी उजीना को मिनी इज़रायल भी कहा जाता है। दरअसल यह गांव चारों तरफ से ईमानवाले आतंकवादियों से घिरा हुआ है। ठीक वैसे ही जैसा कि इज़रायल! यहाँ पर लगभग 15 हजार की हिन्दू  आबादी है। 

यहाँ के लोग अच्छी तरह समझते हैं कि ईमानवालों के भाईचारे का मतलब क्या है? इसलिए इनके गाँव में कोई ईमानवाला घर नहीं है और यहाँ पर सभी हिन्दू है 100% हिन्दू। हिन्दू मतलब सिर्फ हिन्दू। इनके अंदर कोई जातीयता का कीड़ा नहीं है। सन 1947 के बाद से ही लगभग ये लोग भाईचारे में कोई भरोसा नहीं रखते हैं। इस गाँव में सेकुलर सु@रों को देखते ही मार दिया जाता है। 

कहते हैं कि सन 1992 के दंगों के समय ईमानवाले आतंकवादियों ने उजीना गाँव के एक हिन्दू लड़के को उठा लिया था उसके बाद वो लड़का कभी नहीं मिला। शायद उसे मार दिया गया। उसके बाद उजीना गांव के जवानों ने ऐसा तांडव मचाया कि अगले 1 वर्ष के अंदर 1,000 से भी अधिक ईमानवाले सु@र लापता हो गए और उनका कभी कोई पता नहीं चला।

उसके बाद ईमानवालों के दिल में उजीना का ऐसा ख़ौफ़ बैठा कि आज के दिन अगर कोई ईमानवाला सु@र ग़लती से भी उजीना के किसी हिन्दू से टकरा जाता है तो वह उसे देख कर फ़ौरन अपना रास्ता बदल लेता है। *अभी हम भी यही पर हे*

मतलब उजीना की स्थिति भौगोलिक रूप से तो इज़रायल जैसी है ही, उनकी युद्ध शैली भी एकदम इज़रायल जैसी ही है। उजीना के मात्र 15 हज़ार हिन्दू सम्पूर्ण मेवात क्षेत्र के 20 लाख से भी अधिक ईमानवाले आतंकवादियों पर भारी पड़ते हैं। 

अब ज़रा सोचिए कि यदि भारत के 10% हिन्दू भी उजीना के 15 हज़ार हिंदुओं की तरह हो जाएं तो भारत को गंदा करने वाले ईमानवाले आतंकवादियों का कैसा हश्र हो???

शलोॐ...!

-बाबा इज़रायली 🇮🇱
Baba Israeli

शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

कहीं आप गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध को एक ही तो नहीं मान रहे, दोनों के बीच अंतर जानें..??

कहीं आप गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध को एक ही तो नहीं मान रहे, दोनों के बीच अंतर जानें..??

भगवान बुद्ध और गौतमक्षबुद्ध कई बार जब हम गौतम बुद्ध के बारे में पढ़ते हैं तो हमें लगता है की बुद्ध एक ही व्यक्ति हैं, यह भ्रम हर उम्र के लोगों को अक्सर रहता है और इसी बात को लेकर विद्यार्थी भी सबसे ज्यादा भ्रम रहते हैं परन्तु भ्रमित हों भी क्यों न क्यूं न क्योंकि दोनों में ही नाम और गोत्र और कार्यों में भी काफी हद तक समानता है, तो दोस्तों बड़ा ही रोचक विषय है, आज हम जानेंगे भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध के बारे में, उनके जन्म और वर्ण, और बाद में उनके समाज में अपने अपने क्या योगदान थें। विशेष गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। भगवान विष्णु के प्रमुख दस अवतारों में भगवान बुद्ध, नौवें अवतार हैं। भगवान बुद्ध भगवान क्षीरोदशायी विष्णु के अवतार हैं। बलि प्रथा की अनावश्यक जीव हिंसा को बंद करने के लिए ही इनका अवतार हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती अंजना था और पिता का नाम हेमसदन था जिनका जन्मस्थान भारत के 'गया' (बिहार) में है। विचार करने वाली बात यह है कि शुद्धोदन व माया के पुत्र, शाक्यसिंह बुद्ध  जिनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। श्री शाक्यसिंह बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे, उन्होंने कठिन तपस्या के बाद तत्त्वानुभूति की प्राप्ति की  हुई जिसके बाद वे बुद्ध कहलाए। जबकि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं। श्रीललित विस्तार ग्रंथ के 21 वें अध्याय के 178 पृष्ठ पर बताया गया है कि संयोगवश गौतम बुद्ध जी ने उसी स्थान पर तपस्या की जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या की थी। इसी कारण लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया।"जन्म 
जर्मन के वरिष्ट स्कालर श्रीमैक्स मूलर जी (German Scholar Mr.Max Müller) के अनुसार शाक्यसिंह बुद्ध अर्थात गौतम बुद्ध (Gautam Budh), का जन्म कपिलवस्तु के लुम्बिनी के वनों में 477 बी सी में में हुआ था (when was gautama buddha born in which year )। जबकि भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddh) आज से 5000 वर्ष पूर्व में वर्तमान में बिहार के 'गया' नामक स्थान में प्रकट हुए थे। जबकि श्रीमद् भागवत महापुराण (1.3.24) तथा श्रीनरसिंह पुराण (36/29) के अनुसार भगवान बुद्ध आज से लगभग 5000 साल पहले इस धरातल पर आए जबकि Max Muller के अनुसार गौतम बुद्ध 2491 साल पहले आए। कहने का तात्पर्य यह है कि गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं।श्रीगोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार  भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध दोनों अलग-अलग काल में जन्मे अलग-अलग व्यक्ति थे। जिन गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अंशावतार बताया गया है, उनका जन्म कीकट प्रदेश (मगध) में ब्राह्मण कुल में हुआ था। और उनके जन्म के सैकड़ों वर्षों के बाद कपिलवस्तु में जन्मे गौतम बुद्ध, क्षत्रिय राजकुमार थे।ब्राह्मण कुल के थे भगवान बुद्ध शंकराचार्य जी ने लोगों के पूछने पर बताया जब लोगों ने कहा कि- ब्राह्मणों ने ही बुद्ध को भगवान का अवतार घोषित कर पूजन की शुरुआत की थी , जिसपर उन्होंने कहा कि कर्मकांड में जिस बुद्ध की चर्चा होती है वे अलग हैं। भगवान बुद्ध की चर्चा वेदों (Vedas) में भी हुई है। जो की भगवान के अंशावतार हैं। इनकी चर्चा श्रीमद्भागवत (Shrimad Bhagavatam) में भी है। जो की  ब्राह्मण कुल जन्में थे। किस कारण भ्रम हुआ शंकराचार्य जी ने कहा की अमरसिंह जो की राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उन्होंने जब अमरकोष जो की संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है उसकी रचना की थी। तो उस ग्रन्थ में भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) के 10 और गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के पांच पर्यायवाची नाम को एक ही क्रम में लिख दिया था, जिस कारण यह भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी थी. उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई॰ पू॰ में की थी।दोनों का ही गोत्र था गौतम
शंकराचार्य ने कहा कि दोनों का गोत्र गौतम था। यह भी एक बड़ा कारण था कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। अग्निपुराण में भगवान बुद्ध को लंबकर्ण कहा गया है, जिसका अर्थ है लम्बे कान वाला। जिसके बाद से गौतम बुद्ध के लंबे कान प्रतिमाओं में बनाए जाने लगीं। बौद्ध स्वयं को वैदिक नहीं मानते हैं जो की हैं भी नहीं। खुद को हिंदू नहीं मानते बौद्ध
उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 25 के तहत जैन, बौद्ध और सिख सभी हिंदू परिभाषित किए गए हैं। बौद्ध तो खुद को हिंदू नहीं मानते हैं। अब जैन, सिख भी खुद को हिंदू नहीं बताने लगे हैं....साभार🙏

जय सनातन धर्म, जय श्रीराम, जय गोविंदा ✨🙏💖🕉️

बीवी से झगडे करने के फायदे..

बीवी से झगडे करने के फायदे..

1. नींद में कोई व्यवधान नहीं आता : सुन रहे हो क्या, लाइट बंद करो, पंखा बंद करो, चादर इधर दो, इधर मुह करो, टाइप कुछ भी बाते नहीं होती
2. पैसे की बचत : जब बीवी से झगड़ा हुआ रहता है इस दौरान बीवी पैसे नहीं मांगती,
3. तनाव से मुक्ति : झगड़े के दैरान बातचीत बंद होती है जिससे किचकिच कम होती है और पति तनाव से मुक्त रहता है,
4. आत्मनिर्भरता आती है : जो अपना काम आप कर सकते हैं वो इसलिए नहीं करते कि बीवी कर देती है, झगड़े के बाद वो छोटे मोटे काम (खुद ले कर पानी पीना, नहाने के बाद अपने कपडे खुद निकालना, अपने लिए खुद चाय बनाना) खुद कर के आदमी आत्मनिर्भर हो जाता है,
5. काम में व्यवधान नहीं होता : झगडे के दौरान काम के समय आपको बीवी के फ़ालतू कॉल (जानू क्या कर रहे हो, मन नहीं लग रहा है, आज बहुत गर्मी है, इस प्रकार के) नहीं आते, जिससे आप अपने काम में ध्यान केंद्रित कर सकते है
6. घर जल्दी जाने की चिंता से मुक्ति : ( अधिकांश पतियो को काम के बाद जल्दी घर आने के लिए घर से बारम्बार फ़ोन आते है मगर एक बार झगड़ा हो जाने के बाद आप कुछ दिन तक इस चिंता से दूर रह सकते है,
7. आप का मूल्य बढ़ता है : ये इंसान का मनोविज्ञान है कि जो चीज नहीं होती उसके मूल्य का अहसास तभी होता है, झगडे के दौरान बीवी को आपकी मूल्य का अहसास होता है
8. प्यार बढ़ता है : आपस में झगडे से प्यार बढ़ता है, क्योकि अक्सर देखा गया है एक बार बारिश हो जाए तो मौसम सुहाना हो जाता है..
और भी फायदे हैं.
मगर समयाभाव के कारण लिखना मुश्किल है.
तो आइये प्रण लें कि आज के बाद हम सभी पति महीने में एक न एक बार अपनी बीवी से झगड़ा जरूर करेंगे (बीवी तो हमेशा तैयार रहती है) ताकि महीने में कुछ दिन पति लोग भी कुछ शांति से गुजार सकें.
.
पति हित में जारी. 😁😁

गुरुवार, 10 अगस्त 2023

#राखी_का_ऐतिहासिक_झूठ। राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना..!

#राखी_का_ऐतिहासिक_झूठ !!
सन 1535 #दिल्ली का शासक है #हुमायूँ_बाबर का बेटा। उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, पहला #अफगान_शेर_खाँ और दूसरा #गुजरात_का_शासक_बहादुरशाह। पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में #चुनार_दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है। #अफीम_का_नशेड़ी_हुमायूँ_शेर_खाँ की ओर से निश्चिन्त है, हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का बढ़ता दबाव उसे कभी कभी विचलित करता है।
      हुमायूँ के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष है कि वह घोर नशेड़ी है। इसी नशे के कारण ही वह पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में ही पड़ा हुआ है, और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। वह मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन है। पर अब दरबारी अमीर, सामन्त और उलेमा हुमायूँ को चैन से बैठने नहीं दे रहे। बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति से सब भयभीत हैं। आखिर हुमायूँ उठता है और मालवा की ओर बढ़ता है।
      इस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए है। चित्तौड़ में किशोर राणा विक्रमादित्य के नाम पर राजमाता कर्णावती शासन कर रहीं हैं। उनके लिए यह विकट घड़ी है। सात वर्ष पूर्व खनुआ के युद्ध मे महाराणा सांगा के साथ अनेक योद्धा सरदार वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। रानी के पास कुछ है, तो विक्रमादित्य और उदयसिंह के रुप में दो अबोध बालक, और एक राजपूतनी का अदम्य साहस। सैन्य बल में चित्तौड़ बहादुर शाह के समक्ष खड़ा भी नहीं हो सकता, पर साहसी राजपूतों ने बहादुर शाह के समक्ष शीश झुकाने से इनकार कर दिया है।

      इधर बहादुर शाह से उलझने को निकला हुमायूँ अब चित्तौड़ की ओर मुड़ गया है। अभी वह सारंगपुर में है तभी उसे बहादुर शाह का सन्देश मिलता है जिसमें उसने लिखा है, "चित्तौड़ के विरुद्ध मेरा यह अभियान विशुद्ध जेहाद है। जबतक मैं काफिरों के विरुद्ध जेहाद पर हूँ तबतक मुझपर हमला गैर-इस्लामिल है। अतः हुमायूँ को चाहिए कि वह अपना अभियान रोक दे।”
     हुमायूँ का बहादुर शाह से कितना भी बैर हो पर दोनों का मजहब एक है, सो हुमायूँ ने बहादुर शाह के जेहाद का समर्थन किया है। अब वह सारंगपुर में ही डेरा जमा के बैठ गया है, आगे नहीं बढ़ रहा।
     इधर चित्तौड़ राजमाता ने कुछ राजपूत नरेशों से सहायता मांगी है। पड़ोसी राजपूत नरेश सहायता के लिए आगे आये हैं, पर वे जानते हैं कि बहादुरशाह को हराना अब सम्भव नहीं। पराजय निश्चित है सो सबसे आवश्यक है चित्तौड़ के भविष्य को सुरक्षित करना। और इसी लिए रात के अंधेरे में बालक युवराज उदयसिंह को पन्ना धाय के साथ गुप्त मार्ग से निकाल कर बूंदी पहुँचा दिया जाता है।
    अब राजपूतों के पास एकमात्र विकल्प है वह युद्ध, जो पूरे विश्व में केवल वही करते हैं। शाका और जौहर…...

    आठ मार्च 1535, राजपूतों ने अपना अद्भुत जौहर दिखाने की ठान ली है। सूर्योदय के साथ किले का द्वार खुलता है। पूरी राजपूत सेना माथे पर केसरिया पगड़ी बांधे निकली है। आज सूर्य भी रुक कर उनका शौर्य देखना चाहता है, आज हवाएं उन अतुल्य स्वाभिमानी योद्धाओं के चरण छूना चाहती हैं, आज धरा अपने वीर पुत्रों को कलेजे से लिपटा लेना चाहती है, आज इतिहास स्वयं पर गर्व करना चाहता है, आज भारत स्वयं के भारत होने पर गर्व करना चाहता है।

     इधर मृत्यु का आलिंगन करने निकले वीर राजपूत बहादुरशाह की सेना पर विद्युतगति से तलवार भाँज रहे हैं, और उधर किले के अंदर महारानी कर्णावती के पीछे असंख्य देवियाँ मुह में गंगाजल और तुलसी पत्र लिए अग्निकुंड में समा रही हैं। यह जौहर है। वह जौहर जो केवल राजपूत देवियाँ जानती हैं। वह जौहर जिसके कारण भारत अब भी भारत है।
     किले के बाहर गर्म रक्त की गंध फैल गयी है, और किले के अंदर अग्नि में समाहित होती क्षत्राणियों की देहों की....!

 पूरा वायुमंडल बसा उठा है और घृणा से नाक सिकोड़ कर खड़ी प्रकृति जैसे चीख कर कह रही है- “भारत की आने वाली पीढ़ियों! इस दिन को याद रखना, और याद रखना इस गन्ध को। जीवित जलती अपनी माताओं के देह की गंध जबतक तुम्हें याद रहेगी, तुम्हारी सभ्यता जियेगी। जिस दिन यह गन्ध भूल जाओगे तुम्हें फारस होने में दस वर्ष भी नहीं लगेंगे…”

     दो घण्टे तक चले युद्ध में स्वयं से चार गुने शत्रुओं को मार कर राजपूतों ने वीरगति पा ली है, और अंदर किले में असंख्य देवियों ने अपनी राख से भारत के मस्तक पर स्वाभिमान का टीका लगाया है। युद्ध समाप्त हो चुका। राजपूतों ने अपनी सभ्यता दिखा दी, अब बहादुरशाह अपनी सभ्यता दिखायेगा।

     अगले तीन दिन तक बहादुर शाह की सेना चित्तौड़ दुर्ग को लुटती रही। किले के अंदर असैनिक कार्य करने वाले लुहार, कुम्हार, पशुपालक, व्यवसायी इत्यादि पकड़ पकड़ कर काटे गए। उनकी स्त्रियों को लूटा गया। उनके बच्चों को भाले की नोक पर टांग कर खेल खेला गया। चित्तौड़ को तहस नहस कर दिया गया।
     और उधर सारंगपुर में बैठा बाबर का बेटा हुमायूँ इस जेहाद को चुपचाप देखता रहा, खुश होता रहा।
******************************************
     युग बीत गए पर भारत की धरती राजमाता कर्णावती के जलते शरीर की गंध नहीं भूली। फिर कुछ गद्दारों ने इस गन्ध को भुलाने के लिए कथा गढ़ी- “राजमाता कर्णावती ने हुमायूँ के पास राखी भेज कर सहायता मांगी थी।”
     अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मुँह में तुलसी दल ले कर अग्निकुंड में उतर जाने वाली देवियाँ अपने पति के हत्यारे के बेटे से सहायता नहीं मांगती पार्थ! राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना..!

बुधवार, 9 अगस्त 2023

प्राण वायु क्या है? शरीर में वायु के कार्य और महत्व

 

प्राण वायु क्या है?

  • भारत के लगभग सभी वैदिक धर्मग्रंथों में वायु की विशेष रूप से चर्चा की गई है।
  • -गोरक्षसंहिता के मुताबिक 10 वायु होती हैं- प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, किकर, देवदत्त तथा धनंजय। यथा

प्राणोऽपानः समानश्चोदानव्यानौ च वायवः।

नाग: कूर्मोऽथ कृकरो देवदत्तो धनञ्जय:!

शरीर में वायु के कार्य और महत्व

  1. प्राण- वायु का फेफड़े के भीतर ले जाना और छोड़ना। -
  2. अपान वायु - इस वायु के सहयोग से गुदा द्वारा मल उत्सर्जन, उपस्थ से मूत्र - निष्कासन, अंडकोष से वीर्य निष्कासन, गर्भ से संतति-निष्कासन, नाभि से चरण तल तक इस वायु का कार्याधिकार क्षेत्र है। -
  3. समान वायु नाभि से हृदय तक, शरीर के मध्य भाग में इस वायु का व्यापार क्षेत्र है। शरीरस्थ ( उदरस्थ) भोजन से निर्मित रसों को सभी नाड़ियों तथा अंगों में समान-संतुलित वितरण करना इस वायु का कार्य है।
  4. व्यान वायु का व्यापार - क्षेत्र उपस्थ-मूल से ऊपर है। समस्त शरीर में रक्त संचार इसका कार्यक्षेत्र है।
  5. उदान वायु कंठ से मस्तक - पर्यंत इस वायु का निवास स्थल है। शरीर को उठाए रखना उदानवायु का कार्य है।
      1. शरीर के व्यष्टि - प्राण का समष्टि-प्राण से संबंधन इसी प्राण के माध्यम से नियंत्रित होता है।इसी वायु के सहयोग से निधन काल में स्थूल शरीरस्थ सूक्ष्म शरीर निष्क्रमण करता है तथा अपने कर्म-गुणवासना-संस्कारवश लोकांतर-भ्रमण एवं गर्भधारण करता है।
  6. नागवायु इसी वायु के सहारे डकार (उद्गार ), छींकना इत्यादि कार्य संपन्न होते हैं।
  7. कूर्मवायु – इस वायु के सहयोग से शरीर के किसी भी भाग का संकोचन - विस्तारण संभव होता है।
  8. कृकरवायु – इस वायु के सहयोग से क्षुधा-तृष्णादि घटित होती है।
  9. देवदत्तवायु – इस वायु के सहयोग से निद्रा - तंद्रा घटित होती है।
  10. धनंजयवायु - इस वायु से पोषण होता है । - (इस दशवायु- समूह में प्रथम पाँच प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान प्रमुख तथा शेष पाँच प्रथम पाँच के अंतर्गत तथा अधीन हैं।
    • स्थितिदृष्टि से प्राणवायु हृदय में, अपानवायु गुह्यभाग में, समानवायु नाभिमंडल में, उदानवायु कंठदेश में तथा समानवायु समस्त शरीर में व्याप्त है। प्राणवायु समूह का वशीकर प्राणायाम है।
  • वायु पुराण ७/१३०/३० के अनुसार ४९ मरूत गण हैं, जो संसार में ट्रांसपोटेशन का कार्य कर सम्पूर्ण जीव जगत की देखभाल करते हैं। महादेव के मुख्य गण मारुति हनुमान इन 49 मारूतों के स्वामी हैं।

49 मरुत के नाम इस प्रकार हैं

      • सत्त्वज्योति, आदित्य, सत्यज्योति, तिर्यग्ज्योति, सज्ज्योति, ज्योतिष्मान्, हरित, ऋतजित, सत्यजित, सुषेण, सेनजित्, सत्यमित्र, अभिमित्र, हरिमित्र, कृत, सत्य, ध्रुव, धर्ता, विधर्ता, विधारय, ध्वांत, धुनि, उग्र, भीम, अभियु, साक्षिप, ईदृक्, अन्यादृक्, यादृक्, प्रतिकृत् ऋक्, समिति, संरंभ ईदृक्ष, पुरुष, अन्यादृक्ष, चेतस, समिता, समिदृक्ष, प्रतिदृक्ष, मरुति, सरत, देव, दिश, यजुः, अनुदृक, साम, मानुष तथा विश्।
  • (ब्राह्मांडपुराण, गरुड़पुराण तथा विष्णुधर्मोत्तरपुराण में भी ये नाम हैं।)

पवन पुत्र भी 49 हैं

      • ब्रह्मांडपुराण, अध्याय ३, उपोद्घातपाद - एकशक्र, द्विशक्र, त्रिशक्र, एकज्योति, द्विज्योति, त्रिज्योति, मित, सम्मित, सुमति, अनिमित्र, अनमित्र, पुरुमित्र, ऋतजित्, सत्यजित्, सेनजित्, अपराजित, ईदृक्ष, अदृक्ष, तत्, ऋत, पतिसकृत् इंद्र, गतदृश्य, पर, सुषेण, अथवास, विराट्, काम, जय, ऋतवाह, धरुण, धर्ता, धाता, धृति, ध्रुव, व्रतिन्, देवदेव, विधारण, दुर्ग, द्यपु, युति, सह, अयात, अभियुक्त, भीम, अनाय्य, समर -

49 दिति- पुत्र जो शरीर के रक्षक हैं

      • शक्रज्योति, शक्र, सत्यज्योति, - चित्रज्योति, ज्योतिष्मान्, सुतपा तथा चैत्य (प्रथम गण), ऋतजित, सत्यजित, सुषेध, सेनजित, सुरमित्र, अमित्र तथा सुतमित्र (द्वितीय गण), धातु, धनद, उग्र, भीम, वरुण, वात तथा समीर (तृतीय गण), अभियुक्त, आक्षिक, साहवाप, झंझा, वायु, पवन तथा समीरण (चतुर्थ गण) ईहक, अन्याहक, ससरित, सद्रुभ, सवृक्ष, मित तथा समित (पंचम गण), एताहक, पुरुष, नान्याहक, समचेतन, संमित, समवृत्ति, प्रतिहर्ता (षष्ठ गण), मरुत्, प्राण, जीवन, श्वास, नाद, स्पर्श तथा संचार।

मंत्र जाप के 49 दोष बताए हैं

    • छिन्न, रुद्ध, शक्तिहीन, पराङ्मुख, वधिर, नेत्रहीन, कीलित, स्तंभित, दग्ध, त्रस्त, भीत, मलिन, तिरस्कृत, भेदित, सुषुप्त, मदोन्मत्त, मूर्च्छित, सिद्धि हीन आदि
  • मरुत का एक अर्थ पर्वत होता है। मरुद्गण का अर्थ मरुतों के गण। गण कई प्रकार के होते हैं उनमें से तीन प्रमुख है देवगण, राक्षस गण, मनुष्य गण।
  • गण का अर्थ होता है समूह। मरुद्गण देवगणों में आते हैं। चारों वेदों में मिलाकर मरुद्देवता के मंत्र 49मरुतों का गण सात-सात का होता है। इस कारण उनको 'सप्ती' भी कहते हैं।
  • ७/७ सैनिकों की साथ पंक्तियों में ये 49 रहते हैं। और प्रत्येक पंक्ति के दोनों ओर एक-एक पार्श्व रक्षक रहता है। अर्थात् ये रक्षक 14 होते हैं। इस तरह सब मिलकर 49 और 14 मिलकर 63 सैनिकों का एक गण होता है।
  • गण' का अर्थ गिने हुए सैनिकों का संघ' भी होता है। प्रत्येक के नाम अलग अलग होते हैं।
  • उनचास मरुतगण : मरुतगण देवता नहीं हैं, लेकिन वे देवताओं के सैनिक हैं। मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल १८० से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, लेकिन उनमें ४९ प्रमुख हैं। उनमें भी सात सैन्य प्रमुख हैं। मरुत देवों के सैनिक हैं और इन सभी के गणवेश समान हैं।
  • वायु सभी प्राणियों की आयु का आधार है। शरीर को पर्याप्त प्राणवायु मिले, तो व्यक्ति लम्बे समय तक युवा बना रह सकता है। क्योंकि वायु का उल्टा शब्द युवा ही होता है।

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

कबाड़ को जल्दी करें घर से बाहर वरना हो जाएगा आपका कबाड़ा

कबाड़ को जल्दी करें घर से बाहर वरना हो जाएगा आपका कबाड़ा
नकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है कबाड़
=======================
कई बार देखने में आता है कि घर में अच्छी खासी चहल-पहल रहने के बावजूद उसमें नकारात्मक ऊर्जा सी रहती है। घर के सदस्य आपस में उलझते रहते हैं। छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा, रूठना आदि लगा रहता है। यही नहीं उनमें आलस्य भी भरा रहता है। उनमें आपसी प्यार तो होता है लेकिन टकराव भी खूब होता है। यदि आपके घर में भी ऐसा होता है तो देख लें कि कहीं आपने अपने घर को कबाड़ घर में तो नहीं तब्दील कर लिया है। कुछ लोगों में पुराना सामान सहजकर रखने की आदत होती है। चाहे वह पुराना फर्नीचर हो, पुराना लोहे का सामान हो, कपड़े या फिर कोई इलेट्रॉनिक आइटम। ऐसे सामान को सहजकर रखने के पीछे मंशा यह होती है कि वह आगे चलकर काम आ जाएगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है। एक बार जो सामान जहां रखा रह जाता है, वह महीनों या वर्षों तक वैसे ही पड़ा रहता है। उसे हाथ लगाने तक की कोई जहमत नहीं उठाता। ऐसा लगभग सभी मध्यमवर्गीय परिवारों में होता है। शायद आपका घर भी इससे अछूता न हो।

अब सोचिए ऐसा करने से होता क्या है? प्रकृति के नियम के अनुसार इस चल संसार में प्रत्येक प्राणी और वस्तु में ऊर्जा होती है। चाहे वह सजीव हो या निर्जीव। इतना जरूर है कि सजीव वस्तु में ज्यादा ऊर्जा होती है और निर्जीव में उससे थोड़ी कम। अब होता क्या है कि जो पुराना सामान बिना इस्तेमाल के घर में वर्षों तक यूं ही पड़ा रहता है तो नकारात्मक ऊर्जा छोड़ने लगता है। इसके पीछे भी प्रकृति का नियम काम करता है। इसके मुताबिक जो प्राणी या वस्तु जितना सक्रिय रहेगा, वह उतनी ही सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करेगा। इसके उलट जो जितना निष्क्रिय रहेगा, वह उतनी ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा छोड़ेगा। इसी नियम के अनुसार घर में पड़ा पुराना सामान या सीधे तौर पर कहें कबाड़ नकारात्मक ऊर्जा छोड़ने लगता है। महीनों तक पड़े रहने से पूरे घर में धीरे-धीरे यह नकारात्मक ऊर्जा हावी होने लगती है, जिसका असर घर के प्रत्येक सदस्य पर पड़ने लगता है। वह आलसी हो जाएगा, जरा-जरा सी बात पर गुस्सा करने लगेगा या खिसयाएगा। यह सब इस में एकत्र हुई नकारात्मक ऊर्जा का ही परिणाम होता है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि जब आप घर में सारा दिन खाली पड़े रहते हैं, कुछ काम नहीं करते तो मन सुस्ताने लगता है। आलस आने लगता है और दिनभर सोने का मन करता है। यानि आपमें नकारात्मक ऊर्जा आने लगती है। ऐसा ही घर में पड़े कबाड़ के साथ होता है।

वास्तु और कबाड़
=============
वास्तु शास्त्र के अनुसार कबाड़ का संबंध राहु ग्रह से होता है। कबाड़ का मतलब आमतौर पर काम में नहीं आने वाला सामान, खराब या नष्ट हो चुकी वस्तु, बंद पड़ी घड़ी, खराब टीवी, मोबाइल, रेडियो, फ्रिज, पुरानी बैटरी आदि होता है। इनमें राहु ग्रह का वास होता है। जिनता कबाड़ घर में इकट्ठा होगा, राहु का प्रभाव उतना ही घर पर पड़ेगा।  जिन जातकों की राहू की महादशा, अंतरदशा या सूक्ष्म अंतर चल रहाीहो, उन्हें तो विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।

कबाड़ का असर
===========
– घर में किसी भी प्रकार की बंद पड़ी घड़ी, टी.वी., टेप रिर्काडर, रेडियो, ईत्यादि हों तो यह तरक्की में रूरकावट पैदा करती है।
– कबाड़घर किसी व्यक्ति को रहने, सोने अथवा किराए पर नही दिया जाना चाहिए। गृह स्वामी ऐसे व्यक्ति से सदैव परेशान रहेगा।
– उत्तर, पूर्व, ईशान, वायव्य कोण कबाड़ आदि का भण्डारण करने से अर्थहानि व मानसिक अशांति में वृद्वि होती है। आग्नेय कोण में कबाड़ का भंडारन करने अग्नि से हानि होने की संभावना होती है।
– -घर में कहीं भी मकड़ी के जाले न रहने दें। इससे घर से संपन्नता चली जाती है।
– घर की छत व बालकनी में गंदगी न रहने दें। घर की छत मस्तक के समान होती है, जिसमें कोई भी दाग जीवन में नकारात्मकता ला सकता है।
घर के कोने, कबाड़ और उसका असर
पूर्वी कोना : यहां सूर्य का अधिकार होता है। अगर इस कोने में कचरा या कबाड़ जमा रहता है तो परिवार के मुखिया पर मुसीबत बन रहती है। उसकी घर में नहीं चलती। नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। अगर यहां गंदा पानी जमा हो तो या सीलन रहती है तो परिवार के पुरुष सदस्य पीड़ित रहते हैं।
उत्तरी-पूर्वी कोना : यहां बृहस्पति का वास होता है है। अगर इस कोण में गंदगी, कचरा या कबाड़ रहता है तो ऐसे के अधिकांश सदस्य सुस्त होंगे। घर में आलस्य रहेगा। बात-बात में झगड़े होंगे।  इस क्षेत्र में कबाड़ रखा है तो उसे तुंरत निकाल दें या घर के दक्षिण पश्चिम कोने में रख दें।
उतरी कोना : यहां बुध का वास होता है। यह रचनात्मक क्षेत्र है। इस कोने में कचरा या कबाड़ होने पर सदस्यों में रचनात्मतकता खत्म हो जाती है। खासकर लोग सलाहकार व्यवसाय या बैंकिंग क्षेत्र में उन पर इसका खासा असर रहता है। उन्हें सतर्क रहने की जरूरत है।
उत्तर-पश्चिम कोना : यहां चंद्रमा का वास होता है। इस कोने को भारी रखा जा सकता है। यहां ठोस कबाड़ के बजाय द्रव वाली वस्तु रखी जा सकती है। ऐसे पौधे रखे जा सकते हैं जिनमें नियमित रूप से पानी डालने की जरूरत हो।
पश्चिमी कोना : यहां शनि का वास होता है। इस क्षेत्र में भी कचरा नहीं होना चाहिए। शनि न्यायप्रिय ग्रह है। वह अव्यवस्था की स्थिति को पसंद नहीं करता। ऐसे में कबाड़ को यहां से निकाल देना चाहिए।
दक्षिणी पश्चिमी कोना : यह क्षेत्र राहू का स्थान होता है, इसलिए यहां सर्वाधिक सावधानी बरतनी चाहिए। यहां गंदगी और कचरा होने पर राहू अपने खराब प्रभाव देना शुरू कर देता है और परिवार के सदस्य ऐसी समस्याओं से रूबरू होते हैं। इस क्षेत्र में उस सामान को रखा जाता है, जो कीमती हो, सबसे भारी हो और लंबे समय तक जिस सामान को सुरक्षित रखना हो।
दक्षिणी कोना : यहां मंगल का वास होता है। इस क्षेत्र की ऊर्जा अग्नि के समान होती है।
अगर इस क्षेत्र में कचरा हो या नमी हो तो परिवार के सदस्यों में साहस का अभाव देखा जाता है। कई घरों में यहां सीढ़ियां बना दी जाती हैं और उसके नीचे कचरा भर दिया जाता है। यह परिवार की संपत्ति और सदस्यों के लिए हानिकारक होता है।
दक्षिणी पूर्वी कोना : यहां शुक्र का वास होता है। यह घर का सबसे समृद्ध दिखाई देने वाला स्थान होना चाहिए। यहां पड़ा कचरा अथवा कबाड़ आपकी समृद्धि को घटाता है। यहां पर फूलों वाले पौधे लगाने चाहिए।
सलाह
– घर या ऑफिस के किसी भी भाग में कबाड़ न जमा होने दें। वे सभी चीजें कबाड़ हैं, जिनका कभी इस्तेमाल नहीं होता है। जब कबाड़ साफ होता है तो जगह स्वयं अपनी ऊर्जा एवं सृजनात्मकता को बढ़ाती है।  फाइलें रखी जाने वाली अलमारियां हमेशा साफ रखें और मेज के ऊपर कोई भी फालतू सामान न रखें।
-अपनी खिड़कियां साफ रखें और धूल व मिट्टी भी साफ करें। ऑफिस की नियमित सफाई और कूड़े का डिद्ब्रबा रोज साफ करने से ऊर्जा साफ-सुथरी रहती है और उसमें वृद्धि भी होती है।-
– कबाड़ के दरवाजे का रंग काला होना चाहिए ।.कबाड़घर का द्वार लोहे अथवा टीन का बना होना चाहिए।
– कबाड़घर का द्वार एक पल्ले का होना चाहिए। कबाड़घर का दरवाजा घर के अन्य दरवाजों से छोटे आकार का होना चाहिए।
– कबाड़ घर की लम्बाई व चौड़ाई बहुत कम होनी चाहिए। कबाड़घर के नीचे तहखाना नहीं होना चाहिए।
– कबाड़ घर की दीवारों तथा फर्श पर सीलन नहीं होना चाहिए। कबाड़ घर में पानी नहीं रखना चाहिए।  कबाड़घर में किसी भी व्यक्ति का सोना या रहना अशुभ होता है।
– किसी भी प्रकार के युद्ध वाले चित्र, इंद्रजालिक तस्वीरें, पत्थर या लकड़ी के बने राक्षसों की प्रतिमाएं या फिर रोते हुए किसी मनुष्य की पेंटिंग को रखना अशुभकारी होता है
4. मुक्चयद्वार पर धार्मिक या मांगलिक चित्र या मूर्तियां जैसे ऊँ गणपति, मंगल कलश, मीन, स्वास्तिक, गायत्री मंत्र आदि के चित्र अवश्य लगाने चाहिए। इन चित्रों के प्रभाव से घर को बुरी नजर नहीं लगती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
5. घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। यह कृमिनाशक है और दूषित वायु को शुद्ध करता है। यह सौ हाथ एक वायुमंडल को शुद्ध करता है। रविवार के दिन सूर्य के संयोग से दूषित किरणें तुलसी में जन्म लेती है। रविवार के दिन तुलसी का स्पर्श व संसर्ग वर्जित है।
–  मकान के प्रवेश द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए। द्वार के सामने कूड़ा करकट और गंदगी एकत्र न होने दें यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतीक हैं।
– मकान के किसी एक कोने में अधिक पेड़ एवं पौधे ना लगाएं, माता-पिता पर भी इसका दुष्प्रभाव  पड़ता हैं।
–  मकान के किसी भाग (आंगन , दीवारों या रसोई अथवा शयनकक्ष ) का प्लास्टर उखड़ा नहीं होना चाहिए। दरवाजे एवं खिड़कियाँ टुटी-फुटी नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए तथा अन्य दरवाजों एवं खिड़की पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचें।
–  मकान के मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें। शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले व्यक्ति का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए।  सीढ़ियों के नीचे शौचालय के  निर्माण से बचें, यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्घ करती है।


दान से धन एवं मन की शुद्धि

दान से धन एवं मन की शुद्धि
〰️〰️🌸〰️🌸〰️🌸〰️〰️
कलियुग में दान प्रधान है । श्रुति में निर्देश है जो सिर्फ अपने लिये पकाकर खाता है, वह अन्न नहीं खाता, पाप पकाकर खाता है-'केवलाघो भवति केवलादी।' अत: अन्नदान को सर्वोपरि दान कहा गया है। 

कलियुग का धर्म केवल एक पैर अर्थात् दान के ऊपर टिका हुआ है। ईमानदारी, परिश्रम तथा धर्म अनुसार अर्जित धन-संपत्ति का दान ही पुण्य दायक होता है । लक्ष्मी माता हैं। उनका सत्कर्म के लिये उपयोग तो किया जा सकता है, परंतु सांसारिक सुख-सुविधाओं के लिये-व्यक्तिगत लाभ के लिये उनका उपभोग नहीं किया जाना चाहिये। -अर्थ अमृत है, पर असावधानी से वह जहर भी बन जाता है। जो नीति से आये और जिसका उपयोग रीति से हो, वह अर्थ अमृत है; पर अनीति से अर्जित धन जहर बन जाता है। -यदि धर्म की मर्यादा न रहे तो धन अनर्थ करता है। धन साधन है, धर्म साध्य है।

धन कमाना कठिन नहीं है, उसका धर्म-कार्यों सेवा, सहायता, दान आदि में सदुपयोग करना कठिन है। धन का धार्मिक कर्तव्यों-दान, सेवा, गोसेवा-जैसे सत्कर्म में सदुपयोग हो तो वह सुख देता है और विलासिता आदि दुष्कर्मों में उपभोग करने पर तरह-तरह के दुख देता है। ज्ञान दान श्रेष्ठ दान है। अन्नदान और वस्त्रदान कुछ समय के लिये शान्ति प्राप्त होती है, किंतु ज्ञान दान अर्थात जहाँ अध्यात्म ज्ञान का दान होता है, वहाँ सारे तीर्थ आ जाते हैं।

दान के नियम और फल
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
👉 दान देने का अधिकार गृहस्थ को दिया गया है। दान में विवेक रखो। इतना दान दो कि गृहस्थ की आवश्यकता की पूर्ति में बाधा न पड़े।

👉 दान से धन की शुद्धि, स्नान से तन की शुद्धि तथा ध्यान से मन की शुद्धि होती है।

👉 जिसका धन शुद्ध नहीं, उसका दान तथा उसकी सहायता स्वीकार नहीं करनी चाहिये। 

👉 यदि सत्कर्मों में, धर्म में सम्पत्ति का सदुपयोग करोगे तो लक्ष्मीमाता तुम्हें नारायण की गोद में बिठायेंगी। 

👉 धन का दान करते रहने से धन के प्रति ममता कम होती है तथा तन से सेवा करने से देहाभिमान में कमी आती है।

👉 दान देते समय जब तुम लेने वाले को परमात्मा का रूप समझकर दान दो तभी दान सफल-सार्थक होगा। 

👉 आँगन में आये याचक को यदि कुछ नहीं मिलता है तो वह घर का पुण्य ले जाता है।

👉 याचका माँगने नहीं आता, वह तो हमको ज्ञान देने आता है कि पूर्वजन्म में मैंने किसी को कुछ दिया नहीं, इसीलिये मैं भिखारी हुआ हूँ। यदि आप भी किसी को कुछ न देंगे तो अगले जन्म में मेरे-जैसे याचक बनेंगे।

〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️

सोमवार, 7 अगस्त 2023

संस्कारी इवेंट द्वारा आयोजित हर उम्र के गायक कलाकारों की प्रतियोगिता का फाइनल राउंड सम्पन्न



सूर्यनगरी जोधपुर में 8 वर्ष से 60 वर्ष की उम्र तक के छुपे हुए गायक कलाकारो मे 16 जुलाई को हुए आडिशन मे चुने गये कलाकारो को 23 जुलाई को सेमी फाइनल मे तराशे गये कलाकारो का सुरों का धमाल संस्कारी इवेंट्स द्वारा आयोजित गायन प्रतियोगिता का फाइनल 06 अगस्त 2023 रविवार शाम 4:15 बजे से महिला पीजी महाविद्यालय ऑडिटोरियम, प्रताप नगर में आयोजित किया गया जिसमे कार्यक्रम के विशेष एवं मुख्य अतिथि के रूप में न्यायमूर्ति देवेन्द्र कछवाहा अध्यक्ष, राज्य उपभोक्ता आयोग, राजस्थान एवं आनंद पुरोहित जी वरिष्ठ अधिवक्ता राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर एवं समाज सेवी आदर्श शर्मा उपस्थित हुए |



कार्यक्रम के आयोजक श्री अभिषेक शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवान गणेश जी का दीप प्रज्वलन व पुष्प माला द्वारा किया गया जिसमे नन्ही बालिकाएं स्वस्ति भंसाली व यति शर्मा द्वारा गणेश वंदना की प्रस्तुति दी गयी, आए हुए अतिथियों को केसरिया दुपट्टा औढ़ाकर मारवाड़ी परंपरा से साफा व माला पहना कर सम्मानित किया गया 


कार्यक्रम में वैष्णवी दवे ने महाभारत पर नृत्य कर मंत्रमुग्ध कर दिया, अन्य प्रतिभाओ में तनिष्क धारू, धृति, कनिष्क शर्मा, मयंक, अधिराज आदि बाल कलाकारों ने अपना अद्भुत प्रदर्शन किया। मयंक शर्मा व अनिल आसोपा ने बांसुरी बजाकर समां बांध दिया

कार्यक्रम में फाइनल राउंड की प्रतियोगिता के जज के रूप में कमलेश पुरोहित, राजीव वशिष्ठ, धर्मेंद्र सिंह, निशि दुबे आदि ने निर्णायक मंडल की भूमिका निभाई।

कार्यक्रम की मंच सञ्चालन मे कनिष्क शर्मा, श्रीमती संतोष जांगिड़ ने किया और एंकर के रूप में लोढ़ा इवेंट्स के विपिन लोढ़ा और हर्षि लोढ़ा की जुगलबंदी में मंच पर मारवाड़ी और हिंदी भाषा में दर्शको को ठहाके लगवाते हुए मंच संचालन किया

कार्यक्रम प्रतियोगियों मे श्री विठलेश व्यास ने

ओ दुनिया के रखवाले गीत की प्रस्तुति देकर दर्शको को भाव विभोर कर दिया, श्रीमति सीमा सिंघवी ने वन्दे मातरम् गीत की प्रस्तुति देकर दर्शको को देशभक्ति के रस मे डुबो दिया, लीशा ओझा ने मेरे ढोलना सुन मेरे प्यार की धुन पर अपनी प्रस्तुति देकर दर्शकों के साथ जज साहब को भी आश्चर्यचकित कर दिया,

जोधपुर के पधारे हुए कई रॉक स्टार गायक कलाकार, संगीत प्रेमियों ने सभी कलाकारो की प्रस्तुतियों का जोरदार तालियों से उत्साहवर्धन किया, कार्यक्रम को इतना ऐतिहासिक और सफल बनाने में संस्कारी इवेंट के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर इस मंच को सफल बनाने के लिए साँवरिया के संस्थापक और पुलिस पब्लिक प्रेस के जोधपुर ब्यूरो चीफ कैलाश चंद्र लढा, सुर संगम संगीत संस्थान, टीम रुद्राक्ष, टीम तराना, टीम सुर सुधा , टीम ब्लू सिटी,  टीम सुरीली सूर्य नगरी, आदि के उत्तम भंसाली, राजेश, अशोक व्यास, सुनील मेहता, विमल सोनी, दीपक तंवर, हंसमुख दाधीच, जीतेन्द्र ओझा, विशाल पुरोहित, अनिल इंदु शर्मा, वीरेंदर कछवाहा, अभिलेश वढेरा ने कार्यभार संभाला।

कार्यक्रम के दौरान ए शार्प म्यूजिकल स्कूल की छात्राओं ने अच्युतम केशवम पर एक साथ गिटार, पियानो के साथ सामूहिक प्रस्तुति दी,


सूर्यनगरी में संगीत प्रेमियों के इतने बड़े इवेंट महिला पी जी विद्यालय का हाल क्षमता से अधिक खचाखच भरा था संगीत का समा बँधा था और मौसम भी खुशगवार हो गया था कार्यक्रम में एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को अचंभित कर दिया, जोधपुर में इतनी प्रतिभाएं भरी पड़ी है और उनको बाहर निकालकर उभारने का कार्य किया संस्कारी इवेंट के संचालक अभिषेक शर्मा ने और इसमें उनका साथ उनकी धर्मपत्नी वंदना शर्मा ने दिया

कार्यक्रम के दौरान अंतिम चरण में लाइट जाने पर दर्शको ने अपने अपने मोबाइल से लाइट जलाकर कार्यक्रम में अँधेरे को भी एन्जॉय किया

कार्यक्रम मे 8 से 15 वर्ष की आयु के प्रतियोगियों मे श्री धैर्य जैन ने प्रथम स्थान प्राप्त किया व नंदिनी आसोपा ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया व कुंज लढा (माहेश्वरी) ने तृतीय स्थान प्राप्त किया

कार्यक्रम मे 16 से 40 वर्ष की आयु के प्रतियोगियों मे लीशा ओझा ने प्रथम स्थान प्राप्त किया व श्री विठलेश व्यास ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया व श्री अनुश्री पनिया  ने तृतीय स्थान प्राप्त किया

कार्यक्रम मे 41 से 60 वर्ष की आयु के प्रतियोगियों मे श्रीमति सीमा सिंघवी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया व श्री मोहम्मद युसूफ ने  द्वितीय स्थान प्राप्त किया व श्री अनिल इंदु शर्मा  ने तृतीय स्थान प्राप्त किया




मानवता की सेवा मे समर्पित साँवरिया के संस्थापक श्री कैलाश चंद्र लढा ने सभी को एक एक पौधा देकर पर्यावरण के प्रति अपनी कर्तव्य को निभाने का संकल्प दिलवाया, उन्होंने बताया की सांवरिया द्वारा विभिन्न संस्थाओ के माध्यम से अब तक लगभग 5000 से भी ज्यादा पौधे का वितरण अब तक जोधपुर में कर चुके है

कार्यक्रम में पधारे गिटार वर्ल्ड के श्रीमती विजय अरोड़ा, श्रीमती मेघा अमित अरोड़ा, मुकेश पारख द्वारा ऑडिशन, सेमि फाइनल, फाइनल तीनो कार्यक्रम में चयनित हुए प्रतिभागियों के अलावा कुछ अलग परफॉर्म करने वाले ३ प्रतिभागी जिनमे  सीमा सिंघवी, विठलेश व्यास, कुंज लढा माहेश्वरी का अपनी और से चयन कर उन्हें गिटार देकर सम्मानित किया 
 

कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को शील्ड ट्रॉफी व सर्टिफिकेट  देकर व केसरिया दुपट्टा पहनाकर  सम्मानित किया गया
इस कार्यक्रम में सीनियर सिटीजन कलाकारों को विशेष रूप से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड  दिया

कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि न्यायमूर्ति देवेन्द्र कछवाहा ने मंच से संस्कारी इवेंट के लिए कहा की सभी उम्र के लोगो में गाने की इच्छा तो होती है पर उन्हें इस प्रकार का मंच नहीं मिल पाता है आपने ऐसा मंच उपलब्ध कराकर सबको हर उम्र में अपने मन की अपनी इच्छाओ को प्रदर्शित करने का अच्छा मौका दिया
आनंद पुरोहित जी ने कहा की ऐसे प्रोग्राम होते रहने चाहिए ऐसे मंच से प्रतिभाओ को आगे लाने हेतु संस्था अच्छा कार्य कर रही है





जोधपुर के जाने-माने संगीत से जुड़े हुए कार्यक्रम मे सहयोगी संस्थाओ मे साँवरिया के संस्थापक कैलाश चंद्र लढा , पुलिस पब्लिक प्रेस,  गिटार वर्ल्ड, जेम्स एंड आर्ट प्लाजा, रीगेंट इंस्टिट्यूट, एनएसएस सिक्योरिटीज, जोगमाया जेवेलर्स, राज एजेंसी, विक्की टेडर्स, डायनामिक प्रिंटर्स तरुण सोटवाल , मेहता इंवेस्टमेंट्स, आर जे  विजय मनोरिया, अशोक टेंट हाउस आदि के संचालक, सोनू जेठवानी, निर्मल सिंघवी, डॉ. सुधा व्यास, वीरेंद्र कछवाह, संगीतकार श्रीमती नीलम सिंह, तरुण सिंह, विमल सोनी, एडवोकेट महेंद्र छंगाणी, गुलाब सिंह एवं कई गणमान्य नागरिक विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित थे सभी को मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया,

मीडिया से कई पत्रकार पधारे और कार्यक्रम का लाइव कवरेज किया, रमेश जी सारस्वत एवं अश्विनी जी, अलंकार जी आदि ने कार्यक्रम  की सराहना की

इस ऐतिहासिक इवेंट की सबसे मुख्य बात यह थी की इतने बड़े ऐतिहासिक इवेंट में छोटे से छोटे सहयोगी को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया जिसमे महिला पीजी विद्यालय के रखवाले , मिर्चीबड़े वाले, चाय वाले, हलवाई, टेंट हाउस वाले, साउंड वाले, कैमरा वाले, डेकोरेशन वाले आदि सभी के कर्मचारियों को मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया

अंत में संस्कारी इवेंट के आयोजक अभिषेक शर्मा वंदना शर्मा ने  व साँवरिया के संस्थापक कैलाश चंद्र लढा ने सभी का आभार व् धन्यवाद अर्पित किया और सभी उम्र के बच्चे बड़े बूढ़ों आदि ने मंच पर मिलकर मित्रता दिवस पर बधाई दी जमकर डांस व एन्जॉय किया





गुरुवार, 3 अगस्त 2023

अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ...

अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ...
थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना

मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ...
थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...

मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है.....

बकरे का,
गाय का,
भेंस का,
ऊँट का,
सुअर,
हिरण का,
तीतर का,
मुर्गे का,
हलाल का,
बिना हलाल का,
ताजा बकरे का,
भुना हुआ,
छोटी मछली,
बड़ी मछली,

हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....

स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗
स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।

जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं...

उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?

कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?
या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?

डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !

बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??
जिसे काटा गया होगा ?
जो कराहा होगा ?
जो तड़पा होगा ?
जिसकी आहें निकली होंगी ?
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?

कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..❓

क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓

क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..❓

धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।

कभी सोचा ...!!!
क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?

किसे ठग रहे हो ?
भगवान को ?
अल्लाह को ?
जीसस को?
या खुद को ?

मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!
नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!

झूठ पर झूठ....
...झूठ पर झूठ।। #veg #animallovers #nonveg

function disabled

Old Post from Sanwariya