देवी-देवताओं
का स्थान होने के कारण कुल्लू जिला को देवभूमि माना जाता है। जिला
मुख्यालय के साथ लगते पर्वत पर स्थित खराहल घाटी है। घाटी की चोटी पर स्थित
भोलेनाथ का मंदिर। इस मंदिर को बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। यह
जिला के प्रमुख देवस्थलों में से एक है। यहां पहुंचकरश्रद्धालुओं को
प्रकृति काखूबसूरत नजारा भी देखने को मिलता है। इस नजारे को देखकर एकदम
कश्मीर का एहसास हो जाता है।
यूं तो इस स्थल पर सालभर स्थानीय लोगों और
देशी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन श्रावण माह में यहां
एक विशाल मेले का आयोजन होता है। श्रावण महीने में यहां अच्छी खासी भीड़
रहती है। शिवरात्रि को भी यहां विशेष आयोजन होता है। इस दिन भोलेनाथ के साथ
बर्फ के भी दर्शन हो जाएं तो दृश्य नयनाभिराम हो जाता है।
लोककथा के
अनुसार कालांतर में जालंधर नाम का एक दैत्य था, जिसे सागर पुत्र भी कहते
हैं। उस राक्षस ने अपने तप से सृष्टि के रचयिता आदि ब्रहृम को जीत लिया था
और अपने बल से जग के पालनहार विष्णु को भी बंदी बना लिया था व सभी देवताओं
को पराजित कर त्रिलोक में उत्पात मचा रखा था। सभी उससे भयभीत थे।दैत्य
त्रिलोक का स्वामी बनना चाहता था। कहते हैं किइसी स्थान पर उसका शिवजी
सेभयंकर युद्ध हुआ था और भोलेनाथ ने उसे खत्म कर सभीदेवताओं को उसके चंगुल
से मुक्त करवाया था। जिस गदा से शिवजी ने उस दैत्य का वधकिया था वह यहीं
रखी गई और पिंडी के रूप में परिवर्तित हो गई, जो आज भी मौजूद है। इस विषत
गदा को निर्विष करने के लिए इंद्रदेव ने आकाशीय बिजली गिराई। आज भी कुछ
वर्षो के अंतराल में जब उक्त पिंडी पर बिजली गिरती है तो यह टुकड़े-टुकड़े
हो जाती है।इसे जोड़ने के लिए मक्खन काइस्तेमाल होता है और शायद यह भी कारण
है कि इसी वजह से इसका नाम बिजली महादेव पड़ा है।
यूं तो इस स्थल पर सालभर स्थानीय लोगों और देशी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन श्रावण माह में यहां एक विशाल मेले का आयोजन होता है। श्रावण महीने में यहां अच्छी खासी भीड़ रहती है। शिवरात्रि को भी यहां विशेष आयोजन होता है। इस दिन भोलेनाथ के साथ बर्फ के भी दर्शन हो जाएं तो दृश्य नयनाभिराम हो जाता है।
लोककथा के अनुसार कालांतर में जालंधर नाम का एक दैत्य था, जिसे सागर पुत्र भी कहते हैं। उस राक्षस ने अपने तप से सृष्टि के रचयिता आदि ब्रहृम को जीत लिया था और अपने बल से जग के पालनहार विष्णु को भी बंदी बना लिया था व सभी देवताओं को पराजित कर त्रिलोक में उत्पात मचा रखा था। सभी उससे भयभीत थे।दैत्य त्रिलोक का स्वामी बनना चाहता था। कहते हैं किइसी स्थान पर उसका शिवजी सेभयंकर युद्ध हुआ था और भोलेनाथ ने उसे खत्म कर सभीदेवताओं को उसके चंगुल से मुक्त करवाया था। जिस गदा से शिवजी ने उस दैत्य का वधकिया था वह यहीं रखी गई और पिंडी के रूप में परिवर्तित हो गई, जो आज भी मौजूद है। इस विषत गदा को निर्विष करने के लिए इंद्रदेव ने आकाशीय बिजली गिराई। आज भी कुछ वर्षो के अंतराल में जब उक्त पिंडी पर बिजली गिरती है तो यह टुकड़े-टुकड़े हो जाती है।इसे जोड़ने के लिए मक्खन काइस्तेमाल होता है और शायद यह भी कारण है कि इसी वजह से इसका नाम बिजली महादेव पड़ा है।
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