यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

आज हम और आप कम्पुयटरी युग के हिसाब से परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के योग को स्वदेशी विचारों में समझने की कोशिश करेंगे।

आज हम और आप कम्पुयटरी युग के हिसाब से परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के योग को स्वदेशी विचारों में समझने की कोशिश करेंगे।
 
कम्पुयटर को मुख्य रूप से दो प्रमुख बातें हमारे समझने में सहयोग करती हैं
1---हार्ड्वेयर
2---सोफ़्टवेयर
कम्पुयटर पढ़ाई भी इन दो पहलूओं के इर्द-गिर्द घुमती दिखाई देती है।
हार्ड्वेयर उन कम्पुयटर पार्टस को कहते हैं जो हाथ से छुए जा सकते हैं अर्थात जो ठोस रुप में होते हैं और जो स्थान घेरते हैं और वजन रखते हैं।जैसे :--स्क्रीन, स्पीकर,प्रोससैर आदि।हम कह सकते हैं कि हार्डवेयर कम्पुटर का ढ़ाँचा है बेस है जैसे मानव का कंकाल ।
सोफ़्टवेयर कम्पुयटर में अहम भूमिका निभाता है आप को मैं सरल शब्दों में कहूँ तो जैसे मानव शरीर में जान का स्थान है वही कम्पुयटर में सोफ़्टवेयर का है।जैसे बिना जान के मानव का ढ़ाँचा मुर्दा कहलाता है उसी तरह कम्पुयटर भी बिना सोफ़्टवेयर के मुर्दा ही होता है।
सोफ़्टवेयर को हम इस तरह परिभाषित कर सकते हैं कि जैसे वायु जिसे हम छू नहीं सकते हैं पर महसूस कर सकते हैं।इनका वजन नहीं होता है,न ही ये ठोस रुप में होते हैं और अगर सोफ़्ट की हम हिन्दी बनाएं तो बनेगी ---कोमल
जब हम हार्डवेयर और सोफ़्टवेयर को मिला देते हैं तो कम्पुयटर जीवित हो उठता है। जैसे जान शरीर में कार्य करती है जान है तो जहान है।
अब हम मूल विषय पर आते हैं---------------------------------------------------------------------------------------------योग को भी हम दो पहलू में बाँट कर समझने की कोशिश करेंगे।
1---व्यायाम
2—प्राणायाम
1-- व्यायाम ये एक ऐसी विधि है जिसके नित्य रोज करने से हम अपने हार्डवेयर को ठीक रख सकते हैं,व्यायाम को हम अंग्रेजी भाषा में एक्सैरसाईज भी कहते हैं और आज के हम इण्डियन लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। मेरे शब्दों में व्यायाम का सम्बन्ध हार्डवेयर से है हमारा बाहरी दिखाई देने वाला मानव शरीर अंगीय ढ़ाँचा जिसे मैं हार्डवेयर कह रहा हूँ इसे हम व्यायाम करके सही रख सकते हैं । आजकल बहुत सारे नवयुवकों ने जिम ज्वाँईन कर रखे हैं और बाहरी हार्डवेयर को इसके सहारे से मजबूत और सुडोल बनाने की चेष्टा करते हैं। पहले जमाने में व्यायाम शालाएं होती थी जिनमें युवक दण्ड लगाते थे और बैठक लगाते थे आसन करते थे जिन्हें हम योगासन के नाम से जानते हैं।
लेकिन यह सब हमारे बाहरी अंगों को ही सहयोग करता है इसकी सहायता से हम और आप अपने बाहरी ढ़ाँचे को ही स्वस्थ और मजबूत रख सकते है।
2—प्राणायाम ये एक ऐसा अदभूत और इश्वरीय विज्ञान है जिसका सम्बन्ध हमारे शरीर के सोफ़्टवेयर से है। आप समझ गये होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ? हमारे मानव शरीर में कम्पुयटर की ही तरह से कुछ सोफ़्टवेयर जैसा है जिसे हम छु नहीं सकते हैं और उस सोफ़्टवेयर पर हार्डवेयर को मरम्मत करने वाले साधन काम नहीं आते हैं और जो कोमल होते हैं,सोफ़्ट होते हैं।
मैं आप को साफ़ कर देना चाहता हूँ कि ये मानव शरीर सोफ़्टवेयर के नाम इस प्रकार हैं:----दिमाग,फ़ेफ़ड़े,गुर्दे,आँतें,लीवर,दिल,बच्चादानी
ये इस प्रकार के अंग हैं जिनको हम छू नहीं सकते हैं और कोमल हैं इसलिए मैने इन्हें सोफ़्टवेयर की संज्ञा दी है।कोई भी जिम प्रक्रिया या व्यायाम प्रक्रिया इन अंगों को अभ्यास देकर मरम्मत देने का कार्य नहीं कर सकती है,केवल मात्र ये शक्ति प्राणायाम में है ।
अब आप और हम प्राणायाम की कुछ विशेष क्रियाओं के बारे में विचार करते हैं।
कपाल भांति----- इस योग क्रिया के करने के ढ़ंग को आप ध्यान से समझेंगे तो पाएंगे कि, जी ये तो सच में हमारे सोफ़्टवेयर को अभ्यास देकर मरम्मत प्रदान करने का कार्य करती हुई नजर आ रही है।जब हम कपाल भांति करते हैं तो हम इस तरह से शुरुवात करते हैं कि जैसे नाक में मक्खी घुस गई हो और उसे जोर से बाहर फ़ेंकना है तो जैसे ही आप ऐसा करते हैं तो आप के जन्नांगो से लेकर आपके दिमाग तक एक झटका लगता है जो हमारे सभी सोफ़्टवेयरों को अभ्यास कराता महसूस होता है। आप करेंगे तो आप भी महसूस कर पाएंगे। एक बात तो निश्चित है कि इस योग क्रिया के इलावा पूरी दूनिया में कोई उपाय नहीं है जो हमारे सोफ़्टवेयर को मसाज दे सके । शायद आपको मेरी इस सरल भाषा के कारण प्राणायाम की महत्वता समझने में सहायता हो रही होगी। इस योग के करने से ह्रदय आघात,गुर्दे असफ़ल,फ़ेफ़ड़े निष्क्रिय,अपाचन,आंत्र रोग,सैक्स समस्याएं आदि बीमारियां होती ही नहीं हैं।
2—लोम-विलोम ----इस योग क्रिया के करने के ढ़ंग को आप ध्यान से समझेंगे तो पाएंगे कि ये क्रिया हमारे उन सोफ़्टवेयर को मरम्मत कर रही है जिसे किसी अन्य तरीके से इतने सरल स्वभाव में लाभ नहीं पहुंचाया जा सकता है।
जब हम इस प्रक्रिया को करना आरम्भ करते हैं तो सबसे पहले हम एक नाक का सुराक अपने हाथ के अंगूठे से बन्द कर लेते हैं और बिना बन्द सुराक से स्वास को अन्दर खेंचते हैं और फ़िर 3 सैकण्ड के बाद दूसरे से आहिस्ता समभाव से छोड़ते हैं और अबकी बार दुसरे सुराक को बन्द करते हैं और जिस से स्वास छोड़ा था उस से खेंचते है ऐसा लगातार करते रहना ही लोम-विलोम योग क्रिया का होना होता है।
अब हम बात करते हैं कि ये योग क्रिया हमारे लिए क्या करती है? जब हम इस क्रिया को करते हैं तो हमारे फ़ेफ़ड़ों में आक्सीजन प्रचुर मात्रा में पहुंच जाती है और साथ-साथ हमारे फ़ेफ़ड़ों की आक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता भी बढ़ती है ,ज्यादा आक्सीजन हमारे खौन में मिलती है और जिससे हमारे जीन मरम्मत होने का कार्य होने लगता है। ध्यान रहे कि हम सारा दिन और रात सामान्य तौर पर बहुत कम आक्सीजन ग्रहण करते हैं जो हमारे शरीर के अन्दरुनी क्रिया कलाप के लिए कम पड़ती है। जिस कारण हमारे खौन को पूरी आक्सीजन नहीं मिल पाती है इसलिए हमारे जीन विकृता को धारण करने लगते हैं जिसके कारण हमें कैन्सर और दिमागी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। जब हमारे शरीर को पूरी आक्सीजन मिलने लगती है तो हमारे बहुत से रोग दूर होने लगते हैं और हमारे अनेक सोफ़्टवेयरों को लाभ पहुंचने लगता है।
3------बस दोस्तो मैं बात तो और योग क्रियाओं पर भी कर सकता हूँ पर लेख बहुत लम्बा हो जायेगा । आप समझ ही गये होंगे कि योग का हमारे शरीर के लिए क्या महत्व है और हमारे सोफ़्टवेयर को केवल एक ही विज्ञान सहायता दे सकता है और वह है योगगुरु बाबा रामदेव जी का योग।लेख अच्छा लगे तो पेज लाईक करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

function disabled

Old Post from Sanwariya