आज
के समय में व्यक्ति अपने खान-पान और अनियमित जीवनशैली के कारण अपनेआप पर
ध्यान नहीं दे पाता, नतीजन वह कई बीमारियों का शिकार हो जाता है और इन
बीमारियों में कब्ज, थकान होना, नींद न आना इत्यादि है। इनके इलाज के लिए
व्यक्ति दवाईयों का लगातार सेवन करता रहता है, जिससे वह कई और बीमारियों का
शिकार हो जाते है। लेकिन यदि हम थोड़ी सी सावधानी बरतकर और आयुर्वेद को
अपनाए तो अपने स्वाहस्य्ले की सही तरह से देखभाल
कर ही पाएंगे साथ ही शरीर का कायाकल्प भी करने में आसानी होगी। त्रिफला
ऐसी ही आयुर्वेदिक औषधी है जो शरीर का कायाकल्प कर सकती है। त्रिफला के
सेवन से बहुत फायदें हैं। स्वस्थ रहने के लिए त्रिफला चूर्ण महत्वपूर्ण
है। त्रिफला सिर्फ कब्ज दूर करने ही नहीं बल्कि कमजोर शरीर को एनर्जी देने
में भी प्रयोग हो सकता है। बस जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की |
सेवन विधि - सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें | इस नियम का कठोरता से पालन करें |
यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले | हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास |
१- ग्रीष्म ऋतू - १४ मई से १३ जुलाई तक त्रिफला को गुड़ १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
२- वर्षा ऋतू - १४ जुलाई से १३ सितम्बर तक इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
३- शरद ऋतू - १४ सितम्बर से १३ नवम्बर तक त्रिफला के साथ देशी खांड १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
४- हेमंत ऋतू - १४ नवम्बर से १३ जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
५- शिशिर ऋतू - १४ जनवरी से १३ मार्च के बीच पीपल छोटी का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
६- बसंत ऋतू - १४ मार्च से १३ मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें | शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये |
इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा , तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी, चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा , पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा,छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा |
दो तोला हरड बड़ी मंगावे |तासू दुगुन बहेड़ा लावे ||
और चतुर्गुण मेरे मीता |ले आंवला परम पुनीता ||
कूट छान या विधि खाय|ताके रोग सर्व कट जाय ||
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरड )+2(बहेड़ा )+3(आंवला )
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफ़ला बनाना है तो :: 20 ग्राम हरड+40 ग्राम बहेडा+60 ग्राम आंवला
अगर साबुत मिले तो तीनो को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना
त्रिफला लेने का सही नियम -
*सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं |क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamin, iron, calcium, micro nutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए |
*सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं |
*रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है |
*रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए |
नेत्र-प्रक्षलन : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।
- कुल्ला करना : त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
- त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
- गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।
- संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
- मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
- मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
- त्रिफला का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।
सावधानी : दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
त्रिफ़ला के तीन घटक::
हरड ********
हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।
त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है
बहेडा *******
बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है
आंवला *******
आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।
सेवन विधि - सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें | इस नियम का कठोरता से पालन करें |
यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले | हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास |
१- ग्रीष्म ऋतू - १४ मई से १३ जुलाई तक त्रिफला को गुड़ १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
२- वर्षा ऋतू - १४ जुलाई से १३ सितम्बर तक इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
३- शरद ऋतू - १४ सितम्बर से १३ नवम्बर तक त्रिफला के साथ देशी खांड १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
४- हेमंत ऋतू - १४ नवम्बर से १३ जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
५- शिशिर ऋतू - १४ जनवरी से १३ मार्च के बीच पीपल छोटी का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
६- बसंत ऋतू - १४ मार्च से १३ मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें | शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये |
इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा , तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी, चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा , पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा,छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा |
दो तोला हरड बड़ी मंगावे |तासू दुगुन बहेड़ा लावे ||
और चतुर्गुण मेरे मीता |ले आंवला परम पुनीता ||
कूट छान या विधि खाय|ताके रोग सर्व कट जाय ||
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरड )+2(बहेड़ा )+3(आंवला )
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफ़ला बनाना है तो :: 20 ग्राम हरड+40 ग्राम बहेडा+60 ग्राम आंवला
अगर साबुत मिले तो तीनो को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना
त्रिफला लेने का सही नियम -
*सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं |क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamin, iron, calcium, micro nutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए |
*सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं |
*रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है |
*रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए |
नेत्र-प्रक्षलन : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।
- कुल्ला करना : त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
- त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
- गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।
- संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
- मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
- मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
- त्रिफला का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।
सावधानी : दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
त्रिफ़ला के तीन घटक::
हरड ********
हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।
त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है
बहेडा *******
बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है
आंवला *******
आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।
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