अकाल मृत्यु से रक्षा करता है धनतेरस का दीपदान
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धनतेरस के दिन खरीदारी में इतने व्यस्त न हो जाएं कि शाम के समय दीपदान करना भूल जाएं। धनतेरस की शाम में दीपदान का बड़ा ही महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि धनतेरस के दिन संध्या के समय दीपदान जरूर करना चाहिए। इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु से बचाव होता है।
इस संदर्भ में कथा है कि, एक बार यमराज ने यमदूतों से कहा लोगों के प्राण हरते समय तुम्हें कभी दुःख हुआ है अथवा नहीं। इस पर यमदूत ने कहा कि एक बार एक राजकुमार के प्राण हरते समय हमें बहुत दुःख हुआ था। राजकुमार की शादी के चार ही दिन हुए थे। राजकुमार की मृत्यु से राजमहल में चित्कार और हाहाकार मच गयी। नववधू का विलाप देखकर हमारा हृदय हमें धिक्कारने लगा। इसके बाद यमदूतों ने यमराज से पूछा कि हे यमदेव कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे प्राणी की अकाल मृत्यु न हो। यमराज ने कहा कि 'जो व्यक्ति धनतेरस के दिन मेरे नाम से दीप जलाकर मुझे स्मरण करेगा उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा।'
यमदीप के संदर्भ में एक अन्य कथा भी प्रचलित है कि, प्राचीन काल में एक हिम नामक राजा हुए। विवाह के कई वर्षों बाद इन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब राजकुमार की कुण्डली देखी तो कहा कि विवाह के चौथे दिन राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी। राजा रानी इस बात को सुनकर दुःखी हो गये। समय बितता गया और राजकुमार की शादी हो गयी। विवाह का चौथा दिन भी आ गया।
राजकुमार की मृत्यु होने के भय से सभी लोग सहमे हुए थे। लेकिन राजकुमार की पत्नी चिंता मुक्त थी। उसे मां लक्ष्मी की भक्ति पर पूरा विश्वास था। शाम होने पर राजकुमार की पत्नी ने पूरे महल को दीपों से सजा दिया। इसके बाद मां लक्ष्मी के भजन गाने लगी। यमदूत जब राजकुमार के प्राण लेने आये तो मां लक्ष्मी की भक्ति में लीन राजकुमार की पतिव्रता पत्नी को देखकर महल में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाये। यमदूतों के लौट जाने पर यमराज स्वयं सर्प का रूप धारण करके महल में प्रवेश कर गये।
सर्प बने यमराज जब राजकुमारी के कक्ष के समाने पहुंचे तब दीपों की रोशनी और लक्ष्मी मां की कृपा से सर्प की आंखें चौंधिया गयी और सर्प बने यमराज राजकुमारी के पास पहुंच गये। राजकुमारी के भजनों में यमराज ऐसे खोये की उन्हें पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गयी। राजकुमार की मृत्यु का समय गुजर जाने के बाद यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा और राजकुमार दीर्घायु हो गया। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से धनतेरस के दिन यमदीप जलाने की परंपरा शुरू हुई।
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धनतेरस के दिन खरीदारी में इतने व्यस्त न हो जाएं कि शाम के समय दीपदान करना भूल जाएं। धनतेरस की शाम में दीपदान का बड़ा ही महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि धनतेरस के दिन संध्या के समय दीपदान जरूर करना चाहिए। इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु से बचाव होता है।
इस संदर्भ में कथा है कि, एक बार यमराज ने यमदूतों से कहा लोगों के प्राण हरते समय तुम्हें कभी दुःख हुआ है अथवा नहीं। इस पर यमदूत ने कहा कि एक बार एक राजकुमार के प्राण हरते समय हमें बहुत दुःख हुआ था। राजकुमार की शादी के चार ही दिन हुए थे। राजकुमार की मृत्यु से राजमहल में चित्कार और हाहाकार मच गयी। नववधू का विलाप देखकर हमारा हृदय हमें धिक्कारने लगा। इसके बाद यमदूतों ने यमराज से पूछा कि हे यमदेव कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे प्राणी की अकाल मृत्यु न हो। यमराज ने कहा कि 'जो व्यक्ति धनतेरस के दिन मेरे नाम से दीप जलाकर मुझे स्मरण करेगा उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा।'
यमदीप के संदर्भ में एक अन्य कथा भी प्रचलित है कि, प्राचीन काल में एक हिम नामक राजा हुए। विवाह के कई वर्षों बाद इन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब राजकुमार की कुण्डली देखी तो कहा कि विवाह के चौथे दिन राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी। राजा रानी इस बात को सुनकर दुःखी हो गये। समय बितता गया और राजकुमार की शादी हो गयी। विवाह का चौथा दिन भी आ गया।
राजकुमार की मृत्यु होने के भय से सभी लोग सहमे हुए थे। लेकिन राजकुमार की पत्नी चिंता मुक्त थी। उसे मां लक्ष्मी की भक्ति पर पूरा विश्वास था। शाम होने पर राजकुमार की पत्नी ने पूरे महल को दीपों से सजा दिया। इसके बाद मां लक्ष्मी के भजन गाने लगी। यमदूत जब राजकुमार के प्राण लेने आये तो मां लक्ष्मी की भक्ति में लीन राजकुमार की पतिव्रता पत्नी को देखकर महल में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाये। यमदूतों के लौट जाने पर यमराज स्वयं सर्प का रूप धारण करके महल में प्रवेश कर गये।
सर्प बने यमराज जब राजकुमारी के कक्ष के समाने पहुंचे तब दीपों की रोशनी और लक्ष्मी मां की कृपा से सर्प की आंखें चौंधिया गयी और सर्प बने यमराज राजकुमारी के पास पहुंच गये। राजकुमारी के भजनों में यमराज ऐसे खोये की उन्हें पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गयी। राजकुमार की मृत्यु का समय गुजर जाने के बाद यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा और राजकुमार दीर्घायु हो गया। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से धनतेरस के दिन यमदीप जलाने की परंपरा शुरू हुई।
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