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बुधवार, 1 अगस्त 2018

कलयुग में ब्राह्मण का श्राप नहीं लगेगा

राधा-कृष्ण विवाह
गर्ग संहिता में राधा रानी की कथा आती है ~ एक बार नंद बाबा बालक कृष्ण को लेकर अपने गोद में खिला रहे हैं। उस समय कृष्ण दो साल सात महीने के थे, उनके साथ दुलार करते हुए वो वृंदावन के भांडीरवन में आ जाते हैं।
एक बड़ी ही अनोखी घटना घटती है। अचानक तेज हवाएं चलने लगती हैं, बिजली कौंधने लगती है, देखते ही देखते चारों ओर अंधेरा छा जाता है और इसी अंधेरे में एक बहुत ही दिव्य रौशनी आकाश मार्ग से नीचे आती है जो नख शिख तक श्रृंगार धारण किये हुए थी।
नंद जी समझ जाते हैं कि ये कोई और नहीं खुद राधा देवी हैं जो कृष्ण के लिए इस वन में आई हैं। वो झुककर उन्हें प्रणाम करते हैं और बालक कृष्ण को उनके गोद में देते हुए कहते हैं कि हे देवी मैं इतना भाग्यशाली हूं कि भगवान कृष्ण मेरी गोद में हैं और आपका मैं साक्षात दर्शन कर रहा हूँ।
भगवान कृष्ण को राधा के हवाले करके नंद जी घर वापस आते हैं तब तक तूफान थम जाता है। अंधेरा दिव्य प्रकाश में बदल जाता है और इसके साथ ही भगवान भी अपने बालक रूप का त्याग कर के किशोर बन जाते हैं। इतने में ही ललिता विशाखा ब्रह्मा जी भी वहाँ पहुँच जाते हैं तब ब्रह्मा जी ने वेद मंत्रों के द्वारा किशोरी किशोर का गंधर्व विवाह संपन्न कराया। सखियों ने प्रसन्नतापूर्वक विवाह कालीन गीत गए आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। फिर देखते ही देखते ब्रह्मा जी सखिया चली गई
कृष्ण ने पुनः बालक का रूप धारण कर लिया और श्री राधिका ने कृष्ण को पूर्ववत उठाकर प्रतीक्षा में खड़े नन्द बाबा की गोदी में सौप दिया इतने में बादल छट गए और नन्द बाबा कृष्ण को लेकर अपने ब्रज में लौट आये। जब कृष्ण जी मथुरा चले गए तो श्री राधा जी अपनी छाया को स्थापित करके स्वयं अंतर्धान हो गईं।
वर्णन आता है उनकी छाया जो शेष रह गई उसी का विवाह 'रायाण' नाम के गोप के साथ हुआ। रायाण श्रीकृष्ण की माता यशोदा जी के सहोदर भाई थे गोलोक में वह श्रीकृष्ण के ही अंश भूत गोप थे रायाण श्री कृष्ण के मामा लगते थे।
पद्म पुराण ने वृषभानु राजा की कन्या राधा जी के 28 नामों से उनका गुणगान किया है :
राधा रासेश्वरी
भागवत वेद रूपी वृक्ष का फल है तो ज्ञान से मीठा .जगत का आधार कृष्ण है और कृष्ण का आधार राधा है परन्तु भागवत में राधा का नाम भी नहीं आया है ।.इसके चार कारण बताये गए हैं ।
शुकदेव की गुरु राधा थी राधा गुरु मंत्र है ।
राधा कृष्ण का आधार है कृष्ण ही राधा है व राधा ही कृष्ण है अर्थात राधा एक महाशक्ति है ।
इनका जन्म नहीं हुआ है राधा अयोनिज है वह कमल से पैदा हुई इसी प्रकार सीता पृथ्वी से तथा रुक्मिणी कमल के पत्तों से कृष्ण की एक ज्योति को भी राधा माना गया है ।
कृष्ण ११ वर्ष की उम्र तक ही वृन्दावन में रहे इसी कारण इस लीला को वात्सल्य लीला कहते हैं ।
कृष्ण का राधा के प्रति प्रेम देख कर कहा गया है कि -
राधा तुम बड़भागिनी , कौन तपस्या कीं ।
तीन लोक तारण तरन , इसमें मेक न मीन ॥
वृन्दावन सो वन नहीं , नन्द गाँव सो गाँव
राधा जैसी भक्ति नहीं , मित्र सुदामा जान ॥
बाल्यावस्था में राधा व कृष्ण बिछड़ते हैं , कृष्ण ने राधा को केवल बांसुरी दी थी जिसे उसने जीवन पर्यंत यादगार के रूप में अपने पास रखी । वापिस कब मिलना होगा ऐसा पूछने पर कृष्ण भी बता नहीं पाए ...इसलिए कहा है :-
बंशी दिए जात हूँ राधा मेरे समान ।
अबके बिछड़े कब मिले कह न सके भगवान्॥
राधा -कृष्ण का बचपन का अमर वात्सल्य प्रेम था
राम १२ कला के अवतार थे तो कृष्ण 16 कला के अवतार थे । कृष्ण ने सान्दीपन गुरु से उजैन में शिक्षा ली तथा गुरु के मारे हुए पुत्र को पुनः जीवित किया । कृष्ण ने सिर्फ ६४ दिन तक की शिक्षा प्राप्त कर ६४ विद्याएँ सीखी
कृष्ण योगीराज थे मोर भी योगी होता है । उसके आंसुओं को पीकर ही मोरनी गर्भवती होती है । इसी कारण योगी मोर की पंखुड़ी योगिराज कृष्ण धारण करते थे । कृष्ण 4वर्ष गोकुल में व ११ वर्ष ५५ दिन वृन्दावन में रहे ।
कृष्ण ने वृन्दावन में चार वस्तुओं का त्याग किया था ।
कृष्ण ने कभी मुंडन नहीं कराया
चरण पादुकाएं नहीं पहनी अर्थात नंगे पाँव घूमे
कभी शस्त्र नहीं लिया
कभी सिले वस्त्र नहीं पहने
कृष्ण के वृन्दावन में पैदल घूमने के कारण ही आज उस धाम की मिट्टी को सर पर लगाते हैं ।पवित्र मानते हैं वृन्दावन की सेवा कुंज में आज भी सूर्यास्त के बाद नर वानर पशु व पक्षी नहीं जाते हैं ।इस सेवा कुंज की विशेषता है कि इसमें न तो फल लगते हैं न ही फूल इसमें पतझड़ का असर भी नहीं होता .।
भागवत : सतयुग में विष्णु का ध्यान त्रेता में यज्ञ का द्वापर में कृष्ण- सेवा का तथा कलयुग में नाम- जप का महत्व बताया गया है ।
कलयुग में मानसिक पुण्य का फल मिलता है तथा मानसिक पाप का फल नहीं मिलता । राजा परीक्षित को सर्प डसने का शाप जब श्रृंग ऋषि के पुत्र ने दिया तो श्रृंग ऋषि ने नाराज होकर अपने पुत्र को श्राप दिया कलयुग में ब्राह्मण का श्राप नहीं लगेगा । कृष्ण स्वयं भी शापित थे .

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