हरि सुमिरन के लिये समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है।
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एक बार महर्षि नारद किसी नगर से होकर जा रहे थे। एक वैश्य ने उनका आतिथ्य सत्कार किया। उसकी श्रद्धा - भक्ति देख कर उन्होंने उसका एक गिलास दुग्ध पी लिया। वेश्य ने पूछा -
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एक बार महर्षि नारद किसी नगर से होकर जा रहे थे। एक वैश्य ने उनका आतिथ्य सत्कार किया। उसकी श्रद्धा - भक्ति देख कर उन्होंने उसका एक गिलास दुग्ध पी लिया। वेश्य ने पूछा -
महाराज, कहाँ से आ रहे हो?
नारद जी ने कहा - भगवान् कृष्ण के धाम से।
वैश्य ने पूछा - महाराज, अब यहाँ पधारोगे?
नारद जी ने कहा - थोड़ा मृत्युलोक में घूम कर फिर भगवान् कृष्ण के धाम लौट जायेंगे।
वैश्य ने प्रार्थना की - महाराज, लौटते समय हमें भी भगवान् कृष्ण के धाम लेते चलें तो बड़ी कृपा होगी।
नारद ने कहा - अच्छा ले, चलेंगे।
कुछ् दिनों के पश्चात् नारद जी घूम - फिर कर लौटे तो पूछा - सेठजी, भगवान् कृष्ण के धाम चलोगे?
सेठजी ने कहा - महाराज, चलना तो अवश्य है पर अभी ये लड़के बहुत छोटे नासमझ हैं। ये लोग गृहस्थी का काम संभाल नहीं सकेंगे। थोड़े दिन में ये काम - काज सँभालने योग्य हो जायँ तब चलेंगे।
नारद जी चले गये। थोड़े दिन में वे फिर लौटे। पूछा - सेठजी अब चलोगे?
सेठजी ने कहा - हाँ महाराज, अब तो लड़का बड़ा हो गया है, काम - काज भी कुछ देखने - सुनने लगा है, परन्तु यह अभी अपनी पूरी जिम्मेदारी नहीं समझता। अगले वर्ष इसका विवाह कर दें फिर निश्चिन्त हो जायँ तब चलेंगे। चार वर्ष बाद नारद जी। फिर लौटे तो दुकान पर लड़के से पूछा कि सेठ जी कहाँ हैं? लड़के ने कहा - महाराज, क्या बतायें। एक ही तो हमारे घर में पिता जी सब सँभाले हुए थे, उनका शरीर छूट गया, तब से हम तो बड़ी परेशानी में हैं।
नारद जी ने ध्यान लगा कर देखा तो मालूम हुआ कि सेठजी मर कर बैल हुए हैं और इसी घर में जनमे हैं। नारद जी बैल के पास गये और कहा कि सेठ जी अब तो मनुष्य शरीर भी छूट गया, अब भगवान् कृष्ण के धाम चलोगे ना?
बैल ने कहा - महाराज! आपकी बड़ी कृपा है। मैं भी चलने को तैयार हूँ, पर सोचता हूँ कि घर के और बैल इतने सुस्त हैं कि आगे मैं न चलूँ तो कुछ काम ही न हो। कुछ नये बैल आने वाले हैं तब तक मैं इनका काम संभाल दूं, फिर आप कृपा करना मैं अवश्य चलूँगा।
नारद जी फिर दो - चार वर्ष बाद लौटे। उन्हें तो अपना वचन पूरा करना था और वैश्य का एक गिलास् दूध चुकाना था, इसीलिये बार - बार उसके पास आते थे। इस बार आये तो बैल नहीं दिखा। लड़कों से पूछा कि तुम्हारे यहाँ जो बूढ़ा बैल था वह कहाँ गया? लड़कों ने दुःखी होकर कहा कि महाराज! बड़ा मेहनती बैल था। सब से आगे चलता था। जब से मर गया है तब से वैसा दूसरा बैल नहीं मिला।
नारद जी ने ध्यान करके देखा तों मालूम हुआ कि इस बार सेठ जी कुत्ता होकर अपने ही घर के आगे पहरा दे रहे हैं।
कुत्ते के पास जाकर नारद जी ने कहा - कहो सेठ जी! क्या समाचार है? तीन जन्म तों हो गया। अब भगवान् कृष्ण के धाम के सम्बन्ध में क्या विचार है?
कुत्ता रुपी सेठ ने कहा - महाराज! आप बड़े दयालु हैं। एक ओर मैं आपकी दयालुता देखता हूँ और दूसरी ओर लड़कों का आलस्य और बदइन्तजामी। महाराज! ये इतने आलसी हो गये हैं हि मैं दरवाजे पर न रहूँ तो दिन में ही लोग इन्हें लूट ले जाँय। इसलिये सोचता हुँ कि जब तक हूँ, तब तक इनकी रक्षा रहे तो अच्छा। थोड़े दिन में जरूर चलूँगा।
नारद जी फिर लौट गये। चार - छःह वर्ष में फिर आये तो कुत्ता दरवाजे पर नहीं दिखा। लड़कों से पूछा तो पता चला कि वह मर गया है। ध्यान लगाकर देखा तो मालूम हुआ कि इस बार सेठजी सर्प होकर उसी घर के तलघर में कोष की रक्षा करते हुए बैठे हैं।
नारद जी वहाँ पहुँचे। कहा - कहिये सेठ जी! यहाँ आप कैसे बैठे हैं? भगवान् कृष्ण के धाम चलने का समय अभी आया कि नहीं?
सर्प ने कहा - महाराज! ये लड़के इतने फिजूलखर्ची हों गये हैं कि मैं न होता तो अब तक खजाना खाली कर देते। सोचता हूँ कि मेरी गाढ़ी कमाई का पैसा है, जितने दिन रक्षित रह जाय उतना ही अच्छा है। इसीलिये यहाँ मेरी आवश्यकता है, नहीं तो मैं तो चलने को तैयार ही हूँ।
नारद जी फिर निराश होकर लौटे। बाहर आकर उन्होंने बड़े लड़के को बुलाकर कहा कि तुम्हारे खजाने में एक भयंकर कालरूप सर्प बैठा हुआ है। ऐसा न हो कि कभी किसी को हानि पहुँचा दे। इसलिये उसे मारकर भगा दो। ऐसा मारना कि उसके सर में लाठी न लगे। सर में लाठी पड़ने से वह मर जायगा। मरने न पावे और कूट - पीट कर उसको खजाने से बाहर कर दो।
महात्मा का आदेश पाकर लड़कों ने वैसा ही किया। सारे शरीर में लाठियों की मार लगाकर उसको लस्त कर दिया और घर के बाहर फेंक आये।
वहाँ जाकर नारद जी उससे मिले और कहा - कहिये सेठ जी! लड़कों ने तो खूब पुटपुटी लगाई। अभी आपका मन भरा या नहीं? फिर वापिस जाकर घर की रक्षा करोगे या अब चलोगे भगवान् कृष्ण के धाम ? सर्प ने कहा - हाँ महाराज! अब चलेंगे।
तात्पर्य यह है कि गृह में, पुत्र में, धन में, स्त्री आदि में प्रेम हो जाने पर कई जन्म तक वह प्रेम - बन्धन शिथिल नहीं होता और कई जन्मों तक उसी के कारण अनेक यातनायें सहनी पड़ती हैं। इसीलिये कहा जाता है कि संसार में प्रेम मत फँसाओ। यहाँ प्रेम करोगे तो कई जन्म तक रोना पड़ेगा ।
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