वाराणसी - एक यंत्र है, यह एक असाधारण यंत्र है।
ऐसा यंत्र इससे पहले या फिर इसके बाद कभी नहीं बना।
इसे केवल एक नगर समझने का भूल न करना।
मानव शरीर में जैसे नाभी का स्थान है, वैसे ही पृथ्वी पर वाराणसी का स्थान है।
शरीर के प्रत्येक अंग का संबंध नाभी से जुड़ा है और पृथ्वी के समस्त स्थान का संबंध भी वाराणसी से जुड़ा है।
इस यंत्र का निर्माण एक ऐसे विशाल और भव्य मानव शरीर को बनाने के लिए किया गया, जिसमें भौतिकता को अपने साथ लेकर चलने की मजबूरी न हो, शरीर को साथ लेकर चलने से आने वाली जड़ता न हो और जो हमेशा सक्रिय रह सके... और जो सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपने आप में समा ले।
काशी की रचना सौरमंडल की तरह की गई है, क्योंकि हमारा सौरमंडल कुम्हार के चाक की तरह है।
आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं।
इसमें एक खास तरीके से मंथन हो रहा है। यह घड़ा यानी मानव शरीर इसी मंथन से निकल कर आया है, इसलिए मानव शरीर सौरमंडल से जुड़ा हुआ है और ऐसा ही मंथन इस मानव शरीर में भी चल रहा है।
सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं।
अगर आप इन 108 चक्रों को विकसित कर लेंगे, तो बाकी के चार चक्र अपने आप ही विकसित हो जाएंगे।
हम उन चक्रों पर काम नहीं करते।
शरीर के 108 चक्रों को सक्रिय बनाने के लिए 108 तरह की योग प्रणालियां है।
पूरे काशी यनी बनारस शहर की रचना इसी तरह की गई थी। यह पांच तत्वों से बना है, और आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि शिव के योगी और भूतेश्वर होने से, उनका विशेष अंक पांच है।
इसलिए इस स्थान की परिधि पांच कोश है। इसी तरह से उन्होंने सकेंद्रित कई सतहें बनाईं।
यह आपको काशी की मूलभूत ज्यामिति बनावट दिखाता है।
गंगा के किनारे यह शुरू होता है, और ये सकेंद्रित वृत परिक्रमा की व्याख्यां दिखा रहे हैं।
सबसे बाहरी परिक्रमा की माप 168 मील है।
यह शहर इसी तरह बना है और विश्वनाथ मंदिर इसी का एक छोटा सा रूप है।
असली मंदिर की बनावट ऐसी ही है। यह बेहद जटिल है। इसका मूल रूप तो अब रहा ही नहीं।
वाराणसी को मानव शरीर की तरह बनाया गया था
यहां 72 हजार शक्ति स्थलों यानी मंदिरों का निर्माण किया गया।
एक इंसान के शरीर में नाडिय़ों की संख्या भी इतनी ही होती है। इसलिए उन लोगों ने मंदिर बनाये, और आस-पास काफी सारे कोने बनाये - जिससे कि वे सब जुड़कर 72,000 हो जाएं।
यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि चंद्र कैलंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं, 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाएं - इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए।
तो यह नाडिय़ों की संख्या के बराबर है।
यह पूरी प्रक्रिया एक विशाल मानव शरीर के निर्माण की तरह थी।
इस विशाल मानव शरीर का निर्माण ब्रह्मांड से संपर्क करने के लिए किया गया था।
इस शहर के निर्माण की पूरी प्रक्रिया ऐसी है, मानो एक विशाल इंसानी शरीर एक वृहत ब्रह्मांडीय शरीर के संपर्क में आ रहा हो।
काशी बनावट की दृष्टि से सूक्ष्म और व्यापक जगत के मिलन का एक शानदार प्रदर्शन है।
कुल मिलाकर, एक शहर के रूप में एक यंत्र की रचना की गई है।
रोशनी का एक दुर्ग बनाने के लिए, और ब्रह्मांड की संरचना से संपर्क के लिए, यहां एक सूक्ष्म ब्रह्मांड की रचना की गई।
ब्रह्मांड और इस काशी रुपी सूक्ष्म ब्रह्मांड इन दोनों चीजों को आपस में जोडऩे के लिए 468 मंदिरों की स्थापना की गई।
मूल मंदिरों में 54 शिव के हैं, और 54 शक्ति या देवी के हैं। अगर मानव शरीर को भी हम देंखे, तो उसमें आधा हिस्सा पिंगला है और आधा हिस्सा इड़ा।
दायां भाग पुरुष का है और बायां भाग नारी का।
यही वजह है कि शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में भी दर्शाया जाता है - आधा हिस्सा नारी का और आधा पुरुष का।
यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि चंद्र कैलंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं, 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाएं - इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए।
आपके स्थूल शरीर का 72 फीसदी हिस्सा पानी है, 12 फीसदी पृथ्वी है, 6 फीसदी वायु है और 4 फीसदी अग्नि। बाकी का 6 फीसदी आकाश है।
सभी योगिक प्रक्रियाओं का जन्म एक खास विज्ञान से हुआ है, जिसे भूत शुद्धि कहते हैं।
इसका अर्थ है अपने भीतर मौजूद तत्वों को शुद्ध करना।
अगर आप अपने मूल तत्वों पर कुछ अधिकार हासिल कर लें, तो अचानक से आपके साथ अद्भुत चीजें घटित होने लगेंगी।
मैं आपको हजारों ऐसे लोग दिखा सकता हूं, जिन्होंने बस कुछ साधारण भूतशुद्धि प्रक्रियाएं करते हुए अपनी बीमारियों से मुक्ति पाई है।
इसलिए इसके आधार पर इन मंदिरों का निर्माण किया गया। इस तरह भूत शुद्धि के आधार पर इस शहर की रचना हुई।
यहां एक के बाद एक 468 मंदिरों में सप्तऋषि पूजा हुआ करती थी और इससे इतनी जबर्दस्त ऊर्जा पैदा होती थी, कि हर कोई इस जगह आने की इच्छा रखता था।
भारत में जन्मे हर व्यक्ति का एक ही सपना होता था - काशी जाने का।
यह जगह सिर्फ आध्यात्मिकता का ही नहीं, बल्कि संगीत, कला और शिल्प के अलावा व्यापार और शिक्षा का केंद्र भी बना।
इस देश के महानतम ज्ञानी काशी के हैं।
शहर ने देश को कई प्रखर बुद्धि और ज्ञान के धनी लोग दिए हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, 'पश्चिमी और आधुनिक विज्ञान भारतीय गणित के आधार के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता था।’ यह गणित बनारस से ही आया।
इस गणित का आधार यहां है।
जिस तरीके से इस शहर रूपी यंत्र का निर्माण किया गया, वह बहुत सटीक था।
ज्यामितीय बनावट और गणित की दृष्टि से यह अपने आप में इतना संपूर्ण है, कि हर व्यक्ति इस शहर में आना चाहता था। क्योंकि यह शहर अपने अन्दर अद्भुत ऊर्जा पैदा करता था।
वाराणसी का इतिहास
यह हमारी बदकिस्मती है कि हम उस समय नहीं थे जब काशी का गौरव काल था। हजारों सालों से दुनिया भर से लोग यहां आते रहे हैं। गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहीं दिया था।
गौतम के बाद आने वाले चीनी यात्री ने कहा, ‘नालंदा विश्वविद्यालय काशी से निकलने वाली ज्ञान की एक छोटी सी बूंद है।’ और नालंदा विश्वविद्यालय को अब भी शिक्षा का सबसे महान स्थान माना जाता है।
आज भी यह कहा जाता है कि ‘काशी जमीन पर नहीं है। वह शिव के त्रिशूल के ऊपर है।’ लोगों ने एक भौतिक संरचना बनाई, जिसने एक ऊर्जा संरचना को उत्पन्न किया।
ऐसा यंत्र इससे पहले या फिर इसके बाद कभी नहीं बना।
इसे केवल एक नगर समझने का भूल न करना।
मानव शरीर में जैसे नाभी का स्थान है, वैसे ही पृथ्वी पर वाराणसी का स्थान है।
शरीर के प्रत्येक अंग का संबंध नाभी से जुड़ा है और पृथ्वी के समस्त स्थान का संबंध भी वाराणसी से जुड़ा है।
इस यंत्र का निर्माण एक ऐसे विशाल और भव्य मानव शरीर को बनाने के लिए किया गया, जिसमें भौतिकता को अपने साथ लेकर चलने की मजबूरी न हो, शरीर को साथ लेकर चलने से आने वाली जड़ता न हो और जो हमेशा सक्रिय रह सके... और जो सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपने आप में समा ले।
काशी की रचना सौरमंडल की तरह की गई है, क्योंकि हमारा सौरमंडल कुम्हार के चाक की तरह है।
आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं।
इसमें एक खास तरीके से मंथन हो रहा है। यह घड़ा यानी मानव शरीर इसी मंथन से निकल कर आया है, इसलिए मानव शरीर सौरमंडल से जुड़ा हुआ है और ऐसा ही मंथन इस मानव शरीर में भी चल रहा है।
सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं।
अगर आप इन 108 चक्रों को विकसित कर लेंगे, तो बाकी के चार चक्र अपने आप ही विकसित हो जाएंगे।
हम उन चक्रों पर काम नहीं करते।
शरीर के 108 चक्रों को सक्रिय बनाने के लिए 108 तरह की योग प्रणालियां है।
पूरे काशी यनी बनारस शहर की रचना इसी तरह की गई थी। यह पांच तत्वों से बना है, और आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि शिव के योगी और भूतेश्वर होने से, उनका विशेष अंक पांच है।
इसलिए इस स्थान की परिधि पांच कोश है। इसी तरह से उन्होंने सकेंद्रित कई सतहें बनाईं।
यह आपको काशी की मूलभूत ज्यामिति बनावट दिखाता है।
गंगा के किनारे यह शुरू होता है, और ये सकेंद्रित वृत परिक्रमा की व्याख्यां दिखा रहे हैं।
सबसे बाहरी परिक्रमा की माप 168 मील है।
यह शहर इसी तरह बना है और विश्वनाथ मंदिर इसी का एक छोटा सा रूप है।
असली मंदिर की बनावट ऐसी ही है। यह बेहद जटिल है। इसका मूल रूप तो अब रहा ही नहीं।
वाराणसी को मानव शरीर की तरह बनाया गया था
यहां 72 हजार शक्ति स्थलों यानी मंदिरों का निर्माण किया गया।
एक इंसान के शरीर में नाडिय़ों की संख्या भी इतनी ही होती है। इसलिए उन लोगों ने मंदिर बनाये, और आस-पास काफी सारे कोने बनाये - जिससे कि वे सब जुड़कर 72,000 हो जाएं।
यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि चंद्र कैलंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं, 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाएं - इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए।
तो यह नाडिय़ों की संख्या के बराबर है।
यह पूरी प्रक्रिया एक विशाल मानव शरीर के निर्माण की तरह थी।
इस विशाल मानव शरीर का निर्माण ब्रह्मांड से संपर्क करने के लिए किया गया था।
इस शहर के निर्माण की पूरी प्रक्रिया ऐसी है, मानो एक विशाल इंसानी शरीर एक वृहत ब्रह्मांडीय शरीर के संपर्क में आ रहा हो।
काशी बनावट की दृष्टि से सूक्ष्म और व्यापक जगत के मिलन का एक शानदार प्रदर्शन है।
कुल मिलाकर, एक शहर के रूप में एक यंत्र की रचना की गई है।
रोशनी का एक दुर्ग बनाने के लिए, और ब्रह्मांड की संरचना से संपर्क के लिए, यहां एक सूक्ष्म ब्रह्मांड की रचना की गई।
ब्रह्मांड और इस काशी रुपी सूक्ष्म ब्रह्मांड इन दोनों चीजों को आपस में जोडऩे के लिए 468 मंदिरों की स्थापना की गई।
मूल मंदिरों में 54 शिव के हैं, और 54 शक्ति या देवी के हैं। अगर मानव शरीर को भी हम देंखे, तो उसमें आधा हिस्सा पिंगला है और आधा हिस्सा इड़ा।
दायां भाग पुरुष का है और बायां भाग नारी का।
यही वजह है कि शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में भी दर्शाया जाता है - आधा हिस्सा नारी का और आधा पुरुष का।
यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि चंद्र कैलंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं, 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाएं - इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए।
आपके स्थूल शरीर का 72 फीसदी हिस्सा पानी है, 12 फीसदी पृथ्वी है, 6 फीसदी वायु है और 4 फीसदी अग्नि। बाकी का 6 फीसदी आकाश है।
सभी योगिक प्रक्रियाओं का जन्म एक खास विज्ञान से हुआ है, जिसे भूत शुद्धि कहते हैं।
इसका अर्थ है अपने भीतर मौजूद तत्वों को शुद्ध करना।
अगर आप अपने मूल तत्वों पर कुछ अधिकार हासिल कर लें, तो अचानक से आपके साथ अद्भुत चीजें घटित होने लगेंगी।
मैं आपको हजारों ऐसे लोग दिखा सकता हूं, जिन्होंने बस कुछ साधारण भूतशुद्धि प्रक्रियाएं करते हुए अपनी बीमारियों से मुक्ति पाई है।
इसलिए इसके आधार पर इन मंदिरों का निर्माण किया गया। इस तरह भूत शुद्धि के आधार पर इस शहर की रचना हुई।
यहां एक के बाद एक 468 मंदिरों में सप्तऋषि पूजा हुआ करती थी और इससे इतनी जबर्दस्त ऊर्जा पैदा होती थी, कि हर कोई इस जगह आने की इच्छा रखता था।
भारत में जन्मे हर व्यक्ति का एक ही सपना होता था - काशी जाने का।
यह जगह सिर्फ आध्यात्मिकता का ही नहीं, बल्कि संगीत, कला और शिल्प के अलावा व्यापार और शिक्षा का केंद्र भी बना।
इस देश के महानतम ज्ञानी काशी के हैं।
शहर ने देश को कई प्रखर बुद्धि और ज्ञान के धनी लोग दिए हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, 'पश्चिमी और आधुनिक विज्ञान भारतीय गणित के आधार के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता था।’ यह गणित बनारस से ही आया।
इस गणित का आधार यहां है।
जिस तरीके से इस शहर रूपी यंत्र का निर्माण किया गया, वह बहुत सटीक था।
ज्यामितीय बनावट और गणित की दृष्टि से यह अपने आप में इतना संपूर्ण है, कि हर व्यक्ति इस शहर में आना चाहता था। क्योंकि यह शहर अपने अन्दर अद्भुत ऊर्जा पैदा करता था।
वाराणसी का इतिहास
यह हमारी बदकिस्मती है कि हम उस समय नहीं थे जब काशी का गौरव काल था। हजारों सालों से दुनिया भर से लोग यहां आते रहे हैं। गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहीं दिया था।
गौतम के बाद आने वाले चीनी यात्री ने कहा, ‘नालंदा विश्वविद्यालय काशी से निकलने वाली ज्ञान की एक छोटी सी बूंद है।’ और नालंदा विश्वविद्यालय को अब भी शिक्षा का सबसे महान स्थान माना जाता है।
आज भी यह कहा जाता है कि ‘काशी जमीन पर नहीं है। वह शिव के त्रिशूल के ऊपर है।’ लोगों ने एक भौतिक संरचना बनाई, जिसने एक ऊर्जा संरचना को उत्पन्न किया।
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