*"सोचो! कितनी बड़ी नासमझी है"*
*अब तक हमारा मन हरि गुरु की ओर और अधिक खिंचा कि नहीं। नहीं खिंचा? हमने बहुत गलतियाँ की, लापरवाही की, साधना नहीं की, हमारे पाप बढ़ गये, फील करो और फिर सावधान हो जाओ, नहीं तो ऐसे ही पाप बढ़ते जायँगे और मानवदेह छिन जायगा एक दिन। फिर कुत्ते, बिल्ली, गधे की योनियों में जाना होगा। तब याद आयेगी हाँ। हमको ये उपदेश मिला था, हमने नहीं माना, बुद्धि के अहंकार से। बुद्धि ने ही तो अनन्त जन्मों से हमें चौरासी लाख में घुमाया है।*
*जैसे कोई अपढ़ गँवार व्यक्ति मुकदमे में एक वकील करता है, उसको सौ, दो सौ, पाँच सौ देकर के लॉ की नॉलेज प्राप्त करता है। वकील कहता है ऐसे-ऐसे कोर्ट में बोलना, इसके अलावा कुछ नहीं बोलना। तो उसी को याद कर लेता है उतना सा हिस्सा लॉ का, और कोर्ट में डट करके जो वकील साहब ने कहा है वही बोलता है तो मुकदमा जीत जाता है और अपनी बुद्धि जरा भी लगा दी बीच में, एक सेंटेन्स भी गलत बोल गया बीच में अपनी अकल से, तो सारा मुकदमा डाउट का हो गया और डाउट का फायदा मुल्ज़िम को हो गया। तो सारी बात बिगड़ जाती है।*
*तो जैसे वो वकील के शरणागत रहता है, उसकी ही बात अनुसार चलता है, ऐसे मनुष्य को गुरु के आदेश के अनुसार ही चलकर के अपना कल्याण करना है। अपनी बुद्धि नहीं लगाना है।*
*डॉक्टर ने कहा- ये दवा खाओ इतनी, दो बूँद, एक चम्मच पानी में बस ! बुद्धि मत लगाओ कि दो बूँद दवा से क्या होगा? एक शीशी पी लो।*
*देखो ! पढ़ने जाते हो, ए. बी. सी. डी., क. ख. ग. घ., तो मास्टर कहता है ये 'क' है, तुम उसको मान लेते हो, वहाँ तो तुम्हें, डाउट नहीं होता कि ये 'क' क्यों है जी? इसको 'क' क्यों कहते हैं? इंग्लिश भाषा में कितने सारे साइलेन्ट होते हैं। अब आप कहें कि ये साइलेन्ट क्यों होता है? मैं नहीं इसको लिखूँगा, तो आप नहीं पढ़ सकते इंग्लिश। आपको मानना होगा।*
ऐसे ही-
*श्रद्धत्स्व तात! श्रद्धत्स्व।*
*वेद कहता है- श्रद्धा करो, विश्वास करो, वेद और गुरु की वाणी पर, और उसी प्रकार चलाओ बुद्धि को। सरैण्डर करो बुद्धि का, तब लक्ष्य प्राप्त होगा। अपनी बुद्धि तो मायिक है, तीन गुण की है तो अपनी बुद्धि के अनुसार चलकर मनुष्य भगवद् विषय का लाभ कैसे लेगा, जब संसार ही का लाभ नहीं ले सकता?*
*अरे! तुमने अपनी माँ को माँ बाप को बाप कैसे कह दिया, तुम्हारे पास कोई सबूत है ? माँ ने कहा था, बाप ने कहा था हम तुम्हारे मम्मी-डैडी हैं। बस ! यही सबूत ? तो क्योंजी ! तुम्हारे माँ-बाप दिन में सौ झूठ बोलते हैं, उनकी बात तो तुमने मान लिया और वेद की बात, भगवान् की बात, महापुरुष की बात मानने में बुद्धि लगाते हो?*
*सोचो ! कितनी बड़ी नासमझी है। तो इस नासमझी को हटाना है और हृदय को शुद्ध करना है।*
श्री शिवाय नमस्तुभ्यम
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