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रविवार, 1 जनवरी 2017

नया साल कैसे बना 1 जनवरी ?

दोस्तों हर साल आपको, एक हि साल में, कई बार, कुछ सन्देश मिलते होंगे, की ये नया साल मनाओ वो नया साल मनाओ… लेकिन ज्यादा कुछ पता नहीं चलता होगा की कौन कब क्यूँ कोई अलग हि नया साल मना रहा होता है..
 
आखिर है क्या नया साल ?
नया साल किस दिन आता है ?
आखिर नया साल कब से मनाया जा रहा है ?
क्या नया साल शुरू से 1 January से हि मनाया जाता रहा है ?
नया साल कैसे बना 1 जनवरी ?
नया साल रात को १२ बजे क्यूँ शुरू माना जाता है ?
 
जब हम इन सभी सवालों के जवाब ढूंढने चलते हैं तो हमको कुछ और सवालों के जवाब भी मिलते हैं जो आज के ज़माने में बहुत हि कम लोग जानते हैं, जैसे :-
 
एक साल में 365 दिन हि क्यूँ ?
एक साल में 12 महीने हि क्यूँ ?
एक महीने में 30 – 31 दिन हि क्यूँ ?
एक हफ्ते में सात दिन हि क्यूँ ?
एक दिन में 24 घंटे हि क्यूँ ?
सात दिनों के नाम कैसे पड़े ?
12 महीनों के नाम कैसे पड़े ?
फरवरी 28 दिन का हि क्यूँ ?
जुलाई और अगस्त लगातार 31 दिन के हि क्यूँ ?
अप्रैल फूल 1 अप्रैल को कब से मनाया जाता है ?अप्रैल फूल कैसे शुरू हुआ और क्यूँ ?
क्यूँ ज्यादातर विश्व का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होता है ?
 
ऐसे कई रोचक सवाल हैं जिनका जवाब आपके अंग्रेजी स्कूल के teachers के पास भी नहीं मिलेगा. आप चाहे तो उनसे जानने की कोशिश कर सकते हैं … कोई विरला हि होगा जो इन सवालों के जवाब दे पायेगा ..आइये शुरू करते हैं अपनी ज्ञान यात्रा.
आपने शायद ये तो सुना हि होगा की हिन्दू सनातन धर्म को सारा विश्व सबसे पुराना मानता है. अगर आपने अभी तक ऐसा नही सुना तो जान लीजिये की विश्व के बड़े जाने माने नाम भारत के बारे में क्या बोलकर गए हैं
 
इसी हिन्दू सनातन धर्म से निकला सबसे पहला (कुछ देर के लिए मान लीजिये, साबित थोड़ी देर में हो जायेगा) केलिन्डर. जो की पूर्णतः गृह नक्षत्रों के आधार और उनकी स्तिथि व दिशा के आधार पर बनाया गया था. उदाहरण के लिए दिवाली हर साल अमावस की रात को होती है लेकिन दिवाली की कोई निश्चित तारीख अंग्रेजी केलिन्डर में फिक्स नहीं होती यानि दुसरे शब्दों में अगर दिवाली ३ नवम्बर २०१४ को अमावस थी तो ३ नवम्बर २०१५ को अमावस नही होगी. ऐसा इसलिए की हिन्दू केलिन्डर पुर्णतः गृह और नक्षत्रों के आधार पर बनाया गया, जबकि अंग्रेजी केलिन्डर की शुरुआत भारतीय हिन्दू केलिन्डर की नकल से बनाया गया (कुछ देर में ये बात साबित हो जाएगी).
Earth
1 साल में 365 दिन क्यूँ होते हैं ? 365 दिन में पृथ्वी सूर्य की सम्पूर्ण परिक्रमा करती है. (365.25 दिन जो चार साल में .२५*४ होने से 366 बन जाता है)
 
1 साल में १२ मास (महीने) क्यूँ ? हिन्दू केलिन्डर नक्षत्रों पर आधारित है, चंद्रमा हर महीने पूर्ण रूप से खत्म (अमावस) व् पूर्ण स्वरुप (पूर्णिमा) में दिखाई देता है. इस नए चंद्रमा के बनने की शुरुआत से लेकर अगली नयी शुरुआत तक के समय को चन्द्रमा का एक चक्र कहते हैं. हिन्दू केलिन्डर में हर मास की तारीख इस तरह से होती हैं,  
शुकल पक्ष की एकम, द्वितीय, तृतीया चतुर्थी,पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा (15 वा दिन),
फिर से एकम लेकिन अब चन्द्र घटना शुरू होगा अर्थात काला होने लगेगा तो कृष्ण पक्ष की एकम ,द्वितीय, तृतीया चतुर्थी,पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या (30 वा दिन). इसी प्रकार 1 मास को ३० दिन में बांटा गया.
लेकिन उस समय के विज्ञानं के अनुसार (करोड़ो लाखों वर्षों पूर्व) यह चक्र ३० व् ३१ दिन का माना जाता था. तो उसी के अनुसार पहले महीने में ३१ दिन, दुसरे में ३०, तीसरे में ३१ इस तरह से केलिन्डर बनाया गया.
 
नतीजा क्या हुआ ३१+३०+३१+३०+३१+३०+३१+३०+३१+३०+३१ ऐसे पुरे ग्यारह महीने तो बन गए लेकिन क्यूंकि साल में 365 दिन हि होने थे तो बाकी बचे दिन सिर्फ २९ जो की आखरी महीने में रखे गए जैसा की स्वाभाविक भी है की बैलेंसिंग figure आखरी में डाला जाता है. (365-३३६ दिन = २९ दिन)
अब ये सोचने वाली बात है की आखरी महिना तो दिसम्बर होता है (आज के अंग्रेजी केलिन्डर के अनुसार ) लेकिन दिसम्बर तो पुरे ३१ दिन का होता है. तो इसको समझिये,
 
हुआ यूँ की पुराना हिन्दू केलिन्डर जो शुरू होता था आज के 1 मार्च से. (मुझे मालूम है आप कहेंगे 1 अप्रैल लेकिन ऐसा बाद मे हुआ, पहले 1 मार्च से था उसके बाद 1 अप्रैल से हुआ). 1 मार्च अंग्रेजी केलिन्डर का तीसरा महिना होता है, जबकि कुछ समय पहले तक हिन्दुओ का पहला महिना होता था.
यानि पहला महिना अगर march है तो आखरी महिना February हुआ. जो आज के केलिन्डर से सिर्फ थोडा सा अलग है जिसका एक और कारण है.
पहले देखिये march ३१ का पहला महिना
अप्रैल ३०
मई ३१
जून ३०
जुलाई ३१
 
अगस्त ३० का होता था लेकिन आज ३१ है क्यूंकि एक राजा ऑगस्टस के नाम पर ये महिना रखा था (हिन्दुओ ने नही, बाद के अंग्रेजो ने क्यूंकि हम आज के केलिन्डर के अनुसार नाम पढ़ रहे हैं). निचे दिया गया है की august 6 month था जो ३१ का सिर्फ इसलिए किया गया क्यूंकि राजा को लगता था उसके नाम के महीने में 1 दिन कम क्यूँ हो. ऐसा करने के लिए अगले सभी महीनों को छेड़ा गया, सितम्बर जो ३१ का होना चाहिए था वो सिर्फ ३० का कर दिया गया, अक्टूबर को ३० की जगह ३१, नवम्बर को ३०, दिसम्बर को ३१, January को ३१ का हि रखा गया और 1 दिन February से कम कर दिया गया २९ की जगह २८ यानि फिर से बैलेंसिंग figure. January को भी ३१ बाद में सिर्फ इसलिए किया गया की ये पहला महिना घोषित किया गया था (बाद में जो की आज का मौजूद केलिन्डर है)
 
Augustus for ‘August’
After Julius’s grandnephew Augustus defeated Marc Antony and Cleopatra, and became emperor of Rome, the Roman Senate decided that he too should have a month named after him. The month Sextillus (sex = six) was chosen for Augustus, and the senate justified its actions in the following resolution:
Whereas the Emperor Augustus Caesar, in the month of Sextillis . . . thrice entered the city in triumph . . . and in the same month Egypt was brought under the authority of the Roman people, and in the same month an end was put to the civil wars; and whereas for these reasons the said month is, and has been, most fortunate to this empire, it is hereby decreed by the senate that the said month shall be called Augustus.
Not only did the Senate name a month after Augustus, but it decided that since Julius’s month, July, had 31 days, Augustus’s month should equal it: under the Julian calendar, the months alternated evenly between 30 and 31 days (with the exception of February), which made August 30 days long. So, instead of August having a mere 30 days, it was lengthened to 31, preventing anyone from claiming that Emperor Augustus was saddled with an inferior month.
To accommodate this change two other calendrical adjustments were necessary:
The extra day needed to inflate the importance of August was taken from February, which originally had 29 days (30 in a leap year), and was now reduced to 28 days (29 in a leap year).
Since the months evenly alternated between 30 and 31 days, adding the extra day to August meant that July, August, and September would all have 31 days. So to avoid three long months in a row, the lengths of the last four months were switched around, giving us 30 days in September, April, June, and November.
Among Roman rulers, only Julius and Augustus permanently had months named after them—though this wasn’t for lack of trying on the part of later emperors. For a time, May was changed to Claudius and the infamous Nero instituted Neronius for April. But these changes were ephemeral, and only Julius and Augustus have had two-millenia-worth of staying power.
For further reading:
Calendar: Humanity’s Epic Struggle to Determine a True and Accurate Year, David Ewing Duncan (New York: Avon, 1998).
 
Read more: August—History of the Month’s Origin | Infoplease.com http://www.infoplease.com/spot/history-of-august.html#ixzz3August Month Facts
 
अब आते हैं महीनो के नाम पर. जैसा की आपको पहले बताया की अंग्रेजो ने भारतीय केलिन्डर की नकल की थी, उसका सबूत आज भी मौजूद है.
 
सप्त अम्बर  जो की 7 नंबर है वो आज के अंग्रेजी केलिन्डर का 9 वा महिना है.
अष्ट अम्बर 8 था, वो 10 वा महिना है.
नव अम्बर 9 था, आज 11 वा महिना है.
दश अम्बर 10 था, आज १२ वा महिना है.
 
सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है। ये क्रम से 9वाँ, 10वाँ, 11वां और बारहवाँ महीना है। हिन्दी में सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है,इसे अङ्ग्रेज़ी में sept (सेप्ट) तथा oct (ओक्ट) कहा जाता है। इसी से september तथा October बना। नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के “नव” को ले लिया गया है तथा दस अङ्ग्रेज़ी में “Dec” बन जाता है जिससे December बन गया। ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। 
 
इसका एक प्रमाण और है। जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है???? इसका उत्तर ये है की “X” रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना। चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया।
 
अब आते हैं एक हफ्ते में सात दिन हि क्यूँ ?
उस प्राचीन काल में 7 (1 सूर्य 1 चन्द्र और 5 ग्रहों को मिलाकर) ये 7 हि पृथ्वी से आँखों से सीधे देखे जा सकते हैं. (बाकी गृह को देखने के लिए दूरबीन की आवश्यकता पड़ेगी)
पृथ्वी से उत्तरोत्तर दुरी के आधार पर ग्रहों का क्रम निर्धारित किया गया जैसे शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चन्द्रमा. इनमे चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास है तो शनि सबसे दूर, इसमें एक एक गृह दिन के २४ घंटो में 1 -1 घंटे का अधिपति रहता है, अतः क्रम से सातों गृह 1-1 घंटे अधिपति बनते हैं, यह चक्र चलता रहता है, और 24 घंटे पुरे होने के बाद जो 25 वे घंटे का अधिपति होता है उसी के नाम से दिन का नाम होता है. सूर्य से सृष्टि शुरू हुई इसलिए पहला दिन रवि वार यानी सूर्य का दिन.
 
सूर्य पहले घंटे का अधिपति, उसके बाद शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल.
8, 15, 22 का अधिपति भी सूर्य हि हुआ, २३ का शुक्र, 24 का बुध और २५ का चन्द्रमा, क्यूंकि एक दिवस में 24 हि घंटे होते हैं (क्यूंकि पृथ्वी अपनी धुरी का एक चक्कर 24 घंटे में पूर्ण करती है), तो 25 वा अधिपति अगले दिन का नाम होता है, जो की चंद्रमा हुआ, सोम माने चन्द्र. इसी क्रम को जब आप आगे बढ़ाएंगे तो मंगल, बुध, ब्रहस्पति (गुरु), शुक्र, शनि आएगा.
 
अब एक और नमूना देखिये अंग्रेजो की नक़ल बिना अक्ल का.
उन्होंने Sunday हमसे चुराया, सूर्य या रवि वार,
Monday जो की moon से है, यानि चंद्रमा, यानि सोम
Tuesday जिसका कोई अर्थ नही है ? मंगल गृह को अंग्रेज mars कहते हैं लेकिन tues क्या है ये तो वो बेचारे भी नहीं जानते. आखिर किस आधार पर उन्होंने ये नाम रखा..
इसी तरह Wednesday जो की हिन्दुओ में बुध गृह है लेकिन wednes के नाम से अंग्रेजी में कोई गृह ?? आपने सुना क्या ?
Thursday भी उसी तरह से
Friday भी
Saturday हमसे हि लिया हुआ है, शनि याने Saturn गृह.
 
अब बात रही अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष की
क्यूंकि जब से बहीखाते या यूँ कहें की व्यापर जगत शुरू हुआ तब से हि पहला मास 1 अप्रैल से माना जाता रहा है. जो उससे पहले कभी 1 march (आज के केलिन्डर अनुसार) हुआ करता था. वो प्रथा सम्पूर्ण विश्व में आज भी देखने को मिलती है जिसको आप और हम सब financial year के नाम से जानते हैं असल में वोही हिन्दू केलिन्डर है.
 
अप्रैल फूल क्या है और क्यूँ मनाया जाता है और कब से ?
New Year’s Day Moves
Ancient cultures, including those of the Romans and Hindus, celebrated New Year’s Day on or around April 1. It closely follows the vernal equinox (March 20th or March 21st.) In medieval times, much of Europe celebrated March 25, the Feast of Annunciation, as the beginning of the New Year.
 
In 1582, Pope Gregory XIII ordered a new calendar (the Gregorian calendar) to replace the old Julian calendar. The new calendar called for New Year’s Day to be celebrated Jan. 1. That year, France adopted the reformed calendar and shifted New Year’s Day to Jan. 1. According to a popular explanation, many people either refused to accept the new date, or did not learn about it, and continued to celebrate New Year’s Day on April 1. Other people began to make fun of these traditionalists, sending them on “fool’s errands” or trying to trick them into believing something false. Eventually, the practice spread throughout Europe. The Gregorian calendar was adopted by England in 1752.
 
1582 में एक चर्च के पादरी ने कहा की 1 January से नया साल शुरू होगा, न कोई कारण न कोई तथ्य बस उसका मन किया और उसने ऐसा कर दिया, नतीजा महीनों के नाम उलटे सीधे हो गए. और वो यहाँ तक भी नही रुका, उसने हिन्दू केलिन्डर मानने वालों को मुर्ख कहना शुरू किया और उस दिवस का नाम मुर्ख दिवस भी खोषित किया. इसी कारण से हिन्दू नव वर्ष की जब शुरुआत होती है तब पूरा विश्व (चर्च व् ईसाईयों के गुलामों द्वारा प्रचारित व् प्रताड़ित ) मुर्ख दिवस मनाता है. शर्म तो तब आती है जब खुद हिन्दू लोग एक दुसरे को अज्ञानता या सच में मूर्खतावश अप्रैल fool मनाते हैं.

By Navneet Singhal

आदर्श ग्राम स्वयं स्थापित करें

जिन्हें यह विचार समझ आता है कि हम सब  संयोजित रूप से एक गाँव बसाएं और स्वावलम्बन के सपने को स्वयं जियें  आदर्श ग्राम स्वयं स्थापित करें, उन सभी के लिए यह पोस्ट…
अनुमान लगाइये की यदि आपके पास धन हो (जितना आपको चाहिए ) तो क्या आप एक आदर्श ग्राम बना सकते हैं
क्या आप उसमे जी सकते हैं
क्या आप उसमे स्वावलम्बन ला सकते हैं ?
यदि हां
तो यानि धन का ही एक मात्र अभाव है ।
धन की इस समस्या को सुलझाने के लिए क्यूँ न हम सब संयोजित रूप से अपने कार्य को एक साथ करें ।

मैं अपनी बात रख देता हूँ
75 परिवार (जी परिवार) एक साथ आएं ।
सबके पास कम से कम 10 लाख की पूंजी हो ।
जिससे हम सभी एक गाँव स्वयं बसायेंगे ।
हम सभी मिलकर एक गाँव ही होंगे ।
हमारे सबके घर इसी पूंजी में से बनेंगे
हमारे सबकी जमीन इसी पूंजी में से ली जायेगी । (उपजाऊ कृषि भूमि २ लाख रूपये प्रति ACRE से कम जमीन का भाव) 
हमारे सभी उत्पाद हम सभी मिलकर बनाएंगे (स्वदेशी व् प्रकृतिक तरकीब से)
हमारे सभी resources साझा होंगे
हमारे जरूरत की हर सम्भव वस्तु पर हम पहले हम विस्तृत रूप से यहां चर्चा करेंगे, फिर योजना फिर उसको कार्यान्वित । 
जैसे  बिजली सौर ऊर्जा से हम स्वयं बनाए
पानी जमीन से और वर्षा के जल को संचय करें
सब्जी स्वयं उगायेंगें
फल भी हमारे वृक्ष होंगे (फल थोड़े समय बाद ही मिलने शुरू होंगे)
अनाज स्वयं कृषि से
दलहन तिलहन सब स्वयं कृषि से
भोजन हवा पानी पूर्ण हुआ
कपड़े के लिए कपास (इसको barter व्यवस्था से किसी अन्य जगह से या कृषि व्यवस्था से अगर हमारी भूमि कपास योग्य हुई तो, जैसे भी सम्भव होगा )
दवाएं व् वैध आयुर्वेद आधारित जीवन
शिक्षा मानवीय मूल्य व् गुरुकुल आधारित
रसोई गैस गोबर से
कृषि का सब कार्य गौ आधारित
क्रीड़ा स्थल
अखाडा शारीरिक
गाँव की अपनी रक्षक सेना
जीवन में ये सब डिग्री ये सब कागजी और नौकरशाही के तरीके हैं जिनकी आवश्यकता नही ।
आवश्यकता है व्यक्ति के साक्षर होने की । शिक्षित तो सभी हैं । गाँव के अनपढ़ हमसे ज्यादा शिक्षित हैं । साक्षर न हो चाहे ।
बिजली हवा भोजन पानी शिक्षा स्वास्थ्य रक्षा
समाचार के लिए dd फ्री डिश भी है
इन्टरनेट के लिए बीएसएनएल सरकार पर निर्भर होंगे
बाकी सभी में हम आत्मनिर्भर होंगे ।
एक गाँव आदर्श गांव हमे बनाना है ।
उसी गाँव में हम रहें , हम एक जैसी सोच वाले इस सपने को जियें । यह सम्भव कर सकते हैं ।
अब इसके प्रैक्टिकल में जो भी समस्या दिखती है उसी के लिए हमे पहले से सारी बातें और उनका हल लेकर चलना है क्योंकि करना तो यह है ही हमें ।
है कोई जो नही जीना चाहता ऐसे गाँव में ??
उस गाँव में हमारे पास ऐसा कोई कार्य नही होगा जैसा हम आज करते हैं, वहां अलग ही कार्य होंगे ।
कोई कृषि
कोई उत्पादन
कोई सड़क
कोई नाली
कोई सब्जी
कोई तालाब
कोई सौर ऊर्जा
कोई टीवी
कोई इन्टरनेट
कोई अध्यापक
कोई वेदांती
कोई चिकित्सक
कोई रक्षक
सबके जिम्मे कार्य होंगे, बारी बारी से सबकी जिम्मेदारियां बनेगी. सबकी रूचि का भी ध्यान रखा जायेगा.
एक आदर्श व्यवस्था । अगर हम स्वयं यह सब नही बना सकते तो दूसरों के ऊपर थोपने का स्वस्प्न भी त्याग दे ।
10 करोड़ से होगा 1 गाँव ? तो 100 परिवर 10 लाख.
कितना चाहिए हमें ?
सोचिये
फिर उसको एक मॉडल बनाते हैं
बार बार revise करेंगे
मेरे अनुसार पहले ऐसे सपने देखने वालों की लिस्ट बने
फिर उनके साथ लम्बी चर्चा
फिर योजना
फिर फाइनल
इस सन्दर्भ में है समूह का गठन, किसी संदर्भित व्यक्ति को जोड़ना चाहे तो बता दें। जिसको आप समझते हैं कि अमुक उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक है ।
सरल सी बात है
अगर हम ऐसे गाँव में स्वयं नही जियेंगे
तो दूसरों से कैसे उम्मीद करें की वो अपने गाँव में जिए
हम लोगों में से कितने लोग ऐसे हैं
1 जो गाँव में बसने के लिए पूरी तरह तैयार हैं ।
2 परिवार साथ में है
3 जेब में कम से कम 10-20 लाख की पूंजी हो जिससे हम अपनी अपनी जमीन घर इत्यादि बनाएंगे व् खरीदेंगे ।
4 राजीव दीक्षित जी को या किसी अन्य गुरु को सुना हो समझा हो ।
5 प्लानिंग व् मीटिंग के लिए तुरंत तैयार हों।
6 एक बार जाने के बाद वापसी नही होगी (5 बरस से पहले तो बिलकुल भी नही)
7 कमाई का साधन कुछ होगा पहले 1 वर्ष जब तक यह सब स्थापित किया जायेगा ताकि चिंता न हो ।
8 गाँव में स्वयं परिश्रम व् मेहनत को तैयार हैं कोई किसान बनकर कोई शिक्षक बनकर कोई लघु उद्योग चलाकर इत्यादि।
शहर का जीवन मतलब
मूर्खता का जीवन
आपके घर में बीमारी का कारण है आपकी जहरीली सब्जी जो आप रोज खाते हो । अपनी सब्जी उगाओ । नही तो जहरीली खाओ और जो कमाओ उसे डॉक्टर को देकर आओ ।
दिल्ली मुम्बई
छोड़ने के अनेक कारण
1 पानी पीने को मिलता नही , मिले तो महंगा व् दूषित
2 बिजली बहुत महंगी
3 हवा जहरीली हो चुकी
4 भोजन सब बाहर (दिल्ली मुम्बई) से आता है । दिल्ली में रहने को जगह मिलती नही , खेत क्या ख़ाक होंगे
5 जमीन बहुत महंगी
6 लगभग हर घर बीमारी का घर (घर के कम से कम 1 व्यक्ति नियमित दवा पर ही जीवित हैं )
7 हर वस्तु इतनी महंगी की कोई कितना भी कमा ले, बचत मामूली ही होती है
8 बीएसएनएल दिल्ली मुम्बई में नही है 
9 केजरीवाल जैसे लोग यहां के मुख्यमंत्री हैं (दिल्ली के)
10 यहां से सब कुछ बेचकर जाओ तो लगभग 20 गुना ज्यादा बड़ी जमीन , शुद्ध हवा, शुद्ध पानी, महंगाई में कम से कम 5 गुना गिरावट और सेहत में कम से कम 15 वर्ष बढ़ने ही बढ़ने हैं ।
आपने हॉस्पिटल में दम तोड़ना है तो आपकी मर्जी
आपने जीते जी अपंग होना है तो आपकी मर्जी
आपको सारी जीवन की कमाई पूंजी हस्पताल में देनी है तो आपकी मर्जी
गधों की तरह , सेहत को छोड़, नोटों के पीछे भागना है, आपकी मर्जी।

समझदार हो जिसलिये जागरूक करने की कोशिश की ।

जो भी जन गम्भीर हैं इस कार्य के लिये व साथ चलकर देखना चाहते हैं

वह मुझे बताएं । 
काफी प्रश्नों के उत्तर वहां जाकर ही मिलेंगे ।
पहले अपने को इस स्तिथि पर आंकिये की सस्ती जमीन मध्य प्रदेश में लेने को तैयार हैं क्या ?
1.25 लाख प्रति acre से 1.75 लाख प्रति acre
हमे 100 लोग चाहिए जो कम से कम
1 राजीव भाई को सुना हो समझा हो
2 गाँव में रहने को तैयार हो
3 मिलजुलकर काम करने को तैयार हो
4 जमीन सब अपनी खरीदेंगे
5 सब कृषि कार्य , लघु उद्योग, कुटीर उद्योग से गांव को स्वावलम्बी बनाएंगे
जिनको भी 2 लाख रूपये acre में कृषि योग्य उपजाऊ भूमि
खरीदने की इच्छा हो तो हमसे संपर्क करें ।

हम मिलकर एक कृषि आश्रम बनाएंगे जिसमे
फलों के बाग़
सब्जियों की कृषि
अनाज की कृषि
सोलर बिजली
गोबर गैस
मिटटी के बर्तन में भोजन
स्वच्छ जल हवा भोजन
व् सभी मुलभुत जीवन की आवश्यकताएं सब होंगी
साथ में इन्वेस्ट करने को व राजीव दीक्षित जी द्वारा बताये मार्ग पर जीवन जीने को यह मार्ग है ।
दिल्ली छोड़ो, मुंबई छोड़ो, चलो गाँव की ओर !
महानगरों-नगरों को छोड़ो, चलो प्रकृति की ओर !!
फाइव स्टार छोड़ो, एसी-वीसी छोड़ो, अब चलो गाँव की ओर !
भीड़-भाड़ से हटकर अब बढ़ो सुकून की ओर !!
पर, ध्यान रहे वहां के प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण, वातावरण और संस्कृति से छेड़छाड़ नहीं,
नहीं तो तुम शहर और प्रकृति के आँगन (गाँव) का अंतर कैसे समझ पाओगे और
वहां की सौम्य जिन्दगी का आनंद कैसे अनुभव कर पाओगे !
बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है।
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है॥
वहां मैं मेरे बाप के नाम से जाना जाता हूँ।
और यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ॥
वहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है।
यहाँ खुले बदन पे टैटू छापा जाता है॥
यहाँ कोठी है बंगले है और कार है।
वहां परिवार है और संस्कार है॥
यहाँ चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है।
वहां दुसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है॥
यहाँ शोर शराबे में मैं कही खो जाता हूँ।
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ॥
यहाँ रात को बहार निकलने में दहशत है…
मत समझो कम हमें की हम गाँव से आये है।
तेरे शहर के बाज़ार मेरे गाँव ने ही सजाये है॥
वह इज्जत में सर सूरज की तरह ढलते है।
चल आज हम उसी गाँव में चलते हैं । …उसी गाँव में चलते हैं |
राग-द्वेष से दूर, चलो, एक गाँव बसायें |
जहाँ न हो कोई भीरु, चलो, एक गाँव बसायें ||
सघन वृक्ष की छाँव जहाँ हो, पोखर, नदी, तालाब जहाँ हो |
निर्झर-जल भर-पूर, चलो, एक गाँव बसायें ||
पंछी-कलरव तान जहाँ हो, सुघड़, सुखद विहान जहाँ हो |

कुछ भी प्रश्न हो हमें पूछें ।
by - नवनीत सिंघल
9560723234

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