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रविवार, 1 जनवरी 2017

आदर्श ग्राम स्वयं स्थापित करें

जिन्हें यह विचार समझ आता है कि हम सब  संयोजित रूप से एक गाँव बसाएं और स्वावलम्बन के सपने को स्वयं जियें  आदर्श ग्राम स्वयं स्थापित करें, उन सभी के लिए यह पोस्ट…
अनुमान लगाइये की यदि आपके पास धन हो (जितना आपको चाहिए ) तो क्या आप एक आदर्श ग्राम बना सकते हैं
क्या आप उसमे जी सकते हैं
क्या आप उसमे स्वावलम्बन ला सकते हैं ?
यदि हां
तो यानि धन का ही एक मात्र अभाव है ।
धन की इस समस्या को सुलझाने के लिए क्यूँ न हम सब संयोजित रूप से अपने कार्य को एक साथ करें ।

मैं अपनी बात रख देता हूँ
75 परिवार (जी परिवार) एक साथ आएं ।
सबके पास कम से कम 10 लाख की पूंजी हो ।
जिससे हम सभी एक गाँव स्वयं बसायेंगे ।
हम सभी मिलकर एक गाँव ही होंगे ।
हमारे सबके घर इसी पूंजी में से बनेंगे
हमारे सबकी जमीन इसी पूंजी में से ली जायेगी । (उपजाऊ कृषि भूमि २ लाख रूपये प्रति ACRE से कम जमीन का भाव) 
हमारे सभी उत्पाद हम सभी मिलकर बनाएंगे (स्वदेशी व् प्रकृतिक तरकीब से)
हमारे सभी resources साझा होंगे
हमारे जरूरत की हर सम्भव वस्तु पर हम पहले हम विस्तृत रूप से यहां चर्चा करेंगे, फिर योजना फिर उसको कार्यान्वित । 
जैसे  बिजली सौर ऊर्जा से हम स्वयं बनाए
पानी जमीन से और वर्षा के जल को संचय करें
सब्जी स्वयं उगायेंगें
फल भी हमारे वृक्ष होंगे (फल थोड़े समय बाद ही मिलने शुरू होंगे)
अनाज स्वयं कृषि से
दलहन तिलहन सब स्वयं कृषि से
भोजन हवा पानी पूर्ण हुआ
कपड़े के लिए कपास (इसको barter व्यवस्था से किसी अन्य जगह से या कृषि व्यवस्था से अगर हमारी भूमि कपास योग्य हुई तो, जैसे भी सम्भव होगा )
दवाएं व् वैध आयुर्वेद आधारित जीवन
शिक्षा मानवीय मूल्य व् गुरुकुल आधारित
रसोई गैस गोबर से
कृषि का सब कार्य गौ आधारित
क्रीड़ा स्थल
अखाडा शारीरिक
गाँव की अपनी रक्षक सेना
जीवन में ये सब डिग्री ये सब कागजी और नौकरशाही के तरीके हैं जिनकी आवश्यकता नही ।
आवश्यकता है व्यक्ति के साक्षर होने की । शिक्षित तो सभी हैं । गाँव के अनपढ़ हमसे ज्यादा शिक्षित हैं । साक्षर न हो चाहे ।
बिजली हवा भोजन पानी शिक्षा स्वास्थ्य रक्षा
समाचार के लिए dd फ्री डिश भी है
इन्टरनेट के लिए बीएसएनएल सरकार पर निर्भर होंगे
बाकी सभी में हम आत्मनिर्भर होंगे ।
एक गाँव आदर्श गांव हमे बनाना है ।
उसी गाँव में हम रहें , हम एक जैसी सोच वाले इस सपने को जियें । यह सम्भव कर सकते हैं ।
अब इसके प्रैक्टिकल में जो भी समस्या दिखती है उसी के लिए हमे पहले से सारी बातें और उनका हल लेकर चलना है क्योंकि करना तो यह है ही हमें ।
है कोई जो नही जीना चाहता ऐसे गाँव में ??
उस गाँव में हमारे पास ऐसा कोई कार्य नही होगा जैसा हम आज करते हैं, वहां अलग ही कार्य होंगे ।
कोई कृषि
कोई उत्पादन
कोई सड़क
कोई नाली
कोई सब्जी
कोई तालाब
कोई सौर ऊर्जा
कोई टीवी
कोई इन्टरनेट
कोई अध्यापक
कोई वेदांती
कोई चिकित्सक
कोई रक्षक
सबके जिम्मे कार्य होंगे, बारी बारी से सबकी जिम्मेदारियां बनेगी. सबकी रूचि का भी ध्यान रखा जायेगा.
एक आदर्श व्यवस्था । अगर हम स्वयं यह सब नही बना सकते तो दूसरों के ऊपर थोपने का स्वस्प्न भी त्याग दे ।
10 करोड़ से होगा 1 गाँव ? तो 100 परिवर 10 लाख.
कितना चाहिए हमें ?
सोचिये
फिर उसको एक मॉडल बनाते हैं
बार बार revise करेंगे
मेरे अनुसार पहले ऐसे सपने देखने वालों की लिस्ट बने
फिर उनके साथ लम्बी चर्चा
फिर योजना
फिर फाइनल
इस सन्दर्भ में है समूह का गठन, किसी संदर्भित व्यक्ति को जोड़ना चाहे तो बता दें। जिसको आप समझते हैं कि अमुक उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक है ।
सरल सी बात है
अगर हम ऐसे गाँव में स्वयं नही जियेंगे
तो दूसरों से कैसे उम्मीद करें की वो अपने गाँव में जिए
हम लोगों में से कितने लोग ऐसे हैं
1 जो गाँव में बसने के लिए पूरी तरह तैयार हैं ।
2 परिवार साथ में है
3 जेब में कम से कम 10-20 लाख की पूंजी हो जिससे हम अपनी अपनी जमीन घर इत्यादि बनाएंगे व् खरीदेंगे ।
4 राजीव दीक्षित जी को या किसी अन्य गुरु को सुना हो समझा हो ।
5 प्लानिंग व् मीटिंग के लिए तुरंत तैयार हों।
6 एक बार जाने के बाद वापसी नही होगी (5 बरस से पहले तो बिलकुल भी नही)
7 कमाई का साधन कुछ होगा पहले 1 वर्ष जब तक यह सब स्थापित किया जायेगा ताकि चिंता न हो ।
8 गाँव में स्वयं परिश्रम व् मेहनत को तैयार हैं कोई किसान बनकर कोई शिक्षक बनकर कोई लघु उद्योग चलाकर इत्यादि।
शहर का जीवन मतलब
मूर्खता का जीवन
आपके घर में बीमारी का कारण है आपकी जहरीली सब्जी जो आप रोज खाते हो । अपनी सब्जी उगाओ । नही तो जहरीली खाओ और जो कमाओ उसे डॉक्टर को देकर आओ ।
दिल्ली मुम्बई
छोड़ने के अनेक कारण
1 पानी पीने को मिलता नही , मिले तो महंगा व् दूषित
2 बिजली बहुत महंगी
3 हवा जहरीली हो चुकी
4 भोजन सब बाहर (दिल्ली मुम्बई) से आता है । दिल्ली में रहने को जगह मिलती नही , खेत क्या ख़ाक होंगे
5 जमीन बहुत महंगी
6 लगभग हर घर बीमारी का घर (घर के कम से कम 1 व्यक्ति नियमित दवा पर ही जीवित हैं )
7 हर वस्तु इतनी महंगी की कोई कितना भी कमा ले, बचत मामूली ही होती है
8 बीएसएनएल दिल्ली मुम्बई में नही है 
9 केजरीवाल जैसे लोग यहां के मुख्यमंत्री हैं (दिल्ली के)
10 यहां से सब कुछ बेचकर जाओ तो लगभग 20 गुना ज्यादा बड़ी जमीन , शुद्ध हवा, शुद्ध पानी, महंगाई में कम से कम 5 गुना गिरावट और सेहत में कम से कम 15 वर्ष बढ़ने ही बढ़ने हैं ।
आपने हॉस्पिटल में दम तोड़ना है तो आपकी मर्जी
आपने जीते जी अपंग होना है तो आपकी मर्जी
आपको सारी जीवन की कमाई पूंजी हस्पताल में देनी है तो आपकी मर्जी
गधों की तरह , सेहत को छोड़, नोटों के पीछे भागना है, आपकी मर्जी।

समझदार हो जिसलिये जागरूक करने की कोशिश की ।

जो भी जन गम्भीर हैं इस कार्य के लिये व साथ चलकर देखना चाहते हैं

वह मुझे बताएं । 
काफी प्रश्नों के उत्तर वहां जाकर ही मिलेंगे ।
पहले अपने को इस स्तिथि पर आंकिये की सस्ती जमीन मध्य प्रदेश में लेने को तैयार हैं क्या ?
1.25 लाख प्रति acre से 1.75 लाख प्रति acre
हमे 100 लोग चाहिए जो कम से कम
1 राजीव भाई को सुना हो समझा हो
2 गाँव में रहने को तैयार हो
3 मिलजुलकर काम करने को तैयार हो
4 जमीन सब अपनी खरीदेंगे
5 सब कृषि कार्य , लघु उद्योग, कुटीर उद्योग से गांव को स्वावलम्बी बनाएंगे
जिनको भी 2 लाख रूपये acre में कृषि योग्य उपजाऊ भूमि
खरीदने की इच्छा हो तो हमसे संपर्क करें ।

हम मिलकर एक कृषि आश्रम बनाएंगे जिसमे
फलों के बाग़
सब्जियों की कृषि
अनाज की कृषि
सोलर बिजली
गोबर गैस
मिटटी के बर्तन में भोजन
स्वच्छ जल हवा भोजन
व् सभी मुलभुत जीवन की आवश्यकताएं सब होंगी
साथ में इन्वेस्ट करने को व राजीव दीक्षित जी द्वारा बताये मार्ग पर जीवन जीने को यह मार्ग है ।
दिल्ली छोड़ो, मुंबई छोड़ो, चलो गाँव की ओर !
महानगरों-नगरों को छोड़ो, चलो प्रकृति की ओर !!
फाइव स्टार छोड़ो, एसी-वीसी छोड़ो, अब चलो गाँव की ओर !
भीड़-भाड़ से हटकर अब बढ़ो सुकून की ओर !!
पर, ध्यान रहे वहां के प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण, वातावरण और संस्कृति से छेड़छाड़ नहीं,
नहीं तो तुम शहर और प्रकृति के आँगन (गाँव) का अंतर कैसे समझ पाओगे और
वहां की सौम्य जिन्दगी का आनंद कैसे अनुभव कर पाओगे !
बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है।
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है॥
वहां मैं मेरे बाप के नाम से जाना जाता हूँ।
और यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ॥
वहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है।
यहाँ खुले बदन पे टैटू छापा जाता है॥
यहाँ कोठी है बंगले है और कार है।
वहां परिवार है और संस्कार है॥
यहाँ चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है।
वहां दुसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है॥
यहाँ शोर शराबे में मैं कही खो जाता हूँ।
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ॥
यहाँ रात को बहार निकलने में दहशत है…
मत समझो कम हमें की हम गाँव से आये है।
तेरे शहर के बाज़ार मेरे गाँव ने ही सजाये है॥
वह इज्जत में सर सूरज की तरह ढलते है।
चल आज हम उसी गाँव में चलते हैं । …उसी गाँव में चलते हैं |
राग-द्वेष से दूर, चलो, एक गाँव बसायें |
जहाँ न हो कोई भीरु, चलो, एक गाँव बसायें ||
सघन वृक्ष की छाँव जहाँ हो, पोखर, नदी, तालाब जहाँ हो |
निर्झर-जल भर-पूर, चलो, एक गाँव बसायें ||
पंछी-कलरव तान जहाँ हो, सुघड़, सुखद विहान जहाँ हो |

कुछ भी प्रश्न हो हमें पूछें ।
by - नवनीत सिंघल
9560723234

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