सामान्य रूप से हम यह मानते हैं कि मात्र लोहा ही चुम्बकीय गुणों वाली धातु है। इसका कारण यह है कि १७३५ से पूर्व लोहा ही ऐसी एकमात्र ज्ञात धातु थी जो कि चुम्बकीय होती है। कोबाल्ट की खोज १७३५ में और निकल की १७५२ में खोज के उपरान्त चुम्बकीय गुणों वाली अन्य धातुओं की भी खोज हुई यथा गैडोलिनियम (gadolinium — १८८०), डिस्प्रोसियम (dysprosium — १८८६)।
लौह और निकल युक्त क्रोड के कारण हमारी धरती भी चुम्बकीय गुणों युक्त है।
प्राकृतिक रूप से चुम्बकीय गुणों युक्त लोहे का एक खनिज मेग्नेटाइट, जिसे लोडस्टोन भी कहते हैं, प्रथम ज्ञात चुम्बकीय पदार्थ था। साधारण मेग्नेटाइट चुम्बकीय गुणों युक्त नहीं रह पाता। किन्तु, मेग्हेमाइट (cubic
) जिसमें टाइटेनियम, अल्युमीनियम और मैंग्नीज के आयनों की अशुद्धि है, स्थायी चुम्बकत्व वाले लोडस्टोन में मिलते हैं। ईसा पूर्व छठी शताब्दी के ग्रीक दार्शनिक थालेस ऑफ मिलेतुस (Thales of Miletus) को चुम्बकीय गुणों का वर्णन करने वाला पहला व्यक्ति मानते हैं। भारत में भी चुम्बक का विवरण लगभग इतना ही पुराना है। चौथी सदी ईसा पूर्व में चीन के साहित्य में भी इसका विवरण मिलता है। तथा चीन में ही ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में दिक्सूचक के रूप में लोडस्टोन का प्रयोग किया गया।
उत्तरी अमेरिका की ओल्मेक सभ्यता में चुम्बक के प्रयोग के प्राचीनतम प्रमाण मिलते हैं। यह लोडस्टोन
(लोहे और टाइटेनियम के अयस्क) से बना था।
लगभग सभी चुम्बकीय द्रव्यों का एक तापमान (जिसे क्यूरी तापमान कहते हैं — पियरे क्यूरी के सम्मान में) से अधिक तापमान पर स्थाई चुम्बकीय गुण समाप्त हो जाता है।
वर्तमान समय में स्थाई चुम्बकीय गुणों वाले अनेक द्रव्य हैं। इनमें प्रमुख हैं :
१. अल्निको (Alnico)
अल्युमिनियम, निकल तथा कोबाल्ट की मिश्र-धातु। इसमें ८–१२% Al (अल्युमिनियम), १५–२६% Ni (निकल), ५–२४% Co (कोबाल्ट), ०-६% Cu (ताम्र), ०-१% Ti (टाइटेनियम), तथा शेष Fe (लौह) होता है। इस मिश्रधातु से बने चुम्बकों से शक्तिशाली स्थाई चुम्बक १९७० के उपरान्त ही बन पाए।पहली माइक्रोवेव ओवन में अल्निको चुम्बक ही काम में लिए गए।
२. फैराइट
यह एक प्रकार का सैरामिक पदार्थ है। इसमें आयरन ऑक्साइड (
, जंग) में कम मात्रा में स्ट्रोंसियम (strontium), बेरियम (barium), मैंग्नीज (manganese), निकल (nickel), तथा यशद (zinc) में से एक या अधिक धातुओं के साथ मिला कर पकाया जाता है। यह विद्युत के कुचालक हैं, अतः इनका उपयोग ट्रांसफार्मर, विद्युत मोटर आदि में किया जाता है।
स्ट्रोंसियम तथा बेरियम के फैराइट विद्युत उपकरणों में सामान्यतः प्रयोग किए जाते हैं।
३, समेरियम-कोबाल्ट चुम्बक (samarium–cobalt (SmCo))
इन्हें १९६० में विकसित किया गया। समेरियम तथा कोबाल्ट १:५ अथवा २:१७ में मिश्रित किए जाते हैं। इन्हे हैडफोन, उच्च श्रेणी की विद्युत मोटरों, टर्बो उपकरणों आदि में प्रयोग किया जाता है।
४. नियोडियम चुम्बक
१९८४ में नियोडियम चुम्बक बनाए गए जोकि सर्वाधिक शक्तिशाली चुम्बकीय गुणों युक्त हैं। यह नियोडियम (Nd), लौह (Fe) तथा बोरोन (B) का २:१४:१ मोलर अनुपात की मिश्रधातु है। यह कम्प्यूटर हार्डडिस्क, शक्तिशाली छोटे जनरेटर आदि में प्रयोग आते हैं। इनमें सरलता से जंग लगती है, अतः इनपर अन्य पदार्थों का लेप लगाया जाता है।
यहाँ स्थाई चुम्बकीय गुणों वाले कुछ द्रव्यों का उल्लेख दिया गया है, जिन्हें अधिक से कम क्यूरी तापमान के आधार पर क्रम में सजाया गया है:
पदार्थ क्यूरी-ताप (॰ काल्विन)
Co (कोबाल्ट धातु) — १३८८॰
Fe (लौह) — १०४३॰
(फैरस-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ८५८॰
(निकल-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ८५८॰
(क्युप्रस-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ७२८॰
(मेग्नीशियम-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ७१३॰
MnBi (मैंग्नीज-बिस्मथ मिश्रधातु) — ६३०॰
Ni (निकल) — ६२७॰
MnSb (मैंग्नीज-स्टैबियम मिश्रधातु) — ५८७॰
(मैंग्नीज-फैरिक ऑक्साइडों का मिश्रण) — ५७३॰
(यिट्रियम आक्साइड-फैरस पेन्टाक्साइड) — ५६०॰
(क्रोमियम ऑक्साइड) — ३८६॰
MnAs (मैंग्नीज-आर्सेनिक मिश्रधातु) — ३१८॰
Gd (गैडेलियम धातु) — २९२॰
सिद्धान्ततः इन सभी पदार्थो के सामान्य ताप पर आकर्षित करने वाले स्थाई चुम्बक बनाए जा सकते हैं।
इनके अतिरिक्त कुछ पदार्थ विद्युत चुम्बकीय होते हैं। तथा कुछ अस्थाई रूप से चुम्बकीय, इनके चुम्बकीय गुण शीघ्रतापूर्वक समाप्त हो जाते हैं।
वास्को दा गामा ने भारतीय नाविकों के चुम्बकीय दिक्सूचक यंत्रों के प्रयोग का विवरण दिया है।
भारतीय परम्परा में चुम्बक को कान्तलोह भी कहा गया है।
नागार्जुन कृत रसरत्नाकर, रसरत्नसमुच्चय, सोमदेव कृत रसेन्द्रचुडामणि, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में कान्तलोह अथवा चुम्बक का विवरण दिया है। यह ग्रंथ नवीं से सोलहवीं शताब्दी के मध्य लिखे गए हैं।
चुम्बक का विवरण रसेन्द्रचूडामणि: (सोमदेव रचित) में इस प्रकार किया गया है :
कान्तलोहं चतुर्धोक्तं रोमकं भ्रामकं तथा ।
चुम्बकं द्रावकं चेति तेषु श्रेष्ठं परं परम् ॥ १४.८८ ॥विन्ध्याद्रौ चुम्बकाश्मानश्चुम्बन्त्यायसकीलकम् ।
क्षिप्रं समाहरत्येव यूनां चित्तमिवाङ्गना ॥ १४.९१ ॥
आयुर्वेदप्रकाशः में
अथ द्वितीयोऽध्याय: ॥ अथोपरसा कथ्यन्ते । गन्धो हेिङ्गुलमभ्रतालकशिलाः स्रोतोञ्जनं टङ्कणं राजावर्तकचुम्बकौ च स्फटिका शङ्खः खटी गैरिकम् । कासीसं रसकं कपर्दसिकताबोलाश्व कडुष्ठक सौराष्ट्री च मता अमी उपरसाः स्रुतस्य केिचिद्गुणैः । तुल्याः स्युर्यदि ते वेिशोध्य विधिना संसाधिताः सेवितास्तत्तद्रोगह्वरानुपानसहितैर्योगैश्चिरायुःप्रदाः ॥ १ ॥
अथ चुम्बक: । स तु पाषाणजाति: । उक्तं च कान्तलोहाश्मभेदाः स्युधुम्बकभ्रामकादय: । चुम्बक: कान्तपाषाणोऽवँस्कान्तो लोह्वकर्षकः ॥ ११ ॥
भावप्रकाशः के पूर्वखण्ड में भावप्रकाशनिघण्टुः के धातूपधातुरसोपरसरत्नोपरत्नविषोपविषवर्गः (धातु, उपधातु रसों तथा रसरत्नों, विष तथा उपविष वर्ग) में
चुम्बकः कान्तपाषाणोऽयस्कान्तो लौहकर्षकः
चुम्बको लेखनः शीतो मेदोविषगरापहः १४५
स्रोत — हिन्दी तथा अंग्रेजी विकिपीडिया