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भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीन योग सर्टिफिकेशन बॉडी से सर्टिफिकेट प्राप्त करने का सुनहरा अवसर, वो भी बिना एक रुपया खर्च किये
आगामी १४ जनवरी मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने देश भर में 75 लाख सामूहिक सूर्यनमस्कार का लक्ष्य रखा है | आप सभी से आग्रह है की नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करके अपना और अपने परिवार का, साथ ही अधिक से अधिक रजिस्ट्रेशन इस आयोजन हेतु करवाए | इस में रजिस्ट्रेशन कर सूर्यनमस्कार आयोजन का सहभागी बनाने पर आपको योग सर्टिफिकेशन बॉडी की तरफ से एक आकर्षक प्रमाण पत्र दिया जाएगा जो की किसी भी निजी/अर्धसरकारी रोजगार के आवेदन करते समय आपकी योग्यता में वृद्धि करने में सहायक होगा | साथ ही सामूहिक सूर्यनमस्कार के इस सामूहिक आयोजन के माध्यम से देश में स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक वातावरण बनाने में भी आपकी सक्रिय भूमिका रहेगी |
तुरंत अपना, अपने परिवार का, अपने मित्रो, परिचितों को प्रेरित कर तुरंत रजिस्ट्रेशन करे जिससे सर्टिफिकेट के साथ ही देश के साथ सदैव खड़े होने का गौरव प्राप्त करे |
महत्वपूर्ण -
रजिस्ट्रेशन के बाद आपको १४ जनवरी को अपने सूर्यनमस्कार के वीडियोज को अपने खुद के फेसबुक/ट्विटर/telegram/इन्स्टाग्राम आदि सोशल मीडिया अकाउंट पर निम्न *हैशटेग के साथ अपलोड अवश्य करना है |
सूर्य नमस्कार के विषय में शास्त्रों में एक श्लोक लिखा गया है : –
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने। आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥
जो मनुष्य सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करते है उनकी आयु , प्रज्ञा, बल,
वीर्य और तेज बढ़ता है |
सूर्यनमस्कार में जिस स्थिति में श्वास लेकर छोडना है
तो श्वास छोडने के समय ऊँ ध्वनि का उच्चारण कर सकते हैं। इससे शरीर में और
अधिक शिथिलता का अनुभव होगा।
श्वसन के समय भी पूर्ण शरीर शिथिल होने पर एक या तीन बार ऊँ ध्वनि का उच्चारण कर सकते हैं।
ॐ सहनाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवाव है। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषाव है। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
नमस्कारासन ( प्रणामासन) स्थिति में समस्त जीवन के स्त्रोत को नमन किया जाता है।
इसके साथ ही सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करने से त्वचा
से जुड़े हुए रोग दूर होते है |
कब्ज और उदर रोगों में भी सूर्य नमस्कार करने से चमत्कारिक रूप से
लाभ मिलता है | पाचन तंत्र के सभी विकार दूर होने लगते है और पाचन तंत्र
मजबूत होता है |
सूर्य समस्त ब्रह्माण्ड का मित्र है, क्योंकि इससे पृथ्वी समत सभी
ग्रहों के अस्तित्त्व के लिए आवश्यक असीम प्रकाश, ताप तथा ऊर्जा प्राप्त
होती है।
पौराणिक ग्रन्थों में मित्र कर्मों के प्रेरक, धरा-आकाश के पोषक तथा निष्पक्ष व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।
प्रातःकालीन सूर्य भी दिवस के कार्यकलापों को प्रारम्भ करने का आह्वान करता है तथा सभी जीव-जन्तुओं को अपना प्रकाश प्रदान करता है
ॐ मित्राय नमः ( मित्र को प्रणाम )
ॐ मित्राय नमः मित्राय का मतलब मित्रता। सूर्य देव हम सब के सच्चे मित्र
है और सहायक है। सच्चे मित्र का सम्बोधन मित्र कहके किया गया है | उनसे इस
मंत्र का प्रयोग हम सूर्य देव से मित्रता का भाव प्रकट कर रहे हैं।
उसी तरह हम इस बात का विश्वाश भी जगता है हमें सबके साथ मित्रता की भावना रखनी चाहिए।
ॐ रवये नमः ( प्रकाशवान को प्रणाम )
“रवये“ का तात्पर्य है जो स्वयं प्रकाशवान है तथा सम्पूर्ण जीवधारियों को दिव्य आशीष प्रदान करता है।
तृतीय स्थिति हस्तउत्तानासन में इन्हीें दिव्य आशीषों को ग्रहण करने के उद्देश्य से शरीर को प्रकाश के स्त्रोत की ओर ताना जाता है
ॐ सूर्याय नमः ( क्रियाओं के प्रेरक को प्रणाम )
यहाँ सूर्य को ईश्वर के रूप में अत्यन्त सक्रिय माना गया है। प्राचीन वैदिक ग्रंथों में सात घोड़ों के जुते रथ पर सवार होकर सूर्य के आकाश गमन की कल्पना की गई है। ये सात घोड़े परम चेतना से निकलने वाल सप्त किरणों के प्रतीक है।
जिनका प्रकटीकरण चेतना के सात स्तरों में होता है – भू (भौतिक), – भुवः
(मध्यवर्ती, सूक्ष्म ( नक्षत्रीय), स्वः ( सूक्ष्म, आकाशीय), मः ( देव
आवास), जनः (उन दिव्य आत्माओं का आवास जो अहं से मुक्त है), तपः
(आत्मज्ञान, प्राप्त सिद्धों का आवास) और सप्तम् (परम सत्य)।
सूर्य स्वयं सर्वोच्च चेतना का प्रतीक है तथा चेतना के सभी सात स्वरों
को नियंत्रित करता है। देवताओं में सूर्य का स्थान महत्वपूर्ण है।
वेदों में वर्णित सूर्य देवता का आवास आकाश में है उसका प्रतिनिधित्त्व करने वाली अग्नि का आवास भूमि पर है।
ॐ भानवे नमः ( प्रदीप्त होने वाले को प्रणाम )
सूर्य भौतिक स्तर पर गुरू का प्रतीक है। इसका सूक्ष्म तात्पर्य है
कि गुरू हमारी भ्रांतियों के अंधकार को दूर करता है – उसी प्रकार जैसे
प्रातः वेला में रात्रि का अंधकार दूर हो जाता है।
अश्व संचालनासन की स्थिति में हम उस प्रकाश की ओर मुँह करके अपने अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।
ॐ खगाय नमः ( आकाशगामी को प्रणाम )
समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्राचीन काल से सूर्य यंत्रों
(डायलों ) के प्रयोग से लेकर वर्तमान कालीन जटिल यंत्रों के प्रयोग तक के
लंबे काल में समय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आकाश में सूर्य की गति को
ही आधार माना गया है।
हम इस शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं जो समय का ज्ञान प्रदान करती है तथा उससे जीवन को उन्नत बनाने की प्रार्थना करते हैं।
ॐ पूष्णे नमः ( पोषक को प्रणाम )
सूर्य सभी शक्तियों का स्त्रोत है। एक पिता की भाँति वह हमें शक्ति, प्रकाश तथा जीवन देकर हमारा पोषण करता है।
साष्टांग नमस्कार की स्थिति में हमे शरीर के सभी आठ केन्द्रों को भूमि से स्पर्श करते हुए उस पालनहार को अष्टांग प्रणाम करते हैं।
तत्त्वतः हम उसे अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को समर्पित करते है तथा आशा
करते हैं कि वह हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ( स्वर्णिम् विश्वात्मा को प्रणाम )
हिरण्यगर्भ, स्वर्ण के अण्डे के समान सूर्य की तरह देदीप्यमान, ऐसी संरचना है जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्म की उत्पत्ति हुई है।
हिरण्यगर्भ प्रत्येक कार्य का परम कारण है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड,
प्रकटीकरण के पूर्व अन्तर्निहित अवस्था में हिरण्यगर्भ के अन्दर निहित
रहता है। इसी प्रकार समस्त जीवन सूर्य (जो महत् विश्व सिद्धांत का
प्रतिनिधित्व करता है ) में अन्तर्निहित है।
भुजंगासन में हम सूर्य के प्रति सम्मान प्रकट करते है तथा यह प्रार्थना करते है कि हममें रचनात्मकता का उदय हो।
ॐ मरीचये नमः ( सूर्य रश्मियों को प्रणाम )
मरीच ब्रह्मपुत्रों में से एक है। परन्तु इसका अर्थ मृग मरीचिका भी
होता है। हम जीवन भर सत्य की खोज में उसी प्रकार भटकते रहते हैं |
जिस प्रकार एक प्यासा व्यक्ति मरूस्थल में ( सूर्य रश्मियों से निर्मित )
मरीचिकाओं के जाल में फँसकर जल के लिए मूर्ख की भाँति इधर-उधर दौड़ता रहता
है।
पर्वतासन की स्थिति में हम सच्चे ज्ञान तथा विवके को प्राप्त करने के
लिए नतमस्तक होकर प्रार्थना करते हैं जिससे हम सत् अथवा असत् के अन्तर को
समझ सकें।
ॐ आदित्याय नमः ( अदिति-सुत को प्रणाम)
विश्व जननी ( महाशक्ति ) के अनन्त नामों में एक नाम अदिति भी है। वहीं समस्त देवों की जननी, अनन्त तथा सीमारहित है।
वह आदि रचनात्मक शक्ति है जिससे सभी शक्तियाँ निःसृत हुई हैं। अश्व संचलानासन में हम उस अनन्त विश्व-जननी को प्रणाम करते हैं।
ॐ सवित्रे नमः ( सूर्य की उद्दीपन शक्ति को प्रणाम )
सवित्र उद्दीपक अथवा जागृत करने वाला देव है। इसका संबंध सूर्य देव
से स्थापित किया जाता है। सवित्री उगते सूर्य का प्रतिनिधि है जो मनुष्य को
जागृत करता है और क्रियाशील बनाता है।
“सूर्य“ पूर्ण रूप से उदित सूरज का प्रतिनिधित्त्व करता है। जिसके
प्रकाश में सारे कार्यकलाप होते है। सूर्य नमस्कार की हस्तपादासन स्थिति
में सूर्य की जीवनदायनी शक्ति की प्राप्ति हेतु सवित्र को प्रणाम किया जाता
है।
ॐ अर्काय नमः ( प्रशंसनीय को प्रणाम )
अर्क का तात्पर्य है – उर्जा । सूर्य विश्व की शक्तियों का प्रमुख
स्त्रोत है। हस्तउत्तानासन में हम जीवन तथा उर्जा के इस स्त्रोत के प्रति
अपनी श्रद्धा प्रकट करते है।
ॐ भास्कराय नमः ( आत्मज्ञान-प्रेरक को प्रणाम )
सूर्य नमस्कार की अंतिम स्थिति प्रणामासन (नमस्कारासन) में अनुभवातीत
तथा आघ्यात्मिक सत्यों के महान प्रकाशक के रूप में सूर्य को अपनी श्रद्वा
समर्पित की जाती है।
सूर्य हमारे चरम लक्ष्य-जीवनमुक्ति के मार्ग को प्रकाशित करता है।
प्रणामासन में हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें यह मार्ग दिखायें। इस
प्रकार सूर्य नमस्कार पद्धति में बारह मंत्रों का अर्थ सहित भावों का
समावेश किया जा रहा है।
Surya Namaskar का अंतिम मंत्र यह है, ॐ श्री सबित्रू सुर्यनारायणाय नमः
सूर्यनमस्कार की सभी 12 स्थतियों से पूर्व इन मंत्रो का उच्चारण करना
चाहिए, Surya Namaskar का अंतिम मंत्र यह है, जो सभी योग करने के पश्चात
उच्चारित किया जाता है.
आदित्यस्य नमस्कारान ये क्रवन्ति दिने दिने
आयु: प्रज्ञाबलवीर्यम् तेजस्तेषा च जायते
अर्थ- सूर्य भगवान् को जो नित्य नमस्कार करते है, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है.
अंत में नमस्कारासन से विश्राम की स्थति में आने हेतु क्रमशः
हाथ खोलकर सीधे नीचे करना
पैर के पंजे खोलना
पैर खोलकर हाथ पीछे कर विश्राम की स्थति में आना.
सूर्य नमस्कार के लाभ/फायदे- Surya Namaskar Benefits In Hindi
नियमित अभ्यास से विटामिन डी मिलता है जिससे हड्डियाँ मजबूत होती है.
आँखों की रोशनी एवं मन की एकाग्रता बढ़ती है.
शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बिमारी से आराम मिलता है.
सूर्य नमस्कार का प्रभाव दिमाग पर पड़ता है व दिमाग ठंडा रहता है.
उदर के पास की वसा को घटाकर शरीर का वजन कम करता है.
बालों की समस्याओं में मददगार है जैसे बाल सफ़ेद होना, झड़ने व रुसी से बचाता है.
त्वचा रोग होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है. कमर लचीली व रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है.
ह्रद्य व फेफड़े की कार्य क्षमता बढ़ती है और पाचन क्रिया में सुधार होता है.
यह शरीर के सभी अंग, मासपेशियों व नसों को क्रियाशील करता है.
शरीर के सभी संस्थान रक्त संचरण, श्वास, पाचन, उत्सर्जन, नाडी तथा ग्रन्थियों को क्रियाशील बनाता है एवं सशक्त करता है.
पाचन सम्बन्धी अपच, कब्ज, गैस तथा भूख न लगने जैसी समस्याओं के समाधान में बहुत उपयोगी भूमिका निभाता है.
जब हमें किसी पर बहुत गुस्सा आता है तो हम कह बैठते हैं तुम्हें रत्ती भर भी शर्म नहीं है?
हममें
से अधिकतर लोग रत्ती का यही अर्थ निकालते हैं कि "जरा सी भी"।बोलने वाला
भी यही सोच कर बोलता है और सुनने वाला भी इसी अर्थ में लेता है। पर असल में
इसका कुछ और ही अर्थ तथा उपयोगिता है।
आपको
यह जानकर बहुत ही हैरानी होगी कि यह एक प्रकार का पौधा है । रत्ती एक पौधा
है, और रत्ती के दाने काले और लाल रंग के होते हैं। यह बहुत आश्चर्य का
विषय सबके लिए है। जब आप इसे छूने की कोशिश करेंगे तो यह आपको मोतियों की
तरह कड़ा प्रतीत होगा, यह पक जाने के बाद पेड़ों से गिर जाता है।
इस
पौधे को ज्यादातर आप पहाड़ों में ही पाएंगे। रत्ती के पौधे को आम भाषा में
‘गूंजा ‘ कहा जाता है। अगर आप इसके अंदर देखेंगे तो इसमें मटर जैसी फली
में दाने होते हैं। गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम
की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में
4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज
निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी
के स्थान में भी प्रयुक्त होती है।
रत्ती
एक बहुत ज़हरीला पौधा है. दवाई के रूप में इसकी पत्तिया, जड़ और बीज का
प्रयोग किया जाता है. पत्तियां और जड़ में कम विष होता है. अजीब बात हैं की
इसके बीज बहुत विषाक्त होते हैं. इसका प्रयोग केवल लगाने की दवाई के रूप
में किया जाता है. लेकिन भूलकर भी ये जड़ी बूटी खुले घाव वाले स्थान पर न
लगायी जाय. और इसका प्रयोग केवल काबिल हकीम और वैद्य की निगरानी में ही
किया जाए. किसी खाने की दवा में अगर रत्ती का इस्तेमाल लिखा हो तो ऐसे नुस्खे का प्रयोग भूलकर भी न करें क्योंकि रत्ती या गुंजा खतरनाक ज़हर है.
चित्र गूगल से प्राप्त
सोना को मापने के लिए होता था इस्तेमाल
जब
लोगों ने इसमें रुचि दिखाइ, और इसकी जांच पड़ताल शुरू की तो सामने आया कि
प्राचीन काल में या पुराने जमाने में कोई मापने का सही पैमाना नहीं था। इसी
वजह से रत्ती का इस्तेमाल सोने या किसी जेवरात के भार को मापने के लिए
किया जाता था। वहीं सात रत्ती सोना या मोती माप के चलन की शुरुआत मानी जाती है।
आपको
बता दें कि यह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप में होता
आ रहा था। अभी की भी बात करें तो यह विधि, या कहें तो इस मापन की विधि को
किसी भी आधुनिक यंत्र से ज्यादा विश्वासनीय और बढ़िया माना जाता है। आप
इसका पता अपने आसपास के सुनार या जौहरी से भी लगा सकते हैं।
मुंह के छालों को भी करता है ठीक
ऐसा
माना जाता है कि अगर आप रत्ती के पत्ते को चबाना शुरू करें तो मुंह में
होने वाले सारे छाले ठीक हो जाते हैं। साथ ही साथ इस के जड़ को भी सेहत के
लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। आपने कई लोगों को’ रत्ती’, ‘ गूंजा’ पहनते
हुए भी देखा होगा। कुछ लोग अंगूठी बनवा देते हैं तो कुछ लोग माला बनाकर
इसे पहनते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह एक सकारात्मक ऊर्जा को उत्पन्न करता
है जो की बहुत ही अच्छी बात है।
हमेशा एक जैसा होता है इसका भार
आपको
यह जानकर बहुत ही आश्चर्य होगा कि इसकी फली की आयु कितनी भी क्यों ना हो,
लेकिन जब आप इसके अंदर के उपस्थित बीजों को लेंगे और उनका वजन करेंगे, तब
आपको हमेशा यह एक समान ही दिखेगा। इसमें 1 मिलीग्राम का भी फर्क कभी नहीं
पड़ता है।
इंसानों
की बनाई गई मशीन पर तो कभी-कभी भरोसा उठ भी जाए और यंत्र से गलती हो भी
जाए लेकिन इस पर आप आंख बंद करके विश्वास कर सकते हैं। प्रकृति द्वारा दिए गए इस ‘गूंजा ‘ नामक पौधे के बीज की रत्ती का वजन कभी इधर से उधर नहीं होता है।
अगर वजन मापने की आधुनिक मशीन को देखा जाए तो एक रत्ती लगभग — 0.121497 ग्राम की हो जाती है।
गूंजा
के बीज तंत्र मंत्र में भी उपयोग किए जाते हैं।ये तांत्रिकों के बीच जितने
मशहूर हैं उतने ही आयुर्वेद चिकित्सा में भी इनका प्रयोग किया जाता
है।श्वेत गूंज का आयुर्वेद में सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। कुछ गूंजे
विषैले भी होते हैं इसलिए बिना जांच पड़ताल के इनका प्रयोग नहीं करना
चाहिए।
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क्या फायदा होगा - 2 लाख रुपये का मुफ्त बीमा - श्रम विभाग की सभी योजनाओं का लाभ जैसे बच्चों को छात्रवृत्ति, मुफ्त सायकल , मुफ्त सिलाई मशीन, अपने काम के लिए मुफ्त उपकरण आदि - भविष्य में राशन कार्ड को इससे लिंक किया जायेगा जिससे देश के किसी भी राशन दुक़ान से राशन मिल जायेगा
वास्तव में आपके आसपास दिखने वाले प्रत्येक कामगार का यह कार्ड बन सकता है। विभिन्न प्रकार के मजदूरों / कामगारों का उदाहरण, जिनका ई-श्रम कार्ड बन सकता है निम्नानुसार हैं : -
घर का नौकर - नौकरानी (काम वाली बाई), खाना बनाने वाली बाई (कुक), सफाई कर्मचारी, गार्ड, रेजा, कुली, रिक्शा चालक, ठेला में किसी भी प्रकार का सामान बेचने वाला (वेंडर), चाट ठेला वाला, भेल वाला, चाय वाला, होटल के नौकर/वेटर, रिसेप्शनिस्ट, पूछताछ वाले क्लर्क, ऑपरेटर, हर दुकान का नौकर / सेल्समैन / हेल्पर, ऑटो चालक, ड्राइवर, पंचर बनाने वाला, ब्यूटी पार्लर की वर्कर, नाई, मोची, दर्ज़ी ,बढ़ई , प्लम्बर, बिजली वाला (इलेक्ट्रीशियन), पोताई वाला (पेंटर), टाइल्स वाला, वेल्डिंग वाला, खेती वाले मज़दूर, नरेगा मज़दूर, ईंट भट्ठा के मज़दूर, पत्थर तोड़ने वाले, खदान मज़दूर, फाल्स सीलिंग वाला, मूर्ती बनाने वाले, मछुवारा, चरवाहा, डेयरी वाले, सभी पशुपालक, पेपर का हॉकर, जोमैटो स्विगी के डिलीवरी बॉय, अमेज़न फ्लिपकार्ट के डिलीवरी बॉय (कूरियर वाले), नर्स, वार्डबॉय, आया, मंदिर के पुजारी, विभिन्न सरकारी ऑफिस के दैनिक वेतन भोगी, कलेक्टर रेट वाले कर्मचारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता सहायिका, मितानिन, आशा वर्कर आदि आदि अर्थात सभी तरह के व्यक्ति का पंजीयन हो सकता है।
इस मैसेज को पढ़ने वाले व्यक्ति से निवेदन है कि कम से कम इस मैसेज को अपने Contact/Groups में शेयर कर दीजिये, ताकि जरूरतमंद व्यक्ति / मज़दूर का पंजीयन हो सके.
लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द, सोवियत संघ रूस)
भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया ।
उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया।
उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
( हिंदू संवाद पौष शुक्ल पक्ष नवमी तिथि ११/०१ इतिहास स्मृति )
11 जनवरी 1915 बलिदान-दिवस देशभक्त सरदार सेवासिंह
भारत की आजादी के लिए भारत में हर ओर लोग प्रयत्न कर ही रहे थे; पर अनेक वीर ऐसे थे, जो विदेशों में आजादी की अलख जगा रहे थे। वे भारत के क्रान्तिकारियों को अस्त्र-शस्त्र भेजते थे। ऐसे ही एक क्रान्तिवीर थे सरदार सेवासिंह, जो कनाडा में रहकर यह काम कर रहे थे।
सेवासिंह थे तो मूलतः पंजाब के, पर वे अपने अनेक मित्र एवं सम्बन्धियों की तरह काम की खोज में कनाडा चले गये थे। उनके दिल में देश को स्वतन्त्र कराने की आग जल रही थी। प्रवासी सिक्खों को अंग्रेज अधिकारी अच्छी निगाह से नहीं देखते थे।
मिस्टर हॉप्सिन नामक एक अधिकारी ने एक देशद्रोही बेलासिंह को अपने साथ मिलाकर दो सगे भाइयों भागासिंह और वतनसिंह की गुरुद्वारे में हत्या करा दी। इससे सेवासिंह की आँखों में खून उतर आया। उसने सोचा यदि हॉप्सिन को सजा नहीं दी गयी, तो वह इसी तरह अन्य भारतीयों की भी हत्याएँ कराता रहेगा।
सेवासिंह ने सोचा कि हॉप्सिन को दोस्ती के जाल में फँसाकर मारा जाये। इसलिए उसने हॉप्सिन से अच्छे सम्बन्ध बना लिये। हॉप्सिन ने सेवासिंह को लालच दिया कि यदि वह बलवन्तसिंह को मार दे, तो उसे अच्छी नौकरी दिला दी जायेगी। सेवासिंह इसके लिए तैयार हो गया। हॉप्सिन ने उसे इसके लिए एक पिस्तौल और सैकड़ों कारतूस दिये। सेवासिंह ने उसे वचन दिया कि शिकार कर उसे पिस्तौल वापस दे देगा।
अब सेवासिंह ने अपना पैसा खर्च कर सैकड़ों अन्य कारतूस भी खरीदे और निशानेबाजी का खूब अभ्यास किया। जब उनका हाथ सध गया, तो वह हॉप्सिन की कोठी पर जा पहुँचा। उनके वहाँ आने पर कोई रोक नहीं थी। चौकीदार उन्हें पहचानता ही था। सेवासिंह के हाथ में पिस्तौल थी।
यह देखकर हॉप्सिन ने ओट में होकर उसका हाथ पकड़ लिया। सेवासिंह एक बार तो हतप्रभ रह गया; पर फिर संभल कर बोला, ‘‘ये पिस्तौल आप रख लें। इसके कारण लोग मुझे अंग्रेजों का मुखबिर समझने लगे हैं।’’ इस पर हॉप्सिन ने क्षमा माँगते हुए उसे फिर से पिस्तौल सौंप दी।
अगले दिन न्यायालय में वतनसिंह हत्याकांड में गवाह के रूप में सेवासिंह की पेशी थी। हॉप्सिन भी वहाँ मौजूद था। जज ने सेवासिंह से पूछा, जब वतनसिंह की हत्या हुई, तो क्या तुम वहीं थे। सेवासिंह ने हाँ कहा। जज ने फिर पूछा, हत्या कैसे हुई ? सेवासिंह ने देखा कि हॉप्सिन उसके बिल्कुल पास ही है। उसने जेब से भरी हुई पिस्तौल निकाली और हॉप्सिन पर खाली करते हुए बोला - इस तरह। हॉप्सिन का वहीं प्राणान्त हो गया।
न्यायालय में खलबली मच गयी। सेवासिंह ने पिस्तौल हॉप्सिन के ऊपर फेंकी और कहा, ‘‘ले सँभाल अपनी पिस्तौल। अपने वचन के अनुसार मैं शिकार कर इसे लौटा रहा हूँ।’’ सेवासिंह को पकड़ लिया गया। उन्होंने भागने या बचने का कोई प्रयास नहीं किया; क्योंकि वह तो बलिदानी बाना पहन चुके थे।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हॉप्सिन को जानबूझ कर मारा है। यह दो देशभक्तों की हत्या का बदला है। जो गालियाँ भारतीयों को दी जाती है, उनकी कीमत मैंने वसूल ली है। जय हिन्द।’’
उस दिन के बाद पूरे कनाडा में भारतीयों को गाली देेने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। 11 जनवरी, 1915 को इस वीर को बैंकूवर की जेल में फाँसी दे दी गयी।