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शुक्रवार, 27 मई 2022

जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे| - #शबरीकीप्रतिक्षा

 #शबरीकीप्रतिक्षा
शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे ,तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी ...…



शबरी की उम्र दस वर्ष थी । वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी ...…

महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे ।शबरी को समझाया "पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे यहां प्रतीक्षा करो" ...…

अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा उसने फिर पूछा कब आएंगे?

महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे ।वे भूत भविष्य सब जानते थे वे ब्रह्मर्षि थे । महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए। शबरी को नमन किया।

 आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए !!ये उलट कैसे हुआ गुरु यहां शिष्य को नमन करें ये कैसे हुआ???

महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका ।
महर्षि मतंग बोले
- पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।
- अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ
- उनका कौशल्या से विवाह होगा फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी
-फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा फिर प्रतीक्षा..

- फिर उनका विवाह कैकई से होगा। फिर प्रतीक्षा..

-फिर वो जन्म लेंगे , फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे तुम उन्हें कहना आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये ।उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये आपका अभीष्ट सिद्ध होगा और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे ...…

शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। अबोध शबरी इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई ।

वह फिर अधीर होकर पूछने लगी "इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव???"

महर्षि मतंग बोले "वे ईश्वर हैं अवश्य ही आएंगे ।यह भावी निश्चित है ।  लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते हैं लेकिन आएंगे अवश्य ...…

जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे इसलिए प्रतीक्षा करना वे कभी भी आ सकते हैं तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे शायद यही मेरे तप का फल है"..…

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी ।वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता हैं वे कभी भी आ सकतें हैं ।

हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है, हर क्षण प्रतीक्षा करती है...…

कभी भी आ सकतें हैं हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा शबरी बूढ़ी हो गई लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही ...…

और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी ...…

गुरु का कथन सत्य हुआ भगवान उसके घर आ गए शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया ...…

ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम , दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो। जय हो।जय हो।एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :-

"कहो राम !  शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ  ?"

राम मुस्कुराए :-  "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?"

"जानते हो राम !   तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे|   यह भी नहीं जानती थी, कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था, कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।

राम ने कहा :- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था, कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है”|

"एक बात बताऊँ प्रभु !   भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती हैं |   पहली  ‘वानरी भाव’,   और दूसरी  ‘मार्जारी भाव’|

”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है, और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है|  दिन रात उसकी आराधना करता है...” (वानरी भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया|  ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी,   जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न,   वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी,   और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है...   मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना..." (मार्जारी भाव)

राम मुस्कुरा कर रह गए |

भीलनी ने पुनः कहा :- "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न...   “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम,   कहाँ घोर दक्षिण में मैं”|   तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य,   मैं वन की भीलनी...   यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”

राम गम्भीर हुए | कहा :-

भ्रम में न पड़ो मां !   “राम क्या रावण का वध करने आया है” ?

रावण का वध तो,  लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर भी कर सकता है|

राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है,   तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी,  जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे,   कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था”|

जब कोई  भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं !   यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ,   एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|

राम वन में बस इसलिए आया है,   ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय,   तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर वन में रहने वाली समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”|
(अंत्योदय)

राम वन में इसलिए आया है,  ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं  मां।
माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

राम ने फिर कहा :-

राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है,   भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए”|

राम निकला है,   ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है”|

राम निकला है, कि ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है”।

राम आया है,   ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है”।

राम आया है,   ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”।

और

राम आया है,   ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं”।

शबरी की आँखों में जल भर आया था|
उसने बात बदलकर कहा :-  "बेर खाओगे राम” ?

राम मुस्कुराए,   "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :-
"बेर मीठे हैं न प्रभु” ?

"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ,  कि यही अमृत है”|

सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :-   "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम"

अखंड भारत-राष्ट्र के महानायक, मर्यादा-पुरुषोत्तम, भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन !

#इतिहासकीपोल_खोल - #मुगल काल के अय्याश राजकुमार शाहजहाँ

 #मुगलकालकेअय्यासराजकुमारशाहजहाँ...



इतिहासकार वी.स्मिथ ने लिखा है, ”शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।” (अकबर दी ग्रेट मुगल: वी स्मिथ, पृष्ठ 359) कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था, और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था।


यह नर पशु, यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था, कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी। सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, ”महल में बार- बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय- विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी। (टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइस बर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, ऑक्‍सफोर्ड, 1934) शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए, आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद- बानो- बेगम” था। और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी।

मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी। इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उसने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा था जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था। अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की? शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी। शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान” था। शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।

गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला था।शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था, की कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ सम्भोग करने का दोषी तक कहा है। शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी। इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को भोगना शुरु कर दिया था। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया। बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है।”

इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था। कहा जाता है कि एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया। दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था कि मुगल खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी। इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था कि मुग़ल खानदान की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी, नौकर के साथ साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी। कहा जाता है कि जहाँआरा अपने बाप के लिए लड़कियाँ भी फंसाकर लाती थी। जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था। शाहजहाँ के राज ज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे से नशा देकर बाप के हवाले कर दिया था, जिससे शाहजहाँ ने अपनी उम्र के 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था। बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।

शाहजहाँ को प्यार नहीं हैवानियत की हवस थी। उसने अपने अहंकार और शरीर में जलती हवस की ज्वाला को शांत करने के लिए मुमताज से विवाह किया था, ना कि उसकी सुंदरता से। जिसने कभी औरतों की इज्जत ना की हो, वो प्यार की ईबादत को क्या समझेगा। इसलिए ताजमहल को मुमताज की याद का मकबरा कहना गलत होगा।

दरअसल, ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गई है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपाई जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान शिव का मंदिर तेजो महालय है। इतिहासकार पीएन ओक ने पुरातात्विक साक्ष्यों के जरिए बकायदा इसे साबित किया है और इस पर पुस्तकें भी लिखी हैं।

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शाहजहां (1627-1658) ने जो कारनामा तेजोमहल के साथ किया वही कारनामा लाल कोट के साथ। लाल किला पहले लाल कोट कहलाता था। दिल्ली का लाल किला शाहजहां के जन्म से सैकड़ों साल पहले 'महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय' द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था। असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण,लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू के आदेश पर हमारे वामपंथी इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।

शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 ईस्वी में 74 साल की उम्र में आगरे के किले में हुई। ‘द हिस्ट्री चैनल’ के अनुसार अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण उसकी मौत हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था।अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर महान बताया जाता है।

#इतिहासकीपोल_खोल की श्रृंखला यूँ ही चलती रहेगी, अगली कड़ी मे "टोपियां सिलकर जीवन व्यतीत करने वाले उदार हृदय औरंगजेब" की बनी नैरेटिव की पोल खोली जाएगी।

राजस्थान की सबसे बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता हिन्दू प्रिमियर लीग के शुभारंभ


 खेल में माध्यम से हिन्दू समाज मे जागृति के भाव को जगा कर एकजुटता लाने के उद्देश्य से होने वाली राजस्थान की सबसे बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता हिन्दू प्रिमियर लीग के शुभारंभ पर शनिवार सुबह आप सभी सादर आमंत्रित है ।
Saturday  28 May- 2022
TIME : -  8.30 AM
VANUE- RAILWAY CRICKET GROUND



निवेदक - हिन्दू क्रिकेट प्रीमियर लीग आयोजन समिति जोधपुर ।
SUKHDEV SINGH DEWAL 

9828384442

गुरुवार, 26 मई 2022

असली अघोरी साधु की पहचान


 

असली अघोर शब्द का अर्थ है अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर अघोर जो घोर ना हों जो भयावह से मुक्त हों। अघोर साधू की पहचान जानिये विस्तार से -

अघोरी बाबा सुनते ही नसों में एक वीभत्स घिनौना सा रूप आ जाता है. भस्म का स्नान, मनुष्य मांस का भक्षण करने वाला, तंत्र मंत्र से सीधा जोड़कर देखा जाता है। अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में तात्पर्य है 'अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर। साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त, शुद्धता भी समझा जाता है. किंतु अघोरियों का रहन-सहन और शुद्धता के एकदम विरुद्ध ही दिखते हैं. अघोरियों की इस रहस्यमयी दुनिया से जुड़े कुछ नवीनतम पक्ष लेकर आई हूँ। आप भी इस बेहद ही महत्वपूर्ण चर्चा में सम्मिलित होइये - - - - -

‌1. कठोर जीवन - इनका जीवन अत्यंत कठोर होता है। ये 24 घंटे तक खड़े होकर शिव गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। ऐसा करने के पश्चात ये स्वयं का श्राद्ध कर्म करते हैं। वर्षो तक धूप, वर्षा ठंड से स्वयं को तपाते हैं। हठ योग करते हैं। जैसे - कुंभ के मेले में ये प्रण लेते हैं कि एक पैर पर खड़े रहना है जब तक कुंभ का मेला है। यदि उस बीच ये पैर को जमीन में रख देते हैं तो इसका अर्थ है कि ये अगले कुंभ मेले तक एक पैर में ही खड़े रहेंगे।

‌इस प्रकार इनका जीवन बहुत कठिन कठोर तपस्या से भरा होता है। ये किसी से कुछ नहीं मांगते।

‌जो भी मिल जाता है पशु मे कुत्ते के साथ मिलकर इक ही पात्र में खाते हैं।

2.. इंसानों का कच्चा मांस खाते हैं: इस बात से लगभग सभी अवगत ही होंगे कि अघोरी कच्चा मांस खाते हैं। ये अघोरी सदैव रात्री के समय श्मशान घाट में ही रहते हैं और अधजली शवों को निकालकर उनका कच्चा पक्का मांस खाते हैं, शरीर से प्रवाहित होने वाले द्रव्य अर्थात जब शरीर डिकंपोज होती है तो शरीर का रक्त पानी की तरह बहने लगता है उसी का ये सेवन करते हैं। जो असहनीय गंध से भरा होता है। इसके पीछे उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति में प्रबलता होती है. वहीं जो बातें आम जनमानस को वीभत्स लगती हैं, अघोरियों के लिए वो उनकी साधना का एक महत्वपूर्ण भाग है।

‌3. शिव और शव के उपासक: अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में तल्लीन करना चाहते हैं. शिव के पंच रूपों में से एक रूप 'अघोर' है. शिव की उपासना करने के मध्य ये अघोरी शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं. 'शव से शिव की प्राप्ति' का यह रास्ता अघोर पंथ की निशानी है. ये अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है जैसे मां काली शिव पर पैर रखी थीं। और श्मशान साधना, जहां हवन यज्ञ किया जाता है। साथ ही ये साधना में सदैव किसी मज़बूत शरीर का ही उपयोग करते हैं। ना कि किसी बालक का।

4. शिव की वजह से ही धारण करते हैं नरमुंड: शरीर का श्रृंगार ये भस्म से करते हैं। क्योंकि शरीर ही इनका वस्त्र अगर आपने अघोरियों चित्र देखी होंगी तो यह जरूर पाया होगा कि उनके पास हमेशा एक इंसानी खोपड़ी, त्रिशूल जरूर रहती है। अघोरी बाबा मानव खोपड़ियों को भोजन के पात्र के रूप में प्रयोग करते हैं, जिस कारण इन्हें कापालिक कहा जाता है. कहा जाता है कि यह प्रेरणा उन्हें शिव से ही मिली. किवदंतियों के अनुसार एक बार शिव ने ब्रह्मा का मस्तक अहंकार उत्पन्न होने के कारण खंडित कर दिया था और उनका सिर लेकर उन्होंने पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए थे. शिव के इसी रूप के अनुयायी होने के कारण अघोरी भी अपने साथ नरमुंड रखते हैं।

5. स्वभाव से रुखे, किन्तु सबसे बड़े दानी - अघोरी भले ही स्वभाव से रुखे होते हैं किन्तु अपने पुण्य फल को देने में एक क्षण की भी प्रतीक्षा नहीं करते। ये जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं। इनकी आंखों में बहुत क्रोध दिखता है किंतु मन से ये बहुत ही शांत होते हैं।

6. बालक की तरह अबोध - ये बालक की तरह अबोध भी हैं। जैसे एक बालक मल - मूत्र गंध दुर्गंध सुगंध से मुक्त रहते हैं ठीक वैसे ही अघोरी भी घृणा से मुक्त होकर स्वयं में मस्त मौला बनकर जीते हैं।

कुछ अजर अमर जीव जंतु के बारे में जानकारी

कुछ अजर अमर जीव जंतु के बारे में जानकारी

1.प्लैनरियन फ्लैटवर्म : यह प्राणी अजर अमर है आप इसके लगभग 200 टुकड़े कर सकते हैं। आश्चर्य की हर टूकड़े फिर से एक जीव बन जाएगा।

2.हाइड्रा — आप बहुत सिरों वाला सांप या जलव्याल समझ सकते हैं। इसकी कभी भी प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती। हाइड्रा अपने शरीर को अनेक भाग में विभाजित करके प्रत्येक भाग से ग्रोथ करके नए हाइड्रा में विकसित हो जाता है। देखने में यह शायद आपको ऑक्टोपस जैसा लगे।

3.जेलिफ़िश - जेलीफिश के बारे में तो सभी जानते ही होंगे। यह अपने ही सेल्स को बदल कर फिर से युवा अवस्था में पहुंच जाती है और यह चक्र चलता ही रहता है।

4.टार्डीग्रेड-पानी में रहने वाला आठ पैरों वाला और 4 mm लंबा यह जीव 30 वर्षों तक बिना खाए पीए रह सकता है और इसमें अंतरिक्ष के व्योम में भी जिंदा करने की योग्यता है। यह किसी भी प्रकार के वातावरण में जिंदा रह सकता है। टार्डीग्रेड माइनस 272 डीग्री में बिना किसी परेशानी के रह सकता है और यह लगभग 150 डीग्री की गर्मी भी आराम से सह लेता है। टार्डीग्रेड पृथ्वी पर पर्वतों से लेकर गहरे महासागरों तक और वर्षावनों से लेकर अंटार्कटिका तक लगभग हर जगह रहते हैं। मानवों की तुलन में यह सैंकड़ों अधिक गुना तक जिंदा रह सकते हैं। संभवत: उससे भी ज्यादा यदि इन्हें मारा न जाए तो। यह प्राणी धरती पर लगभग 60 करोड़ साल है। इस जंतु को धरती का प्राणी नहीं माना जाता है।

5.अलास्कन वुड फ्रॉग (Alaskan wood frog) : यह मेंढक भी अजर अमर है। अलास्का में जब तापमान - 20°c गिर जाता है तब इस मेढक का शरीर लगभग फ्रीज हो जाता है और यह सीतनिद्रा (hibernation) में सो जाता है। तब यह लगभग 80% तक बर्फ में जम जाता है। इस दौरान उसका सांस लेना भी बंद हो जाता है। दिल की धड़कन भी बंद हो जाती है। अगर डॉक्टरी भाषा में कहें तो यह मर चुका होता है लेकिन जब वसंत की शुरुआत होती है और इसके ऊपर से बर्फ हटती है तो इसके दिल में अचानक से इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न होता है और उसका दिल फिर से धड़कने लगता है। मतलब यह कि यह फिर से जिंदा होकर अपने काम पर लग जाता है। इसे फ्रोजन फ्रॉग भी कहते हैं।

6.लंग फिश (Lung Fish) : इस मछली के बारे में कहा जाता है कि यह पांच साल तक बिना कुछ खाए पीए जिंदा रह सकती है। अफ्रीका में पाई जाने वाली यह मछली सूखा पड़ने पर खुद को जमीन में दफन कर लेती है। सूखे के मौसम के दौरान जब यह जमीन के अंदर होती है तो अपने शरीर के मेटाबोलिज्म को 60 गुना तक कम कर लेती है।

स्रोत गूगल

सर्जरी के आविष्कारक - महर्षि सुश्रुत

 

महर्षि सुश्रुत सर्जरी के आविष्कारक माने जाते हैं...

आज से 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए।

आधुनिक विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है, लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष पर यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे।

महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुत संहिता' ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 125 से भी अधिक शल्य चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणों के नाम मिलते हैं और इस ग्रंथ में लगभग 300 प्रकार की सर्जरियों का उल्लेख मिलता है।

भारत का हाबूर गांव, जहां मिलता है दही जमाने वाला चमत्कारी पत्थर- इसमें भारी औषधीय गुण होते हैं

भारत का हाबूर गांव, जहां मिलता है दही जमाने वाला चमत्कारी पत्थर

दही जमाने के लिए लोग अक्सर जामन ढूंढ़ते नजर आते हैं। कभी कटोरी लेकर पड़ोसी के यहां पर भागते हैं तो कभी थोड़ा सा दही बाजार से ले आते हैं, सोचते है की थोड़े से दही को दूध में डालकर खूब सारा दही जमा ले। लेकिन राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक गांव को अभी तक जामन की जरूरत ही नहीं पड़ी, ऐसा नहीं है कि यहां पर लोग दही नहीं खाते, छाछ नहीं पीते। बल्कि उनके पास लाखों बरस पुराना जादुई पत्थर है जिसके संपर्क में आते ही दूध, दही बन जाता है। आइए जानते हैं उस गांव के पास विशेष पत्थर के साथ दही बनाने की अनूठी विधि कौनसी है ? और उस पत्थर का रहस्य क्या है?

हाबूर गांव - जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है हाबूर गांव। ये वहीं गांव है जहां पर दही जमाने वाला रहस्यमयी पत्थर पाया जाता है। इस गांव को स्वर्णगिरी के नाम से जाना जाता है। हाबूर गांव का वर्तमान नाम पूनमनगर है। हाबूर पत्थर को स्थानीय भाषा में हाबूरिया भाटा कहा जाता है। ये गांव अनोखे पत्थर की वजह से देश- विदेश में प्रसिद्ध है।


दही जामने वाला हाबूर पत्थर: जैसलमेर पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है, यहां के पीले पत्थर दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। लेकिन हाबूर गांव का जादुई पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है। हाबूर पत्थर दिखने में बहुत खूबसूरत होता है। ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है। हाबूर पत्थर का कमाल ऐसा है कि इस पत्थर में दूध को दही बनाने की कला है। हाबूर पत्थर के संपर्क में आते ही दूध एक रात में दही बन जाता है। जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुशबू वाला होता है। इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है। इस गांव में मिलने वाले स्टोन से यहां के लोग बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाते हैं जो अपनी विशेष खूबी के चलते देश-विदेश में काफी लोकप्रिय है। इस पत्थर से गिलास, प्लेट, कटोरी, प्याले, ट्रे, मालाएं, फूलदान, कप, थाली, और मूर्तियां बनाए जाते हैं।

पत्थर से दही जमने की वजह : अब सवाल उठता है कि एक पत्थर से कैसे दही जम सकता है। वो भी रात को दूध उस पत्थर से बने बर्तन में डाला और सुबह उठकर दही खा लो। जब ऐसा होने लगा तो रिसर्च भी होने लगी, जिसमें ये सामने आया है की हाबूर पत्थर में दही जमाने वाले सारे केमिकल्स मौजूद है। इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं। ये केमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं। हाबूर गांव के भूगर्भ से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है जो इसे चमत्कारी बनाते हैं।

क्या है इतिहास: कहा जाता है कि जैसलमेर में पहले समुद्र हुआ करता था। जिसका का नाम तेती सागर था। कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए और पहाड़ों का निर्माण हुआ। हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है। जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है।

हाबूर पत्थर से बने बर्तनों की डिमांड: हाबूर पत्थर से बने बर्तनों कि डिमांड देश के साथ-साथ विदेशों में भी है। इस पत्थर से बने बर्तनों की बिक्री ऑनलाइन भी होती है। कई ऐसे ऑनलाइन आउटलेट है जहां पर आपको इस पत्थर से बने बर्तन अलग- अलग Rate पर मिल जाएंगे। उदाहरण के तौर पर अगर आपको हाबूर पत्थर से बनी एक प्याली खरीदनी है तो आपको 1500 से 2000 रुपये चुकाने होंगे। वहीं कटोरी की कीमत 2500 के आसपास हो सकती है। वहीं एक गिलास की कीमत 650 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक होती है।

हाबूर पत्थर में औषधीय गुण: हाबूर पत्थर चमत्कारी जीवाश्म पत्थर बताया जाता है जिसका गठन 180 मिलियन साल पहले समुद्र के खोल से जैसलमेर में हुआ था। इसमें भारी औषधीय गुण होते हैं, जैसे मधुमेह तथा रक्त दबाव नियंत्रित करता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पत्थर से बने गिलास में रात को सोते समय पानी भरकर रख दो और सुबह खाली पेट पी लो। अगर आप एक से डेढ़ महीने तक लगातार इसका पानी पीते है, तो आपके शरीर में एक चेंज नजर आएगा। आपके शरीर में होने वाला जोड़ों का दर्द कम होगा साथ ही पाइल्स की बीमारी कंट्रोल होगी।

हाबूर गांव कैसे जाएं : अगर आप दिल्ली से हाबूर गांव आना चाहते हैं तो आपको 810 किलोमीटर का सफर तय करना होगा। आप यहां पर बस, कार, जीप में आ सकते हैं।

25 मई से प्रारंभ होकर 2 जून तक रहेगा नौतपा

!!  *सूर्यनारायणाय नमः* !!

*🌞🔥25 मई से प्रारंभ होकर   2 जून तक रहेगा नौतपा*


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*🌞🔥नौतपा यानी वे 9 दिन जब सूर्य धरती के ज्यादा करीब आ जाते हैं, जिससे गर्मी अधिक पड़ती है। नौतपा 25 मई शुरू हो रहा है और 2 जून तक रहेगा। नौतपा के दौरान प्रचंड गर्मी होती है, जिससे मानसून बनता है।*

 *🌞🔥अगर इन 9 दिनों में बारिश होने लगे तो नौतपा का गलना कहा जाएगा। ऐसा होने पर अच्छी बारिश की संभावना नहीं होती। माना जाता है कि नौतपा  खूब तपा तो उस साल अच्छी बारिश होती है। क्योंकि तपन की वजह से समुद्र के जल का तेजी से वाष्पीकरण होता है, जिससे बादल बनते हैं और बारिश करते हैं।*

*🌞सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर*
*परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर*

*🌞🔥घाघ के इस दोहे का अर्थ है… रोहिणी नक्षत्र में भरपूर गर्मी हो, मूल भी पूरा तपे और जेठ की प्रतिपदा पर भी भीषण गर्मी हो तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।* 

*🔥🌞मौसम और खेती के लिहाज से इस साल यह दोहा एकदम सटीक साबित हो सकता है।* 

*🌞🔥ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक, जेठ के इन नौ दिनों में गर्मी का प्रकोप बढ़ता जाएगा। इसके साथ धूल भरी आंधी भी चलने के आसार हैं। नौतपा में भीषण गर्मी पड़ने से इस साल अच्छी बरसात होगी। इससे खाद्यान्न उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी।*

*🌞🔥ऐसे शुरू होता है नौतपा*

*🌞🔥ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक, ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि पर यानी 25 मई को सूर्य कृतिका से रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। दोपहर 02 बजकर 52 मिनट पर सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ नौतपा शुरू हो जाएगा और वहां वह 8 जून को सुबह 06 बजकर 40 मिनट तक रहेंगे। इसके बाद 15 दिनों तक सूर्य की किरणें धरती पर लंबवत पड़ेंगी।* 

*🌞🔥इसके शुरुआती नौ दिनों को नौतपा कहते हैं। इन नौ दिनों को गर्मी का चरम माना जाता है।*

*🌞🔥ग्रह-नक्षत्रों की चाल*

*🌞🔥मौजूदा समय में सूर्य शुक्र की राशि वृषभ राशि में गोचर कर रहे हैं। साथ ही शुक्र नौतपा से पहले मेष में आ गए हैं और मंगल व गुरु एक ही नक्षत्र में विराजमान रहेंगे। पूरे नौतपा के दौरान मेष, वृषभ और मीन राशि में तीन ग्रहों की युति रहेगी अर्थात नौतपा के दौरान हर दिन त्रिग्रही योग बनेगा, जिससे मौसम में बदलाव आएगा*

*🌞🔥अच्छी बारिश की मान्यता*

*🌞🔥ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, चंद्रमा जब ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो और तीव्र गर्मी पड़े तो वह नौतपा है। रोहिणी के दौरान बारिश हो जाती है तो इसे रोहिणी नक्षत्र का गलना भी कहा जाता है। इस बार मॉनसून में अच्छी बारिश के अनुकूल योग हैं। इस वर्ष मेघेश बुध हैं और वह सूर्य के नक्षत्र में स्थित हैं। इससे वर्षा समयानुकूल होने के योग बन रहे हैं।*
*🌞🔥यह है नौतपा का विज्ञान*

*🌞🔥नौतपा के दौरान सूर्य घूमते हुए मध्य भारत के ऊपर आ जाता है। जब यह कर्क रेखा के पास पहुंच जाता है, तब 90 डिग्री की स्थिति में होता है। इससे सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं। इससे तापमान बढ़ जाता है।*

*🌞🔥नौतपा के दौरान बरतें ये सावधानी*

*🌞🔥नौतपा के समय कुछ भी खाए-पिए घर से नहीं निकलना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। ऐसा करने से शरीर में नौतपा के दौरान जल की कमी नहीं रहती।*

*🌞🔥नौतपा के समय हमेशा टोपी पहने, कानों को ढ़ककर रखें और आंखों पर चश्मा लगाएं। हर दिन सत्तू पिएं और मौसमी फल, फलों का रस, दही, मट्ठा, छाछ आदि का सेवन करें।*

*🌞🔥नौतपा के समय तैलीय और मसालेदार भोजन से दूरी बनाकर रखें। साथ ही हल्का व शीघ्र पचने वाला भोजन करें, इससे पेट खराब नहीं होता है।*

*🌞🔥नौतपा के समय गर्मी अधिक होती है इसलिए लू से बचकर रहें और घर में रहें। पंखा, एसी और कूलर से निकलने के बाद एकदम गर्मी में न जाएं।*
 संकलित ...
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बुधवार, 25 मई 2022

तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा

 भगवान बचाएगा


          एक समय की बात है किसी गाँव  में  एक  साधु रहता  था, वह  भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे  बैठ  कर  तपस्या  किया करता  था |  उसका  भागवान पर  अटूट   विश्वास   था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे|
         एक बार गाँव  में बहुत भीषण बाढ़  आ  गई |  चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप  रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा-
 ” तुम लोग अपनी  जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”
         धीरे-धीरे पानी  का  स्तर बढ़ता गया, और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव  गुजरी | मल्लाह ने कहा-” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |”
“ नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया. नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.
          कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल  ने एक रस्सी लटकाई  और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया|

       पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |”
         उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया |
         कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |
          मरने  के  बाद  साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान  से बोले  -. ” हे  प्रभु  मैंने  तुम्हारी  पूरी  लगन   के  साथ  आराधना की… तपस्या  की पर जब  मै पानी में डूब कर मर  रहा  था  तब  तुम मुझे  बचाने  नहीं  आये, ऐसा क्यों प्रभु ?
        भगवान बोले , ”  हे साधु महात्मा  मै तुम्हारी रक्षा करने एक  नहीं बल्कि तीन  बार  आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा  नाव  वाले  के   रूप में , और तीसरा, हेलीकाप्टर  बचाव दल  के  रूप   में. किन्तु तुम मेरे  इन अवसरों को पहचान नहीं पाए | ”

        💐💐शिक्षा💐💐
 मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती  है कि वे  किसी  की प्रतीक्षा  नहीं  करते है , वे  एक  दौड़ते  हुआ  घोड़े के सामान होते हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं  , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते  है  तो  वे  हमें   हमारी  मंजिल   तक  पंहुचा  देते  है, अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|

शिवलिंग पर पैर लगाते एक व्यक्ति की तस्वीर सोशल मिडिया पर क्यों वायरल हो रही है?

 शिवलिंग पर पैर लगाते एक व्यक्ति की तस्वीर सोशल मिडिया पर क्यों वायरल हो रही है?









जैसे ही खबर आई कि कोर्ट के आदेश पर बनी एक कमेटी की जांच में ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में एक बड़ा शिवलिंग मिला है, सोशल मीड़िया पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं। कई नेताओं ने भी शिवलिंग का मजाक उड़ाया, एक प्रोफेसर ने भी ऐसा ही किया, पुलिस ने भी कई लोगों को इस मामले में जेल भेज दिया।


लेकिन एक ऐसी तस्वीर कई लोगों ने शिवलिंग की शेयर की, जो देखने में बेहद आपत्तिजनक लगती है। जिस भी शिव भक्त ने उसे देखा उसे गुस्सा आ रहा है, लेकिन चूंकि वो तस्वीर एडिट करके नहीं बनाई गई है, बल्कि मूर्ति रूप की भी तस्वीर है, सो लोग समझ नहीं पा रहे कि आखिर वो कौन होगा जिसने ये मूर्ति बनाई होगी। कोई ऐसा कैसे कर सकता है कि शिवलिंग पर पैर लगाते हुए व्यक्ति की मूर्ति बना सके?
 
ये तस्वीर शेयर करने वालों में सबसे प्रमुख नाम है देवदत्त पटनायक का, हिंदू पौराणिक ग्रंथों में ढूंढ़-ढूंढकर वो बातें निकालना, जो राष्ट्रवादियों की आस्था को चोट पहुंचाती हैं, ये देवदत्त को काफी पसंद आता है, अपने इस अभियान में वह कई बार गलत बातें भी शेयर कर देते हैं और फिर उनकी फजीहत भी होती है, लेकिन रुकते नहीं है। पहले देवदत्त पटनायक का ट्वीट पढ़िए...

उन्होंने लिखा है कि, ‘’Remember Kanappa today... this Nayamnar saint of South India loved Shiva in his own way.... full of love... considered superior to the Brahmin ritual performance of devotion’’। इस ट्वीट में जो उन्होंने लिखा है, उससे संदेश मिलता है कि दक्षिण भारत के ये संत शिव को इसी तरह यानी लिंग पर पैर रखकर सम्मान देते थे। आदत के मुताबिक ब्राह्मणों की आलोचना करते हुए उन्होंने ये भी लिखा है कि इसे ब्राह्मणों की पूजा से बेहतर समझा जाता था।

लेकिन उनके ट्वीट पर गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि वह आपको पूरा सच नहीं बता रहे हैं। एक तरह से आधा सच गुमराह ही करता है। संदेश उनकी ट्वीट से ये जा रहा है संत कनप्पा इसी तरह से अपने आराध्य महादेव की पूजा करते थे, लिंग पर पैर लगाकर. जबकि ये बिलकुल भी सच नहीं है।



अकेले देवदत्त नहीं सोशल मीडिया खासतौर पर ट्विटर व फेसबुक पर बहुत से लोगों ने इस तस्वीर को शेयर किया है, किसी में इसी मुद्रा में बनी मूर्तियों की फोटो है, तो कहीं किसी चित्रकार ने पेंटिंग की तरह बनाया है। इससे ये तो पता चलता है कि कई जगह कनप्पा की शिव लिंग को पैर लगाते हुए मूर्तियां भी हैं, अगर वाकई में ऐसा है तो आज तक कोई हंगामा क्यों नहीं हुआ? कोई नाराज क्यों नहीं होता? भगवा दल वाले क्यों इस पर ऐतराज नहीं करते?

इसका मतलब साफ है कि उनको पता है कि इसमें कुछ भी विवादित नहीं है। जबकि देवदत्त जैसे तमाम लोग हैं, जो इसे गलत ना बताते हुए भी भ्रम में डालने वाला टैक्स्ट उसके साथ लिख रहे हैं। जैसे एआईएमआईएम से जुड़े मुबासिर किसी और की ऐसी ही पोस्ट शेयर करते हुए लिखते हैं कि, ‘’मुझे नहीं पता कि उत्तर भारतीयों को भक्त कनप्पा के बारे में पता भी है कि नहीं, अगर ये आज के दौर में होता तो कनप्पा के खिलाफ शिवलिंग पर पैर रखने के चलते ना जाने कितने केस हो गए होते।’’

सभी लोग कनप्पा को शिवभक्त ही बता रहे हैं, ये नहीं बता रहे कि वो अपमान कर रहे हैं, यानी कहना चाहते हैं कि ये भी एक तरीका है शिवलिंग की पूजा करने का। ये सारी कवायद इसलिए है ताकि इतने सालों तक ज्ञानवापी के वजू खाने में शिवलिंग के साथ जो भी हुआ, उसको जायज ठहराया जा सके।
 

संत कनप्पा उन 63 नयनार संतों में गिने जाते हैं, जो शिव के उपासक थे, व तीसरी से आठवीं शताब्दी के बीच हुए थे। जबकि अलवार संत विष्णु के उपासक थे। कनप्पा पेशे से शिकारी थे, जो बाद में संत बन गए। उनके भक्त मानते हैं कि वो पिछले जन्म में पांडवों में से एक अर्जुन थे। कनप्पा नयनार के कई नाम चलन में हैं, जैसे थिनप्पन, थिन्नन, धीरा, कन्यन, कन्नन आदि। माता पिता ने उनका नाम थिन्ना रखा था। आंध्र प्रदेश के राजमपेट इलाके में उनका जन्म हुआ था।

उनके पिता बड़े शिकारी थे और शिवभक्त थे, शिव के पुत्र कार्तिकेय को पूजते थे। कनप्पा श्रीकलहस्तीश्वरा मंदिर में वायु लिंग की पूजा करते थे, शिकार के दौरान उन्हें ये मंदिर मिला था। पांचवी सदी में बना इस मंदिर का बाहरी हिस्सा 11वीं सदी में राजेन्द्र चोल ने बनवाया था, बाद में विजय नगर साम्राज्य के राजाओं ने उसका जीर्णोद्धार करवाया।

लेकिन थिन्ना को पता नहीं था कि शिव भक्ति और पूजा के विधि विधान क्या है। किन नियमों का पालन करना है, लेकिन उनकी श्रद्धा अगाध थी। कहा ये तक जाता है कि वह पास की स्वर्णमुखी नदी से मुंह में पानी भरकर लाते थे और उससे शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे, चूंकि शिकारी थे, सो जो भी उन्हें मिलता था, एक हिस्सा शिव को अर्पित कर देते थे, यहां तक कि एक बार सुअर का मांस भी।      


लेकिन शिव अपने इस भक्त की आस्था को देखकर खुश थे, उनको पता था कि इसे पूजा करनी नहीं आती है, ना मंत्र पता हैं ना किसी तरह के विधि विधान। सैकड़ों सालों से ये कथा कनप्पा के भक्तों में प्रचलित है कि एक दिन महादेव ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी और उन्होंने उस मंदिर में उस वक्त भूकंप के झटके दिए, जब मंदिर में बाकी साथियों, भक्तों और पुजारियों के साथ कनप्पा भी मौजूद थे।


जैसे ही भूकंप के झटके आए, लगा कि मानो मंदिर की छत गिरने वाली है, तो डर के मारे सभी भाग गए, भागे नहीं तो बस कनप्पा। उन्होंने ये किया कि अपने शरीर से शिव लिंग को पूरी तरह से ढक लिया ताकि कोई पत्थर अगर गिरे तो शिवलिंग के ऊपर ना गिरे बल्कि उनके ऊपर गिरे। इससे वह पूरी तरह सुरक्षित रहा।

शिवलिंग पर तीन आंखें बनी हुई थीं। जैसे ही भूकम्प के झटके थोड़ा थमे, कनप्पा ने देखा कि शिवलिंग पर बनी एक आंख से रक्त और आंसू एक साथ निकल रहे थे। उनकी समझ में आ गया कि किसी पत्थर से शिवजी की एक आंख घायल हो गई है। आव देखा ना ताव, कनप्पा ने फौरन अपनी एक आंख अपने एक वाण से निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी और उसे निकालकर शिवलिंग की आंख पर लगा दिया, जिससे उसमें से खून निकलना बंद हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ही शिवलिंग की दूसरी आंख से रक्त और आंसुओं का निकलना शुरू हो गया।

तब कनप्पा ने जैसे ही दूसरी आंख निकालने की प्रक्रिया शुरू की, उनके दिमाग में आया कि जब मैं अपनी दूसरी आंख भी निकाल लूंगा तो बिलकुल अंधा हो जा जाऊंगा, ऐसे में मुझे कैसे दिखेगा कि उस आंख को शिवलिंग में कैसे लगाना है।

ऐसे में उन्हें एक उपाय सूझा, उन्होंने फौरन अपना एक पैर उठाया और पैर का अंगूठा ठीक उस आंख के पास लगा दिया, ताकि अंधा होने के बावजूद वो शिवजी की दूसरी आंख की जगह अपनी आंख लगा सके। उसी वक्त भगवान शिव प्रकट हुए और उससे खुश होकर उसकी आंखें एकदम ठीक कर दीं। यही वो घटना थी, जिसके चलते थिन्ना को नया नाम कनप्पा मिला था।

इसी मौके की वो तस्वीर या मूर्तियां हैं, कि कैसे वह एक हाथ में वाण से आंख निकालेंगे, दूसरे हाथ से उसे पकड़ेंगे तो जहां से आंख निकालनी है, उस जगह को कैसे चिन्हित करेंगे, तो पैर का अंगूठा उस मासूम भक्त ने शिवलिंग पर रखा, इस काम के लिए था। लेकिन जितने भी लोग शेयर करे रहे हैं, चाहे वो देवदत्त पटनायक ही क्यों ना हो, किसी को ये नहीं बता रहे कि शिव भगवान ने उनकी भक्ति की परीक्षा ली थी और ये बस एक पल का वाकया था, ना कि रोज कनप्पा ऐसा किया करते थे. लेकिन इससे सच्चाई बाहर आ जाती और उनमें से बहुत से लोग ये चाहते भी नहीं।

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