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मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

अब तक की सबसे विचलित करने वाली फिल्म हवाएँ

 

फिल्म का नाम है हवाएँ (Hawayein) जो 1984 के सिख नस्लकुशी दंगों पर आधारित है। जब य़ह फिल्म आई थी तब मैं 17 साल की थी और इस फिल्म ने मुझपर गहरा असर डाला। खास तौर पर वो दृश्य जिन में सिख ल़डकियों और औरतों को दंगाइयों की भीड़ उठा ले जा रहे हैं, उनके के साथ सामुहिक बलात्कार कर रहे हैं, उनके कपड़े उतार उन्हें नंगी कर उनकी इज्ज़त लूट रहे हैं।

वो दृश्य मैं आज तक नहीं भूली हालांकि इस फिल्म को आए 18 साल हो गये हैं।

य़ह लिंक इसी फिल्म का है :


रविवार, 18 दिसंबर 2022

सनातन धर्म में सुबह उठने के बाद धरती माता पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम करने की सलाह इसलिए दी जाती है



    *🌷🌷।। भूमि वन्दना ।।🌷🌷*

हिंदू सनातन धर्म में सुबह उठने के बाद धरती माता पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम करने की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि धरती माता हमारी पालनकर्ता है। हमारे जीवन के लिए सभी आवश्यक पदार्थ धरती ही हमें उपलब्ध कराती है। फिर चाहे जल हो या भोजन। धरती माता को प्रणाम करने और उसके प्रति आभार जताकर हम अपना सौभाग्य बढ़ा सकते हैं, क्योंकि धरती को भी देवी मां का स्थान प्राप्त है…

शास्त्रों में मनुष्य को प्रात:काल उठने के बाद धरती माता की वंदना करके ही भूमि पर पैर रखने का विधान किया गया है। पहले दायें पैर को भूमि पर रख कर हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर फिर मस्तक पर लगाया जाता है, साथ ही पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है — ‘हे धरती माता ! मुझे तुम्हारे ऊपर पैर रखने में बहुत संकोच होता है, तुम तो मेरे भगवान की शक्ति हो ।’

भूमि वंदना क्यों करनी चाहिए ?

▪️ नींद से उठने के बाद चूंकि हमें बिस्तर से उतर कर आगे के कार्यों के लिए भूमि पर पांव रखना पड़ेगा और कौन मनुष्य ऐसा होगा जिसे अपनी माता के ऊपर पैर रखना अच्छा लगेगा ? इसी विवशता के कारण सबसे पहले भूमि वंदना कर उन पर पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है।

▪️ पृथ्वी माता ने सबको धारण कर रखा है; अत: वे सभी के लिए पूज्य और वंदन-आराधन के योग्य हैं। वे न रहें या उनकी कृपा न रहे तो सारा जगत कहीं भी ठहर नहीं सकता है।

▪️ पृथ्वी माता धैर्य और क्षमा की देवी हैं। पृथ्वी पर मनुष्य कितना आघात करता है, जल निकालने के लिए भूमि के हृदय को चीरा जाता है, अन्न उपजाने के लिए भूमि के हृदय पर हल चलाया जाता है, मनुष्य व जीव-जन्तु भी उस पर मल-मूत्र का त्याग करते हैं; लेकिन धरती को कभी क्रोध नहीं आता। जिस दिन धरती माता को क्रोध आ जाए, धरती हिलने लगे, भूकम्प आ जाए तो मानव जाति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

▪️ भूमि की शस्य-सम्पदा से ही अन्नरूप प्राण उत्पन्न होता है। साथ ही भूमि के हृदय में अनंत ऐश्वर्य जैसे—हीरा, पन्ना, रूबी, नीलम, सोना, लोहा, तांबा और न जानें कितनी धातुएं रहती हैं, जो वे हमें प्रदान करती हैं; इसलिए पृथ्वी देवी का सदा सम्मान करना चाहिए।

कुछ चीजें जो भूदेवी की मर्यादा के विरुद्ध हैं, वह नहीं करनी चाहिए। जैसे—

▪️ दीपक, शिवलिंग, देवी की मूर्ति, शंख, यंत्र, शालग्राम का जल, फूल, तुलसीदल, जपमाला, पुष्पमाला, कपूर, गोरोचन, चंदन की लकड़ी, रुद्राक्ष माला, कुश की जड़, पुस्तक और यज्ञोपवीत—इन वस्तुओं को कभी भी भूमि पर नहीं रखना चाहिए।

▪️ ग्रहण के अवसर पर भूमि को नहीं खोदना चाहिए।

भूमि वंदन करने के पीछे यही शिक्षा छिपी है कि मनुष्य को पृ्थ्वी की तरह सहनशील, धैर्यवान और क्षमावान होना चाहिए। बोलिए वासुदेव भगवान की जय।



भूमि-वंदना का मंत्र इस प्रकार है—

*समुद्रवसने देवि पर्वत स्तन मण्डिते।*
*विष्णुपत्निनमस्तुभ्यं पादस्पर्शंक्षमस्वमे।।*

*अर्थात् :–* समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूपी स्तनों से शोभित विष्णुपत्नी, मेरे द्वारा होने वाले पाद स्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें।

भगवान नारायण श्रीदेवी और भूदेवी (पृथ्वी) के पति हैं। भूदेवी कश्यप ऋषि की पुत्री हैं, और पुराणों में इनका एक देवी रूप है। भूदेवी अपने एक रूप से संसार में सब जगह फैली हुईं हैं और दूसरे रूप में देवी रूप में स्थित रहती हैं।

कश्यप ऋषि की पुत्री होने से ये *‘काश्यपी’*, स्थिर रूप होने से ‘स्थिरा’, विश्व को धारण करने से ‘विश्वम्भरा’, अनंत रूप होने से ‘अनंता’ और सब जगह फैली होने से ‘पृथ्वी’ कहलाती हैं । भगवान की पत्नी होने के कारण वे ‘विष्णुप्रिया’ के नाम से जानी जाती हैं ।

सृष्टि के समय ये प्रकट होकर जल के ऊपर स्थिर हो जाती हैं, और प्रलयकाल में ये जल के अंदर छिप जाती हैं।

वाराहकल्प में जब हिरण्याक्ष दैत्य पृथ्वी को चुराकर रसातल में ले गया, तब भगवान श्रीहरि हिरण्याक्ष को मार कर रसातल से पृथ्वी को ले आए और उसे जल पर इस प्रकार रख दिया, मानो तालाब में कमल का पत्ता हो। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसी पृथ्वी पर सृष्टि रचना की। उस समय वाराहरूपधारी भगवान श्रीहरि ने सुंदर देवी के रूप में उपस्थित भूदेवी का वेदमंत्रों से पूजन किया और उन्हें ‘जगत्पूज्य’ होने का वरदान देते हुए कहा—
‘तुम सबको आश्रय प्रदान करने वाली बनो। देवता, सिद्ध, मानव, दैत्य आदि से पूजित होकर तुम सुख पाओगी। गृहप्रवेश, गृह निर्माण के आरम्भ, वापी, तालाब आदि के निर्माण के समय मेरे वर के कारण लोग तुम्हारी पूजा करेंगे।’

इसके बाद त्रिलोकी में पृथ्वी की पूजा होने लगी।

    *🪷🪷।। शुभ वंदन ।।🪷🪷*

शनिवार, 17 दिसंबर 2022

राजस्थान की एक प्रथा घुड़ला पर्व- मुगलो को उनकी नीचता के अनुरूप दंड का पर्व

🌈 *_राजस्थान की एक प्रथा घुड़ला पर्व- मुगलो को उनकी नीचता के अनुरूप दंड का पर्व_*


एक संकल्प 
*_# भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हो_*
*_# जनसंख्या क़ानून लागू हो_*
*_# समानता का अधिकार लागू हो पर्सनल लॉ कानून खत्म हो_*

देश और समाज के लिए राजपूतो ने क्या किया ये गिनाने की आवश्यकता नही। पर हिन्दुत्व को बचाने के लिये आपके द्वारा इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक है नही तो कालांतर मे अर्थ का अनर्थ हो सकता है ! 

*मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है जिसे घुड़ला पर्व कहते है*

जिसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले में घूमती है और घर घर घुड़लो जैसा गीत गाती है !

*अब यह घुड़ला क्या है ?*

कोई नहीं जानता है ,
क्योकर घुड़ला की पूजा शुरू हुई।

यह भी ऐसा ही घटिया ओर घातक षड्यंत्र है  जैसा की अकबर को महान बोल दिया गया !

दरअसल हुआ ये था की घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था और अत्याचारऔर पैशाचिकता मे भी अकबर जैसा ही गंदा पिशाच था ! 

ज़िला नागोर राजस्थान के पीपाड़ 
गांव के पास एक गांव है कोसाणा !
उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये 
गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी, वे व्रत में थी उनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है ! गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर पूजन करने के लिये सभी बच्चियाँ गयी हुई थी ।

उधर से ही घुडला खान मुसलमान सरदार अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था, उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी ! उसने सभी बच्चियों का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया जिस भी गाँव वाले ने विरोध किया उसको उसने मौत के घाट उतार दिया ! 

इसकी सूचना घुड़सवारों ने जोधपुर के 
राव सातल सिंह राठौड़ जी को दी ! 

राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवारों ने घुड़ला खान का पीछा किया और कुछ समय मे ही घुडला खान को रोक लिया।
घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया उसने सातल सिंह जी की वीरता के बारे मे सुन रखा था ! उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा, राव तुम मुझे नही दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है ? 

राव सातल सिंह बोले , पापी दुष्ट ये तो बाद की बात है पर अभी तो में तुझे तेरे इस गंदे काम का ख़ामियाज़ा भुगता देता हूँ ! राजपुतो की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था , संख्या मे अधिक मुग़ल सेना के पांव उखड़ गये ,भागती मुग़ल सेना का पीछा कर ख़ात्मा कर दिया गया ! राव सातल सिंह ने तलवार के भरपुर वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया ! 

राव सातल सिंह ने सभी बच्चियों को मुक्त करवा उनकी सतीत्व की रक्षा करी ! 

इस युद्ध मे वीर सातल सिंह जी अत्यधिक घाव लगने से वीरगति को प्राप्त हुये ! उसी गाँव के तालाब पर सातल सिंह जी का अंतिम संस्कार किया गया, वहाँ मौजूद सातल सिंह जी की समाधि उनकी वीरता ओर त्याग की गाथा सुना रही है !गांव वालों ने बच्चियों को उस दुष्ट घुडला खान का सिर सोंप दिया ! 

बच्चियो ने घुडला खान के सिर को घड़े मे रख कर उस घड़े मे जितने घाव घुडला खान के शरीर पर हुये उतने छेद किये और फिर पुरे गाँव मे घुमाया और हर घर मे रोशनी की गयी ! 

*यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी !*
 
जिसके बारे में अधिकाँश लोग अनजान है ।

 लोग हिन्दु राव सातल सिंह जी को तो भूल गए और पापी दुष्ट घुड़ला खान को पूजने लग गये ! 

*इतिहास से जुडो और सत्य की पूजा करो !*

और हर भारतीय को इस बारे में बतायें ।

सातल सिंह जी को याद करो नहीं तो हिन्दुस्तान के ये तथाकथित गद्दार इतिहासकार उस घुड़ला खान को 
देवता बनाने का कुत्सित प्रयास करते रहेंगे ।

सभी से निवेदन है कि वे अपने सभी परिचितों को,  चाहे उनके पास Whatsapp ना हो, उन्हे मौखिक रूप से  इस शर्मनाक घटना की सच्चाई से अवगत करावैं।

जय राजपुताना जय हिंद🚩

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

  हत्था जोड़ी कौनसा पौधा होता है?


हत्थाजोड़ी एक पौधे की अत्यंत दुर्लभ जड़ है। जिसे महाकाली और कामख्या देवी का रूप माना जाता है.

"ऐसी मान्यता है" कि यदि इस जड़ को सिद्ध कर लिया जाए तो ये गरीबी को कुछ ही समय में दूर कर देती है और व्यक्ति के सारे काम मन मुताबिक बनने लगते हैं.

हत्था जोड़ी एक ऐसी जड़ है जो दिखने में किसी का जुड़ा हुआ अंग है। हत्था जोड़ी तंत्रविद्या में बहुत प्रसिद्ध है और इसका प्रभाव काफी अद्भुत निहित रहता है, तांत्रिक वस्तुओं में यह सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकी यह साक्षात चामुंडा देवी का प्रतिरूप माना जाता है। यदि इसे तांत्रिक विधि से सिध्द कर दिया जाए तो साधक निश्चित रूप से चामुण्डा देवी का कृपा पात्र हो जाता है यह जिसके पास होती है उसे हर कार्य में सफलता मिलती है, धन संपत्ति देने वाली यह बहुत चमत्कारी साबित हुई है। तिजोरी में सिन्दूर युक्त हत्था जोड़ी रखने से आर्थिक लाभ में वृद्धि होने लगती है। इसके सिद्ध हो जाने मात्र से धन स्वयं ही आकर्षित होता रहता है और धन-सम्पति, वशीकरण, शत्रु शमन में व्यक्ति सशक्त हो जाता है। जिस व्यक्ति के पास यह होती है। उसे किसी बात कि कमी नहीं होती। उसकी लगभग सभी इच्छाएं पूर्ण होती चली जाती है।

यह उत्तर मैने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिखा है।

अस्वीकरण:- मै स्वयं उपरोक्त सभी बातों व तंत्रशास्त्र पर विश्वास नही करता।

हत्थाजोड़ी जड 👇👇👇

हत्थाजोड़ी का पौधा👇👇👇

यह चित्र गूगल से साभार

बेहोश करने वाला पौधा

 

😨. दुनिया का सबसे खतरनाक पौधा

🥦👉इसके नाम की खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एकोनिटम दुनिया का सबसे ख़तरनाक पौधा है क्योंकि ये आपके दिल की गति को धीमा कर देता है जिससे किसी भी व्यक्ति की मौत हो सकती है। इतना ही नहीं इसका सबसे ज़हरीला हिस्सा होता है जड़। हालांकि इसके पत्तों में भी जहर पाया जाता है। बता दें कि इन दोनों में ही न्यूरोटॉक्सिन होता है। ये वो जहर होता है, जो दिमाग पर असर करता है और इसे त्वचा भी सोख सकती है।

👉आक के पौधे को देशी भाषा में अकौआ के नाम से जाना जाता है. आक का पौधा बहुत ही विषैला होता है. इसको सूंघने मात्र से आप बेहोश हो सकते हैं, साथ ही इसके सूंघने मात्र से आपको मौत का सामना भी करना पड़ सकता है.

आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊंची जगहों पर देखने को मिलते हैं। इस पौधे या फिर यूं कहें कि इस वनस्पति को लेकर साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा बहुत ही विषैला होता है और इसके सेवन मात्र से किसी व्यकति की मौत हो सकती है। आयुर्वेद में इस बात को सत्य करार दिया गया है साथ ही इसकी गणना उपविषों में की गई है। आयुर्वेद के मुताबिक, इस पौधे का सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी-दस्तके साथ-साथ मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रसिद्ध "यूनिवर्स 25" का प्रयोग क्या था?

 

यूनिवर्स25 एक्सपेरिमेंट या ब्रम्हांड25 एक्सपेरिमेंट का उद्देश्य यह देखना था कि अगर किसी प्राणी के लिए पर्याप्त भोजन, और सारी सुविधाएं दे कर स्वर्ग सा वातावरण बना दिया जाए तो उन प्राणियों की क्या प्रतिक्रिया रहेगी….

डॉ. जॉन कैलहौन, एक अमेरिकी वैज्ञानिक द्वारा।

ऐसा लगता है कि यह 1970 के आसपास किया गया था।

हमने चूहों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन और पानी और एक बड़ी रहने की जगह के साथ एक विशेष स्थान बनाया है, जिसे "माउस स्वर्ग" कहा जा सकता है।

सबसे पहले, मैंने त्सुगई चूहों के चार जोड़े रखे।

उन्होंने जल्द ही प्रजनन करना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप माउस की आबादी में वृद्धि हुई।

हालांकि, 315 दिनों के बाद, प्रजनन क्षमता में उल्लेखनीय गिरावट आने लगी।

जब चूहों की संख्या 600 तक पहुंच गई, तो चूहों के बीच एक पदानुक्रम का गठन किया गया, और तथाकथित "आउटकास्टर्स" दिखाई दिए।

पुरुषों के मनोवैज्ञानिक रूप से "पतन" होने के परिणामस्वरूप, बड़े चूहों ने पूरे झुंड पर हमला करना शुरू कर दिया।

नतीजतन, मादा चूहों ने अपनी और अपने बच्चों की रक्षा करने की अपनी मूल भूमिका को त्याग दिया और एक के बाद एक युवा चूहों के प्रति आक्रामकता दिखाना शुरू कर दिया (अपने क्षेत्रों और उनकी अति प्रतिक्रिया की रक्षा के लिए सामाजिक कार्रवाई करना शुरू कर दिया)।

समय के साथ, युवा चूहों की मृत्यु दर 100% तक पहुंच गई और प्रजनन दर शून्य हो गई।

लुप्तप्राय चूहों में समलैंगिकता देखी गई, और साथ ही प्रचुर मात्रा में भोजन के बावजूद नरभक्षण में वृद्धि हुई।

प्रयोग शुरू होने के दो साल बाद, इस "प्रयोगात्मक स्वर्ग" में आखिरी बच्चे का जन्म हुआ।

1973 तक, सभी "ब्रह्मांड 25" चूहों की मृत्यु हो गई थी।

वैसे, प्रयोगकर्ता ने 25 बार और दोहराया, और परिणाम हर बार समान था।

जानकारी स्त्रोत :

[1]

फुटनोट

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

मनमोहन सिंह के समय 2004 से 2013 तक के आंकड़े देखें तो इन 10 सालों में 9,739 आतंकी घटनाएं हुईं।

 

शांतिदूत, अमित शाह आज तक के भारत के सर्वश्रेष्ठ गृह मंत्री है।

अमित शाह को कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में झूठा फंसाया था, बाद में कोर्ट ने गहन जांच के बाद अमित शाह को बाइज्जत बरी कर दिया था।

अमित शाह के गृह मंत्री बनने से पहले देश में सीरियल बम ब्लास्ट आम बात हुआ करती थी।

मनमोहन सिंह के समय 2004 से 2013 तक के आंकड़े देखें तो इन 10 सालों में 9,739 आतंकी घटनाएं हुईं।

मगर अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद से भारत में सीरियल बम ब्लास्ट बंद हो गए हैं, यह होता है गृह मंत्री👇👇👇👇


मन्त्रों के पीछे का विज्ञान क्या है?

मन्त्रों के पीछे का विज्ञान क्या है?

किसी स्त्री की उत्तेजित आवाज़ से तुमने स्वयं में उत्तेजना महसूस की होगी, किसी व्यक्ति के गाली देने पर तुम भड़क भी गए होंगे, जरा सी डाट से तुम्हे अपमानित भी महसूस होता होगा, पड़ोस में बज रहे गाने पर कई बार तुम्हे नृत्य करने का भी मन हुआ है, किसी से प्रेम भरे शब्दो को सुनकर तुम्हारे दिल को तसल्ली मिली होगी।

देखो, यहाँ सब अनुभव की बात है। कोई दर्शन शास्त्र की बात नही है। कोई रटी रटाई बात नही है। यह सब तुम्हारे ही अनुभव की बात है। तुम किसी गाने में लड़की की अजीब वाली आवाज़ सुनकर उत्तेजित हुए होंगे। वह क्या था? शब्द शक्ति थी। शब्द स्फोट था। जिसने तुम्हारे अंदर यह उत्तेजना पैदा की। जिसने तुम में गाली सुनने के बाद क्रोध पैदा किया है, जिसने तुम में संगीत को सुनकर नृत्य के लिए विवशता पैदा की है। यह सामान्य बात है। आँखों देखी बात है। यह सब शब्द की शक्ति से सम्पन्न हुआ है।

मन्त्र भी शब्द ऊर्जा से ओतप्रोत है। जिनमे भयंकर ऊर्जा है। बड़ी तेज ऊर्जा है। यह ऊर्जा विस्फोटक भी है। प्रत्येक शब्द में ऊर्जा है और यही ऊर्जा तीनो स्तर पर कार्य करती है। आध्यात्मिक, अधिभौतिक और आधिदैविक स्तर पर कार्य करती है।

अगर तुम इस शब्दो की ऊर्जा के रूपांतरण को समझ लोगे तो तुम में सम्मोहन विधि आ जायेगी, तुम अपने शब्दों से घटनाओं को बदल सकते हो।

मन्त्र विज्ञान भी ऐसा ही है। मन्त्र शब्दों की शक्ति का ही रूप है। जिसे स्पष्ट उच्चारण करने पर प्रत्यक्ष प्रभाव होता है।

देखो, जरा सी बात है। सीधी सी बात है। इसमें कोई दुविधा नही है। सरल बात है। तुम जब कोई शब्द सुनते हो तो वह मस्तिष्क तक इलेक्ट्रोकेमिकल ट्रांसमिशन द्वारा पहुँच जाता है। तुम्हारे मस्तिष्क पर प्रभाव करता है। किसी ने गाली दी तो तुम भी गाली दे देते हो, या फिर अपमानित महसूस करते हो। तुम्हारी जैसी वृत्ति है, वैसा ही निर्णय तुम ले लेते हो। कई बार तो तुम किसी के शब्द सुनकर क्रोध में आकर अनिष्ट भी कर देते हो। क्योंकि यह शब्द तुम्हे उकसा देते है।

तुम्हारी भावना बदल देते है। जज्बात बदल देते है। तुम्हारी बॉडी पर बहुत प्रभाव करते है।

अब मन्त्र की बात कर लो। मन्त्र का हर शब्द कम्पन करता है। ब्रह्मण्ड में सब कम्पन ही तो कर रहा है। शब्द ही कम्पन करता है। करेगा ही। ऊर्जा का रूप है, कम्पन तो करेगा ही। तुम कहोगे की शब्द में कम्पन नही होता, तो तुम अपने आस कभी तेज आवाज में संगीत बजाना, ढोल बजाना, फिर देख लेना कि कैसे तुम्हारे कमरे की अलमारी में कम्पन होता है। कैसे तुम्हारे आस पास कम्पन महसूस होता है। यह सब शब्दो का कम्पन है।

मन्त्र के शब्दों में भी कम्पन है। अधिक कम्पन है। हर शब्द में अलग अलग फ्रीक्वेंसी का कम्पन है। यही कम्पन हमारे शरीर में अलग अलग प्रभाव छोड़ते है। अलग अलग तरह की ऊर्जा बदलते है। हर मन्त्र का कार्य अलग अलग होता है। क्योंकि हर शब्द की फ्रीक्वेंसी अलग अलग होती है। जब बार बार एक ही शब्द या एक ही मन्त्र को दोहराया जाता है तो frictional energy उतपन्न होती है। घर्षण शक्ति उतपन्न होती है। जब यह घर्षण शक्ति आने लगे तो अब मन्त्र अपने पूर्ण प्रभाव में आने लगता है। जैसा मन्त्र होगा वैसा ही कार्य करेगा।

मन्त्र का उच्चारण जब स्थूल स्तर पर करते है तब भी आंतरिक रूप में यह सूक्ष्म स्तर पर कम्पन करता है और सूक्ष्म स्तर पर जब कम्पन करते करते घर्षण शक्ति होने लगती है तो फिर हम में परिवर्तन शुरू हो जाता है। हममें परिवर्तन आने लगता है। हम मन्त्र के अनुरूप होने लगते है। मन्त्र की वृत्ति जैसे बनने लगते है।

हमारी वृत्ति मन्त्र से मिलने लगती है। अंत में हम स्वयं ही मन्त्र होते है। मन और बुद्धि के स्तर पर जब कम्पन होता है तो हम अब मन्त्र के उद्देश्य को पूर्ण करने पर आतुर होते है। मन्त्र चार अवस्थाओं से गुजर कर सिद्ध होता है, उसके बाद ही यह अपने पूर्ण रूप में कार्य करता है। इसके लिए मन्त्र सिद्धि की विधान है। मन्त्र सिद्धि में एक निश्चित संख्या में जो कियाजाता है। फिर उस मन्त्र ल दशांश हवन, मार्जन तर्पण आदि किया जाता है तब जाकर मन्त्र के प्रयोग शुरू होते है।

मन्त्रो के बारे में अधिक गूढ़ और विस्तृत विज्ञान है जिसको एक उत्तर में नही समझाया जा सकता।

क्योंकि मन्त्र भी हर व्यक्ति के लिए अलग अलग उपयोगी होते है। कोई मन्त्र किसी के लिए लाभ देता है तो अन्य व्यक्ति के लिए नुकसान दे सकता है। यह मन्त्र के प्रथम शब्दो से स्पष्ट पता चल जाता है।

इसलिए किसी मन्त्र को सिद्ध करने के लिए गुरु की उपयोगिता है। वह जानता है कि कौनसा मन्त्र ठीक रहेगा। कौनसा मन्त्र सही रहेगा। उस का निर्देश तुम्हे देगा। इसलिए किताब से सिद्धि नही मिलती।

मैंने मन्त्रो का प्रत्यक्ष प्रभाव देखा है। यह रजोगुणी विद्या है। स्पष्ट और लय में रहकर ध्यान के साथ जब मन्त्र उच्चारण करे तो आप कम्पन महसूस कर सकते है। इसमें कोई दोहराय नही। मैंने मन्त्रो के चमत्कार प्रत्यक्ष देखा है। इसलिए मुझे कोई संशय नही है। तुम भी मत रखो, प्रयोग करके देख लो।

चित्र स्त्रोत- गूगल


सम्राट अशोक" की "जन्म- जयंती" हमारे देश में "नहीं मनाई जाती" ??

 "सम्राट अशोक" की "जन्म- जयंती" हमारे देश में "नहीं मनाई जाती" ??
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बहुत सोचने पर भी, "उत्तर" नहीं मिलता! आप भी, इन "प्रश्नों" पर, "विचार" करें!
जिस -"सम्राट" के नाम के साथ, -"संसार" भर के, "इतिहासकार"- “महान” शब्द लगाते हैं
जिस -"सम्राट" का राज चिन्ह "अशोक चक्र"-" भारतीय", "अपने ध्वज" में लगाते है l
जिस -"सम्राट" का -"राज चिन्ह", "चारमुखी शेर" को, "भारतीय",- "राष्ट्रीय प्रतीक" मानकर,:- " सरकार" चलाते हैं l और "सत्यमेव जयते" को "अपनाया" है l
जिस देश में - "सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान", "सम्राट अशोक" के "नाम" पर, "अशोक चक्र" दिया जाता है l
जिस -"सम्राट" से -"पहले या बाद" में :- "कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ"...l जिसने : -"अखंड भारत" (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने, "बड़े भूभाग" पर:-"एक-छत्र राज" किया हो l
 सम्राट अशोक" के ही, समय में :- "२३ विश्वविद्यालयों" की "स्थापना" की गई l जिसमें :-  तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार, आदि "विश्वविद्यालय", "प्रमुख" थे l इन्हीं "विश्वविद्यालयों" में "विदेश" से "छात्र", "उच्च शिक्षा" पाने, :- "भारत आया करते थे"
 जिस -"सम्राट" के "शासन काल" को -"विश्व" के "बुद्धिजीवी" और "इतिहासकार", "भारतीय इतिहास" का सबसे -"स्वर्णिम काल" मानते हैं
 जिस -"सम्राट" के "शासन काल" में :- "भारत"-  "विश्व गुरु" था l "सोने की चिड़िया" था l जनता -"खुशहाल" और "भेदभाव-रहित" थी l
जिस सम्राट के शासन काल में, सबसे "प्रख्यात" "महामार्ग", :- "ग्रेड ट्रंक रोड" जैसे कई -"हाईवे" बने l २,००० किलोमीटर लंबी पूरी "सडक" पर, "दोनों ओर", "पेड़" लगाये गए l "सरायें" बनायीं गईं..l मानव तो मानव..,पशुओं के लिए भी, प्रथम बार "चिकित्सा घर" (हॉस्पिटल) खोले गए  l "पशुओं को मारना बंद" करा दिया गया l
 ऐसे -"महान सम्राट अशोक", जिनकी -"जयंती" उनके -"अपने देश भारत" में :-"#क्यों नहीं मनायी जाती"#?? न ही, कोई -"छुट्टी" घोषित की गई है?*
दुख: है, कि :-जिन नागरिकों को ये -"जयंती", "मनानी" चाहिए..? वो अपना -"इतिहास" ही, "भुला" बैठे हैं l और , जो :- "जानते" हैं ? "वो":-  "ना जाने क्यों" ? "मनाना":- "नहीं चाहते"
*पिताजी का नाम - बिन्दुसार गुप्त
*माताजी का नाम - सुभद्राणी
"जो जीता, वही:- "चंद्रगुप्त" ना होकर ...? "जो जीता", वही :-"सिकन्दर" कैसे हो गया
जबकि - "ये बात" सभी जानते हैं, कि:- "सिकन्दर" की सेना ने -"चन्द्रगुप्त मौर्य" के "प्रभाव" को देखते हुए ही, :- "लड़ने से मना कर दिया" था! बहुत ही ,"बुरी तरह" से "मनोबल टूट गया था"! और "वापस लौटना" पड़ा था ।
कृपया - अपने सभी समुहों में भेजने का कष्ट करें l और हम सब मिल कर, बाक़ी साथियों को भी,"जागरूक" करें!
आइए  मिल कर - इस "ऐतिहासिक भूल" को, "सही करने" का,:-


कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे
कुछ लोग नही भेजेंगे
लेकिन मुझे यकीन है आप जरूर भेजेंगे🙏🙏🙏

रोचक जानकारी - इसे "Tree of Life (जीवन का पेड़)" भी कहा जाता है।

 

ऊपर के फोटो में दिख रहे दैत्याकार पेड़ का नाम है "बाओबाब"

[1]

ये मुख्यत: अफ्रीकन महाद्वीप में पाए जाते हैं। इस प्रजाति के कई पेड़ 1000 वर्ष से भी पुराने हैं।

इनका तना बड़ा ही रोचक आकार लिए हुए होता है जैसे पानी का कोई बड़ा सा ड्रम हो।

और सच में इनके इस ड्रमनुमा तने में ढेर सारा पानी भरा हुआ होता है। इनके तने का व्यास लगभग 30 फीट एवम इनकी हाइट 60 फीट तक चली जाती है। नामीबिया में एक पेड़ तो इस प्रजाति का सूमो बन चुका है जिसका व्यास करीब 87 फीट पहुंच चुका है।

इनके तनो में ये 100,000 लीटर पानी तक जमा कर सकते हैं।

जब बारिश होती है तो ये ढेर सारा पानी जमा कर लेते हैं और फिर सूखे मौसम में अपना काम चलाते हैं। तब भी पत्तियां और फल-फूल उग आते हैं। वहां इसे "Tree of Life (जीवन का पेड़)" भी कहा जाता है। सूखे के समय वे लोग इसकी छाल को खोलकर उसमें से पानी निकालते हैं।

लेकिन…लेकिन एक मिनट रुकिए ! रोचक बात इस अफ्रीकन पेड़ के बारे में नहीं है। रोचक बात तो अब मैं बताने जा रहा हूं।

इसके लिए हम आ जाते हैं सीधे 8000 किमी दूर। याने के अफ्रीका से लगभग 8000 किमी दूर इंदौर के पास मांडू या मांडव नाम की जगह पर।

यहां पर आपको हर जगह एक विशेष फल बिकता हुआ मिल जायेगा जिसे यहां कहा जाता है "मांडू की इमली"

हालांकि जब मैने इसे पहली बार खाया था तब असंतोष हुआ की इसका स्वाद इमली से काफी अलग था। ये इमली इमली जितना खट्टा नहीं होता लेकिन माना जाता है इसमें संतरे से अधिक विटामिन सी होता है।

इसके अंदर से सीताफल के जैसा सफेद गुदा फल के रूप में रहता है। जिसे सुखाकर भी वहां दुकानदार बेचते हैं।

आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की ये मांडू की इमली बाओबाब प्रजाति के ही पेड़ का फल है। हालांकि मांडू में अफ्रीका जितने विशाल तो नहीं है लेकिन फिर भी ये मोटे तने के पेड़ जिनमे धरती से बहुत ऊपर थोड़े से पत्ते और फल लगे होते हैं बड़े अजीब लगते हैं दिखने में।

ये निश्चित तौर पर पता नहीं की अपनी जन्मस्थली से इतनी दूर ये अफ्रीका से मध्यप्रदेश कैसे आ गए। हैं ना काफी आश्चर्यजनक बात।

इसके अजीब से आकार के बारे में एक लोक कथा कहती है कि बाओबाब का पेड़ इतना ऊँचा था तो उसे अपने कद का बहुत घमंड हो गया था और वह अन्य सभी पेड़ों का मज़ाक उड़ाता था।

तो..भगवान ने इसे सबक सिखाने के बारे में सोचा। भगवान ने तब पेड़ को उखाड़ा और उसे उल्टा लगा दिया, और इसलिए इसकी शाखाएं जड़ों के गुच्छे के समान दिखती हैं।

प्रकृति बड़ी ही रोचक और अजब-गजब है और साथ ही एम.पी. अजब है…!! जैसा कि टूरिज्म वाली टैग लाइन कहती है।

इसके अलावा मांडू अपने पुराने महलों के लिए काफी फेमस है। अधिकांश अब खंडहर बन चुके हैं। फिर भी उस समय की बेहतरीन सिविल इंजीनियरिंग देखी जा सकती है।

कईं महलों में से एक जहाज महल है जो बारिश के मौसम में चारों तरफ से पानी से घिरा होता है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे पानी का जहाज हो। बारिश के समय यहां की प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं।

मेरे कैमरे के सौजन्य से मांडू की कुछ तस्वीरें:

फुटनोट

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