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मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

रिसोर्ट मे शादियां ! नई सामाजिक बीमारी

 📌 रिसोर्ट मे शादियां !
      नई सामाजिक बीमारी  

कौन जिम्मेदार !
क्या निवारण सम्भव है
================
मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा करी

समाज प्रमुख चिल्ला चिल्ला कर थक गए
चिंतन करने वाले अभी भी चिंतन में लगे हैं
 किस तरह समाज को राह दिखाई जाए
किस तरह समाज को दिखावे के दंश से मुक्त किया जाए

हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं
और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की



सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे
शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादीया होने लगी है

शादी के 2 दिन पूर्व ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है
आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते
इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं
और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि


सिर्फ कार वाले मेहमान ही  रिसेप्शन हॉल में आए
और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है

किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है
इस आमंत्रण में अपनापने की भावना खत्म हो चुकी है


सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है

लेडीज संगीत कहने को तो महिलाओं के लिए ही होता है
परंतु इसमें भी डिनर की व्यवस्था
रिसेप्शन की तरह ही इतनी भारी-भरकम होती है कि
एक आम व्यक्ति अपने दो बच्चों की शादी का रिसेप्शन कर ले
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं
मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं
हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं
ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं
दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका हे
रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं
और यही अमीरीयत का दंभ
उनके व्यवहार से भी झलकता है
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता
 वे अपना अधिकांश समय  करीबियों से मिलने के बजाय अपने कमरो में ही गुजार देते हैं
रिसेप्शन हाल की पार्किंग और बाहर खड़ी गाड़ियों से अंदाजा लग जाता हे कि अंदर व्यवस्था कितनी आलीशान होगी

मुख्य स्वागत द्वार पर
नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें
हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर
सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं
मखमल के कालीनो पर चल कर आगे बढ़ते हैं
सुगंधित धुअे के मदहोश करने वाले गुब्बार स्पर्श करते हैं
ऐसा लगता है किसी पांच सितारा मधुशाला या नवाबी मुजरे मे पहुंच रहे हो

अंदर एंट्री गेट पर आदम कद  स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं



इच्छा होती है सिनेमाघरों की तरह कुछ खुले पैसे स्क्रीन की तरफ उछाल दे
क्योंकि इस तरह की शादिया,  एंटरटेनमेंट स्पाट ज्यादा लगती हैं
आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते है
स्क्रीन पर पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर
पास में लगा मंच
जहां नव दंपत्ति लाइव
गल - बगियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने
परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं


मंच पर वर-वधू के नाम का बैनर लगा हुआ था
अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाता
 क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं
इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे है

लेख को ज्यादा लंबा नहीं करूंगा
रिसेप्शन में क्या-क्या
वेराइटीया  थी
बताना बेकार हे
क्योंकि वहा इतना कुछ होता है
उसमें किए गए खर्चे से
गरीब परिवार की 25 - 30 कन्याओं का विवाह हो सकता है
रिसोर्ट में होने वाले एक शादी समारोह का कम से कम 25 से 30 लाख खर्च आता है

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा एसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है
ओर ये किसी की सुनने या मानने वाले नहीं होते हे
हम कितने ही सामाजिक नियम बना ले, कितनी ही आचार संहिता बना ले
परंतु कुछ हल नहीं निकलने वाला
समाज में पैदा होने वाली
हर सामाजिक बुराई इन्हीं लोगों की देन है
इन लोगो के परिवार मे हमारी संस्कृति का कोई अंश बचा ही नहीं है
और यह लोग अब अपनी बुराइयां
मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को देना चाहते हैं

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है
आपका पैसा है , आपने कमाया है
आपके घर खुशी का अवसर है   खुशियां मनाएं
पर किसी दूसरे की देखा देखी नही
कर्ज लेकर
अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है
और आप कितना ही बेहतर करें
लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे
और लिफाफा दे कर
आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे
मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि
अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें
लोगों की झुठी तारीफ से ज्यादा
आपके अपने परिवार की इज्जत और सम्मान अधिक महत्वपूर्ण होता है

आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए
आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के , स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को
अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

अभी समाज ने कुछ समय पहले प्री वेडिंग सूट को प्रतिबंधित किया था? कितने लोग मान रहे है?समाज कम व्यंजनों की बात करता है?कोई सुनता है क्या?जगह जगह अच्छी बातें बिखरी पड़ी है,अच्छे उदाहरण आंखों के सामने है?अच्छी पहल करते हमने देखा है,कोई नज़र डालता है क्या? बारहवी गंगा प्रसादी की बात 100 साल से समाज कर रहा है,क्या नही हो रही है ?भगवान स्वरूप रामसुख दास जी महाराज पुरजोर शब्दो मे बोल कर गए,परिवार नियोजन मत करो, कोई एक भी सुनता है क्या? सब को पता है,अच्छे सवास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम जरूरी है,10 पर्तिशत भी करते है क्या?
इसलिए बेहतर यह रहता है,जो ठीक नही है,जो समाज के लिए अनुकरणीय नही है,जिसके दुष्परिणाम ज्यादा है..हम किसी का इंतजार नही करे, कोई कहे?
बस जब भी अवसर आये, हम पहल करें।इस दुनिया मे अकेले चलने का साहस बहुत कम लोगो मे है।सब भीड़ का हिस्सा बन जाते है। पर पहल करने में जिस जिगर की जरूरत है,वो नही है। बस..हम फिर गेंद इस पाले से उस पाले में डालते रहते है।
  ।। जय महेश।।

वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह

 

वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि जो भी कार्य शेष है, जल्दी जल्दी निपटा लें क्योंकि वृश्चिक राशि पर 17 जनवरी 2023 से शनि की ढैया लगने वाली है।

चित्र में दिखाई देने वाला बिच्छू वृश्चिक राशि का प्रतीक चिन्ह है।

अभी जन्मपत्री में जो भी गए स्थिति है अथवा ग्रह दशा आपकी चल रही है (अलग-अलग वृश्चिक राशि वालों की ग्रह स्थिति एवं ग्रह दशा अलग-अलग है) उससे भी ज्यादा समय संघर्ष वाला आने वाला है यही इस उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस ।

इस पोस्ट को सभी राष्ट्र प्रेमी पूरा पढ़ें और सोचे कि हमारी बहन बेटियों के साथ कितनी बड़ी हैवानियत की गई थी

 "गांधी -नेहरू -जिन्ना" की करतूत का काला कालखंड



1 बाप, 7 बेटियां और गुजरांवाला का एक कुआं...
एक जमीन... इस पोस्ट को सभी राष्ट्र प्रेमी पूरा पढ़ें और सोचे कि हमारी बहन बेटियों के साथ कितनी बड़ी हैवानियत की गई थी बी एल मीणा दोसा की कलम से...

गुजरांवाला। पाकिस्तान पंजाब का एक शहर। सरदार हरि सिंह नलवा की जमीन। यहां कभी एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार रहता था। मुखिया थे लाला जी उर्फ बलवंत खत्री। बड़े जमींदार। शानदार कोठी थी। लाला जी का एक भरा-पूरा परिवार इस कोठी में रहता था। पत्नी थी प्रभावती और बच्चे थे आठ। सात बेटियां और एक बेटा।

एक परिवार:

लाला जी के बेटे बलदेव की उम्र तब 20 साल थी। उससे छोटी लाजवंती (लाजो) 19 साल की थी। राजवती (रज्जो) 17 तो भगवती (भागो) 16 की थी। पार्वती (पारो) 15 साल और गायत्री (गायो) 13 तथा ईश्वरी (इशो) 11 बरस की थी। सबसे छोटी उर्मिला (उर्मी) 9 बरख की थी। जल्द ही फिर से कोठी में किलकारियां गूंजने वाली थी। प्रभावती पेट से थीं।

एक साल:

यह साल 1947 की बात है। हम आजाद हो गए थे। भारत का बंटवारा हो गया था। जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान कर दिया था। गुजरांवाला के आसपास के इलाकों से हिंदू-सिखों के कत्लेआम की खबरें आने लगी थी। 'अल्लाह हू अकबर' और 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का शोर करती भीड़ यलगार करती- काफिरों की औरतें भारत न जा पाएं। हम उन्हें हड़प लेंगे।

एक उम्मीद:

पर लाला जी बेफिक्र थे। उन्हें गांधी के आदर्शों पर यकीन था। उन्हें लगता था ये कुछ मजहबी मदांध हैं। दो-चार दिन में शांत हो जाएंगे। और गुजरांवाला तो जट, गुज्जरों और राजपूत मुसलमानों का शहर है। सब 'अव्वल अल्लाह नूर उपाया' गाने वाले लोग हैं। बाबा बुल्ले शाह और बाबा फरीद की कविताएं पढ़ते हैं। सूफी मजारों पर जाते है। लाला जी का मन कहता था, सब भाई हैं। एक-दूसरे का खून नहीं बहाएंगे।

एक तारीख:

18 सितंबर 1947। एक सिख डाकिया हांफते हुए हवेली पहुॅंचा। चिल्लाया, लाला जी इस जगह को छोड़ दो। तुम्हारी बेटियों को उठाने के लिए वे लोग आ रहे हैं। लज्जो को सलीम ले जाएगा। रज्जो को शेख मुहम्मद। भगवती को... लाला बलवंत ने उस डाकिए को जोरदार तमाचा जड़ा। कहा, क्या बकवास कर रहे हो। सलीम, मुख्तार भाई का बेटा है। मुख्तार भाई हमारे परिवार की तरह हैं।

एक चेतावनी:

उसका जवाब था, “मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी। सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का एक जत्था घंटे भर में निकलने वाला है। परिवार के साथ शहर के गुरुद्वारे पहुंचिए।” यह कह वह सिख डाकिया सरपट भागा। उसे दूसरे घर तक भी शायद खबर पहुंचानी रही होगी।

एक संवाद:

लाला जी पीछे मुड़े तो सात महीने की गर्भवती प्रभावती की आंखों से आंसू निकल रहे थे। उसने सारी बात सुन ली थी। उसने कहा, लाला जी हमे निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे, कागज बांध लेने को कहा है। पर लाला जी का मन नहीं मान रहा था। कहा, हम कहीं नहीं जाएंगे। सरदार झूठ बोल रहा है। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। मैं खुद उनसे बात करूंगा। प्रभावती ने बताया, वे पिछले महीने घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी वजह से उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। लाला बलवंत बोले, तुमने यह बात पहले क्यों नहीं बताई। मैं मुख्तार भाई से बात करता। प्रभावती बोलीं, आप भी बहुत भोले हैं। मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहते हैं। अब उसे जबरन ले जाने के लिए आ रहे हैं।

एक गुरुद्वारा:

गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था। पुरुषों के हाथों में तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। कई मंदिरों और गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ लोग छत से निगरानी कर रहे थे। कुछ लोग कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे। महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और बच्चों को सीने से चिपकाए हुईं थी।

एक भीड़:

अचानक एक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई। यह भीड़ बड़ी मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे,

- पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
- हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
- कारों, काटना असी दिखावेंगे
- किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
- हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच

एक निशाना:

प्रभावती एक खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर के भीतर ही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का वही शोर शुरू हो गया। हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ती जा रही थी। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य हथियार थे। गुरुद्वारा उनका निशाना था।

एक प्रतिज्ञा: गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे। अचानक पुजारी और पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी। वे बोले, “वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने के लिए है। वे हमसे समर्पण करने और धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है। झुकुंगा नहीं। अपना धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों को छूने दूंगा।” चंद सेकेंड के सन्नाटे के बाद 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह' से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी, हममें से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा।

एक इंतजार:

50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही सिर धड़ से अलग हो गया। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह देख वह मजहबी भीड़ गुरुद्वारे से थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट तक गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर वे खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे। ऐसा लगा रहा था मानो उन्हें किसी चीज का इंतजार है। जिसका इंतजार था, वे आ गए थे। हजारों का हुजूम। बाहर हजारों लोग। गुरुद्वारे के अंदर मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे।

एक उन्माद:

अंतिम लड़ाई का क्षण आ चुका था। भीड़ ने एक सिख महिला को आगे खींचा। वह नग्न और अचेत थी। भीड़ में शामिल कुछ लोग उसे नोंच रहे थे। अचानक किसी ने उसका वक्ष तलवार से काट डाला और उसे गुरुद्वारे के भीतर फेंक दिया।

एक सवाल:

गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने इससे पहले इस तरह की बर्बरता के बारे में सुना ही था। पहली बार आंखों से देखा। अब हर कोई अपनी स्त्री के बारे में सोचने लगा। यदि उनकी मौत के बात उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं तो क्या होगा? उन्हें अब केवल मौत ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह।

एक कत्लेआम:

भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई की। कत्लेआम मच गया। हिंदू-सिख लड़े बांकुरों की तरह। पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने कितनी देर टिकते...

एक मुक्ति:

लाजो ने कहा, तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी। लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी। लाजो ने फिर कहा, जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने ही हाथों अपनी बेटियों की हत्या कैसे करे? लाजो ने कहा, यदि आपने नहीं मारा तो वे मेरे वक्ष... बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी। फिर भागो... पारो... गायो... इशो... और आखिरकार उर्मी। लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी। लेकिन उस मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके शव को लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया।

एक आदेश:

लाल बलवंत ने प्रभावती से कहा, गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से एक जत्था भारत जाएगा। तुम दोनों निकलो। प्रभावती ने कहा, मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी। लाला जी बोले, तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा। तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। बलदेव को गले लगाया और कहा जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव को लेकर स्टेशन की तरफ चल दिया।

एक पिता:

फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोदा। उसी कुएं में छलांग लगा दी, जिसमें सात बेटियों को काट कर डाला था। आखिर दो बच्चों के पास उनकी मां थी। सात बच्चों के पास उनके पिता का होना तो बनता था।

लाला जी के बेटे बलदेव का पोता है। भारत के विभाजन में अपने परिवार के 28 सदस्य खोए थे। लाला जी, उनके भाई-बहन और उनके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी गई थी। लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और अजन्मे संतान के साथ जान बचाकर भारत आने में कामयाब रही थीं। वे पंजाब के अमृतसर में रहते थे।

एक पेंटिंग:



पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ। स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उन्हें नग्न कर घुमाया गया। उनके वक्ष काट डाले गए। कइयों ने कुएं में कूद जान दे दी। उसी भयावहता को बयां करते हुए केसी आर्यन ने यह पेंटिंग बनाई थी।


तीन मक्कार आदमियों की भेंट लाखो चढ़े तब बटवारा हुआ।😢😡😡😡😡😡

#साभार

अब तक की सबसे विचलित करने वाली फिल्म हवाएँ

 

फिल्म का नाम है हवाएँ (Hawayein) जो 1984 के सिख नस्लकुशी दंगों पर आधारित है। जब य़ह फिल्म आई थी तब मैं 17 साल की थी और इस फिल्म ने मुझपर गहरा असर डाला। खास तौर पर वो दृश्य जिन में सिख ल़डकियों और औरतों को दंगाइयों की भीड़ उठा ले जा रहे हैं, उनके के साथ सामुहिक बलात्कार कर रहे हैं, उनके कपड़े उतार उन्हें नंगी कर उनकी इज्ज़त लूट रहे हैं।

वो दृश्य मैं आज तक नहीं भूली हालांकि इस फिल्म को आए 18 साल हो गये हैं।

य़ह लिंक इसी फिल्म का है :


रविवार, 18 दिसंबर 2022

सनातन धर्म में सुबह उठने के बाद धरती माता पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम करने की सलाह इसलिए दी जाती है



    *🌷🌷।। भूमि वन्दना ।।🌷🌷*

हिंदू सनातन धर्म में सुबह उठने के बाद धरती माता पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम करने की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि धरती माता हमारी पालनकर्ता है। हमारे जीवन के लिए सभी आवश्यक पदार्थ धरती ही हमें उपलब्ध कराती है। फिर चाहे जल हो या भोजन। धरती माता को प्रणाम करने और उसके प्रति आभार जताकर हम अपना सौभाग्य बढ़ा सकते हैं, क्योंकि धरती को भी देवी मां का स्थान प्राप्त है…

शास्त्रों में मनुष्य को प्रात:काल उठने के बाद धरती माता की वंदना करके ही भूमि पर पैर रखने का विधान किया गया है। पहले दायें पैर को भूमि पर रख कर हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर फिर मस्तक पर लगाया जाता है, साथ ही पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है — ‘हे धरती माता ! मुझे तुम्हारे ऊपर पैर रखने में बहुत संकोच होता है, तुम तो मेरे भगवान की शक्ति हो ।’

भूमि वंदना क्यों करनी चाहिए ?

▪️ नींद से उठने के बाद चूंकि हमें बिस्तर से उतर कर आगे के कार्यों के लिए भूमि पर पांव रखना पड़ेगा और कौन मनुष्य ऐसा होगा जिसे अपनी माता के ऊपर पैर रखना अच्छा लगेगा ? इसी विवशता के कारण सबसे पहले भूमि वंदना कर उन पर पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है।

▪️ पृथ्वी माता ने सबको धारण कर रखा है; अत: वे सभी के लिए पूज्य और वंदन-आराधन के योग्य हैं। वे न रहें या उनकी कृपा न रहे तो सारा जगत कहीं भी ठहर नहीं सकता है।

▪️ पृथ्वी माता धैर्य और क्षमा की देवी हैं। पृथ्वी पर मनुष्य कितना आघात करता है, जल निकालने के लिए भूमि के हृदय को चीरा जाता है, अन्न उपजाने के लिए भूमि के हृदय पर हल चलाया जाता है, मनुष्य व जीव-जन्तु भी उस पर मल-मूत्र का त्याग करते हैं; लेकिन धरती को कभी क्रोध नहीं आता। जिस दिन धरती माता को क्रोध आ जाए, धरती हिलने लगे, भूकम्प आ जाए तो मानव जाति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

▪️ भूमि की शस्य-सम्पदा से ही अन्नरूप प्राण उत्पन्न होता है। साथ ही भूमि के हृदय में अनंत ऐश्वर्य जैसे—हीरा, पन्ना, रूबी, नीलम, सोना, लोहा, तांबा और न जानें कितनी धातुएं रहती हैं, जो वे हमें प्रदान करती हैं; इसलिए पृथ्वी देवी का सदा सम्मान करना चाहिए।

कुछ चीजें जो भूदेवी की मर्यादा के विरुद्ध हैं, वह नहीं करनी चाहिए। जैसे—

▪️ दीपक, शिवलिंग, देवी की मूर्ति, शंख, यंत्र, शालग्राम का जल, फूल, तुलसीदल, जपमाला, पुष्पमाला, कपूर, गोरोचन, चंदन की लकड़ी, रुद्राक्ष माला, कुश की जड़, पुस्तक और यज्ञोपवीत—इन वस्तुओं को कभी भी भूमि पर नहीं रखना चाहिए।

▪️ ग्रहण के अवसर पर भूमि को नहीं खोदना चाहिए।

भूमि वंदन करने के पीछे यही शिक्षा छिपी है कि मनुष्य को पृ्थ्वी की तरह सहनशील, धैर्यवान और क्षमावान होना चाहिए। बोलिए वासुदेव भगवान की जय।



भूमि-वंदना का मंत्र इस प्रकार है—

*समुद्रवसने देवि पर्वत स्तन मण्डिते।*
*विष्णुपत्निनमस्तुभ्यं पादस्पर्शंक्षमस्वमे।।*

*अर्थात् :–* समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूपी स्तनों से शोभित विष्णुपत्नी, मेरे द्वारा होने वाले पाद स्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें।

भगवान नारायण श्रीदेवी और भूदेवी (पृथ्वी) के पति हैं। भूदेवी कश्यप ऋषि की पुत्री हैं, और पुराणों में इनका एक देवी रूप है। भूदेवी अपने एक रूप से संसार में सब जगह फैली हुईं हैं और दूसरे रूप में देवी रूप में स्थित रहती हैं।

कश्यप ऋषि की पुत्री होने से ये *‘काश्यपी’*, स्थिर रूप होने से ‘स्थिरा’, विश्व को धारण करने से ‘विश्वम्भरा’, अनंत रूप होने से ‘अनंता’ और सब जगह फैली होने से ‘पृथ्वी’ कहलाती हैं । भगवान की पत्नी होने के कारण वे ‘विष्णुप्रिया’ के नाम से जानी जाती हैं ।

सृष्टि के समय ये प्रकट होकर जल के ऊपर स्थिर हो जाती हैं, और प्रलयकाल में ये जल के अंदर छिप जाती हैं।

वाराहकल्प में जब हिरण्याक्ष दैत्य पृथ्वी को चुराकर रसातल में ले गया, तब भगवान श्रीहरि हिरण्याक्ष को मार कर रसातल से पृथ्वी को ले आए और उसे जल पर इस प्रकार रख दिया, मानो तालाब में कमल का पत्ता हो। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसी पृथ्वी पर सृष्टि रचना की। उस समय वाराहरूपधारी भगवान श्रीहरि ने सुंदर देवी के रूप में उपस्थित भूदेवी का वेदमंत्रों से पूजन किया और उन्हें ‘जगत्पूज्य’ होने का वरदान देते हुए कहा—
‘तुम सबको आश्रय प्रदान करने वाली बनो। देवता, सिद्ध, मानव, दैत्य आदि से पूजित होकर तुम सुख पाओगी। गृहप्रवेश, गृह निर्माण के आरम्भ, वापी, तालाब आदि के निर्माण के समय मेरे वर के कारण लोग तुम्हारी पूजा करेंगे।’

इसके बाद त्रिलोकी में पृथ्वी की पूजा होने लगी।

    *🪷🪷।। शुभ वंदन ।।🪷🪷*

शनिवार, 17 दिसंबर 2022

राजस्थान की एक प्रथा घुड़ला पर्व- मुगलो को उनकी नीचता के अनुरूप दंड का पर्व

🌈 *_राजस्थान की एक प्रथा घुड़ला पर्व- मुगलो को उनकी नीचता के अनुरूप दंड का पर्व_*


एक संकल्प 
*_# भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हो_*
*_# जनसंख्या क़ानून लागू हो_*
*_# समानता का अधिकार लागू हो पर्सनल लॉ कानून खत्म हो_*

देश और समाज के लिए राजपूतो ने क्या किया ये गिनाने की आवश्यकता नही। पर हिन्दुत्व को बचाने के लिये आपके द्वारा इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक है नही तो कालांतर मे अर्थ का अनर्थ हो सकता है ! 

*मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है जिसे घुड़ला पर्व कहते है*

जिसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले में घूमती है और घर घर घुड़लो जैसा गीत गाती है !

*अब यह घुड़ला क्या है ?*

कोई नहीं जानता है ,
क्योकर घुड़ला की पूजा शुरू हुई।

यह भी ऐसा ही घटिया ओर घातक षड्यंत्र है  जैसा की अकबर को महान बोल दिया गया !

दरअसल हुआ ये था की घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था और अत्याचारऔर पैशाचिकता मे भी अकबर जैसा ही गंदा पिशाच था ! 

ज़िला नागोर राजस्थान के पीपाड़ 
गांव के पास एक गांव है कोसाणा !
उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये 
गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी, वे व्रत में थी उनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है ! गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर पूजन करने के लिये सभी बच्चियाँ गयी हुई थी ।

उधर से ही घुडला खान मुसलमान सरदार अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था, उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी ! उसने सभी बच्चियों का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया जिस भी गाँव वाले ने विरोध किया उसको उसने मौत के घाट उतार दिया ! 

इसकी सूचना घुड़सवारों ने जोधपुर के 
राव सातल सिंह राठौड़ जी को दी ! 

राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवारों ने घुड़ला खान का पीछा किया और कुछ समय मे ही घुडला खान को रोक लिया।
घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया उसने सातल सिंह जी की वीरता के बारे मे सुन रखा था ! उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा, राव तुम मुझे नही दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है ? 

राव सातल सिंह बोले , पापी दुष्ट ये तो बाद की बात है पर अभी तो में तुझे तेरे इस गंदे काम का ख़ामियाज़ा भुगता देता हूँ ! राजपुतो की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था , संख्या मे अधिक मुग़ल सेना के पांव उखड़ गये ,भागती मुग़ल सेना का पीछा कर ख़ात्मा कर दिया गया ! राव सातल सिंह ने तलवार के भरपुर वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया ! 

राव सातल सिंह ने सभी बच्चियों को मुक्त करवा उनकी सतीत्व की रक्षा करी ! 

इस युद्ध मे वीर सातल सिंह जी अत्यधिक घाव लगने से वीरगति को प्राप्त हुये ! उसी गाँव के तालाब पर सातल सिंह जी का अंतिम संस्कार किया गया, वहाँ मौजूद सातल सिंह जी की समाधि उनकी वीरता ओर त्याग की गाथा सुना रही है !गांव वालों ने बच्चियों को उस दुष्ट घुडला खान का सिर सोंप दिया ! 

बच्चियो ने घुडला खान के सिर को घड़े मे रख कर उस घड़े मे जितने घाव घुडला खान के शरीर पर हुये उतने छेद किये और फिर पुरे गाँव मे घुमाया और हर घर मे रोशनी की गयी ! 

*यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी !*
 
जिसके बारे में अधिकाँश लोग अनजान है ।

 लोग हिन्दु राव सातल सिंह जी को तो भूल गए और पापी दुष्ट घुड़ला खान को पूजने लग गये ! 

*इतिहास से जुडो और सत्य की पूजा करो !*

और हर भारतीय को इस बारे में बतायें ।

सातल सिंह जी को याद करो नहीं तो हिन्दुस्तान के ये तथाकथित गद्दार इतिहासकार उस घुड़ला खान को 
देवता बनाने का कुत्सित प्रयास करते रहेंगे ।

सभी से निवेदन है कि वे अपने सभी परिचितों को,  चाहे उनके पास Whatsapp ना हो, उन्हे मौखिक रूप से  इस शर्मनाक घटना की सच्चाई से अवगत करावैं।

जय राजपुताना जय हिंद🚩

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

  हत्था जोड़ी कौनसा पौधा होता है?


हत्थाजोड़ी एक पौधे की अत्यंत दुर्लभ जड़ है। जिसे महाकाली और कामख्या देवी का रूप माना जाता है.

"ऐसी मान्यता है" कि यदि इस जड़ को सिद्ध कर लिया जाए तो ये गरीबी को कुछ ही समय में दूर कर देती है और व्यक्ति के सारे काम मन मुताबिक बनने लगते हैं.

हत्था जोड़ी एक ऐसी जड़ है जो दिखने में किसी का जुड़ा हुआ अंग है। हत्था जोड़ी तंत्रविद्या में बहुत प्रसिद्ध है और इसका प्रभाव काफी अद्भुत निहित रहता है, तांत्रिक वस्तुओं में यह सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकी यह साक्षात चामुंडा देवी का प्रतिरूप माना जाता है। यदि इसे तांत्रिक विधि से सिध्द कर दिया जाए तो साधक निश्चित रूप से चामुण्डा देवी का कृपा पात्र हो जाता है यह जिसके पास होती है उसे हर कार्य में सफलता मिलती है, धन संपत्ति देने वाली यह बहुत चमत्कारी साबित हुई है। तिजोरी में सिन्दूर युक्त हत्था जोड़ी रखने से आर्थिक लाभ में वृद्धि होने लगती है। इसके सिद्ध हो जाने मात्र से धन स्वयं ही आकर्षित होता रहता है और धन-सम्पति, वशीकरण, शत्रु शमन में व्यक्ति सशक्त हो जाता है। जिस व्यक्ति के पास यह होती है। उसे किसी बात कि कमी नहीं होती। उसकी लगभग सभी इच्छाएं पूर्ण होती चली जाती है।

यह उत्तर मैने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिखा है।

अस्वीकरण:- मै स्वयं उपरोक्त सभी बातों व तंत्रशास्त्र पर विश्वास नही करता।

हत्थाजोड़ी जड 👇👇👇

हत्थाजोड़ी का पौधा👇👇👇

यह चित्र गूगल से साभार

बेहोश करने वाला पौधा

 

😨. दुनिया का सबसे खतरनाक पौधा

🥦👉इसके नाम की खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एकोनिटम दुनिया का सबसे ख़तरनाक पौधा है क्योंकि ये आपके दिल की गति को धीमा कर देता है जिससे किसी भी व्यक्ति की मौत हो सकती है। इतना ही नहीं इसका सबसे ज़हरीला हिस्सा होता है जड़। हालांकि इसके पत्तों में भी जहर पाया जाता है। बता दें कि इन दोनों में ही न्यूरोटॉक्सिन होता है। ये वो जहर होता है, जो दिमाग पर असर करता है और इसे त्वचा भी सोख सकती है।

👉आक के पौधे को देशी भाषा में अकौआ के नाम से जाना जाता है. आक का पौधा बहुत ही विषैला होता है. इसको सूंघने मात्र से आप बेहोश हो सकते हैं, साथ ही इसके सूंघने मात्र से आपको मौत का सामना भी करना पड़ सकता है.

आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊंची जगहों पर देखने को मिलते हैं। इस पौधे या फिर यूं कहें कि इस वनस्पति को लेकर साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा बहुत ही विषैला होता है और इसके सेवन मात्र से किसी व्यकति की मौत हो सकती है। आयुर्वेद में इस बात को सत्य करार दिया गया है साथ ही इसकी गणना उपविषों में की गई है। आयुर्वेद के मुताबिक, इस पौधे का सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी-दस्तके साथ-साथ मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रसिद्ध "यूनिवर्स 25" का प्रयोग क्या था?

 

यूनिवर्स25 एक्सपेरिमेंट या ब्रम्हांड25 एक्सपेरिमेंट का उद्देश्य यह देखना था कि अगर किसी प्राणी के लिए पर्याप्त भोजन, और सारी सुविधाएं दे कर स्वर्ग सा वातावरण बना दिया जाए तो उन प्राणियों की क्या प्रतिक्रिया रहेगी….

डॉ. जॉन कैलहौन, एक अमेरिकी वैज्ञानिक द्वारा।

ऐसा लगता है कि यह 1970 के आसपास किया गया था।

हमने चूहों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन और पानी और एक बड़ी रहने की जगह के साथ एक विशेष स्थान बनाया है, जिसे "माउस स्वर्ग" कहा जा सकता है।

सबसे पहले, मैंने त्सुगई चूहों के चार जोड़े रखे।

उन्होंने जल्द ही प्रजनन करना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप माउस की आबादी में वृद्धि हुई।

हालांकि, 315 दिनों के बाद, प्रजनन क्षमता में उल्लेखनीय गिरावट आने लगी।

जब चूहों की संख्या 600 तक पहुंच गई, तो चूहों के बीच एक पदानुक्रम का गठन किया गया, और तथाकथित "आउटकास्टर्स" दिखाई दिए।

पुरुषों के मनोवैज्ञानिक रूप से "पतन" होने के परिणामस्वरूप, बड़े चूहों ने पूरे झुंड पर हमला करना शुरू कर दिया।

नतीजतन, मादा चूहों ने अपनी और अपने बच्चों की रक्षा करने की अपनी मूल भूमिका को त्याग दिया और एक के बाद एक युवा चूहों के प्रति आक्रामकता दिखाना शुरू कर दिया (अपने क्षेत्रों और उनकी अति प्रतिक्रिया की रक्षा के लिए सामाजिक कार्रवाई करना शुरू कर दिया)।

समय के साथ, युवा चूहों की मृत्यु दर 100% तक पहुंच गई और प्रजनन दर शून्य हो गई।

लुप्तप्राय चूहों में समलैंगिकता देखी गई, और साथ ही प्रचुर मात्रा में भोजन के बावजूद नरभक्षण में वृद्धि हुई।

प्रयोग शुरू होने के दो साल बाद, इस "प्रयोगात्मक स्वर्ग" में आखिरी बच्चे का जन्म हुआ।

1973 तक, सभी "ब्रह्मांड 25" चूहों की मृत्यु हो गई थी।

वैसे, प्रयोगकर्ता ने 25 बार और दोहराया, और परिणाम हर बार समान था।

जानकारी स्त्रोत :

[1]

फुटनोट

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

मनमोहन सिंह के समय 2004 से 2013 तक के आंकड़े देखें तो इन 10 सालों में 9,739 आतंकी घटनाएं हुईं।

 

शांतिदूत, अमित शाह आज तक के भारत के सर्वश्रेष्ठ गृह मंत्री है।

अमित शाह को कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में झूठा फंसाया था, बाद में कोर्ट ने गहन जांच के बाद अमित शाह को बाइज्जत बरी कर दिया था।

अमित शाह के गृह मंत्री बनने से पहले देश में सीरियल बम ब्लास्ट आम बात हुआ करती थी।

मनमोहन सिंह के समय 2004 से 2013 तक के आंकड़े देखें तो इन 10 सालों में 9,739 आतंकी घटनाएं हुईं।

मगर अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद से भारत में सीरियल बम ब्लास्ट बंद हो गए हैं, यह होता है गृह मंत्री👇👇👇👇


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