क्या पठान मूवी का बॉयकॉर्ट होना चाहिए या नहीं?
यदि आप सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या(?) से दुखी है
यदि आप सोनू निगम जैसे प्रतिभाशाली गायकों के करियर खतम करने से दुखी है
यदि आप सनी देओल बॉबी देओल विवेक ओबेरॉय अभय देओल विद्युत जामवाल जैसे कई प्रतिभाशाली लेकिन राष्ट्रवादी नायकों के कैरियर को तबाह करने से दुखी है
यदि आप कंगना राणावत जैसी राष्ट्रवादी अभिनेत्री को परेशान करने से दुखी है
तो आपको उस पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड को तबाह करने के लिए और राष्ट्रवादी सिनेमा को मजबूत करने के लिए बिना तर्क वितर्क के इस फिल्म पठान का बॉयकॉट करना ही पड़ेगा!! यही लोकतांत्रिक विरोध है और लोकतांत्रिक तरीका है भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों को मजबूत करने का।
आज सिर्फ चुनावों में वोटिंग से सरकार नहीं बनती है । सिर्फ सरकार और सेना देश की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती है जनता को भी अंदरूनी राष्ट्रविरोधी शक्तियों को लोकतांत्रिक तरीके से कमजोर करने में पूरा सहयोग देना होगा।
हर वेब सीरीज और फिल्म में पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड कुछ ना कुछ एजेंडा घुसा ही देता है देश को कमजोर करने का या युवाओं को दिग्भ्रमित करके नशे या कु–संस्कृति की तरफ ले जाने का।
तुनिषा आत्महत्या हो , श्रद्धा वाकर हत्याकांड हो या उर्मि वैष्णव या शांतिदेवी हत्याकांड हो उसकी शुरुआत बॉलीवुड की बनाई संस्कृति से ही होती है । जिसमें लड़कियों के दिमाग में भरा जाता है कि किसी भी मनुष्य से शादी करो सब एक हैं। लेकिन पर्दे की पीछे की बातों को बॉलीवुड ने कभी नहीं दिखाया। कभी नहीं बताया की किसी संस्कृति में लड़की से छुटकारा पाने का उपाय तलाक या मायके भेजना है । और किसी संस्कृति में पत्नी से छुटकारा पाने का उपाय हत्या करके शव के टुकड़े करना है।
भारत पर हमले हमेशा कई तरीके से हुए हैं।
अप्रत्यक्ष हमले कविताओं, कहानियों , पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, धार्मिक सभाओं, फिल्मों धारावाहिकों वेब सीरीज के माध्यम से ज्यादा हुए हैं।
आज सोशल मीडिया पर बॉलीवुड और राष्ट्रविरोधी शक्तियां मुखर हैं जो सिर्फ मनोरंजन के नाम पर मजाक मजाक में आपके और बच्चो के दिमाग में कचरा भर रहे हैं। हमको पता ही नहीं पड़ रहा है कि अनजाने में हमारे दिमाग में क्या भर दिया गया है।
आप अंदर ही अंदर करोड़ो लोगों को आसानी से पहले संस्कृति से दूर करो , फिर धर्मनिरपेक्षता सहिष्णुता के नाम पर भीरू कायर बना दो, राष्ट्रवाद से दूर कर दो।
लाल बहादुर शास्त्री जी के एक आव्हान पर अमीर गरीब सबने अपना सहयोग दिया था सेना को।
आज कितने लोगों वैसा करेंगे??
उल्टे सेना के मरने पर हारने पर देश में तालियां बजाने वालों की फौज खड़ी हो गई है।
सोचिए !! तर्क , निष्पक्षता और बुद्धिजीवी का चोला उतार कर फेंकिए और शतरंजी चालों को समझने में निपुण बनिए।
वरना आपको पता भी नहीं पड़ेगा और आप खुद अनजाने में अपने देश को तोड़ देंगे संस्कृति को नष्ट कर देंगे।
फन मनोरंजन आवश्यक है जीवन में लेकिन जरूरी नहीं की उसके नाम पर हम किसी भी व्यक्ति को अपने दिमाग में कचरा भरने दें!
कुछ लोग 300 या 500 लोगों के रोजगार की खातिर मूवी देखने की बात कर रहे हैं तो ऐसे में आपको साल में आने वाली सभी 800–900 फिल्में देखनी चाहिए।
पठान तो मूवी राइट्स सैटेलाइट राइट्स म्यूजिक राइट से अपना खर्च निकाल लेगी।
शाहरुख और दीपिका के पास पैसे की कोई कमी नहीं है वो इन 500 लोगों के लिए अपना मेहनताना छोड़ सकते हैं।