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बुधवार, 24 जनवरी 2024

श्री राम चरित मानस के सिद्ध मन्त्र रूपी चौपाइया

श्री राम चरित मानस  के सिद्ध मन्त्र रूपी चौपाइया

विश्व में जितने भी खतरनाक से खतरनाक हथियार बन जाए उसे रामबाण से ही संबोधन करते है जितनी भी कारगर दवाई बने उस भी रामबाण के द्वारा ही संबोधन कर तुलना करते है फिर क्यों नहीं राम बाण रूपी चौपाई का ध्यान करते जीवन की प्रत्येक समस्या के समाधान हेतु इन चौपाइयो को मन्त्र का रूप मां कर सफलता अर्जित करें.श्री राम चरित मानस में पूज्य गोस्वामी तुलसी दास जी प्रभु राम को ही अपना सर्वस्व माना फलस्वरूप उनके द्वारा लिखी प्रत्येक चौपाई भी मंत्र का प्रतीक है.

मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।
अष्टांग हवन सामग्री
१॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।
जानने की बातें-
जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ बोल देना चाहिये।
प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।
हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।
मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।

सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।
एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”

२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”

४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”

५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”

६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”

७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”

८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”

९॰ विष नाश के लिये
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”

१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”

११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”

१२॰ नजर झाड़ने के लिये
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”

१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”

१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”

१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”

१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”

१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’

१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”

१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”

२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।

२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”

२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”

२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”

२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”

२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”

२६॰ शत्रुतानाश के लिये
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”

२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”

२८॰ विवाह के लिये
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”

२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”

३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”

३१॰ आकर्षण के लिये
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”

३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”

३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।

३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥

३५॰ उत्सव होने के लिये
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”

३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”

३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

३८॰ कातर की रक्षा के लिये
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”

३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥

४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”

४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”

४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”

४३॰ विरक्ति के लिये
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”

४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”

४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”

४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”

४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”

४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”

४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”

५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”

५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”

भगवान श्री राम आप सभी की मनोकामना शीघ्र से शीघ्र पूरी करें ऐसा मेरा विश्वास है.

सोमवार, 22 जनवरी 2024

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?
मंदिर निर्माण का श्रेय जिसे है मिल रहा है..उनकी बल्ले बल्ले हैं… जिन्हें नही मिल रहा मुंह फुलाये पड़े हैं और अड़ंगे लगाने का अथक प्रयास कर रहे हैं, उनकी एक ही तमन्ना है…कैसे भी प्राण प्रतिष्ठा टल जाए…
चलिए बनाने का श्रेय लेने सभी सामने आ रहे हैं…पर इसे न बनाने देने का का श्रेय भला कौन लेना चाहेगा…? स्वीकार भले ही कोई न करे, पर भारत जानता है कि पर्दे के सामने और पीछे से अड़ंगे लगाने में कौन सक्रिय रहा है..!

हालांकि 1992 के बाद से खुलेआम मंदिर का विरोध करने वालों की संख्या कम होती गयी और 2019 तक ऐसी स्थिति बन गयी थी कि कोई भी मंदिर के विरोध में मुंह सिर्फ किंतु परन्तु के साथ ही खोलता था।

पर एक ऐसा शख्स जो आजीवन मंदिर बनने के विरोध में खड़ा रहा, उसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं..

आगे का लेख Mann Jee भाई का लिखा हुआ है-

हिन्दुस्थान की आज़ादी को मात्र २ वर्ष हुए थे कि दिसंबर १९४९ में अयोध्या जी में रामलला प्रकट भये। इस घटना का विवरण अनेक जगह मिलता है - ये भी पढ़ने को मिलता है कि किस प्रकार चच्चा नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री गोबिंद बल्लभ पंत और गृह मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को निर्देश दिए थे कि ये मूर्तियां वहां रहने ना पाए। किन्तु इस असल राजनैतिक उथल पुथल के पीछे एक कांग्रेसी नेता का हाथ था।

२२ दिसंबर १९४९ को जब ये सब घटनाक्रम शुरू हुआ तो फैज़ाबाद कांग्रेस कमिटी के गांधीवादी नेता श्री अक्षय ब्रह्मचारी ने घटनास्थल जा दौरा किया और भगवा "आ तक " की खूब भर्त्स्ना की।

ब्रह्मचारी ने खुद वहां के कारसेवको से हाथापाई की - ऊपर उच्च कमान को चिठियाँ लिखी - चच्चा नेहरू को उलाहना दिया कि क्या नेहरू आदर्शवाद में ये सब सम्प्रय्दिकता देखने को मिलेगी। जब ब्रह्मचारी को कोई सफलता ना मिली तो वो गाँधी बाबा की भांति आमरण अनशन पर बैठे। शास्त्री जी के कहने पर चार दिन बाद अपना अनशन तोडा। किन्तु ब्रह्मचारी जी असल गांधीवादी थे। २६ जनवरी १९५० को जब देश का संविधान लांच हुआ तो ब्रह्मचारी ने फिर आमरण अनशन छेड़ा - कारण - बाबरी से वो मूर्तियां हटाओ। इस बार अनशन पूरे ३२ दिन चला। संसद में बाकायदा चर्चा हुई कि क्या गाँधी बाबा के असल चेले को ऐसे मरने छोड़ दिया जाएगा। खैर - ब्रह्मचारी ने खुद ही अपना उपवास तोडा।

अपना शेष जीवन अक्षय ब्रह्मचारी ने इसी लड़ाई में लगाया - लाख कोशिश की कि राम मंदिर ना बनने पाए। इतनी पक्की जान थे ब्रह्मचारी जी कि २०१० में अल्लाह को प्यारे हुए। मरते दम इन्होने शास्त्री जी को कोसा था कि उनके चलते पहला अनशन तोडना पड़ा ना तो नौबत इतनी ना आती।

अक्षय ब्रह्मचारी जी एक सच्चे गाँधीवादी कांग्रेसी कार्यकर्त्ता थे जिनका रक्त आज भी कांग्रेस में बह रहा है।
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श्रीराममंदिर का इतिहास.🚩( 1528 से अब तक ) #rammandir #ayodhya #ram #india

*श्रीराममंदिर का इतिहास.🚩!* 
( 1528 से अब तक )_*
*#साभार*
*सन् 1528__*

बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या के रामकोट में स्थित राम जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर उसी स्थान पर मंदिर के अवशेषों से इस्लामिक ढांचे का निर्माण करवाया। तीन गुम्बद वाले इस ढांचे को मस्जिद जन्मस्थान कहा गया।

*सन् 1530 से सन् 1556__*

राम जन्मस्थान मंदिर टूटने से हिन्दू आहत थे। उन्होंने सतत संघर्ष किया। इस दौरान दस युद्ध हुए। स्वामी महेशानंद साधु सेना लेकर लड़े और रानी जयराज कुमारी स्त्री सेना। दोनों बलिदान हो गए।

*सन् 1556 से सन् 1605__*

यह अकबर का काल था। इस दौरान 20 युद्ध हुए। स्वामी बलराम आचार्य वीरगति को प्राप्त हुए। बाद में अकबर ने बीरबल और टोडरमल की राय से इस्लामिक ढांचे के सामने एक छोटे से चबूतरे पर हिन्दुओं को पूजा अर्चना की अनुमति दे दी।

*सन् 1528 से सन् 1731__*

हिन्दू राम जन्मभूमि पर कब्जा चाहते थे, जिस पर इस्लामिक ढांचा बना दिया गया था। इस कालखंड में 64 लड़ाइयां लड़ी गईं।

*सन् 1650 से सन् 1707__*

यह औरंगजेब का समय था। इस काल में गुरु गोविंद सिंह, बाबा वैष्णव दास, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह आदि के नेतृत्व में कुल 30 लड़ाइयां लड़ी गईं।

*सन् 1822__*

फैजाबाद अदालत के मुलाजिम हफीजुल्ला ने सरकार को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें कहा कि राम के जन्मस्थान पर बाबर ने मस्जिद बनवाई थी।

*सन् 1852__*

निर्मोही अखाड़े के संतों ने दावा किया कि बाबर ने मंदिर तोड़कर इस्लामिक ढांचा बनाया।

*सन् 1855__*

जन्मस्थान के पास हनुमान गढ़ी पर बैरागियों और मुसलमानों के बीच लड़ाई हुई। वाजिद अली शाह नेपांच दस्तावेजों समेत ब्रिटिश रेजीडेंट मेजर आर्टम को पर्चा भेजा, जिसमें लिखा कि इस ढांचे को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों में तनाव रहता है।

*सन् 1858__*

अंग्रेजी सरकार ने इस स्थान की घेराबंदी करवाते हुए ढांचे के अंदर का हिस्सा मुसलमानों को नमाज के लिए तथा बाहर का हिस्सा हिन्दुओं को पूजा अर्चना के लिए दे दिया।

*सन् 1860__*

डिप्टी कमिश्नर फैजाबाद की अदालत में ढांचे के खादिम मीर रज्जब अली ने एक एप्लीकेशन लगाई कि परिसर में एक निहंग सिख ने निशान साहिब गाड़कर एक चबूतरा बना दिया है, वह हटाया जाए।

*सन् 1877__*

मुसलमानों को ढांचे में जाने के लिए दूसरा रास्ता दे दिया गया।

*15 जनवरी 1855__*

निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने चबूतरा, जहॉं पूजा अर्चना होती थी, अदालत से वहॉं मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी।

*24 फरवरी 1885__*

फैजाबाद की जिला अदालत ने महंत रघुबर दास की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह जगह ढांचे के बेहद निकट है। चबूतरे पर रघुबर दास का कब्जा है। दीवार उठाकर चबूतरे को अलग किया जा सकता है, लेकिन मंदिर नहीं बना सकते।

*17 मार्च 1886__*

जिला जज फैजाबाद कर्नल कैमियर ने माना कि ढांचा हिन्दुओं के पवित्र स्थान पर बना है। साथ ही कहा कि अब देर हो चुकी है। 356 वर्ष पुरानी गलती को सुधारना उचित नहीं। सभी पक्ष यथास्थिति बनाए रखें।

*20-21 नवम्बर 1912__*

बकरीद पर अयोध्या में गोहत्या के विरुद्ध पहला दंगा हुआ। 1906 से ही यहॉं म्यूनिसिपल कानून के अंतर्गत गोहत्या बैन थी।

*मार्च 1934__*

शाहजहॉंपुर में गोहत्या को लेकर दंगे हुए। हिन्दुओं ने इस्लामिक ढांचे को तोड़ने के प्रयास किए। ढांचे का गुम्बद और दीवार क्षतिग्रस्त हुए। अंग्रेजी सरकार ने बाद में इसकी मरम्मत करायी।

*सन् 1936__*

इस बात की कमिश्नरी जांच कराई गई कि क्या इस्लामिक ढांचा बाबर ने बनवाया था।

*20 फरवरी 1944__*

आधिकारिक गजट में यह जांच रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें माना गया कि इस्लामिक ढांचा बाबर ने ही बनवाया था।

*22-23 दिसम्बर 1949__*

ढांचे के अंदर रामलला प्रकट हुए। मामला गर्माया। दोनों पक्षों ने केस दायर किए। सरकार ने इमारत में ताला लगाते हुए कुर्की के आदेश दे दिए। अदालत ने पूजा अर्चना की अनुमति जारी रखी।

*29 दिसम्बर 1949__*

फैजाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन प्रिया दत्त राम को परिसर का रिसीवर नियुक्त कर दिया गया।

*6 जनवरी 1950__*

हिन्दू महासभा के गोपाल सिंह विशारद और दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचंद्र दास ने फ़ैज़ाबाद अदालत में एक याचिका दायर कर जन्मस्थान पर स्वामित्व का मुक़दमा दायर किया। दोनों ने वहाँ पूजापाठ की अनुमति माँगी। सिविल जज ने भीतरी हिस्से को बंद रखकर पूजा पाठ की अनुमति देते हुए मूर्तियों को न हटाने का अंतरिम आदेश दिया और मुस्लिम पक्षकारों को पूजा में रुकावट न डालने के लिए पाबंद किया।

*अप्रैल 1955__*

इलाहबाद हाईकोर्ट ने 3 मार्च 1951 को सिविल जज के इस अंतरिम आदेश पर मुहर लगायी कि यहाँ पूजा अर्चना जारी रहेगी।

*दिसंबर 1959__*

निर्मोही अखाड़े ने इस विवाद पर तीसरी याचिका दायर कर मंदिर स्थान पर अपना दावा ठोंका और स्वयं को राम जन्मभूमि का संरक्षक बताया।

*18 दिसंबर 1961__*

सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने ढांचे में मूर्ति के विरोध में याचिका दायर की और दावा किया कि ढांचे और उसके आस पास की ज़मीन एक क़ब्रिस्तान है, जिस पर उसका दावा है। यह इस मामले में चौथा वाद था।

*अगस्त 1964__*

जन्माष्टमी के अवसर पर मुंबई में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई। इस स्थापना सम्मेलन में संघ के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर, गुजराती साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, संत तुकोजी महाराज और अकाली दल के मास्टर तारा सिंह उपस्थित थे।

*8 अप्रैल 1984__*

दिल्ली के विज्ञान भवन में संतों का एक सम्मेलन हुआ। इसे धर्म संसद नाम दिया गया। धर्म संसद में अयोध्या में राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्दा उठा।

*जून 1984__*

दिल्ली में जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए हिन्दू समूह ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनायी। इसके अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ और परमहंस रामचंद्र दास तथा महामंत्री नृत्यगोपाल राम इसके उपाध्यक्ष बने। देश भर में राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए रथ यात्राएं निकाली गईं।

*18 सितंबर 1985__*

दिल्ली में जगद्गुरु रामानंदाचार्य शिवराम आचार्य के नेतृत्व में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ। अशोक सिंघल इस न्यास के प्रबंधकर्ता और विष्णु हरि डालमिया कोषाध्यक्ष बने। स्वामी शिवरामआचार्य को न्यास का धर्मकर्ता बनाया गया।

 *1 फ़रवरी 1986__*

फ़ैज़ाबाद के वक़ील उमेश चन्द्र पाण्डेय की याचिका पर जिला जज फ़ैज़ाबाद के एम पांडे ने आदेश दिया कि ढांचे के ताले खोल दिए जाएं और हिन्दुओं को वहाँ पूजा पाठ की अनुमति दी जाए। इस निर्णय के 40 मिनट के अंदर ही सिटी मजिस्ट्रेट ने राम जन्मभूमि के ताले खुलवा दिए। मुस्लिमों ने हिन्दुओं को पूजापाठ की अनुमति मिलने का विरोध किया।

*3 फ़रवरी 1986__*

मोहम्मद हाशिम अंसारी ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ताला खोले जाने के जिला जज के निर्णय को रोकने की अपील की।

सैयद शहाबुद्दीन ने ताला खोले जाने के विरुद्ध 14 फ़रवरी को देश भर में शोक दिवस मनाने की अपील की।

*6 फ़रवरी 1986__*

ताला खोले जाने के विरोध में लखनऊ में मुसलमानों की एक सभा हुई, जिसमें बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के गठन की घोषणा हुई। मौलाना मुज़फ़्फ़र हुसैन को कमेटी का अध्यक्ष तथा मोहम्मद आज़म ख़ान और जफ़रयाब जिलानी को संयोजक बनाया गया।

*मई 1988__*

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने 12 अगस्त को अयोध्या मार्च की घोषणा कर राम जन्मभूमि मंदिर में नमाज़ पढ़ने की घोषणा की।

*1 फ़रवरी 1989__*

विश्व हिन्दू परिषद द्वारा प्रयाग में बुलायी गई धर्मसंसद ने 10 नवम्बर को प्रस्तावित मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की। इस धर्म संसद में देवराहा बाबा भी पधारे थे। इस अवसर पर अयोध्या के प्रस्तावित मंदिर का लकड़ी का मॉडल भी जारी किया गया।

*मई 1989__*

विश्व हिन्दू परिषद ने आंदोलन को घर घर तक पहुँचाने के लिए राम शिलापूजन कार्यक्रम की घोषणा की।

*1 जुलाई 1989__*

हाईकोर्ट में एक याचिका दायर हुई जिसमें कहा कि राम मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर बनाए गए इस्लामिक ढांचे को वहाँ से हटाकर कहीं और ले जाया जाए। सरकार ने फ़ैज़ाबाद जिला अदालत में लंबे चले 4 मुकदमों के साथ मूल मुक़दमे को हाईकोर्ट की विशेष बेंच को स्थानांतरित कर दिया।हाईकोर्ट में सबकी एक साथ सुनवाई शुरू हुई।

*अगस्त 1989__*

बद्रीनाथ मंदिर में शंकराचार्य स्वामी शांतानंद ने पहली शिला पूजित कर शिला पूजन कार्यक्रम की शुरुआत की। देश भर में 2,97,633 स्थानों पर शिला पूजन कार्यक्रम चला।

*अक्तूबर 1989__*

राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में पूरे देश से लगभग तीन लाख राम शिलाएँ पहुँचाई गईं। इन रामशिलाओं का पूजन देश के हर गाँव में हुआ था।

*6 नवम्बर 1989__*

प्रधानमंत्री राजीव गांधी, गृहमंत्री बूटा सिंह व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने देवरहा बाबा से मिल कर शिलान्यास की जगह बदलने का निवेदन किया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।

*9 नवम्बर 1989__*

प्रस्तावित मंदिर के सिंहद्वार पर शिलान्यास हुआ। कामेश्वर चौपाल ने शिलान्यास की पहली ईंट रखी।

 *जनवरी 1990__*

विश्व हिन्दू परिषद ने प्रयाग में आयोजित संत सम्मेलन में राम जन्मभूमि स्थल पर फिर से कारसेवा की घोषणा की।

*जून 1990__*

हरिद्वार में विश्व हिन्दू परिषद की बैठक में निर्णय हुआ कि 30 अक्टूबर से अयोध्या में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा की घोषणा की।

सितम्बर को सोमनाथ से चली यह रथयात्रा 30 अक्टूबर को फ़ैज़ाबाद पहुँचनी थी।

*17 अक्तूबर 1990__*

भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि अगर आडवाणी की रथ यात्रा रोकी गई तो वो केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लेगी।

*9 अक्टूबर 1990__*

विवादित ज़मीन के अधिग्रहण के लिए केंद्र सरकार ने तीन सूत्रीय अध्यादेश जारी किया।

*अक्तूबर 1990__*

भारी विरोध को देखते हुए सरकार ने BJP को भरोसे में लिए बिना उक्त अध्यादेश को तीसरे दिन ही वापस ले लिया। उधर केंद्र सरकार के कहने पर बिहार की लालू सरकार ने लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोकी और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया। VP सिंह की सरकार अल्पमत में आ गयी।

*नवम्बर 1990__*

विश्व हिन्दू परिषद के कारसेवक अनेक पाबंदियों के बावजूद लाखों की संख्या में अयोध्या पहुँच गए। उन्होंने मंदिर तोड़कर बनाए गए इस्लामिक ढांचे पर तोड़फोड़ की और भगवा झंडा फहरा दिया। मुलायम सिंह सरकार ने गोलियां चलवा दीं। 40 से अधिक कारसेवक शहीद गए।

*7 नवंबर 1990__*

VP सिंह सरकार गिर गई। कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर देश के नए प्रधानमंत्री बने।

*मई 1991__*

देश में आम चुनाव हुए। UP में BJP की सरकार बनी। केंद्र में PV नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कार्यभार संभाला। भाजपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता मिलने से अयोध्या आंदोलन में तेज़ी आयी।

*अक्तूबर 1991__*

उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ने अयोध्या में मंदिर तोड़कर बनाए गए ढांचे के आस पास की 2.77 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया।

*फ़रवरी 1992__*

उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में तोड़ दिए गए राम मंदिर परिसर के चारों और राम दीवार का निर्माण शुरू किया।

*मार्च 1992__*

विवादित स्थल के पास 1988-89 में अधिग्रहण की गई 42.09 एकड़ ज़मीन रामजन्मभूमि न्यास को रामकथा पार्क के लिए सौंप दी गई।अधिग्रहण की गई उस ज़मीन पर बने सभी मंदिर, आश्रम और भवनों को तोड़कर वहाँ ज़मीनों के समतलीकरण का काम शुरू हुआ। मुस्लिम पक्ष ने इस पर हाईकोर्ट से रोक लगाने की माँग की। जिसे मानने से कोर्ट ने मना कर दिया।

*9 जुलाई 1992__*

विश्व हिन्दू परिषद ने कारसेवा फिर शुरू की।

*24 नवम्बर 1992__*

राज्य सरकार को बताए बिना केंद्र सरकार ने केंद्रीय सुरक्षा बलों की एक कंपनी को अयोध्या भेजा। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एतराज़ जताया। केंद्र और राज्य में इस पर तनाव बढ़ा।

*नवम्बर 1992__*

उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ढांचे की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेते हुए एक हलफ़नामा दाख़िल किया कि अयोध्या में कोई स्थाई निर्माण नहीं होगा। सुप्रीमकोर्ट ने अपना एक पर्यवेक्षक नियुक्त किया, जिसका काम यह देखना था कि 6 दिसंबर को प्रस्तावित कारसेवा के नाम पर वहाँ कोई स्थाई निर्माण ना हो। मुरादाबाद के जिला जज तेज शंकर अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षक बने।

*3 दिसंबर 1992__*

अयोध्या में 25 हज़ार अर्धसैनिक बल तैनात किए गए।

*6 दिसंबर 1992__*

विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के कार्यकर्ताओं में ग़ुस्सा फूटा। नेतृत्व के आदेशों की अनदेखी करते हुए वहाँ उपस्थित लाखों कारसेवकों ने इस्लामिक ढांचे को गिरा दिया। देशभर में दंगे फैले। केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बर्खास्तगी से पहले ही अपना इस्तीफ़ा सौंप चुके थे। शाम तक पूर्व मंदिरस्थल पर अस्थाई मंदिर बना मूर्तियाँ फिर से स्थापित कर दी गईं।

*6 दिसंबर 1992__*

दो एफ़आइआर ढांचा विध्वंस के विरुद्ध राम जन्मभूमि थाने में दर्ज की गईं।

*15 दिसंबर 1992__*

केंद्र सरकार ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश की चुनी हुई BJP सरकारों को बर्खास्त करन दिया। आडवाणी समेत 6 लोगों को गिरफ़्तार करके ललितपुर जेल भेज दिया गया।

*दिसंबर 1992__*

ढांचे को ढहाने और उसके बाद फैले दंगे की जाँच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन हुआ। 30 जून 2009 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी।

*7 जनवरी 1993__*

अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर की 67.7 एकड़ ज़मीन का केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से अधिग्रहण किया, इसमें एक अस्थाई मंदिर भी था। इसी दिन राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 ए के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भी किया, कोर्ट बताए कि क्या विवादित ढांचे के नीचे कभी कोई मंदिर था और वहाँ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद इस रेफरेंस को यह कहते हुए लौटा दिया कि वह इस पर राय नहीं दे सकता।

*मार्च 1993__*

ढांचे को गिराने की प्रतिक्रिया में मुंबई में बम धमाके हुए। इस विस्फोट और उसके बाद हुए दंगों में हजारों लोग मारे गए।

*फ़रवरी 2002__*

विश्व हिन्दू परिषद ने मंदिर निर्माण फिर से शुरू करने के लिए 15 मार्च की अंतिम तारीख़ तय की। देशभर से कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा होने लगे। कारसेवकों को वापस ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे एस6 पर गुजरात के गोधरा में हमला किया गया। उस हमले में कारसेवक ज़िंदा जला दिए गए। इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे फैल गए, जिनमें हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई।

*अप्रैल 2002__*

इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीन जजों की विशेष बेंच में इस बात की सुनवाई शुरू हुई कि विवादित स्थल पर किसका अधिकार है।

*5 मार्च 2003__*

इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेष बेंच ने ASI को इस बात की जाँच करने को कहा कि क्या वहाँ पहले कोई मंदिर था ?हाईकोर्ट ने एएसआई से कहा कि वह खुदाई कर इस बात का पता लगाए। ASI को मस्जिद के नीचे ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर होने के साक्ष्य मिले।

*30 सितंबर 2010__*

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दायर की गई चार याचिकाओं पर निर्णय सुनाया। इस निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बाँट दिया जाए– एक तिहाई हिस्सा रामलला को दिया जाए, जिसका प्रतिनिधित्व हिन्दू महासभा के पास है। एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया जाए और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए।

दिसंबर में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गए।

*मई 2011__* 

सुप्रीम कोर्ट ने ज़मीन के बँटवारे पर रोक लगा दी और कहा कि इस स्थिति को पहले की तरह ही बने रहने दिया जाए।

*मई 2014__*

लोकसभा के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और केंद्र की सत्ता में आई।

*जून 2015__*

विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलाओं को फिर इकट्ठा करने का आह्वान किया। छह महीने बाद दिसंबर में दो ट्रक शिलाएँ पहुँच भी गयीं। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने कहा कि वो अयोध्या में शिलाओं को लाने की अनुमति नहीं देंगे।

*8 फ़रवरी 2018__*

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को दो सप्ताह में अपने अपने दस्तावेज़ तैयार करने का आदेश दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में अब कोई नया पक्षकार नहीं जुड़ेगा।

*14 मार्च 2018__*

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अनावश्यक दख़ल से बचाने के लिए मुख्य पक्षकारों के अलावा बाक़ी सारे पक्षों की ओर से दायर सभी 32 हस्तक्षेप अर्जियों को ख़ारिज कर दिया। अब वही पक्षकार बचे जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय में शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर दोनों पक्ष समझौते के लिए राज़ी हैं तो कोर्ट इसकी अनुमति दे सकता है। लेकिन वो किसी पक्ष को विवश नहीं कर सकता।

*9 जनवरी 2019__*

मामले की सुनवाई के लिए पाँच जजों की बेंच का गठन हुआ। इस बेंच के अध्यक्ष चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई बनाए गए। इसके साथ ही बेंच में बोबड़े, रमन्ना, ललित और डीवाई चंद्रचूड को शामिल किया गया।

*25 जनवरी 2019__*

जस्टिस UU ललित के बेंच से अलग होने के बाद नई बेंच का गठन हुआ। चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में इस बेंच में बोवड़े, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर को शामिल किया गया।

*29 जनवरी 2019__*

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन देकर विवादित परिसर वाली ज़मीन को उसके मूल मौलिक मूल मालिक को देने की अनुमति माँगी।

*26 फ़रवरी 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से विवाद के हल के लिए मध्यस्थता की संभावना टटोल लेने को कहा।

*11 जुलाई 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस मामले का निपटारा मध्यस्थता के माध्यम से नहीं होता है तो कोर्ट प्रतिदिन इस मामले की सुनवाई करेगा और उसके आधार पर निर्णय सुनाएगा। मध्यस्थता पैनल से उसकी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया।

*2 अगस्त 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल इस मामले को निपटाने में असफल रहा है। अब इस मामले की सुनवाई 6 अगस्त से प्रतिदिन दोबारा शुरू होगी।

*6 अगस्त 2019__*

सुप्रीम कोर्ट में मामले की प्रतिदिन सुनवाई शुरू हुई। 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीमकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया।

*9 नवंबर 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें उसने इस्लामिक ढांचे को राम का जन्मस्थान माना और ज़मीन रामलला विराजमान को दे दी। इससे जन्मस्थान पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया।

कोर्ट ने कहा कि सरकार एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर का निर्माण करवाए। परिसर पर सरकार का क़ब्ज़ा होगा। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मस्जिद के लिए अयोध्या में किसी दूसरी जगह 5 एकड़ ज़मीन दे दी जाए। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को ख़ारिज कर दिया। यह निर्णय 5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से दिया।

 *5 फ़रवरी 2020__*

सुप्रीम कोर्ट से आए निर्णय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। ट्रस्ट में 15 सदस्य बनाए गए। जिनमें से 12 को भारत सरकार द्वारा नामित किया गया और 3 को 19 फ़रवरी 2020 को आयोजित ट्रस्ट ने अपनी पहली बैठक में चुना।

*5 अगस्त 2020__*

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन कर 12:44 मिनट पर मंदिर की आधारशिला रखी।

*1 जून 2022__*

प्रस्तावित मंदिर के गर्भगृह की पहली शिला रखी गई।

*सितम्बर 2023__*

गर्भगृह पूरा हुआ।

*22 जनवरी 2024__*
रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजेंगे, उनकी प्राण प्रतिष्ठा होगी।

 माफ कीजिएगा, मैं जानता हूं कि लेख बहुत बड़ा हो गया है। हम चाहते है कि आप सबको हमारे भगवान श्रीराम मंदिर का इतिहास मालूम चले और आपको जानकारी हो कि इस मंदिर निर्माण के लिए हमारे पूर्वजों में कितना संघर्ष, त्याग, समर्पण और बलिदान किया है।

आज हम कितने सौभाग्यशाली है कि हमें आज इस श्री राम मंदिर के निर्माण को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।



*जय श्री राम*
*वंदेमातरम्*


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रविवार, 21 जनवरी 2024

जब सभी देशवासी थाली, घंटा बजा रहे थे। किंतु इस बात से हम सब अंजान थे कि हम क्यों थाली, घंटा बजा रहे हैं।

क्या आपको मालूम है ??                        
 
कोर्ट के २०१९ के निर्णय नुसार अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य चालू होने पर वहां पर रामलला की मूर्ति एक मंदिर में शिफ्ट करनी थी। उसके लिए मार्च २०२० का मुहूर्त नक्की हुवा। उसी समय पूरे भारत में करोना हु़वा। इस वजह से रामलला के जुलूस में किसी को भी शामिल नहीं किया जा सकता था। रामलला को धूमधाम से ले के नही जा सकते थे। इस लिए योगी आदित्यनाथजी फिकर में पड गए। उन्होंने मोदीजी को फोन लगा के कहा कि रामलला का जुलूस धूम धाम से होना चाहिए। तभी मोदीजी ने कहा "मैं सब देख लूंगा" और वो दिन था २५ मार्च २०२० गुढ़ीपड़वा। मोदी जी ने उस दिन सभी देशवासियों को थाली,घंटा नाद और भगवान के पास दिया बत्ती लगाने को बोला। और उसी समय योगी आदित्यनाथजी ने खुद अपने सिर पर रामलला की मूर्ति लेकर १.३ km चलकर साथमे ५ महंत, ४ सिक्यूरिटी गार्ड लेकर मूर्ति को शिफ्ट किया यह वही समय था जब सभी देशवासी थाली, घंटा बजा रहे थे। किंतु इस बात से हम सब अंजान थे कि हम क्यों थाली, घंटा बजा रहे हैं।      
  
बाद में मोदीजी ने योगी आदित्यनाथजी  से पूछा कि  क्या १०० करोड़ जनता के साथ इतनी धूमधाम से अयोध्या में जुलूस हो  सकता था?   
  
मोदी जी जो भी कार्य करते या करते हैं, वो कार्य कभी निरुद्देश्य नही हो सकता।                  
   🚩 *जय श्रीराम*🚩



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शनिवार, 20 जनवरी 2024

पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है

पौष पुत्रदा एकादशी आज
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संतान सुख व बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए पौष पुत्रदा एकादशी प्रभावशाली मानी गई है
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पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। पुराणों में एकादशी व्रत की महीमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इसके प्रताप से दुखों, त्रिविध तापों से मुक्ति और हजारों यज्ञों को करने के समान फल देता है।

मान्यता है कि अपने नाम स्वरूप पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु स्वंय संकटों में संतान की रक्षा करते हैं। वंश वृद्धि के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है।

पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 21 जनवरी 2024, रविवार को है। पुत्रदा एकादशी का व्रत साल में दो बार रखा जाता है एक पौष माह में और दूसरा सावन महीने में। ये दोनों ही व्रत संतान प्राप्ति की कामना के लिए बहुत प्रभावशाली माने जाते हैं।

पौष पुत्रदा एकादशी का मुहूर्त 
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पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 20 जनवरी 2024 को रात 06 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 21 जनवरी 2023 को रात 07 बजकर 26 मिनट पर खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार एकादशी व्रत 21 जनवरी को मान्य होगा।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण समय 
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पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत पारण 22 जनवरी 2024 को सुबह 07.14 से सुबह 09.21 के बीच किया जाएगा। ये दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन श्रीहरि के मनुष्य अवतार श्रीराम लला की 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा होगी।

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - रात 07.51

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कैसे करें 
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पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से श्रीहरि की पूजा करें।
संध्याकाल में दीपदान करें। तुलसी में दीपक लगाएं।
व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।

प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व देव की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। ऐसा क्यों?

*मूर्तिकार की कल्पना, उंगलियों की जादूगरी, छेनी की हजारों चोट और रेती की घिसाई। और इस तरह महीनों की तपस्या के बाद वह मूर्ति उभरती है, जिसमें देवता निवास करते हैं। पर मूर्ति से देवता होने की प्रक्रिया भी इतनी सहज कहाँ...*

आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनं
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।
बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनं
पश्चाद्रावणकुंभर्णहननमेतद्धि रामायणम्।।

।।एकश्लोकि रामायणं संपूर्णम्।।

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    सोच कर देखिये, पूरा संसार बड़े बड़े पत्थरों, पहाड़ों से भरा हुआ है। बड़े बड़े पहाड़ तोड़ कर सड़क के नीचे डाल दिये जाते हैं। घर की दीवालों में जोड़ दिए जाते हैं, फर्श में लगा दिए जाते हैं। पर उन्ही में किसी पत्थर का भाग्य उसे देवता बना देता है न? सौभाग्य-दुर्भाग्य का भेद केवल मनुष्य के लिए ही नहीं, हर जीव जन्तु, नदी तालाब, माटी पत्थर के लिए भी होता है।
     *प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व देव की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। ऐसा क्यों? इसका शास्त्रीय उत्तर तो विद्वान जानें, मुझे जो लौकिक उत्तर समझ में आता है, वह सुनिये।*
     जब तक प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती तब तक वह केवल मूर्ति होती है, पर प्रतिष्ठा होते ही वे देव हो जाते हैं। तो देव की पहली दृष्टि किसपर पड़े? कौन सहन कर पायेगा वह तेज? क्या कोई सामान्य जन? कभी नहीं। तो इसका सबसे सहज उपाय ढूंढा गया कि देव की पहली दृष्टि सीधे देव पर ही पड़े। इसीलिए आंखों की पट्टी खोलते समय उनके सामने आईना लगा दिया जाता है। इस भाव से कि आपन तेज सम्हारो आपै... इस तरह देव की पहली दृष्टि उन्ही पर पड़ती है, वे अपना तेज स्वयं ही सम्हारते हैं। कितना सुंदर विधान है न?
      *प्राणप्रतिष्ठा के पूर्व विग्रह को जलाधिवास, अन्नाधिवास, फलाधिवास, घृताधिवास और फिर शय्याधिवास में रखा जाता है। एक रात जल में निवास होता है, फिर अन्न से ढक कर रखा जाता है, फिर पुष्पादि से.... घी और फिर शय्या... जहाँ जहाँ जीवन है, जीवन के लिए आवश्यक तत्व हैं, वहाँ वहाँ से तेज प्राप्त करती है मूर्ति! उसके बाद होता है देव का आवाहन, और फिर वे विराजते हैं विग्रह में... इसके बाद खुलता है पट। लम्बी चरणबद्ध प्रक्रिया है... देवत्व यूँ ही नहीं आता।*
      कल कहीं एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न पढ़ा। किसी ने लिखा था कि मनुष्य ईश्वर की प्राणप्रतिष्ठा कैसे कर सकता है? बकवास प्रश्न है यह। मनुष्य मूर्ति में ही नहीं, सृष्टि के कण कण में देवता को देख सकता है, पर इसके लिए हृदय में श्रद्धा होनी चाहिये। जैसे बिना आंखों के आप संसार को नहीं देख सकते, वैसे हीं बिना श्रद्धा के आप ईश्वर को नहीं देख सकते। हम देख लेते हैं देवत्व गङ्गा में, वृक्षों में, पहाड़ों में, अग्नि में, आकाश में... यह हमारी श्रद्धा की शक्ति है, हमारी संस्कृति की शक्ति है, हमारे धर्म की शक्ति है।
      *बाकी एक बात और! इस बार केवल एक मन्दिर में देव की प्राणप्रतिष्ठा ही नहीं हो रही। यह युगपरिवर्तन का उद्घोष है, यह भारतीय स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा है।*
      आइये, देव के पट खुलने की प्रतीक्षा करें... वह क्षण धर्म के जयघोष का होगा, सनातन के विजय का होगा, असंख्य योद्धाओं की तृप्ति का होगा... जय जय श्रीराम।
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