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शनिवार, 25 मई 2024

ज्येष्ठ मास का महत्त्व

ज्येष्ठ मास का महत्त्व 
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हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास हिन्दू वर्ष का तीसरा माह है. हिन्दी माह में हर माह की एक विशेषता रही है. सभी की कोई न कोई खासियत होती ही है. जीवन में आने वाले उतार-चढा़वों में ये सभी माह कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते ही हैं. मौसम में होने वाले जबरदस्त बदलाव को भी इन सभी 12 माह के दौरान देखा जा सकता है।

ज्येष्ठ माह को सबसे गर्म माह की श्रेणी में रखा जाता है. इसे सामान्य बोल-चाल की भाषा में जेठ का महीना भी कहा जाता है, क्योंकि ये सबसे गर्म महीना होता है. इसी माह में सबसे अधिक ऎसी वस्तुओं के दान की बात कही जाती है जो ठंडक और छाया देने वाली होती हैं जैसे कि - छाता, पंखा, पानी इत्यादि वस्तुओं का दान देने की जरुरत होती ही है।

ज्येष्ठ माह में विशेष रुप से गंगा नदी में स्नान और पूजन करने का विधि-विधान है. इस माह में आने वाले पर्वों में गंगा दशहरा और इस माह में आने वाली ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी और निर्जला एकादशी प्रमुख पर्व है. गंगा नदी का एक अन्य नाम ज्येष्ठा भी है. गंगा को गुणों के आधार पर सभी नदियों में सबसे उच्च स्थान दिया गया है।

ज्येष्ठ माह के व्रत व त्यौहार
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ज्येष्ठ मास के त्यौहारों में गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी, वटसावित्री व्रत, ज्येष्ठ पूर्णिमा, योगिनी एकादशी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं. इन त्यौहारों का महत्व ही हमारे जीवन में एक नई चेतना और विकास देने वाला होता है. इस माह के दौरान तीर्थ स्थलों पर जाकर नदियों में स्नान करने और लोगों को ठंडा पानी इत्यादि बांटा जाता है. जग-जगह पर लोगों को पानी पिलाने के लिए मटकों इत्यादि की व्यवस्था भी की जाती है।

इस माह के दौरान मौसम का प्रकोप इतना अधिक प्रचंड रहता है कि मनुष्य तो क्या जीव जन्तु भी इस समय में गर्मी की अधिकता से व्याकुल हो जाते हैं. ऎसे में इस तपन को शांत करने के लिए ही पशु-पक्षिओं के लिए पानी इत्यादि की व्यवस्था की जाती है. लोग मीठा पानी इत्यादि चीजों को सभी में बांटते हैं।

गंगा दशहरा
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गंगा दशहरा पृथ्वी पर पवित्र नदी गंगा के आगमन होने के उपलक्ष पर मनाया जाता है. इस त्यौहार के समय गंगा पूजन और व्रत इत्यादि करने का विशेष महत्व रहा है. साथ ही गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व माना जाता है. इस के साथ ही इस दिन जप - तप - दान का भी बहुत महत्व माना गया है. ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है।

गंगा नदी को भारत में एक बहुत ही पवित्र नदी के रुप में पूजा जाता है. जन्म से मृत्य तक के सभी कर्मों में गंगा की महत्ता सभी के समक्ष उल्लेखनीय भी रही है. जब माँ गंगा धरती पर आती हैं तो वो दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी का था इसलिए गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से मनाया जाता है.

निर्जला एकादशी
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ज्येष्ठ मास का एक अन्य महत्वपूर्ण त्यौहार निर्जला एकादशी है. यह त्यौहार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन संपन्न होता है. निर्जला एकादशी के दिन व्रत एवं पूजा पाठ करने का नियम भी रहता है. इस दिन देश भर में लोगों को, राहगीरों को मीठा पानी पिलाया जाता है जिसे कुछ स्थानों पर छबील भी कहा जाता है. इस एकादशी के दिन भी तीर्थ स्थलों पर स्नान करने का विशेष महत्व रहा है. इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा कि जाती है. इस दिन किए गए जप-तप और दान का कई गुना फल मिलता है।

वटसावित्री व्रत
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ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रुप में मनाया जाता है. ये व्रत सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है. वट के वृक्ष को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है. इस वृक्ष पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास माना गया है. इसी के समक्ष सावित्री और सत्यवान की कथा का श्रवण किया जाता है और पूजन, व्रत कथा श्रवण आदि के पश्चात व्रत संपन्न होता है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा
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ज्येष्ठ माह कि पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. इस दिन प्रात:काल समय पर पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करने के पश्चात पूजा-पाठ किया जाता है. ब्राह्मण को भोजन कराना, गरीबों को दान करना और सत्यनारायण कथा श्रवण करना मुख्य कार्य होते हैं ये सभी इस पूर्णिमा के दिन किए जाने पर व्यक्ति के शुभ कर्मों में वृद्धि होती है. पौराणिक मान्यताओं अनुसार भी यह माह बहुत गर्म माह होता है ऐसे में इस माह में पूर्णिमा के दिन जल का दान अत्यंत उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है. इस दान के अलावा गरीबों को खाना खिलाने और वस्त्र इत्यादि वस्तुओं का दान देने का भी अक्षय फल मिलता है. ज्येष्ठ पूर्णमा के दिन संत कबीर का भी जन्म दिवस मनाया जाता है।

ज्येष्ठ मास में जन्मे व्यक्ति स्वभाव
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ज्येष्ठ माह में जन्मे जातक के विषय में ज्योतिष ग्रंथों में बहुत सी बातें कहीं गई हैं. जैसे कि जिस व्यक्ति का जन्म ज्येष्ठ मास में हुआ हो, उस व्यक्ति को परदेश में रहना पडता है. उसे विदेश से लाभ मिल सकता है. अपने घर से दूर रहने की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है. ऎसा व्यक्ति शुद्ध विचार युक्त होता है. उसके मन में किसी के लिए किसी प्रकार का कोई बैर-भाव नहीं रहता है. इस योग से युक्त व्यक्ति धन से समृद्ध होता है. उसकी आयु दीर्घ होती है. बुद्धि को उतम कार्यों में लगाने की प्रवृति उसमें होती है।

जातक में गंभीरता होती है. वह क्रोध और कुछ जिद अधिक करने वाला हो सकता है. मेहनत से भाग्य का निर्माण करने वाला और जीवन के संघर्षों के प्रति जागरुक भी होता है. वह कोशिश करता है की अपने प्रयासों से दूसरों के लिए और खुद के लिए कुछ बेहतर कर सके।

विशेष:👉 इस माह के विषय में धर्म ग्रंथों में भी विशेष रुप से बहुत कुछ लिखा गया है. भारतीय सभयता के हर चीज के पिछे कोई न कोई महत्वपूर्ण बात छुपी हुई है और जो भी नियम या जो कुछ भी बताया गया है उसके पिछ एक मजबूत तर्क का आधार भी मौजूद रहता है. ऎसे में इस माह में गर्मी अपने चरम पर होती है और इस कारण पानी के महत्व को इस माह से जोड़ा गया है. इसी समय पर प्यासों को पानी पिलाने की और सेवा भाव की भावना पर बल दिया गया है।

ज्येष्ठ मास के विशेष दिवसो की सूची 
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25 मई  👉 श्री नारद जयन्ती (वीणा दान), रोहिणी तपन काल (नौतपा) आरम्भ।

26 👉 ज्येष्ठ संकष्ट चतुर्थी व्रत।

28 मई 👉 बुढ़वा मंगल।

30 मई 👉 कालाष्टमी

01 जून 👉 गुरु उदय पूर्व 05:49 से।

02  जून 👉 अपरा एकादशी व्रत (स्मात)।

03  जून 👉 अपरा एकादशी व्रत (वैष्णव-निम्बार्क), मधुसूदन द्वादशी।

04  जून 👉 भौम प्रदोष व्रत, बुढवा मंगल, मासिक शिवरात्री व्रत, सावित्री व्रत आरम्भ।

05  जून 👉 सावित्री चौदस (बंगाल), फलहारिणी कालिका पूजा, विश्व पर्यावरण दिवस।

06  जून 👉श्री शनैश्चर जयन्ती, देव-पितृ कार्ये ज्येष्ठ (भावुका) अमावस्या, वट सावित्री व्रत पूर्ण।
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रविवार, 19 मई 2024

मोहिनी एकादशी 19 मई विशेष

मोहिनी एकादशी 19 मई विशेष
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एकादशी तिथि👉 19 मई 2024

एकादशी तिथि प्रारम्भ:👉 18 मई को दिन 11:21 बजे से।

एकादशी तिथि समाप्त:👉 19 मई को दिन 13:51 बजे तक।

पारण का शुभ मुहूर्त:👉 20 मई सुबह 05: 21 बजे से सुबह 08:05 बजे तक रहेगा।

 पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास को भी पुराणों में कार्तिक माह की तरह ही पावन बताया जाता है इसी कारण इस माह में पड़ने वाली एकादशी भी बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से व्रती मोह माया से ऊपर उठ जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आगे जानिये वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी क्यों कहा जाता है और इस एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि क्या है?

मोहिनी एकादशी नाम कैसे पड़ा? 
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मान्यता है कि वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। भगवान विष्णु ने सुमुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरीत करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में आपाधापी मच गई थी। चूंकि ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिये चालाकि से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया और सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन चूंकि यह सारा घटनाक्रम हुआ इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा 
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मोहिनी एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है। कहते हैं किसी समय में भद्रावती नामक एक बहुत ही सुंदर नगर हुआ करता था जहां धृतिमान नामक राजा राज किया करते थे। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे। उनके राज में प्रजा भी धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती। इसी नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य भी रहता था। धनपाल भगवान विष्णु के परम भक्त और एक पुण्यकारी सेठ थे। भगवान विष्णु की कृपा से ही इनकी पांच संतान थी। इनके सबसे छोटे पुत्र का नाम था धृष्टबुद्धि। उसका यह नाम उसके धृष्टकर्मों के कारण ही पड़ा। बाकि चार पुत्र पिता की तरह बहुत ही नेक थे। लेकिन धृष्टबुद्धि ने कोई ऐसा पाप कर्म नहीं छोड़ा जो उसने न किया हो। तंग आकर पिता ने उसे बेदखल कर दिया। भाईयों ने भी ऐसे पापी भाई से नाता तोड़ लिया। जो धृष्टबुद्धि पिता व भाइयों की मेहनत पर ऐश करता था अब वह दर-दर की ठोकरें खाने लगा। ऐशो आराम तो दूर खाने के लाले पड़ गये। किसी पूर्वजन्म के पुण्यकर्म ही होंगे कि वह भटकते-भटकते कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा। पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए वह कुछ-कुछ पवित्र भी होने लगा था। महर्षि को अपनी पूरी व्यथा बताई और पश्चाताप का उपाय जानना चाहा। उस समय ऋषि मुनि शरणागत का मार्गदर्शन अवश्य किया करते और पातक को भी मोक्ष प्राप्ति के उपाय बता दिया करते। ऋषि ने कहा कि वैशाख शुक्ल की एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी होती है। इसका उपवास करो तुम्हें मुक्ति मिल जायेगी। धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बताई विधिनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी यानि मोहिनी एकादशी का उपवास किया। इसके बाद उसे पापकर्मों से छुटकारा मिला और मोक्ष की प्राप्ति हुई।

मोहिनी एकादशी व्रत महात्म्य एवं पूजा विधि 
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मोहिनी एकादशी का माहात्म्य बहुत अधिक माना जाता है। मान्यता है कि माता सीता के विरह से पीड़ित भगवान श्री राम ने, और महाभारत काल में युद्धिष्ठिर ने भी अपने दु:खों से छुटकारा पाने के लिये इस एकादशी का व्रत विधि विधान से किया था। एकादशी व्रत के लिये व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन करना चाहिये। दशमी तिथि को एक समय ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का पूर्णत: पालन करना चाहिये। एकादशी से दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये। इसके पश्चात लाल वस्त्र से सजाकर कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिये। दिन में व्रती को मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का सुननी या पढ़नी चाहिये। रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करते हुए, भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये। द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण किया जाता है। सर्व प्रथम भगवान की पूजा कर किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि करवाकर दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये। इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिये।

भगवान जगदीश्वर जी की आरती
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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…
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द्वारकाधीश के मंदिर में क्यों नहीं है रुक्मणी की मूर्ति...?

द्वारकाधीश के मंदिर में क्यों नहीं है रुक्मणी की मूर्ति...?

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कारण है एक श्राप
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द्वारकाधीश श्री कृष्ण को हम जब भी याद करते हैं तो हमारे मुंह से राधे-कृष्ण ही निकलता है।

कृष्ण के साथ राधा का नाम ऐसे जुड़ा हुआ है मानो ये दोनों नाम कभी अलग थे ही नहीं। लेकिन सत्य तो ये भी है कि राधा और कृष्ण कभी एक नहीं हो सके ये और बात है कि कुछ किवदन्तियों के अनुसार, दोनों की शादी हुई थी लेकिन ज्यादातर कथाओं के अनुसार, इन दोनों का प्रेम कभी पूरा नहीं हो सका था।

द्वारकाधीश कृष्ण का विवाह रूक्मणी से हुआ था इसके अलावा भी उनकी कई रानियां और पटरानियां थीं। कृष्ण और रूक्मणी का रिश्ता भी आदर्श माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं द्वारकाधीश के मंदिर में उनकी प्रिय रानी रूक्मणी की एक भी मूर्ति नहीं है। वास्तव में, इसका कारण एक श्राप है जिसके कारण कृष्ण और रूक्मणी को 12 साल तक अलग रहना पड़ा था और इसी कारण इस मंदिर में उनकी कोई प्रतिमा भी नहीं है।

द्वारकाधीश
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द्वारकाधीश मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर एक अलग हिस्से में रूक्मणी का मंदिर बना हुआ है। एक समय तक यहां आने वाले भक्तों को इस श्राप की कथा सुनाई जाती थी।

अगर धार्मिक मान्यताओं को आधार मानकर बात की जाए तो ये श्राप कृष्ण और रूक्मणी को दुर्वासा ऋषि ने दिया था।

विवाह के बाद रूक्मणी और कृष्ण दुर्वासा ऋषि के आश्रम पहुंचे और वहां जाकर उन्होने दुर्वासा ऋषि को उनके साथ महल चलकर भोजन करने का निमंत्रण दिया, दुर्वासा ऋषि ने ये निमंत्रण स्वीकारा तो लेकिन उसके लिए एक विचित्र सी शर्त रखी। उन्होने कहा कि वो उनके रथ में महल नहीं जाएंगे, वो केवल इसी शर्त पर उनके साथ चलेंगे अगर वो उनके लिए अलग से एक रथ का इतंज़ाम करेंगे, कृष्ण ने ये शर्त मान तो ली लेकिन दोनों ये इस बात से परेशान थे कि वो इस शर्त को पूरा कैसे करेंगे क्योकि उनके पास उस समय एक ही रथ था जिससे वो स्वंय वहां आए थे इसलिए उन्होने घोड़ों को उस रथ से अलग कर दिया और दोनों खुद रथ में जुत गए।

काफी दूर चलने के बाद जब देवी रूक्मणी को प्यास लगी तो कृष्ण ने पैर का अंगूठा ज़मीन पर मारा और उससे निकले गंगाजल से दोनों ने प्यास बुझा ली लेकिन दोनों में से किसी को भी ये ख्याल नहीं आया कि उन्होने ऋषिवर से भी इस बारे में पूछना चाहिए। इस बात पर दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और क्रोधित होकर उन्होने देवी रूक्मणी को 12 साल तक कृष्ण से अलग रहने का श्राप दिया और साथ ही ये भी कहा कि जिस स्थान से कृष्ण ने पानी निकाला है वो बंजर हो जाएगा।

इस श्राप से मुक्त होने के लिए देवी रूक्मणी ने भगवान विष्णु की तपस्या की और फिर उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हे इस श्राप से मुक्ति दी।

दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण इस मंदिर में आज भी जल का दान किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से पितरों को जल की प्राप्ति होती है।

।। जय श्री कृष्ण ।।
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वैशाख की कहानियाँ (खिचड़ी की कथा)

वैशाख की कहानियाँ (खिचड़ी की कथा)

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          किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी और वह कार्तिक का व्रत रखा करती थी। उसके व्रत खोलने के समय कृष्ण भगवान आते और एक कटोरा खिचड़ी का रखकर चले जाते। बुढ़िया के पड़ोस में एक औरत रहती थी। वह हर रोज यह देखकर ईर्ष्या करती कि इसका कोई नहीं है फिर भी इसे खाने के लिए खिचड़ी मिल ही जाती है।
          एक दिन कार्तिक महीने का स्नान करने बुढ़िया गंगा गई। पीछे से कृष्ण भगवान उसका खिचड़ी का कटोरा रख गए। पड़ोसन ने जब खिचड़ी का कटोरा रखा देखा और देखा कि बुढ़िया नही है तब वह कटोरा उठाकर घर के पिछवाड़े फेंक आई।
          कार्तिक स्नान के बाद बुढ़िया घर आई तो उसे खिचड़ी का कटोरा नहीं मिला और वह भूखी ही रह गई। बार-बार एक ही बात कहती कि कहाँ गई मेरी खिचड़ी और कहाँ गया मेरा खिचड़ी का कटोरा। दूसरी ओर पड़ोसन ने जहाँ खिचड़ी गिराई थी वहाँ एक पौधा उगा जिसमें दो फूल खिले। 
          एक बार राजा उस ओर से निकला तो उसकी नजर उन दोनो फूलों पर पड़ी और वह उन्हें तोड़कर घर ले आया। घर आने पर उसने वह फूल रानी को दिए जिन्हें सूँघने पर रानी गर्भवती हो गई। कुछ समय बाद रानी ने दो पुत्रों को जन्म दिया। 
          वह दोनो जब बड़े हो गए तब वह किसी से भी बोलते नही थे लेकिन जब वह दोनो शिकार पर जाते तब रास्ते में उन्हें वही बुढ़िया मिलती जो अभी भी यही कहती कि कहाँ गई मेरी खिचड़ी और कहाँ गया मेरा कटोरा ? बुढ़िया की बात सुनकर वह दोनों कहते कि हम हैं तेरी खिचड़ी और हम हैं तेरा बेला।
          हर बार जब भी वह शिकार पर जाते तो बुढ़िया यही बात कहती और वह दोनो वही उत्तर देते। 
          एक बार राजा के कानों में यह बात पड़ गई। उसे आश्चर्य हुआ कि दोनो लड़के किसी से नहीं बोलते तब यह बुढ़िया से कैसे बात करते हैं। राजा ने बुढ़िया को राजमहल बुलवाया और कहा कि हम से तो किसी से ये दोनों बोलते नहीं है, तुमसे यह कैसे बोलते हैं ?  
          बुढ़िया ने कहा कि महाराज मुझे नहीं पता कि ये कैसे मुझसे बोल लेते हैं। मैं तो कार्तिक का व्रत करती थी और कृष्ण भगवान मुझे खिचड़ी का बेला भरकर दे जाते थे। एक दिन मैं स्नान कर के वापिस आई तो मुझे वह खिचड़ी नहीं मिली। जब मैं कहने लगी कि कहाँ गई मेरी खिचड़ी और कहाँ गया मेरा बेला ? तब इन दोनों लड़कों ने कहा कि तुम्हारी पड़ोसन ने तुम्हारी खिचड़ी फेंक दी थी तो उसके दो फूल बन गए थे। वह फूल राजा तोड़कर ले गया और रानी ने सूँघा तो हम दो लड़को का जन्म हुआ। हमें भगवान ने ही तुम्हारे लिए भेजा है।
          सारी बात सुनकर राजा ने बुढ़िया को महल में ही रहने को कहा। हे कार्तिक महाराज ! जैसे आपने बुढ़िया की बात सुनी वैसे ही आपका व्रत करने वालों की भी सुनना।
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राधा और रुक्मिणी में से लक्ष्मी कौन ?

राधा और रुक्मिणी में से लक्ष्मी कौन ?
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चराचर जगत में रुक्मिणी और राधा का संबंध श्रीकृष्ण से है। संसार रुक्मिणी जी को श्रीकृष्ण की पत्नी और राधा जी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका के रूप में मानता है। आम जगत में रुक्मिणी और राधा की यही पहचान है परंतु क्या कभी आपके मन में यह प्रशन उठा है की राधा और रुक्मिणी में से कौन लक्ष्मी का अवतरण था ? इस लेख के माध्यम से हम शास्त्रों के अनुसार इस तथ्य से आप सभी पाठकों को रूबरू करवाते हैं। 
शास्त्रों में लक्ष्मी जी के रहस्य को इस प्रकार उजागर किया है कि लक्ष्मी जी क्षीरसागर में अपने पति श्री विष्णु के साथ रहती हैं एवं अपने अवतरण स्वरुप में राधा के रूप में कृष्ण के साथ गोलोक में रहती हैं। महाभारत में लक्ष्मी के ‘विष्णुपत्नी लक्ष्मी’ एवं ‘राज्यलक्ष्मी’ ऐसे दो प्रकार बताए गए हैं। इनमें से लक्ष्मी हमेशा विष्णु के पास रहती हैं एवं राज्यलक्ष्मी पराक्रमी राजाओं के साथ विचरण करती हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार विष्णु के दक्षिणांग से लक्ष्मी का, एवं वामांग से लक्ष्मी के ही अन्य एक अवतार राधा का जन्म हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण में निर्दिष्ट लक्ष्मी के अवतार एवं उनके प्रकट होने के स्थान इस प्रकार है 1.महालक्ष्मी जो वैकुंठ में निवास करती हैं। 
2. स्वर्गलक्ष्मी जो स्वर्ग में निवास करती हैं। 
3. राधा जी गोलोक में निवास करती हैं।
4. राजलक्ष्मी (सीता) जी पाताल और भूलोक में निवास करती हैं। 
5. गृहलक्ष्मी जो गृह में निवास करती हैं। 
6. सुरभि (रुक्मणी) जो गोलोक में निवास करती हैं।
7. दक्षिणा जो यज्ञ में निवास करती हैं।
8. शोभा जो हर वस्तु में निवास करती हैं।
लक्ष्मी रहस्य का रूपकात्मक दिग्दर्शन करने वाली अनेकानेक वृतांत और कथाएं महाभारत जैसे शास्त्रों में वर्णित हैं। जिनमें से एक वृतांत है "लक्ष्मी-रुक्मिणी संवाद" महाभारत के एक प्रसंग में लक्ष्मी के रहस्य से संबंधित एक प्रशन युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा था, जिसका जवाब देते समय भीष्म ने लक्ष्मी एवं रुक्मिणी के दरम्यान हुए एक संवाद की जानकारी युधिष्ठिर को दी। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार, लक्ष्मी ने रुक्मिणी से कहा था, की मेरा निवास तुममे (रुक्मिणी) और और राधा में समानता से है तथा गोकुल कि गाएं एवं गोबर में भी मेरा निवास है। 
श्रीकृष्ण के तत्व दर्शन अनुसार रुक्मिणी को देह और राधा को आत्मा माना गया है। श्रीकृष्ण का रुक्मिणी से दैहिक और राधा से आत्मिक संबंध माना गया है। रुक्मिणी और राधा का दर्शन बहुत गहरा है। इसे सम्पूर्ण सृष्टि के दर्शन से जोड़कर देखें तो सम्पूर्ण जगत की तीन अवस्थाएं हैं।
1. स्थूल; 2. सूक्ष्म; 3. कारण
स्थूल जो दिखाई देता है जिसे हम अपने नेत्रों से देख सकते हैं और हाथों से छू सकते हैं वह कृष्ण-दर्शन में रुक्मणी कहलाती हैं। सूक्ष्म जो दिखाई नहीं देता और जिसे हम न नेत्रों से देख सकते हैं न ही स्पर्श कर सकते हैं, उसे केवल महसूस किया जा सकता है वही राधा है और जो इन स्थूल और सूक्ष्म अवस्थाओं का कारण है वह हैं श्रीकृष्ण और यही कृष्ण इस मूल सृष्टि का चराचर हैं। अब दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो स्थूल देह और सूक्ष्म आत्मा है। स्थूल में सूक्ष्म समा सकता है परंतु सूक्ष्म में स्थूल नहीं। स्थूल प्रकृति और सूक्ष्म योगमाया है और सूक्ष्म आधार शक्ति भी है लेकिन कारण की स्थापना और पहचान राधा होकर ही की जा सकती है।
यदि चराचर जगत में देखें तो सभी भौतिक व्यवस्था रुक्मणी और उनके पीछे कार्य करने की सोच राधा है और जिनके लिए यह व्यवस्था की जा रही है और वो कारण है श्रीकृष्ण। अतः राधा और रुक्मणी दोनों ही लक्ष्मी का प्रारूप है परंतु जहां रुक्मणी देहिक लक्ष्मी हैं वहीं दूसरी ओर राधा आत्मिक लक्ष्मी हैं।
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#मुझे_मेरी_माँ_वापस_चाहिए।

#मुझे_मेरी_माँ_वापस_चाहिए।
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1947 में जब भारत आजाद हुआ था तब जम्मू-कश्मीर का कुल क्षेत्रफल था 2,22,236 वर्ग किलोमीटर जिसमें से चीन और पाकिस्तान ने मिलकर लगभग आधे जम्मू-कश्मीर पर कब्ज़ा किया हुआ है और भारत वर्ष के पास केवल 1,02,387 वर्ग किलोमीटर कश्मीर भूमि शेष है।

जम्मू-कश्मीर के जो भाग आज हमारे पास नहीं हैं उनमें से गिलगिट, बाल्टिस्तान, बजारत, चिल्लास, हाजीपीर आदि हिस्से पर पाकिस्तान का सीधा शासन है और मुज़फ्फराबाद, मीरपुर, कोटली और छंब आदि इलाके हालांकि स्वायत्त शासन में हैं परंतु ये इलाके भी पाक के नियंत्रण में हैं।

पाक नियंत्रण वाले इसी कश्मीर के मुज़फ्फराबाद जिले की सीमा के किनारे से पवित्र "कृष्ण-गंगा" नदी बहती है। कृष्ण-गंगा नदी वही है जिसमें समुद्र मंथन के पश्चात् शेष बचे अमृत को असुरों से छिपाकर रखा गया था और उसी के बाद ब्रह्मा जी ने उसके किनारे माँ शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें वहां स्थापित किया था। 

जिस दिन से माँ शारदा वहां विराजमान हुई उस दिन से ही सारा कश्मीर "नमस्ते शारदादेवी कश्मीरपुरवासिनी / त्वामहंप्रार्थये नित्यम् विदादानम च देहि में" कहते हुये उनकी आराधना करता रहा है और उन कश्मीरियों पर माँ शारदा की ऐसी कृपा हुई कि आष्टांग योग और आष्टांग हृदय लिखने वाले वाग्भट वहीं जन्में,नीलमत पुराण वहीं रची गई,चरक संहिता, शिव-पुराण, कल्हण की राजतरंगिणी, सारंगदेव की संगीत रत्नकार सबके सब अद्वितीय ग्रन्थ वहीं रचे गये, उस कश्मीर में जो रामकथा लिखी गई उसमें मक्केश्वर महादेव का वर्णन सर्व-प्रथम स्पष्ट रूप से आया। शैव-दार्शनिकों की लंबी परंपरा कश्मीर से ही शुरू हुई। चिकित्सा, खगोलशास्त्र, ज्योतिष, दर्शन, विधि, न्यायशास्त्र, पाककला, चित्रकला और भवनशिल्प विधाओं का भी प्रसिद्ध केंद्र था कश्मीर क्योंकि उसपर माँ शारदा का साक्षात आशीर्वाद था। ह्वेनसांग के अपने यात्रा विवरण में लिखा है शारदा पीठ के पास उसने ऐसे-ऐसे विद्वान् देखे जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि कोई इतना भी विद्वान् हो सकता है। शारदापीठ के पास ही एक बहुत बड़ा विद्यापीठ भी था जहाँ दुनिया भर से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे।

माँ शारदा के उस पवित्र पीठ में न जाने कितने सहस्त्र वर्षों से हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन एक विशाल मेला लगता था जहाँ भारत के कोने-कोने से वाग्देवी सरस्वती के उपासक साधना करने आते थे। भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को शारदा अष्टमी इसीलिये कहा जाता था। शारदा तीर्थ श्रीनगर से लगभग सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर बसा है और वहां के लोग तो पैदल माँ के दर्शन करने जाया करते थे। 

शास्त्रों में एक बड़ी रोचक कथा मिलती है कि कथित निम्न जाति के एक व्यक्ति को भगवान शिव की उपासना से एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम उस दम्पति ने शांडलि रखा। शांडलि बड़े प्रतिभावान था। उनसे जलन भाव रखने के कारण ब्राह्मणों ने उनका यज्ञोपवित संस्कार करने से मना कर दिया। निराश शांडलि को ऋषि वशिष्ठ ने माँ शारदा के दर्शन करने की सलाह दी और उनके सलाह पर जब वो वहां पहुँचे तो माँ ने उन्हें दर्शन दिया उन्हें नाम दिया ऋषि शांडिल्य। आज हिन्दुओं के अंदर हरेक जाति में शांडिल्य गोत्र पाया जाता है।

हिन्दू धर्म का मंडन करने निकले शंकराचार्य जब शारदापीठ पहुँचे थे तो वहां उन्हें माँ ने दर्शन दिया था और हिन्दू जाति को बचाने का आशीर्वाद भी। उन्हीं माँ शारदा की कृपा से कश्मीर के शासक जैनुल-आबेदीन का मन बदल गया था जब वो उनके दर्शनों के लिये वहां गया था और उसने कश्मीर में अपने बाप सिकंदर द्वारा किये हर पाप का प्रायश्चित किया। इतिहास की किताबों में आता है कि माँ शारदा की उपासना में वो इतना लीन हो जाता था कि उसे दुनिया की कोई खबर न होती थी।

भारत के कई हिस्सों में जब यज्ञोपवीत संस्कार होता है तो बटु को कहा जाता है कि तू शारदा पीठ जाकर ज्ञानार्जन कर और सांकेतिक रूप से वो बटुक शारदापीठ की दिशा में सात कदम आगे पढ़ता है और फिर कुछ समय पश्चात् इस आशय से सात कदम पीछे आता है कि अब उसकी शिक्षा पूर्ण हो गई है और वो विद्वान् बनकर वहां से लौट आ रहा है। 

एक समय था जब ये सांकेतिक संस्कार एक दिन वास्तविकता में बदलता था क्योंकि वो बटुक शिक्षा ग्रहण करने वहीं जाता था मगर आज दुर्भाग्य से हमारी "माँ शारदा" हमारे पास नहीं है और हम उनके पास जायें ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है तो शायद अब यज्ञोपवीत की ये रस्म सांकेतिक ही रह जायेगी सदा के लिये।

हमको शारदापीठ की मुक्ति चाहिये, हमको शारदा पीठ तक जाना है, हमें दुनिया को बताना है कि "केवल शारदा संस्कृति ही कश्मीरियत" है और इसलिये शारदापीठ पर भारत का पूर्ण नियंत्रण हो ऐसी मांग उठाइये और जब तक ये नहीं होता कम से कम तब तक करतारपुर साहिब कॉरिडोर की तर्ज़ पर "शारदादेवी कॉरिडोर" अविलम्ब आरंभ हो इसकी मांग कीजिये।

मुझे शांडिल्य मुनि की तरह कृष्ण-गंगा के पवित्र तट से माँ शारदा की पुकार सुनाई दे रही है; इसलिये मैंने ये पोस्ट लिखा है, अपनी वेदना आप सबसे साँझा की है।

अगर यही वेदना आपकी भी है तो इस पोस्ट को हर हिन्दू के पास लेकर जाने की जिम्मेदारी आपकी है और मुझे उम्मीद है कि माँ शारदा का कोई पुत्र अपनी माँ के पुकार की अनसुनी नहीं करेगा।

"शारदापीठ मुक्ति यज्ञ" में अपनी आहुति दीजिये, ऊपर देवदूत आपका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखने को आतुर बैठे हैं।

#जय_माँ_वागेश्वरी।

जय श्रीराम

कोई पदचाप की आहट है..?* (जरा ध्यान से सुनिए..) रामानंद काबरा

*कोई पदचाप की आहट है..?*
  (जरा ध्यान से सुनिए..)
 *कल में अपने किसी स्टील* की शीट बनाने वाले मित्र के पास बैठा था,मैंने पूछा तनावड़ा वाली फेक्टरी कैसे चल रही है,उसने कहा बन्द कर दी यार, स्टाफ नही है। मारुति कम्पनी के शो रूम मालिक का रोज फोन आता है,15 से 50 हज़ार सैलेरी वाले 40 कर्मचारियों की जरूरत है,आपके ध्यान में हो तो बताना। एक दिन हमारे घर के पास अरोड़ा नमकीन वाले के यंहा प्याज़ की कचोरी लेने गया, काफी दिनों से नही मिलने की बात भी की,तो बोला बन्द कर दिया साब,स्टाफ नही है।मेरी फेक्टरी में नल टपकने की समस्या पर मैनेजर से शिकायत की,यह 10 दिन से ठीक क्यों नही हो रही है,वो बोला साब 10 प्लम्बर से बात हो गई ,सभी आज कल आज कल कर रहे है?
होली के बाद 15 दिन तक वापस फैक्टरियां इसलिए चालू नही होती कि स्टाफ UP/ BIHAR वाले गांव गए हुवे है,अभी आये नही। में सोचता हूं, जिस तरह UP ग्रो कर रहा है,वँहा से लोग आना बंद होगये तो क्या होगा?फसल कटाई के टाइम किसानों को 1000/1500 रुपये प्रतिदिन खर्च करने पर कर्मचारी नही मिलता।4 महिलाओं को इखट्ठी देख ले,उनके बीच मे काम वाली बाई  की समस्या को लेकर चर्चा जरूर होगी। आधुनिक समय मे मध्यम वर्गीय परिवारों में बहु बेटी के डिलीवरी के समय केयर टेकर चाहिए, या घर मे कोई बुजुर्ग बीमार है,उसके पास कोई सेवा के लिए चाहिए तो वो मिलना मुश्किल..किसी बयूरो के माध्यम से आप बुलाओ तो पहले 40 हजार वो एक कर्मचारी रखने का कमीशन लेता है,फिर 25 हज़ार मासिक में कर्मचारी भेजेगा,जिसको खाने पीने रहने की सुविधा आपको देनी है।
यह लिस्ट बहुत लंबी है।आप निश्चिन्त ही समझ गए होंगे,में क्या कहना चाहता हु।विपक्षी पार्टियां कितनी भी चिल्ला ले,बेरोजगारी/महंगाई देश की बड़ी समस्या है..पर यह धरातल पर नही है।
पूर्व में स्वीडन जैसे देशों की हालत इसलिए खराब होंगयीं की वँहा की सरकार अपने नागरिकों को आश्वस्त करती है कि आपके जन्म से लेकर मृतुय तक कि जिम्मेवारी हमारी है।बीमारी या शिक्षा का सारा भार सरकार उठाएगी ।वँहा जैसे कर्म अप्रासंगिक हो गया।वेनेजुएला या श्रीलंका इसलिए बर्बाद हो गया।हर चीज़ मुफ्त..
पंजाब दिल्ली  में  गुरुद्वारों मेंमुफ्त लंगर की व्यवस्था के चलते, निठले खाने पीने वालो की किसी को कमी नही थी,फिर एक ऐसी सरकार इसलिए सता में आगयी उसने अन्य सुविधा फ्री देने की घोषणा कर दी।
आज स्वीडन में किसी भी पश्चमी देशों से सबसे ज्यादा टैक्स दर है।सबसे ज्यादा बाल अपराधी वँहा है?इसलिए कि युवा खून को दिशा नहि मिलेगी तो..वो ऊर्जा कंही तो लगेगी।नशीली दवाओं की सबसे बड़ी मंडी वो हो गयी।स्वीडन क्यों,क्या हमारे दिल्ली पंजाब के युवा नशीली दवाओं के सबसे ज्यादा शिकार नही है?और हर रोज हर प्रान्त में आजकल ड्रग्स नशीली दवाएं पकड़े जाने के समाचार रोज पढ़ते है..यह किस ओर इशारे कर रहे है।आज स्वीडन में तलाक की दर  सबसे ज्यादा है,ओर चर्चो में भीड़ ही नही..लोगो ने अपने यीशु मसीह के यंहा जाना बंद कर दिया..बोले सब मुफ्त में मिल रहा है न?अब उस परमपिता से क्या मांगना शेष है?
मंदिरों के हालात अपने भी देख ले..धर्म सभाओं में युवाओ की उपस्थिति देख ले..?
एक बड़ा खतरनाक परिदृश्य आंखों के सामने है..बच्चियों को ज्यादा पढ़ा लिया..तो आज पति के साथ सामंजस्य की समस्या खड़ी होने लगी?उनके ख्वाब-जीवन शैली में आधुनिकता ओर उपभोगवाद आ गया ..तो परिवार वाले परेशान की सभी बच्चियों के लिए अमीर,साधन संपन्न दूल्हा कन्हा से लाये?ओर हर अभिभावक डरा हुआ है,गांव में लड़कों के रिश्ते नही आने.. से वो शहर भाग रहा है। वार्षिक आमदनी की यथा स्थिति किसी को पता नही,व्यापार,घर ,गाड़ी आसान किस्तों में लोन पर उपलब्ध है। लेकिन घर का मुख्या जानता है,वो अंदर कितना खोखला है। ऊपर से बच्चे.. बहुएं..देखा देखी में उपभोक्ता वाद के शिकार हो गए।कर्म की महत्ता समाप्त हो गयी..पर्तिस्पर्धा इस बात की है कि आपके कितने  घरेलू कर्मचारी काम करते है। 
*ऊपर से नेता लोग घर के हर सदस्य को टकाटक टकाटक 8500/उनकी सरकार बन गयी तो देने का वादा कर रहे है*।और यदि शिकार इन शिकारियों के जाल में फँस गया तो..?जितने भी शिकारी है,अपने लक्ष्य का शिकार ऐसे ही करते है..मुफ्त की आदत डालकर।यह जितने आपने कुबड़े देखे होंगे,वो इसलिए नही होते की काम ज्यादा करते है,वो इसलिए होते है कि काम नही करते। कुबड़े बनाना उनका लक्ष्य है। नशेड़ी बनाना उनके आगे के व्यापार का बड़ा आधार है। ब्रांडेड ब्रांडेड का जो हौव्वा खड़ा किया जा रहा है,यह भी आपकी कमजोर मानसिकता पर प्रहार है।
आज भी फ्री ,मुफ्त में कई कोई आपको दे रहा है,तो आप समझ लीजिए कि आप किसी बड़ी मुसीबत को दावत देकर आ रहे है। शादियों में दहेज में जो लड़की के अलावा रिश्तेदारों को गिफ्ट दी जारही है ,वो एक रिश्वत ही है।सासु जी को  ननद बाई सा का रोज जितने बड़े गिफ्ट भेजे जारहे है,उसके पीछे अपनी बेटी की सुविधा और सुरक्षा खरीदी जाने का भाव है।आप उसे कुछ नही कहोगे। अब नई दुल्हन के जिम्मे घर पर कोई काम नही..आप दिन भर क्या करोगे? कैसे समय पास होगा??? सामाजिक संरचना छींन भिन्न हो रही है।घरों से शांति गायब है। प्यार कागजी/व्हाट्सअप पर ओर दिखावटी हो गया है। तभी तो लोग कहते,आजकल दीपावली पर कोई घर ही नही आता।1kg मिठाई खर्च नही होती।सारे रिश्तो की मिठास गायब हो गयी है। बहुत परिश्रमी मज़ाक का पात्र बन गया है।ओर इन सब बातों का एक ही इलाज है। 
 *हमारे घरों में पुनः श्रम प्रतिष्ठित हो।ज्यादा से ज्यादा कार्य,जो हम कर सकते थे,करे।बच्चो को कठिन परिश्रम,अनुशाशन का पाठ पढ़ाये। उपभोक्ता वाद को निरुत्साहित करे।  रिश्तो में समय दे।उनको पोषित करे।किसी की मदद करे।सेवा का भाव हो। ओर यह सब करने से हम किसी भी बाहरी संकट से अपनें परिवार को बचा लेंगे। कोई बहेलिया अपना जाल हमारे घर और बच्चो के इर्द गिर्द नही फैला पायेगा।यह हमको केवल  युवाओ से अपेक्षा नही करनी है,हम संव्य को कर एक उदाहरण पेश करना है*।

शनिवार, 18 मई 2024

कभी-कभी विचार आता है कि 1500 ई. के बाद के ब्रिटिश कितनेसाहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जिन्होंने एक ठण्डे प्रदेश से निकलकर, अनजान रास्ते और अनजान जगहों पर जाकर लोगों को गुलाम बनाया.

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  *बहुत सटीक व तार्किक विश्लेषण*


     कभी-कभी विचार आता है कि 
  1500 ई. के बाद के ब्रिटिश कितने
साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जिन्होंने 
     एक ठण्डे प्रदेश से निकलकर, 
अनजान रास्ते और अनजान जगहों पर 
        जाकर लोगों को गुलाम बनाया.

        अभी भी देखा जाए तो 
    ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल 
    गुजरात के बराबर है, लेकिन उन्होंने 
        दशकों नहीं शताब्दियों तक
       दुनिया को गुलाम बनाए रखा.

   भारत की करोड़ों की जनसंख्या को
    मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने 
     गुलाम बनाकर रखा, और केवल 
       गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि 
     खूब हत्यायें और लूटपाट भी की.

        उनको अपनी कौम पर
            कितना गर्व होगा 
             कि मुठ्ठी भर लोग
      दुनिया को नाच नचाते रहे.

    भारत के एक जिले में शायद ही 
   50 से ज्यादा अंग्रेज रहे होंगे लेकिन
  लाखों लोगों के बीच, अपनी धरती से 
     हजारों मील दूर आकर, अपने से 
   संख्या में कई गुना अधिक लोगों को
      इस तरह गुलाम रखने के लिए 
          अद्भुत साहस रहा होगा.

      अगर इतिहास देखते हैं तो 
             पता चलता है 
          कि उनके पास हम पर 
 अत्याचार करने के लिए लोग भी नहीं थे 
  तो उन्होंने हम में से ही कुछ लोगों को 
               भर्ती किया था, 
     हम पर अत्याचार करने के लिए, 
             हमें लूटने के लिए.
🤔
    सोचकर ही अजीब लगता है कि 
   हम लोग अंग्रेजों के सैनिक बन कर, 
  अपने ही लोगों पर अत्याचार करते थे.
     चंद्रशेखर, बिस्मिल जैसे मात्र कुछ 
         गिनती के लोग थे, जिन्हें 
              हमारा ही समाज 
           हेय दृष्टि से देखता था.

         आज वही नपुंसक समाज 
       उन चंद लोगों के नाम के पीछे 
अपना कायरतापूर्ण इतिहास छुपाकर 
           झूठा दम्भ भरता है.
  *अरब के रेगिस्तान से कुछ भूखे*
     *जाहिल, आततायी लोग आए,*
  *और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा,*
       *बलात्कार किया. और हम*
            *वहाँ भी नाकाम रहे.*

        उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, 
  हमारी स्त्रियों से बलात्कार किये, लेकिन 
            हमने क्या किया ?
    वो दिन में विवाह में लूटपाट करते हैं, 
◆ तो रात को चुपचाप विवाह करने लगे, 
    जवान लड़कियों को उठा ले जाते हैं,
◆ तो बचपन में ही शादी करने लगे और 
        अगर उसमें ही असुरक्षा हो, तो 
◆    बेटी पैदा होते ही मारते रहे.
      बुरा लगता तो ठीक है, लेकिन 
       ★ यही हमारी सच्चाई है. ★

   *हमने 1000 सालों की दुर्दशा से*
           *कुछ नहीं सीखा.*

          आज एक जनसँख्या
      उन्हीं अरबी अत्याचारियों को 
       अपना पूर्वज मानने लगी है.

          कुछ उन ईसाइयों को
      अपना पूर्वज मानने लगी है,  
   यानि हम स्वाभिमानहीन लोग हैं,
       स्वतंत्रता मिलने पर भी 
      हम मानसिक गुलाम ही रहे.

     दूसरी तरफ हमारी व्यवस्थाएं भी 
      सड़ी हुई हैं , जिन्होंने इन सभी 
          नाकामियों का कभी
         मंथन ही नहीं किया.
   हमारे ऊपर जब आक्रमण हो रहे थे 
     और हम जब एक युद्धकाल से 
               गुजर रहे थे, 
     हमारी बहुसंख्यक जनसँख्या
       इस मानसिकता में थी कि
    *"कोउ नृप हो हमें का हानि"* 

       मतलब उनको युद्ध से, 
          राज्य से, राजा से 
         कोई मतलब नहीं था.
     ये सब बस क्षत्रिय के काम थे.
       उनको करना है तो करें, 
        नहीं करना तो नहीं करें.

यही कारण था कि मुस्लिम आक्रमण से 
  राजस्थान क्षेत्र छोड़कर समस्त भारत
     धराशाही हो गया था, क्योंकि
     राजस्थान में क्षत्रिय जनसँख्या 
अधिक थी तो संघर्ष करने में सफल रहे.
        ऐसे ही कुछ क्षेत्र और थे 
          जो इसमें सफल हुए.

  आज इजरायल बुरी तरह शत्रुओं से 
     घिरा हुआ है लेकिन सुरक्षित है , 
  क्योंकि .. वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति की 
देश और धर्म की सुरक्षा की जिम्मेदारी है 
        लेकिन हमने ये कार्य केवल
   क्षत्रियों पर छोड़ दिया था, जबकि
      फ़ौज में भी युद्ध के समय 
  माली, नाई, पेंटर, रसोइया आदि 
 सभी लड़ाका बनकर तैयार रहते हैं.

     लेकिन हमने युद्धकाल में भी 
   परिस्थितियों को नहीं समझा और 
      अपनी योजनायें नहीं बनाई 
        अपनी व्यवस्थाएँ नहीं बदली.



      जरा विचार करके देखिए कि
    मुस्लिमों एवं अंग्रेजों से जिस तरह
   क्षत्रिय लड़े,  अगर पूरा हिन्दू समाज
    क्षत्रिय बनकर, लड़ा होता तो क्या
     हम कभी गुलाम हो सकते थे ?
           सामान्य परिस्थिति में 
         समाज को चलाने के लिए 
     उसको वर्गीकृत किया ही जाता है ,
 लेकिन 
  विपत्तिकाल में नीतियों में परिवर्तन भी 
     किया जाता है, लेकिन हम इसमें 
   पूरी तरह नाकाम लोग हैं. इसलिए 
        1000 सालों से दुर्भाग्य 
           हमारे पीछे पड़ा है.

   अटल जी एक भाषण में कहते हैं कि 
       एक युद्ध जीतने के बाद जब 
          1000 अंग्रेजी सैनिकों ने 
        विजय-जुलूस निकाला था, तो 
   सड़क के दोनों तरफ 20000 लोग 
               देखने आए थे.

        अगर ये 20000 लोग 
      पत्थर-डण्डे से भी मारते, तो 
  1000 सैनिकों को भागते भी नहीं बनता, 
         लेकिन ये 20 हजार लोग 
        केवल युद्व के मूक दर्शक थे.

    आज भी कुछ खास नहींं बदला है.
        मुगलों और अंग्रेजों का स्थान
   एक खास dynasty ने ले लिया और 
     वामपंथियों/सेकुलरों के रूप में 
       खतरनाक गद्दारों की फौज भी 
                पैदा हो गई.

       लेकिन सबसे बड़ी विडंबना
   यह है कि हम आज भी बंटे हुए हैं.
          100 करोड़ होकर भी 
              मूक दर्शक बने हुए हैं.

           भले ही कुछ लोग 
         कुछ जागृति पैदा करने में 
             सफल हुए हों, 
           पर बिना संपूर्ण जागृति 
            इस देश के दुर्भाग्य का 
                      अंत नहींं होगा.

           सही है कि हम ...
    इतिहास से सीखने वाले नहीं हैं,
  चाहे खुद इतिहास बनकर रह जाएं.


*इस संदेश को कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे*
*कुछ लोग नही भेजेंगे लेकिन मुझे यकीन है आप जरूर भेजेंगे


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

           *विचारणीय लेख* ✍️

गर्मियों में बहुत लाभदायक है , गुलकंद (gulkand) ....

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गर्मियों में बहुत लाभदायक है , गुलकंद (gulkand) ....

गुलाब के फूल की पत्त‍ियों से बनाया जाता है ।

और इसे गुलाब (ROSE) का जैम (Jam) भी कहते हैं।

 इसे खाने से शरीर की सारी गर्मी दूर हो जाती है, और दिमाग (Brain) तेज़ होता है।

 और कब्ज के रोग को दूर करने के लिए तो दादी-नानी इस नुस्खे को आजमाती रहती हैं ।

और यह बहुत अच्छा माउथ फ्रेशनर (Mouth freshener) भी है तो फिर आज हम आपको गुलकंद (gulkand) बनाना बताते हैं…

▪️▪️आवश्यक सामग्री ...

◾ताजी गुलाब की पंखुड़ि‍यां  =250 ग्राम

◾पिसी हुई मिश्री या फिर बुरा = 500 ग्राम

◾छोटी इलायची = एक छोटा चम्मच पिसी हुई

◾ सौंफ = एक छोटा चम्मच पिसी हुई

▪️▪️विधि ....

सबसे पहले एक कांच के बड़े से बर्तन में एक परत गुलाब की पंखुड़ि‍यों की डालें ।

और अब इस पर थोड़ी सी मिश्री डालें।

और इसके बाद दोबारा से एक परत गुलाब की पंखुड़ि‍यों की रखें।

और फिर थोड़ी सी मिश्री डालें और मिश्री के ऊपर इलायची और सौंफ डाल दें|

और इसके बाद बची हुई गुलाब की पंखुड़ि‍यों और मिश्री को कांच के बर्तन में डाल दे ।

और फिर ढक्कन बंद करके धूप में 8 से 10 दिन तक रखे|

धूप में रखने से मिश्री जो पानी छोड़ेगी गुलाब की पंखुड़ि‍यां उसी पानी में गलेंगी ।

जब सारी सामग्री एक सार हो जाए तो फिर इसका प्रयोग करें, 


आप चाहे तो इसके 1 चमच्च में 250 mg या 

दो चुटकी प्रवालपिष्टि मिलाकर भी ले सकते है।

 यह आपको गर्मी से होने वाली समस्त विकारों को दूर करने में समर्थ है।



गर्मियों में विशेष उपयोगी-पुदीना....

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गर्मियों में विशेष उपयोगी-पुदीना....

पुदीना गर्मियों में विशेष उपयोगी एक सुगंधित औषध है  यह रुचिकर, पचने में हलका, तीक्ष्ण, ह्रदय-उत्तेजक, विकृत कफ को बाहर लानेवाला, गर्भाशय-संकोचक , चित्त को प्रसन्न करनेवाला हैं ।

◼️पुदीने के सेवन से भूख खुलकर लगती है और वायु का शमन होता हैं । यह पेट के विकारों में विशेष लाभकारी है । श्वास, मुत्राल्पता तथा त्वचा के रोगों में भी यह उपयुक्त है ।

▪️▪️औषधि प्रयोग....

1] पेट के रोग .....

अपच, अजीर्ण, अरुचि, मंदाग्नि, अफरा, पेचिश, पेट में मरोड़, अतिसार, उलटियाँ, खट्टी डकारें आदि में पुदीने के रस में जीरे का चूर्ण व आधे नींबू का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है ।

2] मासिक धर्म ....

पुदीने को उबालकर पीने से मासिक धर्म की पीड़ा तथा अल्प मासिक स्राव में लाभ होता है । अधिक मासिक स्त्राव में यह प्रयोग न करें ।

3] गर्मियों में ....

गर्मी के कारण व्याकुलता बढ़ने पर एक गिलास ठंडे पानी में पुदीने का रस तथा मिश्री मिलाकर पीने से शीतलता आती है ।

4] पाचक चटनी ....

 ताजा पुदीना, काली मिर्च, अदरक, सेंधा नमक, काली द्राक्ष और जीरा – इन सबकी चटनी बनाकर उसमें नींबू का रस निचोड़ कर खाने ने रूचि उत्पन्न होती है, वायु दूर होकर पाचनशक्ति तेज होती है । पेट के अन्य रोगों में भी लाभकारी है ।

5]. उलटी-दस्त, हैजा ....

 पुदीने के रस में नींबू का रस, अदरक का रस एवं शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।

6] सिरदर्द ....

पुदीना पीसकर ललाट पर लेप करें तथा पुदीने का शरबत पिएं ।

7] ज्वर आदि....

गर्मी में जुकाम, खाँसी व ज्वर होने पर पुदीना उबाल के पीने से लाभ होता है।

7] नकसीर ....

नाक में पुदीने के रस की 3 बूँद डालने से रक्तस्त्राव बंद हो जाता है ।

8] मूत्र-अवरोध ....

 पुदीने के पत्ते और मिश्री पीसकर 1 गिलास ठंडे पानी में मिलाकर पिएं ।

10] गर्मी की फुंसियाँ ....

समान मात्रा में सूखा पुदीना एंव मिश्री पीसकर रख लें । रोज प्रात: आधा गिलास पानी में 4 चम्मच मिलाकर पिएं ।

11] हिचकी .....

पुदीने या नींबू के रस-सेवन से राहत मिलती है ।

▪️▪️विशेष....

 ▪️पुदीने का ताजा रस लेने की मात्रा है 5 से 20 ग्राम । 

▪️पत्तों का चूर्ण लेने की मात्रा 3 से 6 ग्राम ।

 ▪️काढ़ा लेने की मात्रा 20 से 40 ग्राम । 

▪️अर्क लेने की मात्रा 20 से 40 ग्राम।

▪️बीज का तेल लेने की मात्रा आधी बूँद से 3 बूँद ।


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