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रविवार, 27 नवंबर 2011

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गणेश स्तोत्र



ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्याप्रदयिने। द्रष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने ॥
लम्बोदरं महावीर्य नाग्यग्योपशोभितम। अर्ध्चन्द्रधरम देव विघ्न व्यूह विनाशनम॥
ॐ ह्रां, ह्रीं, ह्रूं ह्रे ह्रौं ह्रं : हेरम्बाय नमो नमः। सर्व्सिद्धिप्रदोसि त्वं सिद्धिबुद्धि प्रदो भव ॥
चिन्तितार्थ्प्रदस्तव हि, सततं मोदकप्रिय : । सिंदुरारून वस्त्रेस्च पूजितो वरदायकः ॥
इदं गणपति स्तोत्रं यः पठेद भक्तिमान नरः । तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मिर्ण मुंचति ॥

इस स्तोत्र का दीपावली की रात्रि में १०८ बार पाठ कर सिद्ध कर ले, तत्पश्चात प्रत्येक दिन प्रातः काल इस स्तोत्र का पाठ करे। इस स्तोत्र का पाठ करने से घर में धन धान्य की वृद्धि होती है।


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

ईश्वर की खोज


एक सन्यासी नदी के किनारे ध्यानमग्न था। एक युवक ने उससे कहा – “गुरुदेव, मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ”।

सन्यासी ने पूछा – “क्यों?”

युवक ने एक पल के लिए सोचा, फ़िर वह बोला – “क्योंकि मैं ईश्वर को पाना चाहता हूँ”।

सन्यासी ने उछलकर उसे गिरेबान से पकड़ लिया और उसका सर नदी में डुबो दिया। युवक स्वयं को बचाने के लिए छटपटाता रहा पर सन्यासी की पकड़ बहुत मज़बूत थी। कुछ देर उसका सर पानी में डुबाये रखने के बाद सन्यासी ने उसे छोड़ दिया। युवक ने पानी से सर बाहर निकाल लिया। वह खांसते-खांसते किसी तरह अपनी साँस पर काबू पा सका। जब वह कुछ सामान्य हुआ तो सन्यासी ने उससे पूछा – “मुझे बताओ कि जब तुम्हारा सर पानी के भीतर था तब तुम्हें किस चीज़ की सबसे ज्यादा ज़रूरत महसूस हो रही थी?”

युवक ने कहा – “हवा”।

“अच्छा” – सन्यासी ने कहा – “अब तुम अपने घर जाओ और तभी वापस आना जब तुम्हें ईश्वर की भी उतनी ही ज़रूरत महसूस हो”।


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~~सच की राह~~



यह उस समय की बात है जब महादेव गोविंद रानाडे बालक थे। एक दिन वह घर में अकेले थे। उनका मन नहीं लग रहा था। वह बाहर बरामदे में खड़े-खड़े सोच रहे थे कि क्या करें। तभी उन्हें ख्याल आया कि कोई ऐसा खेल खेलना चाहिए जो अकेले खेला जा सके। उन्होंने सोचा क्यों न चौपड़ ही खेल लूं। उन्होंने मकान के एक खंभे को अपना साथी बनाया।

खंभे के लिए अपना दायां हाथ व अपने लिए बायां हाथ निश्चित किया। फिर उन्होंने खेलना आरंभ किया। पहले दाएं हाथ से पासा फेंका। यह था खंभे का दांव। फिर बाएं हाथ से पासा फेंका। यह दांव उनका अपना था। थोड़ी ही देर में रानाडे हार गए। रानाडे को पता नहीं था कि उनका खेल सामने सड़क पर खड़े कुछ लोग देख रहे थे।

उन्होंने पूछा, 'क्यों भैया, तुम खंभे से हार गए?' इस पर रानाडे बोले, 'क्या करूं? बाएं हाथ से पासा फेंकने की आदत नहीं है। खंभे का दाहिना हाथ था, सो वह जीत गया।' जब उनसे यह पूछा गया कि उन्होंने दायां हाथ अपने लिए और बायां हाथ खंभे के लिए क्यों नहीं रखा, तो रानाडे बोले, 'हार गया तो क्या हुआ। कोई मुझे बेईमान तो नहीं कह सकता न। अपने लिए दायां हाथ रखता और बेजान खंभे के लिए बायां, तो बेईमान कहलाता। बेचारे खंभे के साथ अन्याय हो जाता। अन्याय करना तो बहुत ही बुरा होता है।' रानाडे की बात सुनकर लोग भौंचक रह गए। सच के प्रति रानाडे की यह भावना आजीवन बनी रही।



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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

समय रहते संभाले बढ़ते युवा आक्रोश को...!



         पहले नेताओ का विरोध काले झंडे दिखा कर किया जाता था, परन्तु इराक के एक पत्रकार ने भरी प्रेस कोंफ्रेंस में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश पर जूता फेक कर विरोध करने का एक नया रास्ता ही खोल दिया. भारत में उसके बाद तो मानो विरोध करने के इस तरीके का सिलसिला ही चल पड़ा.  अभी तक तो आये दिन किसी न किसी नेता की सभा में जूता ही फेका जाता था परन्तु वर्तमान में विरोध का एक हिंसक तरीका भी सामने आया है जिसमें झंडे दिखाना, जूते फेकना आदि विरोध प्रकट करने के तरीको को कोसो पीछे छोड़ नेताओ को सीधा चांटा मारना ही चालू कर दिया है कुछ समय पहले पूर्व मंत्री सुखराम और आज कृषि मंत्री श्री शरद पंवार को मरा गया चांटा इस का उदाहरण है.
         विशव की सबसे युवा जनसंख्या भारत में रहती है और आज यही युवाशक्ति उद्ग्वेलित और आक्रोशित हो चुकी है, नेताओं ने इन युवाओ  की नब्ज टटोलने की जरुरत तक नहीं समझी, उन्हें लगता है आज का युवा जो हमेशा फेसबुक और ट्विटर पर व्यस्त रहने वाला है उसे देश की नीतियों के बारे में क्या समझ है इसलिए उसे तवज्जो देने की जरुरत नहीं है. परन्तु यहाँ वे बहुत बड़ी भूल कर रहे है, आज का युवा उनकी पीढ़ी से कई गुना ज्यादा इमानदार और देशभक्त है, वह मासूम है परन्तु नासमझ  नहीं है और सबसे अच्छी बात ये है कि वह सही और गलत का फर्क जल्दी ही महसूस कर सकता है.  मुझे ये देख कर ख़ुशी होती है की हमारा युवा  जागरूक है वह इन सोशियल साइटों के माध्यम से हर उस घटना पर प्रतिक्रिया देता है जो  देश में घटित होती है खास कर उन घटनाओ पर जिसमें उसके देश का हित हो. नेताओ को इन सोशियल  साइटों पर उनके बारे में लिखी  प्रतिक्रियो या फोटो दिखाए तो उन्हें समज आएगा  पढ़े लिखे युवा वर्ग के बीच उनकी क्या छवि है.

         यह बहुत गंभीर सोच का विषय है की चांटा मारने वालो को भगत सिंह की संज्ञा दी जा रही है और सारा युवा वर्ग उन्हें बधाई दे रहा है, परन्तु ऐसी परिस्थति उत्पन करने के जवाबदार भी हमारे नेता ही है, वे अपनी गलत नीतियों से इस देश को गर्त में डुबो रहे है, अतः इस तरह से विरोध प्रदर्शित करने वालो में हमारा युवा अपना नेता तलाश रहा है, आखिर ऐसा क्यों हुआ? एक समय था जब जनता अपने नेता को अपना आदर्श मानती थी और उनके चित्रों को घर, स्कुल/कालेज, दफ्तरों में स्थान दिया जाता था, आज हमारे देश के लोगो में पूरी एक पीढ़ी का अंतर आगया है, आज का युवा हाथ में भले ही स्मार्ट फोन रखता है परन्तु वह ईमानदार और तरक्की पसंद है. वह पुरानी पीढ़ी की तरह आराम की सरकारी नोकरी के पीछे नहीं भागता अपितु मेहनत से कार्य कर देश को आगे बढ़ाना चाहता है परन्तु जब वह देखता है की इस देश के नेता अपनी गलत नीतियों से एस देश को बर्बाद करने में लगे है तो  वो उन लोगों में अपना नेता ढूंढ़ रहा है जो ऐसे बेईमान नेताओ को सबके सामने सबक सिखाने का दम दिखाते है.

         अब भी अगर इस देश के युवाऔ के मिजाज को नहीं अमझा जाता तो आना वाला समय इससे भी गंभीर परिणाम दे सकता है. इन हिंसक घटनाओ को सभ्य समाज में समर्थन नहीं किया जा सकता परन्तु युवा वर्ग में बढे रोष को समझना आज के समय की सबसे बड़ी जरुरत  बन गई है.






     






प्रकाश कपूरिया


मंगलवार, 22 नवंबर 2011

क्यों की आप स्वयं ही कह रही हैं की आ बेल मुझे मार.. - by Leeladhar Rathi

अगर आप महिलाओं के लिए असुरक्षित इस शहर में सुरक्षित जीवन यापन करना चाहती हैं तो जींस नहीं पहनने के खाप पंचायत के फैसले को मान ले... मैं यह बात इसलिए नहीं कह रहा हूँ की मुझे उस खाप पंचायत का सदस्य बनना है वरन इसलिए कह रहा हूँ क्यों की समाज में तेजी से बढ रही महिलाओ के साथ छेड़खानी की कई मुख्य वजहों में से एक मुख्य वजह लड़कियों का जींस टॉप जेसे बोल्ड कपड़ों का पहनावा भी है...
ऐसा कहकर में लड़कियों पर प्रतिबंधात्मक बात जरूर कह रहा हूँ परन्तु इसका ये अर्थ कतई नहीं होना चाहिए की मैं उन्हें बुरका पहनकर घर से निकलने
की सलाह दे रहा हूँ......कई महिला संगठन इस समय खाप पंचायत की तीव्र आलोचना कर रहे हैं...उनका मत है की ऐसा करना महिलाओं के हितो और उनकी स्वतंत्रता पर पुरुष प्रधान समाज द्वारा प्रतिबन्ध लगाना होगा ...जब की मैं सोचता हूँ की स्त्रियों का हर वो काम जिस से किसी के मन में उनके प्रति विशुद्ध विकार उत्पन्न हो और उन विकारो के परिणाम स्वरुप कोई दूषित घटना घटित होने की आशंका हो से उन्हें दूर रहना चाहिए....

एक प्रसिद्ध जींस बनाने वाली कम्पनी किलर ने अपनी जींस बेचने के लिए एक विज्ञापन जारी किया ...जिसमे लड़की का पीछे से लिया गया चित्र दिखाया गया { चित्र क्र.१ } इस चित्र को देखने के बाद कह सकते हैं की उस लड़की द्वारा दोनों हाथ ऊपर उठाकर यह सन्देश देने की कोशिश की गयी है की इसे पहनने के बाद आप कितने कम्फर्ट रहते हैं यह एक सामान्य बात थी जो हमने आसानी से इस चित्र को देखने के बाद महसूस की,परन्तु अगर यही बात इस फोटो के माध्यम से कंपनी को बताना थी तो उन्होंने उस लड़की का फोटो पीछे की बजाय सामने की और से क्यों नहीं लिया.....???
क्या पीछे से दिखाए गए इस द्रश्य में कुछ ऐसा भी है जो कंपनी अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए दिखाना चाहती है...??
यु तो जींस और टॉप अपने आप में एक बोल्ड पहनावा है जिसे पहनने के बाद शारीर का हर अंग अपने आप में आकार लिए हुए दिखाई देता है... इसे जितना फीट पहनते हैं यह उतना ही खुलकर दीखता है,अगर इस पहनावे को आप शरीर से सटाकर नहीं पहनेंगे तो ये कतई अच्छा नहीं दिखेगा,इसका तात्पर्य यह हुआ की अगर आपको जींस पहनना है तो आपको अपने किसी भी शारीरिक अंग की बनावट का प्रदर्शन करने में कोई गुरेज नहीं है अर्थात आप चाहते हैं की आप बोल्ड दिखे ....अगर पहले चित्र को ध्यान से देखे तो यही बात निकलकर सामने आती है..जो कंपनी भी आपको दिखाना चाहती है की जींस को अगर अच्छी तरह पहना जाये तो आपके शारीर का हर हिस्सा कुछ खास अंदाज में दिखेगा ...
और अगर आपके शरीर का खास हिस्सा इस पहनावे में उत्तेजक दिखता है तो फिर आपको हर समय सावधान की मुद्रा में रहना चाहिए .. क्यों की अगर आप स्वयं अपने लटको झटको से किसी को विचलित करती हैं तो मुझे नहीं लगता की आपको किसी प्रकार की सुरक्षा की आवश्यकता है क्यों की आप स्वयं ही कह रही हैं की आ बेल मुझे मार..


by Leeladhar Rathi
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