पहले नेताओ का विरोध काले झंडे दिखा कर किया जाता था, परन्तु इराक के एक पत्रकार ने भरी प्रेस कोंफ्रेंस में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश पर जूता फेक कर विरोध करने का एक नया रास्ता ही खोल दिया. भारत में उसके बाद तो मानो विरोध करने के इस तरीके का सिलसिला ही चल पड़ा. अभी तक तो आये दिन किसी न किसी नेता की सभा में जूता ही फेका जाता था परन्तु वर्तमान में विरोध का एक हिंसक तरीका भी सामने आया है जिसमें झंडे दिखाना, जूते फेकना आदि विरोध प्रकट करने के तरीको को कोसो पीछे छोड़ नेताओ को सीधा चांटा मारना ही चालू कर दिया है कुछ समय पहले पूर्व मंत्री सुखराम और आज कृषि मंत्री श्री शरद पंवार को मरा गया चांटा इस का उदाहरण है.
विशव की सबसे युवा जनसंख्या भारत में रहती है और आज यही युवाशक्ति उद्ग्वेलित और आक्रोशित हो चुकी है, नेताओं ने इन युवाओ की नब्ज टटोलने की जरुरत तक नहीं समझी, उन्हें लगता है आज का युवा जो हमेशा फेसबुक और ट्विटर पर व्यस्त रहने वाला है उसे देश की नीतियों के बारे में क्या समझ है इसलिए उसे तवज्जो देने की जरुरत नहीं है. परन्तु यहाँ वे बहुत बड़ी भूल कर रहे है, आज का युवा उनकी पीढ़ी से कई गुना ज्यादा इमानदार और देशभक्त है, वह मासूम है परन्तु नासमझ नहीं है और सबसे अच्छी बात ये है कि वह सही और गलत का फर्क जल्दी ही महसूस कर सकता है. मुझे ये देख कर ख़ुशी होती है की हमारा युवा जागरूक है वह इन सोशियल साइटों के माध्यम से हर उस घटना पर प्रतिक्रिया देता है जो देश में घटित होती है खास कर उन घटनाओ पर जिसमें उसके देश का हित हो. नेताओ को इन सोशियल साइटों पर उनके बारे में लिखी प्रतिक्रियो या फोटो दिखाए तो उन्हें समज आएगा पढ़े लिखे युवा वर्ग के बीच उनकी क्या छवि है.
यह बहुत गंभीर सोच का विषय है की चांटा मारने वालो को भगत सिंह की संज्ञा दी जा रही है और सारा युवा वर्ग उन्हें बधाई दे रहा है, परन्तु ऐसी परिस्थति उत्पन करने के जवाबदार भी हमारे नेता ही है, वे अपनी गलत नीतियों से इस देश को गर्त में डुबो रहे है, अतः इस तरह से विरोध प्रदर्शित करने वालो में हमारा युवा अपना नेता तलाश रहा है, आखिर ऐसा क्यों हुआ? एक समय था जब जनता अपने नेता को अपना आदर्श मानती थी और उनके चित्रों को घर, स्कुल/कालेज, दफ्तरों में स्थान दिया जाता था, आज हमारे देश के लोगो में पूरी एक पीढ़ी का अंतर आगया है, आज का युवा हाथ में भले ही स्मार्ट फोन रखता है परन्तु वह ईमानदार और तरक्की पसंद है. वह पुरानी पीढ़ी की तरह आराम की सरकारी नोकरी के पीछे नहीं भागता अपितु मेहनत से कार्य कर देश को आगे बढ़ाना चाहता है परन्तु जब वह देखता है की इस देश के नेता अपनी गलत नीतियों से एस देश को बर्बाद करने में लगे है तो वो उन लोगों में अपना नेता ढूंढ़ रहा है जो ऐसे बेईमान नेताओ को सबके सामने सबक सिखाने का दम दिखाते है.
अब भी अगर इस देश के युवाऔ के मिजाज को नहीं अमझा जाता तो आना वाला समय इससे भी गंभीर परिणाम दे सकता है. इन हिंसक घटनाओ को सभ्य समाज में समर्थन नहीं किया जा सकता परन्तु युवा वर्ग में बढे रोष को समझना आज के समय की सबसे बड़ी जरुरत बन गई है.
प्रकाश कपूरिया
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