जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
यह ब्लॉग खोजें
सोमवार, 8 अक्टूबर 2012
ॐ की महिमा
ॐ की महिमा
=========================
१. ॐ किसी एक धर्म या जाती का प्रतीक नहीं है | इस छोटे से अक्षर में ईश्वर का विशाल स्वरूप समाया हुआ है | इश्वर को स्मरण करने का यह सबसे सरल एवम् सीधा-सादा चिन्ह है | ॐ ही एकमात्र ऐसा अक्षर है जिसका कभी क्षरण नहीं होता है |
२. संसार कि सारी चुम्बकीय शक्ति ब्रह्म से जुड़ी हुई है | उपनिषद में ब्रह्म को ही ॐ कहा गया है | अगर आपने कार्य के आरम्भ में ॐ लिख दिया तो समझ लीजिए, इसमें – गणेशाय नम:, लक्ष्मी देवी नम:, सरस्वती देवी नम:, कुलदेवताय नम: वगैरा सभी देवता ॐ कि परिधि में समाहित हो गए हैं |
३. अतः आप जब भी कोई मंगल-कार्य आरम्भ करें तो सबसे पहले ॐ का उच्चारण कीजिए | अपना नया माकान, नई दुकान, नये बही-खाते आदि का आरम्भ करने से पूर्व ॐ लिखकर परमात्मा को याद करना अत्यंत शुभ फलदायक होता है |
४. ॐ की महिमा अपार है | जहाँ-जहाँ ॐ प्रतिष्ठित है, वहाँ-वहाँ आनंद ही आनंद है | अतः आप सदा ही ॐ का स्मरण कीजिए एवं मानव जीवन का आनंद लीजिए | —
=========================
१. ॐ किसी एक धर्म या जाती का प्रतीक नहीं है | इस छोटे से अक्षर में ईश्वर का विशाल स्वरूप समाया हुआ है | इश्वर को स्मरण करने का यह सबसे सरल एवम् सीधा-सादा चिन्ह है | ॐ ही एकमात्र ऐसा अक्षर है जिसका कभी क्षरण नहीं होता है |
२. संसार कि सारी चुम्बकीय शक्ति ब्रह्म से जुड़ी हुई है | उपनिषद में ब्रह्म को ही ॐ कहा गया है | अगर आपने कार्य के आरम्भ में ॐ लिख दिया तो समझ लीजिए, इसमें – गणेशाय नम:, लक्ष्मी देवी नम:, सरस्वती देवी नम:, कुलदेवताय नम: वगैरा सभी देवता ॐ कि परिधि में समाहित हो गए हैं |
३. अतः आप जब भी कोई मंगल-कार्य आरम्भ करें तो सबसे पहले ॐ का उच्चारण कीजिए | अपना नया माकान, नई दुकान, नये बही-खाते आदि का आरम्भ करने से पूर्व ॐ लिखकर परमात्मा को याद करना अत्यंत शुभ फलदायक होता है |
४. ॐ की महिमा अपार है | जहाँ-जहाँ ॐ प्रतिष्ठित है, वहाँ-वहाँ आनंद ही आनंद है | अतः आप सदा ही ॐ का स्मरण कीजिए एवं मानव जीवन का आनंद लीजिए | —
अर्जुन को अहंकार
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को श्रीकृष्ण ने समझ लिया।
एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए। रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी। अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’ ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’
‘ आपके शत्रु कौन हैं?’ अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की। ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं। सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं। फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।’
‘आपका तीसरा शत्रु कौन है?’ अर्जुन ने पूछा।
‘ वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया। और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवान की असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए। यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।’ —
जय श्री कृष्ण !!!
Jai mahakal.
एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए। रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी। अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’ ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’
‘ आपके शत्रु कौन हैं?’ अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की। ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं। सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं। फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।’
‘आपका तीसरा शत्रु कौन है?’ अर्जुन ने पूछा।
‘ वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया। और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवान की असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए। यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।’ —
जय श्री कृष्ण !!!
Jai mahakal.
रविवार, 7 अक्टूबर 2012
शंख का उपयोग
सनातन
धर्म में शंख को अत्यधिक पवित्र एवं शुभ माना जाता है । इसका पावन नाद
वातावरण को शुद्ध, पवित्र एवं निर्मल करता है। शंख का उपयोग औषधि के रूप
में भी किया जाता है । शंख का प्रयोग प्रत्येक शुभ कार्य में किया जाता है ।
शंख की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेको कथाये प्रचलित है । एक कथा के
अनुसार शंख की उत्पत्ति शिवभक्त चंद्रचूड़ की अस्थियो से हुई , जब भगवान
शिव ने क्रोधवश होकर भक्त चंद्रचूड़ का त्रिशूल से वध कर दिया, तत्पश्चात
उसकी अस्थियाँ समुद्र में प्रवाहित कर दी गयी।
विष्णु पुराण के अनुसार शंख लक्ष्मी जी का सहोदर भ्राता है। यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख समुद्र मंथन के समय आठवे स्थान पर प्राप्त हुआ था । शंख के अग्र भाग में गंगा एवं सरस्वती का , मध्य भाग में वरुण देवता का एवं पृष्ठ भाग में ब्रम्हा जी का वास होता है। शंख में समस्त तीर्थो का वास होता है। वेदों के अनुसार शंख घोष को विजय का प्रतीक माना जाता है। महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण भगवान् एवं पांडवो ने विभिन्न नामो के शंखो का घोष किया था। श्री कृष्ण भगवान् ने पांचजन्य, युधिष्ठुर ने अनन्तविजय, भीम ने पौण्ड्र, अर्जुन ने देवदत्त, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखो का प्रचंड नाद करके कौरव सेना में भय का संचार कर दिया था।
शंख तीन प्रकार के होते है :
वामावर्ती - खुला हुआ भाग बायीं ओर होता है ।
दक्षिणावर्ती - खुला हुआ भाग दायीं ओर होता है ।
मध्यावर्ती - मध्य में खुला हुआ भाग होता है ।
दक्षिणावर्ती शंख शुभ एवं मंगलदायी होता है अतः इसका उपयोग पूजा-पाठ, अनुष्ठानों एवं शुभ कार्यो किया जाता है ।
शंख के उपयोग
दक्षिणावर्ती शंख में प्रतिदिन प्रातः थोड़ा सा गंगा जल भरकर सारे घर में छिड़काव करे। भूत प्रेत बाधा को दूर करने का यह एक अचूक उपाय है ।
शंख में जल भरकर रखा जाता है और पूजा करते समय छिड़का जाता है । शंख में जल, दुग्ध भरकर भगवान का अभिषेक भी किया जाता है ।
पुराणों के अनुसार, घर में दक्षिणावर्ती शंख रखने से श्री लक्ष्मी जी का स्थायी निवास होता है ।
शयन कक्ष में शंख रखने से पति पत्नी के मध्य सदैव प्रेमभाव बना रहता है ।
शंख बजाने से ह्रदय की मांसपेशिया मजबूत होती है, मेधा शक्ति प्रखर होती है तथा फेफड़ो का व्यायाम होता है । अतः श्वास सम्बन्धी रोगों से मुक्ति मिलती है तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ती है ।
शंख की ध्वनि में रोगाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति होती है। जहां जहां तक शंख ध्वनि पहुचती है, वहाँ तक के रोगाणुओं का नाश हो जाता है।
वर्तमान युग में रक्तचाप, मधुमेह, ह्रदय सम्बन्धी रोग, कब्ज़ , मन्दाग्नि आदि रोग आम हो गए है । नियमित रूप से शंख बजाइये और इन रोगों से मुक्ति पाइये ।
अगर आपके घर में कोई वास्तु दोष है, तो आप प्रातः और सायंकाल शंख अवश्य बजाये। शंख बजाने से घर का वास्तुदोष दूर हो जाता है ।
अगर हमारे शरीर में स्थापित चक्रों में संतुलन न हो तो हमें रोग घेर लेते है, शंख चक्र संतुलित करने में समर्थ है।
घर में शंख बजने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है , इससे घर में निवास करने वालो के तन मन पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है । सकारात्मक विचारों का उदभव होता है ।
अध्धयन कक्ष में शंख रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
वैज्ञानको के अनुसार, शंख घोष का प्रभाव समस्त ब्रम्हाण्ड पर होता है।
विष्णु पुराण के अनुसार शंख लक्ष्मी जी का सहोदर भ्राता है। यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख समुद्र मंथन के समय आठवे स्थान पर प्राप्त हुआ था । शंख के अग्र भाग में गंगा एवं सरस्वती का , मध्य भाग में वरुण देवता का एवं पृष्ठ भाग में ब्रम्हा जी का वास होता है। शंख में समस्त तीर्थो का वास होता है। वेदों के अनुसार शंख घोष को विजय का प्रतीक माना जाता है। महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण भगवान् एवं पांडवो ने विभिन्न नामो के शंखो का घोष किया था। श्री कृष्ण भगवान् ने पांचजन्य, युधिष्ठुर ने अनन्तविजय, भीम ने पौण्ड्र, अर्जुन ने देवदत्त, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखो का प्रचंड नाद करके कौरव सेना में भय का संचार कर दिया था।
शंख तीन प्रकार के होते है :
वामावर्ती - खुला हुआ भाग बायीं ओर होता है ।
दक्षिणावर्ती - खुला हुआ भाग दायीं ओर होता है ।
मध्यावर्ती - मध्य में खुला हुआ भाग होता है ।
दक्षिणावर्ती शंख शुभ एवं मंगलदायी होता है अतः इसका उपयोग पूजा-पाठ, अनुष्ठानों एवं शुभ कार्यो किया जाता है ।
शंख के उपयोग
दक्षिणावर्ती शंख में प्रतिदिन प्रातः थोड़ा सा गंगा जल भरकर सारे घर में छिड़काव करे। भूत प्रेत बाधा को दूर करने का यह एक अचूक उपाय है ।
शंख में जल भरकर रखा जाता है और पूजा करते समय छिड़का जाता है । शंख में जल, दुग्ध भरकर भगवान का अभिषेक भी किया जाता है ।
पुराणों के अनुसार, घर में दक्षिणावर्ती शंख रखने से श्री लक्ष्मी जी का स्थायी निवास होता है ।
शयन कक्ष में शंख रखने से पति पत्नी के मध्य सदैव प्रेमभाव बना रहता है ।
शंख बजाने से ह्रदय की मांसपेशिया मजबूत होती है, मेधा शक्ति प्रखर होती है तथा फेफड़ो का व्यायाम होता है । अतः श्वास सम्बन्धी रोगों से मुक्ति मिलती है तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ती है ।
शंख की ध्वनि में रोगाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति होती है। जहां जहां तक शंख ध्वनि पहुचती है, वहाँ तक के रोगाणुओं का नाश हो जाता है।
वर्तमान युग में रक्तचाप, मधुमेह, ह्रदय सम्बन्धी रोग, कब्ज़ , मन्दाग्नि आदि रोग आम हो गए है । नियमित रूप से शंख बजाइये और इन रोगों से मुक्ति पाइये ।
अगर आपके घर में कोई वास्तु दोष है, तो आप प्रातः और सायंकाल शंख अवश्य बजाये। शंख बजाने से घर का वास्तुदोष दूर हो जाता है ।
अगर हमारे शरीर में स्थापित चक्रों में संतुलन न हो तो हमें रोग घेर लेते है, शंख चक्र संतुलित करने में समर्थ है।
घर में शंख बजने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है , इससे घर में निवास करने वालो के तन मन पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है । सकारात्मक विचारों का उदभव होता है ।
अध्धयन कक्ष में शंख रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
वैज्ञानको के अनुसार, शंख घोष का प्रभाव समस्त ब्रम्हाण्ड पर होता है।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
function disabled
Old Post from Sanwariya
- ▼ 2024 (357)
- ► 2023 (420)
- ► 2022 (477)
- ► 2021 (536)
- ► 2020 (341)
- ► 2019 (179)
- ► 2018 (220)
- ► 2012 (671)