जनेऊ कान पर क्यों चढ़ाते है?
जनेऊ कान पर क्यों चढ़ाते है?
जनेऊ को अपवित्र होने से बचाने के लिए लघुशंका एवं दीर्घशंका के समय उसे
दाहिने कान पर चढाने का नियम है। दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाने का वैज्ञानिक
कारण है; आयुर्वेद के अनुसार, दाहिने कान पर 'लोहितिका' नामक एक विशेष
नाड़ी होती है, जिसके दबने से मूत्र का पूर्णतया निष्कासन हो जाता है। इस
नाड़ी का सीधा संपर्क अंडकोष से होता है। हर्निया नामक रोग का उपचार करने
के लिए डॉक्टर दाहिने कान की नाड़ी का छेधन करते है । एक तरह से जनेऊ
'एक्यूप्रेशर' का भी काम करता है
पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते
ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी
गयी है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। विवाह से पूर्व
तीन धागों की तथा विवाहोपरांत छह धागों की जनेऊ धारण की जाती है। पूर्व काल
में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र
विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान
के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर
उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के
पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है।
जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय
रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।जनेऊ पहनने
वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार
नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से
अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट,
कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय
रोगियों को होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.