एक धूल से सना हुआ उनींदा सा छोटा सा कस्बा जो कि देश की धड़कन दिल्ली से मात्र 90 किलोमीटर दूर है
कुछ सालो पहले यह टाउन तब मीडिया में खूब चर्चा में आया था जब दिल्ली में रिमोट कंट्रोल से चलने वाले प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह की दिल्ली में सरकार थी और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का शासन था
तब कैराना में मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ने के कारण और उनके आंतक से डरकर काफी सारे हिन्दुओं को पलायन करना पड़ा था
बीजेपी को छोड़कर किसी भी अन्य राजनैतिक दलों ने इस पर कोई आवाज नहीं उठाई थी क्योंकि उन्हें लगता था कि हिन्दुओं का पलायन साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए जरूरी था बल्कि नमाजवादी पार्टी के नावेद हुसैन तो इस पूरे आयोजन के मुख्य कर्ताधर्ता थे
फिर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के योगी आदित्यनाथ की सरकार आई, और उन्होंने कुछ हिंदू परिवारों का वापिस कैराना में पुनर्वास कराया गया था लेकिन इसके बावजूद अभी भी हजारों की संख्या में लोग वंहा से पलायन कर चुके हैं
एक बार कोई स्थान छोड़ देने के बाद वापिस उनका पुनर्वास बड़ा मुश्किल होता है
हिन्दुओं को अपनी जमीनों को कौडियों के भाव में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा था
दिल्ली से केवल 90 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के एक कस्बे की यह हालत थी लेकिन सैकुलर के चैम्पियनो को कोई फर्क नहीं पड़ा
इसी कैराना से अब नमाजवादी पार्टी ने उसी नावेद हुसैन को एमएलए का टिकट दिया है
यानी हिन्दुओं को भगाओ और बदले में नमाजवादी पार्टी का टिकट पाओ
पता नहीं ये हिन्दू समुदाय के वे कौन लोग है जो कि नमाजवादी पार्टी को वोट देते हैं जबकि नमाजवादी पार्टी ने मुस्लिमों के वोट पाने के लिए उनके लिए क्या क्या नहीं किया और हिन्दुओं को प्रताडित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा
राम भक्तों पर गोलियां चलाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मौलाना मुलायम सिंह यादव ने बड़ी बेशर्मी से और हिन्दुओं को चिढ़ाते हुए कहा था कि यदि जरूरत पड़ती तो वे सैंकड़ों कार सेवकों पर गोली चलाने के लिए तैयार थे
मुख्यमंत्री के रूप में वो केवल यह कह देते कि कानून व्यवस्था को कायम रखने के लिए उन्होंने गोलीबारी का आदेश दिया था, तो भी एक कुछ हद तक उचित कहा जा सकता है लेकिन उन्होंने तो मुस्लिमों के वोट लेने के लिए ऐसा शर्मनाक बयान दिया था
अब बाप का असर उसके बेटे पर तो आएगा ही ना
ऑस्ट्रेलिया से कथित रूप से पढ़कर आने वाले अखिलेश तो मुस्लिमों को रिझाने में अपने बाप से भी एक कदम आगे निकल गए
मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने पहला काम यह किया था कि उन्होंने अंग्रेजो के ज़माने से चल रही पुलिस स्टेशन में भगवान कृष्ण की पूजा को बंद करा दिया
मतलब जिस काम को अंग्रेज नहीं कर सके उस काम को अखिलेश जैसे काले अंग्रेज ने कर दिया
अब उन्होंने कैराना के गुनाहगार को अपनी पार्टी का टिकट दे कर अपनी पार्टी का नाम नमाजवादी पार्टी सार्थक कर दिया
अब जो हिन्दू अपने को हिन्दू ना समझकर दलित, यादव या और कोई जाति समझते हैं, उन्हें यह सोचना चाहिए कि उनके साथ भी बीस वाले वही हाल करने वाले है जो कि वे अन्य हिन्दूओ के साथ करेंगे
उनके साथ कोई अलग से स्पेशल व्यवहार इसलिए नहीं होने वाला है कि वे नमाजवादी पार्टी या कॉंग्रेस के समर्थक है
यदि उनकी यादाश्त तेज है तो उन्हें सिर्फ पांच साल पहले की घटनाओं को याद कर लेना चाहिए, जब राज्य में नमाजवादी पार्टी का जंगलराज था और उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता था
फिर भी यदि आपको बीजेपी और योगी से शिकायत है तो आपको तुरन्त किसी मनोचिकित्सक से उपचार कराने की जरूरत है

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सोमवार, 17 जनवरी 2022
कैराना के गुनाहगार को अपनी पार्टी का टिकट दे कर अपनी पार्टी का नाम नमाजवादी पार्टी सार्थक कर दिया
आपको क्या लगता है, ये उत्तर प्रदेश का चुनाव बीजेपी-योगी Vs सपा-अखिलेश होने जा रहा है?
आपको क्या लगता है,.... ये उत्तर प्रदेश का चुनाव बीजेपी-योगी Vs सपा-अखिलेश होने जा रहा है?
No.
अभी तो चुनावों की घोषणा हो चुकी है लेकिन युद्ध शुरु हो चुका है।
आज नहीं, काफी पहले से शुरु हो चुका है।
और ये युद्ध बीजेपी / योगी Vs किसी राजनीतिक पार्टी के बीच नहीं होना,......ये चुनाव रुपी युद्ध योगी Vs राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय हिंदु विरोधी ताकतों के बीच होगा।
अखिलेश तो केवल निमित्त बनेगा क्योंकि कोई तो राजनीतिक दल चाहिये मैदान में।
अखिलेश कुछ न भी करे,....उसके चेहरे को सामने रख युद्ध लडेंगी सभी वो लेफ्टिस्ट / इस्लामी ताकतें और सोनिया गांधी जिनको हर कीमत पर योगी को दोबारा आने से रोकना ही रोकना है, चाहे कुछ भी दाँव पर लगाना पड़े।
और दाँव पर इतना कुछ लगाया जाने वाला है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में आजतक ऐसा नहीं हुआ होगा।
ये जो 200 करोड़ नकद और सोना चांदी पकड़े गये हैं रेड में,...ये तो कुछ भी नहीं।
हजारों करोड़ दांव पर लगाया जाने वाला है।
उसका कारण है....बड़ा ठोस कारण है।
कारण ये है कि सभी हिंदु विरोधी शक्तियां मान चुकी हैं कि बिना उत्तर प्रदेश जीते 2024 नहीं जीता जा सकता।
और ये ताकतें आज सर पर कफन बांध कर यूपी का चुनाव लड़ने जा रही हैं क्योंकि अगर वो 2022 और 2024 दोनों हार जाते हैं तो इस सब ताकतों का हमेशा के लिये भारत की धरती से अस्तित्व खत्म हो जायेगा।
ये आरपार का युद्ध होने जा रहा है।
ये करो या मरो होने जा रहा है।
Either perform or perish होने जा रहा है।
ये चुनाव नहीं होने हैं, कुछ और होना है।
ये उन गजवा ए हिंद की ताकतों और सोनिया गांधी के अस्तित्व की आखिरी लड़ाई है।
वो हर कीमत पर इसे यानि उत्तर प्रदेश को 2022 में जीतना चाहते हैं,...वरना वो खत्म।
इसलिये किसी भ्रम में मत रहना,...ये आसान चुनाव नहीं होने हैं।
ये एक भयंकर युद्ध होना है।
अगर हिंदु इस बार कुछ भी चूक कर गये तो हिंदु गये और अगर इस भयंकर षडयंत्र को समझकर एक हुए रहते हैं तो वो सब गये।
ये है समीकरण। Watch out! Beware!
बहुत संभलकर, बहुत सावधान होकर, आँख-कान-नाक-दिमाग सतत सक्रिय रखकर लड़ना है ये युद्ध।
दाँव पर अस्तित्व है,.......
🙏🚩🙏जय श्री राम ⚔️🚩⚔️🙏
रविवार, 16 जनवरी 2022
वो हिन्दू जो मोदी, योगी या भाजपा से नफरत करते हैं वो लोग 2 मिनट का समय निकाल कर ध्यान से पढ़ें.
अंग्रेजों ने कब और कैसे गौहत्या शुरू की थी और ये आज तक क्यों बंद नहीं हुई?
जिहाले मस्ती माकुंबरंजिश बहारे हिजरा बेचारा दिल हैं - इस वाक्य का क्या अर्थ हैं
पंक्तियां मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म गुलामी के एक गाने की शुरुआत में कहीं गई हैं। दरअसल ये फारसी भाषा के शब्द हैं। ये पूरी लाइन इस प्रकार है
जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बा रंजिश,
बहाल-ए -हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन,
तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।
इसका अर्थ है मुझ गरीब(मिस्कीन) को रंजिश से भरी इन निगाहों से ना देखो, क्योंकि मेरा बेचारा दिल जुदाई(हिजरा) के मारे यूँ ही बेहाल है। जिस दिल कि धड़कन तुम सुन रहे हो वो तुम्हारा या मेरा ही दिल है।
इस गीत की पंक्तियों को अमीर खुसरो की शायरी से लिया गया है जो इस प्रकार है
ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल,
दुराये नैना बनाये बतियां।
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान,
न लेहो काहे लगाये छतियां। ।
यह शायरी फारसी और ब्रज के अनोखे सम्मेलन से बनाई गई है। इसमें खुसरो ने दो भाषाओं की विविधता द्वारा यह शायरी तैयार की थी इसका अर्थ है
मुझ गरीब को यूं आंखे इधर उधर दौड़ाकर और बातें बनाकर नजरअंदाज(तगाफुल) ना करो। मैं अब और जुदाई नहीं सह सकता तुमसे अय जान तुम क्यों नहीं आके मुझे सीने से लगा लेती हो।
आज उप्र की विकास दर चीन की विकास दर से ज़्यादा है
शुक्रवार, 14 जनवरी 2022
Statue of Equality - आचार्य रामनुजाचार्य की सबसे बड़ी प्रतिमा
'Statue of Equality' समानता को समर्पित मिशन

स्वामी रामनुजाचार्य की विशालकाय प्रतिमा का लोकार्पण देश के पीएम नरेंद्र मोदी इसी साल फरवरी में करेंगे , इस स्टैचू के साथ 108 मंदिर का निर्माण किया गया है , इसी के साथ आचार्य रामनुजाचार्य की एक छोटी प्रतिमा भी बनाई गई है जिसमे 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है । इस जगह को स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी ( Statue of Equality ) नाम दिया गया है . इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 1400 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं ।
जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों में ऐसा क्या अंतर हैं कि डॉक्टर हमें जेनेरिक दवाई नही लिखते?
एक बात वह है दवा निर्माण में उपयुक्त कच्चे माल की गुणवत्ता।
एक ही साल्ट 10 हजार रु से लेकर 1 लाख रु तक की थोक कीमत में मिल सकता है
अर्थात दवाइयों के साल्ट के थोक मूल्य में बहुत अंतर पाया जाता है जिसमें
कहीं न कहीं गुणवत्ता जरूर मायने रखती है।
उदाहरण के लिए इस समय पैरासिटामोल पाउडर का थोक मूल्य रु200-1200 के बीच है.
सहज
सामान्य सिद्धांत (बेसिक थंब रूल) से समझा जा सकता है कि कौन मंहगा और
उच्च गुणवत्ता वाला साल्ट प्रयोग करते होंगे और क्यों - जबकि दूसरे लोग
क्यों सस्ता साल्ट यूज करते होंगे। पहले को अपनी साख बचाए रखना मुख्य
उद्देश्य है भले उत्पाद महंगा क्यों न हो जाए जबकि दूसरे को बाजार में अपनी
जगह बनानी है जिसके कारण लागत को घटाया जाता है कि खुदरा व्यापारियों को
ज्यादा कमीशन और उपभोक्ता को कम कीमत से लुभाया जा सके।
बाजार
से आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वो बाजार की तरह व्यवहार न करके मानवीयता
और ईमानदारी का पालन करे?
हर जगह उद्यमी और निवेशक तो एक आम इंसान ही है
जिनकी औरों की तरह ही जरूरतें और ख्वाहिशें हैं।
सबसे
पहले यह समझना होगा कि पेटेंटेड मेडिसिन व नॉन-पेटेंटेड (जेनेरिक) मेडिसिन
और ब्रांडेड मेडिसिन व नॉन-ब्रांडेड मेडिसिन ये दो नहीं बल्कि तीन चीजें
हैं। राजनीति ने इन्हें गोलमाल कर रखा है।
पेटेंटेड मेडिसिन बिना लाइसेंस के कोई अन्य कंपनी नहीं बना सकती लेकिन पेटेंट अवधि खत्म होने के बाद उसे (जेनेरिक) कोई भी बना सकता है मतलब ब्रांड या नॉन-ब्रांड सब। तो मुद्दा ही नहीं क्योंकि जब पेटेंटेड मेडिसिन बिना पेटेंटधारी की अनुमति के कोई अन्य बना ही नही सकता तो सस्ता या महंगा कैसे होगा? मुद्दा है ब्रांडेड और नॉन-ब्रांडेड का जिसमे गुणवत्ता मायने रखती है।
सॉल्ट के थोक मूल्य के अलावा अन्य कारक जैसे श्रम, संयंत्र और मशीनरी, पैकिंग मेटेरियल, हाइजीन, दवा निर्माण में प्रयुक्त अन्य सामग्री (बॉन्डिंग, थिकनिंग, कोटिंग एजेंट आदि), छपाई, अनुकूल भंडारण और सुरक्षित परिवहन आदि में भी खर्च को घटाया बढ़ाया जा सकता है।
बाकी बचा औषधियों की गुणवत्ता के ऊपर सरकारी नियंत्रण, तो उस पर लिखने की क्या जरूरत? सबको पता है कि सरकारी तंत्र कैसे काम करता है।
बाकी ये मैने नहीं लिखा कि नॉन-ब्रांडेड दवा असर नहीं करेगी। मेरा कहने का मतलब है कि राजनीति और बाजार के दांव-पेंचों में फंसे बगैर अपनी हैसियत के अनुसार अच्छे डॉक्टर की सलाह माने क्योंकि कोई भी डाक्टर आपका दुश्मन नहीं है, हां थोड़ा बहुत लालच सबमें होता है; बाकी जमीन जायदाद बेच कर कुछ हासिल नहीं होता।
मानव हृदय इतना प्रभावशाली अंग
ये हैं दिल के बारे में कुछ मजेदार तथ्य:
- आपन ऊपर के एनिमेशन में जो देख रहे हैं वह आपके जीवन के दौरान लगभग 2.5 बिलियन बार होता है।
- एक वयस्क व्यक्ति का दिल एक बंद मुट्ठी के आकार का होता है और इसका वजन सिर्फ 340 ग्राम होता है। इसे 4 भागों में बांटा गया है: 2 अटरिया और 2 निलय।
- यह प्रत्येक धड़कन के साथ 85 ग्राम रक्त पंप करता है, जो एक दिन में 9,000 लीटर से अधिक के बराबर है, एक मिनट में हृदय शरीर में 5 लीटर रक्त पंप करता है; एक घंटे में, यह 400 लीटर है।
- एक महिला का दिल पुरुषों की तुलना में थोड़ा तेज होता है। 1 मिनट में, यह औसतन 8 बीट अधिक होता है।
- मानव हृदय प्रतिदिन 30 किलोमीटर तक ट्रक की आपूर्ति करने में सक्षम ऊर्जा उत्पन्न करता है। यदि आप जीवन भर उत्पन्न ऊर्जा की गणना करते हैं, तो आप चंद्रमा तक और वापस पृथ्वी पर आ सकते हैं।
धन्यवाद🙏
यूनिकॉर्न किस जानवर को कहते हैं? ये किस देश में पाए जाते हैं?
यूनिकॉर्न एक एकसिंगा पशु है और वर्तमान में स्कॉटलैंड का राष्ट्र पशु है।
"इकसिंगा एकमात्र ऐसा पशु है जो शायद मानवीय भय की वजह से प्रकाश में नहीं आया है। यहां तक कि आरंभिक संदर्भों में भी इसे उग्र होने पर भी अच्छा, निस्वार्थ होने पर भी एकांतप्रिय, साथ ही रहस्यमयी रूप से सुंदर बताया गया है। उसे केवल अनुचित तरीके से ही पकड़ा जा सकता था और कहा जाता था कि उसके एकमात्र सींग में ज़हर को भी बेअसर करने की ताकत थी।" पहले इसे एक मनगढ़ंत पशु समझा जाता था मगर २०१६ में हुए शोध और अमेरिकन जर्नल ऑफ अप्लाइड साइंसेज में प्रकाशित लेख के हिसाब से वेस्टर्न सर्बिया, कजाकिस्तान आदि में ये पाए जाते थे जो कि विलुप्त होती प्रजाति हैं।
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