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अजोला एक विस्मयकारी अद्भुत पौधा - 5 दिन में हो जाता है दोगुना
अजोला एक विस्मयकारी अद्भुत पौधा
आज हम आपको एक ऐसी हर्बल खाद के बारे में बता हैं जिसके इस्तेमाल से उपज तो डबल होती ही है साथ में इनकम भी दोगुनी होती है. इस हर्बल खाद की मदद से पशुओं के लिए उत्तम चारा उगाया जा सकता है. जिसके खाने से पशुओं की कई समस्या दूर हो जाती है इसके साथ ही दूध का उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है. इस हर्बल खाद के एक नहीं अनेक फायदे हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. इस हर्बल खाद का नाम है अजोला. खेती में अजोला के प्रयोग से कई लाभ मिलते हैं. फसल में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है. खेतों में कम समय में जैविक पदार्थ का कम समय में अधिक उत्पादन होता है. अजोला फसलों में जिंक, मैगनीज, लोहा, फॉस्फोरस, पोटाश की मात्रा को बढ़ाता है.
एजोला (Azolla) एक तैरती हुई फर्न है जो शैवाल से मिलती-जुलती है। सामान्यतः एजोला धान के खेत या उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है।[1]
अजोला एक जैव उर्वरक है। एक तरफ जहाँ इसे धान की उपज बढ़ती है वहीं ये कुक्कुट, मछली और पशुओं के चारे के काम आता है। कुछ देशों में तो लोग इसे चटनी व पकोड़े भी बनाते हैं। इससे बायोडीजल तैयार किया जाता है। यहां तक कि लोग इसे अपने घर के ड्रॉइंग रूम को सजाने के लिए भी लगाते हैं। अजोला पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। पशुओं को खिलाने से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है ।
एजोला पानी में पनपने वाला छोटे बारीक पौधों के जाति का होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में फर्न कहा जाता है। एजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना (Anabaena,) नामक नील हरित काई के जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय Nitrogen का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल को nitrogen की पूर्ति करता है। एजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में ५ दिनों में ही दो-गुना हो जाता है। यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो ३०० टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है यानी ४० कि०ग्रा० nitrogen प्रति हेक्टेयर प्राप्त। एजोला में ३.५ प्रतिशत nitrogen तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की ऊर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।
धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है। २ से ४ इंच पानी से भरे खेत में १० टन ताजा एजोला को रोपाई के पूर्व डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर ३० से ४० कि०ग्रा० सुपर फास्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। इसकी वृद्धि के लिये ३० से ३५ डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है।
एजोला के उपयोग से धान की फसल में ५ से १५ प्रतिशत उत्पादन वृद्धि संभावित रहती है।
इस फर्न का रंग गहरा लाल या कत्थई होता है। धान के खेतों में यह अक्सर दिखाई देती है। छोटे-छोटे पोखर या तालाबों में जहां पानी एकत्रित होता है वहां पानी की सतह पर यह दिखाई देती है।
भारत में एजोला की सात आठ किस्में पाई जाती है जिनमें से junwer29 सर्वोत्तम है
उपयोग
जैविक खाद
अजोला का प्रयोग मुख्यतः धान की खेती में किया जाता है जिसमें सभी किस्मों का प्रयोग हम कर सकते हैं अगर Junwer29 का प्रयोग करते हैं तो अधिक लाभ मिलता है धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद हम इसे खेतों में डाल सकते हैं एक बार डालने के बाद आसानी से पूरे खेत में यह फैल जाता है खेती में एजोला को हरी खाद के रूप में रामबाण माना गया है अजोला को खाद के रूप में प्रयोग करने से भूमि में कार्बनिक गुणों में बढ़ोतरी व फसल में नाइट्रोजन की पूर्ति करना मुख्य कार्य है
पशु आहार
पशुओं को अजोला चारा खिलाने के लाभ
अजोला सस्ता, सुपाच्य, पौष्टिक, पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से पशुओं के दूध में वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं की अपेक्षा अधिक पाई जाती हैं। यह पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी है। पशुओं के पेशाब में खून आने की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है जो अजोला खिलाने से दूर हो जाती है। अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा है। अजोला में प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है। इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यन्त कम होती है, अतः इसकी संरचना इसे अत्यन्त पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है।[2] दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से पाया गया है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि होती है
पशुओं के चारे के लिए ऐसे बनाएं अजोला
सीमेंट के टैंक में 40 किलोग्राम खेत की साफ छनी भुरभुरी मिट्टी डालें. 20 लीटर पानी में दो दिन पुराना गोबर चार से पांच किग्रा लेकर घोल बनाएं. इसे अजोला के बेड पर डाल दें. टैंक में सात से दस सेमी पानी भर कर एक से डेढ़ किलोग्राम ‘मदर एजोला’ कल्चर डाल दें. अजोला धीरे-धीरे बढ़ता है. 12 दिन बाद एक किलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्लास्टिक की छन्नी से निकालें. इसे साफ कर पशुओं को खिलाएं.
अजोला के गुणधर्म
अजोला जल की सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाला फर्न है। यह छोटे-छोटे समूह में हरित गुक्ष्छ की तरह तैरता है। भारत में मुख्य रूप से "अजोला पिन्नाटा" नामक अजोला की जाति पाई जाती है जो काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली जाति है।
- अजोला जल मे तीव्र गति से बढ़ती है।
- अजोला प्रोटीन, आवश्यक अमीनो अम्ल, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा कैरोटीन), एवं कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, लोहा, कॉपर एवं मैग्नीशियम से भरपूर है। शुष्क वजन के आधार पर इसमें 20-30 प्रतिशत प्रोटीन, 20-30 प्रतिशत वसा, 50-70 प्रतिशत खनिज लवण, 10-13 प्रतिशत रेशा, बायो-एक्टिव पदार्थ एवं बायो पॉलीमर पाये जाते हैं।
- इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन एवं उपरोक्त तत्व होने के कारण पशु इसे आसानी से पचा लेते हैं।
- अजोला की उत्पादन लागत काफी कम होती है।
- यह औसतन 15 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर प्रति सप्ताह की दर से उपज देती है।
- सामान्य अवस्था मे यह फर्न तीन दिन में दोगुनी हो जाती है।
- यह पशुओं के लिए प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिक) का कार्य करती है।
- यह पशुओं के लिए आदर्श आहार के साथ साथ भूमि उर्वरा शक्ति बढाने के लिए हरी खाद के रूप में भी उपयुक्त है।
एजोला बनाने की विधि
पानी के पोखर या लोहे के ट्रे में एजोला कल्चर बनाया जा सकता है। पानी की पोखर या लोहे के ट्रे में ५ से ७ से.मी. पानी भर देवें। उसमें १०० से ४०० ग्राम कल्चर प्रतिवर्ग मीटर की दर से पानी में मिला देवें। सही स्थिति रहने पर एजोला कल्चर बहुत तेज गति से बढ़ता है और २.३ दिन में ही दुगना हो जाता है। एजोला कल्चर डालने के बाद दूसरे दिन से ही एक ट्रे या पोखर में एजोला की मोटी तह जमना शुरू हो जाती है जो Nitrogen स्थिरीकरण का कार्य करती है
इस तरह कर सकते हैं उत्पादन
अजोला उगाने के लिए किसान छोटे आकार का तालाब या क्यारी बना कर भी इसे उगा सकते हैं. और भी बड़े स्तर पर उत्पादन करना हो तो सीमेंट का टैंक बनाकर या पॉलीथीन से ढका हुआ गड्ढा बनाकर पानी में इसका उत्पादन किया जा सकता है. यहां तक कि चिकनी मिट्टी या सीमेंट के गमले में भी इसे उगाया जा सकता है.
इस तापमान पर होता है उत्पादन
पानी के पोखरे या लोहे के ट्रे में अजोला कल्चर बनाया जा सकता है. कल्चर डालने के बाद दूसरे दिन से ही एक ट्रे या पोखरे में अजोला की मोटी तह जमना शुरू हो जाती है जो नत्रजन स्थिरीकरण का कार्य करती है. धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है. इसकी वृद्धि के लिये 30 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है.अजोला उत्पादन में ध्यान देने योग्य बातें
1. अजोला की तेज बढ़वार और उत्पादन के लिए इसे प्रतिदिन उपयोग हेतु (लगभग 200 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से) बाहर निकाला जाना आवश्यक हैं।
2. अजोला तेैयार करने के लिए अधिकतम 30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त माना जाता है। अतः इसे तैयार करने वाला स्थान छायादार होना चाहिए।
3. समय-समय पर गड्ढे में गोबर एवं सिंगल सुपर फॉस्फेट डालते रहें जिससे अजोला फर्न तीव्रगति से विकसित होता रहे।
4. प्रति माह एक बार अजोला तैयार करने वाले गड्ढे या टंकी की लगभग 5 किलो मिट्टी को ताजा मिट्टी से बदलेें जिससे नत्रजन की अधिकता या अन्य खनिजो की कमी होने से बचाया जा सके ।
5. एजोला तैयार करने की टंकी के पानी के पीएच मान का समय-समय पर परीक्षण करते रहें। इसका पीएच मान 5.5-7.0 के मध्य होना उत्तम रहता है।
6. प्रति 10 दिनों के अन्तराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे से 25-30 प्रतिशत पानी ताजे पानी से बदल देना चाहिए जिससे नाइट्रोजन की अधिकता से बचाया जा सके ।
7. प्रति 6 माह के अंतराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे को पूरी तरह खाली कर साफ कर नये सिरे से मिट्टी,गोबर, पानी एवं अजोला कल्चर डालना चाहिए।
5 दिन में हो जाता है दोगुना
एजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में 5 दिनों में ही दो-गुना हो जाता है. यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो 300 टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है, यानी 40 किलोग्राम Nitrogen प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकता है. अजोला में 3.5 प्रतिशत Nitrogen तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं
ध्यान" में अगर इतनी शक्ति होती तो महर्षि दयानंद जी न मारे जाते, स्वामी श्रद्धानंद जी गोली ना खाते और पं. लेखराम जी छुरा न खाते।
शुक्रवार, 19 जुलाई 2024
दबी नसों का आयुर्वेदिक उपचार..
.. आपने कभी सोचा है कि सिर्फ़ कपूर और नींबू के इस्तेमाल से आप सिर से लेकर पैर तक की सारी नसों को मुक्त कर सकते हैं? जी हां, एक साधारण सा उपाय करके आप इस अद्भुत अनुभव को महसूस कर सकते हैं।
अगर आपको पुराने घुटनों का दर्द है, कमर या गर्दन में कोई नस दबी है, या रीड की हड्डी में अकड़न है, तो यह उपाय आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। एड़ी का पुराना दर्द भी इससे ठीक हो सकता है।
इस उपाय से आपके पैर की फटी एड़ियां और डैड स्किन भी हट जाती हैं और पैर कोमल हो जाते हैं। इसमें छुपा विज्ञान और आयुर्वेद का मिश्रण आपके शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।
इसके लिए आपको सिर्फ दो चीजों की जरूरत है: कपूर और नींबू। डेढ़ से दो लीटर गुनगुना पानी लें, जिसका तापमान आपके पैर को सहन हो सके। इसमें आधे नींबू का रस निचोड़ें और फिर नींबू को भी पानी में डाल दें। अब कपूर की तीन गोलियां बारीक पीसकर पाउडर बना लें और इसे भी पानी में मिला दें।
अब अपने पैरों को इस पानी में पांच से दस मिनट तक डुबोकर रखें। जैसे ही आप अपने पैरों को पानी में डालेंगे, आपको सिर से पैर तक करंट जैसा अनुभव होगा।
हमारे पैरों में 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट होते हैं, जो हमारे शरीर की नसों से जुड़े होते हैं। यह नींबू और कपूर वाला गुनगुना पानी इन प्रेशर पॉइंट्स को मुक्त कर देता है, जिससे सारी नसें फिर से सक्रिय हो जाती हैं।
इस उपाय से हाथ-पैर में होने वाली झनझनाहट तुरंत बंद हो जाती है। अगर कोई नस दबी या अकड़ गई है, तो वह भी खुल जाएगी। सिरदर्द और माइग्रेन की समस्या भी इससे हल हो सकती है।
इस उपाय का कोई साइड इफेक्ट नहीं है और यह बहुत ही सरल तरीके से किया जा सकता है। इसे पांच दिन तक करना है और आपको इससे सिर्फ फायदा ही होगा।
तो, आज ही इस चमत्कारी उपाय को आजमाइए और अपने शरीर की नसों को मुक्त करें।
मैं ऐसा नहीं होने दूँगा... एक काम करूँगा... मैं मेरी शादी होते ही आप दोनों के लिए ओल्ड ऐज होम बुक करवा दूँगा जहाँ आप लोग रह सकोगे
"मम्मा, ये बताओ, दादा-दादी आपको बहुत परेशान करते हैं, ना?" बेटे ने मासूमियत से पूछा।
"हाँ बेटा, पर क्या कर सकते हैं... अब हैं यहाँ, तो झेलना ही पड़ेगा," माँ ने थकी हुई आवाज़ में जवाब दिया।
"पर क्यों मम्मा, क्यों झेलना पड़ेगा?" बेटे ने जिज्ञासा से पूछा।
"तुम नहीं समझोगे, रहने दो," माँ ने बात टालने की कोशिश की।
"एक काम करते हैं मम्मा, इन दोनों को चाचा-चाची के घर भेज देते हैं।"
"वो वहाँ दो दिन भी नहीं रह पाएंगे बेटा। चाची तो दादी को देखते ही तुनक जाती है और चाचा तो तुम्हारे चाची के पल्ले से ऐसे बंधे हैं कि वो उतना ही सुनते हैं जितना चाची कहती है। वहाँ इनका कोई गुज़ारा नहीं होने वाला।"
"तो बुआ को बोल दो ना, ये उनके भी तो माँ-पापा हैं, वो ही ले जाएँ कुछ दिनों के लिए इन दोनों को।"
"तुम भी ना बड़े भोले हो बेटा। वहाँ नहीं जाएंगे दादा-दादी। ढकोसला करेंगे कि हम तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पी सकते तो वहाँ जाकर रहेंगे कैसे और अगर रहने को तैयार हो भी गए तो तुम्हारी बुआ के पचासों बहाने निकल आएंगे। वो भी तो अपनी माँ पर ही गई है।"
"क्या मम्मा, मतलब कोई इन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहता। एक काम करो मम्मा, इन्हें वहाँ पहुँचा दो... वो मैंने टीवी पर देखा था, कुछ ओल्ड ऐज होम टाइप से है... अरे वो जो उस दिन मूवी में आ रहा था।"
"वृद्धाश्रम कहते हैं उसे। मैं भी थक जाती हूँ काम करके। सुबह उठने से सोने तक इनके नखरे झेलना... तौबा तौबा... कब तक आखिर। मैं भी कुछ दिन और देख रही हूँ, नहीं तो तुम्हारे पापा से बात करूँगी कि वो इन दोनों को वहीं छोड़ आए।"
"हाँ, यही ठीक रहेगा। दादी दिन भर टोकती रहती है... टीवी मत देखो, मोबाइल मत खेलो... मैं बच्चा थोड़े ना हूँ... बड़ा हो रहा हूँ मैं... समझदार हो रहा हूँ। ये भी कोई बात हुई भला... हुँ..."
"अरे मेरा राजा बेटा... इतना गुस्सा... दस साल के ही हो अभी... मेरी आँखों के तारे हो तुम... इतनी जल्दी बड़े हो जाओगे, कभी सोचा ही नहीं था। अब देखो तुम बड़े होते जाओगे और हम बूढ़े होते जाएँगे। फिर तुम्हारी शादी करेंगे, प्यारी सी दुल्हनियाँ लाएँगे।"
"नहीं मम्मा, प्लीज़... मैं तो बड़ा हो रहा हूँ, पर आप लोग प्लीज़ बूढ़े मत होना।"
"हा हा हा, क्यों बेटा... बूढ़ा तो सबको ही होना है एक दिन।"
"पर मम्मा, आप लोग बूढ़े हो जाओगे और मेरी वाइफ आएगी तो उसे भी ऐसे ही परेशान होना पड़ेगा ना... वो भी तरह-तरह के आईडिया सोचेगी कि कैसे आप लोगों को यहाँ से हटाया जाए। नो मम्मा, प्लीज़ नो... आप भी दादी की तरह हो जाओगी और मेरी वाइफ को परेशान करोगी... मैं ऐसा नहीं होने दूँगा... एक काम करूँगा... मैं मेरी शादी होते ही आप दोनों के लिए ओल्ड ऐज होम बुक करवा दूँगा जहाँ आप लोग रह सकोगे और मैं और मेरी वाइफ भी चैन से रह लेंगे।"
"हुँ... हमारा घर है हमारे पास... तुम रहना अपने घर में अपनी वाइफ को लेकर। यही करोगे तुम... पाल पोस कर बड़ा कर रहे हैं और तुम हमें वृद्धाश्रम भेजने की तैयारी कर रहे हो। वाह बेटा, वाह..."
"मम्मा, मैं कहाँ कुछ गलत कह रहा हूँ। दादा-दादी ने भी तो पापा-बुआ को पाला-पोसा ही होगा ना। सभी माँ-बाप पालते हैं अपने बच्चों को, उसमें क्या नया है। पर अब जब सब बड़े हो गए हैं, तो कोई बूढ़े लोगों को अपने पास नहीं रखना चाहता तो भला मैं क्यों रखूँगा। परेशानी बढ़ाते हैं ये बूढ़े लोग। मैं भी नहीं रखूँगा और साइंटिस्ट बन कर कोई ऐसी दवा बनाऊँगा जिससे कि मैं कभी बूढ़ा ही ना हो पाऊँ और मेरे बच्चों को कोई ओल्ड ऐज होम ना ढूँढना पड़े।"
अपने बेटे की बातें सुनकर माँ के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई और जिन आँखों में कुछ देर पहले परेशानी, व्यथा, गुस्सा दिख रहा था, उन्हीं आँखों में अब शर्म पानी का रूप ले चुकी थी।🥹
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