राजस्थान के पुष्कर में बना भगवान ब्रह्मा का मंदिर अपनी एक अनोखी विशेषता
की वजह से न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र
है. यह ब्रह्मा जी एकमात्र मंदिर है. भगवान ब्रह्मा को हिन्दू धर्म में
संसार का रचनाकार माना जाता है.
क्या है इतिहास इस मंदिर का
ऐतिहासिक तौर पर यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी
में हुआ था. लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष
प्राचीन है.संगमरमर और पत्थर से बना यह मंदिर पुष्कर झील के पास स्थित है
जिसका शिखर लाल रंग से रंग हुआ है. इस मंदिर के केंद्र में भगवान ब्रह्मा
के साथ उनकी दूसरी पत्नी गायत्री कि प्रतिमा भी स्थापित है. इस मंदिर का
यहाँ की स्थानीय गुर्जर समुदाय से विशेष लगाव है. मंदिर की देख-रेख में लगे
पुरोहित वर्ग भी इसी समुदाय के लोग हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा
की दूसरी पत्नी गायत्री भीगुर्जर समुदाय से थीं.
कैसे नाम पड़ा 'पुष्कर'
हिन्दू धर्मग्रन्थ पद्म पुराण के मुताबिक धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने
उत्पात मचा रखा था. ब्रह्मा जी ने जब उसका वध किया तो उनके हाथों से तीन
जगहों पर पुष्प गिरा. इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बनी. इसी घटना के बाद इस
स्थान का नाम पुष्कर पड़ा. इस घटना के बाद ब्रह्मा ने यज्ञ करने का फैसला
किया.
पूर्णाहुति के लिए उनके साथ उनकी पत्नी सरस्वती का साथ होना
जरुरी था लेकिन उनके न मिलने की वजह से उन्होंने गुर्जर समुदाय की एक
कन्या 'गायत्री' से विवाह कर इस यज्ञ को पूर्ण किया. लेकिन उसी दौरान देवी
सरस्वती वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख
क्रोधित हो गईं. उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के
बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी. हालाँकि बाद में इस श्राप के असर को कम
करने के लिए उन्होंने यह वरदान दिया कि एक मात्र पुष्कर में उनकी उपासना
संभव होगी.
चूंकि विष्णु ने भी इस काम में ब्रह्मा जी की मदद की
थी इसलिए देवी सरस्वती ने उन्हें यह श्राप दिया कि उन्हें अपनी पत्नी से
विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा. इसी कारण उन्हें मानवरूप में राम का जन्म
लेना पड़ा और 14 साल के वनबास के दौरान उन्हें पत्नी से अलग रहना पड़ा था.
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