ज़िंदगी
में वजूद कायम रखने के लिए संघर्ष की अहमियत धर्मग्रंथों में धर्म-अधर्म
की लड़ाई से जुड़े प्रसंग ही नहीं, विज्ञान के सिद्धांत भी उजागर करते हैं।
यह जद्दोजहद जीवन, मान-सम्मान या जीवन से जुड़े किसी भी विषय से जुड़ी हो
सकती है और यह संघर्ष किसी भी तरह से हो, ताकत के बिना मुमकिन नहीं होता।
यही वजह है कि शक्ति, अस्तित्व का भी प्रतीक मानी गई है। धार्मिक नजरिए से यह शक्ति संसार की रचना, पालन व संहार रूप में प्रकट होने वाली मानी गई है। वहीं सनातन संस्कृति स्त्री में शक्ति का ही साक्षात् रूप देखती है, क्योंकि स्त्री के जरिए कुदरती व व्यावहारिक तौर पर यही सृजन व पालन शक्ति उजागर होती है। शक्ति की इसी अहमियत को जानकर ही धर्म परंपराओं में स्त्री स्वरूपा कई देवी शक्तियां पूजनीय है।
शक्ति पूजा में खासतौर पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का विधान है, जो सिलसिलेवार शक्ति, ऐश्वर्य और ज्ञान की देवी मानी जाती है। मां वैष्णवी यानी वैष्णो देवी भी इन 3 देवियों का स्वरूप मानी जाती हैं।
भारत के जम्मू और कश्मीर सूबे में स्थित मां वैष्णव का धाम शक्ति आराधना का जाग्रत स्थल माना जाता है। यहां पर अन्य देवी मंदिरों की तरह देवी की साकार और श्रृंगारित प्रतिमा न होकर मां वैष्णवी के तीन पिण्डियों के सामूहिक शक्ति स्वरूप में दर्शन होते हैं। माता के दर्शन की एक झलक भी ज़िंदगी में मनचाहे बदलाव लाने वाली मानी जाती है। कई श्रद्धालुओं की जिज्ञासा होती है कि आखिर माँ वैष्णवी एक हैं तो फिर उनकी यहां तीन पिण्डियों के रूप में क्यों पूजा होती है? माता की इन्हीं तीन दिव्य पिण्डियों के धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलूओं के साथ मां वैष्णवी के रूप में तीनों देवियों दर्शन से जीवन में क्या बदलाव होते हैं -
धार्मिक पहलू -
धार्मिक मान्यता है कि माता वैष्णवी अधर्म और दुष्टों का नाश कर जगत कल्याण के लिए आज भी माँ वैष्णव धाम में वास करती है। माता की तीन पिण्डियों के संबंध में यह पुराण कथा है -
राक्षस महिषासुर की दुष्टता और आंतक से दुःखी इन्द्र सहित सभी देवता ब्रह्मा और शिव के साथ वैकुण्ठधाम में भगवान विष्णु के पास जाते हैं। देवताओं ने विष्णु भगवान से इस संकट से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने दिव्य-दृष्टि से जानकर बताया कि महिषासुर की मृत्यु केवल एक नारी के हाथों ही संभव है, देवताओं द्वारा नहीं।
इसके बाद देवताओं द्वारा स्तुति करने पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव के सामूहिक तेज से एक नारी स्वरूप शक्ति की पैदा हुई। इस शक्ति में ब्रह्मा के अंश से महासरस्वती, विष्णु के अंश से महालक्ष्मी और शिव के अंश से महाकाली पैदा हुई। गुफा में तीन पिण्डियां इन तीन देवी रूपों का ही प्रतीक है। इनका सामूहिक स्वरुप ही मॉं वैष्णवी है। बाहरी रुप से अलग-अलग दिखाई देने पर भी इन तीन रूपों में कोई भेद नहीं है।
वैज्ञानिक पहलू -
कहा जाता है कि वैज्ञानिकों ने भी इन पिण्डियों के रहस्य को जानना चाहा। उनके द्वारा वैज्ञानिक निष्कर्षों में भी यह पाया कि गुफा में यह तीन पिण्डियां बिना आधार के स्थित है यानी दिव्य पिण्डियां बिना किसी सहारे के हवा में खड़ी हैं, जो अद्भुत है।
आध्यात्मिक पहलू -
आध्यात्मिक नजरिए से अलौकिक शक्ति का रूप ये तीन पिण्डियां इच्छाशक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रियाशक्ति की प्रतीक है। इस पहलू को व्यावहारिक जीवन से जोड़े तो पाते है कि जीवन में इच्छा, विद्या और कर्म के अभाव में किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती है। शाक्त ग्रंथों में भी आदिशक्ति वैष्णवी ने शक्ति के इन अवतारों का मुख्य उद्देश्य देवताओं की रक्षा, मानव-कल्याण, दानवों का नाश, भक्तों को निर्भय करना और धर्म की रक्षा बताया है।
माता वैष्णवी की चमत्कारिक पिण्डियों की भांति ही वैष्णव मां की पवित्र गुफा में बहने वाला जल भी रहस्य का विषय है। इस जल का स्त्रोत वैज्ञानिकों को भी नहीं मिला। यही वजह है कि माता के दरबार से धर्मावलंबी भक्तों का अटूट आस्था और विश्वास है। इस बहते जल को भी वह मां का आशीर्वाद और उसका सेवन समस्त पापों को नष्ट करने वाला मानते हैं।
व्यावहारिक तौर पर तीन शक्तियों की साधना से यही सूत्र जूड़े हैं कि तरक्की और सफलता के लिए सबल व दृढ़ संकल्पित होना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले विचारों को सही दिशा देना यानी नकारात्मकता, अवगुणों व मानसिक कलह से दूर होना जरूरी है। मां वैष्णवी की शक्तियों में महादुर्गा या महाकाली स्वरूप की पूजा के पीछे यही भाव है।
इसी तरह मां वैष्णवी की शक्तियों में महालक्ष्मी पावनता और महासरस्वती विवेक शक्ति की प्रतीक है, जो मन और तन को सशक्त बनाती है। ऐसी दशा ज्ञान, संस्कार आत्मविश्वास, सद्गुणों, कुशलता और दक्षता पाने के लिये मुनासिब होती है। इसके द्वारा कोई भी इंसान मनचाहा धन, वैभव बंटोरने के साथ ही सुखी और शांत जीवन की कामनाओं को सिद्ध कर सकता है।
आज के दौर में इन तीन शक्तियों की पूजा का संदेश यही है कि जीवन में निरोगी, चरित्रवान, आत्म-अनुशासित, कार्य-कुशल व दक्ष बनकर शक्ति संपन्न बने और कामयाबी की ऊंचाइयों को छूकर वजूद, साख और रुतबे को कायम रखें।
यही वजह है कि शक्ति, अस्तित्व का भी प्रतीक मानी गई है। धार्मिक नजरिए से यह शक्ति संसार की रचना, पालन व संहार रूप में प्रकट होने वाली मानी गई है। वहीं सनातन संस्कृति स्त्री में शक्ति का ही साक्षात् रूप देखती है, क्योंकि स्त्री के जरिए कुदरती व व्यावहारिक तौर पर यही सृजन व पालन शक्ति उजागर होती है। शक्ति की इसी अहमियत को जानकर ही धर्म परंपराओं में स्त्री स्वरूपा कई देवी शक्तियां पूजनीय है।
शक्ति पूजा में खासतौर पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का विधान है, जो सिलसिलेवार शक्ति, ऐश्वर्य और ज्ञान की देवी मानी जाती है। मां वैष्णवी यानी वैष्णो देवी भी इन 3 देवियों का स्वरूप मानी जाती हैं।
भारत के जम्मू और कश्मीर सूबे में स्थित मां वैष्णव का धाम शक्ति आराधना का जाग्रत स्थल माना जाता है। यहां पर अन्य देवी मंदिरों की तरह देवी की साकार और श्रृंगारित प्रतिमा न होकर मां वैष्णवी के तीन पिण्डियों के सामूहिक शक्ति स्वरूप में दर्शन होते हैं। माता के दर्शन की एक झलक भी ज़िंदगी में मनचाहे बदलाव लाने वाली मानी जाती है। कई श्रद्धालुओं की जिज्ञासा होती है कि आखिर माँ वैष्णवी एक हैं तो फिर उनकी यहां तीन पिण्डियों के रूप में क्यों पूजा होती है? माता की इन्हीं तीन दिव्य पिण्डियों के धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलूओं के साथ मां वैष्णवी के रूप में तीनों देवियों दर्शन से जीवन में क्या बदलाव होते हैं -
धार्मिक पहलू -
धार्मिक मान्यता है कि माता वैष्णवी अधर्म और दुष्टों का नाश कर जगत कल्याण के लिए आज भी माँ वैष्णव धाम में वास करती है। माता की तीन पिण्डियों के संबंध में यह पुराण कथा है -
राक्षस महिषासुर की दुष्टता और आंतक से दुःखी इन्द्र सहित सभी देवता ब्रह्मा और शिव के साथ वैकुण्ठधाम में भगवान विष्णु के पास जाते हैं। देवताओं ने विष्णु भगवान से इस संकट से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने दिव्य-दृष्टि से जानकर बताया कि महिषासुर की मृत्यु केवल एक नारी के हाथों ही संभव है, देवताओं द्वारा नहीं।
इसके बाद देवताओं द्वारा स्तुति करने पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव के सामूहिक तेज से एक नारी स्वरूप शक्ति की पैदा हुई। इस शक्ति में ब्रह्मा के अंश से महासरस्वती, विष्णु के अंश से महालक्ष्मी और शिव के अंश से महाकाली पैदा हुई। गुफा में तीन पिण्डियां इन तीन देवी रूपों का ही प्रतीक है। इनका सामूहिक स्वरुप ही मॉं वैष्णवी है। बाहरी रुप से अलग-अलग दिखाई देने पर भी इन तीन रूपों में कोई भेद नहीं है।
वैज्ञानिक पहलू -
कहा जाता है कि वैज्ञानिकों ने भी इन पिण्डियों के रहस्य को जानना चाहा। उनके द्वारा वैज्ञानिक निष्कर्षों में भी यह पाया कि गुफा में यह तीन पिण्डियां बिना आधार के स्थित है यानी दिव्य पिण्डियां बिना किसी सहारे के हवा में खड़ी हैं, जो अद्भुत है।
आध्यात्मिक पहलू -
आध्यात्मिक नजरिए से अलौकिक शक्ति का रूप ये तीन पिण्डियां इच्छाशक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रियाशक्ति की प्रतीक है। इस पहलू को व्यावहारिक जीवन से जोड़े तो पाते है कि जीवन में इच्छा, विद्या और कर्म के अभाव में किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती है। शाक्त ग्रंथों में भी आदिशक्ति वैष्णवी ने शक्ति के इन अवतारों का मुख्य उद्देश्य देवताओं की रक्षा, मानव-कल्याण, दानवों का नाश, भक्तों को निर्भय करना और धर्म की रक्षा बताया है।
माता वैष्णवी की चमत्कारिक पिण्डियों की भांति ही वैष्णव मां की पवित्र गुफा में बहने वाला जल भी रहस्य का विषय है। इस जल का स्त्रोत वैज्ञानिकों को भी नहीं मिला। यही वजह है कि माता के दरबार से धर्मावलंबी भक्तों का अटूट आस्था और विश्वास है। इस बहते जल को भी वह मां का आशीर्वाद और उसका सेवन समस्त पापों को नष्ट करने वाला मानते हैं।
व्यावहारिक तौर पर तीन शक्तियों की साधना से यही सूत्र जूड़े हैं कि तरक्की और सफलता के लिए सबल व दृढ़ संकल्पित होना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले विचारों को सही दिशा देना यानी नकारात्मकता, अवगुणों व मानसिक कलह से दूर होना जरूरी है। मां वैष्णवी की शक्तियों में महादुर्गा या महाकाली स्वरूप की पूजा के पीछे यही भाव है।
इसी तरह मां वैष्णवी की शक्तियों में महालक्ष्मी पावनता और महासरस्वती विवेक शक्ति की प्रतीक है, जो मन और तन को सशक्त बनाती है। ऐसी दशा ज्ञान, संस्कार आत्मविश्वास, सद्गुणों, कुशलता और दक्षता पाने के लिये मुनासिब होती है। इसके द्वारा कोई भी इंसान मनचाहा धन, वैभव बंटोरने के साथ ही सुखी और शांत जीवन की कामनाओं को सिद्ध कर सकता है।
आज के दौर में इन तीन शक्तियों की पूजा का संदेश यही है कि जीवन में निरोगी, चरित्रवान, आत्म-अनुशासित, कार्य-कुशल व दक्ष बनकर शक्ति संपन्न बने और कामयाबी की ऊंचाइयों को छूकर वजूद, साख और रुतबे को कायम रखें।
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