हिंदू
धर्म को मानने वाले ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान श्रीराम
के परमभक्त व भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार श्रीहनुमानजी
बालब्रह्मचारी थे.
लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि धर्म शास्त्रों में हनुमानजी के एक पुत्र का वर्णन भी मिलता है।
शास्त्रों में हनुमानजी के इस पुत्र का नाम मकरध्वज बताया गया है।
भारत में दो ऐसे मंदिर भी है जहां हनुमानजी की पूजा उनके पुत्र मकरध्वज के साथ की जाती है। इन मंदिरों की कई विशेषताएं हैं जो इसे खास बनाती हैं।
हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज की उत्पत्ति की कथा व इन मंदिरों से जुड़ी खास बातें :
धर्म शास्त्रों के अनुसार जिस समय हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे।उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ,
जिसका नाम पड़ा मकरध्वज। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था उसे अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था।जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। तत्पश्चात मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
मकरध्वज व हनुमानजी का पहला मंदिर गुजरात के भेंटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलो मीटर अंदर की ओर है।
इस मंदिर को दांडी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां पहली बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे।
मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने हनुमान पुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है, वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है।
इन दोनों प्रतिमाओं की विशेषता यह है कि इन दोनों के हाथों कोई भी शस्त्र नहीं है और ये आनंदित मुद्रा में है।
राजस्थान के अजमेर से 50 किलोमीटर दूर जोधपुर मार्ग पर स्थित ब्यावर में हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज का मंदिर स्थित है।
यहां मकरध्वज के साथ हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को देश के अनेक भागों से श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं।
ब्यावर के विजयनगर-बलाड़ मार्ग के मध्य भूभाग पर स्थित यह प्रख्यात मंदिर त्रेतायुगीन संदर्भों से जुड़ा हुआ है।
यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती ही है साथ में मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
संभवत: संपूर्ण भारत देश में ब्यावर का यह दूसरा अनूठा मंदिर है, जहां एक ही स्थान पर हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज अर्थात दोनों पिता-पुत्र की पूजा अर्चना की जाती है।
जनश्रुति है कि हनुमान के पुत्र होने के कारण भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल से बुलाकर तीर्थराज पुष्कर के निकट नरवर से दिवेर तक के
प्रदेश का अधिपति बना दिया। श्रीराम ने मकरध्वज को यह वरदान दिया कि कलियुग में ये जाग्रत देव के रूप में भक्तों के संकटों का
निवारण करेंगे और उनकी मनोकामनाएं पूरी करेंगे। उसी के अनुसार जहां पूर्व में मकरध्वज का सिंहासन था, उस पावन स्थल पर मकरध्वज बालाजी के
विग्रह का प्राकट्य हुआ। उसी समय मेंहदीपुर से हनुमान बालाजी भी सविग्रह यहां पुत्र के साथ विराजमान हो गये। संभवत: संपूर्ण भारत देश में
ब्यावर का यह दूसरा अनूठा मंदिर है, जहां एक ही स्थान पर हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज अर्थात दोनों पिता-पुत्र की पूजा अर्चना की जाती है।
इसी स्थल पर प्राचीनकाल में नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ ने दीर्घकाल तक तप किया था और यहां नाथ सिद्ध पीठ-ध्वज पंथ की स्थापना की थी।
वर्तमान मंदिर परिसर में स्थित महायोगी गोरखनाथ का धूणा भी बहुत सी रहस्यमयी शक्तियों से परिपूर्ण है।
जनश्रुति के अनुसार इस धूणे की 7 परिक्रमा लगाने से संकट निवारण होकर कामना की पूर्ति होती है। यहां वट वृक्ष के निकट नाथ वंशजों की बहुत सी समाधियां भी हैं।
मकरध्वज बालाजी धाम परिसर में घंटाकर्ण महावीर, भैरवनाथ, श्मशानेश्वर, प्रेतराज, समाधि नाथ महाराज की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं।
यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती ही है, साथ में मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। हजारों भक्त इनके चमत्कार से लाभान्वित हुए हैं।
यहां इतने साक्षात चमत्कार देखने को मिलते हैं, कि नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं। यह स्थल हनुमान, मकरध्वज गोरखनाथ, महाकाल भैरव, घंटाकर्ण संबंधी समस्त उपासना एवं तंत्र-मंत्र साधना के लिए उपासकों, भक्तों, साधकों, तांत्रिकों का सर्वसिद्धि प्रदायक जाग्रत तीर्थ है।
मकरध्वज बालाजी के दर्शनों के लिए दूर-दूर से आये भक्तों का मेला तो प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को लगता है परंतु चैत्र पूर्णिमा(हनुमान जयंती), आषाढ़ पूर्णिमा, भाद्रपद पूर्णिमा व मकरध्वज जयंती के दिन बाबा के इस तीर्थधाम का विशेष आकर्षण अपने भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
ऐसे पावन अवसरों पर हजारों, लाखों की संख्या में भक्त पुरुष-नारी, बच्चे-बूढ़े भक्ति भाव से युक्त हो अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए मकरध्वज बालाजी को नारियल, छत्र, ध्वजा, चोला-श्रंृगार, भोग-प्रसाद चढ़ाते हैं। मकरध्वज बालाजी धाम को चैरासी लाख योनियों के बंधन से मनुष्य को मुक्त कराने वाला महातीर्थ कहा गया है।
लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि धर्म शास्त्रों में हनुमानजी के एक पुत्र का वर्णन भी मिलता है।
शास्त्रों में हनुमानजी के इस पुत्र का नाम मकरध्वज बताया गया है।
भारत में दो ऐसे मंदिर भी है जहां हनुमानजी की पूजा उनके पुत्र मकरध्वज के साथ की जाती है। इन मंदिरों की कई विशेषताएं हैं जो इसे खास बनाती हैं।
हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज की उत्पत्ति की कथा व इन मंदिरों से जुड़ी खास बातें :
धर्म शास्त्रों के अनुसार जिस समय हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे।उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ,
जिसका नाम पड़ा मकरध्वज। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था उसे अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था।जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। तत्पश्चात मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
मकरध्वज व हनुमानजी का पहला मंदिर गुजरात के भेंटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलो मीटर अंदर की ओर है।
इस मंदिर को दांडी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां पहली बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे।
मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने हनुमान पुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है, वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है।
इन दोनों प्रतिमाओं की विशेषता यह है कि इन दोनों के हाथों कोई भी शस्त्र नहीं है और ये आनंदित मुद्रा में है।
राजस्थान के अजमेर से 50 किलोमीटर दूर जोधपुर मार्ग पर स्थित ब्यावर में हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज का मंदिर स्थित है।
यहां मकरध्वज के साथ हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को देश के अनेक भागों से श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं।
ब्यावर के विजयनगर-बलाड़ मार्ग के मध्य भूभाग पर स्थित यह प्रख्यात मंदिर त्रेतायुगीन संदर्भों से जुड़ा हुआ है।
यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती ही है साथ में मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
संभवत: संपूर्ण भारत देश में ब्यावर का यह दूसरा अनूठा मंदिर है, जहां एक ही स्थान पर हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज अर्थात दोनों पिता-पुत्र की पूजा अर्चना की जाती है।
जनश्रुति है कि हनुमान के पुत्र होने के कारण भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल से बुलाकर तीर्थराज पुष्कर के निकट नरवर से दिवेर तक के
प्रदेश का अधिपति बना दिया। श्रीराम ने मकरध्वज को यह वरदान दिया कि कलियुग में ये जाग्रत देव के रूप में भक्तों के संकटों का
निवारण करेंगे और उनकी मनोकामनाएं पूरी करेंगे। उसी के अनुसार जहां पूर्व में मकरध्वज का सिंहासन था, उस पावन स्थल पर मकरध्वज बालाजी के
विग्रह का प्राकट्य हुआ। उसी समय मेंहदीपुर से हनुमान बालाजी भी सविग्रह यहां पुत्र के साथ विराजमान हो गये। संभवत: संपूर्ण भारत देश में
ब्यावर का यह दूसरा अनूठा मंदिर है, जहां एक ही स्थान पर हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज अर्थात दोनों पिता-पुत्र की पूजा अर्चना की जाती है।
इसी स्थल पर प्राचीनकाल में नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ ने दीर्घकाल तक तप किया था और यहां नाथ सिद्ध पीठ-ध्वज पंथ की स्थापना की थी।
वर्तमान मंदिर परिसर में स्थित महायोगी गोरखनाथ का धूणा भी बहुत सी रहस्यमयी शक्तियों से परिपूर्ण है।
जनश्रुति के अनुसार इस धूणे की 7 परिक्रमा लगाने से संकट निवारण होकर कामना की पूर्ति होती है। यहां वट वृक्ष के निकट नाथ वंशजों की बहुत सी समाधियां भी हैं।
मकरध्वज बालाजी धाम परिसर में घंटाकर्ण महावीर, भैरवनाथ, श्मशानेश्वर, प्रेतराज, समाधि नाथ महाराज की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं।
यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती ही है, साथ में मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। हजारों भक्त इनके चमत्कार से लाभान्वित हुए हैं।
यहां इतने साक्षात चमत्कार देखने को मिलते हैं, कि नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं। यह स्थल हनुमान, मकरध्वज गोरखनाथ, महाकाल भैरव, घंटाकर्ण संबंधी समस्त उपासना एवं तंत्र-मंत्र साधना के लिए उपासकों, भक्तों, साधकों, तांत्रिकों का सर्वसिद्धि प्रदायक जाग्रत तीर्थ है।
मकरध्वज बालाजी के दर्शनों के लिए दूर-दूर से आये भक्तों का मेला तो प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को लगता है परंतु चैत्र पूर्णिमा(हनुमान जयंती), आषाढ़ पूर्णिमा, भाद्रपद पूर्णिमा व मकरध्वज जयंती के दिन बाबा के इस तीर्थधाम का विशेष आकर्षण अपने भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
ऐसे पावन अवसरों पर हजारों, लाखों की संख्या में भक्त पुरुष-नारी, बच्चे-बूढ़े भक्ति भाव से युक्त हो अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए मकरध्वज बालाजी को नारियल, छत्र, ध्वजा, चोला-श्रंृगार, भोग-प्रसाद चढ़ाते हैं। मकरध्वज बालाजी धाम को चैरासी लाख योनियों के बंधन से मनुष्य को मुक्त कराने वाला महातीर्थ कहा गया है।
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