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रविवार, 13 अक्टूबर 2019

शरदपूर्णिमा की रात्रि में स्वास्थ्य प्रयोग

🌹शरदपूर्णिमा की रात्रि में स्वास्थ्य प्रयोग...🌹

🌹शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है । ये किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायी हैं ।

🌹इस रात्रि में शरीर पर हल्के-फुल्के परिधान पहनकर चन्द्रमा की चाँदनी में टहलने, घास के मैदान पर लेटने से त्वचा के रोमकूपों में चन्द्र-किरणें समा जाती हैं और बंद रोम-छिद्र प्राकृतिक ढंग से खुलते हैं । शरीर के कई रोग तो इन चन्द्र-किरणों के प्रभाव से ही धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं ।

    🌹इन चन्द्र-किरणों से त्वचा का रंग साफ होता है, नेत्रज्योति बढ़ती है एवं चेहरे पर गुलाबी आभा उभरने लगती है । यदि देर तक पैरों को चन्द्र-किरणों का स्नान कराया जाय तो ठंड के दिनों में तलुए, एड़ियाँ, होंठ फटने से बचे रहते हैं ।

🌹चन्द्रमा की किरणें मस्तिष्क के लिए अति लाभकारी हैं । मस्तिष्क की बंद तहें खुलती हैं, जिससे स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है । साथ ही सिर के बाल असमय सफेद नहीं होते हैं ।

🌹दो पके सेवफल के टुकड़े करके शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्रकिरणें और ओज के कण समा जाते हैं । सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक लाभकारी परिवर्तन होते हैं ।

🌹इस दिन रात को चाँदनी में सेवफल 2-3 घंटे रख के फिर उसे चबा-चबाकर खाने से मसूड़ों से खून निकलने का रोग (स्कर्वीर्) नहीं होता तथा कब्ज से भी छुटकारा मिलता है ।

🌹250 ग्राम दूध में 1-2 बादाम व 2-3 छुहारों के टुकड़े करके उबालें । फिर इस दूध को पतले सूती कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में 2-3 घंटे तक रख दें । यह दूध औषधीय गुणों से पुष्ट हो जायेगा । सुबह इस दूध को पी लें ।

🌹सोंठ, काली मिर्च और लौंग डालकर उबाला हुआ दूध चाँदनी रात में 2-3 घंटे रखकर पीने से बार-बार जुकाम नहीं होता, सिरदर्द में लाभ होता है ।

🌹इस रात्रि में 3-4 घंटे तक बदन पर चन्द्रमा की किरणों को अच्छी तरह पड़ने दें । इससे त्वचा मुलायम, कोमल व कंचन-सी दमकने लगेगी ।

🌹तुलसी के 10-12 पत्ते एक कटोरी पानी में भिगोकर चाँदनी रात में 2-3 घंटे के लिए रख दें । फिर इन पत्तों को चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें । बचे हुए पानी को छानकर एक-एक बूँद आँखों में डालें, नाभि में मलें तथा पैरों के तलुओं पर भी मलें । आँखों से धुँधला दिखना, बार-बार पानी आना आदि में इससे लाभ होता है । तुलसी के पानी की बूँदें चन्द्रकिरणों के संग मिलकर प्राकृतिक अमृत बन जाती हैं ।

Note : दूध व तुलसी के सेवन में दो-ढाई घंटे का अंतर रखें ।

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